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आनन्द प्रवचन : भाग ६
कुछ नहीं आएगा। धूर्त व्यक्ति चालाकी से बड़ी-बड़ी बातें बनाकर और लोगों को रूप और गुण का सब्जबाग बताकर, धन एवं वैभव का मिथ्या प्रदर्शन करके यदि जरा-सी प्रतिष्ठा या कीर्ति पा भी लेते हैं तो उन्हें वह आन्तरिक उल्लास नहीं मिलता जो मिलना चाहिए था। प्रत्युत, जब इस नाटक का पर्दाफाश होता है तो लोग उन्हें धूर्त, पाखण्डी और ठग कहकर तरह-तरह से उसकी भर्त्सना, बदनामी और निन्दा करते हैं। आखिर कागज की नाव कब तक चलती, उसे तो डूबना ही था। जालसाजी और धूर्तता का पर्दा खुल जाता है तो कीर्ति के बदले अपकीर्ति या अप्रतिष्ठा ही होती है, जिससे मानसिक अशान्ति बढ़ जाती है ।
यदि आप कीति एवं प्रतिष्ठा के योग्य गुणों का अपने में विकास कर लेते हैं तो निःसन्देह आपको प्रतिष्ठा और कीर्ति प्राप्त होगी । गुणों की मात्रा जितनी बढ़ेगी उतनी ही आपकी योग्यता विकसित होगी, और उसी अनुपात में लोग आपकी ओर आकर्षित होंगे । लोग गुणों की पूजा करते हैं, व्यक्ति की नहीं, वेष और उम्र की भी नहीं । इसीलिए कहा है
"गुणाः पूजास्थानं गुणिषु, न लिंगं न च वयः ।" “गुणियों के गुण ही पूजा के स्थान होते हैं, व्यक्ति की वेष-भूषा या उम्र पूजनीय नहीं होती।"
___ जनता सच्चाई को सिर झकाती है, बनावटीपन को नहीं। टेसू का फल देखने में बड़ा आकर्षक होता है, लेकिन लोग खुशबू के कारण गुलाब को ही अधिक पसन्द करते हैं । पश्चिम के वक्ता सिसरो का कहना है-“कीति सद्गुणों का पुरस्कार
आपके किसी एक गुण का विकास भी सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों से जितना अधिक होगा उतनी ही अधिक प्रतिष्ठा आपको मिलेगी, कीर्ति भी उतनी ही फैलेगी। महारथी कर्ण के युग में दान देने की परम्परा साधारण सी थी, लेकिन कर्ण में दान की प्रवृत्ति असाधारणता लिए हुए थी, इसी कारण कर्ण की 'दानवीर' के रूप में ख्याति और कीर्ति बढ़ी।
__ आजीवन ब्रह्मचारी रहने वाले भीष्म पितामह, परमभक्त हनुमान, सत्यवादी हरिश्चन्द्र, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम आदि अपने विशिष्ट गुणों के कारण ही उच्चतम प्रतिष्ठा और कीर्तिप्रसार पाने के अधिकारी बन सके थे।
महर्षि दधीचि को देवत्व-स्थापना में अपने आपका जीवित उत्सर्ग कर के देने के कारण जो उच्चतम प्रतिष्ठा और कीर्ति प्राप्त हुई, वह अन्य को नहीं । श्रवणकुमार में सामान्य लोगों से अधिक बल्कि पराकाष्ठा का स्पर्श करने वाली मात-पितृभक्ति होने के कारण उसे मातृ-पितृभक्त के रूप में सर्वोच्च प्रसिद्धि और कीर्ति प्राप्त हुई। निष्कर्ष यह है कि सामान्य लोगों से गुण में अधिकाधिक उत्कर्ष प्राप्त
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