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आनन्द प्रवचन : भाग ६
तत्र सत्य की महिमा बतलाई गई है। प्रश्नव्याकरणसूत्र में सत्य को भगवान् बतला कर उससे होने वाले भौतिक-आध्यात्मिक सभी लाभ बतलाये गये हैं।
आचारांगसूत्र में भी स्पष्ट बताया गया है-“सत्य की आजा में उपस्थित मेधावी मृत्यु को पार कर लेता है। अर्थात् मृत्युजयी बन जाता है ।"१ यजुर्वेद (१९७७) में सत्यनिष्ठा का परिणाम बताते हुए कहा है
दृष्ट्वा रूपे व्याकरोत सत्यान्ते प्रजापतिः । अश्रद्धामन्तेऽदधाच्छ खां सत्ये प्रजापतिः ॥ ऋतेन सत्यमिन्द्रियविपान शुक्रमन्धस ।
इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ।। अर्थात्-'प्रजापति ने असत्य के प्रति अश्रद्धा और सत्य के प्रति श्रद्धा स्थापित की। मनुष्य सत्य से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का ऐश्वर्य प्राप्त करता है । वास्तव में यह सत्य अमृत के समान मधुर है।'
किन्तु एक बात निश्चित है कि यह आत्मिक ऐश्वर्य या भौतिक ऐश्वर्य उन्हीं के पास सुरक्षित और स्थायी रहता है, जिनके रोम-रोम में सत्य रम गया है जिनके संस्कारों में सत्य ताने-बाने की तरह गथ गया है । सत्यनिष्ठा के कारण उनके मन, वाणी, बुद्धि और हृदय में वैभव व्याप्त हो जाता है; माध्यात्मिक वैभव, आत्मिक लक्ष्मी उसके जीवन में अठखेलियां करने लगती है।
आध्यात्मिक श्री क्या है ? इसके विषय में मैं पहले कह चुका हूँ। आत्मा में ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप आदि की साधना के कारण उपलब्ध विशिष्ट शक्तियाँ-जैसे चित्तसमाधि, संतोष, सहिष्णुता, मन की एकाग्रता, आत्मबल आदि शक्तियाँ प्राप्त होना ही आध्यात्मिक श्री की प्राप्ति है। आध्यात्मिक श्री कोई आकाश से टपकने वाली या किसी देव-गुरु या भगवान द्वारा प्राप्त की जाने वाली वस्तु नहीं है । वह एक विशिष्ट शक्ति है, जो सत्य की सतत आराधना-साधना करने से प्राप्त होती है। मुण्डकोपनिषद् (३/१/५) में सत्य के द्वारा आत्मिक उपलब्धि बताते हुए कहा है
सत्येन लभ्यस्तपसा ह्यष आत्मा, सम्यग्ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण नित्यम् । अन्तःशरीरे ज्योतिर्मयो हि शुभ्रो,
यं पश्यन्ति यतयः क्षीणदोषाः ॥ 'उस आत्मा को जो शरीर के भीतर हृदय में विराजमान है, जो ज्योतिर्मय, प्रकाशमान है, उज्ज्वल है, सत्य से ही, सत्य तप से ही नित्य प्राप्त किया जाता है, अथवा सत्य ज्ञान से या ब्रह्म (आत्मा) में विचरण से उपलब्ध किया जाता है। जितेन्द्रिय एवं दोषमुक्त तत्त्वदर्शी इसका साक्षात्कार (सत्य से) करते हैं।'
१ सच्चस्स आणाए उवडिओ मेहावी मारं तरह
- आचारांग, प्रथम श्रु तस्कन्ध
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