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सत्यनिष्ठ पाता है श्री को : २ १६७
"वत्स
महर्षि क्षण भर विचार करके बोले- ! तूने इतना गहन सत्य कह दिया, इसलिए निःसन्देह तू ब्राह्मण गोत्र है और ब्रह्मप्राप्ति का अधिकारी है । तूने सत्य का परित्याग न कर अपनी विशिष्टता प्रतिपादित की, इसलिए मैं तुझे ब्रह्मज्ञान दूंगा ।"
सत्यकाम जाबाल को आश्रम में प्रविष्ट करके महर्षि गौतम ने पहला पाठ यही पढ़ाया — “ब्रह्मज्ञान पुस्तकों की नहीं, अनुभूति की भाषा में, आत्मा के पूर्ण निष्कपट होने पर ही पढ़ा जाता है । जो किसी भी सत्य को अपने असली रूप में स्वीकार कर सकने का साहस रखता है, उसे शीघ्र ही ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो जाता है । " और एक दिन सत्यकाम जाबाल को गोपालन करते-करते ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो गया ।
वास्तव में सत्य के स्वरूप को जानने वाला और सत्यभाषण तथा सत्य - आचरण करने वाला ही सत्यस्वरूप ब्रह्म (परमात्मा) को जान सकता है । इसी कारण सत्यकाम जाबाल को ब्रह्मज्ञान जैसी अलौकिक आत्मसमृद्धि प्राप्त हुई ।
गौतमकुलककार महर्षि गौतम भी यही बात कहते हैं'सच्चे ठियंतं भयए सिरी य'
जो अन्त तक सत्य में स्थित रहता है, उसे सब प्रकार की श्री प्राप्त होती है । बन्धुओ ! मैं बहुत विस्तार से सत्यनिष्ठ को प्राप्त होने वाली भौतिक और आध्यात्मिक श्री के बारे में कह गया हूँ । आप भी सत्यनिष्ठ जीवन बनाकर समग्र श्री को उपलब्ध करें ।
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