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वारिवर्ग: १०] रत्नप्रभाव्याख्यासमेतः
उक्तं स्वयॊमदिक्कालधीशब्दादि सनाट्यकम् । पातालभोगि नरकं वारि चैषाञ्च सङ्गतम् ॥१॥ इत्यमरसिंहकृतौ नामलिङ्गानुशासने। स्वरादिकाण्डः प्रथमः साङ्ग एव सथितः॥२॥
(१) स्वर्ग, व्योम, दिक्, काल, धी, शब्दादि, नाटय, पातालभोगि, नरक, और वारि वर्गों का वर्णन इस प्रथमकाण्ड में किया गया है ।
इस प्रकार अमर सिंह द्वारा रचित इस नामलिङ्गानुशासन का सम्पूर्ण प्रथमकाण्ड का ठीक प्रकार से वर्णन कर दिया गया है। इति श्रीमत्पण्डिततारादत्तत्रिपाठितनूजेन, डॉ० ब्रह्मानन्द त्रिपाठिना
विरचितायाम् अमरकोषटोकायां प्रथमं काण्डं समाप्तम् ।
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