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आनन्द प्रवचन : भाग ६
ध्रोल की राजगद्दी पर उस समय हरधोल जी के पाटवी कुँवर थे। ठाकुर अपने राज्य की तरक्की के लिए आस-पास के राज्यों को हथियाने की ताक में था। इसी बीच भूदेव ने ठाकुर से देवला गाँव के खजाने की बात कही। ठाकुर को यह बात बहुत सुहाई। दूसरे दिन मुहूर्त निकलवाकर अपने विश्वस्त व्यक्तियों के साथ डोड़ी नदी के तट पर स्थित देबला गाँव में गड़ी हुई निधि को निकालने हेतु रवाना
देवला के पूर्व में खड़े दोनों खेजड़ों (वृक्षों) के ठीक बीच में खुदाई का काम शुरू कराया, ज्यों ही करीब पाँच हाथ जमीन खुदी कि एक शिला से कुदाली टकराई । ठाकुर ने वहीं काम रुकवाया, स्वयं खड्डे में उतरे । दसेक मनुष्यों को खड्डे में उतार कर शिला हटवाई तो नीचे सोने से भरे ताम्बे के घड़े नजर आये । ठाकुर तमाम घड़ों को सुरक्षित रूप से ऊपर ले आये । भूदेव ने कहा--"अपनी शर्त के अनुसार आधा भाग मेरा है। इसलिए मेरे हिस्से के सब घड़े एक तरफ रखवा दें।"
उधर भूदेव मेरे साथ धोखा न करें, यह देखने के लिए सेठ भी एक पेड़ की ओट में खड़ा-खड़ा यह सब देख रहा था। भूदेव के शब्दों ने ठाकुर के कलेजे में तीरसा काम किया। पर आन्तरिक भाव छिपाते हुए वे बोले-'भूदेव ! इतनी अधीरता आपको शोभा नहीं देती । ध्रोल के धनी को तुम्हारी एक पाई भी नहीं चाहिए। विश्वास रखिए । आप अपना हिस्सा चाहे जहाँ ले जा सकते हैं । परन्तु इस निधि की जानकारी आपको मिली है, अतः खड्डे में उतरकर चावल का स्वस्तिक करके दीपक जला आइए। फिर आप खुशी से अपने हिस्से के घड़े बैलगाड़ी में रखकर ले जाना ।"
भूदेव को ठाकुर के मन में आए हुए पाप का पता चल गया। पर अब खड्डे में उतरकर स्वस्तिक पूर्ण करके दीपक जलाए बिना कोई चारा न था । अत: वे खड्डे में उतरे, उन्हें चावल से भरा थाल दिया गया, उसे लेकर ज्योंही वे स्वस्तिक करने के लिए नीचे झुके त्योंही ठाकुर के इशारे से २० जवान दबादब मिट्टी डालकर खड्डा भरने लगे। पाँच ही मिनट में तो खड्डा भर गया, भूदेव धरती की गोद में वहीं सदा के लिए सो गए।
वृक्ष की ओट में खड़े सेठ ने यह पापकृत्य देखा तो वह काँप उठा। चुपचाप घर आ गया।
. इसके पश्चात् ठाकुर वह सारा धन लेकर घ्रोल आए। राज्य के खजाने में उसे रखा । सेठ के मुंह से ठाकुर की धोखेबाजी और ब्रह्महत्या की बात चारों ओर फैलने लगी। सब धनलोभी हत्यारे ठाकुर को धिक्कारने लगे । ध्रोल का नाम सुबह लेने से अन्न नहीं मिलेगा, यह भी माना जाने लगा।
इस पापकृत्य से प्राप्त निधि को पाकर ठाकुर भी सुखी न हुए । कुछ ही वर्षों बाद ध्रांगध्रा के राजा चन्द्रसिंह (ठाकुर के भानजे) के साथ हुए युद्ध में ध्रोलठाकुर अपने परिवार के मुख्य युवकों सहित मारे गए।।
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