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सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : २
धर्मप्रेमी बन्धुओ !
कल मैंने तेईसवें जीवनसूत्र पर विवेचन किया था, आज उसी जीवनसूत्र के अन्य पहलुओं पर विवेचन करना चाहता हूँ, ताकि आप महर्षि गौतम द्वारा उक्त इस जीवनसूत्र को भलीभाँति समझ सकें । महर्षि गौतम ने कहा
"बुद्धि अचण्डं भयए विणीयं" जो अचण्ड (सौम्य-क्रोधादि आवेश से रहित) और विनीत होता है, उसे ही स्थिरबुद्धि प्राप्त होती है। सूक्ष्मबुद्धि और स्थूलबुद्धि
लौकिक क्षेत्र हो या लोकोत्तर, दोनों ही क्षेत्रों में बुद्धि का परम महत्त्व माना गया है। उत्तराध्ययनसूत्र में स्पष्ट कहा है
"पन्ना समिक्खए धम्मतत्तं तत्तविणिच्छियं ।" "अनेक तथ्यों से विनिश्चित धर्मतत्त्व को प्रज्ञा (सद्-असद् विवेकशालिनी बुद्धि) से समीक्षा करे।"
मैं आपसे पूछता हूँ कि धर्मतत्त्व या किसी सूक्ष्मतत्त्व का निर्णय कौन-सी . बुद्धि कर सकती है ? क्या स्थूलबुद्धि उसका यथार्थ निर्णय कर सकती है ? कदापि नहीं। सूक्ष्मबुद्धि ही प्रत्येक वस्तु का तलस्पर्शी निर्णय कर सकती है। इसीलिए जहाँ स्थूलबुद्धि वाले जिन प्रश्नों या समस्याओं का हल नहीं दे पाते, वे केवल सूक्ष्मबुद्धिशील पुरुषों की क्षमता एवं सफलताओं को देख-देखकर मन में संक्लेश पाते हैं, अथवा निरर्थक दौड़धूप करने का कष्ट पाते हैं, लेकिन वे अपनी उस अथक दौड़धूप का सच्चा फल नहीं पाते । उसका सच्चा फल पाते हैं-वे कुशाग्रबुद्धि-सूक्ष्मबुद्धि महानुभाव ! जैसे भोजन को काफी देर तक चबाने का कष्ट तो दाँत करते हैं, लेकिन जीभ तो सीधा ही निगल जाती है, स्वाद का आनन्द भी वही लेती है, दाँत नहीं ले पाते। इसी बात को एक भारतीय विचारक कहते हैं
क्लिश्यन्ते केवल स्थूलाः सुधीस्तु फलमश्नुते । दन्ता दलन्ति कष्टेन, जिह्वा गिलति लीलया ॥
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