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आनन्द प्रवचन : भाग ६
ऐतराज न था। उन्होंने स्वीकार कर लिया। दोनों श्रीराम के पास पहुँचे । हनुमान ने अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा
"प्रभो ! ये कहते हैं कि अशोकवाटिका के फूल सफेद थे, जबकि मैंने लाल देखे थे। इन्हें समझाइए कि गलत बात पर हठ न करें।"
श्रीराम ने हनुमान के तमतमाए चेहरे को देखा तो मंद-मंद मुस्कराते हुए बोले-"अंजनिनन्दन ! मैं तो अशोकवाटिका गया ही नहीं, वहाँ तो जानकी ही रही थीं, वही प्रत्यक्षदर्शी हैं। उनसे ही निर्णय करा लो।"
__ हनुमान ऋषि वाल्मीकि को लेकर सीताजी के पास पहुंचे। उनके चरणों में नमस्कार करते ही हनुमान का आवेश शान्त हो गया। हनुमान ने जब अशोकवाटिका के फूलों के सम्बन्ध में निर्णय मांगा तो सीताजी ने कहा- "वत्स ! फूल सफेद ही थे।" इस पर चकित होकर हनुमानजी ने पूछा-"फिर मुझे लाल क्यों दिखाई दिये ?"
"क्रोध की उत्तेजना के कारण ! जब तुमने अशोकवाटिका में प्रवेश किया तो वहाँ की रमणीयता देखकर तुम्हारे नेत्र क्रोध से लाल हो गए। तुमने सोचा-'इस पापी रावण की ऐसी सुन्दर वाटिका !' बस, इसी कारण तुम्हें अशोकवाटिका के सफेद फूल भी लाल रंग के दिखाई दिये।"
निष्कर्ष यह है कि हनुमानजी ने वे पुष्प क्रोधकषायरंजित नेत्रों से देखे, इस कारण उन्हें वे लाल दिखाई दिए, जबकि ऋषि वाल्मीकि ने कषायहीन चक्षुओं से, इस कारण वे उनको असली रूप में देख सके । क्रोध का प्रकोप : अतीव भयंकर व हानिकर
शरीर में ज्वर आता है तो उसका तापमान बढ़ जाता है, उससे कई तरह की गड़बड़ियाँ पैदा हो जाती हैं। ज्वरग्रस्त व्यक्ति का शरीर जलता है, उसे प्यास लगती है, सिरदर्द होता है, पैर भी जलते हैं, नींद और भूख मर जाती है, बड़ी बेचैनी होती है, थकान और कमजोरी भी बहुत आ जाती है। किसी काम में मन नहीं लगता । सोचना और बोलना भी ठीक तरह से नहीं होता, थोड़े दिन का बुखार भी शरीर को बिलकुल तोड़ देता है ।
शरीर की तरह मन-मस्तिष्क को भी जब ज्वर आता है तो वह शारीरिक ज्वर की अपेक्षा कई गुना भयंकर एवं हानिकर सिद्ध होता है । इस मानसिक ज्वर का एक प्रकार है-क्रोध का प्रकोप । क्रोध का प्रकोप एक प्रकार का क्षणिक पागमापन है । यह स्थिति एक तूफान के समान है जो मनुष्य की भावनाओं को जला देता है । यह बड़ी नृशंस उत्तेजना है, जिससे व्यक्ति की दूरदर्शिता और विवेकशक्ति मष्ट हो जाती है। विवेक-दीपक बुझने पर व्यक्ति अज्ञान के अंधेरे में भटकने लगता है, वस्तुस्थिति और वास्तविकता को जानने की बुद्धि ही नहीं रहती, इस कारण वह
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