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कद्ध कुशील पाता है अकीति १०५ चण्डकौशिक सर्प पूर्वजन्म में एक साधु था, किन्तु क्रोधावेश में आकर अपने शिष्य पर प्रहार करने जा रहा था कि अचानक एक खम्भे से सिर टकराया। वह वहीं मूच्छित होकर गिर पड़ा और सदा के लिए आँखें मूंद लीं । क्रोधावेश में साधुजीवन में उपार्जित सारी सत्कृति जो कीर्ति का स्रोत थी, नष्ट कर दी।
एक बड़े ही तपस्वी थे। तपश्चर्या में उनका जीवन आनन्दित रहता था। तपस्या के प्रभाव से दिव्य शक्तिधारी देव उनकी सेवा करने लगे। तपस्वी साधु को भी तपस्या के प्रभाव का मन में गर्व था।
___ एक दिन तपस्वी साधु नगर के जन संकुल मार्ग से जा रहे थे । सामने से एक धोबी अपनी पीठ पर कपड़ों का गट्ठर लादे तेजी से चला आ रहा था। उसके द्वारा तपस्वी साधु को ऐसा धक्का लगा कि वे नीचे गिर पड़े । तपस्या से शरीर कृश होने से वह जरा-सी भी टक्कर न झेल सका।
___ अपनी दशा देखकर तपस्वी क्रोध से आग-बबूला हो गए और धोबी से कहने लगे—''कैसा मदोन्मत्त एवं अन्धा होकर चलता है कि राह चलते सन्तों को भी नहीं देखता ! कुछ तो चलने में होश रखना चाहिए।"
___इतना सुनते ही धोबी क्रोधाविष्ट हो गया। कहने लगा- 'मैं अन्धा हूँ या तू ? मेरे से आकर खुद ही टकराया और मुझे अन्धा बता रहा है। सीधा चला जा, वरना इन मुट्ठीभर हड्डियों का पता नहीं लगेगा।"
यह सुनते ही तपस्वी क्रोध से जल उठे। वे कहने लगे- "मूर्ख ! गलती अपनी है और दोषी मुझे बतलाता है । तपस्वी साधुओं से अड़ा तो यहीं का यहीं ढेर हो जाएगा।"
"क्या कहा ? तेरे जैसे सैकड़ों तपस्वी देखे हैं, ढेर करने वाले ! अभी देख, मैं तो तुझे यहीं ढेर कर देता हूँ।" यों कहकर धोबी ने तपस्वी साधु की गर्दन पकड़कर जमीन पर पटका और कंकरीली जमीन पर खूब जोर से घसीटा । फिर बोला-'अब तेरी अक्ल ठिकाने आई या नहीं? नहीं तो, यहीं तेरी कपालक्रिया कर दूंगा।"
तपस्वी साधु को होश आया। सोचा-अरे ! मैं साधु होकर कहाँ उलझ गया इससे झगड़ा करने । मेरी सारी प्रतिष्ठा इसने मिट्टी में मिला दी। बड़ी गलती हो गई । मेरी अर्जित की हुई साधुत्व की कीर्ति पर पानी फिर गया। फिर उसने धोबी से कहा-'अच्छा भैया ! छोड़ दो मुझे । मैं हारा और तू जीता । क्षमा कर मुझे।" ।
धोबी ने कहा- “नहीं-नहीं, अभी भी तेरे में कोई चमत्कार हो तो बता दे।"
साधु ने क्षमा माँगी। धोबी अपने रास्ते चल पड़ा। साधु दुर्बल शरीर से लड़खड़ाते हुए धीरे-धीरे पश्चात्ताप करते हुए चलने लगे ।
इतने में सेवा में रहने वाले सेवक देव ने तपस्वी साधु के चरण छुए और सुख
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