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सत्यनिष्ठ पाता है श्री को : २ १८७ आना तोला खाद काटने के वादे से २४०००) रुपये की भूल है । ये २४ हजार रुपये हमसे और अधिक ले जाइए।' जब यह बात महाराजा श्री करणीसिंह जी के कानों में पहुँची तो वे ताराचन्द जी के इस सत्यव्यवहार से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपना लाखों रुपयों का और भी सोना उनके हाथ बेचा ।
यह था सत्यव्यवहार का प्रभाव, जिसके कारण उस सत्यार्थी का विश्वास जम जाने से प्रतिष्ठा, यशःश्री और भौतिकश्री भी उसके पास दौड़ी हुई आई।
सत्य एक वशीकरण मंत्र है । जो वकील, राजनीतिज्ञ, एवं व्यापारी अपनेअपने क्षेत्र में सत्य व्यवहार करते हैं, वे विश्वसनीय एवं जनता के आकर्षण केन्द्र बन जाते हैं । वकालत में सत्य व्यवहार करने वाले वकील के कथन पर न्यायाधीश का पूर्ण विश्वास हो जाता है इससे अभियोगों में उनके पक्ष को विजयश्री मिलती है। राजनीतिक क्षेत्र में भी सत्य व्यवहार करके व्यक्ति अपने पक्ष में विश्व का लोकमत कर सकता है । सत्य व्यवहार से वह राष्ट्रों में परस्पर शान्ति स्थापित कर सकता है। और व्यापारी भी अपने सत्य व्यवहार से विश्वसनीय बनकर लाखों कमा लेता है। सत्यनिष्ठ का सत्य व्यवहार अनायास ही, अज्ञातरूप से कोई न कोई ऐसा निमित्त मिला देता है, जिससे उसकी श्रीवृद्धि हो जाती है । एक सत्य घटना मैंने सुनी थी
बीकानेर के 'अगरचन्दजी भैरोंदानजी सेठिया' का नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। सेठ अगरचंदजी उन दिनों कलकत्ता में रंग का काम करते थे । जर्मनी की एक कंपनी के मालिक के साथ उनका लेन-देन था । एक बार भूल से उनके दस हजार रुपये ज्यादा आ गए। साहब के भी ध्यान में यह बात नहीं आई । दीपावली के दिन जब आँकड़ा मिलाने लगे, तब सेठ अगरचंदजी के ध्यान में आया कि उक्त साहब के दस हजार रुपये खाते में अधिक जमा है । अतः सेठजी दस हजार रुपयों की थैलियाँ लेकर एक घोडागाड़ी में बैठकर उक्त साहब की कोठी पर पहुँचे । उनसे कहा-“साहब ! हमने दिवाली पर आंकड़ा मिलाया, उसमें आपके दस हजार रुपये अधिक जमा निकलते हैं । अतः आप अपना एकाउंट देखकर ये रुपये ले लीजिए।" साहब ने एकाउंट बुक देखकर कहा--"नहीं, हमारे एकाउंट में दस हजार रुपये कम नहीं है।" हुआ ऐसा कि भूल से एकाउंट बुक में एक जगह एक बिन्दी अधिक लगी हुई थी, वह साहब के ध्यान में नहीं आई थी। सेठजी ने कहा- "जरा एकाउंट बुक मुझे दें तो मैं भी वह हिसाब जाँच लूं।" साहब ने एकाउंट बुक सेठ अगरचन्दजो को दे दी। उन्होंने बारीकी से देखा तो एक जगह भूल से एक बिंदी अधिक लगी हुई दिखाई दी। उन्होंने उसी समय साहब को हिसाब की वह भूल बता दी। साहब बहुत प्रसन्न हुए। कहने लगे-“सेठजी ! हमने हिन्दुस्तान में आकर आप सरीखा ईमानदार एवं सत्यनिष्ठ व्यक्ति नहीं देखा। आपने अपनी सत्यनिष्ठा के साथ भूल से अधिक आए हुए रुपये लेकर कोठी पर आने का कष्ट उठाया। अतः हम आपको ये रुपये खुशी से देते हैं।" इस पर सत्यनिष्ठ सेठजी ने कहा-“साहब ! हम व्यापारी हैं,
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