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आनन्द प्रवचन : भाग ६
यह निश्चित करता है कि किस टुकड़ी को कहाँ लगाया जाय ? कहाँ गोला-बारूद या रसद भेजा जाए ? कहाँ की संचारव्यवस्था कैसी हो ? सेनापति स्वयं सहसा युद्ध में नहीं कूदता, परन्तु युद्ध का सारा नक्शा उसके मस्तिष्क में चित्रपट की तरह घूमता रहता है । उसका चित्त युद्ध के दौरान कदापि इधर-उधर के व्यर्थ के कामों में नहीं जाता । अगर वह संभिन्नचित्त होकर अपना ध्यान बार-बार अन्यान्य अनावश्यक एवं असम्बद्ध कार्यों में मोड़ता है तो युद्ध में कदापि विजयश्री पा नहीं सकता। वह चित्त की पूर्ण एकाग्रता एवं तन्मयता से अपनी जिम्मेदारी के कार्य का विश्लेषण करता रहता है, तब कहीं विजय का श्रेय उसे मिल पाता है । अगर सेनापति युद्ध के दौरान अनेक उतार-चढ़ाव आने पर बार-बार अपने चित्त को डांवाडोल करता रहे, बातबात में वहाँ से भागने-उखड़ने लगे तो उसे विजयश्री के बदले पराजय का मुंह देखना पड़ता है।
जैसे संग्राम में सेनापति को संभिन्नचित्तता छोड़कर एकाग्रता, तन्मयता और संलग्नता के साथ ठीक संचालन करना पड़ता है, तभी वह विजयश्री पाता है, वैसे ही जीवन-संग्राम में विजयश्री प्राप्त करने के लिए भी संभिन्नचित्तता छोड़कर चित्त की एकाग्रता और संलग्नता अपेक्षित है। इसीलिए किसी कवि की ये पंक्तियाँ कितनी प्रेरणादायक हैं
जीवन है संग्राम बंदे ! जीवन है संग्राम । जन्म लिया तो जी ले बन्दे ! डरने का क्या काम ? बन्दे.... जो लड़ता कुछ करता बन्दे ! जो डरता सो मरता बंदे !
जो रोना था, क्यों आया तू, जीवन के मैदान । बंदे... सम्भिन्नचित्त का दूसरा अर्थ : टूटा हुआ चित्त
सम्भिन्नचित्त का दूसरा अर्थ है-टूटा हुआ चित्त । टूटे हुए चित्त का अर्थ है-जीवन संग्राम में चलते-चलते कहीं थपेड़ा लगा विपत्ति का, कभी आफत की आँधी आई, या कभी कर्जदारी की नौबत आ गई, या जरा-सा व्यापार में घाटे का झौंका आ गया, किसी दृष्टजन का वियोग हो गया, अथवा कोई इष्टवस्तु हाथ से चली गई, उस समय अपने लक्ष्य से हट जाना, निराश और हताश होकर सब कुछ छोड़-छाड़कर बैठ जाना, किंकर्तव्यविमूढ़ होकर चित्त को निराशा की भट्टी में झौंक देना। ये और इस प्रकार की परिस्थितियों में चित्त टूट जाता है। चित्त की जो तेजस्वी शक्ति थी, वह नष्ट हो जाती है। इस प्रकार टूटे हुए चित्त का व्यक्ति अपने पर आई हुई विपत्तियों को अपने पर हावी होने देता है, वह विपत्ति की सम्भावना अथवा उसके आने पर घबराकर उद्विग्न और अशान्त हो जाता है, उसका समग्र जीवन निराशापूर्ण, कटुता से भरा और दुःखित हो जाता है। - चित्त जब टूट जाता है तो वह अशान्त और उद्विग्न हो जाता है। ऐसे टूटे चित्त वाले व्यक्ति के भाग्य से जीवन के सारी सुख-सुविधा, सम्पत्ति और विभूति रूठ
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