Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र १७. धारिणी रानी श्रेणिक राजा से स्वप्न का अर्थ सुन-समझकर अत्यन्त प्रसन्न हुई और दोनों हाथ जोड़ अंजलि को ललाट पर लगाकर बोली___ "हे देवानुप्रिय ! निःसन्देह आपकी बात सत्य है। यह आशानुरूप, अभीष्ट और इच्छित है। यह स्वप्न-फल प्रमाणित है।" स्वप्न के अर्थ को मन से स्वीकार कर श्रेणिक राजा की आज्ञा लेकर वह स्वर्ण-रजत-मणिरत्नों से मण्डित भद्रासन से उठी और अपनी स्वाभाविक चाल से चलती हुई अपने शयनागार में वापस आई। शय्या पर बैठकर वह सोचने लगी
“मेरा ये मंगलमय स्वप्न अन्य दुःस्वप्नों से कहीं निष्फल न हो जाये इसलिये मुझे देव और गुरुजन विषयक उच्च, मांगलिक और धर्मरस भरी कथाओं की सहायता से जागते रहना चाहिये।" यह सोचकर वह उस रात जागती रही।
17. These words of King Shrenik made Queen Dharini happy and contented. She greeted King Shrenik courteously and with joined palms and exclaimed, “Undoubtedly, beloved of Gods, what you say is true. Your statement is not just desirable, it is also the indicator of the fulfillment of our cherished desires. Your interpretation is absolutely correct." Sincerely accepting the interpretation, she took leave of King Shrenik, got up from her seat and returned to her bedroom with her natural graceful gait. Sitting on her bed she started thinking
“Lest this dream lose its auspicious effect due to later bad dreams, let me keep awake with the help of pious, auspicious, and religious tales about gods and elders." Guided by these thoughts she did not sleep during the rest of the night. राजगृह की सजावट
सूत्र १८. तए णं सेणिए राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! बाहिरियं उवट्ठाणसालं अज्ज सविसेसं परमरम्मं गंधोदगसित्तसुइय-संमज्जिवलित्तं पंचवन्न-सरस-सुरभि-मुक्क-पुष्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डझंत-मघमघंतगंधुयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह कारवेह य; करित्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।
तए णं ते कोकुंबियपुरिसा सेणिए णं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा जाव पच्चप्पिणंति।
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SUTRA
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