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आनन्द प्रवचन : भाग ६
कर दिया है। वास्तव में जयी साधक सदैव आध्यात्मिक विजय का संगीत गाता है, उसी धुन में गति-प्रगति करता है।
. बन्धुओ ! मैं यतना के ६ अर्थों पर सांगोपांग प्रकाश डाल चुका हूँ । यतनावान या यत्नवान साधक में इन छहों रूपों में यतना अठखेलियाँ करती रहती है। ऐसे यत्नवान साधक के समीप पाप-ताप नहीं आते । इसीलिए महर्षि गौतम ने कहा
___ "चयंति पावाइंमुणि जयंत" आप इन सभी अर्थों पर गहराई से विचार करके 'यतना' को जीवन में उतारने का प्रयत्न करें, तभी आपका मुख मोक्ष-ध्र व की ओर स्थिर रह सकेगा।
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