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आनन्द प्रवचन : भाग ६
पुस्तिका में उसके विरुद्ध टिप्पणी लिखी जा चुकी होती है। यदि कदाचित् आफिसर से माफी माँगने और इस्तीफा वापस लेने पर वह नौकरी मिल भी जाए तो आगामी वेतन वृद्धि में खतरा पैदा हो चुकता है, साथियों की नापसन्दगी या उपेक्षा के पात्र बन चुके होते हैं। अपनी तुनुकमिजाजी के कारण जरा-सी बात का बतंगड़ बनाकर कितनी हानि कर ली। यही तो संभिन्नचित्त से बहुत बड़ी हानि है।।
और लीजिए तुनुकमिजाजी के दौर ! तुनुकमिजाज एक दिन घर में रात को देर से पहुंचे। इस पर उसकी पत्नी ने जरा-सी शिकायत कर दी कि आपको दूसरे की तकलीफ-आराम का तो जरा भी खयाल नहीं है। कितनी रात बीते तक मैं खाना लिए बैठी रहूँ। घर के और भी तो काम निपटाने होते हैं। बस, तुनुकमिजाजी का दौरा शुरू हो गया—'पत्नी बड़ी धृष्ट है। मेरे प्रति अपनापन तो बिलकुल ही नहीं । खाना क्या पका लेती है, मानो पहाड़ तोड़ देती है। जरा-सा बैठना पड़ गया तो इसकी कोमल कली-सी देह छिल गई । मेरा अपने दोस्तों के साथ बैठना तो इसे फूटी आँखों नहीं सुहाता । मेरे प्रेम और परिश्रम की तो कोई कीमत ही नहीं । क्या मैं इसका खरीदा हुआ गुलाम हूँ, जो इसके इशारों पर नाचूं, इसके संकेतों पर कहीं जाऊँ-आऊँ, उर्ले-बलूं। घर में आऊँगा ही नहीं तो रोज-रोज की खटखट समाप्त हो जायगी। बाजार बहुत पड़ा है, होटलें क्या कम हैं ? कहीं भी चाहूँगा, खा लूंगा।' बात कुछ भी नहीं थी, पत्नी की शिकायत भी यथार्थ और उचित थी, लेकिन तुनुकमिजाजी ने तिल का ताड़ बना दिया। घर में खाना बन्द हो गया। पत्नी से रूठ गये । होटल में खाकर पेट भरने का कार्यक्रम प्रारम्भ हो गया। पैसे के साथ स्वास्थ्य की भी बर्बादी होने लगी। पत्नी बेचारी मन ही मन दुःखित होती, पर करती क्या ? अच्छे से अच्छा खाना बनाकर प्रस्तुत करती पर खाते ही नहीं, उत्तेजित होकर थाली फैक देते। बच्चों के कारण खाना बनाना पड़ता था, वरना बेचारी उपवास भी करती। रो-झींककर थोड़ा-सा बेमन से खा भी लिया तो वह अंग में क्या लगता।
बच्चों, पड़ोसियों और देखने-सुनने वालों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ? लोगों की नजरों में ओछे, सनकी, जिद्दी तथा झक्की सिद्ध हो रहे हैं। इसकी कोई परवाह नहीं । होटल ने जेब खाली कर दी, पेट का बुरा हाल हो गया, तब जाकर श्रीमान की खुमारी उतरी। तब अपनी गलती के लिए पश्चात्तापपूर्वक पत्नी से क्षमा मांगते हैं। पत्नी मान जाती हैं । परन्तु धन, स्वास्थ्य और मन की क्षति हुई, प्रतिष्ठा को हानि पहुँची, यह तुनुक मिजाजी कितनी मँहगी पड़ी।
_ ये तुनुकमिजाजी लोग व्यर्थ ही खर्च करके दरिद्र हो जाते हैं, फिर भी अपना फटाटोप करना नहीं छोड़ते।
कुछ सम्भिन्नचित्त लोग झक्की या धुनी होते हैं। झक्की आदमी को कुछ न कुछ विचित्र बात करते रहने की धुन सवार होती है। आपने देखा होगा कि कुछ लोग बार-बार एक ही काम को किये जाते हैं । एक महिला को झक सवार हो गई
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