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अब तक यही समझा जाता था कि हृदय के कारण उत्पन्न सर्वांग शोफ का मुख्य हेतु केशालों में रक्त के निपीड़ की वृद्धि होती है इस वृद्धि में सहायक होती है केशाल प्राचीरों की अजारकमय स्थिति (anoxia ) परन्तु आज कल मैरिल की गवेषणा ने यह सिद्ध कर दिया है शोफ की उत्पत्ति में सोडियम आयन की रुकावट भी महत्त्व का भाग लेती है । हृद्भेद में वृक्कों में होकर रक्त का प्रवाह बहुत कम हो जाता है । मैरिल का कथन है कि यदि हृदय में रक्त का प्रवाह आधा रह जाय तो वृक्क में वह पे भाग रह जाता है। जिसके कारण गुच्छिकाओं में निपावन कार्य भी घट जाता है इसके कारण ब्रेडले, ब्लेक, होमरस्मिथ के एक दूसरे से विभिन्न मत होने पर भी यह स्पष्ट हो जाता है कि सोडियम आयन का प्रचूषण नालिकाओं द्वारा प्रकृत क्रिया से कहीं अधिक हो जाता है । इस प्रकार शरीर में सोडियम आयन बढ़ने लगता है । जिसके कारण ऊतियों में जलीयांश की वृद्धि होने लगती है जो कि सर्वांग शोफ का कारण है ।
इस मानवीय वैकारिकीपर ऊपर जो विहंगम दृष्टि डाली गई है वह इस क्षेत्र में अनुसन्धान विषय लिया गया है उस पर
की महत्ता को स्पष्ट करने के लिए है । इस ग्रन्थ में जितना ही व्यापक रूप से विचार किया गया है। कुछ प्रकरण रह भी गये हैं जिन्हें अगले संस्करण में पूरा कर लिया जावेगा ऐसी मुझे पूर्ण आशा है । ग्रन्थ की विशालता और उपादेयता प्रत्यक्ष सिद्ध है । मैं आशा करता हूँ कि इस ग्रन्थ का आयुर्वेद कालेजों में ही नहीं मैडीकल कालेजों में भी अच्छा स्वागत होगा ।
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— शिवनाथ खन्ना