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आनन्द प्रवचन : भाग ६
सुख की आशा-आकांक्षा भी करता है। किन्तु उसका प्रत्येक आगामी कल, वर्तमान का आज बनकर आता है और असन्तोष के साथ चला जाता है। असन्तुष्ट व्यक्ति अपने स्वभावानुसार उसमें भी कुछ न कुछ ननुनच किया करता है। असंतोषी स्वभाव का व्यक्ति अतीत एवं अनागत के सुख की कल्पना करके वर्तमान को कण्टकाकीर्ण मानकर दुःखप्रदायक समझता है; जबकि उसका काम केवल वर्तमान से ही रहता है, अतीत से तो उसका वास्ता छूट ही जाता है और अनागत प्रतिदिन वर्तमान बनता जाता है।
भविष्य वर्तमान की अपेक्षा सुन्दर और सुखद हो सकता है, पर किसके लिए ? जो वर्तमान में सन्तुष्ट होकर भविष्य के लिए वर्तमान में प्रयत्न करता है, असन्तुष्ट व्यक्ति तो वर्तमान में प्रयत्न करता ही नहीं वह तो वर्तमान को कोसता है, उसे दुर्भाग्यपूर्ण और अभावग्रस्त समझता है। उसके साथ सामंजस्य करके दुःख को सुख में बदलने की कला उसके पास है नहीं । वह तो साधनों और सुविधाओं का रोना रोकर वर्तमान में व्याकुल हो रहा है। तब भला वह एक सुन्दरतम उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रयत्न ही कैसे कर सकता है ? उसे तो वर्तमान स्थिति में खिन्न, क्षुब्ध और व्यथित होने और कमियों और नुक्सों को देखते रहने से ही अवकाश नहीं मिलेगा। इसीलिए पाश्चात्य वैज्ञानिक एडिसन (Addison) ने कहा है
"A contented mind is the greast est blessing, a man can enjoy in the world, and if in the present life, his happiness arises from the subduing of his desires, it will arise in the next from the gratification of them."
"एक सन्तुष्ट मन सबसे बड़ी देन है, जिससे मनुष्य इस संसार में आनन्द ले सकता है, और अगर वर्तमान जीवन में उसका सुख इच्छाओं को कम करने से उत्पन्न हुआ है तो आगे भी इच्छाओं का बलिदान करने से उसे सुख उत्पन्न होता रहेगा।"
जो सन्तुष्ट स्वभावी होता है, वह अपनी वर्तमान स्थिति में सन्तुष्ट रहकर भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए प्रयत्न व पुरुषार्थ करता रहता है। निष्कर्ष यह है कि प्रसन्नता और सुख वर्तमान के साथ सामंजस्य एवं सन्तोष में है । संतोष मनुष्य की अपनी चित्तवृत्ति पर निर्भर है, साधनों या सुविधाओं की उत्कृष्टता या अधिकता पर नहीं । चीनी विचारक चुंग ची के शब्दों में
"सच्ची प्रसन्नता मन से उत्पन्न होती है, अतः मन का सन्तोष पाने का प्रयत्न करो।" सन्तुष्ट और असन्तुष्ट में अन्तर
दो व्यक्तियों को एक सरीखे साधन और समान सुविधाएँ प्राप्त होने पर भी जो असन्तुष्ट होगा, वह हर समय कोई-न-कोई दुखड़ा रोता रहेगा, परन्तु जो सन्तोषी होगा, वह प्रत्येक परिस्थिति में सन्तुष्ट, प्रसन्न और सुखी रहेगा।
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