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आनन्द प्रवचन : भाग ६
वास्तव में स्थिरबुद्धि के लिए जिन विशिष्ट गुणों की आवश्यकता है उनके अपनाने पर वह स्वतः हस्तगत हो जाती है। दूसरे की बुद्धि से काम नहीं चलता। अपने दोषों या भूलों की आलोचना दूसरा व्यक्ति कैसे कर सकता है ? क्योंकि दूसरे व्यक्ति को उसकी परिस्थिति, रुचि, आशय एवं आत्मशक्ति का यथार्थ पता नहीं होता सुनी-सुनाई बात पर से बिलकुल ठीक निर्णय साधारण बुद्धि वाला नहीं कर सकता। हाँ, ऐसे स्थितप्रज्ञ या स्थितात्मा गुरुदेव निकटवर्ती हों तो वे अवश्य ही उसकी समस्या का किसी हद तक समाधान कर सकते हैं, विशेषतः ऐसे गुरुदेव ज्ञानी (अवधिज्ञानी या मनःपर्यायज्ञानी अथवा केवलज्ञानी) हों तो वे उसकी परिस्थितियाँ, आशय, रुचि एवं आत्मशक्ति को जानने के कारण पूर्णतः यथार्थ निर्णय या हल कर सकते हैं । किन्तु उनके अभाव में साधारण बुद्धि-राजसी या तामसी बुद्धि वाला वह स्वयं अथवा किसी पंच या नेता, भले ही वे थोड़ी सूझबूझ वाले हों, उनकी बुद्धि भी साधारण (राजसी या तामसी) होने से निर्णय या हल यथार्थरूप से नहीं कर सकेंगे। इसी आशय को एक नीतिकार कहते हैं
आत्मबुद्धि सुखायैव, गुरुबुद्धिविशेषतः ।
परबुद्धि विनाशाय, स्त्रीबुद्धि प्रलयावहा । __ "अपनी बुद्धि (अगर स्थिर हो तो) सूखदायिनी होती है, विशेषरूप से स्थितप्रज्ञ गुरु की बुद्धि भी, किन्तु दूसरों की बुद्धि (चंचल एवं अनिश्चयात्मिका होने से) विनाशकारिणी होती है, और प्रायः मोह में डालने वाली स्त्री की बुद्धि प्रलय मचाने वाली होती है।"
नीतिकार के उक्त उद्गारों में स्वयं स्थिरबुद्धि बनने की ओर संकेत है।
ऐसा स्थिरबुद्धि व्यक्ति ही अपने दोषों और गुणों का यथार्थ आकलन कर सकता है। एक पाश्चात्य विचारक भी इसी बात का समर्थन करता है
"Our chief wisdom consists in knowing our follies and faults, that we may correct them.”
"हमारी मुख्य बुद्धि (स्थिरबुद्धि) हमारे अपने पापों और अपराधों को जानने में निहित है, ताकि हम उन्हें सुधार सकें।"
वास्तव में बुद्धि स्थिर होने पर ही व्यक्ति अपने आत्मदर्पण में अपना जीवन देख सकता है, कहीं उस पर दाग हो तो उसे साफ कर सकता है, मलिनता हो तो धो-पोंछ सकता है। सच्ची बुद्धि का विश्लेषण पाश्चात्य विद्वान हम्फ्री (Humphrey) के शब्दों में यह है- . ...
"True wisdom is to know what is best worth knowing and to do what is best worth doing."
"जो सर्वश्रेष्ठ जानने योग्य बातें हैं, उन्हें जानना और करने योग्य सर्वोत्तम बातों को करना ही सच्ची (स्थिर) बुद्धि है।"
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