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हंस छोड़ चले शुष्क सरोवर २८६ मिष्ठान्न व पकवान से सजा थाल लेकर आया और बोला-''बेटा ! बहुत भूखे दिखाई देते हो, लो पहले भोजन कर लो।"
युवक को संसार के इस मोह और मिथ्या स्वार्थ पर हँसी आ गई । उसने सारे वस्त्राभूषण उतार फेंके और भोजन भी नहीं लिया। उस स्थान पर सुमधुर फलों का पौधा लगाकर अपनी मणि लिये हुए युवक न जाने कहाँ चला गया। उस दिन से उसकी सूरत तो क्या, छाया के भी दर्शन न हुए। हाँ, उसका रोपा हुआ वृक्ष कुछ दिनों में बड़ा होकर मीठे फल अवश्य देने लगा।
धीरे-धीरे युवक का यश सारे विश्व में गूंजने लगा। जो भी पर्वत से मणि निकलने की बात सुनता, उधर ही दौड़ा चला जाता। देखते-देखते सैकड़ों स्वार्थी लोग मणि पाने के लालच में पर्वत की खुदाई करने लगे। संसार में स्वार्थी और मोहग्रस्त लोग ही अन्धानुकरण करके उसके दुष्परिणाम भोगते हैं। मणि तो मिली नहीं, पर एक भारी भरकम पत्थर का टुकड़ा निकला। लोग सामूहिक रूप से जुट पड़े उस पत्थर को हटाने के लिए। पत्थर के हटते ही उसके पीछे छिपा भयंकर नाग फंकार मारकर दौड़ा। लोग भागे, पर उस सांप ने उनमें से अधिकांश को वहीं डस लिया। भागते समय वे ही लोग इस वृक्ष से टकराए, फलत: नाग का विष इस वृक्ष में भी व्याप्त हो गया। उस दिन से इस वृक्ष के सब पत्ते झड़ गए। इसमें फल भी विषले लगने लगे। नारद ! इसके बाद से आज तक किसी ने भी इस वृक्ष के नीचे बैठकर शीतल छाया प्राप्त करने का सुयोग नहीं पाया।"
नारद ने सविस्मय पूछा--"भगवन् ! क्या यह वृक्ष फिर हराभरा हो सकता है ?" ब्रह्माजी गम्भीर होकर धीरे-धीरे बोले-"सृष्टि में कुछ भी असम्भव तो नहीं है, पर आज तो धरती के अधिकांश लोगों को स्वार्थ और मोहप्रपंच के नाग ने डस लिया है। लोग जितने इस शान्तिरूपी वृक्ष से टकराते हैं, उतने ही अधिक इसके फल विषाक्त होते चले जाते हैं। उस युवक की तरह कोई निःस्वार्थ, प्रेमी सज्जन आए और उस वृक्ष का स्पर्श करे तो यह फिर से शीतल, मधुर और सुखद फलों वाला वृक्ष क्यों नहीं बन सकता ?" नारदजी को इस समाधान से सन्तुष्टि हुई । उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि स्वार्थी और मोही लोग ही इस अमृततुल्य, स्वर्गोपम संसार को जहरीला और नरकोपम बनाए हुए है। ' संसार में मनुष्य के जीवन निर्वाह के लिए एक से एक बढ़कर सुन्दर सामग्री भरी पड़ी है । नदी, कुए, सरोवर, वर्षा ये सब मधुर जल का भण्डार लिए दान दे रहे हैं । धरती माता सात्त्विक अन्न खिलाती है । ये परोपकारी वृक्ष मानव-जीवन के अनमोल सहारे बनकर छाया, फल-फूल आदि मुक्तहस्त से लुटाते हैं । आकाश में तारों की सुन्दर महफिल लगी है । सूरज और चन्द्रमा दोनों मनुष्य को प्रकाश, गर्मी और शीतलता प्रदान करते हैं। ये बादल औघड़दानी बनकर अपना पानी लुटाते हैं। चारों ओर आनन्द ही आनन्द बरस रहा है। अगर मनुष्य अपने मन को उदार, सहयोगी और
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