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आनन्द प्रवचन : भाग ६
दिया और स्वयं आगे चल दिये । दयालु सेठ और उसकी पत्नी ने इसे अपने पुत्र की तरह लाड़-प्यार से पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया। लड़का तेजस्वी और होनहार निकला । सोलह वर्ष का हुआ तब तक उसने अपनी व्यापारकुशलता और कार्यदक्षता के कारण सेठ का सारा कारोबार सँभाल लिया। सभी उसे बड़ा मुनीम कहने लगे। सेठ ने उसकी शादी भी कर दी। इस प्रकार उस अनाथ लड़के का भाग्य सितारा चमक उठा।
सेठ ने विनयी, कृतज्ञ एवं विश्वसनीय समझकर उसे अपने व्यापार में पहले दो आना फिर चार आना और फिर आठ आने का हिस्सेदार बना दिया। यद्यपि वह लड़का तो प्रत्येक बार इन्कार ही करता रहा और यही कहता रहा कि मैं तो एक दीन अनाथ बच्चा था । आपने मुझे पाला-पोसा, योग्य बनाया, इतना आगे बढ़ाया । मेरा हिस्सा किस बात का? सब कुछ तो आपका ही है । आप ऐसा न करिए। फिर भी उपकारी सेठ ने उसकी कृतज्ञता के बदले में उसके हिस्से के लाखों रुपये उसे दिये।
एक दिन उसने विनयपूर्वक सेठ से अपनी जन्मभूमि में जाकर उन सब उपकारियों को संभालने और कृतज्ञता प्रकट करने की बात कही। सेठ ने सहर्ष उसे अनुमति दी। उसके हिस्से के लाखों रुपये तथा अन्य बहुमूल्य पदार्थ उपहारस्वरूप दिये । वह हर्षोल्लासपूर्वक अपने गाँव में पहुँचा । सबसे मिला-जुला । मकान बनवाए। अपने उपकारियों को यथायोग्य आर्थिक सहायता देकर सम्मानित किया । जनकल्याणार्थ कई सार्वजनिक प्रवृत्तियां कीं। गाँव का वह मान्य एवं प्रतिष्ठित सेठ माना जाने लगा। उसने यहाँ भी अपना व्यापार जमा लिया।
इधर उसके चले जाने के बाद सेठ की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई । कारोबार ठप्प हो गया। हालत इतनी तंग हो गई कि घर-खर्च चलना भी मुश्किल हो गया। किसी से कुछ माँगते बड़ी शर्म आती थी। आखिर सेठानी ने इस पालितपोषित लड़के के पास जाने के लिए सेठ को अनुरोध किया। सेठ का मन नहीं मानता था, फिर भी सेठानी के अत्यन्त आग्रह से इस दीन-हीन अवस्था में वृद्ध सेठ पैदल चल कर उसके गाँव में पहुँचा । वहाँ जाकर उसके घर का पता लगाया। लोगों से उसकी प्रशंसा सुनकर सेठ को आशा बँधी । वह जब घर के निकट पहुँचा तो उक्त भूतपूर्व मुनीम अपने उपकारी सेठ को देखकर स्वयं पैदल दौड़ा और आदरपूर्वक उन्हें अपनी गद्दी पर बिठाया। सबको परिचय दिया कि ये मेरे मालिक हैं, इन्हीं की बदौलत मैं आज इस स्थिति में पहुँचा हूँ । आज मैं इनके पदार्पण से कृतार्थ हो गया। इस प्रकार कृतज्ञता प्रगट करके भोजन के लिए अपने साथ उन्हें घर ले गया। उसकी पत्नी ने देखा तो वह भी प्रसन्न हुई । भोजन के बाद उनके आराम करने का प्रबन्ध किया। जब वे उठे तो एकान्त में विनयपूर्वक पूछा-"पिताजी ! मुझे खबर दिये बिना ही आपका इस प्रकार एकाएक वृद्ध और कृश शरीर से पधारने का क्या कारण बना? आप कुछ उदासीन से लमते हैं । निःसंकोच सेवा फरमाइए।" यों बहुत आग्रह करने
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