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आनन्द प्रवचन : भाग १
धन, समय, श्रम व्यय करता है, उससे कई गुना तो वह पहले ही पा लेता है, और बाद में भी पाने का सिलसिला जारी रहता है । कृतघ्न बनकर तो व्यक्ति अपने सिर पर ऋण चढ़ा लेता है, जबकि कृतज्ञ बनकर वह उस ऋण को सहर्ष चुका देता
कभी-कभी ऐसा होता है कि एक व्यक्ति की कृतघ्नता से सारे राष्ट्र को हानि पहुँचती है, अथवा एक व्यक्ति अगर अपने गांव के द्वारा प्राप्त उपकारों का स्मरण करके संकट के समय गाँव को सहायता नहीं पहुँचाता है तो वह अपना जीवन तो खतरे में डालता ही है, सारे गाँव के जीवन को खतरे में डाल देता है, जिसे वह थोड़ासा स्वार्थ त्याग करके बचा सकता था और गांव के ऋण से कुछ अंशों में मुक्त हो सकता था, साथ ही गांव के लोगों की सद्भावना जीत सकता था।
भारत में अंग्रेजी राज्य की जड़ें ईस्ट इंडिया कम्पनी के स्थापित होने से ही जमने लगी थीं। किन्तु भारत के कुछ गद्दार और कृतघ्न ऐसे लोग निकले, जिन्होंने अपने लोभ और स्वार्थ में आकर अपने देशवासियों का गला कटाया, अपने राष्ट्र को पराधीनता की जंजीरों से जकड़ने में सहायता दी, अपने देश का अहित कराया। उनमें से बंगाल का सेठ अमीचंद भी एक था, जिसने ईस्ट इंडिया कम्पनी के जरिये अपना व्यापार चलाया और अंग्रेजों को सहायता देकर भारत का अनिष्ट कराया। अगर वह कृतघ्न न होता तो कदापि अपने राष्ट्र का भेद विदेशियों को नहीं बताता। दूसरा कृतघ्न हुआ राजा जयचंद, जिसने शहाबुद्दीन गौरी को आमंत्रित करके भारत में मुस्लिम राज्य की जड़ें जमाने में मदद की।
परन्तु गांव के एक व्यापारी ने गांव पर आए हुए संकट के समय अपने उपकारी गांव के प्रति कृतघ्न न बनकर कृतज्ञता का परिचय दिया।
- कुछ वर्षों पहले की घटना है। उस वर्ष भीषण दुष्काल था। वर्षा न होने से सर्वत्र अन्न का अभाव हो रहा था । गर्मी का मौसम आते ही देहातों में चोरी और लूटपाट के उपद्रव होने लगे। आसपास के गांवों के भूखे लोग जो भी हाथ में आता उठा ले जाते थे। देहातों में सभी लोग भयत्रस्त थे। एक छोटे-से गांव में एक वृद्ध व्यापारी था, बड़ा दूरदर्शी, बुद्धिमान, समयपारखी और प्रतिष्ठित । गांव में व्यापार से उसने अच्छा पैसा भी कमाया था और सम्मान भी। उसने दुष्काल में उपभोग के लिए कुछ अन्न भी संग्रह कर रखा था। उसने चारों ओर की परिस्थिति को देखकर समझ लिया कि ऐसी भुखमरी के समय अपनी इज्जत बचाना आसान नहीं है। अतः उसने अपने परिवार के सदस्यों को एकत्र करके स्पष्ट कह दिया- "देखो, हमने इस गाँव का अन्नपानी खाया है, यहाँ की भूमि का हम पर महान् उपकार है। इस समय इस गाँव तथा आसपास के गांवों पर भीषण दुष्काल संकट है। अगर ऐसे समय में हम अपना एकान्त स्वार्थ सोचकर अपनी सम्पत्ति एवं साधन बचाने में लगे रहेंगे तो हमारा जीवन खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए इस समय अपने स्वार्थ को गौण करके
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