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यत्नवान मुनि को तजते पाप : ३
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तीसरा वर्ष समाप्त होने के दिन आचार्य ने मेहतरानी को उस साधक पर कूड़े की टोकरी उड़ेल देने को कहा। मेहतरानी के वैसा करने पर शिष्य को क्रोध नहीं आया, बल्कि उसने हाथ जोड़कर कहा- “माता ! तुम धन्य हो । तीन वर्ष से तुम मेरे दोष निकालने के लिए प्रयत्नशील हो।" वह पुनः स्नान करके आचार्यश्री के चरणों में उपस्थित हुआ। इस बार आचार्यश्री ने उस यतनावान साधक को दोषमुक्त और योग्य समझकर आत्मदर्शन की विद्या दी।
बन्धुओ ! इससे आप समझ सकते हैं कि साधकजीवन में यतना की कितनी आवश्यकता है।
___ यतना का चौथा अर्थ : जतन (रक्षण) करना जो व्यक्ति यतनाशील होता है, वह पापों एवं दुर्गुणों से आत्मा की रक्षा करता है । लोकव्यवहार में भी जतन शब्द रक्षा के अर्थ में प्रयुक्त होता है ।
प्रश्न होता है, साधु को किस वस्तु का जतन करना चाहिए ? उसे अपनी काया का जतन करना चाहिए या आत्मा का ? यह तो सर्वमान्य तथ्य है कि जब चारों ओर घर में आग लगी हो तो व्यक्ति सर्वप्रथम सारभूत वस्तुओं को निकाल कर उनकी रक्षा करता है, असार को जाने देता है। इसका मतलब हुआ, वह बहुमूल्य वस्तु का जतन करता है, अल्पमूल्य की उपेक्षा करता है । आज चारों ओर संसार का वातावरण खराब है, व्यक्ति असार वस्तु को सँभालने और उसकी रक्षा करने में लगा हुआ है । वह इस अज्ञानदशा में है कि पहले मुझे असार, नश्वर, क्षणभंगुर वस्तु को बचाना चाहिए कि सारभूत, अविनाशी, शाश्वत को ? यह तो वही बात हुई कि वह सामान को बचाने में लगा है, पर सामान के मालिक को नहीं ।
एक जगह किसी धनिक के घर में आग लग गई। उसने अपने नौकरों से बड़ी सावधानी से घर का सब सामान निकलवाया। उसने कुर्सियाँ, मेजें, कपड़े की सन्दूकें, तिजोरियाँ, खाने-पीने का सामान, बहीखाते आदि सब कुछ निकलवा लिया, तब तक आग की लपटें चारों ओर फैल गई थीं। घर का मालिक बाहर आकर सब लोगों के साथ खड़ा हो गया। उसकी आँखों में आँसू थे, वह हक्का-बक्का-सा अपने प्यारे भवन को आग में भस्म होते देख रहा था । अन्ततः उसने लोगों से पूछा"भीतर कूछ रहा तो नहीं, सब सामान ले आये न ?" वे बोले-“सामान तो हमारे खयाल से कुछ नहीं रहा, फिर भी हम एक बार और देख आते हैं।"
नौकरों ने अन्दर जाकर देखा तो मालिक का इकलौता पुत्र कोठरी में मरा पड़ा है। कोठरी प्रायः जल गई थी। वे घबराकर बाहर आए और छाती पीटकर रोने लगे- "हाय ! हम अभागे घर का सामान बचाने में लगे रहे, मगर सामान के मालिक को बचाने का खयाल तक न रहा।" धनिक को भी सामान बचाकर सामान के भावी मालिक को खोने का बड़ा पश्चात्ताप हुआ।
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