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कद्ध कुशील पाता है अकीति १०७ इधर भोजराजा को मुंजराजा के नजरबंद कैद का पता लगा तो उसने धारा नगरी से कैदखाने तक एक सुरंग खुदवाकर मुंजराजा को गुप्त रूप से सूचित किया कि इस सुरंग-मार्ग से धारा नगरी आ जाओ, उसका दरवाजा अमुक जगह है । दासी जब भोजन देने आई तो मुंज ने उसे कहा- 'मैं इस सुरंगमार्ग से जाऊँगा, अगर तुम्हें मेरे साथ आना हो तो चलो।" इस पर दासी ने कहा- "ठहरो, मैं अपने आभूषण ले आती हूँ। फिर हम चलेंगे।" लेकिन दासी जब आभूषण लेकर बहुत देर तक नहीं आई तो मुंज ने सोचा-'हो न हो, किसी को मेरे जाने का पता लग गया है। अत: अब यहाँ से झटपट चल देना चाहिए।' यों सोचकर मुंज चल पड़ा । इतने में दासी आ गई, उसने मुंज को जाते देखा तो सोचा-'मुझे छोड़कर चला गया है कितना विश्वासघाती है।' अतः दासी जोर से चिल्लाई- “दौड़ो-दौड़ो, मुंज भाग रहा है।" यह सुनते ही राजपुरुष दौड़कर आए। उन्होंने मुंजराजा का सिर ऊपर से पकड़ लिया, उधर नीचे से मुंज के अपने आदमियों ने उसके पैर पकड़ लिए। दोनों तरफ खींचातान होने लगी, तब मुंज ने अपने आदमियों से कहा - "तुम लोग पैर खींचोगे तो शत्रु ऊपर से मेरा सिर काट डालेगा । अतः तुम पैर छोड़ दो।" यह सुनकर वे आदमी चले गए ।
राजा ने मुंज को गिरफ्तार कराकर एक हाथ में खप्पर देकर नगर में भीख माँगने का आदेश दिया । एक घर में जब भीख माँगी तो गृहिणी चर्खा कात रही थी उसकी चरड-चरड आवाज के कारण उसने कुछ सुना नहीं । तब मुंज ने कहा
"रे रे यंत्रक ! मा रोदीर्यदहं भ्रामितोऽनया।
राम-रावण-मुजाद्याः, स्त्रीभिः के के न भ्रामिता ॥ -अरे चर्खायंत्र ! इस स्त्री ने मुझे फिराया है, यह सोचकर मत रो । स्त्रियों ने राम, रावण और मुंज आदि कई मनुष्यों को घुमाया है। आगे चला तो एक घर में एक महिला ने घी से तर रोटी आधी तोड़कर दी । उसे देख मुंज ने कहा
रे रे मण्डक मा रोदीर्यदहं नोटितोऽनया ।
राम-रावण मुजाद्या. स्त्रीभिः के के न त्रोटिता. ॥ __-अरे फुलके ! इस नारी ने मुझे तोड़ दिया, यह सोचकर मत रो। स्त्रियों ने तो राम, रावण, मुंज आदि न जाने कितने लोगों को तोड़ दिया है।
आगे चला तो एक धनाढ्य स्त्री मुंजराजा को भीख माँगते देखकर हँसी । यह देख मुंज बोला
आपद्गतं हससि कि द्रविणान्धमूढ़ ! लक्ष्मीः स्थिरा न भवतीति किमत्र चित्रम् ? दृष्ट सखे ! भवति यज्जलयन्त्रमध्ये, रिक्तो भृतश्च भवति, भरितश्च रिक्तः ।।
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