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सुख का मूल : सन्तोष ४७ सरस्वती कल्याण !' कहकर घर-घर से भीख माँगना शुरू कर दिया। एक दिन सेठ जी ने उन्हें भीख माँगते देखकर कारण पूछा तो उन्होंने कहा-"घर में बच्चा होने वाला है। वह बड़ा होगा, तब उसे खिलाने-पिलाने, पढ़ाने-लिखाने आदि का प्रबन्ध कहाँ से करूंगा? यही सोचकर भीख माँगता हूँ।"
"भट्ट जी ! आपकी औरत के बच्चा होगा या बच्ची ? जिन्दा होगा या मरा? यह तो आपको पता नहीं। अगर बच्चा होगा भी तो वह भी अपना भाग्य लेकर आएगा। तब सब कुछ हो जायगा। अभी से उसकी चिन्ता क्यों करते हैं ?"- सेठ जी ने उन्हें कहा। पर भट्ट जी को मन में विश्वास, धैर्य और सन्तोष नहीं था, इसलिए उन्होंने कहा-सेठ ! चिन्ता तो मुझे ही करनी पड़ती है न ? और कौन करेगा?
सेठ ने उदारतापूर्वक कहा- "अच्छा आज से दो के बदले तीन आदमियों का सीधा ले जाया करो, पर भीख माँगना बन्द करो।" कुछ दिन इसी प्रकार क्रम चलता रहा । एक दिन संयोगवश भट्ट जी एक वाचनालय के पास से होकर जा रहे थे कि एक आदमी को अखबार पढ़ते हुए सुना-बनारस के पास मिर्जापुर में एक स्त्री के एक साथ दो बच्चे हुए । यह सुनकर भट्ट जी के मन पर फिर भूत सवार हो गया कि मेरी पत्नी के भी अगर एक साथ दो बच्चे हुए तो? फिर उनके खानेपीने आदि का क्या इन्तजाम करूँगा ? सीधा तो तीन आदमियों का आता है। अतः भीख नहीं छोड़नी चाहिए, भीख माँगते ही रहना चाहिए।
इस भट्ट जी के जैसे असन्तुष्ट और अधीर व्यक्ति दुनिया में बहुत से मिलेंगे। सन्तोष और सब्र के नाम पर उनके बारह बजे हुए मिलेंगे। ऐसे असन्तुष्ट लोग घृणा के पात्र हो जाते हैं। उन्हें कोई कितना ही दे दे या सहायता कर दे, वे किसी न किसी विकल्प को उठा-उठाकर मन में असंतोष का कल्पित भूत खड़ा कर लेंगे और दुःखित-चिन्तित होते रहेंगे । कई लोग तो भविष्य के दुःखों की कल्पना करके असन्तुष्ट, दुःखित और चिन्तातुर रहते हैं।
वर्तमान परिस्थितियों से असन्तुष्ट : भूत-भविष्य की चिन्ता कई लोग अपनी वर्तमान परिस्थितियों में असन्तुष्ट रहकर दुःखी होते रहते हैं। उनका वर्तमान कितना ही अनुकूल क्यों न हो, किन्तु वे असन्तोष का कोई न कोई कारण ढूंढ ही लेते हैं। उन्हें भूतकाल से बड़ा लगाव होता है । भूतकालीन स्थितियों की अनुपस्थिति में वे अपने मनःकल्पित सन्तोष का आरोप करके यही सोचा करते हैं कि वे अपने बीते दिनों में कितने अधिक सुखी और प्रसन्न रहा करते थे । आज चारों ओर दुःख ही दुःख है। जबकि वास्तव में भूतकाल में भी ऐसा था नहीं और न ही वर्तमान में इतना दुःख है । उनका अतीत जब वर्तमान था, तब भी वे आज ही की तरह असन्तुष्ट और अप्रसन्न रहते थे । यदि उनका स्वभाव हर स्थिति में सन्तुष्ट रहने का होता तो वे कल भी सुखी होते और आज भी प्रसन्न । वर्तमान से असन्तुष्ट व्यक्ति जहाँ भूतकाल को सुखमय अनुभव करता है, वहाँ वह भविष्य में
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