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आनन्द प्रवचन : भाग ६
जैनशास्त्रों में जहाँ-जहाँ बड़े-बड़े नगरों के वर्णन आते हैं, वहाँ उनके साथ तीन विशेषण खासतौर से प्रयुक्त किये जाते हैं
'रिद्धथिमियसमिद्ध' वह नगर ऋद्धि से युक्त, स्तिमित (स्वचक्र-परचक्र के भय से रहित, स्थिर, शान्तियुक्त) और समृद्ध (धन-धान्य से परिपूर्ण) था।
यही कारण है कि भौतिक श्री की आवश्यकता त्यागियों के सिवाय सर्वसाधारण को है।
त्यागी साधुसाध्वी के लिए ज्ञान-दर्शन-चारित्र, यह रत्नत्रय-आध्यात्मिक श्री है । उन्हें भी इस श्री की उतनी ही, बल्कि इससे भी अधिक जरूरत है, जितनी एक गृहस्थ को भौतिक श्री की जरूरत होती है ।
श्री: विभिन्न अर्थों में - वैसे 'श्री' एक शक्ति है । पाश्चात्य विचारक डी. बौहावर्स (D.Bouhours) इस सम्बन्ध में कहता है
"Money is a good servant, but a poor master.”
'धन एक अच्छा सेवक है, किन्तु है वह गरीब मालिक ।' .. 'श्री' शब्द का प्रयोग भारतीय धर्मग्रन्थों में अति प्राचीन काल से किया जाता रहा है । जैनशास्त्रों में 'श्री' को एक देवी माना गया है, जो प्रकारान्तर से एक शक्ति है । विष्णु के नाम का पर्यायवाची 'श्रीपति' शब्द है । किसी भी आदरणीय पुरुष के नाम के पूर्व 'श्री' लगाने का रिवाज भी बहुत पुराना है, जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीमहावीर, श्रीहरि । किसी भी प्रतिष्ठित मनुष्य के नाम के पूर्व भी श्री लिखा जाता है, जैसे श्री मनोहरलालजी'। इसी प्रकार बड़े आदमी के पद के आगे भी 'श्री' लगाया जाता है, जैसे-महाराजश्री, पिताश्री, मातुश्री, भाईश्री, पद्मश्री। .
शब्दशास्त्र के अनुसार 'श्री' के कान्ति, शोभा, लक्ष्मी, सफलता, विजयश्री, विभूति, सम्पत्ति आदि अनेक अर्थ होते हैं।
- कान्ति शब्द प्रभा का सूचक हैं। यहाँ श्री उत्पादनशक्ति-पुरुषार्थ के रूप में है । जो मनुष्य श्रम नहीं करता, उसकी 'श्री' (कान्ति) में वृद्धि नहीं होती। दूसरा अर्थ है-लक्ष्मी, जो लक्ष्य की ओर गति करने-पुरुषार्थ करने का सूचक है । अथवा धन की शक्ति भी लक्ष्मी है । और तीसरा अर्थ है-शोभा । इसमें बहुत-सी चीजों का समावेश हो जाता है। जो चीज जहाँ उचित है, वहीं वह शोभा पाती है। यदि गोबर रास्ते में पड़ा हो तो खराब माना जाता है, वही मल खेत की मिट्टी में मिल गया हो तो अच्छा लाभकर माना जाता है। जो वस्तु जहाँ उचित हो, वहीं उसे सजाया, जमाया या रखा जाय, उसी में उसकी शोभा है । जैसे पैर में पहनने का पायल मस्तक पर शोभा नहीं देता, वैसे ही मस्तक पर पहनने का मुकुट पैर में शोभा नहीं देता।
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