________________
सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : २ ७७ काम मैं सँभाल लूंगा । दूसरे दिन फाँसी के सामने खड़े दोनों व्यक्ति मरने के लिए पहल करने लगे। इससे चकित होकर सम्राट ने जब कारण पूछा तो बुद्धिमान ने कहा-"मैं जहाँ मरूँगा, वहाँ दुष्काल पड़ेगा और यह जहाँ मरेगा, वहाँ रोग फैलेगा। इसीलिए हमारे राजा ने हमें यहाँ भेजा है, अन्यथा फाँसी तो वहाँ भी थी।"
यह सुनते ही सम्राट ने दोनों को शीघ्र मुक्त कर दिया और उस राजा पर एक विरोधपत्र भी लिखकर दिया।
कहने का मतलब है धन और स्थिरबुद्धि में जमीन-आसमान का अन्तर है। धन कदापि बुद्धि के समकक्ष नहीं हो सकता और न ही बुद्धि धन का आसन ग्रहण कर सकती है क्योंकि बुद्धि धन से कदापि खरीदी नहीं जा सकती और न ही किसी से उधार ली जा सकती है । स्पष्ट कहा है--
बुद्धि कहीं बिकती नहीं, मिलती नहीं उधार ।
बुद्धि हृदय से उपजती, 'चन्दन' करो विचार ॥ अतः सौ की एक बात है, सात्त्विक और स्थिरबुद्धि पूर्वोक्त गुणों से ही प्राप्त हो सकती है। बल्कि धन का अहंकार और मद सात्त्विक बुद्धि को ही नष्ट कर देता है, उससे बुद्धि का आगमन हो नहीं सकता। इसलिए धन से बुद्धि का आगमन कहने के बजाय, सद्बुद्धि से सम्पत्ति का आगमन सम्भव है। जैसा कि भारतीय संस्कृति के उद्गाता कवि का कथन है
जहाँ सुमति तह सम्पत नाना ।
जहाँ कुमति तहां विपत निदाना ॥ आज अधिकांश धनिकों में यह भ्रान्ति घर कर गई है कि हम धन से दस शिक्षकों को वेतन पर रखकर अपनी बुद्धि बढ़ा सकते हैं। परन्तु यह बात यथार्थ नहीं है। धन से अक्षरीय ज्ञान या भौतिक जानकारी बढ़ सकती है, मगर सात्त्विक एवं स्थिरबुद्धि प्राप्त होना दुस्कर है।
संगति से भी बुद्धि सात्त्विक व स्थिर नहीं कई लोग कहते हैं कि केवल संगति से मनुष्य की बुद्धि सात्त्विक और स्थिर हो जाती है या बढ़ जाती है, परन्तु यह बात भी एकान्ततः यथार्थ नहीं है। अगर संगति से ही बुद्धि सात्त्विक या स्थिर हो गई होती तो गोशालक, जामाली आदि अनेक व्यक्तियों की बुद्धि तीर्थंकर भगवान महावीर की संगति में रहने से सात्त्विक या स्थिर क्यों नहीं हो गई ? क्यों उनकी बुद्धि विपरीत हो गई ? जो व्यक्ति कुबुद्धि या दुर्गुणों के चक्कर में पड़ा हो, उसे महापुरुषों की संगति करने पर भी सुबुद्धि नहीं आती। जैसा कि बिहारी कवि ने कहा है
संगति सुमति न पावही, परे कुमति के धंध ।
राखो मेलि कपूर में, हींग न होत सुगन्ध । गुजरात के एक भक्त कवि 'प्रीतम' ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org