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१६२ आनन्द प्रवचन : भाग है
सौगन्ध दिलाकर १०-१५ दिन बाद अवश्य ही राणपुर आने का आग्रह किया । उन्होंने इसके लिए स्वीकृति दी और गये भी ।
कुछ ही अर्से बाद खानुमूसा बम्बई पहुँच गए और अल्पवेतन पर एक भाई के यहाँ काम करने लगे । एक दिन वहाँ के भीड़ भरे सराफा बाजार से खानुमूसा जा रहे थे कि एक नीलाम करने वाले को देखा, जो एक हाथ में सोने का कर्णफूल लेकर उच्च स्वर से बोली बोल रहा था - "सवा तीन रुपये एक, सवा तीन रुपये दो ।" खानुमूसा ने अपनी जेब सँभाली तो उसमें साढ़े तीन रुपये थे । उन्होंने उस कर्णफूल की बोली लगाई — “साढ़े तीन रुपये ।" नीलाम करने वाले ने तुरन्त साढ़े तीन रुपये एक, साढ़े तीन रुपये दो, साढ़े तीन रुपये तीन, कहकर बोली खत्म कर दी और खानुमूसा से साढ़े तीन रुपये लेकर वह सोने का कर्णफूल दे दिया ।
खानुमूसा कर्णफूल लेकर उसे देखते-देखते अपने मालिक की दूकान पर बताया । सेठ ने कहा - "क्या इस कर्णफूल था ? नाहक ही साढ़े तीन रुपये खोये | सोना तो
पहुँचे, और उन्हें वह कर्णफूल के बिना तुम्हारा कोई काम अटका इसमें जरा-सा है ।"
खानुमूसा ने विनयपूर्वक कहा – “बोली, बोली जा रही थी । मैंने साढ़े तीन रुपये बोले तो नीलाम करने वाले ने तुरन्त इस पर बोली खत्म कर दी और मुझे यह कर्णफूल दे दिया । भाग्य भरोसे पर ले आया हूँ ।"
सामने ही एक जौहरी बैठा-बैठा यह सब सुन रहा था । उसकी नजर इस कर्णफूल पर जाते बोल उठा - "सेठ ! बोलो, इसे बेचना हो तो इसके पाँच रुपये मैं देता हूँ ।"
सेठ ने कर्णफूल पर बारीकी से दृष्टिपात किया तो उसके नीचे के भाग में एक चमकता हुआ हीरा जड़ा था । सोचा - 'जौहरी पाँच रुपये दे रहा है तो अवश्य ही यह हीरा कीमती है ।' अतः सेठ ने उस जौहरी को और बारीकी से परखने को कहा। इस पर उसने कहा - "लो, दस रुपये ले लो ।" सेठ ने देने से इन्कार किया तो वह बढ़ता बढ़ता दो सौ रुपये तक पहुँच गया । सेठ ने खानुमूसा से कहा“खानु ! तुम्हारी तकदीर खुल गयी है।” प्रत्युत्तर में खानुमूसा ने कहा - "खुदा की और आपकी मेहरबानी है ।" तुरन्त सेठ खानुमूसा को साथ लेकर अपने एक परिचित जौहरी के यहाँ पहुँचे । उसे वह कर्णफूल बताया। जौहरी ने उस कर्णफूल की कीमत दस हजार रुपये आँकी । सेठ ने कहा – “इसकी उचित कीमत बताओ ।" जौहरी बोला - "फिर तो इस वस्तु का मालिक जो कहे, वही ठीक है ।" सेठ – " इसमें माल का मालिक क्या कहेगा ? आप ही जो उचित हो, वह कीमत बता दो न ?” यों सेठ और जौहरी के बीच झकझक चल रही थी, तभी उतावले होकर खानुमूसा बोले" अच्छा भाई ! इसके सोलह हजार दो।" सेठ ने कहा - "नहीं, जौहरी ! यह तो पागल है । कोई इतनी कीमती चीज सोलह हजार में दी जा सकती है ? कम से
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