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सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : २
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को आरसी क्या ? अगले गाँव में सारा पता चल जाएगा।" विनीत ने बहस करना उचित न समझा। दोनों चुपचाप आगे चले। अगले कस्बे में पहुचे तो उसके बाहर ही राजा के आदमी गुड़ बाँटते दिखाई दिये । पूछने पर पता चला कि यहाँ की राजरानी के अभी-अभी पुत्र हुआ है। उसी की खुशी में बधाई बाँटी जा रही है। लोगों ने यह भी बताया कि रानी अभी-अभी हथिनी पर सवार होकर कहीं बाहर से आई थी। बाकी जितनी भी बातें विनीत छात्र ने कही थीं, वे सब सच निकलीं। यह जानकर अविनीत छात्र मन ही मन कुढ़ने लगा कि पक्षपाती गुरु ने मुझे अच्छी तरह नहीं पढ़ाया। अन्यथा, इसकी बातें कैसे मिल गईं और मेरी एक भी बात क्यों नहीं मिली । मैं इस बार गुरु से जवाब तलब करूंगा। इस प्रकार वह उद्दण्ड छात्र गुरु के प्रति दुष्कल्पनाएँ करने लगा।
आगे चलकर एक तालाब की पाल पर ज्यों ही वे दोनों विश्राम लेने के लिए बैठे, त्यों ही वहाँ पानी के दो घड़े सिर पर रखे हुए एक बुढ़िया आई । इन्हें ज्योतिषी समझ कर पूछने लगी- "ज्योतिषियो ! क्या तुम बता सकते हो कि चिरकाल से मेरा परदेश गया हुआ लड़का कब तक आएगा? बहुत समय से उसका कोई समाचार न मिलने से मेरा मन खिन्न रहता है । मेरा पुत्र से मिलन कब होगा?"
बुढ़िया यह प्रश्न पूछ रही थी, तब उसका ध्यान चक गया और सिर पर रखे दोनों घड़े गिर पड़े, फूट गये। इस प्रकार दोनों घड़ों को फूटते देख अविनीत छात्र ने झट से कहा- "बुढ़िया तेरा बेटा मर चुका है। उसके आने की कोई आशा नहीं है।" यह मर्माहत वचन सुनकर बुढ़िया के हृदय में अत्यन्त चोट पहुँची । वह बोली
- "अरे मूढ़ ! ऐसे अपशब्द क्यों बोलता है ? मेरे पुत्र के मरने की बात क्यों मुंह से निकाल रहा है ? अधम ! बोलने की जरा भी तमीज नहीं है, तेरे में !" किन्तु विनीत ने उसी क्षण बुढ़िया का प्रश्न लेकर स्वरोदय से पता लगाया और तत्कालीन स्थितियों पर विचार करके कहा--"माताजी ! आपका चिरंजीव अभी घर पर आया हुआ मिलेगा और वह बहुत-सा धन लेकर आएगा। चिन्ता न करो। मेरी बात सही न निकले तो मुझे सूचित करना।"
बुढ़िया की खुशी का पार न रहा। वह झटपट घर पहुँची। देखा तो पुत्र सामने आ रहा है । वह माता के चरणों में गिरा। माँ ने उसे छाती से लगाया और आँखों से हर्षाश्रु बरसाने लगी। घर आकर देखा तो पुत्र बहुत-सा धन कमा कर लाया है । बुढ़िया को उस ज्योतिषी का वचन याद आया । सारी बातें ज्यों की त्यों मिली देख, बुढ़िया ने तालाब पर आकर विनीत छात्र को खुशखबरी सुनाई कि "तुम्हारी बातें बिल्कुल सही निकली हैं। मुझे पुत्र से मिलकर अत्यन्त हर्ष हुआ है। लो यह पाँच रुपये और कपड़े का थान । आज मेरे घर भोजन का न्योता है, पर इस कम्बख्त को साथ में मत लाना।"
विनीत छात्र ने न्योता मान लिया, साथ ही इस शर्त पर साथी को भी लाने
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