________________
सत्यनिष्ठ पाता है श्री को : १ १७५ हैं । इसीलिए एक जैनाचार्य ने सत्य से उपलब्ध होने वाली विविध शक्तियों का परिचय देते हुए कहा है
विश्वासायतनं विपत्तिवलनं देवैः कृताराधनम्, मुक्तः पथ्यदनं जलाग्निशमनं व्याघ्रोरगस्तम्भनम् । श्रेयः संवननं समृद्धिजननं सौजन्य-संजीवनम्,
कीर्तेः केलिवनं प्रभावभवनं सत्यं वचः पावनम् ॥ "सत्य वाणी को पवित्र करता है, विश्वास का स्थान है, विपत्तियों को नष्ट करने वाला है, देवता सत्यनिष्ठ की सेवा करते हैं, यह मुक्तिमार्ग का पाथेय है, जल और अग्नि को शान्त कर देता है, व्याघ्र और सर्प को पास आने से रोक देता है, श्रेय का दाता है, समृद्धि का जनक है, सौजन्य की संजीवनी बूटी है, कीर्ति का क्रीडावन है और प्रभाव का निवासभवन है।"
बन्धुओ ! इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि सत्यनिष्ठ के पास कितनी महाशक्तियाँ हैं। जिसके पास इतनी महाशक्ति रूपी श्रीपुंज है, क्या उस पर कोई विघ्न-बाधा, विपत्ति, भय, कष्ट या अशान्ति आ सकती है ? आएगी तो भी फौरन ही चली जाएगी। स्थूलदृष्टि वाले लोग ही सत्यनिष्ठ पर पड़ने वाली बाह्य विपत्तियों की कल्पना करते हैं, परन्तु वह उन्हें ऐसी कष्टदायिनी महसूस नहीं करता। वह तो निश्चिन्त और निर्भय होकर सत्यपथ पर चलता है।
सत्यनिष्ठ के पास सब प्रकार की श्री कैसे-कैसे और किस-रूप में आती है ? इस पर मैं अगले प्रवचन में अपना चिन्तन प्रस्तुत करूंगा। आप सत्यनिष्ठा से प्राप्त होने वाली उपलब्धियों पर गहराई से चिन्तन करें और अपना जीवन सत्यनिष्ठ बनाने का प्रयत्न करें।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org