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आनन्द प्रवचन : भाग ६
ब्रह्मा जी के पास पहुँचे और अपनी जिज्ञासा शान्त करने हेतु उनके सामने प्रस्तुत की ।
ब्रह्माजी ने दीर्घनिःश्वास छोड़ते हुए कहा - " बहुत दिन पहले यहाँ एक युवक आया था, वह जिससे मिलता भक्ति और वैराग्य की बातें करता था। लोगों की स्वार्थपूर्ण दृष्टि में वह पागल सा लगता था । अतः घर वालों ने उसे निकम्मा समझ - कर निकाल दिया। युवक का एक हाथ बिगड़ा हुआ था, फिर भी वह बहुत श्रमनिष्ठ और स्वाभिमानी था । इसलिए उसने प्राकृतिक जीवन जीने का विचार किया । आहार सम्बन्धी थोड़ी-सी आवश्यकताएँ थीं। थोड़ा समय उसमें लगाकर बाकी समय वह निःस्वार्थ सेवा और परोपकार में बिताना चाहता था । अतः उसने अपने आहार के लिए कुछ फलों वाले पौधे लगाने का निश्चय किया । पर बिना किसी औजार के उस कठोर धरती को खोदना कठिन काम था। युवक ने साहस नहीं छोड़ा और अपने हाथ से ही खोदने का काम शुरू किया । वह बड़ी कठिनाई से एक हाथ से कभी एक कभी दो ढेले खोद पाता था । यों वह कई दिनों तक खोदता रहा । उसकी बहन आई और हँसती हुई निकल गई । उसकी दृष्टि में भाई जैसा मूर्ख इस संसार में कोई न था । कुछ देर में पत्नी आई — उसके हाथ में शीतल जल से भरा घड़ा था। युवक ने बड़ी आशा से हाथ उठाया और इस आशय का थोड़ा-सा पानी पिला देगी । किन्तु हाय री स्वार्थवृत्ति ! पत्नी ने जल पिलाना तो दूर रहा, दो मीठे बोल भी न बोले । उलटे, उपहास के स्वर में उसने कहा"भागीरथ जी ! थोड़ा और खोदिये, शीघ्र ही गंगाजी निकल आएँगी ।"
इशारा किया कि वह
निराश युवक धीरे-धीरे फिर मिट्टी खोदने लगा। तभी उधर से सिर पर फलों का टोकरा लिये पिता आया । भूखे युवक ने इशारे से एक नन्हा सा फल खाने को माँगा । लेकिन फल के बदले में युवक को भर्त्सना मिली - " मूर्ख ! दिनभर निकम्मा बैठा रहता है, तब खाना कहाँ से मिलेगा ? खाना कहीं आकाश से टपकता है क्या ? उठ, कुछ काम कर । अपनी रोटी स्वयं कमा । "
युवक की आँखें डबडबा आईं । बेचारा कुछ बोल न सका । भूखा-प्यासा ही जमीन खोदने में लगा रहा। पर मन ही मन सोचता रहा- संसार में प्रेम और दया का स्रोत न सूखे तो मनुष्य कितना खुशहाल हो सकता है । संसार साधनों के अभाव में नहीं, स्वार्थभावना से दुःख बढ़ने की सत्यता आज प्रतीत हुई ।
ज्येष्ठ शुक्ला १० को प्रातःकाल जैसे ही उसने मिट्टी का एक ढेला उठाया, उसकी आँखें चौंधिया गईं । कोई बहुमूल्य मणि का टुकड़ा उसके हाथ आ गया । वह उस मणि को लेकर खड़ा हुआ तो लोग भ्रम में पड़ गये कि आज समय से पहले ही सूर्योदय कैसे हो गया ? जहाँ तक प्रकाश पहुँचा, लोग भागते चले आए और युवक के भाग्य की प्रशंसा करने लगे । बहन आई और भाई को नहलाने लगी । पत्नी आई और उसके शरीर पर चन्दन का लेप कर उसे बहुमूल्य वस्त्र पहना गई । पिता मधुर
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