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१५४ आनन्द प्रवचन : भाग ६
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उसके पश्चात् एकनिष्ठ भाव से लिखते-लिखते उनमें पुस्तक लिखने की प्रतिभा विकसित हो गई । वे विविध विषयों पर पुस्तकें लिखने लगे । किन्तु उनकी पुस्तकें छापने को कोई तैयार नहीं हुआ । यदि कोई पुस्तक छप भी गई तो वह लोकप्रिय न हो सकी। पुनः असफलता और एकनिष्ठा के बीच फिर टक्कर शुरू हो गई । जब उनकी पुस्तकों से प्रकाशकों को प्रोत्साहन न मिला तो उन्होंने एक मित्र को साझीदार बनाकर प्रेस लगाया । परन्तु इस कार्य में चालाक मित्र में वाल्टर स्काट की अनभिज्ञता का दुर्लभ उठाकर उन्हें घाटे में डाल दिया । उन पर काफी कर्ज भी चढ़ गया । ऐसे समय में बड़े से बड़ा दृढ़निश्चयी भी हिम्मत हार सकता था, लेकिन वे एकचित्त और एक लगन से अपने मनोनीत क्षेत्र में जुटे रहे । पुस्तकों का प्रकाशन चलता रहा । पर वे अलोकप्रिय होकर पड़ी रही । कर्ज बढ़ता गया, लाखों के कर्ज - दार हो गए । फिर भी वे चट्टान की तरह अडिग रहे । क्योंकि एकनिष्ठा की शक्ति से वे परिचित एवं विश्वस्त थे । उनका विश्वास था कि असफलता के बाद सफलता और अवनति के बाद उन्नति आती ही है । विपत्तियों से घबराकर मैदान छोड़ भागने वाला भीरु कभी सम्पत्तियों का अधिकारी नहीं हो सकता । वे आशा, उत्साह, धैर्य और साहस का मूल्य जानते थे । वे यह भी जानते थे कि कि आज संकट में यदि हम साहस से काम लेकर स्थिरचित्त से काम में लगे रहे तो कल अवश्य ही यह काम हमें सुन्दर प्रतिफल देगा । अतः वे अपने निश्चित पथ पर निष्ठा से आगे बढ़ते गए ।
उन्होंने अपने साहित्य की अलोकप्रियता का कारण गहराई से खोज निकाला कि उनका विविध विषयों पर लिखना ही प्रगति अवरोध का कारण है । एक मनुष्य अनेक विषयों में पारंगत नहीं हो सकता । अतः पूर्णतया चिन्तन के बाद अपने असंदिग्ध निश्चय पर पहुँचते ही उन्होंने अपने कार्य में सुधार कर लिया । उन्होंने विषय वैविध्य को छोड़कर केवल एक ऐतिहासिक विषय को उठा लिया और उसी में एकनिष्ठ तथा एकचित्त होकर पढ़ना-लिखना और विचार करना शुरू किया । इस एकनिष्ठा का सुफल यह हुआ कि वे शीघ्र ही ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में पारंगत हो गए। उनकी तपस्या के फलस्वरूप उनके ऐतिहासिक उपन्यास इतने लोकप्रिय हुए कि कुछ ही समय में वे अपना बढ़ा हुआ सारा कर्ज ही नहीं चुका पाए, वरन् श्री सम्पन्न भी बन गए ।
यदि वाल्टर स्काट बिखरी लगन वाले और अस्थिरचित्त वाले होते तो क्या वे इस महती सफलता एवं श्रीसम्पन्नता के अधिकारी बन सकते थे ? यदि वे अपना लेखन-कार्य छोड़कर अन्य व्यवसाय या नौकरी की ओर दौड़ते तो सम्भव है, उन्हें असफलता का मुँह देखना पड़ता । मैदान छोड़कर भागे हुए सिपाही की तरह उनका भी साहस संदिग्ध होता ।
मैंने आपको व्यावहारिक क्षेत्र में चित्त की स्थिरता से लाभ और अस्थिरता
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