________________
कृतघ्न नर को मित्र छोड़ते
२०३
उन्हें गर्मी पहुँचाई । वर्षा ऋतु आई तब तक वे दोनों हृष्ट-पुष्ट हो गए थे, इसलिए वहाँ से उड़कर पर्वत पर चले गए। किन्तु उन्होंने वाराणसी के उस सौदागर के उपकार का बदला चुकाने का निश्चय किया। अतः वे प्रतिदिन एक घर से दूसरे घर तथा एक गाँव से दूसरे गाँव उड़कर जाते और जहाँ जो भी वस्त्र बाहर पड़ा मिल जाता उसे चोंच में पकड़कर उठा लाते एवं सौदागर के घर पर छोड़ आते । सौदागर गिद्धों के लाये हुए उन वस्त्रों को न तो स्वयं उपयोग में लेता और न ही बेचता था । वह उन्हें संभालकर रख देता था।
___ कुछ लोगों ने राजा के पास गिद्धों की शिकायत लगाई, अतः राजा ने उन्हें पकड़ने के लिए जाल बिछवाए। उनमें से एक गिद्ध जब पकड़ा गया तो राजा ने उससे पूछा- "तुम मेरी प्रजा के वस्त्र क्यों उठा ले जाते हो ?"
गिद्ध ने कहा- "इस नगर के एक सौदागर ने हम दोनों की जान बचाई थी। उस ऋण को चुकाने के लिए हम बाहर पड़े हुए वस्त्र इकट्ठे करते जाते और सौदागर के यहाँ डालते जाते हैं।" राजा ने उस सौदागर को बुलाकर पूछा तो उसने कहा- “राजन् ! इन दोनों गिद्धों ने सचमुच ही मुझे वस्त्र ला-लाकर दिये हैं, परन्तु मैंने सब वस्त्र एकत्रित करके रख दिये हैं। आप कहें तो मैं उन वस्त्रों के मालिकों को उन्हें लौटाने को तैयार हूँ।"
राजा ने उन गिद्धों को क्षमा कर दिया, क्योंकि उन्होंने यह कार्य प्रत्युपकार की भावना से किया था । और सौदागर को भी छोड़ दिया।
कहने का तात्पर्य यह है कि मांसाहारी अज्ञानी गिद्धों में भी जब कृतज्ञता की भावना है, तब विचारशील मानव में तो कृतज्ञता होनी ही चाहिए।
पाश्चात्य विद्वान् कोल्टन (Colton) इसी सत्य को प्रकट करता है"Brutes leave ingratitude to man." 'पशु भी मानव के प्रति कृतघ्नता छोड़ देते हैं।'
लोग कहते हैं सिंह बड़ा हिंस्र प्राणी है, वह भूखा होने पर किसी को भी नहीं छोड़ता । परन्तु प्राणिविज्ञान एवं इतिहास कहता है कि सिंह में भी प्रत्युपकार की भावना होती है । वह अपने उपकारी के प्रति कृतघ्न नहीं होता अपितु कृतज्ञता प्रगट करता है।
_वर्षों पहले की रोम की यह घटना है। रोम का एक तत्त्वचिन्तक एक जंगल में वृक्ष, लता, फल, फूल आदि के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं तत्त्व का चिन्तन करता हुआ गुजर रहा था । तभी उसने सिंह की करुण गर्जना सुनी, सोचा इसकी गर्जना में तो पीड़ा की चीख है, यह दहाड़ने की आवाज नहीं है। यह सोचकर वह तत्त्वचिन्तक उसी ओर गया, जिधर से ये वेदना की करुण आवाजें आ रही थीं। तत्त्वचिन्तक ने सिंह को घायल अवस्था में देखा और उसके पास जाकर उसके पंजे में फंसा हुआ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org