Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
र
(२४)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
16
CHAR
धीरे-धीरे उग रहा था। उसकी किरणों के प्रभाव से अंधकार का नाश हो गया था। उसकी प्रथम किरणों के तेज से समस्त संसार कुंकुम (गुलाल) जैसे लाल रंग में नहा गया था। प्रकाश के इस विस्तार से धीरे-धीरे समस्त संसार स्पष्ट दिखाई देने लगा था। ऐसे तेजोमय हज़ारों किरणों वाले जाज्वल्यमान सूर्य के उगने पर राजा श्रेणिक अपनी शय्या से उठे।
19. At the hour of dawn buds of Utpal lotuses started blossoming and a golden glow started spreading with the slowly rising sun. Brighter and more beautiful then the colour of red Ashoka flower, Tesu flower, beak of a parrot, Gunja seed, Rakta flower, talons and eyes of a pigeon, a heap of Javakusum flowers, vermilion, etc., the morning sun was slowly rising on the horizon. The onslaught of its rays had destroyed darkness. Its first rays had coloured everything with a red hue, as if the world was drenched in a solution of vermilion. With the dawning of such a scintillating sun, having infinite rays, King Shrenik got up from his bed. रांजा श्रेणिक की तैयारी
उहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेगवायाम-जोग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते परिस्सन्ते, सयपागेहिं सहस्सपागेहिं सुगंधवरतेल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं मदणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं, सव्विदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भंगएहिं अब्भंगिए समाणे, तेल्लचम्मंसि पडिपुण्णपाणिपाय-सुकुमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पट्टेहिं कुसलेहिं मेहावीहि निउणेहिं निउणसिप्पोवगएहिं जियपरिस्समेहिं अब्भंगण-परिमद्दणुव्वट्ठणकरणगुणनिम्माएहिं अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए संवाहणाए संबाहिए समाणे अवगयपरिस्समे नरिंदे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ। ___ शय्या से उठकर राजा श्रेणिक व्यायामशाला की तरफ गए। उसमें प्रवेश कर उन्होंने शस्त्राभ्यास, कूद, अंगों को मोड़ना, कुश्ती, आसन आदि कई प्रकार के व्यायाम किए। व्यायाम से थक जाने पर उन्होंने सुगन्धित शतपाक, सहस्रपाक तेलों से मालिश करवाई। यह मालिश रस-रक्त आदि सप्त धातु को बढ़ाने वाली है, जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाली, शुक्रवर्धक और बलवर्धक है, तथा अंग-प्रत्यंग को आनन्द देने वाली है। मालिश करने वाले अनुचर कोमल हथेलियों और पगथलियों वाले तथा बलिष्ठ थे। वे तेल लगाने, मालिश करने, पसीना बाहर निकालने आदि मर्दन-कला के विभिन्न अंगों के विशेषज्ञ थे। वे अपने कार्य में प्रवीण (देश-काल के अनुरूप कार्य करने वाले), चतुर और मेहनती थे। इन लोगों
RA
(24)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org