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संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित : २ १४५
नहीं जाते ? चलो, उठो देर हो रही है ।" जब बार-बार हिलाने पर भी वह नहीं उठा तो उसने दुःखित होते हुए पूछा - "क्या हुआ है तुमको ? मुझे तो बतला दो ।" बहुत आग्रह करने और उसका वांछित पूर्ण करने का वायदा करने पर भंगी ने बतलाया- " कल जब से मैंने राजकुमारी को देखा है, तब से मेरे मन में वह बस गई है । वह मिले, तभी मुझे चैन पड़ेगा ।"
भंगिन ने कहा – “छोड़ो इस पागलपन को । राजकुमारी तुम्हें कहाँ से मिलेगी ? कहाँ वह, कहाँ हम ? कोई सुनेगा भी तो क्या कहेगा ?" "किसी तरह से तू उससे मिला दे, फिर मैं ठीक हो जाऊँगा ।" भंगी ने अपनी पत्नी से कहा ।
वह मन मसोसकर राजमहल में सफाई करने गई। वहाँ राजकुमारी मिली । उसने पूछा - " आज तेरा पति क्यों नहीं आया ?” उसने राजकुमारी को इशारे से एक ओर बुलाकर अश्रु बहाते हुए कहा - " वह तो कल से न खाता है, न पीता है, न सोता है । एक ही धुन लगी है उसे । "
राजकुमारी ने पूछा- 'क्या धुन लगी है ?" भंगिन ने शर्माते हुए कहा"क्या कहूँ, कहते हुए लज्जा आती है । पर न कहूँ तो उनकी तबियत दिन पर दिन बिगड़ती ही जाएगी । फिर सदा के लिए मेरे से बिछुड़ न जाएँ, मुझे यही भय है । उन्होंने कल जबसे आपको देखा है, तब से एक ही धुन लगी है कि मुझे राजकुमारी मिल जाए । क्या कोई उपाय हो सकता है, राजकुमारी जी ! "
राजकुमारी बहुत समझदार थी । उसने भंगी के चित्त की व्यथा को समझ लिया । बात तो प्रायः सम्भव नहीं थी । पर राजकुमारी ने सोचा - ' जिसका चित्त मुझमें इतना एकाग्र हो गया है, उसके चित्त को परमात्मा में एकाग्र होते क्या दे र लगेगी ?' अत: राजकुमारी ने भंगिन से कहा - " मैं उससे तभी मिल सकती हूँ, जब वह भगवान में अपनी लौ लगा देगा, तन्मय हो जाएगा ।" भंगिन आभार मानती घर आई । आते ही भंगी ने पूछा - "मेरा काम कर आई हो ?” उसने कहा"हाँ, काम हो जाएगा । राजकुमारी तुमसे मलेगी, पर एक ही शर्त है, जब तुम भगवान में पूरी तरह से अपनी लौ लगा दोगे ।"
भंगी ने सुनकर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा - " यह काम तो मेरे लिए आसान है । तब तो वह मिल जाएगी न ?"
भंगिन बोली- हाँ-हाँ, उसने वचन दिया है । भंगी थोड़ा-सा खा-पीकर घर से चल पड़ा और पहुँचा गाँव के बाहर एक वटवृक्ष के नीचे । वहाँ उसने अपना आसन जमाया और राम-राम (भगवान) का जाप करने बैठा । वह जाप में इतना मस्त हो गया कि उसे और किसी बात की सुध न रही । उसकी पत्नी घर से भोजन लेकर आती, पर वह यों ही पड़ा रहता । न वह भोजन करता, न पानी पीता और न. ही किसी से बोलता । एक-एक करके आठ दिन व्यतीत हो गए । भंगी परमात्मा पूरा तन्मय हो गया ।
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