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हंस छोड़ चले शुष्क सरोवर
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एक दिन समुद्र ने नदी से पूछा - "मेरे पास कोई फटकता भी नहीं और नं कोई आदर देता है, पर तुम्हें लोग प्यार करते हैं, आदर भी देते हैं, इसका क्या कारण है ?"
नदी ने कहा - " आप केवल लेना ही लेना जानते हैं। जो मिलता है, उसे जमा करते जाते हैं। मैं तो जो पाती हूँ, उसे लोगों को दे देती हूँ । लोग मुझसे जो पाते हैं, उसी के बदले में मुझे प्यार और आदर देते हैं ।"
स्वार्थी और परार्थी जीवन के परिणाम का अन्तर इस पर से समझा जा सकता है । वास्तव में स्वार्थपरता एक अपराध है, जिसका दण्ड व्यक्ति को भोगना पड़ता है ।
एक चींटी कहीं से गुड़ का ढेला पा गई । उसने उसे अपनी कोठरी में बन्द करके रख दिया, स्वयं चुपचाप प्रतिदिन खा लेती, अन्य चींटियों को बिलकुल न देती । एक दिन रानी चींटी को पता लग गया । उसने सब चींटियों को उसकी कोठरी में घुसने का आदेश दिया। वे घुसकर उस चींटी का सारा गुड़ छीनकर खा गईं और चोरी के अपराध में उस स्वार्थी चींटी को बाहर निकाल दिया । वह चींटी अपनी स्वार्थपरता के कारण जिन्दगीभर अकेली मारी-मारी दुःखित होकर फिरती रही । अकेलेपन का कष्ट उसके स्वार्थीपन का बड़ा भारी दण्ड था ।
दोनों में से एक जीवन 'चुन लीजिए संसार में उत्थान और पतन के दो मार्ग हैं, जो परस्पर विरोधी दिशाओं में चलते हैं । इनमें से एक को परमार्थ और दूसरे को स्वार्थ कहते हैं । इन्हें ही पुण्यपाप, श्र ेय प्रेय, स्वर्ग-नरक, शान्ति - अशान्ति, प्रशंसा - निन्दा आदि के मार्ग कह सकते हैं । परमार्थी जीवन का परिणाम सुख-शान्ति, पुण्य, श्रय, स्वर्ग, प्रशंसा आदि हैं, और स्वार्थी जीवन का परिणाम है— दुःख, क्लेश, अशान्ति, पाप, प्रेय, नरक, निन्दा आदि ।
बन्धुओ ! मुझे विश्वास है, आप इन दोनों प्रकार के जीवनों में से महर्षि गौतम द्वारा त्याज्य एवं निन्द्य बताया हुआ स्वार्थी जीवन अपनाना पसन्द न करेंगे । आप उनके द्वारा इसी जीवनसूत्र से संकेतित परमार्थी जीवन अपनाना ही पसन्द करेंगे जिससे आपका वर्तमान और भविष्य दोनों ही उज्ज्वल एवं सुखमय बनेंगे ।
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