________________
५०
आनन्द प्रवचन : भाग ६
मुरझाये और कुचले हुए तथा सड़े-गले फूल पर भौंरा तो क्या, कोई मक्खी भी नहीं बैठती। उसे उपेक्षा, तिरस्कार और उपहास के गर्त में फेंक दिया जाता है । इसी प्रकार जो लोग मुँह फुलाए, रूठे, असन्तुष्ट और मनहूस होकर बैठे रहते हैं, जो चिड़चिड़ाते और बड़बड़ाते तथा कुढ़ते रहते हैं, वे अपने समीपवर्ती लोगों की सहानुभूति खो बैठते हैं। उनसे सब लोग डरने, कतराने और किनाराकसी करने लगते हैं। चेचक और हैजे के रोगी से सब अपना बचाव करना चाहते हैं कि कहीं यह छूत हमें न लग जाए । असन्तुष्ट और खिन्न मनुष्य से झूठी सहानुभूति कोई भले ही प्रकट कर दे, वस्तुतः मन ही मन लोग उससे घृणा करते हैं और बचने की कोशिश करते हैं । कुढ़ने वाले व्यक्ति को अपनी कष्टकथा सुनाकर कौन भला अपना दुःख बढ़ाना चाहेगा ? मनहूस-सी शक्ल बनाये बैठे रहने वाले और अपने दुख-दुर्भाग्य का रोना रोते रहने वाले लोगों के पास बैठकर भला कौन अपना मन क्ष ब्ध करने को तैयार होगा? लोग तो दुख में, संकट में और विपत्ति में भी हँसते रहने वाले लोगों की तलाश में रहते हैं। हर हाल में मस्त रहने की, सन्तोष की कला जिसे आती है, वह साधारण आदमियों को ही नहीं, परमात्मा को भी प्रसन्न कर सकता है । कुरानेशरीफ (२/२४६) बताया है
___"व अल्लाहू मुहिब्बुऽस्साबिरीन" "अल्लाह सब्र करने वालों से मुहब्बत रखता है।"
मैंने अखवार में एक सच्ची घटना पढ़ी थी कि एक व्यक्ति साधारण स्थिति का था, परन्तु एक दूकानदार के पास वह प्रायः प्रतिदिन आता और जब देखो, तब उसके चेहरे पर सन्तोष की मुस्कान अठखेलियाँ करती रहती थी। दूकानदार उससे बहुत प्रभावित था, और प्रायः जब भी वह आता, दो-चार मिनट अपने यहाँ बिठा कर उसके मुंह से कुछ न कुछ सुना करता था । वह सबको प्रसन्न कर देता था। एक दिन दूकानदार उसके घर पहुँच गया । दूकानदार ने तो यह सोचा था कि वह बड़ा अमीर और साधनसम्पन्न होगा, तभी इतना प्रसन्न और सन्तुष्ट रहता है। वहाँ जाकर देखा तो उसका छोटा-सा मकान है; पर है साफ-सुथरा । सभी चीजें व्यवस्थित एवं तरतीब से लगी हुई हैं। तीन कमरे हैं। एक कमरे में छोटा-सा रसोईघर है। एक स्वयं के बैठने-उठने का और एक सामान वगैरह रखने का कमरा है । दूकानदार जब गया तो वह स्वयं अपने छोटे बीमार लड़के की चारपाई के पास बैठा उसके सिर पर बाम लगा रहा था। उसने कारण पूछा तो बोला- "तीन-चार दिनों से इसे बुखार हो गया है। इसलिए मैं इसकी सेवा करता हूँ।"
दूकानदार ने पूछा- "इसकी माँ नहीं है ? वह क्या करती है ?" वह बोला-'है, पर उसका दिमाग ठीक नहीं है। वह उस कमरे में है।"
दूकानदार के आते ही उसने आनाकानी करते रहने पर भी स्वयं चाय बनाकर पिलाई थी, इसलिए उसने पूछ लिया-"क्या रसोई आप ही बनाते हैं ?" वह
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org