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आनन्द प्रवचन : भाग ६
ज्ञान की भूमिका में ऊपर उठता जाता है, वैसे-वैसे बोलने की अपेक्षा कम हो जाती है । उन्हें बोलने की जरूरत ही नहीं होती।
प्रश्न होता है कि तीर्थंकर या केवलज्ञानी तो ज्ञान की सर्वोच्च भूमिका पर है, फिर वे क्यों बोलते हैं ? क्यों उपदेश देते हैं ? बातचीत क्यों करते हैं ? इसका समाधान प्राचीन आचार्य यों करते हैं कि यद्यपि तीर्थंकर या केवली कृतकृत्य हैं, उन्हें बोलने की अपेक्षा नहीं रहती, तथापि तीर्थंकर नामकर्म की प्रकृति या सुस्वर या आदेय आदि शुभनामकर्म की प्रकृति का उदय है, वहाँ तक उन्हें बोलना पड़ता है । दूसरा समाधान यह भी हो सकता है कि परमज्ञानी के हृदय में करुणा जागती है, कि मैंने जो जाना-देखा है अनुभव किया है, उसे दूसरों को भी बताऊँ । इस प्रकार उनकी करुणा का निझर फूटता है, उन अल्पज्ञ, किन्तु जिज्ञासु लोगों को ज्ञान प्रदान करने के लिए और वे उन अज्ञानी अल्पज्ञ मनुष्यों समझाने के लिए बोलते हैं। प्रश्नव्याकरणसूत्र इस बात का साक्षी है। वहाँ भगवान के द्वारा प्रवचन करने का प्रयोजन स्पष्ट बताया गया है
___ "सव्वजगजीवरक्खणदयट्ट्याए पावयणं भगवया सुकहियं ।"
“समस्त जगत् के जीवों की रक्षारूप दया से प्रेरित होकर भगवान ने प्रवचन (सिद्धान्त-वचन) कहा है।"
अगर एक ज्ञानी और एक अज्ञानी होता है तो बोलने की जरूरत पड़ती है। किन्तु यदि दोनों हो ज्ञानी मिलते हैं तो उन्हें परस्पर बोलने की जरूरत नहीं पड़ती। वहाँ आत्मा से आत्मा की बात होती है, भाषा के प्रयोग की वहाँ आवश्यकता नहीं रहती।
एक बार यात्रा करता-करता फरीद काशी पहुँचा। वहां कबीर से मिलने के शिष्यों के अनुरोध से फरीद कबीर के आश्रम की ओर चल पड़े । उधर कबीर के शिष्यों को पता चला तो उन्होंने भी फरीद को अपने आश्रम में ठहराने के लिए अनुरोध किया । कबीर अपने शिष्यों को साथ ले फरीद से मिलने चल पड़े। कबीर
और फरीद दोनों प्रेम से मिले । कबीर ने फरीद को अपने आश्रम में ठहरने को कहा तो फरीद ने स्वीकार कर लिया। फरीद और कबीर दोनों आश्रम में बैठे हैं, पास ही दोनों के शिष्य भी। लेकिन दोनों में से कोई भी नहीं बोलता। घंटा, दो घंटे ही नहीं करीब ४८ घंटे होगए, इस दौरान वे दोनों मिले तो अनेक बार, दोनों की आँखें भी मिलीं, लेकिन दोनों ही मौन रहे। शिष्यों ने अपने-अपने गुरु से पूछा"हम तो आप दोनों के बोलने की प्रतीक्षा करते-करते थक गए लेकिन आप बोले क्यों नहीं।" दोनों ने अपने शिष्यों का समाधान किया। फरीद बोला-"कबीर जैसे महाज्ञानी से मैं क्या बात करता ? वह तो मेरे मन की बात जानता है।" कबीर ने कहा--"फरीद जैसा ज्ञानी मेरे सामने था, फिर मैं किससे बात करता ? वह तो मेरे मन की सारी बातें जानता है।"
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