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आनन्द प्रवचन : भाग ६
प्रश्नव्याकरण सूत्र (सं० २) में बताया गया है कि संसार में जितने भी मंत्र, तंत्र, यंत्र, विद्या, योग, जप, जृम्भक, अस्त्र, शस्त्र, शिक्षा और आगम हैं, वे सभी सत्य पर अवस्थित हैं। यह सत्य वचन का ही प्रभाव है कि सत्यनिष्ठ के द्वारा जपे हुए मंत्रादि शीघ्र सिद्ध हो जाते हैं, और अचूक रूप से काम करते हैं। इसी कारण कहा गया है कि
प्रियं सत्यं वाक्यं हरति हृदयं कस्य न सखे ! गिरं सत्यां लोकः प्रतिपदमिमामर्थयति च । सुराः सत्याद् वाक्याद् ददति मुदिता कामिकफलं,
अतः सत्या वाक्याद् व्रतमभिमतं नास्ति भुवने ॥ 'सत्यनिष्ठ व्यक्ति का प्रिय सत्य वाक्य किसके हृदय को प्रभावित नहीं करता? वे सबके हृदय को हरण कर लेते हैं। जनता सत्यनिष्ठ की उस सत्यवाणी का एक-एक पद सुनना चाहती है । देवता सत्यवचन से प्रसन्न होकर सत्यनिष्ठ को यथेष्ट फल प्रदान कर देते हैं । अतः मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि सत्य वाक्य (वाणी) से बढ़कर अभीष्ट या रुचिकर संसार में दूसरा कोई व्रत नहीं है।'
पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो भी सत्य वचन के विषय में यही कहता है--
"There is nothing so delightful as the hearing or the speaking of the truth."
'सत्य वचन सुनने या बोलने से बढ़कर आनन्दप्रद संसार में और कोई चीज नहीं है।'
'सत्य सुनने में सत्यनिष्ठ को जितना आनन्द आता है, उतना ही आनन्द सत्य कहने में आता है।'
सुत्तनिपात के अनुसार 'सत्य ही अमृतवचन होता है'२ इसलिए उसे कहनेसुनने में आनन्द आना स्वाभाविक है।
__ शास्त्रों में सत्यनिष्ठ की वाणी को कामधेनु की उपमा दी गई है। कामधेनु का अर्थ होता है-इच्छित वस्तु प्राप्त करा देने वाली वस्तु । सत्यनिष्ठ साधक जब कामधेनु के समान सत्यवाणी का ही प्रयोग करता है, तब उसे सुन्दर मनचाहा दूधरूपी फल मिलता है । उत्तररामचरित (५॥३०) में यही बात कही है
१ "जे वि य लोगम्मि अपरिसेसा मंता, जोगा, जवा य, विज्जा य, जंभका य, ___ अत्थाणि वा सत्थाणि य, सिक्खाओ य, आगमा य, सव्वाणि वि ताई सच्चे पइट्ठियाई।"
. -प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार २ २ सच्चं वे अमत्ता वाचा ।
सुत्तनिपात ३।२६।४
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