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संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित : १
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गंदगी से घर शोभा नहीं देता, मनुष्य ज्ञान और सदाचार के बिना शोभा रहित है। स्वच्छता, पवित्रता और व्यवस्थितता, ये सब शोभा (श्री) में समाविष्ट हो जाते हैं। इसी प्रसंग पर मुझे एक रोचक दृष्टान्त याद आ गया
एक बार राजा भोज की पण्डित सभा में चार प्रश्न शोभा के विषय में पूछे गये
(१) मर्द की शोभा किसमें हैं ? (२) नारी की शोभा किसमें हैं ? (३) भैंस की शोभा किसमें है ? (४) घोड़ी की शोभा किसमें है ?
कई विद्वानों ने कई तरह के उत्तर दिये । एक पण्डित ने एक दोहे में उत्तर दिया
मर्द सोहे मूंछ बांका, नैन बांकी गोरियाँ ।
भैंस सोहे सींग बांकी, रंग बांकी घोड़ियाँ। सभा में यह दोहा जोर-जोर से सुनाया जा रहा था, तभी सभा के द्वार के "बाहर खड़े एक चरवाहे ने जोर से चिल्लाकर कहा-''पण्डितजी का यह कथन गलत है। ये पढ़े तो हैं, गुने नहीं हैं।"
लोगों ने राजा भोज के कहने से उस चरवाहे को सभा में बुलाया और कहा"क्यों भाई! तू इन चार प्रश्नों के सही उत्तर देने का दावा करता है, तो तू भी उत्तर दे।" उसने कहा
मर्द सोहे वीर बांका, शील बांकी गोरियाँ ।
भैंस सोहे दूध बांकी, चाल बांकी घोड़ियाँ । मर्द के चाहे मूछ कितनी ही लम्बी क्यों न हो, अगर वह राष्ट्र पर आए संकट के समय, अथवा बहन-बेटियों की इज्जत लूटी जा रही हो, उस समय अगर पराक्रम नहीं दिखा सकता तो उसकी क्या शोभा है ? वह तो श्रीहीन है। इसी प्रकार स्त्री के नेत्र कामीपुरुषों को अपने कामजाल में फंसाने में हों, या स्वयं फँसने में हों तो उसकी क्या शोभा है ? उसकी शोभा है-शील में । अगर स्त्री शीलवती है, सच्चरित्र है तो वह श्रीमती है, शोभास्पद है, अन्यथा नहीं।
इसी प्रकार भैंस के सींग चाहे जितने गोल एवं सुन्दर क्यों न हों अगर वह उन सींगों से दूसरों को मारती है, या दूध नहीं देती, तो केवल सींगों के कारण उस भैंस को कौन रखने को तैयार होगा ? इसलिए भैंस की श्री (शोभा) दूध में है, सींग में नहीं । अब रहा प्रश्न घोड़ी का । घोड़ी चाहे जितनी रंगरूप वाली हो परन्तु अगर उसकी चाल (गति) तेज नहीं है, वह चलने में तेजतर्रार या स्फूर्तिवाली नहीं है, तो उस घोड़ी की क्या शोभा है ? ये हैं इन चार प्रश्नों के यथार्थ उत्तर।
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