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अहिंसा / हिंसा का स्वरूप
(सामान्य पृष्ठभूमि)
C असाः सभी प्राणियों को (आत्मवत्) प्रिय
सव्वे पाणा पियाउया सुहसाता दुक्खपडिकूला अप्यियवहा पियजीविणो जीवितुकाया। सव्वेसिं जीवितं पियं ।
(आचा. 1/2/3/78) सभी प्राणियों को प्राण प्रिय हैं, सभी सुख चाहते हैं, सभी दुःख से घबराते हैं, सभी को अपना वध अप्रिय है, सभी को जीवन प्रिय है, सभी जीवित रहना चाहते हैं। सभी के लिए जीवित रहना प्रिय है। (तात्पर्य यह है कि सभी प्राणियों को हिंसा अप्रिय है, और अहिंसा प्रिय है।)
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सव्वे जीवा वि इच्छंति जीविउं न मरिजिउं।
(दशवै. 6/273)
सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता।
FO अहिंसा का आधारः सर्वत्र समत्वपूर्ण आत्मवत् दृष्टि
{3) ___ तुमं सि णाम तं चेव जं परिघेतव्वं ति मण्णसि एवं तं चेव जं उद्दवेतव्वं जति मण्णसि। अंजू चेयं पडिबुद्धजीवी। तम्हा ण हंता, ण वि घातए। अणुसंवेयणमप्पाणेणं, जं हंतव्वं णाभिपत्थए।
(आचा. 1/5/5 सू. 170) EYEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER
अहिंसा-विश्वकोश|l]