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३६ आनन्द प्रवचन : भाग ६
अधिक धन बटोरकर सुखी बन जाने की भ्रान्ति में जब व्यक्ति अन्याय, अनीति, चोरी, तस्करी, डकैती, लूटपाट, गिरहकटी, बेईमानी, ठगी, झूठ- फरेब आदि अनुचित तरीकों से धन संचित करता है, तब रातदिन उसका मन गिरफ्तारी, सजा, बेइज्जती, मारपीट आदि की आशंकाओं से एवं इन्कमटेक्स, सेल्सटेक्स तथा अन्यान्य कर आदि बचाने की दुश्चिन्ताओं से अशान्त और बेचैन रहता है । कई बार वह गिरफ्तारी, दण्ड आदि से बचने के लिए बीहड़ों, जंगलों, गुफाओं या एकान्त स्थानों में मारा-मारा लुका-छिपा फिरता है । न कहीं सोने का ठिकाना होता है, न रहने का और न खाने-पीने का ! है कोई सुख ऐसे व्यक्ति को ? गिरफ्तारी का वारंट जब जारी होता है तो सुख-शान्ति की भ्रान्तिवश अनुचित तरीकों से धन बटोरने वाला व्यक्ति एकदम घबरा जाता है । कई बार तो वह देवी - देवों की मनौती करने दौड़ता है । इसी घबराहट में कई बार उसका ब्लडप्रेशर एवं मानसिक तनाव बढ़ जाता है, हार्ट एटेक हो जाता है । हार्टफेल होने के जो आए दिन किस्से सुनते हैं, वे अधिकतर ऐसे ही चिन्ता - शोकमग्न व्यक्तियों के होते हैं ।
अतः धन, ठाठबाट या सांसारिक साधनों के बढ़ जाने से, सुख बढ़ जाने की बात न भ्रान्ति है । धन से - अन्याय - अनीति से प्राप्त धन से सुखशान्ति की आशा करना व्यर्थ है ।
कई सभ्य लोग विद्या, बुद्धि या बल को भी सुख का हेतु मानते हैं परन्तु गहराई से देखा जाए तो वास्तविक सुख वाहक ये पदार्थ भी नहीं हैं । यदि ऐसा होता तो हर एक शिक्षित, बुद्धिमान या बलवान् व्यक्ति सुखी दिखाई देता, और हर अशिक्षित, मंदबुद्धि, या निर्बल दुःखी परन्तु ऐसा देखने में नहीं आता। बल्कि
। कई विद्वान्, शिक्षित, बुद्धिमान् या बलवान् लम्बी-लम्बी आहें भरते और अमुक
व्यक्ति, समाज, देव या निमित्त को कोसते किसान, मजदूर या निर्बल, निर्धन व्यक्ति जीवन बिताते मिलते हैं ।
और क्षुब्ध होते मिलते हैं; जबकि अपढ़ अपने-आप में प्रसन्न और हँसी-खुशी से
अमेरिका आदि पाश्चात्य देशों में धन-वैभव की प्रचुरता होते हुए भी अधिकांश लोग अशान्त और दुःखी मालूम होते हैं, सबसे अधिक मानसिक रोगों के शिकार हैं । यदि धन-दौलत तथा साधन सुविधाएँ ही प्रसन्नता और सुखी जीवन की हेतु होतीं तो संसार का प्रत्येक धनवान अधिक से अधिक सुखी और प्रसन्न होता, किन्तु ऐसा कहाँ है ? इससे स्पष्ट सिद्ध है कि बाह्य वैभव, भौतिक शक्ति, सत्ता या विभूति वास्तविक सुख एवं खुशी का कारण नहीं है । इन्हें सुख का मूल मानकर इन भौतिक पदार्थों के लिए रोते-पीटते रहना बुद्धिमानी नहीं है ।
सुख का रहस्य : धनादि पदार्थों में सुख नहीं
मैंने एक पुस्तक में ग्रीस के प्रसिद्ध तत्त्वचिन्तक सोलन के द्वारा बताया हुआ सच्चे सुख का रहस्य पढ़ा था । उससे आप लोग भी भलीभांति समझ जाएँगे कि
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