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संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित : १ १२७ अर्थगम्भीर है, महत्त्वपूर्ण है। मेरी नम्र मति में 'संभिन्नचित्त' शब्द के कम से कम सात अर्थ फलित होते हैं
(१) भग्नचित्त या विक्षिप्तचित्त (२) टूटा हुआ (निराश) चित्त (३) रूठा हुआ या विरुद्ध चित्त (४) व्यग्र या बिखरा हुआ चित्त या असंलग्नचित्त (५) अव्यवस्थित चित्त (६) अस्थिर चित्त (७) असंतुलित चित्त
अब हम क्रमशः इनके अर्थों पर विचार करेंगे और साथ ही गौतम ऋषि के बताये हुए सूत्र के साथ उसकी संगति बिठाने का प्रयत्न करेंगे।
संभिन्नचित्त का प्रथम अर्थ : भग्नचित्त संभिन्नचित्त का प्रथम अर्थ है—भग्नचित्त, यानी भागा हुआ, उखड़ा हुआ या विक्षिप्तचित्त । जिसका चित्त भग्न होता है, वह प्रायः अवांछित कल्पनाएँ किया करता है।
__मनुष्य का चित्त प्रायः मधुमक्खियों के छेड़े गए छत्ते की तरह है। वह बारबार नई-नई कल्पनाएँ और विकल्प उठाता रहता है । कल्पनाओं की यह भिनभिनाहट मनुष्य के चित्त को घेर लेती है और व्यर्थ की ऊलजलूल कल्पनाओं से घिरा हुआ मनुष्य तनाव, व्यथा और अशान्ति से जीता है। जीवन को, यथार्थ जीवन को तथा उसके उद्देश्य और लक्ष्य को जानने के लिए झील की तरह शान्तचित्त चाहिए, जिसमें कोई भी विक्षोभ या व्यग्रता की लहर न हो। ऐसे भग्नचित्त को लेकर आप यथार्थरूप से कुछ जान सकें, या पा सकें, यह सम्भव नहीं । यह दशा चित्त की रुग्ण दशा है । इसमें चित्त दर्पण की तरह निर्मल, स्वच्छ एवं शुद्ध नहीं होता, जिस पर सद् ज्ञान प्रतिबिम्बित हो सके ।
एक युवक था । उसने एक बहुत बड़े धनिक को देखकर धनवान बनने का विचार किया। कई दिनों तक वह कमाई में लगा रहा, कुछ पैसे भी कमा लिए । इसी बीच उसकी भेंट एक विद्वान् से हुई । विद्वान् की सर्वत्र प्रतिष्ठा और प्रशंसा होती देख उसने कल्पना की कि मैं विद्वान् बन जाऊँ तो ठीक रहेगा। दूसरे ही दिन वह कमाई छोड़कर अध्ययन करने में लग गया। अभी कुछ लिखना-पढ़ना सीख ही पाया था कि उसकी भेंट एक संगीतज्ञ से हुई। संगीत से लोगों को अधिक आकर्षित होते देखकर उसे भी संगीतज्ञ बनने की धुन लगी और उसी दिन से पढ़ाई छोड़-छाड़कर वह संगीत सीखने लगा। उसके बाद एक दिन उसने एक नेताजी का धुंआधार भाषण सुना। लाखों आदमियों की भीड़ उनकी सभा में देखकर उसका संगीत सीखने का विचार बदल गया और नेता बनने की फिराक में लगा। नेताजी के साथ-साथ वह
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