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सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : १
धर्मप्रेमी बन्धुओ !
. आज मैं एक ऐसे जीवन का परिचय देना चाहता हूँ, जिस जीवन में बुद्धि स्थिर रहती है, जो जीवन शुद्धबुद्धि से रिक्त नहीं रहता, जिस जीवन में मनुष्य की बुद्धि संकट और प्रलोभन के समय, भय और लोभ के प्रसंग पर, क्रोध और अहंकार के मौकों पर तथा कपट और द्रोह के अवसर पर कदापि भ्रष्ट, च्युत या विदा नहीं होती, वह सही-सलामत रहती है। वह ठीक सोच-समझकर समयोचित निर्णय ले सकती है, अपने जीवन को कल्याण-पथ पर स्थिर रख सकती है, विकट कसौटी के प्रसंग पर भी वह यथार्थ मार्गदर्शन कर सकती है।
परन्तु प्रश्न होता है कि किस व्यक्ति के जीवन में बुद्धि एकाग्र और स्थिर रह सकती है ? इसके उत्तर में महर्षि गौतम गौतमकुलक के तेईसवें जीवन-सूत्र में फरमाते
'बुद्धि अचंडं भयए विणीयं' 'जो अचण्ड (सौम्य) और विनीत हो, बुद्धि उसी का आश्रय लेती है, उसी की सेवा में संलग्न रहती है।'
कहने का मतलब यह है कि उसी की बुद्धि हर समय स्थिर, शान्त और एकाग्र रहती है, सही-सलामत एवं प्रवर्द्धमान रहती है, जिसका जीवन विनय से ओतप्रोत हो, जिसके जीवन में क्रोधादि कषायों की प्रचण्डता न हो, जिसका जीवन क्रोधादि कषायों और अभिमानादि विकारों से दूर हो, उसी महानुभाव के पास बुद्धि जमकर रहती है। उसी की सेवा में बुद्धिदेवी रहती है, जिसका जीवन निरभिमानी और क्रोधादि आवेशों से रहित हो।
___ अन्य प्राणियों और मानव की बुद्धि में अन्तर यों तो बुद्धि प्रत्येक मानव और विकसित पशु-पक्षियों में भी होती है। गृहस्थ सम्बन्ध पशु-पक्षी भी स्थापित कर लेते हैं । अंडे-बच्चे देना और उनका पालन-पोषण करना उन्हें भी आता है । वे विशिष्ट कला न जानते हों तो न सही, पर अपने रहने के लिए कोई न कोई आश्रय स्थान बना ही लेते हैं। बया पक्षी का घोंसला तो इंजीनियरों की बुद्धि को भी मात करता है। मकड़ी अपना जाला ऐसा व्यवस्थित बनाती है कि कुशल भवननिर्माता भी उसे देखकर दाँतों तले अंगुली दबा लेता है। भौंरा, ततैया
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