Book Title: Aagam Sambandhi Saahitya 04 Aagam Sootr Laghu Bruhat Vishayanukram
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग नमो नमो निम्मलदंसणस्सा पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरुभ्यो नम: म् आगम_संबंधी साहित्य आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: आजमा आजम मूल संशोधक :- पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब अभिनव-संकलनकर्ता :- आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्वर्गस्थ गच्छाधिपति आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघ में श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म० ही है । इस संघ में पूज्य साधू -भगवंत एवं साध्वी - महाराज के लिए उपाश्रय भी है, जहां हर साल चातुर्मास करवा के श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघ में आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है । ऐसे सम्यग् मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स आगम संबंधी साहित्य मूल संशोधक अभिनव-संकलनकर्ता writeawadhuriAVANEARS Tolerances पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] Araveena प्रत-प्राप्ति और पेज-सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855/98253062751 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ਬਸ ਤਕ ਰਸ ਸ ਲ ਸਤ ਤਾਲੂ ਨੂੰ ਬਾਸਰਸ਼ ਨੂੰ ਬਾਹਰ ਲ ਲ ਨ ਪਾਕਸ ਹਲ . आगम S P 2 ਸ ਨ ਲ ਹੈ ਤੇ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग-4 आगमसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: । आगम-सत्र लघ-बृहत विषयानक्रम:[१] अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः- [३प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः उपांग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः [७नन्दयादि-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः आगम-संबंधी-साहित्य] [आय संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.] | (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि) । 01/02/2017, बुधवार, २०७३ महा शुक्ल ५ आगम-संबंधी-साहित्य' श्रेणि भाग-४ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ नमो नमो निम्मलदसाम भानंद-क्षमा ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरू अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: [आगम-संबंधी-साहित्य] आदय सपादक ज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पन सकलनकता (M.Cor "01/02/2017, बुधवार, २०७३ महा शुक्ल आगम-संबंधी-साहित्य श्रेणि भांग पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- "--" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) श्रीआचारांगाद्येकादशांग्याः । . लघुवृहद्विषयानुक्रमौ । अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ मुद्रयित्री मालवदेशान्तर्गतश्रीरत्नपुरीय (रतलाम) श्रीऋषभदेवजी केशरीमलजीत्यभिधाना श्वेताम्बरसंस्था । मुद्रक :- इन्दोर जैनबन्धु मुद्रणालयाधिपतिः श्रेष्ठी जुहारमलजी, पालरेचा, भावनगरीय महोदयमुद्रणालयाधिपतिः श्रेष्ठी गुलाबचन्दजी लल्लुभाइ । वीरसंवत् २४६२ विक्रमसंवत् १९९३ प्रत ५०० ~7~ क्राइस्टसन् १९३७ पण्यं ४-०-० Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामाचारी-संरक्षक, ज्ञानधनी, आगम-संशोधक, तीव्र- मेधावी, समाधिमृत्यु प्राप्त, बहुमुखी प्रतिभाधारक पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब • जिन्होने शुद्ध-श्रद्धा, सम्यक् श्रुत आराधना, यथाख्यातचारित्र के प्रति गति और अंत समय देह-ममत्व के त्याग के द्वारा कायोत्सर्ग नामक अभ्यंतरतप कि मिशाल कायम कि है ऐसे बहुश्रुत आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज का परिचय कराना मेरे लिए नामुमकिन है, फ़िर भी गुरुभक्ति बुद्धि से श्रद्धांजली स्वरुप एक मामुली सी झलक पैस करने का यह प्रयास मात्र है | * चारित्र ग्रहण के बाद अल्प कालमे जो अपने गुरुदेव की छत्रछाया से दूर हो गये, तो भी गुरुदेव के स्वर्ग-गमन को सिर्फ़ कर्मो का प्रभाव मानकर अपने संयम के लक्ष्य प्रति स्थिर रहते हुए अकेले ज्ञान-मार्ग कि साधना के पथ पर चले । पढाई के लिए ही कितने महिनो तक रोज एकासणा तप के साथ बारह किल्लोमिटर पैदल विहार भी किया | लेकिन अपने मंझिल पे डटे रहे, और परिणाम स्वरुप संस्कृत एवं प्राकृत भाषा का प्राचीन लिपिओ का, व्याकरणन्याय - साहित्य आदि का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया। जैन आगमशास्त्रो के समुद्र को भी पार कर गए। • एक अकेला आदमी भी क्या नहीं कर शकता? इस प्रश्न का उत्तर हमें इस महापुरुष के जीवन और कवन से मिल गया, जब वे चल पड़े देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के स्थापित पथ पर बिना किसी सहाय लिए हुए सिर्फ अकेले ही "जैन आगम शास्त्रो" को दीर्घजीवी बनाने के लिए अनेक हस्तप्रतो से शुद्ध-पाठ तैयार किये | दो वैकल्पिक आगम, कल्पसूत्र और निर्युक्तिओ को जोड़कर ४५ आगम-शास्त्रो को संशोधित कर के संपादित किया । फिर पालीताणा में आगम • मंदिर बनवाकर आरस पत्थर के ऊपर ये सभी आगम साहित्य को कंडारा, सूरतमें ताम्रपत्र पर भी अंकित करवाए और "आगम मंजूषा" नाम से मुद्रण भी करवा के बड़ी बड़ी पेटीमें रखवा के गाँव गाँव भेज दिए । वर्तमानकालमे सर्व प्रथमबार ऐसा कार्य हुआ | • सिर्फ मूल आगम के कार्य से ही उन के कदम रुके नही थे, उन्होंने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, निर्युक्ति, अव चूरी, संस्कृत - छाया आदि का भी संशोधन-सम्पादन किया | उपयोगी विषयो के लिए उन्होंने एक लाख श्लोक प्रमाण संस्कृत प्राकृत नए ग्रंथो की रचना भी की । कितने ही ग्रंथों की प्रस्तावना भी लिखी | ये सम्यक्–श्रुत मुद्रित करवाने के लिए आगमोदय समिति, देवचंद लालभाई इत्यादि विभिन्न संस्था की स्थापना भी की । * ज्ञानमार्ग के अलावा सम्मेतशिखर, अंतरीक्षजी, केशरियाजी आदि तीर्थरक्षा कर के सम्यक दर्शन-आराधना का परिचय भी दिया । राजाओं को प्रतिबोध कर के और वाचनाओ द्वारा अपनी प्रवचन प्रभावकता भी उजागर करवाई | बालदिक्षा, देवद्रव्य- संरक्षण, तिथि-प्रश्न इत्यादि विषयोमे सत्य-पक्षमें अंत तक दृढ़ रहे | जैनशासन के लिए जब जरुरत पड़ी तब अदालती कारवाईंओ का सामना भी बड़ी निडरता से किया था | * सागरानंदजी के नाम से मशहूर हो चुके पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजीने अपने परिवार स्वरुप ७०० साधू-साध्वीजी भी शासन को भेट किये | ....ये थे हमारे गुरुदेव "सागरजी " .... .. मुनि दीपरत्नसागर...: ...... ~8~ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयमैकलक्षी, उपधान-तप-प्रेरक, चारित्र-मार्ग-रागी, प्रवचन-पटु, सुपरिवार-युक्त पूज्य गच्छाधिपतिआचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब ... परमपूज्य आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी के पाट-परंपरामे हुए तिसरे गच्छाधिपति थे पूज्य आचार्य श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी, जो एक पून्यवान् आत्मा थे, दीक्षा ग्रहण के बाद अल्पकालमे ही एक शिष्य के गुरु बन गये | फ़िर क्या ! शिष्यो कि संख्या बढती चली, बढ़ते हुए पुन्य के साथ-साथ वे आखिर 'गच्छाधिपति' पद पे आरूढ़ हो गए | इस महात्मा का पुन्य सिर्फ शिष्यों तक सिमित नही था, वे जहा कहीं भी 'उपधान-तप' की प्रेरणा करते थे, तुरंत ही वहां 'उपधान' हो जाते थे | प्रवचनपटुता एवं पर्षदापुन्य के कारण उन के उपदेश-प्राप्त बहोत आत्माओने संयम-मार्ग का स्वीकार किया | खुद भी संयमैकलक्षी होने के कारण चारित्रमार्ग के रागी तो थे ही, साथसाथ ज्ञानमार्ग का स्पर्श भी उन का निरंतर रहेता था | आप कभी भी दुपहर को चले जाइए, वे खुद अकेले या शिष्यपरिवार के साथ कोई भी ग्रन्थ के अध्ययन-अध्यापनमें रत दिखाई देंगे। ... ये तो हमने उनके जीवन के दो-तीन पहेलु दिखाए | एक और भी अनुसरणीय बात उन के जीवन में देखने को मिली थी- 'आराधना-प्रेम'. कैसी भी शारीरिक स्थिति हो, मगर उन्होंने दोनों शाश्वती ओलीजी, पोष)दशमी, शुक्ल पंचमी, त्रिकाल देववंदन, पर्व या पर्वतिथि के देववंदन आदि आराधना कभी नहीं छोड़ी | आखरी सालोमें जब उन को एहसास हो गया की अब 'अंतिम-आराधना' का अवसर नजदीक है, तब उन के महमें एक ही रटण बारबार चाल हो गया“अरिहंतन शरण, सिद्धनं शरण, साधनं शरण, केवली भगवंते भाखेला धर्मन् शरण " इसी चार शरणो के रटण के साथ ही वे समाधि-मृत्यु-रूप सम्यक निद्रा को प्राप्त हुए थे | ऐसे महान् सूरिवर को भावबरी वंदना | ... मुनि दीपरत्नसागर... अनुदान दाता संस्था:- “श्री परम-आनंद श्वेतांबर मर्तिपूजक जैन संघ वीतराग सोसायटी, प्रभदास ठककर कोलेज रोड. पालडी. अमदावाद करीब ५० साल पहेले परम पूज्य स्व. गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेंद्रसागरसूरीजी म.सा. ही है | इस संघमें पूज्य साधू भगवंत एवं साध्वीजीओ का उपाश्रय भी है जहा हर-साल चातुर्मास करवाके श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है | इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है। ~9~ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - . . - . . - .. - .. .. - .. - .. 'सागर-समुदाय-एकता-संरक्षक, तीर्थ-उद्धार-कार्य-प्रवृत्त, गुणानुरागी' इस "आगम-संबंधी-साहित्य" श्रेणि भाग १ से ४ के संपूर्ण अनुदान के प्रेरणादाता पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसरिजी महाराज साहेब पूज्यपाद स्व. गच्छाधिपति देवेन्द्रसागर-सूरीश्वरजी के विनयी शिष्य एवं दो गच्छाधिपतिओ के मुख्य सहायक के रुपमे 'सागर समुदाय' के सुचारु संचालक | पूज्य हर्षसागरसूरिजी, जिन की प्रेरणा से ये “आगम संबंधी साहित्य" के मद्रण के लिए संपर्ण द्रव्यराशि प्राप्त हुई, उनका अत्यल्प परिचय यहां करेंगे | समुदाय: एकता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हुए ये महात्मा समुदाय के साधु-साध्वीजी की आवश्यकताओकी पूर्ती के लिए भी प्रवृत्त रहेते है, प्राचीन-अर्वाचीन तीर्थो के | जीर्णोद्धार एवं विकाश के लिए भी उत्साहित रहेते है, ज्ञान-क्षेत्र अछूता न रहे इसीलिए अनुमोदना, अनुदान एवं समय मिलने पर शास्त्र-वांचनमें भी रूचि रखते है | समुदाय के जरूरतमंद साध्वीजी भगवंतो के आवास का विषय हो या साध्वीजी के विहारमें मजदूर का वेतन चुकाना हो, ऐसे छोटे-छोटे कार्यों के प्रति भी उन का लक्ष्य रहेता है | दर्शन-शुद्धि के लिए जब उन्होंने समग्र भारतवर्ष के १०० साल तक के पुराने जिनालयो में १८ अभिषेक की प्रेरणा की, उस वक्त लगभग | सभी अभिषेक-सामग्री की द्रव्य-शुद्धि का ख़याल रखते हए अपनी मेधावी बुद्धि का परिचय दिया था, साथमे अनकंपा भाव से पुजारी या विधि करानेवाले को यत्किंचित् बहमान प्रगट करते हए कुछ धन-राशि प्रदान करवाई। ऐसे बहुगुण-संपन्न महात्मा पूज्य आचार्यश्री हर्षसागर-सूरिजी को हम भावभरी वंदना करते हए इस श्रुतकार्य का प्रारंभ करने जा रहे है। ... मुनि दीपरत्नसागर [कात्रेज]पूना, शंखेश्वर, कपडवंज, प्रभासपाटण आदि स्थानोमे आगममंदिर के प्रेरक, कर्मग्रंथ अभ्यासु, निस्पृह महात्मा पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलतसागर-सूरीश्वरजी महाराज साहेब (एवं) अजातशत्रु, स्वाध्याय-रसिक, प्रशांतमूर्ती और अपने गुरु के प्रीतिपात्र परम पूज्य आचार्य श्री नंदीवर्धनसागर-सूरिजी महाराज साहेब इस पवित्र श्रुत-कार्यमे दोनो सूरिवरो का स्मरण करते हुए कोटि कोटि वंदना के साथ ........मुनि दीपरत्नसागर ~10~ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक: लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम पृष्ठांक: । पृष्ठांक: आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: क्रमांक: | आगम का नाम | | लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम | आगम का नाम पृष्ठांक: | पृष्ठांक: अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: ०१ . आचार ०३३ | ०७ . उपासकदशा सूत्रकृत् ०५९ अंतकृद्दशा R ०८६ अनुत्तरोपपातिकदशा समवाय ०२२ प्रश्नव्याकरण . भगवती ०२३ १२० विपाकश्रुत • ज्ञाताधर्मकथा ---------- १७० . १७३ . स्थान ०२१ ०३० १७६ १०९ ०३१ {២២ ०३१ १८१ (१५९ उपांग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: १२ . औपपातिक SO जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति १३ . राजप्रश्नीय निरयावलिका १४ . जीवाजीवाभिगम . कल्पवतंसिका . प्रज्ञापना २१ . पुष्पिता १६+१७ |. सूर्य+चन्द्र-प्रज्ञप्ति १२२ . पुष्पचुलिका डर . वृष्णिदशा पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ~11~ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक: आगम का नाम २४ २५ २६ २७ २८ ४० ४१/१ ४१/२ ४४ चतुःशरण ● आतुरप्रत्याख्यान * महाप्रत्याख्यान * भक्तपरिज्ञा तंदुलवैचारिक • आवश्यक * पिंडनिर्युक्ति . ओघनिर्यक्ति * नन्दी आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम क्रमांक पृष्ठांक: पृष्ठांक: प्रकीर्णक-सूत्र लघु- बृहत् विषयानुक्रमः २९ * संस्तारक ३० ● गच्छाचार ३१ * गणिविज्जा ३२ आगम का नाम * देवेन्द्रस्तव * मरणसमाधि 33 ... [३४-३९] छेदसूत्र - वृत्ति का विषयानुक्रम पूज्य आगमोद्धारकश्रीने नही बनाया ... मूल-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः ४२ * दशवैकालिक ४३ • उत्तराध्ययन चूलिका - सूत्र लघु- बृहत् विषयानुक्रमः ४५ * अनुयोगद्वार ~ 12 ~ लघुअनुक्रम बृहदनुक्रम पृष्ठांक: पृष्ठाक: पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . १०७ ८६९ आगम-सूत्राणाम् प्रत-क्रमांक एवं दीप-क्रमांक आगम आगम का नाम प्रत-अनुसार | दीप | आगम आगम का नाम प्रत-अनुसार दीप क्रम | कुल-सूत्र | कुल-गाथा | अनुक्रम | क्रम | कुल-सूत्र | कुल-गाथा अनुक्रम ०१ आचार | ४०२ | १४७ । ५५२ । १६ . सर्यप्रज्ञप्ति १०७ १०३ ०२ . सुत्रकृत ०८२ |७२३ ८०६ १७ - चन्द्रप्रज्ञप्ति १०७ २१८ २०३ . स्थान ७८३ | १६९ १०१० | १८ |. जंबदवीपप्रज्ञप्तिमा १७८ | १३१ ३६५ ०४ . समवाय १६० ०९३ ३८३ १९ . निरयावलिका ०२० ०२१ ०५. भगवती ११४ १०८७ २०. कल्पवतंसिका ००२ ००१ ००५ . ज्ञाताधर्मकथा १६५ ०५७ २४१ २१ . पष्पिता ००६ ००२ ०११ ०७ |. उपासकदशा ०५८ ०१३ ०७३ | २२ . पुष्पचूलिका ००१ | ०८ . अंतकृद्दशा ०२७ ०१२ ०६२ २३. वृष्णिदशा ००१ ०९ |. अनत्तरोपपातिकदशा | ००६ । ००२ | ०१३ | २४ . चत:शरण १०. प्रश्नव्याकरण ०३० ०१४ ०४७ । २५ . आतुरप्रत्याख्यान ०७० ०७१ विपाकश्रुत ०३४ . महाप्रत्याख्यान १४२ . औपपातिक ०४३ ०३० ०७७ | २७ . भक्तपरिज्ञा १७२ १३ - राजप्रश्नीय ०८५ ०८५ । २८ - तंदलवैचारिक १३९ १६१ १४ . जीवाजीवाभिगम २७३ | ०९३ । ३९८ । २९ . संस्तारक १३३ १५ . प्रज्ञापना ३५२ । २३१ । ६२२ । ३० . गच्छाचार १३७ ००१ ००३ ००२ ००५ ०६३ ०६३ ००३ ०४७ | २६ १४२ १७२ १२ ०२० १३३ १३७ आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र- १ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकरीने संपादित नही किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नहि हुआ ~13~ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम आगम का नाम क्रम आगम-सूत्राणाम् प्रत-क्रमांक एवं दीप-क्रमांक प्रत-अनुसार दीप आगम आगम का नाम कुल-सूत्र | कुल-गाथा | अनुक्रम क्रम प्रत-अनुसार । दीप कुल-सूत्र | कुल-गाथा अनुक्रम .... ८१२ ११६५ ५४० ०२१ ५१५ ३१ . गणिविज्जा ३२ . देवेन्द्रस्तव . मरणसमाधि .४०. आवश्यक ४१/१ . पिंडनिर्यक्ति ३३ . ओघनियुक्ति दशवैकालिक . उत्तराध्ययन . नन्दीसूत्र . अनयोगदवार १६४० १७३१ ०८२ । ०८२ | ४१/२ ३०७ ३०७ ४२ દદરૂ. ६६४ ४३ ०२१ ०९२ ४४ ६७१ । ७१२ । ४५ १ | ०५० ०८८ ०५९ १५२ ०९० १६३ ----- | १४१ ३५० | RA | | | • आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र- १ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकरीने संपादित नही किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नहि हुआ ~14~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [अंगसूत्र-लघुबृही यानक्रमौ] इस प्रकाशन की विकास-गाथा * यह प्रत "अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ' के नामसे सन १९३७ (विक्रम-संवत १९९३) में 'श्री ऋषभदेव केशरीमल श्वेताम्बर संस्था' द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | * पूज्यपाद् आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेबने 'आचारांग' वगैरेह ११ अंगसूत्रो के मूलसूत्र एवं उस पर पूर्वाचार्य रचित वृत्ति आदि का संपादन किया था | उन प्रतोमे जो मूलसूत्र, गाथा, वृत्ति आदि थे उन सभी सूत्र आदि के विषयो का अनुक्रम संक्षेप और विस्तार से लिखकर इस प्रतमे प्रकाशित करवाया है | अर्थात् ११ अङ्गसूत्रो के लघु और बृहत् विषयानुक्रम के रचयिता, संपादक और प्रकाशक श्री आगमोद्धारक आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब ही है। * पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेवश्रीने इसी तरह उपांगसूत्रो, प्रकीर्णकसूत्रो और नन्दी आदि अन्य आगमसूत्रो के सूत्र आदि के विषयो का अनुक्रम भी संक्षेप और विस्तार से लिखकर संपादन और प्रकाशन करवाया है। * हमारा ये प्रयास क्यों? * आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, अब तक मेरे प्रकाशित किये हुए पुस्तको के १,००,००० से ज्यादा पृष्ठ हो चुके है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे प्रत संबंधी उपयोगी माहिती लिख दी है, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौन से वर्ण का क्रम चल रहा है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके | * पूज्यपाद आगमोद्धारकरी ने आगम संबंधी ५२ विषयो को वर्गीकृत किया था, आज भी उनमे से ऐसी कई प्रते मिलती है, जिसमे ये विभाजन-क्रमांक देखने को मिलते है, उनमे से थोडे विषयो का काम हुआ भी है, जो मुद्रित स्थितिमे भी प्राप्त है | * शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म.सा. की प्रेरणा से और श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'आगम-संबंधी-साहित्य' भाग-4 का मुद्रण हुआ है, हम उनके प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है। का प्रसार का कर पान अन्य काम तिपूजक जन संध पाता .... मुनि दीपरत्नसागर. ~15~ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आद्य संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा.] अंगसूत्र लघु विषयानुक्रम: पुनः सकलनकतो आगम दिवाकर मुनि दीपरत्नसागर(M.Com..M.Ed.,Ph.D.,श्रुतमहर्षि) ~16~ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक जाचारांगे लघुक्रमः। यहां आचारांगे लघुविषयानुक्रमः ॥ सूत्राणि ४०२ सूत्रगाथाः १४७ नियुक्तिगाथाः ३५६ १ ॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम स.६२-१७१ निशत्रपरिमाध्ययनम् १५.८१ | १ उद्देशः ।७२११९५ नि० (११०)। ३ उद्देशः ।१२१११२० (१७०)। १ उद्देशः । १३ । ६७ नि० (२७) २ , ७८।१९६ नि० (११६) ४, ।१२६ (१७४) २, ।१८।१०५ नि० (३९) ३, ८२।१० (१२४) १४१-२३४ नि० सम्यक्त्याध्ययनम् ४ १९५ ३, ।३१ । ११५ नि० (४८) ४ , ८६ (१२८) | १ उद्देशः।१३०।२२६ नि० (१८१) ४ , ।३९ । १२५ नि०(५६) ५ , ।९६ (१३९) २ , ।१३४।२३३ नि० (१८८) ५ । । ४८ । १५१ नि० (६६) ६ , ।१०५।३० (१४८) ३ , ।१३७।२३४ नि० (१९२) ६ । ।५५ । १६४ नि० (७३) १२६-२१३ नि० १२० शीतोष्णीया ४ ।१४१ (१९५) ७ , ।६२ । १७१ नि० (८१) ध्ययनम् ३१७४ १७२-२४८ नि०१३ लोकसाराध्यय१०५-१९६नि०३७ लोकविजयाध्यय- १ उद्दशः १११२१शन०(१५८) नम् ५२३१ नम् २ १४८ २, ।११५१९% (१६४)। १ उद्देशः।१४६।२४८ नि० (२०३) सुत्ताणि ~17~ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. "आचार"] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) आचारांगे ॥ २ ॥ २ उद्देशः । १५१ .३ । १५६ । १६० । १६६ (२०८) (२१३) (२१८) (२२६) 11 37 ५ 17 22 ६ | १७२ । १३ (२३१) १९३-२५१ नि० १६ घुताध्ययनम् ६२५८ १ उद्देशः । १७७/२५१।१६४ (२३९) " । १८१ २ ३ | १८४ "1 ४ । १९० 19 | १९३ 37 (२५८) (सप्तमं व्युच्छिन्नम् ॥ ७ ॥ ) २२३-२७४ नि० ४१ विमोक्षाध्यय २ उद्देशः । २०३ | २०७ | २१२ | २१४ (२४७) (२५३) ६ ७ " " " । २१९ । २२३ 19 ८ | ४१७ 17 (२४३) २८४ नि० १११० उपधानश्रुताध्यय 17 (२७३) (२७६) (२७९) (२८२) 29 "" (२८५) (२८९) (२९५) नम् ९ ३१५ १ उद्देशः । २८४ । ६४० (३०६) | ८०४ (३०९) । ९४७ (३१२) (३१५) ~ 18~ ३ ४ । १११ " नम् ८ २९५ ( इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः ॥ १ ॥ ) १ उद्देशः । १९८ । २७४ नि० (२६९) २८६-२९७ नि० पिण्डेपणाध्ययनम् १३५८ १ उद्देशः । २३२ । २९७ नि० (३२६) २ | २३५ (३३०) ३ | २४४ ४ | २४७ " ५ ६ ७ ८ 21 " | २५३ (३४०) । २५९ (३४३) । २६५ (३४६) | २७१ (३४९) | २७८ (३५३) १० । २८१ (३५४) ११ । २८६ " (३५८) ३३३-३०७ नि० शय्यैषणाध्ययनम् २ ३७४ १ उद्देशः । २९४ । ३०७ नि० (३६४) २ । ३०९ (३७१) " " " 11 " " (३३३) (३३६) " लघुक्रमः ॥ ॥ २ ॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक लघुक्रमः। यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम आचारांगेगा ३ उद्देशः । ३३३ (३७४)| १ उद्देशः । ३७५ (३९९) | ३९४-३२७नि० रूपसप्तककाध्यय३५४-३१५ नि० ईर्याऽध्ययनम् ३ ३८४ २ , । ३७७ (४०१) नम् १२४१५ ॥३ ॥ |३९६ परक्रियासप्तककाध्ययनम् १३ ४१६ १ उद्देशः। ३४२१३१५ नि०(३७८)| ३८५-३२२ नि० अवग्रहप्रतिमाध्यय नम् ७४०६ ३९७-३२९ नि०अन्योऽयकियासप्त२ , ३४९ (३८१) ककाध्ययनम् १४४१७ ३ , ।३५४ १ उद्देशः।३८१ ॥३२२ नि० (४०४) (३८४) (इति सप्तसप्तिकाख्या द्वितीया चूला ॥२॥) २ (४०६) ३९२ | । ।३८५ ३६३-३१७ निभाषाध्ययनम् ४ ४०२-३४४ नि०१३५७ भावनाध्यय (इति प्रथमा चूला ॥१॥) १ उद्देशः।३५८।३१७ नि० (३८८)| नम् १५४२५ ३८६-३२३ नि० स्थानसप्तककाध्यय२ (इति तृतीया चूला) , । ३६३ (३९२) नम् ८४०७ ३७४-३१८ नि० ववैषणाध्ययनम् ५ ३९८ ३८७ निषीधिकासप्तककाध्ययनम् ९४०८ ४०२-३५६ नि०१४७ विमुक्त्यध्यय नम् १६ ४३२ १ उद्देशः॥३७१।३१८ नि० (३९६) ॥ इति चतुर्थी चूला॥ ध्ययनम् १०४११ | २ ।३७४ (३९८) | ३९३-३२६ निशब्दसप्तककाध्यय ॥ इत्याचाराङ्गसूत्रस्य लघुविष३७७ पात्रषणाध्ययनम् ६ ४०१ | नम् ११४१३ यानुक्रमः॥ सुत्ताणि - ececcce ॥३॥ ~19~ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सूत्रकृताङ्गे ॥ अथ सूत्रकृताङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः॥ ॥ सूत्राणि ८२ सूत्रगाथाः ७२३ नियुक्तिगाथाः २०५॥| लघुक्रमः) ८८-३५ नि० समयाध्ययनं १ ५२ | ४ उद्देशके १२४६-५३ नि०(१०१) | १२६ नि०५७९७याथातथ्याध्ययनं१३ २४० ॥४ ॥ १उद्दशक २७-३५ नि० (२९) ६१-२९९ रखीपरिज्ञाध्ययनं १२०।१३१ नि०६०६७ ग्रन्थाध्ययन १४ . २५२ २ , ५९ (४०) १ उद्देशके ६१ नि० २७७% (११४) | १३६नि०६३१६ आदानीयाध्ययनं १५ २६० ३ , ७५ (४७) २, | २४१ नि०१ गाथाध्ययनं १६ २६६ | २९९ (१२०) । इति प्रथमः श्रुत स्कन्धः ॥ ४ , ८८ (५२) | ८२-३५१, नरकविभक्त्यध्ययनं ५ १४१ १६४ नि०१६ पुण्डरीकाध्ययनं १ २९८ १६४-४४ वैतालीयाध्ययनं २ ७७ १ उद्देशके ८२ नि० ३२६७, (१३४) | १६८ नि०४३ क्रियास्थानाध्ययनं २ ३४१ १ उद्देशक ११०-४१ नि० (६०) २ ३ ५१ (१४१) १७८-६३नि६३५७ आहारपरिज्ञाध्ययन३३६० २, १४२-४४ नि० (७०) ८५नि० ३८० श्रीमहावीरस्तत्यध्ययनं ६१५२ १८०नि०६८ प्रत्याख्यानाध्ययनं ४ ३७० ३ , १६४ (७७) ९०नि०४१० कुशीलपरिभाषाध्ययनं ७१६४ १८शन० २५८ आचारभुताध्ययनं ५ ३८४ का२४६-५३ उपसगांध्ययनं ३ 011९८नि०४३६ श्रीवीर्याध्ययनं २००नि०७२३ भाद्रकाध्ययनं ६४०४ १०२ नि०४७२8 धर्माध्ययन ९ १८५ | २०५ नि०८२ नालन्दीयाध्ययनं ७ ४२५ १उद्देशके १८१-५०नि० (८३) K१०६ नि०४९६७ श्रीसमाध्यध्ययनं १०१९४ ॥ इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः॥ २, २०३ (८८) ११५ नि०५३४ श्रीमार्गाध्ययनं ११ २०७ ॥ इति सूत्रकृताङ्गस्य लघुविषKI ३, २२४ (९४) १२१ नि०५५६समवसरणाध्ययनं १२ २२४/ यानुक्रमः। ॥४ सुत्ताणि ~20~ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) स्थानाङ्गे ॥ ५॥ ॥ अथ स्थानाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः ॥ ५७ एकस्थानकाध्ययनं १ ॥ सूत्राणि ७८३ सूत्रगाथाः १६९ ॥ (१५६) २ उद्देशके ४४० ३८ ३ उद्देशके १९० - १३० १०१ ४ २३४ ३८८-३१ चतुःस्थानकाध्ययनं " ३ (५७) (३३१) ४७४-३९७ (३५१) ५४०-४४ पट्स्थानकाध्ययनं ६ ३८० ५९३ - ८६ सप्तस्थानकाध्ययनं ७ ४१५ ६६० - १०८ अष्टस्थानकाध्ययने ८ ४४३ (१७९) ४ २८९ (२०५) (२३३) (६२) १ उद्देशके २७७ (८५) २ (१०१) ३ ३ १७९ ३१०-२०७ ३३९ (२६३) ४ ३८८-३१७ (२८९) ४७४-३९ पंचस्थानकाध्ययनं ५ ३५२ १ उद्देशके ४११-३४ (३०७) ११८-७० द्विस्थानकाध्ययनं २ १ उद्देशके ७६ २ ८० 12 ३ 19 ४ 77 ९४-३७ ११८-७ २३४ - १३ त्रिस्थानकाध्ययनं १ उद्देशके १५२ १६७-१२७ 27 (१२६) (१३७) "" "" 11 ~21~ " ७०३ - १४१ नवस्थानकाध्ययनं ९ ४७० ७८३ १६९ दशस्थानकाध्ययनं १० ५२८ ॥ इति स्थानाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः ॥ लघुक्रमः 10 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-४. “समवाय" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥ अथ समवायाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः॥ ॥१६० सूत्राणि १६८ सूत्रगाथाः॥ १३५-६१० एकाङ्कादारभ्य यावदेकां ।१३७ सूत्रकृताङ्गविवेचनम् । १११ | १४० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रविवेचनम् ११५ सागरोपमकोटाकोटीं समवायाः १०५ १३८-६२७ स्थानाङ्गविवेचन ११२ | १४१ शातधर्मकथाङ्गर्विवचनं १३६ गणिपिटके आचाराङ्गविवेचनम् १०९ | १३९ समवायाजविवेचन .११४ । १४२ उपासकदशाङ्गविवेचनं १२० १२० । CI ||५॥ प्रत सूत्रांक यहां देखीए समवावा लघुक्रमः॥ १४१ ॥६ ॥ १४५ १४३ अन्तरुदशाङ्गविवेचनम् १२१ | १५० भवनादिवर्णनम् १४० | १५७-११९० समवसरणं १४४ अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गवि० १२३ | १५१ नारकादिस्थितिः अवसर्पिणीजिनादि च १५२ १४५ प्रश्नव्याकरणावि० १२५ १५२ शरीरसूत्रम् . १५८-१४० अबसर्पिणीचक्रयादि १५३ १४६ विपाकवतविक १२८ १५३-७४ अवधिवेदनालेश्याऽऽ १५९-१६८० ऐरावतादौ जिनादि १५४ १४७-६५७ रष्टिवादवि० | १५४ आयुर्वन्धभेदोत्पादोद्वर्तनाविर- १३६-१६० निगमनम् १४८ गणिपिटकविराधनाराधना हाकर्षाः १४९ ___फलम् १३३ १५५ संहननसंस्थानानि । ॥ इति समवायाङ्गस्य लघुविष१४९-७२ राशिप्रज्ञापनास्थानानि १३६ | १५६ वेदः १५० यानुक्रमः॥ १३२ .दाराः १४७ १५० दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~22~ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ता' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती' | पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) विषयानुक्रमः ॥ भगवती सूत्रे ॥७॥ ॥ अथ भगवतीसूत्रस्य ८३-१८० प्रथमं शतकम् १ १ उद्देशः । २० । ५७ २ 11 ७ ८ 11 19 22 ७ उद्देशः । ११४ ८ । ११५ | ११६ " १० " । १२४ । २२ १७०-२०० तृतीयं शतकम् ३ १ उद्देशः । १४० | २५७ २ | १४८ 27 ३ । १५४ ४ ५ 11 "" " " 19 । २७ । ६० | ३८ | ७ । ४३ । ८६ । ५० । १६७ プラチ "9 39 १०८ | १६७ । २८ । १६८ । ३०० । १६९ (३८) ७ (५२) ८ (६२) ९ (६७) (७७) (१४३) (१४६) (१४७) (१५२) २०२ (१६९) (१८१) (१८६) । १५९ (१९०) । १६० । २६ (१९१) | १६३ (१९४) (२०० ) ६ उद्देशः । ५७ । १८७ | ६३ । ७२ | ८० १० | ८३ १२४-२२७ द्वितीयं शतकम् २ (२०१) (") ३ ४ ५ "1 १० उद्देशः । १७० १७४-३४ चतुर्थ शतकम् ४ ४ उद्देशाः । १७१ । ३२ ८ | १७२ 27 ७ 7 17 ९ । १७३ १० १७४ | ३४ २२७-३६७ पञ्चमं शतकम् ५ १ उद्देशः । १७८ । ३४० २ | १८१ | १८३ । १९९ । २०२ "1 " " 11 73 "" " "" " ॥ ८६९ सूत्राणि १९४* सूत्रगाथाः ॥ १ उद्देशः । ९५ । १९ (१२९) ~ 23~ (८४) (९०) (९४) (१०२) (१०८) १५२ (२०२) २०६ (२०३) (,, ) (२०५) (२०६ ) २४९ (२११) | २११ । २१९ । ३५ (२३९) ३ ४ ३ ४ (२१४) ५ (२१६) ६ (२२४) ७ (२२५) ८ (२३२) ९ १० "" "7 "" "1 " ८ उद्देशः । २२१ (२४६) ९ । २२६ । ३६ (२४९) १० । २२७ (२४९) २५८-५२४ षष्ठं शतकम् ६ "" १ उद्देशः । २३० ३८ २८६ (२५२) (") २ । २३१ " । २३७ । ४० (२५९) । २३९ । ४२ (२६७) | २४२ । ३५ (२७४) " "" 19 " " " 77 । ९६ । ९७ । २० १९८ 27 25 (१३१) । ११२ । २१७ (१४२) । ११३ (,, ) (१३०) (,, ) | २४४ | २४७ | ५०० | २५० | ५१ | २५३ (२७४) (२७८) (२८२) (२८४) | २५८ | ५२ (२८६) ॥ ६ ॥ लघुक्रमः ॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत m मगवती मालपक्रमः सूत्रांक यहां देखीए ur ३०७-५६० सप्तमं शतकम् ७ ३२७ । ३ उद्देशः। ३२५ (३६६) | ३४ उद्देशः । ३९२ (४९२) १ उद्देशः । २६९ । ५३७ (२९४) ४ , ।३२६ (३६७) ४०७-६५७ दशमं शतकम् १० ५०८ २ , । २७३ । ५४ (२९९) ५ ५ , ३३० (३७३) १ उद्देशः । ३९४ । ६२७ (४९४) ३ , । २७९ (३०२) । ३३५ (३७८) २ , । ३९९ (४९८) ४ , । २८० । ५५७ (३०३) ७ , । ३३७ (३८२) ३, । ४०२ । ६४० (५००) । २८१ । ५६६ (,) ८ , ३४३ । ५९७ (३९४) ४ , ।४०३ (५०२) । २८७ (३०९) ९ ।३५१ (४१०) ५ , ।४०५ (५०६) ७ , १२९१ (३१२) | १०, । ३५९ (४२५) ६ ” । ४०६ । ६५० (५०७) (३१५) | ३९२-६१६ नवमं शतकम् ९ ४९२ ३४, । ४०७ (५०८) (३२३) १ उद्देशः । ३६० । ६०७ (४२६) ४३५-७१० एकादशं शतकम् ११ ५५२ १०, ।३०७ २ । ३६२ । ६१० (४२८) (३२७) ३०। ।३६३ (४३०) १ उद्देशः । ४०८ । ६९० (५१३) ३५९-५९७ अष्टमं शतकम् ८ ४२५ ३१, ।३६९ (४३८) | ८ ।४१५ (५१४) १ उद्देशः । ३१४ । ५७ (३४०) ३७८ | ९ , । ४१८ । ७० (५२१) २ , । ३२२ (३६४) । (४९०)। १०, । ४२२ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम orm or ur vra ।२९७ (५३२) 1 सुत्ताणि ॥८ ~240 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- "भगवती । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) भगवती सूत्रे ॥ ९ ॥ ११ उद्देशः । ४३१ | ७१ 71 १२ | ४३५ ४६८-७२ द्वादशं शतकम् १२ १ उद्देशः । ४३९ । ७२ | ४४२ । ४४३ | ४४७ । ४५१ । ४५५ । ४५७ । ४५९ ३ ४ 60 " ८ "" 11 (५७५) (५७१) (५८१) (५८२) । ४६५ (५८७) " १० | ४६८ (५९६) ४९.८-७४३ त्रयोदशं शतकम् १३ ६२९ " " 23 " (५५०) (५५२) ५९६ (५५६) " (५६०) (५६१) (५७०) १ उद्देशः । ४७१ । ७३७ (६०१) २ | ४७२ "" (६०४) .) ३ | ४७३ 29 ४ | ४८६ । ७४ | ४८७ । ४९१ । ४९५ । ४९६ । ४९७ । ४९८ ६ ७ ८ "" 27 21 ३ 17 " 25 27 "" 29 " ) १० (६२९) ५३८-७५ चतुर्दशं शतकम् १४ ६५८ १ उद्देशः । ५०१ । ७५० (६३२) | ५०४ (६३६) (६३८) । ५०८ ~ 25~ (६१६) (",) (६२१) (६२६) (,, ) (६२८) ४ उद्देशः । ५१३ ५ । ५१६ ६ । ५१९ ७ । ५२५ ८ । ५३२ ९ । ५३७ (६५७) १० 15 । ५३८ (६५८) ५६१ पञ्चदशं शतकम् १५ ६९६ ५९०-७६ षोडशं शतकम् १६ ७१९ १ उद्देशः | ५६६ | ७६ (६९९) २ । ५७० । ५७२ । ५७३ । ५७७ ३ ४ " " 27 " "" 21 "" " 11 (६४१) (६४४) (६४६) (६५१) (६५५) (७०२) (७०४). (७०५) (७०८) [लघुक्रम | ॥ ९ ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- "भगवती । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) भगवती सूत्रे ॥१० ॥ ६ उद्देशः । ५८२ ७ । ५८३ । ५८७ । ५८८ । ५८९ । ५९० सप्तदशं शतकम् १७ ७३१ (७२२) (७२५) (७२७) (७२८) । ६०४ (७२९) १० | ६१६ (७३१) ६४८-८० अष्टादशं शतकम् १८ ७६१ ८ ९ " " 11 १० " १४, ११६-७७ ३ ४ ५ १ उद्देशः । ५९४ । ७७ 21 "1 11 " " । ५९८ । ६०१ । ६०३ (७१३) (७१४) (७१७) (७१९) (") (") १ उद्देशः । ६१७ । ८० २ । ६१८ ३ । ६२३ । ६२६ | ६३० | ६३२ | ६३९ (७३७) (७३९) (७४३) (७४६) (७४७) (७४९) (७५४) | ६४२ (७५६) | ६४३ 77 (७५७) १० | ६४८ (७६१) ६६२-८५ एकोनविंशतितमं शत 37 कम् १९ ७७३ ४ ५ ७ ८ 29 11 " " "" 11 " १ उद्देशः । ६४९ २ । ६५० 19 ~26~ (७६१) (७६२) ३ उद्देशः । ६५४ ४ । ६५५ 37 ६ ७ ८ ५ " ६ 21 " " । ६५७ | ६५८ । ६५९ | ६६० । ८३ 22 19 27 17 "" | ६६१ | ८५ (७६७) (७६८) " १० " | ६६२ ६८८-८६७ विंशतितमं शतकम् २० ८०० १ उद्देशः । ६६३ । ८६ (७७५) २ । ६६५ ३ | ६६७ ४ | ६६८ | ६७० । ६७४ (७६९) (७७०) (") (७७२) (७७३) (,) (७७७) (",) (७७८) (७८८) (७९०) लघुक्रमः ॥ ॥ १० ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत भगवती लघुक्रमः।। सूत्रांक यहां देखीए ॥११॥ ७१२ ७ उद्देशः । ६७५ (७९१) ११ उद्देशः । ७०१ (८२३) | ५ उद्देशः । ७५१ (८९०) |८ , ।६८३ (७९३) १२, ७०४ (८३२) | ६ , । ७८६ । ९७७ (९०९) ९ , । ६८५ (७९५) १६ , । ७०८ (८३३) | ७, ८०५1१०७० (९२७) १०, । ६८८ (८००) | १९ , । ७११ (८३४) ८ , १८०६ (९२८) ६९१-८७ एकविंशतितमं शत (८४२) १म, 1८१० (,) कम् २१ ८०२ २१ , । ७१३ (८४६) ८१८-२०८७ पइविंशतितमं शतम् २६९३८ ॥ वर्गाः ८ उद्देशाः ८०॥ (.) २२ । ७१४ (८४७) १ उद्देशः। ८१५। १०८ (९३४) ६९२-८८ द्वाविंशतितमं शतकम् २२८०४, २३ । ७१५ (८४८) २ , 1८१६ (९२५) ६९३-८९३ त्रयोविंशतितमं शत २४ । । ७१६ | ३ , । ८१८ (९३८) कम् २३ ८०५ ८१९ सप्तविंशतितमं शतम् २७ ८१०-१०७ पञ्चविंशतितम शतम् २५ ९२८ ९३८ ७१६-९२६ चतुर्विंशतितमं शत ८२२ अष्टाविंशतितमं शतम् २८ ९४० १ उद्देशः । ७२० । ९३० (८५५) | ८२४ एकोनविंशतित्तमं शतम् २९ ९४२ १ उद्देशः । ६९८ ॥ ९२७ (८१७) | २ । ७२४ (८५८) |८२९ त्रिंशत्तमं शतम् ३० ९४८ (८२१) । ३ । ७३४ । ९४७ (८७२) | १ उद्देशः । ८२६ ३ , । ७०० (८२२) | ४ , ।७४६ (८८७) | ११, ।८२९ (९४८) दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम (८५२) (९४७) सुत्ताणि ~27~ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) . प्रत भगवती सूत्रांक ज्ञाताधर्म यहां | ८४२ एकत्रिंशत्तमं शतम् ३१ टद्वात्रिंशत्तम शतम् ३२ ८५० प्रयविंशत्तमं शतम् ३३ ८५५ चतुत्रिंशत्तमं शतम् ३४ ८६० पश्चत्रिंशत्तमं शतम् ३५ कथाङ्गयोः ९५० | १ उद्देशः । ८५७ (९६७)| प्रशस्तिः । ९८१ लघुक्रमः॥ ९५१ / ८६६ चत्वारिंशच्छतान्तानि ४० ९७५ | ॥ इति श्रीभगवतीसूत्रस्य लघु-d ९५४८६७ एकचत्वारिंशत्तमं शतम् ४१ ९७८ | विषयानुक्रमः॥ ९६४ ८६९-११४० भगवतीपदभावादिमा९७० । नादिकम् । ९८० | देखीए ॥१२॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~28~ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥ अथ ज्ञाताधर्मकथाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः ॥ ॥ सूत्राणि १६५ सूत्रगाथा ४६ ॥ ३६-३७ उत्क्षिमज्ञातम् १ ७७ | ९६ चन्द्रज्ञातम् १० १७१ | १५३ पुण्डरीकज्ञातम् १९ २४६ | ४९ सङ्घाटकज्ञातम् २ ९० ९७ दाबद्रवज्ञातम् ११ ॥ प्रथमः श्रुतस्कन्धः ॥१॥ ५६ अण्डकजातम् ३ | ९९ उदकज्ञातम् १२ १७७ | १६५-५६७ द्वितीयश्रुतस्कन्धे । ५७ कूर्मज्ञातम् ४ १०१-३२७ दर्दुरशातम् १३ वर्गदशकम् ॥ २५४ ६७ शेलकज्ञातम् ५ ११० तेतलिज्ञातम् १४ १९२ ६८ तुम्बकजातम् ६ ॥द्वितीयः श्रुतस्कन्धः ॥ ११४ | १११ नन्दिफलज्जातम् १५ १९५ ६९ रोहिणीबातम् ७ १२० | १३७ अपरकाशातम् १६ २२७ ॥ इति ज्ञातधर्मकथाङ्गस्य लघु८४-१५ मल्लीज्ञातम् ८ १५५ १४१-५२० अश्वज्ञातम् १७ २३५ विषयानुक्रमः॥ ९५-३१ माकन्दीयज्ञातम् ९ १७१ । १४६ सुसुमाशातम् १८ २४२ । ॥१२॥ सूत्रांक यहां देखीए ११३ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~29~ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्राक यहां [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-७,८,९. "उपासकदशा, अन्त्कृद्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा," ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) उपाशक ॥ अथ उपासकदशाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि ५८ सूत्रगाथाः १३ ॥ दशाङ्ग सू.१७-१॥ आनन्दाध्ययनम् १ प. १९ ३४ चुल्लशतकाध्ययनम् ५ ३६ | ५८-१३० नन्दिनीपितशालिहीपिअन्तकृद्द-1 ICT २६ कामदेवाध्ययनम् २ ३१ ३८ कुण्डकोलिकाध्ययनम् ६ ३९ | अधिकारौ । ५४ शाज-अनु- २९चलनीपित्रध्ययनम् ३ ३४ ४५ सद्दालपुत्राध्ययनम् ७ ४८॥ इति उपासकदशाङ्गस्य लघुत्तरोपपा- ला ३१ सुरादेवाध्ययनम् ४ ३५) ५४ महाशतकाध्ययनम् ८ ५२ । विषयानुक्रमः॥ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -- ॥ अथ अन्तकृद्दशाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि २७ सूत्रगाथाः ११ ॥ ॥१३॥ ७-३७ वर्गत्रयम् ३ १४ | ११-५ पञ्चमो धर्गः ५ १ ८ | २७-१२७ सप्तमो वर्गः ७ २७ ८-४ चतुर्थो वर्गः४ १४ १५-७ षष्ठो वर्गः६ २ ५ ॥इति अन्तकृद्दशाङ्गस्य लघु विषयानुक्रमः॥ % 34 देखीए - तिकेषु दीप क्रमांक || के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम | सुत्ताणि - - - ॥ अथ अनुत्तरोपपातिकस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि ६॥ ६ बर्गत्रयम् । ॥ इति अनुत्तरोपपातिकस्य लघुविषयानुक्रमः॥ ~30 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१०,११. "उपासकदशा, अन्त्कृद्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा," ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां प्रश्नव्याकरणविपाकसूत्रयोः ॥अथ प्रश्नव्याकरणस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि ३० सूत्रगाथाः १४ ॥ ४-20 प्राणातिपाताध्ययनम् १ २६२०-८० परिग्रहाध्ययनम् ५ ९ ८ | २६ अस्तेयाध्ययनम् २-३ १३० ८ मृषावादाध्ययनम् २ ४२ ॥ इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः १॥ २७-१४ ब्रह्मचर्याध्ययनम् २-४ १४२ १२ अदत्तादानाध्ययनम् ३ ६४ | २३-११० अहिंसाऽध्ययनम् २-१ ११३ ३० अपरिग्रहाध्ययनम् २-५ १६५ २६ अब्रह्माध्ययनम् ४ ९१ | २५ सत्याध्ययनम् २- २ १ २१ । ॥ इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः २॥ ॥ इति प्रश्नव्याकरणाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः॥ -.. -.. -.. -.. -.. -.. -.. -.. -.. -.. देखीए ॥१४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ॥ अथ विपाकसूत्रस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि ३० सूत्रगाथाः ३॥ ६-२७ मृगापुत्रीयाध्ययनम् १ ४४ २७ उम्बरदत्ताध्ययनम् ७ ७ ८ | ३१-३७ सुबाभ्ययनम् २-१ ९४ १३ उज्झिताध्ययनम् २ ५५ २८ सौर्यदत्ताध्ययनम् ८ ८१ ३३ प्रतिलम्भनाध्ययनम् २-२शेषाणि च ९६ १९ अभग्नसेनाध्ययनम् ३ ६४ | २९ देवदत्ताध्ययनम् ९ ८७ ॥इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः२॥ २२ शकटाध्ययनम् ४ | ३० अब्ज्वध्ययनम् १० ८९॥ इति विपाकसूत्रस्य लघुविष२४ बृहस्पतिदचाध्ययनम् ५ ॥ इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः १॥ २६ सुदर्शनाध्ययनम् ६ ७३ यानुक्रमः॥ ॥ समाप्तोऽयमङ्गेषु लघुक्रमः॥ सुत्ताणि' ~31~ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आदय संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा.] अंगसूत्र बृहविषयानुक्रम: कलनकर्ता, आगम दिवाकर नसागर (M.Com.,M.Ed.,Ph.D.,श्रुतमहर्षि) ~32~ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत बाचाराङ्गे| वृहत्क्रमः सूत्रांक यहां ॥ अथ आचाराङ्गस्य ब्रहाद्विषयानुक्रमः॥ ॥ सूत्राणि ४०२ सूत्रगाथाः १४७ नियुक्तिगाथाः ३५६ ॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम १ नि० नियुक्तिकारमङ्गलं नियुक्तिकथन- १२-१४ नि० समवतारद्वारे ब्रह्मचर्याध्यय- |२८ नि द्रव्यभावब्रह्मप्रतिपादनम् प्रतिज्ञा च ३ नेषु चूडाऽवतरणम् ७ २९ नि० चरणनिक्षेपाः (६) २ नि० आचारादीनि निक्षेपपदानि (१०)४ १५ नि० महावतानां सर्वद्रव्येष्ववतारः ३०नि० गत्याहारगुणमेदेन भावचरणम् ३नि०चरणे षट् दिशि सप्त शेषेषु चत्वारः|१६-१७ नि० सारद्वारेऽजादीनां सारप्रदशनम् ३१-३२ नि० अध्ययननामानि ४नि नामादिचतुष्टयस्य सर्वव्यापित्वम् १८ नि० ब्रह्मनिक्षेपाः (४) स्थापनायां ग्राह्य- | ३३-३४ नि० अध्ययनार्थाधिकाराः १० ५नि आचाराङ्गयोनिक्षेपचतुष्टयम् | णस्योत्पत्तिः, वर्ण(७)वर्णान्तराणां(९)च ६ नि० भावाचारे द्वाराणि (७) १९ नि० वर्णवर्णान्तरोत्पत्तिः ३५ नि० शस्त्रपरिक्षाया उद्देशार्थाधिकारः ७नि० आचारस्यैकाधिकानि (१०) ५ २०नि० वर्णवर्णान्तरसख्या ३६ नि० शस्त्रनिक्षेपाः (४) द्रव्ये शस्त्रा८ नि० प्रवर्तनाद्वारेऽस्य प्रथमत्वम् ६२१ नि० सप्तवर्णप्रदर्शनम् ___ग्न्यादिः, भावे दुष्प्रयोगोऽविरतिश्च ९नि०प्रथमत्वे हेतुः २२ नि० वर्णान्तरनामानि ३७ नि० द्रव्यभावयोनिप्रत्याख्याने १०नि० आचारायत्तं गणित्वम् २३ नि०२५ नि० वर्णान्तरे हेतुः (प्रासाददृष्टान्तः) ११ नि० अध्ययनादिमिराचारस्य परिमाणम् २६-२७नि० वर्णान्तराणां संयोगोत्पत्तिः९ [१ केषाञ्चित्सम्माऽभावः सुत्ताणि ॥१५॥ ~33. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम आचारा||३८ निद्रव्ये सचित्ताचित्तमिश्रमेदाः, ६०, भावदिगु (१८) निरूपणम ।११जीवितस्य परिवन्दनाद्यर्थ कर्म २६ । कारहकमा भावे शानमनुभवश्व सक्षा १२११-६२, प्रज्ञापकभावदिग्गुणनेन सर्वासु १२ क्रियाविशेषपरिमाणनिश्चयः २७ |३९ नि० अनुभवनसम्शा पोडशधा । दिक्षु जीवाजीवानां गत्यागती |१३ कर्मारम्भपरिक्षावान् मुनिः। २ पूर्वावागमनज्ञानाभावा केषाञ्चित् १३, ६३, ज्ञानसजाया अस्तिनास्तित्वम् १६ | ॥ प्रथमोद्देशकः१॥ ४०नि० दिगनिक्षेपाः (७) | ३ औपपातिकेतरत्वे पूर्वपरभवज्ञानं च ६८ नि पृथिव्या निक्षेपादीनि द्वाराणि(९)२८ ४१, त्रयोदशप्रदेशावगाढं द्रव्यं द्रव्यदिक् (आत्मसिद्धिः, ३६३ पाखण्डिनश्च) | ४२, क्षेत्रदिशो रुचकात् .६९ ,, पृथिव्या निक्षेपचतुष्टयम् ४ जातिस्मृत्यादिना शानम् १९ | ४३ ,, दिग्नामानि । ६४-६६ नि० विशिष्टसञ्ज्ञाकारणे ७०, द्रव्यभावधिवीवर्णनम् ४४-४५ ,, दिगविविकस्वरूपम् १४ नियुक्तिगाथाः २०७१-७६ नि० सर्वलोके सूक्ष्माः , बादरे ४६ ,, दिक्संस्थानम् ५आत्मवादिनो लोककर्मक्रियावादित्वम् लक्ष्णाः (५) खराः (३६) ४७-४८ , तापदिकचतुष्टयज्ञानम् ६ अनतिशयिनो मतिज्ञानेन सद्भावागमः२३७७-७८ नि० वर्णादिना योनिमेदाः २९ ४९-५० ,, मेरुलवणयोरुत्तरदक्षि७ क्रियापरिमाणनिश्चयः ७९. नि० वादरे पर्याप्तापर्याप्तभेदानां तुल्यणयोः स्थितिः ८ अपरिजातकर्मणोऽपायप्रदर्शनं विपा त्वं सूक्ष्मे च ३० ५१ ,, प्रज्ञापकदिक (१८) कप्रदर्शनं वा ८०-८१ नि० वृक्षाचौषध्यायुदाहरणेन ५२-५८ ,, प्रज्ञापकदिग्शानं तन्ना|९ तस्य योनिभ्रमणं दुःखवेदनं च २४ | पृथ्वीमेदप्रदर्शनम् मानि च १५/१० परिक्षावर्णनम् २५ ८२ नि० असख्यपृथिवीजीवशरीराणां ५९ ,, प्रज्ञापकदिक्संस्थानम् ६७ नि० सदसन्मतिहेतुभ्यां बन्धज्ञानम् । उझ्यत्वम् AGU॥१६ k सुत्ताणि ~34~ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत बृहत्क्रमः। सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम आचाराङ्ग alla नि० चक्षुःस्पर्शागतपृथिवीशरीरकथ- २८ नि० पृथ्वीकायस्यानोपानरहितत्वेऽपि | १६ अन्धादिवत्पृथिवीसमारम्भे प्रवृत्तनोपसंहारः, शेषाणामाज्ञानाहिता वेदनाऽस्तित्वम् । मतेरहितादि भोग्यफलप्राप्तिः ३७ ॥ १७॥ नि० लक्षणद्वारे उदयलेश्याभेदाः (११) ९९ नि० पधद्वारे कुतीर्थिकस्वरूपम् । १८ पृथिवीदण्डविरतो मुनिः पनि शरीरास्थिदृष्टान्तेन कठिनपृथि१०० नि० दृष्टान्तगर्भ कुतीर्थिकस्वरूपनि ॥ द्वितीय उद्देशकः ॥ बीशरीरे चेतनत्वम् ३१ १०१ नि० कृतकारितानुमतिभिर्वधः। गमनम् १०६ नि० अप्कायद्वाराणि भेदपरिमाणो८६-८८ नि० पृथिवीकायपरिमाणम् पभोगशखलक्षणेषु विशेषः १०२ नि० पृथिवीकायवधे निदानिदाभ्यां १०७-१०८ नि० अप्कायस्य भेद८९ नि० क्षेत्रकालयोः सुक्ष्मवादरत्वम् ३२ तदाश्रितान्यदृश्यादृश्यजीववधप्रदर्शनम् नानात्वं, यादरे पञ्च शुद्धोदकाचाः ४० ९०नि०कालतः पृथ्वीकायपरिमाणम् | १०३ नि०पृथ्व्या वधे तनिश्रितानां सूक्ष्मा- १०९ नि० अपकायपरिमाणद्वारम् ९१ नि० पृथिवीकायानां परम्परमवगाहः । दीनां वधः | ११० नि० अप्कायलक्षणद्वारम् ९२-९३ नि० चक्रमणादिभि (१६)- १०४-१०५ नि० पृथ्वीवधविरता १११ नि० अप्कायोपभोग ७)द्वारम् ४१ मनुष्याणां पृथ्व्या उपभोगः गुप्त्यादिमन्तश्चानगाराः | ९१२ ,, अप्कायवधप्रवर्तने हेतुः LG९४ नि सुखार्थे परदुःखोदीरकत्वम् १४ पृथ्वीहिंसका आर्त्तपरियूनादिमन्तः | ११३ ,, अप्काये शखद्वारम् M९५ नि० शस्त्रद्वारे हलकुलिकादिसमास- | १५ असाख्येयजीवसण्यातरूपा पृथिवी- (उत्सिश्चनादि ६) द्रव्यशखप्रतिपादनम् ३३ तिप्रदर्शनम् | ११४ निविभागतो द्रव्यभावशस्त्रम् ४२ N९६ नि० विभागद्रव्यभावशनप्रतिपादनम् .. १६ कृतकारितानुमतिभिः पृथिवीसमा- ११५ ,, पृथिवीबदएकायस्य शेषद्वाराणि P९७ नि० पृथ्वीकाये वेदनाः रम्भे प्रवृत्तिप्रदर्शनम् | १९ अनगारस्वरूपम् सुत्ताणि ॥१७॥ ~35 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत आचाराले हवक्रमः। सूत्रांक यहां ॥१८॥ देखीए २० निष्कमणधद्धारक्षोपदेशः ४३ | नादिषु मेदः ४९ ३६ अग्निसमारम्भाकर्त्तव्यता ५४ २१ महापुरुषैः कृतपूर्वो मार्गः ११७-११८ नि० तेजोजीवानां वैविध्य, ३७ अग्निशस्त्रसमारम्भेऽन्यतीथिकाना२२ आशयाऽप्कायज्ञाने संयमः ४४ बादरपञ्चभेदप्रतिपादनं च मयथावादित्वम् २३ अप्कायलोकात्माभ्याख्यानव्याप्तिः । | ११९ ,, खद्योतकज्वरोष्मदृष्टान्तेन ३८ अग्निसमारम्भे नानाप्राणिविहिंसनम्५५/ २४ शाक्यादिदृष्टान्तेनाप्कायसमारम्मे तेजसो जीवत्वम् ५० ३९ अग्निसमारम्भपरिज्ञाता मुनिः ५६ दोषप्रदर्शनम् ४५ १२० ,, तेजोजीवपरिमाणद्वारम् । ॥ चतुर्थ उद्देशकः ॥ २५ प्रवचने उदकजीवोपदेशः ४६ १२१ , तेजस उपभोगद्वारम् (५) | १२६ नि० पृथिवीतो वनस्पतिद्वारे नानात्वं २६ अपकायस्य नानाविधशस्त्रप्रदर्शनम् | १२२ ,, तेजःकायिकहिंसने हेतुः ५१ । विधानादिभिः २७ अशस्त्रोपहताप्कायपरिभोगेऽदत्ताः | १२३ ,, तेजःकायिकानां समासतो १२७ , द्विविभेदेन सूक्ष्मबादरा दानदूषणम् ४७ द्रव्यशत्रम् बनस्पतयः २८ पानविभूषार्थमशस्त्रोपहताप्कायपरि-| १२४ ,, तेजःकायिकानां विभागतो | १२८ नि० बादरवनस्पतेर्भेदाः भोगेऽन्यमतानि द्रव्यशत्रम् १२९ नि० प्रत्येकतरोदश भेदाः २९ अन्यमतेऽपकायजीवच्छेदनत्वम् ४८ | १२५ ,, उक्तशेषद्वारातिदेशेनोपसंहारः १३० नि० प्रत्येकवनस्पतिजीवभेदाः ३० अन्यागमासारत्वम् ३२ अमिलोकात्माभ्याख्यानव्याप्तिः (अग्नबीजाद्याः६) ३१ अप्कायवधविरतो मुनिः ३३ वनस्पतिसंयमखेदज्ञानव्याप्तिः ५२१३१-१३२ नि० प्रत्येकतरुशरीर॥ तृतीय उद्देशकः ॥ ३४ अशिशखस्य वीरैर्दष्टपूर्वता ५३ सङ्घातदृष्टान्ताः | ११६ नि० तेजसो द्वारातिदेशः विधा- । ३५ प्रमत्तो रन्धानायर्थी दण्डवान् | १३३ नि० पत्रस्कन्धादी एकजीवत्वम् ५८ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ५७ सुत्ताणि ~36~ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) HT.. प्रत आचाराने S हत्क्रमः। सूत्राक यहां ॥१९॥ FDS देखीए १३४ नि० प्रत्येकतरुजीवराशिपरिमाणम् | १५० ,, वनस्पतेविभागतो द्रव्यभावशस्त्रम् त्वं विधानादिना ६७ १३५ नि० शेषा आशाग्राह्याः १५१, वनस्पतेरुक्तशेषद्वाराणां पृधि- | १५३ ,, प्रस-लब्धिगतिभ्यां द्विधा १३६-१३७ नि० साधारणवनस्पति व्याः सादृश्यम् | १५४ ,, प्रसजीवभेदाः लक्षणम् ५९ ४० वनस्पत्यारम्भाकरणेऽनगारत्वम् १३८ नि० मूलप्रथमपत्रयोरेकजीवत्वम् ४१ गुणावर्त्तयोरक्यम् ६२ | १५५ ,, त्रसजीवोत्तरभेदाः (योनिकुलानि) १३९-१४० नि० अनन्तकायलक्षणम् ४२ वनस्पत्यभिनिवृत्तशब्दादीनां सर्व | १५६ १५७ ,, त्रसजीवानां दर्शना१४१ निसाधारणवनस्पतेर्भेदाः दिग्भाक्त्वम् ६३ दीनि (१९) लक्षणानि ६८ १४२ नि० एकाचसण्याताना प्रत्येके । ४३शब्दादिगुणागुप्तत्वऽनाज्ञाकारित्वम्बंध | १५८,, त्रसजीवानां परिमाणम् दृश्यत्वम् | ४४ शब्दादिगुणास्वादेऽसंयमानुष्ठायित्वम् | १५९ , अविरहितप्रवेशनिर्गमपरि१४३ नि० साधारणेऽनन्तानां दृश्यत्वम् ६० ४५शब्दादिगुणप्रमत्तत्वे गृहस्थत्यम् माणम् ६९ १४४ नि० सूक्ष्मानन्तजीवपरिमाणम् ४६ वनस्पतिशखसमारम्भेऽन्यतीथिकटशा १६०, उपभोगशत्रवेदनाद्वारत्रयम् १४५ नि यादरनिगोदपरिमाणम् | ४७ वनस्पतिजीवास्तित्वे लिङ्गम् | १६१-१६२ ,, मांसाधुपभोगार्थ १४६, १४७ ,, उपभोगविधिः, आहा (जन्मबुद्धयादि) ६५ | जीववधः रादिरातोद्यादिश्च ४८ वनस्पत्यारम्भतत्परिहाराभ्यां |१६३ , उक्तशेषद्वाराणां पृथिव्याः सा१४८, उपभोगोपसंहारः, वधहेतुश्च ६१ बन्धमुनित्वे ६६ दृश्यम् ७० १४९, वनस्पतेः समासद्रव्यशखं कल्प ॥ पञ्चम उद्देशकः ॥ ४९ अण्डजादित्रसभेदकथनपूर्वकं संसान्यादि ।१५२ नि० पृथ्वीत्रसद्वारसाहश्य, नाना- | रस्वरूपम् दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम STA सुत्ताणि ॥१९॥ ~37~ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक आचाराने यहां ॥२०॥ देखीए त्वम् ७३ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ५० अज्ञानिनो भवभ्रमणम् १७० , वायुकायानां व्यजनादि द्रव्य- १७२ नि० उद्देशपदकार्थाधिकाराः ८२ | ५१ संसारो दुःखम् ७१ शनम् ७५ | १७३-१७४ ,, लोक(८)विजय ६)५२ वध्यमानदुःखम् | १७१ ,, उक्तशेषद्वाराणां पृथिव्याः सा गुणमूलानां निक्षेपार, आययोनि दृश्यम् ५३ त्रसेष्वन्यतीथिकानामयथावादि| ५६ वायुसमारम्भनिवृत्तौ मनुष्यस्य श प्पन्ने, परयोः सूत्रालापे ८३ त्वं तत्फलं च ७२ क्तत्वम् १७६ ,, लोकनिक्षेपातिदेशः, भावकषा५४ बसवधे कारणानि ७२ ५७ अन्तर्वहिनियोाप्तिः (द्रव्यातङ्के यलोकविजयेनाधिकारः ८३ | ५५ प्रसकायसमारम्भपरिक्षातृत्वे मुनि क्षारगलिताश्वदृष्टान्तः) २७७, भावलोकविजयेन फलम् ८४ षष्ठ उद्देशकः ॥ ५८ वायुजीवसंरक्षणे साधुत्वम् ७७ १७८, गुणनिक्षेपाः (१५) ५९ वायुशखसमारम्भेऽन्यतीर्थिकस्वरूपम् १६४ नि० वायुपृथिवीद्वारसादृश्य, नाना १७९ ,, सचित्ताचित्तमिश्रभेदेन द्रव्य६० वायुकायारम्भपरिज्ञाने मुनित्वम् ७८ | त्वं विधानादिना । ६१ पृथिव्यादिसमारम्भे कर्मवन्धनम् गुणनिधा ८५ १६५-१६६ , सूक्ष्माः सर्वलोके, प १८० ,, जीवगुणः, सङ्कोचविकाशौ। | ६२ सर्वारम्भनिवृत्तिर्मुनित्वम् (उपश्वधा बादरा उत्कलिकाद्याः ७४ लोकपूरणं च १६७ ,, देवान्तर्हितशरीरव वायोः सत्त्वम् स्थापनाविधिः) ७९ (सप्तम उद्देशकः॥ १८१ ,, देवकुर्वादिषु सुषमसुषमादिप१६८ , वायुजीवानां परिमाणम् येवैर्निर्भजना, गणनायां द्विकादि, १६९ ,, बादरवायुकायोपभोगः (व्यज- ॥ इति शस्त्रपरिश्राध्ययनम् ॥ ८१ करणे कलाः, अभ्यासे भोजनं, नधमनादिमिः) |१०६-१९६ नि० लोकविजयाध्ययनं २-१४८ ऋजुता अगुणगुणे गुणागुणे सुत्ताणि ~38~ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत आचाराङ्गे काबहक्रममा सूत्रांक यहां २१॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम वक्रता, भवे नारकादि, शीले १९२॥ ,, कर्मनिक्षेपाः, नामस्थापनाद्रव्य- । ६७ संसाराभिष्यङ्गिस्वरूपम् क्षान्त्यादि, भावे जीवाजीवयोः ८६ । प्रयोगसमुदानेर्यापर्थिकाऽऽधा- | ६८ जराधभिभवेऽर्थस्यात्राणत्वम् १०८ | १८२ नि० मूलनिक्षेपाः (६) ८७ तपःकृतिभावकर्मभेदेन (वर्ग- ६९ स्वकृतकर्मफलसुखदुःखयोर्शाने:१८३ ,, भावमूलस्य प्रैविध्यम् , औदणास्वरूपं मूलोत्तरप्रकृतिस्थि क्लैव्यम् १०९ यिक उपदेष्टा आदिः (विनय त्यनुभावप्रदेशबन्धाः) ९२|७० यौवने धर्मोद्यमः कषायादि) ८८ | १९३ ,, अपविधकर्मणाऽधिकारः ९८ | ७१ क्षणे द्रव्ये प्रसादि, क्षेत्रे कर्मभूमयः, १८४ ,, स्थाननिक्षेपाः (१५) ६३ गुणमूलस्थानयोरक्यं प्रमत्तस्व- काले तृतीयचतुर्थारको, भावे क१८५, शब्दादिविषयेषु मुलस्थानत्वम् ८९ रूपमात्रादिममस्यं च (परशुराम- मणि न्यूनकोटिसागरता (ध्रुव१८६ ,, पादपदृष्टान्तेन कर्मणः संसा- | चाणक्य-जरासिन्धुदृष्टान्ताः) प्रकृतयः) नोकर्मणि आलस्यारप्रतिष्ठितमूलत्वम् ९० १९४ नि० स्वजनत्यागात्कषायकर्मभ (१३) द्यभावः कर्माणि मोहनीयमूलानि का बच्छेदाः १०१ | ७२ यावदिन्द्रियशक्ति आत्मार्थोपदेशः ११० ममूलानि वा, ततश्च संसारः | १९५, नेहासक्तत्वेन जन्ममरणप्राप्तिः १८८,, मोहनीयस्य द्वैविध्यम् ६४ जरायामिन्द्रियाणां शिथिलता (इ. ॥ द्वितीये प्रथमः २-१॥ , कर्मणि कषायाणां प्रधानका ..न्द्रियनिरूपणम् ) १०३/७३ अरतिरहितो मुच्येत १११ रणत्वं, तेषां स्थानविशेषाश्च ९१ ६५ वार्धक्ये लोकायगीतत्वम् (धन- | १९६ नि० संयमावधावनहेतवः ११२ १९०, कषायनिक्षेपाः (८) वृद्धदृष्टान्तः) १०५ | ७४ अनाज्ञावर्तिनामुभयभ्रष्टत्वम् १९१ ,, संसारः पञ्चधा |६६ प्रशस्तमूलस्थानम् , अप्रमादः १०७ / ७५ संसारविमुक्तस्वरूपम् ST सुत्ताणि ~39~ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत आचाराङ्ग वृहत्क्रमः।। सूत्राक यहां ॥२२॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ७६ अनगारस्वरूपमशानोपहतस्व- ८६ भोगलिप्सोस्तत्प्राप्यप्राप्त्योः स्व- ९६ अनगारत्वाय बालसङ्गनिषेधः १३९ रूपंच ११४ रूपम् १२८ द्वितीये पञ्चमः २-५॥ ७७ अज्ञानस्वरूपज्ञातुः कर्त्तव्यम् ॥ द्वितीये चतुर्थः २-४ ॥ ११५ ८७ पुत्राद्यर्थ कर्मसमारम्भाः ९७ अनगारस्य पापकर्माकरणम् ७८ गोत्राभिमानपरिहारः (पुद्गलाव १२९ | १४० खिरूपम् ) ११६ | ९८ हिंसायामन्यान्यपि पापानि, अन८८ समुत्थितानगारस्याऽऽमगन्धप॥ द्वितीये द्वितीयः २-२॥ - ____गारस्य कर्मोपशान्तिप्रकारश्च १४१ रिक्षातृत्वम् १३० ८९ क्रयादिनिवेधः, कालादिज्ञानं नि | ९९ ममतात्यागे मुनित्वम् १४२ ७९ अन्धत्वादि प्रेक्ष्य समितीभावः ११९ ममत्वादिश्च (४२ दोषाः) १३१ २० वीरलक्षणम् ८० उच्चैौत्राभिमानमूढस्वरूपम् १२० ९० अस्नेहस्य वस्त्रादेग्रहो गृहिभ्यः १३३ | | ३० स्पर्शऽसक्तः नन्दीनिर्विष्णः क१७ मोक्षचारिस्वरूपम् १२१ ९१ आहारविधिः १३४ ___ मच्छेदको मुनिः १४३ ८१ मृत्यागमानियततादि दृष्ट्वा हितार्थी : ९२ धर्मोपकरणस्यापरिग्रहत्वम् १३५ १०० कक्षसेविसम्यक्त्वदर्शिनो चीराः ८२ विज्ञस्यानुपदेश्यत्वं बालस्यावतः १२४ ९३ कामानां कामाकामिनश्च स्वरूपम् | १०१ दुर्वसु-सुवसुमुनिलक्षणं लोक॥ द्वितीये तृतीयः २-३॥ ९४ प्रतिमोचको बहिरन्तनिवान् संयोगात्ययः १४४ | ८३ भोगिनां रोगादावसहायता (ब्र श्रवत्पूतिदेहदर्शनम् १३६ १०१ अनन्यदर्शनानन्यायमयोाप्तिः __ह्मदत्तदृष्टान्तः) १२५ | ९५ वान्ताशनमायानिषेधः, अविरति- । पूर्णतुच्छयो। कथनव्याप्तिध १४५ ८४ अर्थस्य दायादिसाधारणत्वम् १२६ । फलम् ( दधिघटिकादमधन- १०३ देशकस्य पुरुषाविज्ञानावश्यकता १४६ ५खीभिर्व्यथितो मूढोऽसमर्थों धर्म १२७ / सार्थवाहदृष्टान्ती) १३८ | १०४ जिनकृताकृतयोः करणाकरणे १४८ सुत्ताणि Hal२२॥ ~40~ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक आचारांगे बहतक्रमः। यहां ॥ २३॥ देखीए दीप १०५ बालस्य तुःखावर्ते भ्रमणम् | २०७, सुखदुःखयोः शीतोष्णत्वे । ११० भावजागरस्य कर्त्तव्य, पर्याय॥द्वितीये षष्ठः२-६ ॥ हेतुः १५१ | शस्त्रसंयमखेदयोाप्तिः, उपा॥ इति द्वितीयं लोकविजयाध्ययनम् २॥ | १०८ ,, कषायादीनामुष्णत्वे तपस धिः कर्म (कर्मसत्तास्थानानि) १५५ १११ रागद्वेषयोरदृश्यो मुनिः १२६-१२० २१३ नि० ॥ अथ शीतो. १५८ २०९ ,, शीतोष्णादिसहानां मुनित्वम् प्णीयाध्ययनम् ३ १७७२१0, भिक्षूणां परीषहसहनं कामत्यागश्च ॥ तृतीये प्रथमः ३-१॥ १९७-१९८ नि० उद्देशचतुष्कार्थाधिकाराः १०६ मुनीनां जागरणम् ४६ सम्यक्त्वदर्शिलक्षणम् १९९, शीतोष्णयोनिक्षेपाः (१) १४९२११ नि० मुनीनां स्वापेऽपि जागरणम् १५२ । ५७ कामसङ्गो गर्भमूलम् २०० ,, द्रव्यभावशीतोष्णे २१२, द्रव्यसुप्तस्येव भावसुप्तस्थापि ६ अमृतात्मस्वरूपम् | २०१, प्रमादादिपरीपहाणां शीतत्वं, ७७ आतङ्कदशी पापविरतोऽग्रमूलंतपउद्यमादिपरीपहाणां चो२१३ ,, पलायनपथ्यादिषु सचेतनवत्सु छिन्थात् १६० ष्णत्वम् खी श्रमणः | ११२ निष्कर्मदर्शिनः स्वरूपम् (प्रक२०२-२०४ , स्त्रीसत्कारयोः, मन्दप- १०७ शब्दादिरूपवेदिनः संयमः १५३ तिवन्धस्थानानि) १६१ 'रिणामानां धर्मोऽप्रमादिनो वा १०८ विषयविरक्तमुनिखरूपम् १५४|११३ सत्ये धृतिः, पापक्षपर्ण च १६२ शीतत्वम् १५० १०९ निम्रन्थो रत्यरत्यादिसहः बैरो- ११४ अनेकचित्तपुरुषप्रवृत्तिः १६३ २०५ नि० उपशमैकार्थिकानि (६) परतः, धर्माशानी तु मूढः (दे- ११५ द्वितीयानासेवानिःसारतादर्श| २०६ ,, संयमासंयमयोः शीतोष्णत्वे हेतुः | वानां जरा) नादिस्वरूपो मुनिः क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम . दुःखप्राप्तिः सुत्ताणि ~41~ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत आचारांगे हत्क्रमः। सूत्राक यहां ॥ २४॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम क्रोधादित्यागिनो लघुभूतगामिता १६४ १२३ एकसर्वज्ञानयोाप्तिः। १७१ | २१९-२२१ अन्धानन्धशत्रुजयाजय९७ धीरत्वलक्षणम् १२४ प्रमत्तस्य भयं, एकबहुक्षपण- दृष्टान्तेन सम्यग्मिथ्यारयोः ॥ तृतीये द्वितीयः ३-२॥ व्याप्तिः, निर्लोभस्य महायानं, सिद्धयसिद्धी। १७६ ११६ पापकर्माकरणमात्रेण न मुनित्वम् १६५/ परात्परत्वं च । १७२ | २२२-२२३ नि० सम्यक्त्वोत्पत्त्या१०७११७ नि० आत्मप्रसादी यात्रामात्रा- १२५ आशया संयमः, शस्त्राशस्त्रयोः दिजिनान्तश्रेण्या असङ्ख्यगुणपको विरक्तश्छेदमेदाद्यविषयः १६६.. पारंपर्यम् । १७३ | निर्जरकत्वम् । १७७ १२६ मानादिभिर्मानमायादीनां व्या११७१२० साम्प्रतक्षिणामतिकान्ताऽ- नागतविचाराभावः १६७/ प्तिः, पश्यककृत्यं च । १७४ | २२४ नि त्यक्ताहाराद्युपधेः श्रमण११८ महायोगीश्वरस्वरूप, आत्म| ॥तृतीये चतुर्थः ॥ ३-४॥ त्वम् । १७८ मित्रता । १६८ | ॥ इति शीतोष्णीयाध्ययनम् ॥३॥ १२७ उत्थितादिषु सर्वकालीनजिन११९ कर्मापनेतृमोक्षमार्गिणोाप्तिः ___भाषितं तत्त्वं सर्वप्राणाद्यहिंसादि। |२१४-२१५ नि० उद्देशचतुष्कार्थाआत्मोपदेशश्च । १६९ २२५-२२६ नि० सर्वजिनानामहिंसाCL १३० प्रमत्तलक्षणम् । धिकाराः (७)। १७५ २१६ नि० सम्यक्त्वनिक्षेपाः (४)। _ वादित्वम् । १७९ १२१ अप्रमत्तलक्षणम् । १७० २१७-२१८ नि कृतसंस्कृतसंयुक्तप १२८ दृष्टनिवेदो लोकेषणात्यागः। १८० ॥ तृतीये तृतीयः ॥ ३-३॥ युक्तत्यक्तभिन्नच्छिन्नद्रव्ये, दर्शन- १२९ गृद्धानां भवभ्रमः। १२२ कषायवमने तीर्थकदुपदेशः, (३) शान (२) चारित्रै (३) भावे, १३० प्रमत्तान् दृष्ट्वा धीरस्याप्रमस्वकृतकर्मभेत्तृत्वं च । । (वीरसेनसूरसेनदृष्टान्तः) त्तता 1१८१ सुत्ताणि ~42~ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. "आचार"] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) आचारांगे ।। २५ ।। ॥ चतुर्थे प्रथमः ॥ ४-१ ॥ १३१ आश्रवनिर्जरयोर्व्याप्तिः । १३२ न मृत्योरनागमः यथेच्छानां भवभ्रमः । १८३ १३३ क्रूराकरयोः फले केवलिश्रुतकेवलिनोरेकवाक्यता । १८४ १३४ प्राणादीनां हन्तव्याहन्तव्यादिना आर्यानार्यत्वम् । १८५१ २२७-२३१ नि० रोहगुप्तकारिता स्वान्यसाधुपरीक्षा १८७ २३२-२३३ नि० शुष्केतरगोलकरष्टान्तेन विरक्ताविरक्तयोर्लेपालेपौ । १८८ ॥ चतुर्थे द्वितीयः ॥ १३५ पाखण्डिनां धर्मबाह्यता, आरम्भजे कर्मदुःखे ( प्रकृत्युदयस्थानानि । १८८ ३ १३६ जीर्णकाष्ठदाहवत् शरीरकर्मधुननदाही । १९० २३४ शुपिरकाष्ठाष्टान्तेन मुनीनां कर्मक्षयः । १९१ १३७ अल्पमायुरागमिष्यद्दुःखं निवृत्तपापस्यानिदानतेति न च क्रुध्येत् । १९२ चतुर्थे तृतीयः ॥ ४-३ ।। १३८ त्यागी स्मारको मार्गस्थितो धुनाति कर्म । १३९ प्रमत्तस्वरूपम् । १९३ १४० बुद्धस्य पश्यत्ता, वेदविदो निर्याणम् । १९४ १४१ वीराणां सत्यरतता पश्यकस्य नोपाधिः । १९५ ॥ चतुर्थे चतुर्थः ॥ ४-४ ॥ इति सम्यक्त्वाध्ययनम् ॥ ४ ॥ ~43~ २३५-२३७ नि० उद्देशषट्कार्थाधिकाराः । १९६ २३८ नि० लोकसारयोर्निशेपाः (४) ( लोकखण्डुकानि ) २३९ नि० सर्वस्वस्थूलादिषु धनैरण्डादीनां सारता द्रव्ये । १९७ २४० नि० भावे सिद्धिः, तस्याः साधनं च शानादि । २४१ नि० ज्ञानादेः सिद्धयुपायस्य भावसारताप्रतिपादनम् । १९७ २४२ नि० जीवमोक्षयतनानां ग्राह्यता २४३-२४४ नि० लोकादीनां धर्मादिः सारः । १९८ १४२ अविरतानां काममारसंसाराः । १४३ कुशाग्रचदायुः क्रूरकर्माणी मोहगर्भमरणपारंपर्यम् । १९९ १४४ संशयज्ञानात्संसारपरिज्ञानम् २०० बृहत्क्रमः। ।। २५ ।। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम आचाराङ्गे || १४५ छेको मैथुनाद्विरतः, वालस्य । १४८ पूर्वपश्चाद्भावमिदुरादिधर्मत्या- | १५६ सम्यक्त्वमौनयोाप्तिः, अप्रद्वितीया बालता । च्छरीरस्य विरतपापस्याध्या- मत्तस्यैव सम्यक्त्वमोने । २१३ | ॥२६॥ | १४६ गृद्धः आरम्भी पापरतः एक सनम् । २०५ ॥पञ्चमे तृतीयः ॥ ५-३ ॥ चारी बहुक्रोधादिः अज्ञात- | १४९ शरीरासारतादर्शिनो न पर्यधर्मो भवभ्रमी । २०१ टनम् । २०६ १५७ अव्यक्तभिक्षोर्दुर्विहारता । २४५ नि चारशब्दस्य निक्षेपाः (६) १५० अविरतवादिनः परिग्रहवत्त्वम् २०७ १५८ अज्ञस्य क्रोधमोहसंवाधभावाः, एकार्थिकाश्च (३), द्रव्ये दारु- १५१ परमचक्षुः पराक्रमी श्रुताध तद्दष्टिमुक्त्यादिमुनिः । २१५ | सन्मादिः। २०२ ध्यात्मस्थता, प्रमत्तस्य बाह्य १५९ अप्रमत्तस्याकुट्टिकृतकम| २४६ नि० क्षेत्रादिचारा; भावे प्रश विवेकः । २१६ त्वम् । २०८ स्ताप्रशस्तौ। ॥ पञ्चमे द्वितीयः ॥ ५-२॥ १६० शानधर्मबाधितस्थाबमोदरि२४७ नि० प्रश्नद्वारेण प्रशस्तभाव कादिः । २१७ | १५२ सन्धिक्षपणाय वीर्यम् । २०८ . चारः । २०३ १५३ पूर्वोत्थायिपश्चानिपातिभनख | ॥पञ्चमे चतुर्थः ॥ ५-४ ॥ २४८ नि० द्रव्यादिचारेषु यतेर्विशेषता । रूपम् । २०९ | १६१ हदवत्प्रतिपूर्ण उपशान्तरजा आ॥ पञ्चमे प्रथमः ॥ ५-१ ॥ १५४ अकामोऽझञ्झो बाह्येन युध्येत २१० । चार्यः । (सम्पदष्टकम् ) २२० । IN १४७ सन्धिदर्शी उत्थितः पृथकर्म- १५५ अन्तरारिषड्वर्गरिपुजयसाम- १६२ विचिकित्सकोऽसमाधिमान् चोज्ञाता विरतः । २०४ । ग्रया दुष्पापत्वम् । २११ | धाबोधयोनिर्वेदः भव्यत्वशङ्का २२१ ॥२६॥ सुत्ताणि ~44~ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) . प्रत सूत्रांक हत्क्रमः।। यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम बाचाराग1१६३ जिनप्रवेदितस्य सत्यनिःश- ॥ पञ्चमे पष्ठः ॥ ५-६ ॥ १७७ कुटुम्बविलापेऽपि प्रव्रजति । २३९ कता । २२२ ॥ इति लोकसाराध्यनम् ॥ ५॥ ॥ षष्ठे प्रथमः ॥ ६-१ ॥ ॥२७॥ १६४ प्रापश्चात्सम्यक्त्वे पइभङ्गी २२३ | २४९-२५०नि० धुताण्याध्ययनस्यो १७८ त्यागी ज्ञान्यपि जातु कुशीलः । २४० १६५ हन्तव्यघातकयोरेकता । २२५ देशपञ्चकार्थाधिकाराः, द्रव्य- १७९ कुशीलस्वरूपम् । १६६ आत्मज्ञानयोरभिन्नता । २२६ भावधूते च । २३२ १८० प्रवर्द्धमानाध्यवसायसाधुवि. ॥ पञ्चमे पञ्चमः ॥ ५५॥ २५१ नि० उपसर्गसहस्य कर्मधुनना चाराः। २४१ १६७ आशाऽनाशयोनिरुद्यमी, तद्द- भावधूतम् । १८१ मुमुक्षोराज्ञैव धर्मः, शुद्धषणादि ट्यादिकः स्यात् । २२७ | १७३ समुत्थितादण्डसमाहितप्रावानां परीपहसहनं च । २४३ १६८ अबहिर्मना महान् , प्रवादस्ख मुक्तिमागोपदेशः, अवसीदतां ॥ षष्ठे द्वितीयः ॥६-२॥ १८२ अचेलकस्य चेलजीर्णतादिविरूपं च । । दोषाश्च । चाराभावः। १६९ तीर्थकरनिर्देशानतिवर्ती, नि- १४०-१६० षोडश रोगाः । १८३ साधोः शरीरावयवानां कृशष्ठितार्थ आगमन पराक्रमेत । २२९ | १७४ नारकदुःखानि, प्राणिनां क्ले त्वम् । २४६ १३, सङ्ग आश्रवः । शश्च महद्भयम् ।(योनिकुलानि)२३६ | १८४ चिररात्रोषितस्याप्यार्यधर्मेs१७० आवर्तप्रक्षी गत्यागत्यनाकाङ्क्षकः।। १७५ बहुदुःखता कामासक्तिः, भङ- रतिः । (एडकाक्षसाधुदृष्टान्तः) २४७ १४१ मुक्तात्मस्वरूपम् । २३० गुरं शरीरम् । २३८ १८५ गृद्धानां प्रवाजकशिक्षकगुरुच.... १७२ मुक्तात्मनामशब्दादिरूपत्वम् २३१ १७६ धूतवादे कर्मधूननोपायः । बज्ञा । २४८ सुत्ताणि ॥२७॥ ~450 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत हवक्रमः॥ सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि आचारांगे | १८६ अपरसाधुनिन्दा द्वितीया ॥ षष्ठे पश्चमः ॥ ६-५॥ २६२, अनशनत्रैविध्य भावविमोक्षश्च । बालता । २५० ॥ इति धुताध्ययनम् ॥६॥ २६३ ,, सपराक्रमेतरे मरणे समा॥ २८॥ १८७ शिथिला अपि सत्यप्ररूपका, (सप्तमं व्युच्छिन्नम् ) ॥ ७॥ घिमरणकर्त्तव्यता च । २६२ अन्ये ज्ञानसम्यक्त्वभ्रष्टाः । २५१ | २५६ नि० उद्देशाष्टकार्थाधिकाराः । २६४ ,, आर्यवज्रपादपोपगमनम् । १८८ बाह्यक्रियोपपेतानामप्यात्मनाशः। १ पार्श्वस्थत्यागः। २६५ , समुद्राचार्यस्थापराक्रमपादपो१८९ आरम्भी, अधर्मी, धर्मस्य घो पगमनम् । २ अकल्पितत्यागः रुष्टे सद्भावकथनम् । रता च । २५२ २६६ ,, तोसलेाघातिमम् । ३ कामाद्याशङ्कायां कथनं, उपकरणशरी१९० समुत्थितानामपि पश्चाद्दीनता, २६७ , अव्याघातिममरणम् । २६३ रमोक्षः ४-८ बशार्त्तता, समन्बागतादिष्वस २६८, भावसंलेखनाया आवश्यकत्वम् । |४ वैहानसादि। मन्वागतत्वादि । २५३ | ५ ग्लानिर्भक्तपरिक्षा च । २७२ ,, संलेखनापादपोगमनविधिः २६४ ॥ षष्ठे चतुर्थः ॥ ६-४ ॥ २७४, आहारहासः। |६ एकत्वेङ्गिनीमरणे। | १९४-१९५ पार्श्वस्थान्यतीथिकेभ्योजा १९१ बीरस्य परीपहसहनता, उत्थि- ७ प्रतिमापादपोपगमने च । . ऽशनादिदाननिषेधः।पार्श्वतादिषु शान्त्याद्याख्यानम्। |८ आनुपूर्वीविहारभक्तपरिक्षेङ्गिनीपादपो स्थादीनामशनाद्यनङ्गी(उपसर्गाः) २५४ पगमनानि । २६० कारः । २६५ १९२ धर्मकथनप्रकारः। २५७ | २५९ नि० विमोक्षनिक्षेपः । १९६ परेषामस्तिनास्तिववाभुवादिवादिIG १९३ मरणं सङ्ग्रामशीर्षम् । २५८ | २६१, वन्धमोक्षस्वरूपम् । २६१ । त्वम् ॥ २८ ~46~ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. "आचार"] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) आचाराहे ॥ २९ ॥ १९७ सुप्रज्ञापितधर्मता । १९८ ऊर्द्धाधस्तिर्यगादिषु दण्डनि २६८ २७८ पेधः । २६९ | २०९ शीतापगमे वस्त्रत्यागः । २१० एकैकयत्यागे तपस्त्वम् । २९९ भगवदुक्तज्ञानक्रियावत्त्वम् । २१२ शीतायस्य मरणेऽपि मोक्षः । २७९. ॥ अष्टमे चतुर्थः ८-४ ॥ २१३ द्विवस्त्रधारिसमाचारः अभ्या हृतान्नादिनिषेधश्च । २८० | २०२ अमनोज्ञायाशनादिदाननिषेधः । २७३ २१४ वैयावृत्त्यस्य करणेऽकारणे च २०३ समनोज्ञायाशनदानाद्युपदेशः । ॥ अष्टमे प्रथमः ८-९ ॥ २१९ आधाकर्माशनायप्रतिज्ञानम् । २७० २०० आधाकर्माद्यशनाद्यग्रहणम् । २७१ २०१ घातादिसहनं धर्माख्यानं च। २७२ मोक्षः । २८१ ॥ अष्टमे द्वितीयः ८-२ ॥ २०४ यूनां त्यागधर्मवत्त्वम् । २०५ केषाञ्चित्परषहभग्नत्वम् । २०६ साधोः परीषहे कर्त्तव्यम् । २०७ परकृतानेर सेवनम् । ॥ अष्टमे तृतीयः ८-३ ॥ २०८ त्रिवस्त्रधारिसमाचारः । २७४ ॥ अष्टमे पञ्चमः ८५ ॥ २१५ एकवस्त्रधारिसमाचारः । २७५ २१६ एकाकित्यभावना । २७६ २१७ आहारादेर्दृष्टान्तरेऽप्रचारः । २१८ संलेखनानशनबुद्धिः । २१९ अनशनविधिः । ॥ अष्टमे षष्ठः ८-६ ॥ ૨૭૭ ~47~ २८२ २८३ २८४ २८५ २२० अचेलकस्य समाचारः । २८७ २२१ अचेलकस्य तृणशीततेजआदिस्पर्शसहनम् । २२२ आहारग्रहणादौ चतुर्भङ्गी । २२३ अचेलकस्योद्यतमरणम् । २८९ ॥ अष्टमे सप्तमः ८-७ ॥ २०० मरणे धीरस्य समाधिः । कर्माष्टकत्रोटनम् । कषायाहारयोरल्पत्वमन्ते ऽग्लानिश्च । जीवितमरणयोरसङ्गः । २४ समाधिना शुद्धात्मैषणम् । अर्द्धसंलिखितेऽन्यत्र चापि संलेखनाऽनशनं । ग्रामादी संस्तारकः । अनाहारेऽप्युपसर्गसहनम् । २९० बृहत्क्रमः।। ॥ २९ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां ॥३० देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम २८ पिपीलिकाद्युपसर्ग हिंसानिवा- | देवलोभनेऽपि मायात्यागः । २९४ | २८४ ,, शिवाप्युपायो वीरतपः। ३०१ रणयोरभावः । २९१ | ४१ अमूर्छस्यान्तेऽपि तितिक्षा । २९५ | ४२७ श्रीवीरचर्याकथने प्रतिज्ञा । देहक्लेशेऽपि विषयादिबाधासहनम् । ॥ अष्टमेऽष्टमः ८-८ ॥ ४३ वस्त्रे यावज्जीवमपिधानादिः। गीतार्थस्य सेङ्गितमरणम् । ॥ इति विमोक्षाध्ययनम् ८॥ ४४७ साधिकमासचतुष्टयमुपसर्गः । आत्मवर्जक्रियात्यागखिधा त्रिधा । २७५ नि उपधाने.स्वतपोवर्णने नियमः२९६ ४५७ साधिकसंवत्सरमासाद्वखत्यागः, ३२ अहरिते संस्तारके परीपहादिसहनम् । २७६ ,, बीरस्यैव तपः सोपसर्गम् । २९७ | ४६ अन्तश्चक्षुषो ध्यानेऽपि वधः | ३०२ इन्द्रियैपानी अगर्दा अचेलस्य समाधिः २७८,, तीर्थकरस्य तपस्युयममपेक्ष्य ४७% मैथुनं त्यक्त्वा वसतौ ध्यानम् । इङ्गितदेशेऽमिकान्तादिः । _ तस्कृतिः । , ४८ गृहिसनं त्यक्त्वा मौनस्य संयमक्रिया। तत्रैव चर्मणोपवेशनादिः । २९२ | २७९ , उद्देशकचतुण्यार्थाधिकारः।। ४९.७ अनभिवादनं बधसहनं च। ३०२ ३६% आलोकावासशुचित्वान्वेषणम्। २९३ | २८२,१ श्रीवीरस्य चर्या । ५०% स्पर्शसहनं नत्यादावकौतुकं च । ३०३ आत्मोत्कर्षः स्पर्शाध्यासनं च। २ , शय्या । ५१% गृहिकथायां विशोकहर्पस्य संपादपोपगमनस्थितिः । ३ , परीषहाः । यमायोद्योगः। ३०३ पादपोपगमनपालनम् । ४, चिकित्सा। ५२ प्राक्साधिकवर्षद्वयं शीतोदकस्या४० अचित्ते स्थितिः, कायस्यागश्च । तपश्चरणे सर्वत्र । भोगः । स्यक्तदेहस्योपसर्ग पीडासहनम् । उपधानस्य निक्षेपाः। २९७ ५३ एकत्वभावनाभावजादिगुणवत्ता । कामेष्विच्छालोभयोस्त्यागः। २८३ नि० तपसः कर्मणोऽवधूनताद्या अवस्थाः| ५४० षट्कायप्रतिलेखना। ३०४ | सुत्ताणि ॥ ३०॥ ~48-~ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) . प्रत सूत्रांक वाचाराने बहवक्रमः। यहां देखीए hी दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ५५ त्रसस्थावरयोः सर्वजीवानां च पी भगवतो निवासः । ३०७ / ८१० तृणशीततेजआदिस्पर्शसहनम् ३१० परस्परं गमागमः। ६९ निद्रात्यागे जागरणम् । ८२ लाढे प्रान्तशय्यासनादिः। ५६% सोपधेभ्रमणं, पापानिषेधश्च । ७० अप्रमत्तस्य बहिश्वमित्वा ८३% लाढे दण्डकुकुरादिना वधादिः । ५७० इन्द्रियहिंसाद्याश्रवत्यागेन संय ध्याने स्थितिः । ८४ निवारकस्याभावश्ठुत्कारकरणं च । मस्याख्यानम् । ७३ भीमोपसर्गादिसहनम् पेहली ८६ लाढे यष्टिनालिकां गृहीत्वा शा| ५८ संसारखीविरतस्य कर्मदृष्टिः । ३०५ किकादिशब्दसहनं । ३०८ क्यादेविहारेऽपि दशनादिना ५९७ आधाकर्मपरित्यागः प्रासुकभोजनं च। ७४० विरूपस्पर्शसहन रत्यरत्योरमि दुश्वरत्वम् । ३११ ६०७ परवखपात्रत्यागः शुढेषणा च। भवोऽबहुवादिता च ।। 40 अद्वन्द्वोऽदण्डो व्युत्सृष्टकायो ६१% मात्राज्ञोऽगृद्धोऽक्ष्णोऽप्रमार्ज- ७५७ जैनः, प्रश्ने मौने कषाये समाधिः।३०८ यामकष्टस्य सोढा । ३११ नोऽकण्डूयनश्च । ३०५७३ गृहिप्रश्ने उत्तरेऽनुत्तरे कषाये मी ८८ लाढे स्थानस्याप्राप्तावपि रणे ना६२७ अप्रतिभणतो यतनया पक्षिचर्या ३०६ गइव स्थिरो वीरः । नेन ध्यानम्। ८२ ग्रामप्रवेशेऽपि निवारणम् । ६३७ शीतेऽध्वनि स्कन्धे बाहोरनालम्बः ।। ७९७ निविटे शीते निवातसंघाटीवदया- | ९२७ दण्डादिना घाते आक्रोशे छेदे लो. |६४ अप्रतिज्ञस्य भगवतो विहारः । दिसेविष्यपरेष्यप्रतिज्ञो भग॥ नवमे प्रथमः ९-१॥ चे पशिौ पाते व्युत्सष्टकायस्य दुःख___ वान् प्रतिमास्थायी । ३०९ सहनम् । ६५ भगवच्छव्यायां शिष्यप्रक्षः। 408 प्रस्तुतविधेबहुशः सेवनम् । ३०९ | ९३० रणे शरच विरूपस्पर्शऽचलो | ६८ आवेशनसभादी प्रत्रयोदशव- ॥ नवमे द्वितीयः ९-२॥ भगवान् । ३१२ सुत्ताणि ॥३१ ~49~ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत आचाराङ्गे घहतक्रमः। सूत्राक यहां ॥३२॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ९४७ उपसंहारः। ३१२ | ११०० यावज्जीवमायतयोगादिः। | २९६ नि० तद्रक्षणार्थमेकैकस्य भा१९१७ उपसंहारः। ३१५ वनापश्चकं, तासां शत्रपरिज्ञा९५ रोगेऽप्यवमौदरिकाऽचिकित्सा च । ॥ नवमे चतुर्थः ९-४ ॥ ध्ययनाभ्यन्तरत्वम् । ९६० संशोधनवमनादेस्त्यागः । । ॥ इत्युपधानश्रुताध्ययनम् ९॥ २९७ नि० चूडानां यथास्वं परिमाणम्। ९७ विरतो भगवान् शिशिरे छायायां । ॥ इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः॥ २२४ अशनादिविषयो विधिः। ३२१ २२५ औषधिविषयो विधिः । ३२२ ध्याता । | २८५ निद्रव्याग्रनिक्षेपः। ३१८ ९८० ग्रीष्मे आतपे स्थाता,रूक्षीदनाद्याहारः २८६ ,, उपकाराग्राधिकारः। २२६ आहारस्य ग्राह्याग्राह्यविधिः । ३२३ ३१९ १०१७ शिशिरग्रीष्मयोर्मासार्द्धमासादि- २२७ गृहपतिकुलप्रवेशविधिः । २८७ ,, अग्राणामुद्धारकप्रयोजनापा २२८ अन्यतीथिकेभ्योऽशनादिदानना पानभोजनम् । ३१३ दानानि ।। |१०२ पापस्य त्रिविधंत्रिविधेन विरतिः। २९१ नि० अग्रोद्धारस्य विभागे प्रतिषेधः । १२४ २२९ अनेषणीयविशेषप्रतिषेधः । १०३ परकृताहारसेवा । ३१४ नाण्यानम् । ३१९ २३० प्रकारान्तरेणाविशुद्धिकोटिः । ३२५ १०६ वायसादेब्राह्मणादेवृत्तिच्छेदमप्री-|२९२ नि० आचाराग्राणां शस्त्रपरि |२३१ विशोधिकोटिः । . तिकं परिह सैषणा। शाध्ययनानियूढत्वम् । ३२० | २३२ नित्यानपिण्डवर्जनम् । ३२६ १०७ आईशुष्कादौ पिण्डे समता। | २९४ नि सङ्क्षेपाभिहितसंयमस्य ॥ प्रथमे प्रथमः ॥ २-१-१-१॥ १०८ भगवतो ध्यानम् । विस्तारप्रदर्शनम् । २३३ अष्टमीपौषधिकायशनादिITI १०९७ कषायादिरहितस्य प्रमादत्यागः। | २९५ नि० पञ्चमहानतप्रज्ञापने हेतुः। । वर्जनम् । ३२६ 9 ॥३२॥ सुत्ताणि ~50 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' आचाराने ॥ ३३ ॥ [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- १. "आचार ] २३४ भिक्षार्थ प्रवेष्टव्यकुलानि । | २३५ समवायाद्यशनादिप्रतिषेधः । ३२८ २३६ अन्यग्रामसडयाहारादिप्र तिषेधः, पूर्वप्रवृत्तगमनेन परिपाट्यागतग्रामे सडशाने - न्यदिग्गमनं तनिमित्तं ग च्छतः साधूनुद्दिश्य गृहस्थस्य वसतिकरणप्रकारध । ३२९ ॥ प्रथमे द्वितीयः ॥ २-१-१-२ ॥ २३७ सङ्खढ्याहारिदोषाः । ३३० २३८ संखयां ऐहिकामुष्मिकापायच, २३९ अन्यतरसइखज्याहारप्रतिषेधः ३३१ २४० ग्रामादिसङ्खडीप्रतिषेधः । २४१ सामान्येन पिण्डशङ्का । २४२ गच्छनिर्गताधिकारः । २४३ सर्वभण्डकसहितगृहपतिकु ३३२ लगमनाभावे निमित्तम् । २४४ अजुगुप्सितेष्वपि दोषदर्श नात्प्रवेशप्रतिषेधः । ३३३ ॥ प्रथमे तृतीयः ॥ २-१-१-३ ॥ २४५ मांसादिसङ्क्षप्रतिषेधः । ३३४ २४६ दुद्यमानगोप्रेक्षणे भिक्षार्थ ३३७ प्रवेशप्रतिषेधः । ३३५ २४७ प्राघूर्णकभिक्षोराहारविधिः । ३३६ ॥ प्रथमे चतुर्थः ॥ २-१-१-४ ॥ २४८ अग्रपिण्डादिप्रतिषेधः । " २४९ भिक्षाटनविधिः । २५० निशार्थ प्रविष्टस्य पथ्युपयोगः ३३८ २५१ भिक्षोः पिहितद्वारमुद्घाट्य प्र वेशाप्रवेशविधिः । २५२ यथावियुद्घाटय प्रविष्टस्य विधिः । २५३ बहिरालोकस्थानप्रवेशप्रतिषेधः । ३३८ ~51~ ॥ प्रथमे पञ्चमः ॥ २-१-१-५ ॥ २५४ कुकुटादिप्राण्यन्तरायभयाद् गृहप्रवेशप्रतिषेधः । २५९ गृहपतिकुलप्रविष्टस्य साधोविधिः । ३४३ ॥ प्रथमे पष्ठः ॥ २-१-१-६ ॥ २६० मालाहृताहारप्रतिषेधः । રૂક २६१ पृथिवीकायावलिप्ताहारप्रतिषेधः । २६२ सूर्पादिना शीतीकृताहारप्रतिषेधः । ३४५ २६३ वनस्पतित्रसका प्रतिष्ठिताहारप्रतिषेधः । २६४ पानकग्रहणविधिः । ३४६ प्रथमे सप्तमः ॥ २-१-१-७ ॥ २६६ पानकविधिगतविशेषः । २६७ भक्तपानविशेषे रागाकरणीयत्वो पदेशः । ३४७ ३४८ बृहत्क्रमः। ॥ ३३ ॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक आचाराङ्गे वृहत्क्रमः। यहां ॥ ३४ ॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम २७१ अकल्पनीयाग्राह्यत्वोपदेशः । ३४९ । असाधारणपिण्डावाप्तौ कर्तव्यः । व्याया निक्षेपचतुष्कम् ३५१ ॥ प्रथमेऽष्टमः २-१-१-८॥ _ विधिश्च । ३०३ नि० सचित्तद्रव्यशय्यायां गौ२७३ अनेषणीयपिण्डपरिहार्यत्वो २८१ इक्षुपर्वमध्याद्यकल्पनीयपरिग्रहणे - तमनैमित्तिकदृष्टान्तः । पदेशः । ३५० | परिष्ठापनविधिः । ३५४ | ३०४ नि० काये पद भावे भावशय्या । २७४ अनेषणीयपिण्डयाचनप्रतिषेधः ३५२ | | २८२ अप्रासुकलवणागमे विधिः । ३०५-३०७ नि० उद्देशपये शय्याधिकारः। ॥ प्रथमे दशमः ॥ २-१-१-१० १ उनमदोषाः संसक्तापायाश्च । २७५ गृहीताहारस्य सुरभिदुरमि२८३ ग्लानाय गृहीते पिण्डे मायानि २ शौचवादिदोषाः शय्यात्यागश्च गन्धत्वेऽपरित्यागत्वम् । षेधः । ३५५ ३ छलनापरिहार: स्वाध्या| २७६ गृहीतपानकस्य पुष्पकषायपा- २८४ ग्लानाय दत्ते पिण्डे मिथ्याग्ला ययोग्यस्थानम् । ३६० नकापरित्यागत्वम् । नान्तरायनिषेधः । ३५६ | २८७ सांडायेकबहुसाधर्मिकश्चमण२७७ अधिकाहारपरिगृहीते विधिः। २८५ पिण्डपानपणासप्तके । मिक्ष्वायुद्दिष्टादिशय्यायां स्था२७८ अनेषणीयाहारपरित्यागे भिक्षोः |२८६ प्रतिपद्यमानपूर्वप्रतिपत्रपिण्ड नादिवर्जनम् । सामन्यम् । ३५३ पानेषणस्य कर्त्तव्यो विधिः । ३५८ | २८८ साधूद्देशेन महद्वारकरणे कन्दपी॥ प्रथमे नवमः ॥ २-१-१-६ ॥ ॥ प्रथमे एकादशः ॥ २-१-१-११ ॥ | ठादिसमणे स्थानादिनिषेधः ३६१ २८० साधारणादिपिण्डावासी ब- इति पिण्डैषणाध्ययनम् ॥२-१-१॥ २८९ विनाऽऽगाढानागाढकारणः स्कन्धसतिगतसाधोः कर्त्तव्यविधिः, २९८-३०२ नि० द्रव्यादिभेदेन श मञ्चादावस्थानं, स्थाने यतना च ३६२ सुत्ताणि nav ॥३४॥ ~52~ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. "आचार"] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) आचाराने ।। ३५ ।। २९० स्त्रीक्षुल्लकादियुक्ते उपाश्रये व्याधावभ्यङ्गादिप्रसङ्गादस्थानम् । २९.१ गाथापत्याद्याक्रोशादेः शुभाशुभम नोभावात् तथाविधोपाश्रये स्थानादिनिषेधः । ३६३ २९२ साग्निकस्थाननिषेधः । ३६३ २९३ सकुण्डलादिके निषेधः । २९४ गाथापतिख्यादियुक्ते स्थाना दिनिषेधः । ३६४ ॥ द्वितीये प्रथमः २-१-२-१ ॥ २९५ शौचवाद्युपाश्रये स्थानादिनिषेधः । २९६ पुनरशनाद्युपस्कृते सागारिकोपाश्रयेऽस्थानम् । २९७ दारुभेदानिकरुणाऽऽतापप्रसङ्गातथाविधेऽस्थानम् । ३६५ २९८ द्वारोद्घाटने स्वेनप्रसङ्गेऽस्थानम् । २९९ सतॄणादावस्थानम् । ३०० भूयः साधर्मिकाचपातेऽस्थानम् । ३०१ कालातिक्रान्तशय्या । ३०२ उपस्थानक्रिया । ३०३ अभिक्रान्तशय्या | ३०४ अनभिक्रान्तशय्या । ३०५ वर्ज्यक्रिया वसतिः । ३०६ महावयक्रिया | ३०७ सावद्यक्रिया | ३०८ महासाबद्यक्रिया | ३०९ अल्पक्रिया वसतिः ३१२ वसतियाचाविधिः । ३१३ शय्यातंरपिण्डवर्जनम् । ३१४ सानिके वसतावस्थानम् । ३७१ ३६६ ३१५ कुलमध्यगमनयुक्तेऽस्थानम् । ३७१ ३१६-३१९ गाथापत्यादेः परस्परमाक्रोशाचभ्यङ्गायाघर्षणादिस्नानादियुक्तेष्वस्थानम् । ३२० ननादिगृहपत्यादियुक्तऽस्थानम् । ३२१-३२२ साण्डादिसंस्तारकस्य निषेधः (४) इतरस्य ग्रहः (५) ३७१ ३२३ उद्दिष्टसंस्तारकप्रतिमा । ३७२ ३२४ प्रेक्ष्यसंस्तारकप्रतिमा शब्दातर संस्तारकप्रतिमा च । _ ३२५ यथासंस्तृतप्रतिमा । ३७३ ३२६ प्रतिपचसंस्तारकप्रतिमापालनम् । ३२७-३२८ संस्तारकप्रत्यर्पणविधिः । ~53~ ३६७ ३६८ ॥ द्वितीये द्वितीयः २-१-२-२ ॥ ३१० प्रचुरप्रासुकान्ने ग्रामे शुद्धवसतिकथनम् । ३११ लघुपाश्रयेऽन्यच्छायसंघट्टेन ग मनादिः । ३६९ - ३७० ३७० बृहत्क्रमः। ॥ ३५ ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत हत्क्रमः॥ सूत्राक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम आचाराने ३२९ उच्चारादिभूमिप्रतिलेखनम् । ३१४-३१५ नि० उद्देशकत्रयाधिकारः। गमनं तत्प्रकारः । ३३० आचार्यादिभूमीमुक्त्वा संस्तारकः।। १ वर्षाकालादौ स्थानं शरत्कालादौ ३३७ ग्रामानुग्रामविहारे मार्गयतना। ३७७ ।। ३६ ॥jal३३१ संस्तारारोहशयनविधिः । ३७४ निर्गमश्च ।। ३३८ प्रात्यन्तिकादिम्लेच्छस्थानेषु संयमा३३२ अन्योऽन्यहस्तादिस्पर्शनिषेधः उ २ नावादावारूढस्य प्रक्षेपण, जला- त्मविराधनाप्रसङ्गाविहारप्रतिषेधः। च्छासादिनिषेधश्च । सन्तारे यतना, नानाप्रकारप्रश्ने | ३३९ अराजादिस्थाने विहारप्रतिषेधः ३७७ LC ३३३ समविषमादौ साम्येन स्थानम् ३७४ विधेयविधिश्च । ३७५ | ३४० अनेकाहगमनीयपथि विहार॥ द्वितीये तृतीयः २-१-२-३॥ ३ उदकादिप्रक्षे जानताऽप्यपदर्श प्रतिषेधः । ३७८ ॥ इति शय्येषणाध्ययनम् २-१-२॥ नता विधेया, उपधावप्रतिबन्धः, ३४२ नावारोहणप्रतिषेधः, कारणजाते त३०८ नि या नामादिनिक्षेपेण पड़ तदपहरणे स्वजनराजगृहगमना दारोहणविधिः आरूढस्य विधिरुपविधत्वम् । ३७४ दिनिषेधश्च । ३७५ संहारश्च । ३०९, व्यक्षेत्रकालाप्रतिपादनम् । ३३४ अभिप्रवृष्टे पयोमुचि साधोरनागताः | ॥ तृतीये प्रथमः २-१-३-१ ॥ ३१०-३११ नि० भावेर्या, भावेर्या आ पाढचतुर्मासकेऽपि प्रामानुग्रामवि- ३४३ नावारुढसाधोहस्थकथितच्छलम्बानादिभङ्गः षोडशधा ३७५ हारप्रतिषेधः, तत्प्रयोजनं च। त्रादिधारणप्रतिषेधः। ३७९ ३१२ नि साधोर्गमनस्य कारणचतुष्टयेन | ३३५ लघुविहारभूम्यादियुक्त वर्षावा- ३४४ तदकरणे प्रद्विर्नावः प्रक्षिप्तस्य परिशुद्धत्वम् । सनिषेधः । ३७६ कर्त्तव्यम् । |३१३ ,, ईर्योद्देशार्थाधिकारः। |३३६ निवृत्तवर्षाकाले यदा यथा च ३४५ उदकं प्लवमानस्य विधिः। ३८० | सुत्ताणि ~54~ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक आचारांगे हत्क्रम यहां ॥३७॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम | ३४६ उदकनिःसृतस्य गमनविधिः । ।३५४ पथि स्तेनादिना लुण्टिते ग्रामे ॥ चतुर्थे प्रथमः २-१-४-१॥ ३४७ मार्गान्तराले जवासंतरणविधिः ।। गृहस्थादिभ्योऽकथनम् । ३५९ गण्डीकुख्यादिभाषानिषेधः। ३८९ ३४८ उदकोत्तीर्णस्य गमनविधिः। ३८१ ॥ तृतीये तृतीयः २-१-३-३ ॥ ३६० अशनादिगतसावद्यभाषानिषेधः।। ३४९ अन्तराले गच्छतः प्रतिपधिकाम- ॥ इति तृतीयमीर्याध्ययनम् २-१-३-३॥ ३६१ मनुष्यादीन प्रति पुष्टापुष्टादिखरूपे पृष्टे निरुत्तरत्वम् । ३१६ नि० भाषाजातशब्दयोनिक्षेपाः। ३८५ भाषानिषेधः। ३९० ॥ तृतीये द्वितीयः २-३-३-२॥ ३१७ ,, उद्देशकद्धयार्थाधिकारः । ३६२ शब्दादिविषयो भाषाभाषण३५० प्राणिसंत्रासदोषभयात्साधोत्र१ एकवचनादिषोडशविधवचन विधिः । ३९१ प्रादीनामप्रदर्शन, आचार्यादि विभागः । ३६३ क्रोधादित्यागेन निष्ठादिभाषि२ क्रोधाद्युत्पत्तिर्यथा न भवति त्वम् । ३९३ भिः सह विहरणं च । ३८२ | तथा भाषणविधिः । चतुर्थे द्वितीयः ॥ २-१-४-२ ३५१ आचार्यादिना सह गच्छतः सा | २५५ क्रोधादिवाग्निषेधः, षोडशधा- ॥ इति भाषाध्ययनम् ।। २-१-४॥ धोबिधिः । ३८३ | वचनं भाषाचतुष्कं च। ३८५ | ३१८ निवखषणोद्देशवयार्था३५२ प्रातिपथिकप्रश्नेषु साधोर्निर३५६ शब्दस्य कृतकत्वाविष्करणम् ३८७ धिकारः। त्तरत्वम् । १ वस्नग्रहणविधिः ३५३ पथि हिंसकपाणिभयाद्दीर्घाव ३५७ पुरुषादीन् प्रति साघोषण विधिः । ३८८ २ वनधरणविधिः । ___नि स्तेनादिभयाच्चोन्मार्गगम- ३५८ साधोः 'नभोदेव इतिवा' पात्रनिक्षेपः, गुणधारिसानादिनिषेधः । ३८४ इत्यादिभाषानिषेधः । धोरेव भावपात्रत्वं च । ३१५ ॥३७॥ सुत्ताणि ~55 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्राक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम आचारांगे ३६४ वस्त्रग्रहणधारणविधिः। ३९३ ॥ इति वस्त्रैषणाध्ययनम् ॥ २-१-५ ।। | ३८० परप्रत्ययिकपीठादिना प्रातिहा- हत्क्रमः।। ३६५ वस्त्रार्थ दूरगमननिषेधः । ।३७५ पात्रग्रहणधरणविधिः । ३९९ | रिकसूच्यादिना परानिमन्त्रणम् ॥३८॥ ३६६ आधार्मिकप्रकारः। । ॥ वष्ठे प्रथमः || २-१-६-१ ॥ दानविधिश्च । ४०३ ३६७ साधुनिमित्तक्रीतधौतादिकव- ३७६ पात्रप्रत्युपेक्षणानन्तरं पिण्ड- ३८१ सपृथिवीकादौ स्थूणादी ओलिखनिषेधः । ग्रहणम् । ४०० ३६८ बहुमूल्यवस्त्रग्रहणनिषेधः । ३९४ | ३७७ पात्रेषु पानकग्रहणविधिः४०१ कादौ स्कन्धादौ सलीकादौ M३६९ वस्त्रप्रतिमाचतुष्क, वस्त्रग्रहणविधिश्च षष्ठे द्वितीयः ॥२-१-६-२॥ गृहमध्यमार्गे परस्पराक्रोशादिF३७० साण्डादिकनिषेधः, अभिनव मति गृहेऽवग्रहग्रहणनिषेधः । ४०४ |॥ इति पात्रैषणाध्ययनम् ॥ २-१-६॥ बलनिषेधः, मलापनयनार्थ ३१९ नि० अवग्रहप्रतिमाया द्रव्या ॥ सप्तमे प्रथमः ॥२-१-७-६ ॥ निषिद्धं तद्दानं च । ३९६ | दिनिक्षेपचतुष्टयम् । ४०२ | ३८२ यथालन्दिकावग्रहे श्रवणादे३७१ धौतस्य प्रतापनविधिः । ३२० निद्रव्याद्यवाहप्रतिपादनम् । छत्रादेरपरावर्तनम् । ॥ पञ्चमे प्रथमः ॥ २-१-५-२॥ ३२१ नि० भावावग्रहः ३८३ ईक्ष्वानलशुनवनेषु स्थान३७२ बखधरणविधिः । ३९७ ३२२ नि. ग्रहणावग्रहः । विधिः । ४०५ ३७३ प्रातिहारिकोपहतवस्त्रविधिः। ३७८ अदत्तादाननिषेधः, छत्रादीना- ३८४ अवग्रहमेदसप्तकम् ३७४ वर्णान्तगद्यकरणं स्तेनादिन- ___मनुज्ञाप्य ग्रहण च । ३८५ देवेन्द्रायवग्रहाः । ४०६ सङ्गेऽगोपनं च । ३९८ | ३७९ अवग्रहयाचनविधिः, तत्रागत- || सप्तमे द्वितीयः ॥ २-२-७-२॥ INH ॥ पश्चमे द्वितीयः ॥ २-१-५-२॥ । माघूर्णकसाधुविधिश्च । । ॥ इत्यवग्रहमतिमाऽध्ययनम् ॥२-१-७॥ ॥३८ ।, सुत्ताणि ~56~ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक आचाराङ् वृहत्क्रमः।। यहां ॥३९॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ॥ इति प्रथमा आचारागचूला ॥१॥ रामाट्टालकत्रिकाङ्गारदाइनद्या- ३९४ नि० प्रथितयेष्टिमादिरूपं तद्- | ३२३ नि० स्थानसप्ततिकायामूर्द्धयतनमृत्खनिडागासनवनादिष् दर्शनार्थ गमननिषेधः । स्थानेन प्रकृतं, निशीथनिक्षे वारादिनिषेधः । ४११ १७पर | ३२७ परशब्दस्य निक्षेपषट्कम् । ४१५ पषदकं च ४०७ ३९० उच्चारमश्रवणविधिः । ॥ इति रूपसप्तककाध्ययनम् ३८६ अनण्डादिके चतुर्धा ॥ इत्युच्चारप्रश्रवणसप्तककाध्ययनम् ॥२-२-१२ ॥ ॥२-२-१०॥ ॥ इति स्थानसप्तककाख्यमष्टमाध्ययनम् ॥ ३२६ नि० शब्दस्य द्रव्यभावनिक्षेपौ ४१२ ३९५ परकृतक्रिया (शुश्रूषा) परस्पर॥२-२-८॥ ३९१ भिक्षोर्विततादिशब्दश्रवणार्थ । क्रियायाश्च त्रिविधेन निषेधः। ४१६ ३८७ स्थानप्रतिमा अनण्डादिके स्वा गमननिषेधः । ३९६ साधोग्विलादिभिः स्वपरध्याये आलिङ्गनादिनिषेधः । ४०८ ३९२ वपादिस्थानवर्णकश्रव्यगेयादि कृतचिकित्सानिषेधः । ॥ इतिनिधीधिकासप्तककाध्ययनम् शब्दश्रवणप्रतिज्ञया तत्र गमन ॥ इति परक्रियासप्तककाध्ययनम् निषेधः । ४१३ ॥२-२-१३ ॥ ३२४-३२५ नि० उच्चारप्रश्रवणशुद्धिः । | ३९३ कथानकतवर्णनस्थानादि ३२८ नि० अन्यशब्दस्य निक्षपषट्कम् ४१७ ___ तत्करणविधिश्च ४०९ धवणार्थ गमननिषेधः। ३२९ नि० गच्छनिर्गतानामन्यकि३८८ याचितपात्रेऽनण्डादिके उच्चा॥ इति शब्दसप्तैककाध्ययनम् । याया अप्रयोजन । रादिकरणम्, ॥२-२-११ ॥ ॥ इति सप्तसप्तिकाख्या द्वितीया चूला ||२|| ३८९ सबीजादिके सरन्धनादिके आ- ३२७ नि० रूपस्य द्रव्यभावनिक्षेपी ४१४ | ३९७ अन्योऽन्यक्रियानिषेधः । सुत्ताणि ~57 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१. “आचार' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत आचाराओं वृहत्क्रमः॥ सूत्राक यहां ॥४०॥ ४३१ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम -SETOS ॥ इत्यन्योऽन्यक्रियासप्तककाध्ययनम् । ३९९ च्यवनाद् यौवनं यावत् श्रीवी- २३८७ पर्वतदृष्टान्तः । __ ॥२-२-१८॥ | रवर्णनम् । ४२११४३, रूप्यदृष्टान्तः। ४३० ३३० भावनायां द्रव्यभावभावभावन ...|४०० श्रीवीरतत्पितृमातृपितृव्यभ्रात- योनिक्षेपी, द्विविधत्वम् । ४१८ १४४७ भुजगत्यग्दृष्टान्तः। ४३१ | ३३१ नि. अप्रशस्तभावना । भगिनीमार्यादुहितनत्रभिधा- १४७ समुद्गदृष्टान्तः । ३३२ नि प्रशस्तभावना। नानि । ४२२ । ॥ इति चतुर्थचूला समाप्ता ॥ ४ ॥ ४१८ ३३३ नि० दर्शनभावना । |४०१ श्रीवीरमातापित्रोरन्त्याराधना देव- ॥ इति विमुक्त्यध्ययनं समाप्तम् ॥२-३-१६॥ ३३४-३३५ नि० जन्मभूम्यादिगत गतिश्च । ३४७ नि० चतुर्थचूलोपसंहारः पञ्चजिनचैत्येष्वभिगमनादि ४०२११२७-१३५७ दीक्षोपसर्गकेवलस मचूलाप्रतिज्ञा । ४३२ कुर्वतो दर्शनशुद्धिः। भावनाकमहावतदेशना । ४२५ । ३४८ नि० नवाध्ययनोद्देशसंख्या । ३३६-३३७ नि० प्रावचनिकाचार्यादेः | || इति भावनाध्ययनम् ॥२-३-२५॥ | ३४९ निद्वितीयश्रुतस्कन्धाध्ययनोप्रशंसागुणमाहाम्यादि ॥ इति भावनाख्या तृतीया चूला ॥३॥ द्देशसख्या । कुर्वतो दर्शनशुद्धिः । ४१९ | ३४५ नि० अनित्यपर्वतरूप्यभुजगत्व ३५०-३५२ नि० महच्छब्दनिक्षेपः। ३३८-३४० निशानभावना। ४२० । समुद्राधिकाराः। ४२९ | ३५३-३५६ नि० परिशाशम्वनिक्षेपाः । ३४१-३४२ नि० चारित्रभावना । ३४६ नि० साधुसिद्धयोदेशसर्ववि ॥ इत्याचाराङ्गसूत्रस्य विषयानुक्रमः ।। ३४३-३४४ नि० तपोभावना । मुक्तत्वम् । | ३९८ सजिप्तमध्यमवाचनया वीरचरित्रं, | १३६७ अनित्यावासः । d ॥४०॥ सुत्ताणि ~58~ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रकृतांगे हत्क्रममा सूत्राक यहां ॥४१॥ देखीए व्याख्या उपोद्घातः । दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सूत्रकृतांगे विषयानुक्रमः॥ सूत्राणि ८२ सूत्रगाथाः ७२३* नियुक्तिगाथाः २०५॥ मङ्गलम्, पूर्वसूरिव्याख्यातस्य । इन्द्रियाणि विषादिपरिणामो वा, । विकप्राकृतभाषया कृतिश्च गसंघातनादिमिरजीवे प्रयोगः, __णीनां । ६ १नि मङ्गलादि विधुदादिषु विवसा क्षेत्रे इक्षु- २०नि० सूत्रकृतनिरुक्त्यन्तरम् । ७ २ नि० सूत्रकृतो नामत्रयम् । २ क्षेत्रादि काले बबादि भावे प्रयो- २१ नि• बहूनामर्थानां सूचनात् ३ नि० सूत्रनिक्षेपः (४)२ द्रव्ये गे उत्तरे कलासु श्रुतयौवनानि __ सूत्रता । ७ पोण्डगादि, भावे संज्ञासंग्रह- भोजनादिना वर्णादि च, विश्र- २२ नि० श्रुतस्कन्धादिपरिमाणम् । ८ वृत्तिजातिभेदम् , अन्त्ये कथ्य सा छायातपदुग्धादिषु । ५ २३ गाथायाः (४) षोडशकस्य (६) गद्यपद्यगेयानि । १६ नि० त्रिविधयोगशुभध्यानाध्य श्रुतस्य (४) स्कन्धस्य (४) ४-१५ नि०करणकारककृतानां निक्षेवसायस्वसमयैः प्रकृतम् । ६ च निक्षेपाः ८ पाः(६) द्रव्यकरणे मूलोत्तराभ्यां १७-१९ नि० रचनायां स्थित्यनुभा- २४-२८ नि० आद्यश्रुतस्कन्धाध्यप्रयोगः, व्यञ्जनोपस्काराभ्यां ववन्धाद्यवस्था सूत्रकृताङ्गकरण नार्धाधिकाराः ( उपक्रमादीनि) उत्तरम् , शरीराणि करणादीनि रीतिः जिनस्य वाग्योगः, स्वाभा आनुपूर्वी च । ८-१० ॥४१॥ सुत्ताणि ~59~ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. "सूत्रकृत् । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) सूत्रकृतांगे ॥ ४२ ॥ २९. नि० समयनिक्षेपाः ( १२ १२) १० ३० नि० उद्देशार्थाधिकाराः । ११ ३२ नि० पंचभूतै (१) कात्म (२)तजीवतच्छरीरा ( ३ ) ऽकारकात्म (४) पष्ठा (५) फलवादिनः (६) आधे, नियत्य ( १ ) शा निक (२) ज्ञान (३) कर्माश्रयाः (४) द्वितीये, आधाकर्मकृतवादिनौ च तृतीये, गृहस्थोपमा चतुर्थे । १ बन्धनबोधत्रोटनोपदेशः बन्ध प्रश्न १२ २ सच्चित्तादीनां परिग्रहो बन्धः । १२ ३-४ आरभ्यममत्वे बन्धः । १३ ५७ वित्तायन्त्राणम् । १३ ६७ परेषां कामासकत्वं । १४ ७-८ भूतेभ्यः उत्पादः, तन्नाशे नाशय । १५ ३३ नि० चैतन्यादिगुणात् अन्येन्द्रियज्ञानात्मसिद्धिः । १६ ९-१० पृथ्वीस्तूपवत् एकोऽपि नानाविधः, तन स्वकृतवेदनात् । १९ ११-१४० न सस्था औपपातिकाः, न पुण्यादि च आत्मनोऽकारःकत्वं च तेषां लोकाभावः प रमनरकश्च । २२ ३४-३५ नि० अकृतावेदनात् कृतनाशात् अस्मनामाभवाच्च तन अफलदुग्धत्वादि नाद्रुमगोत्वे हेतुः । २३ १५-१६७ पंचभूतात्मपष्ठानां नित्यता, उत्पादनाशाभावः (सत्कार्यवादः) २४ ~60~ १७ स्कन्धपञ्चकम्, अभ्यानन्यते हेत्वहेतुकत्वे ( क्षणिकवादः ) २५ १८ चातुर्धातुकं जगत्, अकृतबेदनादिनोत्तरम् ( क्षणक्षय समाधानं ) २७ १९-२७ निदर्शनाङ्गीकारात् मोक्षः, तन ओघसंसारगर्भजन्मदुःखमार्गगामिता तेषां संसारभ्रमः गर्भानन्त्यञ्च २९ इति प्रथमाध्ययने प्रथमोद्देशः १८-३० सत्त्वा औपपातिकाः पृथक् सुखादिवेदिनः संसारभ्रमिणश्च, परं तेषां सैद्धिकं असैद्धिकम् नीतिजम् ३१ ३१-६२ नियतानियतयोरवेद नात् संसारः । ३१ बृहत्क्रमः। ॥ ४२ ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. "सूत्रकृत् । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) सूत्रकृतांगे ॥ ४३ ॥ ३३-४१० मृगवत् अस्थानाशङ्किनः अज्ञातपाशमोचनोपायाः, मृगवनश्यन्ति अज्ञानिकाः स्वस्थाज्ञानवादिनः परेषां म्लेच्छानुभाषिता, तन, विमर्शानुशासनयोर्मुकवत् अन्धवच्चाभावात् । ३७ ५० स्वपरप्रशंसागवतोः संसारः ३७ ५१-५५ अव्यक्तसावयम् (प्राणीप्राणीज्ञानादिभिर्भङ्गाः ३२ ) आदानत्रयम् भावविशुद्धया निर्वाणम्, पुत्रपलभोजनवत् न बन्धः । ३९ ५६-५९ द्विष्टमनसः सातावादि नः न संवृतता अन्धाधाविणी नौचारितवत् संसारमज्जनं च । ४० इति द्वितीयः ६०-६३ ७ सहस्रान्तरितपूर्तिभोजिनो वैशालिकमत्स्यवत् अनतघातप्राप्तिः । ४२ ६४-६९ देवब्रह्मगुप्त ईश्वरकृतः प्रधानादिमयः स्वयम्भूकृतः मा रकृता माया अण्डोद्भवं जगत् इत्यादिवादनिरासः । ४५ ७०-७५ क्रीडया भवावतारः तद्पणं च अणिमादिगुद्धानां आसुरता च । ४७ इति तृतीयः ७६-७९ अनुत्कर्षोऽप्रडीनो यापको मुनिः अपरिग्रहो ऽनारम्भश्च चाणम् कृतप्रासैपी ४९ ८०-८३ नानन्तोऽनित्योऽन्तवानित्यो वा सपरिमाणो ~61~ वा लोकः सस्थावरपरावृत्तेः ( अपुत्रस्य इत्यादिलोकवादखण्डनं च ) ५० ८४-८८ सर्वे दुःखाक्रान्ताः अतोऽहिंसको ज्ञानी चर्याशनादिषु अगृद्ध आत्मरक्षः ससामाचारीका उत्कर्षादिरहितः समितः संवृतोऽसितः मोक्षाय यतो यतिः इति चतुर्थः । ५२ ॥ इति प्रथमं समयाध्ययनम् ॥ ३६-३७ नि० विदार्यविदारक विदारणीयनिक्षेपाः (४) द्रव्ये परश्वादि दार्वादि च भावे दर्शनादि कर्म च । ५३ ३८ नि० बैतालीयनिरुक्तिः । १३ ३९ नि० शाश्वतत्वेऽपि अष्टापदे ऋषभेण उक्तम् । ५३ बृहत्क्रमः। ॥ ४३ ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत आचाराओं हत्क्रमः॥ सूत्रांक यहां देखीए ॥४४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ४०-४१ नि० उद्देशार्थाधिकारः आधे । ९९-२०० यतो योगवान् यथागर्म । ११३-११६ सिद्धचक्रवर्तिप्रेष्ययोः सम्बोधोऽनित्यता च, द्वितीये क्रोधादिहिंसादिवर्जकच साधुः। ५७' मौने साम्यम् यावत्कथं पण्डिमानवर्जनादि, तृतीये कर्मापच- | १०१-१०३ दुःखं सर्वेषां, शरीरक- तः मोक्षार्थी भववैरी आक्रुष्टो यः सुखप्रमादवर्जनं च । ५४ शता अहिंस्रता च, उपधानवान् हतोऽपि समः उत्तरक्षमः नि८९-९० दुर्लभो बोधिः पुनर्जी कर्मक्षपकः । ५८ विराधनो निष्कोधमानः वितं च सर्वावस्थास मरण । ५४ १०४-११०वालं वृद्ध माऽनगारं प्र ११७-१२० हृदैवानाविलः काश्यपो ४२ द्रव्येऽनिद्रा भावे दर्शनादिस- वजन्तं पुत्रार्थ रोदनेऽपि बद्धा धर्मकथकः बहुजननमने संवृतो सम्बोधः । ५५ गृहनयनेऽपि न वशं कुर्यात् सर्वार्थेष्वनिश्रितः(धर्म्यधर्म्यल्प९१-९६ नि मातापितरौ न त्राणम् पोष्यान् पोषयेत्युक्तोऽपि न बाहुल्यकथा) पृथक्प्राणाः दुःखदुर्लभा सुगतिः स्वकर्मवेदिता महोत, विषमाणां मोहो विरतः कर्मामोक्षः देवादिस्थानान्यशा- सिद्धिपथयायी वित्तज्ञात्यार द्विषः सुखप्रियाः विरतपण्डितः श्वतानि दुःखच्यवः कामगृद्धिः धर्मपारगो मुनिः न स्वजनानां भवर्जकः संवृतः इत्याद्यः । ६० कर्म भोगवत् मरण बहुसुतत्वेऽ बशः अगारे इहलोकदुःखादि। ६४| | १११-११२ निर्मोकवत् कर्महा निपिमूच्र्छा आत्मपरयोरुद्धारशता।५६ | मैदः निर्निन्दपरिभवश्च ६० | १२१-१२४ - वन्दनपूजनादिरभि९७-९८ नग्नमासोपवासिनोऽपि ४३-४४० तपःसंयमादिमदोऽपि प्वङ्गा दुरुद्धरं सूक्ष्मशल्यं च मायया गर्भाटनमापत्त्यन्त जीवयः किं पुननिन्दा निजराम स्थानासनसमाधिषु एक: उवितं असंवृतानां मोहः । ५७ दोऽपि प्रतिषिद्धः । ६२ । पधानवीयः अध्यात्मसंवृत्तश्च ॥४४॥ सुत्ताणि ~62~ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत्”] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक पत्रकृतांगे वृहत्क्रमः। यहां ॥४५॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम द्वारं न स्थगयेत् नोद्घाटयेत् धर्मप्रेरकाश्च, शब्दाद्यप्रेक्षकःमा- | १४९-२५४७ कुगतिभयादात्मशासन मार्ग न घूयात् तृणानि न छि- यावर्जकः समाधिवित् कथा- असाधोः, रहितः शोकपरिदेवान्द्यात् न च संस्तरेत् अस्त प्रश्नसम्पसारवर्जको निर्ममश्च दिना, शतवर्षा अपि कामगृद्धानमिते सममिते समविषमयोः मायादिवर्जको सुविवेकः क- रकगामिनः, आरम्भादिनिमित्तानां भैरवादेश्च सहनै । ६५ महा अस्नेहः सहितादि उप- पापलोकः असंस्कृते जीविते १२५-१२८ उपसर्गसहनरोमाहर्षः धानवान् समाहितेन्द्रियः अ धृष्टो बालः प्रत्युत्पन्नक्षीच जीवितपूजनानीप्सुः निर्भयता श्रुतं अननुष्ठितं च सामायिक मोहनीयेन मिथ्यात्वम् पुनसामायिक उष्णोदकभोजिता गुरुछन्दोऽनुवृत्तानां तरणं । ७० टुःख पुनर्मोहः श्लोकपूजानिराजसंसर्गोऽसमाधिः । ६६ । ॥ इति द्वितीयः वैतालीयस्य उद्देशः। वेदः प्राणेष्वात्मसमः । ७४ १२९-१३४% अधिकरणवर्जन शी- १४३-१४८७ संयमात् दुःखक्षयः स्त्री- १५५-१५८० गृहस्थोऽपि देवलोक तोदकगृह्यमत्रत्यागः असंस्कृते विरताः तीर्णरूपाः कामा रोगाः गामी विनीतमत्सरो भिक्षुः जीविते धृष्टो मदवाँश्च बालः वणिगानीताप्रवत् आचार्यक- उछाहारः धर्माद्युपधानवीर्यः, स्वाभिप्रायी बहुमायो लोकः थितव्रतधरा मुनिराजाः, साता गुप्त्यादिगुणाः दिगादि शरणं शीतोष्णवचःसहः साधुः कृतनुगाः कामगृद्धा न समाधिशा इति वालः । ७५ मिव हितो धर्मः । ६७ ना व्यायहता मृगवत् कामीति, १५९-१६४ीपकार्मकी आभ्युप१३५-१४२ ग्रामधर्मविरताः साधवः लम्धापलब्धारं कुर्यात् । ७२ | गमिकी वेदना, गतिरागतिश्चै ॥४५॥ सुत्ताणि ~63~ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत खत्रकृतांगे| हत्क्रमः सूत्राक यहां ॥४६॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम कस्य स्वकर्मकल्पिता जन्माया- |१६५-१६८७ कृष्णं दृष्ट्वा संग्रामे शि- . कुला जीवाः बोधि?र्लभः चै- शुपालवत् शैक्षो रूक्षे विषीदेत् । कालिकजिनानां मतो धर्मः हिं हेमन्तशीते च (शिशुपालकसाविरतोऽनिदानः सिद्धः से थागाथाः)। ८० त्स्यति च इति बैशालिकोक्तम् । १६९-२८२ तापेन मत्स्यवत् खेदः, ॥ इति तृतीयं ३ अध्ययनं ॥ पृथगुजनानां याचना दुःख, सं॥ इति द्वितीयं वैतालीयाऽध्ययनम् ॥ ग्राम इव शब्दे खेदः स्वदंशे ४५-४८ नि० उपसर्गनिक्षेपाः (६) मन्दानां खेदः, प्रतिकारगता एद्रव्ये चेतनाचेतने आगन्तुकक्री ते नग्नाः पिण्डावलगका इति डाकरश्चोपसर्गः काले दुषमदु- निन्दका नरकगामिनः, दंशमप्षमादिः भावे ओघः औपक्रमि शकादिस्पृष्टः परलोकाश्रद्धानं कश्च, उपक्रमे द्रव्ये देवमनुष्य केशलोचब्रह्मचर्यपराजिताः खितिर्यगात्मसंवेदनाः (१६) ७७ द्यन्ते मिथ्याभावना हर्षद्वेषाप४७-५०नि० उद्देशार्थाधिकाराःप्र- पन्नाश हिंसंति चौर इतिकृत्वा तिलोमाः १ अनुलोमाः २ अध्या बध्नन्ति ताडयन्ति स्पर्शानां त्मशुद्धिः परवादिवचनं ३।। दुःसह्यता । ८३ स्खलितशीलप्रज्ञापना (४)। ७८ | ॥ इति प्रथमोद्देशः ॥ १८३-१९१७ स्वजनाः परिवृता रुद् न्ति पिता स्थविरः स्वसा लघ्वी स्वका भ्रातरः पोषय मातापितरं मधुरोल्लापाः पुत्रा नवा भाया कर्मसहाया वयं अकामस्य वा श्रमणता समीकृतं ऋणं दास्यामो वयं इत्येवं स्वजनैः विबद्धोऽ गारं गच्छति । ८५ १९२-१९५७जातिसङ्ग क्लीवानां मोहः, जीविताऽनवकांक्षी भिक्षुः आ वर्ततरश्च । ८५ १९६-२०३७ हस्त्यश्वादिभिः वखर्ग धालंकारस्यादिभिश्च राजादिकृता निमंत्रणा अगारेऽप्यक्षतानियमज्ञापनं चिरोपितस्य न दोषः तत्र मन्दानां खेदः भिक्षाचर्यायां रुक्षेणखीकामगृहया च।८८ ॥४६॥ सुत्ताणि ~64~ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. "सूत्रकृत पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) सूत्रकृतांगे ॥ ४७ ॥ इति द्वितीयः २०४-२१० संग्रामे भीरोर्वडयाथपेक्षाचत् व्याकरणादिषु प्राणबुद्धिरशूराणां मरणाध्यवसा यवत् मुनीनां आत्मपरता । ९० २११-२१७ समाधिहीनाः ग्लानवेयावृत्ये सम्बद्धकल्पनां मूर्च्छा अपारगमनं कल्पयन्ति, स्वयं च गृद्यमत्रभोजनादिना द्विपक्षसेविनः समाभ्युज्झिताः अ समीक्ष्यकारकाः । ९२ २१८-२२४ गृहिणः श्रेयोऽभ्याहतं ग्लानावैयावृत्यं न भगवद्वाचः वादनिराकृताः मिथ्यात्वे दृष्टा भ वन्ति समाहितात्मनोऽविरुद्धा सामाचारी, ग्लान्यां समाधिकरणं इति तीर्थकुदुक्तो धर्मः, उपसर्गान् जित्वा मोक्षाय व्रजेत् । ९४ इति तृतीयः २२५-२३२७ शीतोदकात् वल्कलाया अभुक्तवालमारामगुप्तो भुक्त्वा शीतोदकात् बाहुकः परिणतोदकात् नारायणः आसीलदेविद्वैपायणपरासराः बीजोदकादिभोगात् सिद्धा इति मत्वा मन्दानां खेदः, एकेषां सातेन सातं नैव अयोहारिवत् अल्पेन बहु लुम्पेत् हिंसादौ वर्त्तनादिना । ९७ २३३ - २३७० गड्डादिवत् न स्त्रीषु दोष इत्यनार्याः कामगृद्धाः । ५१-५३ नि० शिरश्छेदविषगण्डूषरत्नचौरवत् सदोषता तत्र । ९९ ~65~ २३८-२४६४ प्रत्युत्पन्नैषिणां वृद्धत्वे खेदः, न पराक्रमयताम्, दुस्तरा नार्यः, स्त्रीसंयोगरहितः समाहितः उपसर्गसहः पारगः इति सुव्रतादिगुणः स्यात् अग्लान्या ग्लानस्य समाधिं कुर्यात् मोक्षाय व ब्रजेत् इति चतुर्थः । १०१ ॥ इति तृतीयमुपसर्गाध्ययनम् ॥ ५४ नि० स्त्रीनिक्षेपाः (७) द्रव्ये व्य तिरिक्ते एकभविकादि भावे वेदोपयुक्तः । १०२ ५५ नि० पुरुषनिक्षेषा. (१०) 1 ५६ उद्देशार्थाधिकारः । ६१ 33 5 39 स्त्रीभिः संगादिना स्खलना, द्वितीये स्खलितस्यावस्था कमबंध (अभयप्रद्योतकूलवालादिवत् ) स्त्रीभिर्गृह्यन्ते त बृहत्क्रमः ।। ॥ ४७ ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे वृहत्क्रमः।। यहां ॥४८॥ देखीए बर दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम स्मान विश्वासः नारीवशाना- । भ्यो बहवो भ्रष्टाः, शुद्धवादिनामपि गाय स्त्रीणां प्रवजितत्वमपि, मशूरता (नारीस्वरूपै) सूरल- मायित्वं तेषां, उपदेशेऽपि ग्लानिः, अलाबुच्छेदादिविविधसाधनया क्षण, अप्रमादोपदेशः । १०४ प्राज्ञानामपि बशवर्तिता (वैशि- चना, वशवत्तिनामुष्ट्रवारव२४६-२७७% गुप्ताभिधानेन उपक्र- काध्येतदष्टान्तः ) खीसम्पर्कवि- इत्वं, धात्रीबद्दारकस्थापन, ल मते साधून , प्रतारणोपायाः आ- पाकाः, वैशिकायुक्ता स्त्रीमाया जालोरपि रजकत्वं दासत्वं प्रेस्मरक्षिततोपायाः, स्त्रीणां पाशत्वं, (दत्तवैशिकदृष्टान्तः) धर्मभ्रव- प्यत्वं पशुभूतताच, तस्मात्संकारुण्येन वशीकृत्य आज्ञापनं. णव्याजेन चालनं, उपज्योतिर्ज- स्तवसंवासादिकामांश्च वर्जयेत्, मांसेन सिंहप्रलोभनवत् संवृ- तुकुम्भवत् साधोविघादः, स्त्री- करकर्मणः परक्रियायाश्च वर्जन, तस्याप्युपलोभनं, चक्रवन्नामनं, संवासेन नाशः, कृत्वाऽपि पापं सर्वस्पर्शसहो मोक्षाय परिव्रजेत्। १२१ मृगवदमोक्षः, पश्चाद्विषमिश्रपा- माया, बालत्वं च तत्कनु, इति द्वितीयः । यसभोजनवद्दारुणता, संवासस्य पूजाकामे, वखादिनिमंत्रणेनापि ॥ इति चतुर्थ स्त्रीपरिज्ञाध्ययनम् ॥ वयंता, विषकण्टकवत् त्रियः, वशीकारः, नीवारवत् खियः, ६२ नि० नरकनिक्षेपाः (६)। स्त्रीणामेकाकी धर्माख्यायी न विषयपाशबद्धानां मोहः, । ११४ | १२, नरकदुःखश्रवणात् तपसि साधुः, ताभिः सह विहारवर्जन, इति प्रथमः । यत्नः । १२१ दुहित्रादिभिरपि संस्तवत्यागः, २७८-२९९७ भोगाभिलाषेऽपि निवृ- ६४विभक्तनिक्षेपाः (६) नान्नि संस्तवकारिणामचमणत्वं, स्त्री- | त्तिः, भोगिनां विडम्बना, भो- स्वादयः, स्थापनार्या तासां स्था ॥४८॥ सुत्ताणि 466~ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे बृहत्क्रमः यहां ॥४९॥ देखीए -ak पनं द्रव्येऽसांसारिके तीर्थाती- | ६५-८२ नि तिसृषु नरकपालकता थसिद्धादिः (१५) सांसारिके बेदना, शेषासु अनुभावेन, नएकेन्द्रियादिः जातौ पृथिव्यादिः रकपालानां नामानि कार्याणि च १२५ रूप्यजीवे स्कन्धादिः, अरूपिणि ३०० नरके वेदनायाः वर्णनं । धर्मास्तिकायादिः, क्षेत्रे स्थाने- ३०१ प्रश्नः, उत्तरस्योपक्रमः । १२६ ऽधोलोके रत्नप्रभादिः सीमन्त ३०२-३०३० रौद्रस्य पापिनो नकाविश्व, तिरश्चि द्वीपसमुद्राः, रके पतनं, आत्मसुखमाश्रित्य ऊर्ध्वलोके सौधर्मादिः विमाने- हिंसकादेश्च (नरकवेदना) १२७ न्द्रकादिव, दिशि द्रव्ये स्वाम्ये | ३०४-३२६७ हिंसयाऽनिवृत्या च च, आर्यानार्यक्षेत्रविभक्तिर्वा नरकगामिता नरकपालशब्द(२५॥ आर्याः, अनार्याश्चानेकधा) श्रवणात् कांदिशीकता, दाहे कालेऽतीतादि, एकान्तसुषमा करुणस्वननं वैतरणितरणं, कीदि समयादि च, भावे जीवे औ- लविद्धानां नावुपसर्पणं, शूलादयिकादि २१-२-९-१८-बहु दिवेधः, शिलाबन्धनं, उदकनि२६ भेदाः, अजीवे वर्णादि ग- मजनं, मुर्मुरादौ लोलनं पात्युपष्टम्भादि च । १२३/ चनं च, सर्वतोऽग्निदाहा, सदा दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम धर्मः, मत्स्यवत्तापसहन, हस्तपादादिच्छेदः, रुधिरोद्वमः, म. त्स्यवत्पाकः, तथाऽपि न भस्मीभावो, न मरण, निरन्तरं तापः, परमाधार्मिककृता पीडा, दण्डधातः, पूर्वकृतस्मारणेनाऽशुच्यादिभक्षकत्व, कम्युपद्रवः, निगडयन्त्रणा, वेधः, कीलनं, नक्रौष्ठकर्णजिह्वाच्छेदः, शूलाभितापः, अहर्निश स्वननं, शोणितादिगलनं, क्षारक्षेपः, कुम्भ्यां क्षेपः, तप्तत्रवादिपान, अल्पेनात्मवञ्चकानां कलुषार्जन नरकस्थानं च ॥ आधः उद्देशः। १३५ ३२७-३५१७ नरकदुःखोपक्रमः, हु स्तपादयन्धः, उदरपाटन, वर्ध 9 ॥४९॥ सुत्ताणि ~67~ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे हवक्रमः। यहां ॥५०॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम कर्तनं, बाहुच्छेदः, मुखेऽयोगोलकक्षेपः, रथयोजन, तोत्रवेधः, तप्तभूमिक्रमणं, दण्डैस्तिरस्कारः, सन्तापन्यां शिलाभिCतः, कन्दुपातादुत्पतनं, का. कसिंहादिभिः खादनं, समुच्छ्रिते अयोवत्खण्डनं, संजीविन्यां पक्षिभिः खादनं, शूलावेधः, स. दाज्यले स्थानं, चिताक्षेपः, हस्तपादबन्धः, पृष्ठिवाहः, शिरोभेदः, तप्ताऽऽरानियोगः, मर्मवेधः, कण्टकाकुले गतिः, कोट्टबलिकरणं, सहस्रं मुहूर्तानां पवतेन घातः, कूटेन धातः, मु. दरमुशलघातः, अनाशितटगालभक्षण, सदानलायां बहन, अत्राणस्य सदा दुःखानुभवन, । वीरस्य स्वरूपाय श्रवणादिप्रश्नः, यथाकर्म एकान्तदुःखो नरक, शानदर्शनशीलजिज्ञासा । १४३ तस्मात् अहिंसकोऽपरिग्रहः लो- ३५४-३८०७ रोदनताद्या गुणाः, सर्वकावशः ध्रुवाचारी भवेत् । १४३ | दर्शित्वाद्याः, भूतिप्रज्ञत्वाद्याः द्वितीय उद्देशः सूर्य-बैरोचनेन्द्र-स्वयम्भू-शक सुदर्शनमेरु-निषध-रुचक-शाइति पञ्चमं नरकविभक्त्यध्ययनम् । ल्मली-नन्दनरौपम्यम् । स्तनि- ' ८३ नि० प्राधान्ये महच्छब्दः त-चन्द्र-चन्दन-स्वयम्भू-धरणेप्रधाननिक्षेपाः (४) वीरनि न्द्र-क्षोदोदकै-रावण-सिंहक्षेपाः । (४) १४२ गङ्गा-गरुडवत् निर्वाणवादिना झातपुत्रः, विश्वसना-इरविन्द८४-८५ स्तुतिनिक्षेपः (४) द्रव्ये चक्रिवत् श्रेष्ठः ऋषीणां, आगन्तुकभूषणैः भावे गुणस्तवैः, अभयदानाऽनवद्यवचोब्रह्मचर्यजम्बूपृच्छायां सुधर्मोत्तरं, वीर वल्लोकोत्तमता, लवसप्तमसुस्योद्यमः । १४३ धर्मसभानिर्वाणश्रेष्ठधर्मवत् पर| ३५२-३५३७ एकान्तहितधर्मकथकस्य । मज्ञानी (अभयदाने चौरकथा) ॥५०॥ सुत्ताणि ~68~ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे हत्क्रमः।। यहां देखीए ॥५१॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम पृथ्व्युपमादि, क्रियावादादिशातृत्व, स्त्रीवर्जनादि, वीरस्तुतिः श्रोतृणां फलं च । १५२ ॥ इति वीरस्तुत्याख्यं षष्ठमध्ययनम् ।। ८६-९० नि० शीलनिक्षेपाः (४) द्रव्ये प्रावरणादी, भावे ओघे विरत्यादि, अन्त्ये ज्ञानतपआदि, अधर्मकोपादिश्च, अविरताधिकारात् कुशीलाध्ययनं, अप्रासुकसेविनां शीलवादिता कुशीलत्वं गोद्यातकादिवत् अग्निहो त्रवादिजलशौचबादिवच। १५४ ३८१-४१०७ पृथ्व्याद्या जीवमेदाः (दधिसौवीरकादिषु जीवाः ) तेषु विपर्यस्तः, त्रसस्थावरघाती । क्रूरकर्मा, संसारहेतुकर्मबन्धकवेदकः, अझ्यारम्भकः, हरितादिच्छेदकः, जात्यादिविनाशकः, परत्र गर्भावस्थायां मृतिः, एकान्तदुःखो लोकः, नाहारवजैनेन न शीतोदकेन वा प्रातः स्नानेन क्षारानास्वादेन न मोक्षः, मद्यमांसाहारेण भवनमः, स्नानादमोक्षः मत्स्यादिवत् , अशुभवत् शुभस्य हरणं स्यात् जलवह्रिसिद्धिवादो मिथ्या, घातेन भवभ्रमः, तस्मात् विद्वान् विरतादिगुणः, सन्निधिमान् स्नाता वस्त्रप्रक्षालकः नाझ्याइरे, बीजकन्दाद्यभोजी, स्नानख्यादिविरतश्च धीरः, स्वादुकुलपर्येषी, उदरानुगृया धर्माख्यायकः, अशनाद्यर्थमालापकः, मुखमाङ्गलिकः, अन्नाद्यर्थमनुप्रियभाषी कुशीलः, अशातपिण्डः, पूजनकामी, शब्दायसङ्गोऽगृद्धः, दु:खसहादिगुणः, विवेककाझी फलकायतकृष्टो मुच्येत । १६५ ॥ इति सप्तमं कुशीलाध्ययनम् ॥ ९१-९७ नि० वीर्यनिक्षेपाः (६) द्रव्ये सचित्ते द्विपदचतुष्पदापदाना, अचित्ते आहारप्रावरणप्रहरणीषध्यादीनां, भावे औरस्येन्द्रियाध्यात्मिकबलानि, औरस्यं संभवे संभाव्ये च, इन्द्रियजमपि, आध्यात्मिके उद्यमधृतिधैर्यशौर्य का॥५१॥ सुत्ताणि ~69~ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे वृहत्क्रमः यहां ॥५२॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम क्षमागाम्भीर्यादि, पण्डितादि- । दिमानादिसङ्कोचकाः, हिंसादि- १०२ नि० पार्श्वस्थादिसंस्तववर्जनम् । १७७ मेदं वा वीर्यम् । बर्जकाः, सम्यक्त्वायुचुक्ताः, क- ४३७-७२ धर्मस्वरूपप्रमः, आरम्भ४११-१४० बीरत्वप्रश्नः, कर्माकर्मणो- तक्रियमाणादिपापजुगुप्सकाः। १७४ | कामवतां न दुःखमोक्षा, शात वीरत्वं, प्रमादाप्रमादयोः कर्मा- ४३२-३६६ सम्यक्त्वासम्यक्त्वदर्शि- योधनहर्तारः, स्वयं कर्मभोक्ता, कर्मत्वं, अतिपाताय शस्त्रमन्त्रा- नोरबन्धवन्धी, ज्ञातं तपो न न मात्रादयखाणं, तस्मानिर्ममो ध्ययनम् । शुद्धं, अल्पपिण्डाशित्वादिगुणो वित्तादि त्यक्त्वा षट्काया-(द९८ नि० अस्यादिर्विद्या मन्त्रः पञ्च- मुच्येत । ध्यादिजीवाः) रम्भवी, मृषाविधदेवकर्मकृतं च शस्त्रम् । १६९ वादबहिर्धाऽयाचितावग्रहशखा४१५-३१७ मायादिनाऽसंयमः, बाला ॥ इत्यष्टमं वीर्याध्ययनम् ॥ दानमायादिधावनादिगन्धमानां वैरादिकारित्वं, पण्डिता ब- ९९ नि धर्मनिक्षेपातिदेशः, समा- ल्यादि-औदेशिकादि-लाधादिधनोन्मुक्ताः, पापकर्मनोदिनः, धिमार्गयोर्धर्मत्वम् । १७६ सम्पसार्यादि-अष्टापदादि-उपाशल्यकर्तकाः, भवस्वरूपेक्षिणः, | १००-१ नि० धर्मनिक्षेपाः (४) द्रव्ये नदादिवर्जन, उच्चारादियतना, च्यवनाऽनियतावासविचारकाः, सचित्तावितांमधगृहस्थदाना आचमनस्य परामत्रादेः आसगृद्धिरहिताः, आर्यधर्मोपसंप- नि, भावे लौकिको द्विमेदः, न्द्यादेः यश-कीदिः असंयनाः, प्रत्याख्यातपापाः, शिक्षा- लोकोत्तरे प्रत्येकपश्चमेदो ज्ञा तदानस्य च वर्जनं बीरधर्मः, युताः, पापपरिवर्जिनः, हस्तानादिकत्रिधा । भाषमाणोऽप्यभाषकः, न मर्मा d॥५२॥ सुत्ताणि ~70~ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे हत्क्रम यहां देखीए ॥ ५३॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम वित्, मातुस्थानवर्जी, अनु- । ३७३-६७ अप्रतिज्ञोऽनिदानः, प्राण- ४८८-९६ अक्रियात्मनां धर्माज्ञानं, चिन्त्यव्याकर्ता, छन्नावादी, संयतः, अदत्तवर्जी, स्वाख्यात- पृथक्छन्दोवादा असंयताः, अहोलाबादवर्जकः, परगृहानिष- धर्मा, तीर्णविचिकित्सः, लाढः, जरामरवन् मूढोममायति, मोपणः, क्रीडावर्जी, अहासः, अनु- आत्मतुलः, आयचयवर्जी, नि हवतो वित्तहरा अन्ये, पापपरि त्सुकः, यतमानोऽप्रमत्तः, उप तो विप्रमुक्तः, प्राणिदुःखादि- वर्जी मेधावी, हिंसाप्रसूतानि सर्गसहः, घाताकोशयोरक्रोधः, दर्शी च समाधिमान् । १८९ दुःखानि, मृषावर्जनं समाधिः, कामानीप्सुः, उपाचार्यमध्येता, ४७७-८७8 पापाकर्ताऽनतिपातादी अमूच्र्छादिगुणः, अनिदानो सुप्राज्ञोपासकः,आत्मप्रज्ञो,धृतिनवृत्तिमतो यन्धं समीक्ष्य समा गृहनिरपेक्षा समाधिमान् । १९४] मान्, गृहे दीपादी, जीवि धिमान् , समः प्रियाप्रियवर्जी, इति दशमं समाध्यध्ययनम् । तानवकाङ्क्षः, गृयारम्भमा पूजाद्यकामः, आधाकर्मादितो १०७-१५ निमार्गनिक्षेपाः (६) व्ये नादिवर्जकश्च निर्वाणसन्धाता । १८६ बालत्वं, वैराद्वन्धं समीक्ष्य वि फलकलतान्दोलनादि (१४) मा॥ इति नवर्म धर्माध्ययनम् ॥ प्रमुक्तः, आसनगृद्धिहिंस्रक गाः,भावे सुगतिफलमार्गे प्रकृतं, १०३-६ नि० आदानपदेनाऽऽधनाम, थाऽऽधाकर्मसंस्तवशोकवर्जी, दुर्गतिफले ३६३ पाषण्डिनः, गीणं समाधिः, भावसमाधिना एकत्वेक्षी, क्रोधादिवर्जकः, तृ क्षेमक्षेमरूपचतुर्भङ्गी मार्गे, शाप्रकृतं, समाधिनिक्षेपाः (६) भावे णादिस्पर्शसहः, समाधियुक, नादिः सम्यग्मार्गः, चरकादिदर्शनशानतपश्चारित्राणि । १८७ अकर्मपरिग्रहः, अमिश्रो मुनिः। १९२ | चीणों मिथ्यात्वमार्गः, गौरव सुत्ताणि ॥५३ ~71 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत्”] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे हत्क्रममा यहां ॥५४॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम वधयुताः कुमार्गाश्रिताः, तपःदकादिभोजिनः ढकादिवदशु वाद्यादीनां लक्षणं भेदाच, संयमादिमन्तः सन्मार्गकथकाः, भध्यायिनः, उन्मार्गगा दु:खिनः, सम्यग्दृष्टयः क्रियावादिनः । २११ | मातृकार्थिकानि (१३) १९८ सच्छिद्रनावारूढान्धवन्मिथ्या- ५३५-५६ प्रवादिचतुर्क, अज्ञा४१६-५१२% मार्गप्रश्नः, उत्तरे व्यव- रष्टिश्रमणाः, काश्यपधर्मेण श्रो निनां मृपावादित्वं, आत्मप्रमाणहारेण समुद्रतरणवत् मार्गात्संतस्तरणः ग्रामविरतः आत्मो सर्वशशेयज्ञानानां सिद्धिः, ससारतरण, षड्जीवनिकायानां पमो मानादिवी निर्वाणाभिस त्यासत्यलाध्यसाधुनिविशेषा बैआक्रान्त दुःखत्वावधत्यागः, अ न्धी, उपधानवीयों भिक्षुः, भू- नयिकाः, अक्रियावादिनो लवाहिंसा ज्ञानिनः सारः, सर्ववध- तानां जगतीवन्मार्गाधारः, वा- वशकिनः, (नास्तिका बौविरतिनिर्वाण, विरोधत्यागः, तेन गिरिवदुपसर्गेण न विह द्धाच) नास्तिकानां बौद्धानांचाएषणासमितो धीरः, औद्देशिक- न्येत, दत्तषणो धीरो निर्वाण ऽसत्त्वप्रतिपादनेऽभावप्रतिपादने पूतिकर्मवर्जी, सावद्यानुमति- काक्षीति केवलिमतम् । २०७ , वा विपक्षाङ्गीकारान्मिश्रीभावः, रहितः । २०२ साङ्ख्यानां चाक्रियत्वे, तेषां | ५१३-२८० दानस्य विधिनिषेधयो- | एकादशं मार्गाध्ययनम् । छलवादिता, विरूपशास्त्रता, निषेधः । २०३ | ११६-२१ समवसरणनिक्षेपाः (६) शून्यवादनिराकरण, सूर्यचन्द्रस्व५१९-३४ द्वीपसमो धर्माख्यायी, | भाव सप्रभेदं भावषट्कं, क्रिया- रूपे विवादः, तत्सिद्धिश्च, स्व अशानिनः समाधिहीनाः, बीजो- | क्रियामानविनयवादा, क्रिया- नादेः सद्भावत्वं,अष्टाङ्गनिमित्ते ॥५४॥ सुत्ताणि ~72~ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक खत्रतांगे बहतक्रमः यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम नानागतज्ञान, निमित्तस्य स- । बिनयेषु अध्यात्मनि प्रशस्ते वा त्यता, शान क्रियासिद्धिः, जीव सूत्रार्थचरणसाम्यम् २३० भेदाः, विषयमनानां भवभ्रमण, | १२५-२६ नि: आचार्यपरम्परोच्छेअकर्मणा कर्मक्षयः, सन्तोषिणो- दवादी जमालिवनश्यति, संयऽपापाः, अन्तकृतो बुद्धाः, स- मतपःसु उद्यच्छन्नपि न दायता धीराः, अप्रमत्तो बुद्धः, मुच्यते आत्मोत्कर्षात् । २३१ ज्योतिर्भूतमुपासीत, आत्मलो ५५७-७९.६ सदसतोधर्माः शीलशाकगत्यागतिशाश्वतेतरजन्ममर न्त्यशान्तयः, धर्मलम्बकस्यावणोपपातज्ञाने आश्रवसंबरदुःख वादिनः, अनुकथकार, अन्यनिर्जराज्ञाने च क्रियावादित्वं, (षड्दर्शनपदार्थविचारः) अ. थाकथकाः, गुणानामभाजनं, परक्तद्विष्टो जीवितमरणानवका रिकुञ्चकाः असाधवः, अनन्त संसारिणः, क्रोधनो जगदर्थक्षो मुच्येत । २२९ भाषी अनुपशान्तः पीड्यते, इति द्वादशं समवसरणाध्ययनम् । विग्रहिको न मध्यस्थोऽझञ्झो १२२-२४ तथानिक्षेपाः (४) षड्- | वा अत उपपातकार्यादि स्यात् , विधे भावे शानदर्शनचारित्र- बहनुशिष्टोऽपि तथाऽर्थः समः, तपोमदवर्जन, कूटेन भवभ्रमः, मत्तो न मौनीन्द्रे, ब्राह्मणादिलेंच्छक्यन्तो न प्रव्रजितो माद्यति, विद्याचरणं त्राणं, मदोऽगारिकर्म, निष्किञ्चनताद्यपि गौरवाद्भवहेतुः,भाषादिगुणः परिभवेत् न, स्यात्समाधिमान् ,नच लाभप्रशातपोगोत्रादिमदः, अगोत्रा मुक्तिगामिनः, मुद]sगृख एषणादिज्ञाता, अरत्याद्यभिभूय मौनेन व्याकरणं, एकस्य गत्यागती, हितं धर्म भापताऽनिदानः, अश्रद्दधानो वधाद्यपि कुर्यात् , अतो लब्धानुमानः कथयेत् , कर्मच्छन्दसी विवेचयेत्, भयावहानि रूपाणि, पराभिप्राय सुत्ताणि ~734 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे| हवक्रमः यहां SMS देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम शस्य देशना, याधातथ्येक्षी नि- । दण्डो जीवितमरणानपेक्षी मुच्येत । २४० । इति त्रयोदशं याथातथ्याध्ययनम् । १२७-३१ नि० ग्रन्थनिक्षेपातिदेशः, प्रधाजनशिक्षणाभ्यां शिष्यः, ग्रहणे सूत्रार्थतदुभयैः, आसेबनायां मूलगुणैः पञ्चविधः, उत्तरगुणैादशविधः, आचार्योऽपि । २४१ ५८०-६०० निर्ग्रन्थः शिक्षमाणो ब्रह्म चारी उपपातकारी विनयं शिक्षेत, न ठेकः प्रमादी, अपुष्टधर्माण द्विजशाववत्पापधर्माणो हरन्ति, गुर्वन्तिके समाधीप्सुः, मयूरनृत्यगलगण्डव्यापादकवदनुपासितगुरुकुलः, वृत्तवान् आशुप्रज्ञो न निष्काश्येत, साधुक्रियायुत आगतप्रज्ञो व्याकुर्यात् , अनाश्रवो ब्रजेत् , प्रमादवर्जी निःशङ्कः, डहरायनुशा. स्तावपि, अनभिगमादपारगः, क्रोधव्यथापारुष्याणि विहाय प्रतिश्रवणं, बुद्धानुशासनं मार्गानुशासन, मूडेनामूढः पूज्यः, शैक्षोऽपुष्टधर्मा जिनधर्माकोविदः, अप्रकम्पमनाः सदायतः, समाधिशस्य धर्माख्यायी माननीयः, प्रमादसवर्जी मुच्येत, प्रतिभानवान् विशारदश्च शुद्धन मुच्येत, धर्माख्यायिनो, बुद्धा अन्तकराः, द्वयोर्मोक्षाय प्रश्नकथकाः, न छादनादि कुयुः, भूतामिशङ्किनः, न मन्त्रपदेन गोत्रापनयनाः, न मिथ्या न साधर्म्यवादिनः, अहासाः, अतिरस्कारादिगुणाः । २४९ ६०१-६७ अशद्धितेऽपि शङ्कितं व्या कुर्यात्, विभज्यवादः, भाषाद्विकं च, अबुध्यमानमपि अपीडयन् बोधयेत्, न भाषादौ दोषेण बिडम्बयेत्, न दीर्घयेत्, प्रतिपूर्णभाषी, सम्यगर्थदशी, आशाशुद्धाभियोगी, पापविवेकाभिसन्धिः, यथोदितशिक्षः, नातिबेलवादी, अदृष्टिदोपीभाषकः,अलूषकोऽप्रच्छन्नभा सुत्ताणि ~74~ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे यहां ॥५७॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम पी, न स्वयं सूत्रार्थकारी, शा यः, आगमे द्वादशाने अन्ध- । रेषां देवानामपि मोक्षः, आईस्त्रभक्तः, अनुबीच्यवाक्, श्रु श्लोकादि । २५४ तानां तुमनुष्यस्यैव, दुर्लभं मानुतदाता, शुद्धस्त्र उपधानवान् ६०७-२१ आवरणक्षयात्सर्वशः, अ व्य, सम्बोधिः, तथा लेश्या । २५९ आदेयवाक्या, कुशलो व्यक्तो। नीदशस्याख्याता (मीमांसका ६२५-३१० नानीदृशस्य शुद्धधर्माभाषितुमर्हति । दिव्यवछेदः) न तत्र तत्र, स ख्यायिनो जन्मकथा, न तथात्यसम्पन्नता भूतमैत्री, अवि गतस्योत्पादः, अप्रतिज्ञास्तथा ॥ इति चतुर्दशं ग्रन्थाध्ययनम् ॥ रोधः,जीवितभावनः, तीरप्राप्तः, गताः, काश्यपप्रवेदितान्त्रिष्टा१३२ नि०आदानस्य तत्पर्यायत्वाग्रह निर्जरासंवरयुक्तः, अकर्मणो न प्राप्तिः, पण्डितवीर्यात् पूर्वकर्मणस्य च निक्षेपः (४)। २५२ जन्म, अस्त्रीको वीरः, स्त्रीव क्षयाऽनादाने, बीरो न कर्म१३३ नि० आदानीयपव्याख्या, (प्र- जिनो निर्बन्धाः, पापकर्माबन्ध कर्ता, संयमात्कर्मनाशः, शल्यथमस्यान्त्य पदं द्वितीयस्यादी, काः, निर्वाणसंमुखाः, मार्गानु कर्जनान् मुक्ता देवावा, दुनि:सङ्कलिकादि तन्नाम तन्निक्षे- शासकाः, अनुशासकगुणाः (व धमार्गात् कालत्रयेऽपि तीर्णाः । २६१ पाश्च)। सुमत्त्वाद्याः) स एव मनुष्याणां इति पञ्चदशमादानीयाख्यमध्ययनम् ॥ १३४-३६ नि० आदिनिक्षेपाः (४) चक्षुः, निष्काशः, अम्तसेवी, १३७-४१ नि० गाथानिक्षेपाः (४) द्रव्ये स्वभावः, स्वस्थाने भावे । धर्माराधकः । २५८ द्रव्ये पुस्तकलिखिता, भावे सानोआगमे महाव्रतप्रतिपत्तिसम- ६२२-२४१ नामनुष्येषु मोक्षः, अप- । कारोपयोगान् मधुराभिधान २५२ ॥ ५७॥ सुत्ताणि ~75~ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे हत्क्रम यहां ॥५८॥ देखीए युक्ता, सामुद्रछन्दसाऽर्था गा वकायस्थितयः, गणनायां रज्जुः, मभोगाः कर्दमाः, जनजानपदाः श्रीकृताः, पञ्चदशाध्ययनार्थो ( परिकर्मादिगणितं दशधा) पुण्डरीकाणि, राजा पद्मवरपुवा पिण्डितः । २६२ संस्थाने चतुरस्र, भावे प्रवरभा- ण्डरीकं, अभ्यथिका- पुरुषच१ अगारगुणवर्णनं, ब्राह्मणश्रमणभि- ववन्तो ज्ञानादिमन्तो मुनयो तुष्कं, धर्मो भिक्षु., धर्मतीर्थ क्षुनिर्ग्रन्थस्वरूपम् । २६६ वा, बनस्पतिपुण्डरीकेण श्रमणेन तीरं, धर्मकथा शब्दः, निर्वाण॥ इति षोडशं गाथाऽध्ययनम् ॥ चाधिकारः, शुभस्य पुण्डरीकता मुत्पादः । २७५ अशुभस्य कण्डरीकता। २६९ १० राजस्वरूप, पर्षत्स्वरूपं, तज्जीव॥ इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः॥ २ वापीपुण्डरीकनिरूपणम् । २७० तच्छरीरवादिमत, असिको१४२-५७ नि महच्छब्दनिक्षेपाः (१) प्रथमपुरुषः कर्दमे निमग्नः । २७० श्यादिदृष्टान्तैः मेदेनानुपलअध्ययनशब्दनिक्षेपाः (६) पुण्ड- ४-६ तं तथाविधं दृष्ट्वा आगताः क्र म्भात, क्रियादेरनभ्युपगमः, रीकशब्दनिक्षेपाः (८) गणनसंमेण द्वितीयतृतीयचतुर्थाः अपि । निष्कान्ताः, श्रमणब्राह्मणतयाऽस्थाने द्रव्ये एकभविकादिः, तथैव । २७१ शनादिना स्वमतस्थेभ्यः पूजाप्रवरास्तिर्यगाद्याः, जलचराधाः, ७ तथाभूतेषु तीरस्थभिक्षुशब्देनोत्प- ऽवाप्तिः, अर्वाक्प्रवज्यायाः अर्हदायाः, भुवनपत्याद्याश्च, अ- | तनम् । सङ्कल्पः, (अनार्यक्षेत्राणि)। २८१ चित्ते कांस्यदृष्याचार, देवकु- ८शातार्थप्रश्ने कथनोपक्रमः । २७४ | ११ पञ्चभूतवादी(नास्तिक:)द्वितीयः । २८४ दीनि क्षेत्राणि, काले प्रवरभ- ९लोकः पुष्करिणी, कर्म उदकं, का- | १२ ईश्वरकारणिकस्तृतीयः, पुरुषा- 482 दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम २७१ ॥५८॥ सुत्ताणि ~764 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत्”] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सत्रकृतांगे वृहत्क्रमः॥ यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम द्यादिको धर्मः, गण्डाऽरतिवल्मी । म्भकामपरिग्रहवत्त्वेऽपि अहं त- । विषयजिनोपदेशाद्भवेन मोक्षः, कवृक्षपुष्करिणीवुद्भुददृष्टान्तैः, निश्रया ब्रह्मचारी,सोऽन्तकारकः२९६ दुर्लया वापी पद्मं च विद्याद्वादशाङ्गी न सत्या (ईश्वर- १६ दण्डादीनां कुट्टनादी असातवत् दिभिरपि, जिनविद्यया सिद्धिः कर्तृत्वनिरासः)। २८७ सर्वकायानामसातमिति न हन्त पुण्डरीकाणाम् । ३०३ १३ चतुर्थः पुरुषो नियतिवादी। व्या इत्यादिः अतीताद्यईतामुप ॥ प्रथम पुण्डरीकाध्ययनम् ॥ (नियतिवादनिरासः)। २९० देशः, अक्रियादिगुणो भिक्षुर्दैवः १६५-६८ नि० बन्धमोक्षमार्गाभ्याम सिद्धो वा स्यात्, शब्दादेर्वि१४ आर्याद्या नराः, भिक्षायामुपस्थि धिकारः, द्रव्ये एजनाक्रिया, रतः, त्रिविधं त्रिविधेन हिंसायाः भावे प्रयोगोपायकरणीयसमुदाताः, अर्वाक् प्रव्रज्यायाः सङ्कल्पः, परिग्रहात् साम्परायिकात् औ- ने-र्यापथ-सम्यक्त्व-सम्यग्मिप्रव्रज्यायां कामभोगानाश्रयणं, हेशिकादेच, परकृतादिभोजी, थ्यात्व-मिथ्यात्वाख्याः ८, स्थाअत्राणत्वात् अन्यत्वात् माउपस्थितादिभ्यो धर्मकथको ना ननिक्षेपाः (१५) सामुदानिक्या तापित्रादीनां बहिरङ्गत्वं, दुःखान्यत्र कर्मनिर्जरायाः,श्रोतुः धर्म संयमस्थानेन चाधिकारः (ईर्यामोचकत्वात् अत्राणत्वात् अ समुत्थानादि । ३०२ पथिक्यापि) क्रियाभिः प्रवाम्यत्वात् हस्तादेरव्यन्यत्वादिः, १६८-६४ नि० जिनोपदेशेन सिद्धि- दिपरीक्षा। जीवाजीवत्रसस्थावरज्ञानम् । २९५ रित्यधिकारः, चक्रिण्यपि महा- १७ धर्माधर्मावुपशान्तानुपशान्ती, अ१५ गृहस्थान्यश्रमणब्राह्मणानां सार- जननेतेति, भारितकर्मणामपि । र्थदण्डादीनि त्रयोदश क्रिया ॥ ५९॥ सुत्ताणि ~77~ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रकृतांगे बृहत्क्रम॥ सूत्रांक यहां ॥६०॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम स्थानानि । (वेदनाऽनुभवचतुः । त्ययश्चासौ, मित्रादिषु महाद- । पापादिः, तित्तिरादेः घातादिः, भङ्गी)। ३०६ ण्डेन दण्डपाशित्वादिः मित्र- शस्यज्वालनं, गुराकर्त्तनं, उष्ट्र१८ आत्मसात्यादिहेतोरर्थदण्डः । ३०७ दोषप्रत्ययश्च दण्डः, गूढाचा शालादिदाहा, कुण्डलाद्यपहार, | १९ अर्चा जिनाद्यन्तरेण हिंसाभ रादीनां मायाप्रत्ययः, आरण्यि श्रमणब्राह्मणच्छत्राद्यपहारः, तत्र यपुत्रपोषणाद्यन्तरेण श्रमणब्रा- कादीनां मूर्छादिमतां लोभप्र- निःशङ्कतया स्वयमेव प्रवृत्तिः, ह्मणवर्तनामन्तरेण बसस्थावर त्ययश्च दण्डः। ३१६ श्रमणब्राह्मणानां कलङ्कदानं, तिघातोऽनर्थदण्डः। ३०८ | ३० ईर्यापथिकीस्वरूपं, अतीतारहतां रस्करण, परुषवदन, अशनाद्य५०-२९ हिंसासंभावनया वधो हिंसा- I प्रयोदशक्रियास्थानभाषण, अ दानं धिग्जीवितादिमाननं, तेषामदण्डः, मृगवधादिसङ्कल्पे ति- न्त्यस्थानसेवनं च । ३१७ बादिसंपत्तावपि दुर्लभबोधिता, तिरादिवधोऽकमाइण्डः, ग्राम- | ३१ भौमादि (६५) विद्याप्रयोगोऽन्न अधर्मस्थानस्याऽनार्यत्वादि । ३२६ घातादी अस्तेनवधे दृष्टिविपर्या- पानवस्त्रलयनशयनकामभोगार्थ ३४ श्रमणानां धर्मस्थानम् । ३२७ सदण्डः, आत्मादिहेतोपावादे येषां तेऽनार्याः भाविन्येडमू- ३५ आरण्यिकादीनां मिश्रस्थानं अमृषाप्रत्ययः, अदत्तादाने च काश्च । ३१९ नार्यादिगुणम् । ३२७ तत्प्रत्ययः, खयमेव हीनदीन- ३३ आत्मादिहेतोरनुगामित्वादिना |३६ महेच्छारम्भादिमन्तो, वधच्छेत्वादिना क्रोधादावध्यात्मप्रत्ययः, (१४) नायकसहोषितौ प्रतिस- दादिप्रवृत्ता., कुतोऽप्यप्रतिविजात्यादि (८) मदे गर्भादिर्मानप्र- । न्धाय हुननायुपाख्याने महा- । रताः, बाह्याभ्यन्तरपर्षदोरपि ॥६ ॥ सुत्ताणि ~78~ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सत्रकृतांगे वृहत्तमः। यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम तीव्रदण्कारकाः, मूर्छादिगुणा । जीवाजीवादिगुणाः, प्रत्याख्यात- धारः, सच दोषरहितः, आनरकगामिनः । ३३१ भक्ताः, महर्चिकादिषु देवा भ- हारनिक्षेपाः (५) द्रव्ये सचि३७ नरकस्वरूपम् । ३३२ बन्ति स मिश्रपक्षः, (धर्मानुरागे त्तादिः, क्षेत्रे नगरस्य जनपदः, ३८ पर्वतानवृक्षवत् शीघ्रपातिता, क- परिबाड्रक्तस्त्रीदृष्टान्तः)। ३३७ भावे ओजोलोमप्रक्षेपैः, ओजणपक्षिता दुर्लभबोधिता च । ३३२४१ अधर्मपक्षे ३६३ पापण्डिनः | ३३९ आदेः स्वरूप, तत्स्वामिनः, ४२ ३९ अनारम्भादिगुणाः, सर्वतः प्रति अहिंसाप्रतिपादनं, अङ्गारपा तत्कालः, तत्साधनं, (केवलिन विरताः, ईर्यासमित्यादिच्छिन्नज्यादानदृष्टान्तोपनयौ, हिंसा आहारसिद्धिः) अनाहारकालश्च शोकान्तगुणाः, कांस्यपात्रादि फलं, सर्वप्राणादीनामहिंसादिः परिक्षानिक्षेपातिदेशः। ३४७ वत् निरुपलेताविमन्तः, अण्ड मोक्षमार्गः । २४१४४-५६ बीजकायचतुष्टयं, पृथिव्या ३४१ | जादिप्रतिबन्धरहिताः, औपपा| ४३ द्वादशभिः क्रियास्थानने सेध दिशरीराण्याहाराः पृथ्वीयोनितिकोक्तगुणाः, अस्नानादन्तधा नादि, किन्तु त्रयोदशेन स्थानेन, इत्यात्मार्थित्वादिगुणो कवृक्षेषु वृक्षाः वृक्षयोनिकबनाद्याचाराः, मानापमानादिस वृक्षेषु वृक्षाः वृक्षयोनिकेषु हाश्च मुच्यन्ते महर्द्धिकादिगु भिक्षुः। ३४२ मूलादीनि । वृक्षयोनिकेष्वध्याणेषु देवेषु वा जायन्ते । ३३५ ॥ द्वितीयं क्रियास्थानाध्य०॥ रहाः । वृक्षयोनिकेष्यध्यारोहे|४० अल्पेच्छादिगुणाः, प्राणातिपा- १६९-१७८ नि० अन्तक्रियास्थाने वध्यारोहाः । अध्यारोहयोनि तादिदेशाद्विरताः, अभिगत- 1 सदाहारगुप्तिः, आहार आ- । केष्वध्यारोहाः। अध्यारोहयो ITA||६१॥ सुत्ताणि ~79~ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्रकृतांगे यहां ॥६२॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम निकेष्यध्यारोवेषु मूलत्वादीनि, नानामुत्पत्यादि । ३५७ | ६४ आत्मनोऽप्रत्याश्यानित्वादि पाहतक्रमः।। पृथ्वीषु तृणत्वं, पृथ्वीयोनिकेषु ६० प्रसस्थावरशरीरेषु वातकायेऽ- । कान्तसुप्तत्यान्तम्। " तणेषु तृणत्वं, तुणयोनिकेषु कायोत्पत्यादि, उदके च, उ- ६५ बधकदृष्टान्तेनाप्रवृत्तावपि दण्डतृणेषु तृणत्वं, तेषु मूलत्वादीनि, दकयोनिके उदके च, उदक सिद्धिः। एवमौषधीनां, हरितानामपि । तया त्रसप्राणतया पोत्पत्यादि।३५८ | ६६-६७ अराजीवादिप्रत्ययानि कथं पृथिव्यामागत्यादीनि, उदके वृ- ६१ घसस्थावरशरीरेण्यग्नितया इ. । पापस्थानानि, तत्र सञ्झ्यसक्षतया उत्पत्तिः, शेषं पृथ्वी त्याद्यालापकत्रय, वायुकाये आ- चिदृष्टान्तेन हिंसादिसिद्धिः वृक्षवत्, उदकेषु उदकावका लापकचतुष्टयम् । ३५९ ( सज्झ्यसझिनोरन्योऽन्यानुदितयोत्पत्तिः, सर्वेषु त्रसप्रा- २ त्रसस्थावरशरीरेषु पृथ्व्यादि गमः)। णतयोत्पत्तिराहारश्च । ३५३ | ४० तयोत्पत्त्यादि । ३५९ | ६८ आत्मीपम्येन सर्वेषां दण्डादिHI५७ कर्मभूमिजाविमनुष्योत्पत्यादि।३५४ | ६३ प्राणिनां कर्मवशात्परस्परं गमा- भिरसातं, तन्न हन्तव्या इत्यादि | ५८ जलचर-चतुष्पदोपरिसर्प भु गमः । ३६० धर्मो ध्रुवः, साधुस्वरूपं च । ३७०।। जपरिसर्प-बेचराणां भेदा उत्प- । तृतीयमाहारपरिज्ञाऽध्ययनम् । । इति चतुर्थ प्रत्याख्यानाध्य० तिराहारश्च । ३५६ | १७९-१८० नि प्रत्याख्याननिक्षपाः | १८१-८३ नि० आचारनिक्षेपाः (४) ५९ कलेवराश्रितानामुत्पत्त्यादि, वि- (६) मूलगुणैरधिकारः, तत्प्र अबहुश्रुतस्य विराधना, अन ठाद्युत्पन्नानां तिर्यक्शरीरोत्प- त्ययिकी अप्रत्याख्यानक्रिया । ३६३ । गारश्रुतमित्यपि नाम । ३७१ ।। ६२ ।। सुत्ताणि ~80~ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रकृतांगे बृहत्क्रमः।। सूत्रांक यहां ॥६३॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ६३६६ अनाचारस्यानाचरणम् । , ६३७-६३७ अनाद्यनन्तयोः, शाश्व ताशाश्वतयोर्टष्टावनाचारः, सवंशास्त्रव्यवच्छेदे सर्वप्राणेष्वसादृश्ये ग्रन्थिकत्वे शाश्वतत्वे चानाचारः, क्षुल्लकमहाकायवधे सदृशासदशकर्मणि, आघाकर्मभोगे उपलेपानुपलेपयोः, औदारिकाहारककार्मणेषु वीर्यास्तित्वनास्तित्वयोः, लोकालोकयोर्जीवाजीवयोर्धर्माधर्मयोर्बन्धमोक्षयोः पुण्यपापयोः आश्रचसंवरयोः वेदनानिर्जरयो: क्रियाऽक्रिययोः क्रोधमानयोः मायालोभयोः प्रेमद्वेषयोः वातुरन्तसंसारस्य देवदेव्योः सिद्धय सिद्धयोः सिद्धिस्थानस्य साध्व- । सुताईकात्समुत्थमध्ययनमाई- साध्वोः कल्याणपापयोश्वास्ति कीयम् । स्वनास्तित्वयोर्न व्यवहारः । ३८३ १८८-८९ नि० द्वादशाङ्गीसर्वाध्य६६४-६७७ कल्याणित्वे पापित्वे च यनसर्वाक्षरसंनिपातानां शाश्वन व्यवहारः, बाला न जानन्ति तत्वेऽपि तथा तथा तस्मिन् तच बैरं, सर्वस्वाक्षयत्वे दुःखित्वे स्मिन् कोऽप्यर्थ उत्पद्यते ऋषिअपराद्धानां वध्यावध्यत्वे न भाषितवदनुमतश्च भवति । ३८६ वागनिसर्गः, समिताचारेषु १९० नि० गोशालकभिक्षुब्रह्मवृत्तिमिथ्योपजीवीति निषेधः, त्रिदण्डिहस्तितापसैराकस्य दक्षिणाया लाभालाभयोरव्या विवादोऽत्र । ३८६ करण, शान्तिमार्गोपबृंहणं च, पतरात्मानं धारयन् मुमुक्षुः । ३८५ १९१-२०० नि० आईकपूर्वभवे वस न्तपुरे सामयिकः, सस्त्रीको नि॥ द्वितीयश्रु० पश्चमानाचाराध्य० ॥ एकान्तः, भिक्षायां दर्शनमव१८४-८७ नि० आईनिक्षेपाः (४) भाषणं, भक्तप्रत्याख्यानं, संवेगः, द्रव्ये उदकादि (५) एकम अनालोचनं, भक्तप्रत्याख्यानं, विकादि (३) आर्द्रपुरीयाई- देवलोकः, आईपुरे जन्म, द्वयो सुत्ताणि ler६३॥ ~81 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत खत्रकृतांगे सूत्राक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम राज्ञो प्रीतिः, पृच्छा, अभयाय आख्यानेन पूर्वापरसन्धान, इति । सत्पुरुषोक्तमार्गकथनं, दोषस्य बहतक्रम प्राभूतप्रेषणं, तेनापि प्रतिमा प्रे- गोशालः, पूर्वमधुनाऽपि विरा- गर्हा नान्यस्येत्याः । ३९३ पिता, दृष्ट्वा बुद्धो, रक्षितः, पला- गत्वं, आख्यानेऽप्येकान्तता,जि ६८३-८६७ दक्षभीतो नागमादिवासी, व्य दीक्षा, वारणे राज्यतेजोद- तेन्द्रियादिगुणस्य धर्मकथायां . सूत्रार्थप्रश्नभीतो न तत्रोपतीति र्शनं, विहरणं, प्रतिमास्थो दान दोषः, महावतादिप्ररूपणा गो० । कामकृत्यबालकृत्यराजारिकया वृतः, बसुधारा, देवी तत्रेत्याईः। ३९१ भियोगभयपरिहारे गत्वाऽऽगबाक्, पित्रा नयनं, पादविम्बेन ६७५-७८% शीतोदकबीजकाऽऽधा त्वा च व्याकरण, अदर्शनत्वाज्ञानं, पुनरागते भोगाः, सुतो- कर्मस्त्रीषु भिक्षोर्न पापमिति दनार्येष्वगमनमित्याः । ३९४ त्पत्तिः, पणः, पूरणे निर्गमन, गोशाला, एतानि प्रतिसेवमानो ६८७-९३०लाभेच्छ्र्वणिगिव वीर इति चौरदीक्षा, गोशालादिभिर्वादः, न श्रमणः, तथा सत्यगारिणां गोकानवाकरणं, पुराणनिर्जरणं, पराजित्य तैः सह वीरपाखें श्रमणत्वं, तेषामनन्तकरत्वं चे दुर्मतित्याजन, उदयश्च कथादीक्षा, गजबन्धात्तन्तुबन्धस्य त्याद्रः। फलं, हिंसका ममीकुर्वन्तः सदुष्करता । ३८९६७९-८२७ प्रवादिगर्दा, सर्वेषां स्व सङ्गा वित्तैषिणो मैथुनासक्ता ६६९-७४ वीरस्य पूर्वमेकाकित्वं । वाद इति गो। सर्वेषां परस्परं भोजनार्थाः कामप्रेमगृद्धाः, आ मौनं च, अधुना पर्षद् धर्मा- गर्दा, सदसतोरस्तित्वनास्ति- त्मदण्डा वणिजः, तेषां लाभो ख्यानं च, आजीविकार्थमेतत्, त्ववादान गर्दा, नाभिधारणं, भवाय, अनेकान्तिकोऽनात्यन्ति Il॥६४॥ सुत्ताणि ~82 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रकृतांगे AN सूत्रांक यहां हत्क्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम कच, भगवतस्तु साधनम्तो शाक्यस्योपहासः(प्राण्यङ्गत्वेन इहामुत्र शानी, न शुष्कशानिन: लाभः, परप्रदानं, अहिंसकादि- न भक्ष्यता), जीवानुभागचि- संसारे विशेषः (जातिनिरागुणो भगवान् कर्मविवेकाय धर्म न्तादिना धर्मः,स्नातकभोजकोऽ- करणं), अव्यक्तरूपः पुरुषः, कथी तन्न सादृश्यमित्याः । ३९६ संयतः, उद्दिष्टौरभ्रभोगेऽप्यलेप सर्वभूतव्यापी संसरणादिर६९४-७१०० पिण्याकपिण्ड्याः पुरु इत्यनार्यवाक्, (मांसदोषाः) हितः, ब्राह्मणादिजातिशून्य इषबुद्धया अलावुनः कुमारबुद्धया भोगिनोऽज्ञान, कुशलानां मनो- त्येकदण्डिनः, अशानिन आत्मभेदादौ अस्माकं म्लेच्छस्य च ऽपि न, एषा बागपि मिथ्या, परोभयनाशकत्वं, पूर्णज्ञानसमा उद्दिष्टवर्जिनः श्रमणाः, निर्दण्ड धिमन्त आत्मपरतारकाः, असन बन्ध., बुद्धभक्षणाईता च, उद्दिष्टवर्जको धर्मः, अस्मिश्च वंशस्य यथार्थाकथनमित्याः , स्नातकसहस्रद्वयभोजनात्पुण्य समाध्यादीत्याईः। स्कन्ध इति शाक्यः । अयोगरूपे ४०० वर्षेण गजेन वृत्तिरिति हस्ति तापसाः, जीववधका गृहिणः, प्रसह्य पापं, अयोधिता द्वयोः, | ७११-१२ स्नातकब्राह्मणसहस्रद्वय सप्राणवधोऽनार्यः, सर्वज्ञाज्ञया प्राणी ज्ञानवान् न तथा वदेत् भोजने पुण्यस्कन्धः, इति वेद धर्मस्थितो धर्ममुदाहरेत् । ४०४ कुर्याद्वा, न च सम्भवस्तथा वाक, अब्रह्मचारिणां भोजने लौल्यं नरकश्च । बुद्धयाः, बागेपाऽसत्या, पापहे ॥ इति ६ आर्दीयाध्यायनम् ॥ ४०१ | तुवाचोऽनुदाहरणं, अस्थानमे- | ७१३-२३० दयाजुगुप्सावधप्रशंस- २०१-४ नि० अलंनिक्षेपाः (४) पर्यातत्, अहो लब्धोऽर्थ इत्यादि कभोजनेऽसुरत्वं, धर्मस्थित । सायलद्वारे प्रतिषेधे चालंशब्दः, N सुत्ताणि ~834 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक पत्रकृतांगे वृहत्क्रममा यहां ॥६६॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम (अमानोनशब्दार्थभिन्नता) राज योरपि प्रसङ्गः ), श्रावकाणां । ३ च यथोभयसंमतं तथाऽत्र, गृहनगरे नालन्दावाहिरिका, गृहपतिचौरग्रहणविमोक्षणशा न भूतशब्देनार्थः । ४१९ मनोरथे गौतमेनोदकाय भाषि- तेन त्रसवधविरतिः (पुत्रषट्क- । ८०-८१ स्थूलवतोचारे स्वार्थक्रियातमेतत् । ४०७ दृष्टान्तः) स्थावरगतानां न त्र निषेधे कालकरणे सम्यकालः१ ६९-७९ राजगृहनालन्दयोर्वर्णनं, लेप- सता भिन्नभिन्नकर्मोदयत्वात् । ४१५ अनगारत्वस्य चातुर्दश्यादिपौ गाथापतिभ्रमणोपासकवर्णनं, ह- ७८ श्रावकस्यैकस्मादपि प्राणातिपाता- पधस्य चाशक्तौ भक्तप्रत्यास्तियामवनखण्डवर्णनम्। ४०९ | दविरमणं, उसस्थावराणां पर ख्याने त्रिविधत्रिविधेऽनाथ| २०५ नि० श्रावकधर्मविषये उदक स्परगमागमात् , इत्युदकः त्रस वकाले सम्यकालः, अविरताप्रभगौतमोत्तरौ। " स्थावरानुच्छेदानास्माकमेतत् , नां दुर्गतिः, अनारम्भाणां सु७२ जिज्ञासाप्रदर्शनं, उत्तरानुम- भवन्मते परस्परं सर्वेषां गमा गतिः, अल्पेच्छादिगुणवतां देतिश्च । ४१० गमाद् दण्डनिक्षेपासम्भवः । ४१७ शविरतानां सुगतिः, आर1७३-७७ सस्थाबरयोर्गमागमात्कु- ७९ अगाविभूतस्यानगारस्य वधेनान- पियकादीनां स्वधातनिवारिणामारपुत्रकारितं दुष्प्रत्याख्यान, गारनिवृत्तिभङ्गः१ अगारिभूत मासुरत्वं च्युतस्य चैलमूकत्वं, असभूतमस्याख्यान, प्रसानामेव स्यानगारख्य न सर्वदण्डत्यागः दीर्घसमाल्पायुष्कथमणोपास - असता, त्रसभूतत्वं तु स्थाव२ अन्यतीर्थीभूतस्यानगारस्य कानां सुप्रत्याख्यानात्सदगतिः, राणामपि (उपमाताार्थ- पूर्वमन्यतीर्थिकस्यासमावरणं केवलसामायिकवतां सद्गतिः, सुत्ताणि ~84~ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक पत्रकृतांगे बहतक्रमण यहां ६७|| देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम गृहीतपरिमाणमुत्कलदेशयोस्त्र यार्थः (स्थानानिक्षेपाः १५-४) | म्यानन्यत्वं, कर्मपुग्यपापसिद्धिः) १९ सस्थावरगमागमाच नैवाविषयं उपक्रमनिक्षेपानुगमनयाः सप्र- १७-४३ प्रत्येकं शरीरं, अपर्यादाय प्रत्याख्यानम् । ४२४ भेदाः, तदवतारश्च प्रस्तुते, एक वैक्रिय, मनोबाकायव्यायाम ८२ बुद्ध्या पापकरणाकरणयोः पर कनिक्षेपाः (७)। ६ उत्पादो विगतिः वियर्वा गतिलोकस्य विघ्नः शुद्धिश्च, पब उपोद्घातः ( संहितादिः क्रमः रागतिः, च्यवनपुपपातः, तर्कः, मेवोदकस्य गमने आदरादिप्रे सज्ञा, मतिः, विशो वेदना, श्रुतायुषोनिक्षेपाः ४-२०)। १० रणा, गौतमोक्तश्रद्धानादि, पश्यामप्रतिपत्तिप्रेरणा, उपची छेदनं, भेदनं, अन्त्यमरणं, यथा२ एक आत्मा (द्रव्यार्थप्रदेशार्थता, रमागम्य तत्प्रतिपत्तिः। ४२६ अवयविसिद्धिः, आत्मसिद्धिः, भूतः, अन्त्यदुःख, धर्मप्रतिमा, (नैगमादिनयव्याख्या, शानक्रि नित्यानित्यत्वं, सामान्यविशषौ) १३ अधर्मप्रतिमा, जीवानां मनः, यानययोर्विचारश्च । ४२७, ३-६ दण्डः, किया, लोकः, (निक्षे उत्थानादि, शानादि । २४ इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः । पाः ८) अलोकः । १५ ४४-४६ समयः, प्रदेशपरमाणू, सि. ॥ इति सूत्रकृताङ्गविषयानुक्रमः॥ ७-१६ धर्मास्तिकायः अधर्मास्ति- । द्धिसिद्धनिर्वाणनिर्वृताः। अथ स्थानांग कायो बन्धो मोक्षः पुण्यं पाप ४७ शब्दादि । मङ्गलं, अनुन्मुद्रितस्यास्यानुयो- आश्रवः संवरः वेदना निर्जरा ४८-४९ प्राणातिपातादि, तद्विरमणगप्रस्तावना, फलं योगः (अष्टव(बन्धस्यानादिता, काश्चनोपल विवेकी । पाणि ) मङ्गलं (त्रीणि) समुदा- वद्वियोगः, पर्यायपर्यायिणोर- ५० अवसर्पिणी सुषमसुषमादि । सुत्ताणि ~-85 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक स्थान बहतक्रमण यहां ६७॥ देखीए स्थानांगे विषयानुक्रम दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम यार्थः (स्थानानिक्षेपाः १५-४) | म्यानन्यत्वं, कर्मपुग्यपापसिद्धिः) १९ उपक्रमनिक्षेपानुगमनयाः सप्र- १७-४३ प्रत्येकं शरीरं, अपर्यादाय भेदाः, तदवतारश्च प्रस्तुते, एक वैक्रिय, मनोबाकायव्यायाम कनिक्षेपाः (७)। ६ उत्पादो विगतिः वियर्वा गतिउपोद्घातः ( संहितादिः क्रमः रागतिः, च्यवनपुपपातः, तर्कः, श्रुतायुषोनिक्षेपाः ४-२०)। १० सज्ञा, मतिः, विशो वेदना, २ एक आत्मा (द्रव्यार्थप्रदेशार्थता, छेदनं, भेदनं, अन्त्यमरणं, यथा अवयविसिद्धिः, आत्मसिद्धिः, भूतः, अन्त्यदुःख, धर्मप्रतिमा, नित्यानित्यत्वं, सामान्यविशषौ) १३ अधर्मप्रतिमा, जीवानां मनः, ३-६ दण्डः, किया, लोकः, (निक्षे उत्थानादि, शानादि । २४ पाः८) अलोकः । १५ ४४-४६ समयः, प्रदेशपरमाणू, सि. ७-१६ धर्मास्तिकायः अधर्मास्ति- द्धिसिद्धनिर्वाणनिर्वृताः। कायो धन्धो मोक्षः पुण्यं पाप ४७ शब्दादि । आश्रवः संवरः वेदना निर्जरा ४८-४९ प्राणातिपातादि, तद्विरमण(बन्धस्यानादिता, काश्चनोपल विवेकी । वद्वियोगः, पर्यायपर्यायिणोर- ५० अवसर्पिणी सुषमसुषमादि । अथ स्थानांग मङ्गलं, अनुन्मुद्रितस्यास्यानुयोगप्रस्तावना, फलं योगः (अष्टवपणि ) मङ्गलं (त्रीणि) समुदा सुत्ताणि ~86 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हवक्रमः॥ यहां स्थानांग-1 देखीए ॥६८॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ५१ नारकादिदण्डका, भव्याभव्यस- तारः,आकाशनोआकाशादिभिः | गिकेवलिक्षीणकषायसंयमान्ताः।५३N म्यग्दृष्ट्यादि, कृष्णपक्ष्यादि, क बन्धमोक्षादिभिः, जीवाजीवक्रि- ७३ पृथ्वीकायादयः सूक्ष्मपर्याप्तकपष्णलेश्यादि, तीर्थसिद्धादि, पर यादिभिः (क्रियाः पञ्चविंशतिः) रिणतगतिसमापन्नानन्तरावगामाण्यवगाहस्थितिभावप्रदेशव(३६ आलापकाः)। ४३ ढेतरभेदाः । २८ आ०) पर्यार्गणा । (नारकदेवयोः सिद्धिः, ६१-६३ मनोवाग्भ्यां दीर्घहस्वे च । तयः (६) (द्रव्यादिनाऽचित्तीभपृथ्यादीनां सचेतनत्वस्य च, | गहे, प्रत्याख्याने च, ज्ञानक्रि वनं, आचीणानाचीर्णभेदाः) ५५ सम्यक्त्वोत्पत्सिलेश्यातीर्थस्व याभ्यां मोक्षः। ४६ | ७४ अवसर्पिण्यादिकालः, लोकायायंबुद्ध-प्रत्येकबुद्धानेकसिद्धस्व- | ६४-६६ आरम्भपरिग्रहात्यागत्यागयो काशम्। ५५ रूपम्)। ३५ धर्माश्रवणश्रवणादि (१२ आ०) | ७५ दण्डकेषु विग्रहगतिकेषु शरीर५२-५६ जम्बूद्वीपपरिधिः, वीरसि प्ररूपणा शरीरोत्पत्तिनिर्वृत्तिश्रुत्वा मत्या च । ४७ द्धिः, अनुत्तरशरीरोश्चत्वं, आ कारणं त्रसस्थावरयो व्याभ६७-७० समाः, उन्मादः, दण्डः, सदाचित्रास्वातितारकाः, एकप्र व्यभेदी। म्यग्दर्शनादि (७ आ०)। ४९ | देशावगाहादि । (ज्ञानक्रियानये '७६ पूर्वोत्तरयोः प्रवज्यादिसंलेख७१ प्रत्यक्षपरोक्षादिज्ञानं कालिकोसामान्यविशेषवादश्च ।। ३८ नान्तम् । ७५ ___त्कालिकान्तम् । (२३ आ०) इत्येकस्थानाध्ययनम् । ७२ श्रुतधर्मचारित्रधर्मादिभेदेन चा ॥ इति द्वितीये प्रथमः ।। | ५७-६० जीवाजीवादिभेदे द्विप्रत्यव- रिचनरूपणा, अचरमसमयायो ७७ सोपवाटीनां तत्रास्यत्र - ॥६८ सुत्ताणि ~-87 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक । यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम श्रीवेदनं मनुष्याणामिहान्यत्र । ५८ विध्वंसभेदभेदुरधर्मपरमाणुसू- । क्षस्काराः, दीर्घवैताख्याः, तिमि वृहत्क्रमः। स्थानांग- ७८ नारकादीनां गत्यागती। ५९ क्ष्मबजस्पृष्टपर्यात्तात्तेष्टादीतरैः स्रगुहाद्याः, क्षुल्लहिमवदाद्या आIN७९ भव्यानन्तरोत्पन्नगतिसमापन - पुद्गलाः, आत्तादीतरैःशाब्दाद्याः।६४ द्यन्तकूटाः (आयामाः )। ७२ प्रथमसमयोत्पन्नाहारकोच्छ्वास- ८४ शानदर्शनचारित्रतपोऽम्यैरा - ८८ पद्मादाया हदाः, श्याचा देव्यः । ७६ कसेन्द्रियपर्याप्तकसञ्जिभाषक - चाराः, समाध्युपधानविवेकव्यु॥६९॥ 1८९ सुषमादुरुषमामान, सुषमायां सम्यग्दृष्टिपरित्तसंख्यातस्थिति- त्सर्गभद्रासुभद्रामहाभदासर्व - वंशस्योञ्चत्वमायुरईदादिवंशः, कसुलभवोधिककृष्णपाक्षिकच- तोभद्रामोकयववज्रमध्यचन्द्रप्र. देवकुर्वादिषु कालनियमः (१) रमेतारकादिप्ररूपणा । ६१ - तिमा अगार्यनगारसामायिकानि।६५ (आ०८) ७७ समबहतक्रियेतरैलॊकज्ञानं, दे- ८५ उपपातादि आयुःसंवर्तान्तं दे ९०-३-३७ चन्द्रसूर्य (२८) नक्षत्रशसर्वाभ्यां शब्दादिज्ञानं, अब- वादीनाम् । (गर्भ वैक्रियं गत्य (८८) ग्रहाः। ७९ भासनादिनिर्जरान्तं,मरुतादीनां । ७६ तर च) | ९१-९३ वेदिकोच्चत्वं, धातकीपूर्वाएकद्विशरीरत्वम्। ८६ भरतैरवतादिक्षेत्रकूटशाल्मल्या२० दिवृक्षगरुडादिदेवनिरूपणम् । परार्द्धयोः पदार्थद्वयं, कालोदवे॥शत हिताय बिताया उपशका (आयामविष्कम्भसंस्थानपरि दिकोच्चत्वं, पुष्करार्द्धद्वये क्षेत्रा|DI भाषाभरातोद्यततघनभषणता णाहोयोटेधाः १९ | दायकम् । लेतरे: शब्दाः, संघातभेदाभ्यां च ।६३:८७ क्षुद्राहिमवच्छिवर्याद्याः, स्वा- ९४ असुरारीन्द्रद्वयं, विमानवर्णा, ८२-८३ संघातभेदपरिशाटपरिपात. त्याद्या देवाः, सीमनस्काद्या व- वेयकतनुमानश्च । Il॥६९ सुत्ताणि ८५ ~88 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीस्थानांग यहां देखीए ॥ ७०॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम समयावलिकादित उत्सर्पिण्य- (९ आ०)(संलेखनादिविधिः) ९६ । शिकाया द्विगुणरूक्षान्ताः। (नि- वृहतक्रममा न्तानां (२५) ग्रामनगरादितो १०३-१०४ जीवाजीवयोरनन्तशाश्व- कादिलक्षणम्) १०१ राजधान्यन्तानां (४७) छाया तत्वे, बोधिबुद्धमोहमूढाः । ९६ ॥ द्वितीये चतुर्थः ।। इति द्वितीय स्थान ॥ दीनां संपवातान्तानां जीव- १०५ देशसर्वज्ञानदर्शनावरणीये सातात्वम् । ८८ ११९ नामस्थापनाद्रव्यज्ञानदेवेन्द्रादि साते, दर्शनचारित्रमोहौ, अद्धा| ९६ प्रेमवेषी बन्धौ,रागद्वेषाभ्यां पापं, नवकम् । १०४ भवायुषी,शुभाशुभनामनी,उश्वआभ्युपगमिक्यौपक्रमिकीभ्या नीचे, प्रत्युत्पन्नागामिनाशैः ॥ ९८ | १२०-१२१ पर्यादायाऽपर्यादायोभयैरमुदीर्णानि, (योगप्रत्ययवन्धख भ्यन्तरदाह्यदानानादानेतरैई१०६-१०८ प्रेमद्वेषोद्भवा मूर्छा, धार्मिरूपम्)। क्रियं, कत्यकत्यवक्तव्यसंचिता ककेवल्याराधनाः, तीर्थकराणां नारकायाः | ९७ देशसर्वाभ्यां शरीरस्पादि । ९० १०५ वर्णाः। ९८ | १२२-१२३ देवपरिचारणाया मैथुन९८ क्षयोपशमाभ्यां धर्मश्रवणादि । ९० | १०९-११२ पूर्ववस्तुनक्षत्रतारकमनुष्य- तत्कारकस्य च त्रैविध्यम् । १०६ ९९.४-६७ पल्योपमसागरोपमस्वरूपम्।९१ क्षेत्रसमुद्रनरकगचक्रवत्तिनी । ९९ | १२४ योगप्रयोगकरणत्रैविध्य संरम्भ- IN | १००-१०१-७0 आत्मपरप्रतिष्ठितः को- ११३-१९८अवनवास्यादिस्थितिः, क- समारम्भारम्भाश्च । १०८ धादिः। सिद्धेन्द्रियकायादिभि ल्पखियः, तेजोलेश्याकल्पी, प- | १२५ अल्पदीर्घाशुभशुभदीर्घायुष्ककाविध्यम् । (मिथ्यादृष्टेरज्ञानम्) ९३ रिचारणा, उसस्थावरकायनि- __ रणानि संविनलुब्धकदृष्टान्तौ)। १११ १०२ अनुज्ञाताननुज्ञातानि मरणानि । चर्तिताः पुद्गलचयनाद्या द्विपदे- १२६ गुप्स्यगुप्तिदण्डाः । ११२ ॥ ७० ॥ सुत्ताणि ~89~ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हत्क्रमः। यहां देखीए ला दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम श्री. १२७ मनोवाकायर्दीर्घइस्वकायैश्च | देवाभ्युत्थानादि (४) चैत्यवृ- |१४४-४६ तेजोवायुस्थितिः, शाल्या| ग्रहोप्रत्याख्याने । ११३ | स्थानांग दीनां योनिः; शर्करावालुकयोः । ___ क्षचलनलोकान्तिकागमनकार -... १२८ पत्रफलपुष्पोपगवृक्षवत्पुरुषत्रै णानि । ११७ स्थितिः । ( भंतेशब्दार्थः) । १२४ पा विध्यं, नामज्ञानवेदोत्तमधर्मो- | १३५ मातापितृभतधर्माचार्यदुष्पति- १४७-४९ धूमप्रभास्थितिः, उष्णवे. ग्रदासादिभेदाः पुरुषाः (९ कारत्वम् । १२० । दना, अप्रतिष्ठानादीनि सीमन्त॥ ७१ ॥NI आ०)। ११४ १३६-२३८ अनिदानदष्टिसंपन्नयोग कादीनि च समानि, उदकरसा १२९-१३१ मत्स्यपक्ष्युरोभुजपरिस- वाहिताभिर्मोक्षः, अवसर्पिण्या बहुमत्स्याश्चोधयः । १२५ पाणां चैविध्यम् । (१२ आ०) । दिवैविध्य, पुदलचलनोपधि- १५०-५२ निःशीलराजादीनां नरकगतिर्यगादिस्त्रीपुरुषनपुंसकत्रैवि परिग्रहवैविध्यम् । १२१ मनं, त्यागिनां देवत्वं, विमानध्यं, तिर्यक्रैविध्यम् । ११५ | २३९-४० प्रणिधानानि, योनयः। १२२ वर्णाः, आनतादितनूश्चत्वं,कालि१३२ लेश्यात्रयवन्तो जीवा।(२४ आ०)1, १४१-४२ संख्यातासंख्यातानन्तजी कमज्ञप्तयः । १२६ १३३ ताराचलनं विद्युत्कारः, स्तनि- विका बनस्पतयः, मागधादीनि ॥ तृतीये प्रथमः ॥ तशब्दश्च । | तीर्थानि (१५)। १२३ १५३ नामज्ञानोयादिलोकाः । (लोक१३४ लोकान्धकारोद्योती देवान्ध- १४३ सुषमामानं सुषमानरोचत्वायुषी, | स्वरूपम्)। १२७ कारोद्योतसंनिपातादि, देवेन्द्रा- अर्हचक्रिदशारबंशाः, यथाss- १५४ असुरेन्द्रादिपर्षदः । १२८ दीनां मनुष्यलोकागमन (१५)- | युपो मध्यमायुषश्च (३२ आ०)।१२३ । १५६-१५७ शानादियोधियुद्धाः, इह सुत्ताणि ॥ ७ ~90~ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक वृहत्क्रमः।। स्थानांग यहां देखीए ॥७२॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम लोकप्रतिवद्धादि (१२)प्र याद्याः, स्वयंप्रश्नेन दुःखभया- १७६ अल्पमहावृष्टिहेतवः। १४२ बज्याः । दिदर्शनम् । २३५ | १७७ देवागमानागमहेतवः । ( प्रवृ१५८-१५९ नोसम्झासम्जा नोसझो- १६७ अकृतदुःखादिखण्डनम् । १३७ त्यादिलक्षणम् ।। १४४ पयुक्ता निर्ग्रन्थाः, शैक्षस्थविर १७८-१८० देवानां स्पृहणीयपरिताभूमयः, I ॥ तृतीये द्वितीयः॥ प्ये, च्यवनलक्षणोद्वेगहेतवः, |१६०-६१-८-१२ सुमनस्कादिपुरुष- १६८ अपराधानालोचनालोचनाफ विमानानां संस्थानानि आधारो भेदाः (१२७), एतल्लोकगर्हिलम् । भेदाश्च, ( भोगाय वैक्रियवितप्रशस्तत्व । १३२ | १६९-७२ सूत्रार्थोभयधराः पुरुषाः, मानम् )। १६२ ख्यादिसम्यग्दृष्ट्यादिपर्याप्तका - धार्ये वनपात्रे, पत्रधारणकार- १८१ नारकादिप्रैविध्य, दुर्गतिसुगः । दिसूक्ष्मसजिभव्यादीनां त्रैवि णानि, आत्मरक्षाहेतवः, विकट- तिदुर्गतिसुगताः । १४७ ध्यम् । १३५ दत्तयश्च । १३९ १८२ उत्स्वेदिमादिपानीय (९) उप१६३ आकाशप्रतिष्ठितादि, ऊर्ध्वादि. १७३-७४ चिसंभोगकारणानि, आ- हृतोद्गृहीतावमोदरिकाऽहित दिक्षु गत्यादयः (१४) (दिक्- | चार्यत्वाद्यनुज्ञासमनुशोपसंपद्धा- हितचेष्टाशल्यतेजोलेश्याहेतुत्रिस्वरूपम् । १३४ नानि (आचार्यादिलक्षणानि)।१४१ मासिकीदत्येकराज्यननुपालनNI १६४ घसस्थावरत्रैविध्यम् । , १७५ वचनावचनमनोऽमनांसि (तह पालनफलानि, (प्रतिमास्व(१६५-१६६ अच्छेद्याद्याः (८) सम- चनादि)। १४१ । रूपम् )। || ७२॥ सुत्ताणि ~91 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हत्क्रमः यहां देखीए ध्यम् । दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम १८३-८५ कर्मभूमयः, दर्शनरुचिप्र- ।। स्तारकाः । १५८ । स्थितिः, प्रायश्चित्तगुरुपारायोगाः, व्यवसायाः (२४ ) । १५२ | १९२-१९३ कालसमयादि विध्य, चिकानवस्थाप्यत्रैविध्यम् । १६४ १८६ प्रयोगमिश्रविश्रसापुद्गलाः, न- वचनत्रैविध्यम् । (पुद्गलपरा- २०२ प्रवाजनादि (६) प्वकल्प्याः । रकप्रतिष्ठाने, नयविचारश्च (न- वर्तस्वरूपम्)। १५९ (पण्डकवातिकक्लीवस्वरूपम् ) १६५ यस्वरूपम्)। १५३ | १९४-९६ ज्ञानादिप्रज्ञापनासम्यक्त्वे, २०३ अवाचनीयवाचनीयदुस्संज्ञप्य१८७ मिथ्यात्वाक्रियाप्रयोगसमुदाना- उपघातविशुद्धी च, आराधना सुसंशप्याः । १६६ शानक्रियाऽविनयाशानां वि संक्लेशासंक्लेशातिक्रमातीचाय २०४-५ माण्डलिकपर्वताः, महातिनाचाराः, अतिक्रमादि प्रतिक्र महालयाश्च । (मानुपोत्तरकु१८८ धर्मोपक्रमवैयावृत्त्यानुग्रहानुशा- मणं च, प्रायश्चित्तत्रैविध्यम् , ण्डलरुचकस्वरूपम्)। १६७ | स्त्युपालम्भानां त्रैविध्यम् । १५५ (आधाकर्मादिस्वरूपम् )। १६० | २०६ सामायिकादिनिर्विष्टकल्पादि१८९ कथाविनिश्चययोमेंदाः। (अर्थ१९७ अकर्मभूमयः, जम्बूमन्दरदक्षि- स्थितिः । १६९ कामधर्मकथालक्षणम्)। १५६ ___णोत्तरवर्षवर्षधरइदतद्देवीनदी- |२०७-८ शरीरत्रयं नारकादीनां, गु१९०-१३ पर्युपासनाश्रवणादिफल त्रिकं, जम्बूमन्दरपूर्वपश्चिमादि- रुगतिसमूहानुकम्पाभावश्रुतप्रपरम्परा। पु नदीत्रिकं च । १६१ त्यनीकाः। ॥ तृतीये तृतीयः॥ १९८ देशसर्वपृथ्वीचलनम् । १६२ | २०९ पितृमात्रङ्गानि । । १९१ प्रतिमाप्रतिपन्नस्योपाश्रयसं- |१९९-२०१ किल्विषस्थितिः, शक्रप- २१० भ्रमणश्रमणोपासकयोमहानि ॥ ७३॥ सुत्ताणि ~92~ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक वृहत्तमा यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम र्जराकारणानि । १७१। हितहितयोः स्थानानि । १७७२३६ उन्नतवृक्षादिसाम्येन पुरुषचस्थानांग-IN२११-१३ पुगलप्रतिघातहेतवः, एक- २२४-२२५ घनोदध्यादिवलयानि, त्रि- तुर्भङ्ग्यः (२६)। १८३ द्वित्रिचक्षुष्काः, ऊर्वादिष्वभि समयविग्रहवन्तः, ( पञ्चसम- २३७-३९ प्रतिमाप्रतिपन्नभाषाः, ससमागमक्रमः । यविग्रहः)। १७८ | त्यादिभाषाः, वस्त्रौपम्येन पुरुष२१४ देवराजगणिनामृद्धयः (२१)।१७३ | २२६-२३१ युगपत्क्षेयकौशाः, अ- चतुर्भग्यः । १८४ ॥७४॥ २१५-१७ गौरवाणि धार्मिकादिकर भिजिदादिनक्षत्र (७) तारकाः, २४०-२४२ अतिजातादिसूत्रचतुष्कं, णानि, स्वाध्यायध्यानतपोधर्माः।१७४ धर्मशान्त्यन्तरं,वीरयुगान्तकृद्भू ___ सत्यादिपुरुषचतुर्भङ्गयः, कौर२१८-२० व्यावृत्त्यध्युपपत्तिपर्याप्ति मिमल्लिपार्श्वप्रव्रज्यापरिवारो, कोपमपुरुषचतुर्मङ्गयः। १८५ वीरचतुर्दशपूर्विणः, चक्रवर्तित्रैविध्य, लोकवेदसमयानाम जिनाः। १७९ २४३ स्वखादादिघुणोपमभिक्षुचन्तस्त्रिधा, जिनकेवल्यहतां त्रै२३२-२३४ प्रैवेयकप्रस्तटाः, ज्या तुर्भङ्गी। विध्यम् । दि चितादिपुद्गलाः, त्रिप्रदेशि २४४-२४६ अग्रवीजादिवनस्पतिभे२२१-२२२ लेश्यानां दुरभिगन्धसुर कायास्त्रिगुणरूक्षान्ताः पुद्गलाः।१७९ दाः, नारकानागमनकारणानि, भ्यादि (१४) स्वरूपं, मरण निग्रन्थीसङ्घाटयः । १८७ बाल-पण्डित-बालपण्डितमरण ॥ तृतीये तृतीयः ॥ २४७ ध्यानस्थ भेदलक्षणभावनाभेदाः (१२)। १७६ । ॥ इति त्रिस्थानकम् ॥ सवाल लम्बनानि । १९२ २२३ अव्यवसायिनो व्यवसायिनश्चा- २३५ अन्तक्रियाचतुष्कम् । १८२ | २४८-२४९ देवानां स्थितिसंवासाः, ॥ ७४॥ सुत्ताणि ~93 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत 56कमा सूत्रांक यहां स्थानांग नी देखीए सत्र ॥७५ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम (देवदेव्याद्याः), कषायभेदाः, देवभेदाः, प्रमाणभेदाः । १९८ | हास्यकारणं, काष्ठपक्षमलोहन- Tere क्रोधादीनां प्रतिष्ठानमुत्पत्ति- २५९-२६१ दिककुमार्यः शक्रेशान स्तरान्तरवदन्तराणि, दिवसयाहेत्वनन्तानुबन्ध्याद्याभोगनिर्व- मध्यपर्षदेवदेवीस्थितिः, संसा- बोच्चत्ताकब्बाइभृतकाः, प्रकटतितादिभेदाश्च । ( अनन्ता रभेदाः । १९९ प्रच्छसप्रतिसेविचतुर्भङ्गी । २०४ नुबन्धिनः उपशमादिप्रतिब २६२-२६३ दृष्टिवादे परिकर्मादिमे- २७३-२७७ असुरादीनामनमहिषीचम्बकत्वमेव)। १९५ दाः, (पूर्वपदमानं) प्रायश्चि तुष्कं, गोरसस्नेहमहाविकृतयः, २५०-२५१ कर्मप्रकृतिचयनादिका त्तप्रकाराः, (प्रतिसेवासंयो (विकृतिस्वरूपम् ) कूटागारशारणानि समाधिभद्राक्षुद्रमो जनारोपणापरिकुञ्चनाः) २०० लावत् पुरुषस्त्रीचतुर्भङ्ग्यौ, कादिप्रतिमाः (१२) , २६४-६६ प्रमाणादिकालाः, वर्णादि- द्रव्याघवगाहनाः, अङ्गबाह्या२५२-२५४ अजीवारूप्यस्तिकायाः, परिणामाः, मध्यमजिनचतु श्चन्द्रादिप्रज्ञप्तयः । २०६ फलोपमपुरुषचतुर्भङ्गी, सत्य र्यामाः, २०२ मृषाप्रणिधानादिभेदाः । १९७ / २६७-६८ दुर्गतिसुगतिर्गतसुगताः, ॥ चतुर्थे प्रथमः ॥ | २५५ आपातभद्रकादि, आत्मपाप- प्रथमसमयजिनक्षयकर्मांशाः, के- २७८-२७९ क्रोधादिमनआदिसलीना दादि, अभ्युत्थात्रादि, सूत्र बलिवेद्यकर्मीशाः, प्रथमसमय- मदलीनते, दीनदीनपरिणतरूधरायन्ताश्चतुर्भङ्ग्यः (१४)।, सिद्धक्षेयक शाश्च । २०३ पमनःसङ्कल्पादिचतुर्भङ्ग्यः, २५६-२५८ असुरेन्द्रादिलोकपाला, । २६९-२७२ दृष्टिभाषाश्रवणस्मृतयः, । (१७)। २०७ ॥ ७५॥ सुत्ताणि ~94~ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत वृहतक्रमः।। सूत्रांक श्री- स्थानांग यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम २८०-२८११४-२८७ आचार्यपरिण- शिखावात्यवनखण्डौपम्येन पुरुष- |२९७-२९९ व्यायेककतिनामादि- तादिचतुर्भङ्ग्यः (१८) वृषभहखीचतुर्भङ्ग्यः (१७) २१६ सर्वाः । २२३ स्त्युपमया चतुभेङ्मयः,(भद्रमन्द- २९०-९१ निम्रन्थ्यालापकारणानि, त- |३००-३०२ १९ मानुषोत्तरकूटाः, मितसंकीर्णहस्तिलक्षणानि ) । २०९ मस्कायनामानि (१२) तदा सुषमसुषमामानं, अदेवकुरुत्तर२८२ सप्रभेदानां हत्यादिविकथानां बार्यकल्पाश्च । २१७ कुर्वकर्मभूमिवृत्तवैताव्यतदधिआक्षेपिण्यादिधर्मकथानां च २९२ प्रकटप्रच्छन्नसेवाप्रत्युत्पन्ननि पमहाविदेहनिषधाधुश्चत्त्ववक्षस्वरूपम् (३२)। २१२ स्सरणनन्दीश्येनोपमपुरुषच स्कार (१६) जघन्यपदचक्रया1 २८३-२८४ कृशकृशशरीरशानायुत्प तुर्भङ्ग्यः (५)। २१८ दिमेरुवनाभिषेकशिलाचूलिकात्तिचतुर्भङ्ग्यः, अतिशायि- २९३ वंशीमूलाधुपमाभिर्मायामान विष्कम्भाः,धातक्यादावपिच । २२५ ज्ञानोत्पादानुत्पादकारणानि । २१३ | लोभाः। २१९ ३०३-६ जम्बूदीपद्वारतदधिपाः, अ२८५-२८८ महाप्रतिपदः संध्याः स्वा- | २९४-२९५ संसारायुर्भवाः,अशनादिक न्तरद्वीपाः (१८), पातालकलध्यायकालाच, आकाशप्रतिष्ठि उपस्करादिसंपन्नचाहारः। २२० शतदधिपावासपर्वततद्देवानुवेतादिलोकस्थितिः, तथानोतथा- २९६ सप्रभेदबन्धोपक्रमवन्धनोदीर- लन्धरावासपर्वततद्देवलवणचऽऽत्मपरात्ततमोदमचतुर्भङ्ग्यः , णोपशमविपरिणामोपक्रमाल्पब न्द्रसूर्यनक्षत्रग्रहद्वारतदधिपाः, उपसम्पदादि गर्दाः । २१५ | हुकसंक्रमनिधत्तनिकाचनानां घातकीविष्कम्भाऽजम्बूद्वीपभर२८६ आत्माऽलमृजुमार्गशङ्खधूमाग्नि- । चातुर्विध्यम् । २२२ । तादीनि, (अन्तरद्वीपपातालक ७६॥ सुत्ताणि ~95 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्री यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम लशवेलन्धरवक्तव्यता)। २२९ प्रीत्यप्रीतिभ्यामात्मपरयोः प्री श्रावकाः (८) वीरश्रावक| ३०७-२०० नन्दीश्वराञ्जनकसिद्धाय- तिकरणप्रवेशचतुर्भङ्ग्यः । २३५ । स्थानांग स्थितिः, देवानागमागमकारणातनतद्वारतदधिपमुखमुण्डपने- | ३१३-३१४ पत्रपुष्पफलच्छायोपग नि। क्षागृहाक्षाटकमणिपीठिकासिं क्षवत्पुरुषाः,भारवाहकाश्वासवत् | ३२४ लोकान्धकारोद्योतादि, लोकाहासनविजयदूष्याङ्कुशमुक्ता श्रमणोपासकाश्यासाः । २३७ न्तिकागमनकारणानि । २४५ ॥ ७७॥ दामचैत्यस्तूपजिनप्रतिमापुष्क- | ३१५-१९ उदितोदितोदितास्तमित- | ३२५-३२६ दुःखसुखशय्याः अवाचरिणीवनषण्डबापीचिसोपानतोभङ्गाः (४) भरतादियु, कृतयुग्मा नीयवाचनीयाः । २४७ रणदधिमुखरतिकराममहिषीरा- दिक्षान्त्यादिशूराः, उच्चोयच्छन्दा- ३२७ आभरिपरभर्यादि चतुजधान्यः। दिचतुर्भङ्गी, चतुर्लेश्याकाः) । २३८ भंङ्मयः । ३०८-२० नामसत्यादि, आजीविक ३२० यानयुग्यसारथिहयगजयुग्यच- | ३२८-३२९ अप्रतिष्ठादीनि सीमन्ततपः, मजआदिसंयमत्यागा र्यापुष्पफलोपमैःपुरुषचतुर्भग्यः , कादीनि समानि सपक्षाणि च, किञ्चन्यानि, (पुस्तकवखधर्मप- प्रजाजनोद्देशनाथाचार्यशिष्याः, द्विशरीराः । ञ्चकानि)। २३४ आराधनाऽनाराधनयो रत्नाधि ३३०-३३४ हीमत्त्वादिपुरुषाः, श॥ चतुर्थे द्वितीयः ॥ कादिनिन्धनिम्रन्थीश्रावक व्यावसपात्रस्थानप्रतिमा, जीव M३११-१२ पर्वतादिराजीकर्दमाचुदक श्राविकाच । २४२ स्पृष्टकार्मणोन्मिश्रशरीराणि, लो. समौ क्रोधभायौ, रुतरूपाभ्यां | ३२१-२३ मातापित्रादिआदर्शादिसमाः । कास्तिकायवादयः समप्रदेशाः, ॥ ७७॥ सुत्ताणि ~964 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत बहवक्रमः।। सूत्राक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ग्रहा। २५३| तुर्भश्म्यः । २६७ । ३५६-५७ सप्रनेदाहारादिसज्ज्ञातद्धIN| ३३५-३३७ दुर्दर्शशरीराः, स्पृष्टार्थ- स्थानांग ३४५ क्रियावाद्यादिसमवसरणानि । २६९ तवः,कारकरुणबीभत्सरौद्राः वेदकेन्द्रियाणि, बहिर्जीवपुद्गला- ३४६ मेघाधुपमया पुरुषमातापितृ कामाः । २७७ गमनकारणानि । २५३ राजचतुर्भङ्ग्यः । २७० | ३५८ उदकोदथुपमपुरुषचतुभग्यः॥ ७८ ॥ ३३८ शाताहरणतद्देशतद्दोषोपन्यासो३४७-५२२१-२४० मेघाः, करण्ड (८)। २७८ पनयहेतूनां चातुर्विध्यम् । (स कोपमयाऽऽचार्याः, वृक्षमत्स्य- ३५९-६० २५-२८४ा तरकचतुर्भड्गी , दृष्टान्तम्)। २६३ गोलकपत्रकटोपमा आचार्यभि कुम्लोपमपुरुषचतुर्भङ्ग्यः । २८० ३३९ परिकर्मादिसंख्या, अधस्तियंगू- | क्षुपुरुषाः, चतुष्पदपक्षिक्षुद्र- ३६१ उपसर्गा दिव्यमानुषतरश्चात्मलोकेष्वन्धकारोद्योतकराः । २६३ प्राणाः, एल्युपमा भिक्षवः, नि संबेदनीयोपसर्गभेदाः । २८१ ॥ चतुर्थे तृतीयः ॥ कृष्टबुधादिचतुर्भग्यौ । २७४ | ३६२-६५ शुभादि प्रकृत्यादि च क३४०-४२ प्रसर्पकाः, अङ्गारादिक- ३५३-३५४ दिव्यादिसंवासचतुर्भङ् मणः, सङ्गभेदाः, औत्पत्तिक्यद्वायुपमाऽशनादि वर्णमदाद्याहा- ग्यः (७) अपध्वंसासुर्या- वग्रहाद्यलखरोदकादिसमाना बुरोनारकादीना, जात्याशीविषतभियोगसंमोहकिल्बिषत्वकार द्विः, लारकादिमनोयोग्यादिद्विषयौ। णानि । २७५ स्त्रीवेदादिचक्षुर्दर्शन्यादिसंयताM३४३-४४ व्याधिचिकित्साचतुर्भङ्- | ३५५ इहलोकप्रतिबद्धादिप्रव्रज्या भेदाः । दिभेदा जीवाः, (साधुश्रावकयोः ग्यौ, आत्मपरचिकित्सादिच- । (३२)। ૨૭ ' बुद्धीनां च स्वरूपम्)। २८३ ॥ ७८ ॥ सुत्ताणि ~97 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) श्री स्थानांग सूत्रे 1108 11 ३६६-७१ मित्रादिपुरुषचतुर्भहग्यः, तिर्यहमनुष्यगत्यागती, दीन्द्रि यानारम्भारम्भसंयमासंयमी, सम्यग्दष्टिकिया, गुणनाशोत्पादकारणानि शरीरकारणानि । २८५ ३७२७५ धर्मद्वाराणि महारम्भत्वा दीनि नारकत्वादिकारणानि, वाद्यनृत्यगेय माल्यालङ्काराभिनयानां चातुर्विध्यं सनत्कुमारादिविमानवर्णशुक्रादिदेवतनु माने । ३७६-७७ २९-३१३ उदकगर्भाः मा नुषीगर्भाः । ३७८-८५ उत्पादवस्तूनि काव्यानि नारकवातसमुद्घाताः, नेमिचतुर्दशपूर्विणः, वीरवादिनः, २८७ २८७ अर्द्धपूर्णार्द्धचन्द्रसमाः कल्पाः, प्रत्येकरसोदधयः, खरावर्त्तायुपमया कषायाः ॥ २८९ ३८६-८८ अनुराधादि (३) तारका, पापचयनादि चतुष्पदेशिकादि । ॥ चतुर्थे चतुर्थः ॥ २९१ ॥ इति चतुर्थस्थानकाध्य० ॥ ३८९ महाव्रतानुव्रतानि । ३९०-९१ वर्णरसकामगुणभेदः सङ्गादिविनिधात हेत्वहितहित दुर्गतिसुगतिहेतवः (१३), प्राणातिपाततद्विरमणादिभिर्दुर्गतिसुगती । २९२ ३९२ ९४ भद्रायाः प्रतिमाः, ( त स्थापना ) इन्द्राद्याः स्थावराः, ~ 98~ २०९ अवधिदर्शनोत्पादक्षमक्षोभाः। २९४ ३९५ शरीरवर्णरसभेदौदारिकवर्णादि, ( शरीरस्वरूपम् ) । ३९६-९७ दुराख्यातस्वाख्यातादिभिदुर्गमसुगमे शान्त्यादि सत्यादि उत्क्षिप्तचरत्वादि अज्ञातचरत्यादि उपनिहितादि आयाम्लादि अरसाहारादि अरसजीवि त्वादि स्थानादि दण्डायतिकादी ( ५० ) । न्यभ्यनुज्ञातानि च, अग्लाग्या वैयावृत्येन ( ७० ) महानिर्जरा । ३९८-४०० विसंभोगपाराञ्चिककारणानि, विग्रहाविग्रहस्थानानि, उत्कुडकादिनिषद्याऽऽर्द्धवस्थानानि । (सूत्राध्ययनपर्यायाः ) २०२ ३०० २९६ बृहत्क्रमः । ॥ ७९ ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीस्थानांग हत्क्रममा यहां सूत्रे देखीए ॥ ८ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ४०१-५ चन्द्रादिभव्यादिदेवाः, का- प्रथमप्रावृष्यन्यत्र भयादिभ्यः, । सुप्तजागरा, रजआदानवमनयादिपरिचारणा, चमरवल्यग्रमपर्युषितेऽन्यत्र ज्ञानादिभ्यो न कारणानि, पञ्चमासिकीदत्तयः, हिष्यः, असुरेन्द्रादीनां संग्रामा विहारः । ३१० उद्गमायुपघातविशुद्धिः। ३२१ नीकतदधिपाः, शक्रेशानाभ्य- | ४१४ हस्तकर्मादीनि गुरुणि । ३११ १४२६ दुर्लभसुलभवोधिकारणानि । ३२२ स्तरपर्षदेवदेवीस्थितिः। ३०३ | ४१५ राजान्तःपुरप्रवेशकारणानि । ३१२ | ४२७-३१ संलीनतासंलीनता संव४०६-८ गत्यादिप्रतिघाताः, जात्याया- ४१६ असंसर्गे गर्भधारणे (५)सं रासंबरा सामायिकादिसंयमाः, जीवाः,खड्गादिचिहानि। ३०४ सर्गेऽपि गर्भाधारणे (१५) का- एकेन्द्रियानारम्भारम्भसंयमः, ४०९ छन्मस्थकेवलिपरीषहसहनका रणानि च । ३१४ पश्चेन्द्रियसर्वप्राणाद्यनारम्भाररणानि । ३०५ | ४१७ निर्ग्रन्थनिन्थ्येकत्रावासकार- म्भसंयमासंयमाः, अग्रवीजाद्या ४१० हेत्वहेतुज्ञानाज्ञानकेवल्यनुत्त __ णानि (१०)। ३१५ वनस्पतिभेदाः । (चारित्रराणि । ३०७ | ४१८-४१९ आश्रवसंबरद्धारदण्डाः , स्वरूपम्)। ३२५ ४११ पद्मप्रभादीनां (१४) च्यवना आरम्भिक्याद्याः कायिक्याद्या- ४३२-३३शानाद्याचाराः, मासिकाद्या दिनक्षत्राणि । ३०७ च क्रियाः। ३१७ चारप्रकल्पप्रस्थापिताधारोपणा ३२६ ॥ पञ्चमे प्रथमः ॥ |४२०-२१ उपध्यादिपरिज्ञा, आगमा ४३४-४३५. जम्बूधातकीपुष्करपूर्वा| ४१२-१३ गङ्गादयो द्विनिर्मासान्तर- दिव्यवहाराः। ३१९ परार्द्धपूर्वसीतापश्चिमसीतोदोनुत्तार्या अन्यत्र भयादिभ्यः। । ४२२-२५ सुप्तजागरितसंयतासंयतानां । त्तरदक्षिणवक्षस्कार (२०) देव ना ॥८० सुत्ताणि ~99~ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत श्री बृहतक्रमः।। सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम कुरुत्तरकुरुहदसीतासीतोदाम- (इन्द्रियस्वरूपम् ) ३३६ | तरिकानन्ताः (५-५-१०)।३४७ स्थानांग न्दरासन्नोवेधसमयक्षेत्रभरता- | ४४५ पुलाकादिनिम्रन्थस्वरूपम् । ३३८ | ४६३-४६४ शानानि ज्ञानावरणीयानि । दीनि, ऋषभभरतबाहुबली- ४४६ धार्यवस्त्ररजोहरणे। ३३९ | (ज्ञानस्वरूपम् )। ३४९ ग्रामीसुन्दरीतनुमानम । ३२७ ४४७-४९ धर्मे निधास्थानानि,पुत्रादि- ४६५-६७ स्वाध्यायाः, प्रत्याश्यान॥८१ ॥ N४३६-३७ सुप्तवियोधकारणानि नि- निधयः, पृथिव्यादिशौचानि । ३४१ | शुद्धयः,आश्रवादिप्रतिक्रमणानि ३५० ग्रंन्धीग्रहणकारणानि । ३२९ | ४५०५४ छवास्थसर्वभावाशेयाः, महा- ४६८ सूत्रवाचनशिक्षणकारणानि । ३५१ ४३८ आचार्योपाध्यायातिशेषाः । ३३१ । निरयविमानानि, हीमत्यादिपुरु- ४६९-७४ सौधर्मेशानविमानवोच्च४३९-४० आचार्योपाध्यायगणापक्र षाः,अनुस्रोतश्चारिमत्स्यवाहभि त्वब्रह्मलान्तकतनूच्चत्वपञ्चवर्णामणकारणानि, अर्हदादिका - क्षाकाः, अतिथ्यादिवनीपकाः । ३४२ दि, पुद्गलबन्धाः, गङ्गासिन्धुद्धिमन्तः । ३३२ | ४५५-५७ अचेलकप्राशस्त्यकारणानि, रक्तारक्तवतीसमागतनद्यः (२०) ॥ पञ्चमे द्वितीयः ॥ दण्डाद्युत्कलाः, समितयः । ३४३ कुमारतीर्थङ्कराः, चमरचञ्चा ४४१-४२ पञ्चास्तिकाया द्रव्यादिभिः४५८-६० संसारसमापन्नभेदाः, एके. राजधानी सभाः. इन्द्रस्थानगतिपञ्चकम् । ३३४न्द्रियादिगत्यागती, सवेजीवमे सभाश्च,धनिष्ठादितारकाः, पञ्च|४४३-४४ इन्द्रियार्थश्रोत्रेन्द्रियादि- दाः, कलमसूरतिलादियोनि स्थाननिर्वर्तितचयनादि पश्चक्रोधादिमुण्डाः, अधऊर्ध्वतिर्यग्- काला, संवत्सरपञ्चकम् । ३४६ प्रदेशिकादिपुद्गलाः । बादरतेजोबाय्यचित्तवायवः । ४६१-६२ जीवनिर्वाणमार्गाः, छेदान ॥ पञ्चमे तृतीयः ॥ सुत्ताणि ||८१॥ ~100 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक बृहत्क्रमः।। यहां स्थानांग देखीए AR दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ॥ पञ्चमस्थानकाध्य०॥ कुरुनरोच्चत्वायुषी, संहननानि, रीमहत्तरिकाः (१२), धरण- ४७५-७७ गणधारणगुणाः, निम्रन्थी संस्थानानि । ३५८ | भूतानन्दादीनामनमहिष्यः, धग्रहणकारणानि, कालगतसाध ४९६-९८ अनात्मात्मवतोरहितहित- रणभूतानन्दादीनां सामानिकाः।। र्मिकसमाचाराः । ३५४ । कारणानि (पर्यायादीनि) जा- (प्रतिलेखनास्वरूपम् )। ३६३ ४७८-८४ छद्मस्थैः सर्वभावाशेयाः, | तिकुलार्याः, लोकस्थितिः । ३५९ | ५१० अवग्रहहापायधारणाभेदाः । अजीवकरणतादीन्यशक्यानि, ४९९-५०० प्राच्यादिदिशाषट्केन जी- (बावाद्याः)। ३६४ जीवनिकायाः तारकग्रहाः सं पतिर्यमनुष्याणां गत्यागल्या- ५११-५१२ बाह्याभ्यन्तरतपसी, विसारसमापन्नतइत्यागतयः, सर्व- दीनि (१४) आहारानाहारकार वादाः। जीवविधत्वं, अग्रवीजाद्याः । ३५५ णानि । ३६० | ५१३-१५ शुद्रप्राणाः, गोचरचर्या, 1४८५-८९ मानुष्यत्वादीनि दुर्लभानि, ५०१-२ अर्हदवर्णादीन्युम्यादकारणा- दक्षिणक्यां. प्रथमचतुर्थीनरकाइन्द्रियार्थाः, संवरासंबराः, सा- नि, मद्यनिद्राविषयकपाया पक्रान्तनिरयाः। ३६७ तासाते, प्रायश्चित्तषट्कम् । ३५६ | तप्रत्युपेक्षणाः प्रमादाः । ३६१ | ५१६-१७ ब्रह्मप्रस्तटाः, पूर्वभागादि| ४९०-९५ जंबूद्वीपकादिसंमूछिमादि ५०३-२ प्रमादाप्रमावभतिलेखनाः, ति नक्षत्राणि (पूर्वाभाद्रपदादि(१२) मनुष्याः, ऋचयनृद्धिम- र्यग्नरलेश्या, शक्रसोमेशानय ३० शतभिषगादि १४ रोहन्तोऽर्हदादिहैमवदाद्या, आरक- मयोरमहिष्यः, ईशानेन्द्रमध्य- _ ण्यादि ४५)। ३६८ षट्क, सुषमसुषमादेवकुरुत्तर- पर्षदेवस्थितिः, दिग्विद्युत्कुमा- ५१८-२१ अभिचन्द्रोच्चत्वं, भरतम सुत्ताणि ~101 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक बृहत्क्रमः॥ यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम हाराजत्वं, पार्श्ववादिवासुपूज्य- संशयादिप्रक्षाः, चमरचञ्चेन्द्र- ५४३-४५ अण्डजादियौनिसङ्ग्रहतगस्थानांगप्रव्रज्यापरिवारचन्द्रप्रभच्छाम स्थानमाघवतीसिद्धिविरहाः । ३७६ | त्यागतयः, गणसङ्ग्रहासङ्ग्रहस्थ्यमासाः, त्रीन्द्रियानारम्भार- सूत्र स्थानानि, पिण्डपानैषणा ऽवन५३६-३७ जातीनां निधत्ताचायूंषि, म्भसंयमासंयमाः। ३६८ औदयिकादिभावाः । ( सं- हप्रतिमासप्तसप्तकमहाध्ययनस।। ८३॥ ५२२-२४ जम्बूद्वीपाकर्मभूमिवर्षवर्ष- क्षेप्यासंक्षेप्यायुर्वन्धः, भावष- ससप्तमिकामिक्षामानं च । ३८८ धरमन्दरदक्षिणोत्तरकूटमहाह ट्कस्वरूपभेदाः)। ३७२ | ५४६ पृथ्वीधनोदध्यादितनामगोदतहेवीनदीपूर्वपक्षिमान्तरनद्या, ५३८-४० उच्चारादिप्रतिक्रमणादीनि, | । त्राणि । धातक्यादावपि च (५५) ऋतवः, कृत्तिकालेपातारकाः, पुलच- | ५४७-५० बादरवाता:. दीर्घादिस अवमरात्रातिरात्राः । ३७० यनादिषट्प्रदेशिकादि च । ३८२ स्थानानि, भयस्थानानि, छन्न५२५-२७ अर्थावग्रहाः, अवधिज्ञाना स्थकेवलिनोचिहानि । ३९० नि, अवचनानि । ॥ इति षष्ठं स्थानकम् ॥ | ५५१ सप्रमेदमूलगोत्रभेदाः काश्य५२८-३२ कल्पग्रस्ताराः संयमपरि - पाद्याः। मन्थूनि, कल्पस्थितयः, बीरदी- ५४१ गणापक्रमणकारणानि, सर्वधर्म- | ५५२ नैगमाद्या नया., (नयस्वरूक्षामोक्षतपःसनत्कुमारमाहेन्द्र- रोचनादीनि । ३८२ पम् )। विमानशरीरमानम् । ३७५ ५४२ एकदिग्लोकाभिगमादीनि बि- ५५३ स्वरभेदः जीवाजीवनिश्रितत्वIN५३३-३५ भोजनविषयोः परिणामाः, भंगशानानि । ३८५ / लक्षणग्राममूर्च्छनायोनिगमादि ३९० सुत्ताणि ॥८३ ॥ ~102 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) श्री स्थानांग सूत्रे ॥ ८४ ॥ ३९७ स्वरमण्डलम् । ३९९ ५५४-५९ स्थानातिगादिकायक्लेशाः, जम्बूधात की पुष्कर पूर्वापरार्द्धववर्षधर पूर्वपश्चिमाभिमुखनथः, अतीतोत्सर्पिण्यादिकुलकराः, हकारादिदण्डनीयः, चक्रयेकेन्द्रियपञ्चेन्द्रियरत्नानि दुण्यमासुषमाचिह्नानि । ५६०-६२ संसारजीवाः, अध्यवसा नायुपक्रमाः, सर्वजीवाः । ४०० ५६३-६४ ब्रह्मदत्ततनुमानायुर्गतयः, महिदीक्षापरिवारनृपाः (मल्लि कथानकम् ) । ५६९-७९ सम्यग्दर्शनादीनि दर्शनानि, अमोहप्रकृतयः, छद्मस्थसर्वभावा शेयकेवलज्ञेयाः, वीरोच्चत्वं, ४०३ विकथाः, आचार्यातिशेषाः, संयमासंयमारम्भानारम्भाथाः । ४०५ ५७२-८३ अतसीकुसुम्भादियोनिकालः, अकायतृतीयचतुर्थनरकस्थितिः शक्रवरुणेशानसोमयमानमहिण्यः, ईशानाभ्यन्तरपर्षदेवशक्राग्रमहिषीसौधर्मपरिगृहीतदेबीनां स्थितिः, सारस्वतादित्यगर्दतोय तुषितदेवाः, सनत्कुमार माहेन्द्रब्रह्मलोकस्थितिः ब्रह्मलोकलान्तक विमानोचत्वं भवनपत्यादितनूच्यत्वं, अ न्तरनयोऽन्तरद्वीपसमुद्राः, ऋ ज्वायताद्याः श्रेणयः, असुरेन्द्रायनीकानि चमरादिपदात्यनीकाचिपकक्षातद्देवसख्याः । ~103~ ~ ४०७ ४१० ५८४-८५ वचनविकल्पाः, विनयप्रशस्ताप्रशस्तमनोवाक्कायलोकोपचारचिनयभेदाः । ४०९ ५८६ समुद्घाताः । ५८७ निवतद्धर्माचार्योत्पत्तिनगराणि । ( निद्रवचादः) । ५८८-९३ सातासात वेदनीयानुभावाः, अभिजिदादिकानि पूर्वादिद्वाराणि नक्षत्राणि, सौमनसगन्धमादनकूटाः, द्वीन्द्रियकुलकोट्यः, पुलचयनादिस्थानानि, सप्तप्रदेशिकाथाः पुद्गलाः । ४१५ ॥ इति सप्तमाध्ययनम् ॥ ५९४-९६ एकाकिविहारप्रतिमागुणाः, કર્ક बृहत् क्रमः ॥ ॥ ८४ ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हत्क्रमः यहां स्थानांग देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम योनिसङग्रहाण्डजादिगत्यागती, | ६१२-१७ शक्रेशानशकसोमेशानवैध- | ६२८-३४ नारकाद्याः, प्रागभारान्ता कर्मप्रकृतयः । मणाप्रमहिषीमहाग्रहाः, तृणव गतयः, गङ्गादिद्वीपमान, उल्का५९७ अपराधानालोचनालोचनकार नस्पतयः चतुरिन्द्रियानारम्भा- मुखाद्यायामः, कालोदविष्कम्भः, णानि, तत्प्रत्याजातिवर्णनानि । रम्भसंयमासंयमा, प्राणादि अभ्यन्तरवाह्यपुष्कराईविष्क-- ४२२ सूक्ष्माणि, भरतवंशसिद्धाः, पा म्भः, काकिणिरत्नमानं, मागध५९८-६०० संवरासंबरी, स्पर्शाः र्श्वगणधराः । ४३० योजनधनूंषि । लोकस्थितिः। | ६१८-२१ सम्यग्दर्शनादीनि, उपमि ६३५-४४ जम्वाधुञ्चत्वादि, तिमिस्र| ६०१-३ गणिसम्पदः, महानिध्युच्चत्वं, ताद्धाः, नेमियुगान्तकृमिः, बी गुहायुश्चत्वं, जम्बूपूर्वपश्चिमसी. समितयः । ४२३ रप्रवाजितनुपाः । ४३२ तासीतोदोत्तरदक्षिणविजयत६०४-६ आलोचनाप्रतीच्छकदायक- ६२२-२४ आहाराः, कृष्णराजीत- द्राजधान्यः, उत्कृष्टपदजिनादयः, गुणाः, प्रायश्चित्तानि, मद संस्थाननामतत्स्थविमानतद्देव- दीर्घवैताब्यतिमिनादिगुहाप्रभूस्थानानि । ४२५ स्थितिः, धर्मास्तिकायादिमध्य- तिः, मेरुचूलामध्यविष्कम्भः, ६०७ एकात्मवाद्याद्यक्रियावादिनः । ४२७ / प्रदेशाः। ४३३ धातकीवृक्षोच्चत्वादि, दिग्रह६०८-११ मौनादिनिमित्तानि, वचन- ३२५-२७ महापद्मप्रवाज्यनुपाः, सि- स्तिकूटवेदिकोच्चत्वे महाहिमवविभक्तयः, छद्मस्थाशेयकेवलि कृष्णाग्रमहिष्या, बीर्यप्रबाद- द्रुक्मिरुचकदिकुमार्यः, तिर्यशेयाः, कुमारभृत्याद्यायुर्वेदाः । ४२९ वस्तुचूलवस्तूनि । ४३४ | गनिश्रोत्पन्नकल्पतदिन्द्रपारिया शा॥८५॥ सुत्ताणि ~104 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री. स्थानांग सूत्रे ॥ ८६ ॥ निकविमानानि । ६४५-४८ अष्टाष्टमिकामिक्षाः, संसारसमापन सर्वजीवभेदाः, प्रथमसमयादिसंयमाः, रत्नप्रभादिपृथ्वीसिद्धिशिलामध्यविष्कम्भमानानि । ર ४४१ ६४९-५१ पराक्रमणीयस्थानानि, महाशुक्रसहस्रारविमानोच्यत्वनेमिवादिनः । ६५२ केवलिसमुद्घातः । ६५३-६० वीरानुत्तरोपपातिकसम्प ४४२ त् व्यन्तरमेदचैत्यवृक्षाः, सूविमान चाराबाधा, प्रमर्दयोगनक्षत्राणि द्वीपसमुद्रद्वारोच त्वं पुरुषवेदयशः कीर्त्यचैगोंत्राणां जघन्या स्थितिः, त्री 39 न्द्रियकुलकोख्यः, पुलानां चयनादि, अष्टप्रदेशिकादि च । ४४३ ॥ अष्टमं स्थानकम् ॥ ६६१-६३ विसंभोगकारणानि, ब्रह्मचर्याध्ययनानि, ब्रह्मचर्यगुप्तयः ॥४४५ ६६४-६७ अभिनन्दनसुमत्यन्तरं, जीवादिसद्भावपदार्थाः, संसारसमापक्षभेदपृथ्व्यादिगत्यागतिसजीवभेदावगाहन संसारबर्त्तनानि, रोगोत्पत्तिकारणानि । ६६८-७२ दर्शनावरणीयभेदाः, अभिजिचन्द्रयोगोत्तरयोगनक्षत्राणि, तारकचाराबाधा, जम्बूद्वीपप्रवेश्यमत्स्याः, बलदेववासुदेवपिचाद्यतिदेशः । ४४७ ~105~ ~ ve ६७३ नैसर्पादिनिधिस्वरूपम् । ४५० ६७४-७८ विकृतयः, श्रोतांसि पुण्यभेदाः पापायतनानि, उत्पादादिपापश्रुतप्रसङ्गाः । ६७९८१ नैपुणिकवस्तूनि, गोदासादिगणाः, कोटिनवकम् । ४५२ ६८२-८५ ईशानवरुणाग्रमहिष्यः, ईशा नाग्रमहिषीतत्कल्पपरिगृहीतानां स्थितिः, लोकान्तिकाः, ग्रैवेयकप्रस्तटनामानि । ४५३ ६८६-८८ आयुःपरिणामाः, नवनवनिकामिक्षाः प्रायश्चित्तानि । ६८९ भरतवैताढ्यनिषधनन्दनवनमाल्यवत्कच्छादिताख्यविद्युत्प्रभपक्ष्मादिवैताख्यनीलवदैवतवैताढ्यकूटाः । ४५५ ४५१ ४५५ बृहत्क्रमः । ॥ ८६ ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री स्थानांग सूत्रे ॥ ८७ ॥ ६९०-९१ पार्श्वचत्वं वीरतीर्थभावितीर्थकराः । ६९२ कृष्णादीनां मुक्तिः । ६९३ श्रेणिकचरित्रम् | ६९४-७०३ पश्चाद्भागनक्षत्राणि, आ नतादिविमानोचत्वं विमलवाहनोचत्वं अवसर्पिण्यारम्भऋषभतीर्थान्तरं, घनदन्तायायामाः, शुक्रग्रहवीथयः, नोकपायाः, चतुरिन्द्रियभुजपरिसर्पाणां कुलकोटयः, नवस्थानपुलचयनादिः, नवप्रदेशिकादि ४७० इति नवमाध्ययनं ॥ ७०४ जीवप्रत्यागमनादिका लोकस्थितिः । ७०५-६ शब्दभेदाः (निर्धारिमाद्याः), ४७१ ४५७ ४५८ ४६८ अतीतप्रत्युत्पन्नानागतेन्द्रियार्थाः ४७२ | ७०७-९ पुद्गलचलनकारणानि, कोधोत्पत्तिकारणानि संयमासंयमसंधरासंवराः । ७१०-१३ मानकारणानि, समाध्यसमाधयः, प्रव्रज्याभेदश्रमणधर्मवैयावृत्त्यानि, जीवाजीव परिणामाः ।४७५ ७१४-१५ अन्तरीक्षीदारिकास्वाध्यायाः, पञ्चेन्द्रियावधवधसंयमासंयमाः । ७१६-२६प्राणादिभङ्गान्तसूक्ष्माणि, ग ङ्गादिसमागतनद्यः, भरतराजधान्यः, तत्प्रव्रजिता नृपाध, मेरुधरण्यवगाहादि, दिग्दर्शकगोतीर्थमानोदकमानपातालकलशोद्वेधमूलादिविष्कम्भकुप ४७७ ~106~ ४७३ मानक्षुद्र पातालोधादि धातकीपुष्करमन्दरावगाहः, वृत्तवैताढ्यो त्योद्वेधविष्कम्भाः, क्षे त्रदशकं मानुषोत्तरमूलविकम्भः, अञ्जनदधिमुखरतिकरविष्कम्भादि, रुचककुण्डलविकम्भादि । ७२७ द्रव्याद्यनुयोगाः । ७२८ देवोत्पादपर्वतप्रमाणम् । ૮૩ ७२९-३३ वनस्पतिजलचरस्थलचर ર ર शरीरावगाहः संभवाभिनन्दनान्तरं, अनन्तदशकं, उत्पादयस्त्वस्तिनास्ति चूलवस्तूनि प्र तिसेवाभेदानालोचनादो पालोचनात्वतद्गुणप्रायश्चित्तानि । ४८७ ७३४-३८ मिध्यात्वभेदाः, चन्द्रप्र बृहत्क्रमः 11 20 11 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हत्क्रमः॥ यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम भधर्मनमिपुरुषसिंहनेमिकृष्णास- । ७४९-५० इच्छादिसामाचार्यः, वीरः । ७६० ग्रामादिधर्माः । स्थानांग- र्वायुः, भवनपतिभेदचैत्यवृक्षाः स्वमाः । ५०३ | ७६१-६२ प्रामादिस्थविराः, आत्मजाआरोग्यादिसौख्यानि, उद्गमा ७५१ निसर्गादिसम्यग्दर्शनभेदाः। ५०४ दिपुत्राः। झुपघातविशुद्धयः । ४८९ ७५२-५३ सञ्चादशक, नरकवेदनाः ५०५ ७६३-६६ केवल्यनुत्तराणि, कुरुमहा७३९-४० उपध्यादिसक्लेशासक्ले७५४-५६ छद्मस्थाशेयकेवलिशेयाः,द द्रुमतदधिपाः अवगाढदुषमासुशाः, श्रोत्रेन्द्रियादिवीर्यान्तबशाभेदकर्मविपाकादिदशकाध्य षमचिहानि, सुषमासुषमकल्पलानि । यनानि, ( उत्सर्पिण्यादिकाल वृक्षभेदाः । ७४१ सत्यमृषासत्यामृषाभाषाभेदाः। ४९१ मानम् । तत्तदध्ययनकथान ७६७-६९ अतीतभाव्युत्सर्पिणीकुल७४२ दृष्टिवादनामानि । , कानि) ____ कराः, पूर्वपश्चिमवक्षस्काराः,क- . ७४३ अग्न्यादिशातजातादिदोषव- । ७५७ अनन्तरोत्पन्नादिनारकभेदपक ___ ल्पतदिन्द्रतत्परियानिकाः । ५१८ स्त्वादिविशेषाः । ४९४ प्रभानरकावासरत्नपङ्कधूमप्रभा ७७०-७१ दशदशमिकाभिक्षाः, संसा७५४ शुद्धवागनुयोगाः। सुरादिचादरवनस्पतिव्यन्तरब- रसमापन्नसर्वजीवभेदाः। ५१९ ७४५-४७ दानानि गतयश्च, मुण्ड- मलान्तकस्थितिः। ५१४ | ७७२ बालादिदशादशकम् । ५२० भेदाः संख्याभेदाः। ४९८ ७५८ आगमिष्यद्भद्रताकारणानि । ५१५ | ७७३-७६ मूलादिवनस्पतिभेदाः, विM७४८ प्रत्याण्यानदशकम् । ४९९ ७५९ आशंसाप्रयोगाः । द्याधराभियोगिकश्रेणिविष्कम्भाः, ॥८८ सुत्ताणि ~107-~ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-३. "स्थान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक रहवक्रमः॥ यहां स्थानांग बेयकोच्चत्वं, तेजोनिसर्गकार- कुण्डशीताशीतोदामुखोवेधाः,क- । णानि । त्तिकाऽनुराधाचारमण्डलं, ज्ञा७७७ उपसर्गाद्याश्चर्याणि । ५२४ | नवृद्धिनक्षत्राणि । ५२६ ७७८ रत्नादिकाण्डबाहल्यम् । ५२५ ७८२ चतुष्पदोर परिसर्पकुलकोट्यः ।, ७७९-८१ द्वीपसमुद्रमहादसलिला- । ७८३ पापचयनदशप्रदेशिकादिपुरलाः।, । ॥ दशमस्थानकाध्ययनम् ॥ अजितसिंहशिष्ययशोदेवसहायात्समर्थना, द्रोणाचार्यमुख्यकृता शुद्धिश्च प्रशस्तौ। ५२८ ॥ इति स्थानाङ्गम् ॥ देखीए ॥८९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~108 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) समवायांगे विषयानुक्रमः ॥ सूत्रगाथाः सूत्राणि १६० १ मङ्गलाद्यभिधेये । तच्छुद्धियाञ्चा, उपोद्घातः, आत्मानात्मदण्डादण्डक्रियाऽक्रियालोकालोकधर्माधर्म पुण्यपापबंधमोक्षाश्रवसंवरवेदनानिर्जराजम्बूद्वीपाप्रति ष्ठान पालक सर्वार्थसिद्धायामाद्रीदितारकप्रथमद्वितीयनरकासुरभौमेयासस्येयवर्षायुष्कनरतिर्यग्व्यन्तरज्योतिष्कसौधर्मेशानस्थितिसागरादिविमानस्थित्यु 109~ १६८ । च्छवासाहारार्थभव्यभवाः । २ दण्डराशियन्धनपूर्वाफाल्गुन्यादितारकप्रथमद्वितीयपृथ्व्यसुरभौमेयासयवर्षायुस्तिर्यनरसौधर्मेशान सनत्कुमार माहेन्द्र के के ॥ ८९ ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक समवायांग यहां देखीए ॥९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम स्थितिशुभादिस्थित्युच्छ्वासाहारार्थभव्यभवाः । ३ दण्डगुप्तिगौरवविराधनामृगशिरआदितारकप्रथमद्वितीयतृतीयपृथ्व्यसुरासङ्ग्येयवर्षायुस्तियङ्नरसौधर्मेशानसनत्कुमारमाहेन्द्रस्थितयः, आभङ्करादिस्थित्युच्छ्वासाहारार्थभव्यभवाः । ९ ४ कषायध्यानविकथासज्ज्ञाबन्धयोजनगव्यूतानुराधादितारकप्रथमतृतीयपृथ्व्यसुरसौधर्मादि:स्थितिकृष्टयादिस्थित्युच्छ्वासाहारार्थभव्यभवाः । ५.क्रियामहावतकामगुणाश्रवसंवरद्वारनिर्जरास्थानसमित्यस्तिकायरोहिण्यादितारकरत्नप्रभादि स्थितिवातादिस्थित्युच्छासाहा- । पागणधरप्रमर्दयोगिनक्षत्ररत्नप्ररार्थभव्यभवाः । ११ भादिस्थित्यचिरादिस्थित्यादि। १५ ६ लेझ्याजीवनिकायबाह्याभ्यन्तर- ९-२७ ब्रह्मचर्यगुप्तिपार्वोच्चत्वातपश्छाद्यस्थिकसमुद्धातार्था मिजिद्योगोत्तरयोगिनक्षत्रतावग्रहकृत्तिकाऽश्लेषातारकरत्न रकरूपचापबाधाजम्बूद्वीपप्रवेप्रभादिस्थितिस्वयंभ्वादिस्थि श्यमत्स्यमानविजयभीमव्यन्तरत्युच्छ्वासाहारार्थभव्यभवाः। १२ सभोञ्चत्वदर्शनावरणप्रकृतिरत्न७ भयस्थानसमदधातवीरोच्चत्वज प्रभादिस्थितिपक्ष्मादिस्थित्यादि।१६ | म्बूवर्षधरवर्षक्षीणमोहकर्मप्रक- १०-३-४ श्रमणधर्मचित्तसमाधितिमधातारकपूर्वादिद्वारनक्षत्रर- स्थानमन्दरमूलविष्कम्भनेमिकत्नप्रभादिब्रह्मलोकान्तस्थितिस- प्णरामोश्चत्वज्ञानवृद्धिकरनक्ष-- मादिस्थित्युच्छासाहारार्थभव्य- त्राकर्मभूमिकल्पवृक्षप्रथमाचतुभवाः । र्थीपञ्चम्यसुरभौमेयवनस्पति८-ॐ मदस्थानप्रवचनमातृव्यन्त व्यन्तरसौधर्मशानब्रह्मलान्तकरचैत्यदृक्षजम्बूकूटशाल्मलीजग स्थितिघोषादिस्थित्यादि। १८N त्युच्चत्वकेवलिसमुद्घातपार्श्वग- । ११ उपासकप्रतिमामन्दरलोकान्त- Im९०॥ सुत्ताणि ~110~ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्री हत्क्रममा यहां समवायांग देखीए ॥११॥ ज्योतिष्काबाधाबीरगणधरमूल- १४। ८-१० भूतनामपूर्वाग्राणीय- । १७ असंयमसंयममानुषोत्तरवेलन्धतारकाधस्तनप्रैवेयकविमानमवस्तुवीरश्रमणगुणस्थानभरते रानुवेलन्धरावासलवणोच्चत्वचान्दरपरिहाणिरत्नप्रभादिस्थिति- रवतजीवाचक्रिरत्नलवणसमाग- रणोत्पाततिगिञ्छिरुच केन्द्रोशब्रह्मादिस्थित्यादीनि । २१ तनदीरत्नप्रभादिस्थितिश्रीका त्वावीच्यादिमरणभेदसूक्ष्मसम्प१२।५-७७ भिक्षुप्रतिमासम्भोगद्वा न्तादिस्थित्यादीनि। २८ रायवध्यप्रकृतिरत्नप्रभादिस्थिदशावर्तविजयराजधान्यायाम - १५।११-१३७ परमाधार्मिकनम्युच्च तिसामाजिकादिस्थित्यादीनि । ३५ | रामायुर्मेरुचूलि काजम्बूद्वीपवेदि- स्वाऽऽवार्यमोच्यभागपञ्चदशमु- १८।१६ ब्रह्मनेमिश्रमणव्रतषट्कादिकामूलविष्कम्भजघन्यादिरात्रि- हर्तनक्षत्रचैत्राश्विनदिवसरात्रि- स्थानाचाराङ्गपदब्राह्मीलेखविधादिनसर्वार्थसिद्धयन्तरसिद्धिना- विद्याप्रवादबस्तुमनुष्यप्रयोगर नास्तिनास्तिवस्तुधमप्रभावाह-- मरत्नप्रभादिस्थितिमाहेन्द्रादि- लप्रभादिस्थितिनन्दादिस्थि - व्यपौषापाढदिवसरात्रिरत्नप्रभास्थित्यादीनि । त्यादीनि । दिस्थितिकालादिस्थित्यादीनि । ३६ | १३ क्रियास्थानसौधर्मशानप्रस्तटत- | १६ । १४-१५ गाथाषोडशकाध्यय- १९ | १७-१८७ शाताध्ययनापरोदिदवतंसकायामादिजलचरकुलनकषायमेरुनामपार्श्वश्रमणात्म तशुक्रचार्यनक्षत्रकलागारवासिकोटिप्राणायुर्वस्तुगर्भजतिर्यक्मा | प्रवादबस्तुचमरवल्युपरिकालय जिनरत्नप्रभादिस्थित्यानतादि-- योगसूर्यबिम्बमानरत्नप्रभादिनायामलवणोत्सेधरत्नप्रभादि-- स्थित्यादीनि। ३७ स्थितिवज्रादिस्थित्यादीनि । २६ । स्थित्यान दिस्थित्यादीनि । ३२, २० असमाधिस्थानसुव्रतोच्चत्वधनो- दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम es B सुत्ताणि ॥९१ ॥ ~111 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत वृहत्क्रममा सूत्रांक समवायांग यहां सूत्रे देखीए ॥ ९२ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम दधिबाहल्यप्राणतसामानिकनपुंस- सेन्द्रदेवस्थानोत्तरायणपौरुषी- । २८ आचारप्रकल्पभव्यमोहसत्कर्मीकवेदस्थितिप्रत्याख्यानवस्तूत्सर्पि छायागासिन्यादिप्रयाहरत्नप्र- शमतिमेदेशानविमानदेवगत्याण्यवसर्पिणीकालमानरत्नप्रभादि भादिस्थित्यादीनि । ४४ दिप्रकृतिरत्नप्रभादिस्थित्यादीनिा४९ | स्थितिसातादिस्थित्यादीनि । ३९ २५। १९-२०० महावतभावनामल्लि- २९ पापश्रुतप्रसङ्गाषाढादिदिनचन्द्र२१ शबलभेदनिर्वृत्ति वादरमोहनीय- वैताब्योच्चत्वशर्करामभानरकावा- दिनमुहूर्ततीर्थकदादिप्रकृतिरत्नसत्कमांशपञ्चमषष्ठारकमानरत्न साचाराध्ययनमिथ्यादृष्टिवध्यप्र- प्रभादिस्थित्यादीनि । ५० प्रभादिस्थितिश्रीवत्सादिस्थित्यादि४० कृतिगङ्गादिप्रपातलोकबिंदुवस्तु । ३० । २१-५४ मोहनीयस्थानमण्डि२२ परीषहच्छिन्नछेदनकादिसूत्रपुद्ग- रत्नप्रभादिस्थित्यादीनि । ४५ | तश्रामण्याहोरात्रमुहर्त्तनामाऽरो लपरिणामरत्नप्रभादिस्थितिम- २६ दशाकल्पव्यवहारोद्देशाभव्यसि- चत्वसहस्रारसामानिकपार्थवीहितादिस्थित्यादीनि । ४२ द्धिमोहसत्कर्माशरत्नप्रभादि रागारवासरत्नप्रभानरकावास२३ सूत्रकृदध्ययनत्रयोविंशतिजिन- स्थित्यादीनि । ४६ | स्थित्यादीनि । शानकालपूर्वभवकादशाङ्गित्वमा- २७ अनगारगुणव्यवहार्यनक्षत्रमास- ३१ सिद्धादिगुणाः, मन्दरधरणीविण्डलिकराजत्वऋषभचतुर्दशपू- रात्रिंदिवसौधर्मेशानविमान कम्भः,सूर्यबाह्यमण्डलचक्षुःस्पविरत्नप्रभादिस्थितित्रैवेयकस्थि- थ्वीवाहल्यवेदकसम्यक्त्वबध्य शाभिवद्धितादित्यमासदिनरत्नत्यादीनि । ४३ प्रकृतिश्रावणाशुक्लसप्तमीपौरुषी- प्रभास्थित्यादीनि । ५७ २४ देवाधिदेवहिमवच्छिखरिजीवा- । छायारत्नप्रभादिस्थित्यादीनि । ४७ ३२ । ५५-५९.७७ योगसङ्ग्रहदेवेन्द्र सुत्ताणि ~112 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक वहवक्रमः॥ श्रीसमवायांग यहां देखीए ॥ ९३॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम कुन्थुकेवलिसौधर्मविमानरेवती- कृष्णपौरुषीछायाः। ६५ घिचन्द्रसूर्यसंमूर्छिमभुजपरिसर्पतारकनाम्यरत्नप्रभास्थित्यादीनि । ५८ ३८ पाहिमवतादिधनु:पृष्ठमेरु- । स्थितिनामप्रकृत्यभ्यन्तरवेलाधा३३ आशातनाचमरचश्चाभौमविदे - द्वितीयकाण्डोचरवक्षुद्रविमान- - रकमहाविमानप्रविभक्तिद्धितीयहविष्कम्भवाद्यानन्तरचक्षुःस्पर्श- प्रविभक्तिद्वितीयवर्गो देशाः। वर्गोदेशदुष्पमादिमानम् । ६८ रत्नप्रभास्थित्यादीनि । ६०/ ३९ नम्यवधिज्ञानिसमयक्षेत्रकलप. ४३ कर्मविपाकाध्ययनप्रथमादिनर३४ जिनातिशयविजयदीर्घवैताढ्यो- बैतद्वितीयादिनरकावासशानाव कावासगोस्तूपादिपूर्वान्तबाधा - कृष्टपदजिनचमरभवनप्रथमपृ. । रणादिप्रकृतयः । ६६ महाविमानप्रविभक्तितृतीयवर्गोव्यादिनरकावासाः। ६३ | ४० नेम्यार्यामन्दरचूलाशान्युञ्चत्व - द्देशाः । ३५ वचनगुणकुन्धुदत्तनन्दनोश्चत्व- भूतानन्दभवनक्षुद्रविमानप्रविभ- ४४ ऋषिभाषिताध्ययनविमलयुगा वज्रमयसमुद्कस्थानद्वितीयच- तितृतीयवों देशकार्तिकफा - न्तकृमिधरणभवनमहाविमा तुर्थपृथिवीनरकाः। ६४ ल्गुनपौरुषीछायामहाशुक्रविमा- नप्रविभक्तिचतुर्थवर्गोद्देशाः । , ३६ उत्तराध्ययनचमरसमोच्चत्ववी नानि । " ४५-६०० समयक्षेत्राचायामधर्मोच्चरार्याचैत्राश्विनपौरुषीच्छायाः । ६४ ४१ नम्यार्यारत्नप्रभादिनरकावास - | त्वमेर्वबाधायर्धक्षेत्रमुहूर्तमहा३७ कुन्थुगणधरहैमवतादिजीवावि- महाविमानप्रविभक्तिप्रथमवर्गो- विमानप्रविभक्तिपञ्चमवर्गोद्देशाः ६९ जयादिराजधानीमाकारोच्चत्वक्षु- देशाः । ४६ दृष्टिवादमातृकापदब्राह्मीमात्काद्रविमानप्रविभक्त्युदेशकार्तिक- ४२ वीरश्रामण्यगोस्तूपान्तरकालोद- । क्षरप्रभजनभवनानि । सुत्ताणि ~113 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत वृहत्क्रमः। सूत्राक यहां समवायांग देखीए ७२ सूत्रे ॥९४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ४७ अभ्यन्तरमण्डलचक्षुःस्पग्नि- । ५३ करमहाहिमवदरुक्मिजीवास-- | पातालमध्यावाधाः । ७४ भूत्यगारवासी। वत्सरपर्यायवीरानुत्तरगतान - ५९ चन्द्र दिनसंभवागारवासम४८ चक्रिपत्तनधर्मगणगणधरसूर्य- गारसमूछिमोर परिसपस्थि- ल्ल्यवधिज्ञानिनः । ७४ विष्कम्भाः। तयः। ६० सूर्यमण्डलमुहूर्तामोदकधारक- । ४९ सप्तसप्तमिकाभिक्षाकुरुनरवाल- ५४ भरताद्युत्तमपुरुषनेमिच्छाम विमलोश्चत्वयलिब्रह्मेन्द्रसामाकालत्रीन्द्रियस्थितयः । , स्थ्यवीरव्याकरणानन्तगणधराः। निकसौधर्मेशानविमानानि । ७५ ५० सुबतार्याः, अनन्तपुरुषोत्तमो- ५५ मल्यायुर्मन्दरविजयादिद्वाराबा- ६१ युगर्तुमासमेरुप्रथमकाण्डोच्चत्वचत्वदीर्घवताब्यविष्कम्भलान्तधावीरान्त्यराज्यध्ययनप्रथमद्धि चन्द्रसूर्यमण्डलभागाः । कविमानतिमिस्राद्यायामकाञ्चन- तीयपृथिवीनरकावासदर्शनावर- ६२ युगपूर्णिमादिवासुपूज्यगणगणशिखरविष्कम्भाः। णादिप्रकृतयः । ७३ धरचन्द्रदिनवृद्धिहानिप्रथमप्र५१ ब्रह्मचर्योद्देशचमरवलिसभास्त - ५६ जम्बूनक्षत्रविमलगणगणधराः ।, स्तटाः प्रथमावलिकाविमान___म्भसुप्रभायुदर्शनादिप्रकृतयः । ७१ ५७ गणिपिटकत्रयाध्ययनगोस्तूप प्रस्तटाः । ५२ मोहनामगोस्तूपपूर्वान्तमहापा पातालमध्यावाधा: मल्लिमनःप- | ६३ ऋषभराज्यहरिवर्षरम्यकबालतालपश्चिमान्ताबाधा, ज्ञानावर यवशानिमहाहिमवदुक्मिजीवाः७४ त्वनिषधनीलवत्सूर्योदयाः । ७७ णादिप्रकृतिः, सौधर्मादिविमा- ५८ प्रथमादिनरकावासशानावरणा- ६४ अष्टाष्टमिकाभिक्षाऽसुरावासचनानि । ७२ दिप्रकृतिगोस्तूपादिपश्चिमान्त- मरसामानिकदधिमुखविष्कम्भ । ॥ ९ ॥ सुत्ताणि ~114 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. "समवाय" | पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीसमवायांग सूत्रे ।। ९५ ।। सौधर्मादिविमान चक्रिहारयष्टयः । ७८ ६५ सूर्यमण्डलमौर्यागारत्वविमानभौमाः । ६६ दक्षिणोत्तरार्द्ध नरक्षेत्रचन्द्रादिश्रेयांसगणगणधराभिनिबोधिकस्थितयः । ६७ युगनक्षत्रमासहैमवतैरण्यवतवाहामन्दरगौतमपूर्वान्तावाधानक्षसीमाविष्कम्भाः । ६८ धातकीखण्डपुष्करार्द्धविजयराजधान्यईदादिविमलश्रमणाः । 31 ६९ अमन्दरसमयक्षेत्रवर्षधरमन्दरगौतम पश्चिमान्ताबाधामोहन - कृतयः । 11 ७९. ७० वर्षावासगतशेषरात्रिदिनपार्श्वश्रामण्यवासुपूज्योच्चत्वमोहनिषे ८० ८१ कमाहेन्द्रसामानिका: । ७१ चतुर्थचन्द्रसूर्यावृतिदिनवीप्रवादप्राभृताजित सगरागारित्वानि । ૮૨ ~115~ ८३ 35 ७२ सुवर्णावासबाह्यवेलाधारकवीरावलभ्रात्रायुरभ्यन्तरपुष्करार्द्धचन्द्रसूर्यचक्रिपुरवरनरकलासं मूच्छिमखचरस्थितयः । * ७३ हरिवर्षरम्यकजीवाविजयायुषी । ७४ अग्निभूत्यायुर्निषधशीतोदानीलवत्सीतोत्तरदक्षिणाभिमुखगमनाऽचतुर्थीनरकावासाः । + ७५ सुविधिकेवलिशीतलशान्त्यगारित्वानि । ७६-६२ विद्युत्कुमाराद्यावासाः । ७७ भरतकुमारत्वप्रव्रजिताङ्गवंशन ८५ 27 पपगर्दतोय तुषितपरीवारमुहूर्त्तलवाः । ७८ वैश्रमणात्तसुवर्णकुमाराकम्पतसर्वायुरुत्तरदक्षिणायनै कोन - चत्वारिंशन्मण्डलदिनरात्रिवृद्धिहानयः 1 ७९. पाताला धोऽम्तरत्नप्रभाऽघोऽन्तपष्ठीमध्यघनोदध्यन्तजम्बूद्वीपद्वाराबाधाः । ८० श्रेयांसत्रिपृष्ठाचलोच्चत्वत्रिपृष्ठमहाराजत्वादुलबाहल्येशानसामानिकजम्बूद्वीपगतसूर्यावगाहाः ८८ ८१ नवनवमिकाभिक्षाकुन्धुमनः पर्यवशानिव्याख्याप्रज्ञप्तिमहायुग्मा नि । ८२ जम्बूद्वीपद्विकाम्यमण्डलगर्भा ८६ ८७ ८८ "1 बृहत्क्रमः।। ।। ९५ ।। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक समवायांग यहां देखीए ॥ ९६.IN दीप - पहारप्राकालरुक्मिमहाहिमव - दिद्वितीयामध्यपनोवध्यधस्त - सौगन्धिकोपरितनाधस्तनान्ता नान्ताबाधाः । ९२. बाधाः । ८९८७ मन्दरपूर्वादिगोस्तूपादिपश्चि - ८३ गर्भापहारमाग्दिनशीतलगणग- मान्ताबाधाऽनाद्यन्त्यकर्मप्रकृति णधरमण्डिकायुक्रषभभरतागा- महाहिमवद्रुक्मिकूटसौगन्धिरित्वानि । ९० काधस्तनान्तावाधाः । ९३ | ८४ नरकावासर्षभभरतबाहुबलिना ८८ महाग्रहरष्टिवादसूत्रमन्दरगोझीसुन्दरीधेयांसत्रिपृष्ठायुःशक स्तूपादिपूर्वान्ताबाधोत्तरदक्षिसामानिकवायमेर्वानोच्चत्वह - णायनचतुश्चत्वारिंशन्मण्डलदिरिरम्यकजीवापकोपरितनाधस्त वसरात्रिहानिवृद्धयः । ९४ | नान्तावाधाभगवतीपदापनाग ८९ ऋषभवीरनिर्वाणतृतीयतुर्यारकुमारावासप्रकीर्णकयोनिपूर्वा काबाधाहरिषेणचक्रित्वशान्त्यादिगुणकारर्षभश्रमणविमानानि । ९२ यः। ९४ ९० शीतलोश्चत्वाजितशान्तिगणग८५ आचारोद्देशधातकीमेरुरुचकन णधरस्वयम्भूविजयवृत्तवैताब्यन्दनसौगन्धिकाधस्तनान्ताबाधा ९२ शिखरसौगन्धिकाधस्तनान्ता८६ सुविधिगणगणधरसुपार्श्ववा - । बाधाः। ९५ ९१ बयावृत्त्यप्रतिमाकालोदपरिक्षेपकुन्थ्यवधिशान्यनायुर्गोत्रप्रक - तयः । .... ९२ प्रतिमेन्द्रभूत्यायुर्मन्दरमध्यगो स्तूपादिपश्चिमान्तावाधाः ९७ २३ चन्द्रप्रभगणगणधरशान्तिचतु दशपूर्विसमाहोरात्रमण्डलानि । ९४ निषधनीलबजीवाऽजितावधिशानिनः । ९७ ९५ सुपार्श्वगणगणधरजम्बूद्वीपपातालावाधालवणोद्वेधोत्सेधहानिकुन्धुमौर्यायूंषि । ९८ ९६ चक्रिग्रामवायुकुमारभवनदण्डा द्यगुलाभ्यन्तरादिमुहूर्तच्छायाः।९८ ९७ मन्दरगोस्तूपादिपश्चिमान्तावा घोत्तरप्रकृतिहरिकेशागारत्त्वानि।९९ क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम - - - ॥ ९६ ॥ सुत्ताणि ~116 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत रहवक्रम सूत्राक यहां समवायांग देखीए ॥ ९७॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ९८ नन्दनोपरितनपाण्डुकाधस्तनान्त- । १०२ सुपार्श्वसर्वमहाहिमवद्रुकम्यु- गन्धमादनविद्युत्प्रभमाल्यवन्तह मेरुपश्चिमगोस्तूपादिपूर्वान्ताबा- स्वत्वोद्वेधजम्बूद्वीपकाश्चनकाः । रिहरिस्सहवक्षस्कारकूटबलकूटधाभरतधनुःपृष्ठोत्तरदक्षिणाय - (२००)।१०१ नन्दनकूटसौधर्मेशानविमानोनैकोनपश्चाशमण्डलदिनरात्रि- १०३ पद्मप्रभासुरप्रासादोश्चत्वे । (२५०) ,, चत्योद्वेधायामविष्कंभाः । वृद्धिहानिरेवत्यादिप्रथमज्येष्ठा१०४ सुमत्युच्चत्वनेमिकुमारत्वविमा (५००)। १०२ म्तनक्षत्रतारकाः। नप्राकारोच्चत्ववीरचतुर्दशपूर्वि- १०९ सनत्कुमारमाहेन्द्रविमानोश्चत्व९९ मन्दरोच्चत्वनन्दनपूर्वापरोत्तर- पञ्चधनुःशतसिद्धावगाहनाः हिमवच्छिखरिकूटधरणितलादक्षिणान्ताबाधाप्रथमद्वितीय - ( ३००)। १०१ । । बाधापार्श्ववाद्यभिचन्द्रोच्चत्वतृतीयमण्डलायामाजनाधस्तना- १०५ पार्श्वचतुर्दशपूय॑भिनन्दनोच्च- । वासुपूज्यप्रवज्यापरिवाराः । न्तव्यन्तरोपरितनान्ताबाधाः । १०० त्वे ( ३५०)। १०१ (६००)। १०० दशदशमिकाभिक्षाशतभिषक्ता- १०६ संभवनिषधनीलवत्तदासन्नसर्व- ११० ब्रह्मलान्तकविमानोच्चत्वचीरकेरकसुविध्युञ्चत्वपार्श्वसुधर्मायु - वक्षस्कारोच्चत्वोवधानतप्राणत- वलिवैक्रियनेमिकेवलित्वमहाहिबैंताढ्यक्षुल्लाहिमवच्छितरिका - | विमानवीरवादिनः । (४००) १०२ मवद्रुक्मिकूटतलाबाधा (७००), चननगोच्चत्वोधमूलविष्कम्भाः १०१ | १०७ अजितसगरोच्चत्वे (४५०)। , | १११ महाशुकसहस्त्रारविमानोच्चत्व१०१ चन्द्रप्रभोञ्चत्वारणाच्युतविमाना- १०८ मेर्वासन्नवक्षस्कारशीताशीतोदा- प्रथमकाण्डव्यन्तरस्थानवीरानुनि (१५०)। सर्ववर्षधरकूटर्षभभरतसीमनस- | तरोपपातिकसूर्यचारान्तरनेमि सुत्ताणि irl॥ ९७॥ ~117 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत श्री सूत्रांक यहां देखीए ॥९८॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम वादिनः । (८००)। , | ११२ आनतादिविमानोच्चत्वनिषध - नीलवत्कूटतलायाधाविमलवाहनोच्चत्वतारकचारनिषधनीलवशिखरप्रथमकाण्डमध्यभागा . बाधाः । (९००)। १०४ ११३ अवेयकविमानयमकपर्वतचित्र विचित्रकरवृत्तवैताख्यहरिहरिस्सहबलकूटोच्चत्वोवेधायामविकम्भनेम्यायुःपार्श्वकेवलिपन - पुण्डरीकायामाः (१०००)। १०४ ११४ अनुत्तरविमानोश्चत्वपार्श्ववैकियाः (११००)। , ११५-३५ महापद्ममहापुण्डरीकहदा यामः (२०००) वनकाण्डोप रितनलोहिताक्षाधस्तनान्तावाधा ( ३०००) तिगिच्छहदायाम: (४०००) रुचकनाभिमेरुचतुर्दिगंताबाधा (५०००) सहसारविमान ( ६०००) रक्तकाण्डोपरितनपुलकाधस्तनान्तावाधा (७०००) हरिवर्षरम्यकविस्तारः (८०००) दक्षिणाईभरतायामः (९०००) मन्दरधरणितलविष्कम्भः (१००००) जम्बूद्वीपायामः ( लक्षं) लवणचक्रबालविष्कम्भः (ढे लक्षे) पार्श्वश्राविका (लक्षत्रय) धातकीचक्रवालविष्कम्भः (४ लक्षाः) लवणपूर्वापरान्ताबाधा (५ लक्षाः) भरतराज्यं (६ लक्षाः) जम्बूपू- ववेदिकान्तधातकीपश्चिमान्ताबाधा (७ लक्षाः) माहेन्द्रविमानानि (लक्षाः) अजितावधिशानिनः (१०००) पुरुषसिंहायुः (१००००) पोट्टिल्लधामण्यं ( कोटी) ऋषभवर्धमानान्तरं (कोटाकोटी)। १३६ आचाराङ्गाधिकारः। १०९ १३७ सूत्रकृताधिकारः। १११ १३८-६२७ स्थानाङ्गाधिकारः। ११२ १३९ समवायाङ्गाधिकारः । १४० व्याण्याप्राप्त्यधिकारः । ११६ १४१ ज्ञाताधर्मकथाधिकारः। ११९ १४२ उपासकदशाङ्गाधिकारः। १२० १४३ अन्तकृद्दशाङ्गाधिकारः। १२१ | १४४ अनुत्तरोपपातिकाधिकारः । १२३ ११४ सुत्ताणि ॥९८॥ ~118~ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-४. “समवाय"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक समवायांग यहां देखीए ॥९९ ।। दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम १४५ प्रश्नाव्याकरणाधिकारः। १२५ | १५३ । ७३-७४ भवप्रत्ययिकावधि- । १५८। १२०-१४०७ चक्रवर्तिपित- al वृहत्क्रमः॥ १४६ विपाकश्रुताधिकारः । १२८ | वेदनालेश्याहाराः। १४७ मातृस्त्रीरत्नबलदेववासुदेवपितृ१४७ । ६३-६५8 रष्टिवादाधिकारः । १३२ | १५४ आयुर्वन्धोपपातादिविरहायुरा- मातृनामदशारमण्डलवर्णनपूर्व१४८ द्वादशाङ्गीविराधनाराधनाफल- कर्णः । १४९ भवनामधर्माचार्यनिदानभूमिप्रतन्नित्यत्वविषयाः। १३३ | १५५ संहननसंस्थानानि । १५० तिशत्रवः । १५३ | | १४९ । ६६-७२ जीवाजीवादिरा- १५६ वेदाधिकारः । १५९ ॥ १४१-१६८ ऐरवततीर्थकरोशिनिरूपणं नरकावगाहनरका - वासवेदनिरूपणं च । त्सर्पिणीभरतैरवतकुलकरतीर्थ१५७। ७५-११९६ कल्पसमवसरणं, १३६ | १५० असुरकुमारवैमानिकावासनिक कुलकरतद्भार्या, जिनपितृमातृ कराः । तीर्थकरतत्पूर्वभवशिविकानिष्क- | १६० उपसंहारः। पणम् । मणोपधिपरिवारतपोभिक्षाभि प्रशस्तिः । १५१ नारकादिस्थितिः। १४१ क्षादायकचैत्यवृक्षप्रथमशिष्य - १५२ शरीरतद्भेदावगाहस्वामिनः । १४५ । शिष्याः। १५२ ॥इति समवायाङ्गम् ॥ सुत्ताणि ~119~ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-५. "भगवती ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक भगवत्यंग-N यहां देखीए ॥१०॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम भगवतीसूत्रस्य विषयानुक्रमः ॥ वृहत्क्रममा सूत्राणि ८६९ सूत्रगाथा: ११४ मङ्गलम्, पतट्टीकाचूर्णिजीवा- ६ पर्षनिर्गमधर्मकथापर्षत्प्रतिगम- रणवेदननिर्जरणत्रिकालिकोद्वर्त्तभिगमादिवृत्तिसंयोजनेन वि- नानि । नसंक्रमनिधत्तनिकाचनप्रश्नाः २५ वरणप्रतिज्ञा, जयकुअरोपमा, ७ गौतमवर्णनम् । १४ तैजसकामणग्रहणोदीरणबेदनव्याख्याप्राप्तिशब्दार्थः । २ ८ जातश्रद्धादिना चलचलितादि- निर्जराप्रश्नोत्तरे। ५६ १ पश्चनमस्कारः (९) प्रश्नोत्तराणि । १६ | १५-५७ चलिताचलितादिकर्मय२ ब्राह्मीलिपिनमस्कारः । ९ चलचलितादीनामेकानेकार्थादि- न्धादि । १७ उद्देशक(१०)सङ्ग्रहगाथा । ६. प्रश्नोत्तरे। १९ | १६ नारकादिदण्डकस्थित्याहारौ। ३१ ३ श्रुतनमस्कारः। , १०० नारकाणां स्थित्युच्छासाहा- १७ आत्मपरोभयारम्भानारम्भाः। ४ राजगृहगुणशीलश्रेणिकचेल्लणा- राः (३९ द्वाराणि)। २३ (अप्रमत्ता अनारम्भाः)। ३३ वर्णनम् (अतिदेशः)। ७/ ११-१२-३% पूर्वाहतपुद्गलचयादि । २४ / ९८ इहपरोभयभविकशानदर्शनचा. IN ५ वीरवर्णनं समवसरणान्तम् । १० १३-४७ पुद्गलमेदचयनोपचयनोदी- रित्रतपःसंयमप्रश्नोत्तरे। ३४ ॥१०॥ सुत्ताणि ~120 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- "भगवती । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीभगवत्यंग सूत्रे ॥१०१॥ १९ असंवृतसंवृताः सिद्धिसिद्धी फलं च तयोः । ३५ २० असंयतस्याप्यकामनिर्जरया देवत्वम् । ३८ ॥ प्रथमे प्रथमः ॥ २१ स्वयंकृतदुःखादिवेदनावेदने । ३९ २२-६७ नारकादीनामाहारशरीरो च्ह्रासनिःश्वासकर्मवर्णलेश्यावेदनाक्रियाऽऽयुः समत्यादिनिरूपणम् ४६ २३ लेश्याऽतिदेशः । ४७ २४ नारकादिशून्याशून्यमिश्रकालाः ४९ २५ अन्तक्रियातिदेशः । २६ असंयतभव्यद्रव्यदेवादिसलिङ्गदर्शनव्यापन्नानां जघन्योत्कृष्टोत्पादः । " २७ नरकादीनामायुः प्रमाणम् ५२ ॥ प्रथमे द्वितीयः ॥ २८ काङ्क्षामोहनीयदेश सर्वकृतादि ५३ २९-७ काङ्क्षामोहनीयत्रिकालि ककरणादिनिर्जरान्तप्रश्नोत्तरे, ३० काङ्क्षामोहनीयवेदनपद्धतिः । ५४ ३१-३२ जिनोक्तसत्यता, मनोधारणादेराराधकत्वम् । 15 ३३ अस्तित्वादिपरिणामगमनीये । ५६ ३४ पत्थेहगमनीयप्रक्षोत्तरे । 35 ३५ काङ्क्षामोहनीयबन्धकारणानि । (प्रमादयोगवीर्यशरीरजीवाः) । ५७ ३६ उत्थानादिनाऽनुदीर्णोोंदीरणादि । ५९ ३७ नारकादीनां पृथिव्यादीनां च त ~121~ कद्यभावेऽपि च काङ्क्षामोह नीयवेदनम् । ६२ ६० ३८ शानदशनाद्यन्तरैर्निर्ग्रन्थानां कारक्षामोहनीयवेदनम् । ॥ प्रथमे तृतीयः ॥ ३९-८ कर्मप्रकृत्यतिदेशः । ४० मोहनीयोदयेन बालवीर्येणोस्थानं, बालपण्डितत्वेनापक्रमणं, उपशान्तेन तु पण्डितत्वेनोत्थानं बालपण्डितत्वेनापक्रमणम् । દુક ४१ प्रदेशानुभागकर्मणी । ४२ पुद्गलजीवत्रिकालिकत्वसिद्धिः । ६६ ४३ छद्मस्थस्य केवल ब्रह्मचर्यायभावः, केवलिनां त्रैकालिकी सिद्धि: । ६५ ६३ ६७ बृहत्क्रमः। ॥१०१॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-५. "भगवती ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्री यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ॥ प्रथमे चतुर्थः ॥ १-४ ॥ ५३ प्राणातिपातादिभिख्यादिदिक्षु ६२ गर्भव्युत्क्रमे सेन्द्रियत्वादि । (ग- कवडतक्रममा भगवत्यंग-NI ४४-१४७ नरकावासासुरावासवि- आनुपूर्वीक्रिया । ८० हारमात्रङ्गपित्रङ्गतत्कालाः)। ८८ मानसख्या। ६८ ५४-१८% लोकादिपूर्वपश्चाद्भावे रो- ६३ गर्भगतस्य नारकदेवगत्युत्पादः, ४५-१५० नरकाबासादिस्थितिस्था इकप्रश्नः । ८१ । उत्तानकादिगर्भनिर्गमः, दूरूपा॥१०२।। नेषु क्रोधोपयुक्तादि । ७० | ५५ आकाशप्रतिष्ठितादिलोकस्थितिः । दिकारणं च । ४६ अवगाहनाशरीरसंहननसंस्था ।(यस्तिपूरणदृष्टान्तः)। ८२ __नलेझ्यासु कोधोपयुक्तादि । ७२ ५६ जीवपुद्गलानामन्योऽम्यवहत्यादि ६४ एकान्तवालस्य चतुर्गतिगमनम् । , ४७-१६ दृष्टिज्ञानयोगोपयोगेषु । ।(द्रहनौदृष्टान्तः ) ८३ | ६५ पण्डित-बालपण्डितयोर्गतिः । ९१ ___ क्रोधोपयुक्तादि । ___७३ ५७ सूक्ष्मस्नेहकायपतनम् । ६६-७० कूटपाशेऽग्निकाये इषौ चमू| ४८-५० असुरकुमारावासेषु पृथि ॥ प्रथमे षष्ठः ॥ गाय निसृष्टे क्रियाप्रश्नः, कर्णाव्यादिस्थावरेषु विकलेन्द्रिया- ५८ देशसर्वोत्पातादि । यतेषुपुरुषवधेषु मृगवधे वैरक्रिदिषु च क्रोधोपयुक्तादिभङ्गाः । ७७ | ५९ देशसर्वाहारोद्वर्त्तनादि । ८५ याप्रश्नः, पुरुषबधे क्रियाप्रश्नः। ९४ ॥ प्रथमे पञ्चमः॥ ६० विग्रहाविग्रहगत्यादि। ७१ जयपराजयकारणानि । पसभापविभासनादि । ७८ यादिप्रत्ययं देवानां च्यवने आ५२ लोकालोकोदकपोताद्यन्तस्पर्शना|७२ | हाराभावः । ॥ प्रथमेऽष्टमः ॥ Idl॥१२॥ सुत्ताणि ~122 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत वृहत्क्रममा सूत्राक यहां भगवत्यंग १०९ देखीए ॥१०३ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम प्राणातिपातादितद्विरमणाभ्यां गु- | ७९ आधाकर्मप्राशुकयोोंगे बन्धाब- |८४ १९% उद्देशक (१०) सङ्गहगारुलघुत्वादि भ्रमणव्यतिव्रजना- धादि । १०२ | था, पृथ्यादीनामुच्छ्वासाद्यस्तिन्तम् । ९५ ८० अस्थिरदेर्लोठनभञ्जने, शाश्वते | त्वम् । | ७४ अवकाशवातादिनारकादिपुद्गला- | बालपण्डितत्वे च । १०२ ८५ द्रव्याधैरुच्छ्वासगमः, वायो- I स्तिकायलेश्यादृष्ट्यादिकालाना ॥ प्रथमे नवमः ॥ रपि । ११० गुरुलघुत्वविचारः। ९७ | ८६-८९ वायो यस्तत्रोत्पत्तिः, स्पर्श ७५ लाघवायकोधत्वादेः प्रशस्तत्वं. ८१ चलनचलितादि, विषमपरमाण मरणं, सशरीरादिनिर्गमः, शप्रागबहुमोहोऽपि संवृतोऽन्तकरः।, | स्कन्धसमविभागभाषाक्रियासम रीरचतुष्कं च, मृतादिनः पुन याभाषाक्रियाऽक्रियेत्यन्यधिक- नरादित्वं, प्राणभूतजीवसत्त्ववि| ७६ नैकदा भवद्वयायुर्वेदनम्। ९९ | मतम् । ७७ पार्थापत्यकालाशवेशिकस्थविर- शव्युत्पत्तिः,मृतादिनः सिद्धिः। ११२ ८२ युगपदीर्यापथिकसांपरायिकक्रिये ९०-९२ स्कन्दकचरित्रं, पिङ्गलनिम्रविवादः । ( सामायिकसंयमवि इत्यन्ये । १०७ न्थः, सान्तलोकादिप्रश्नः, पूर्वबेकादीनामर्थविषये पञ्चमहाब ८३ नरकगत्युत्पादविरहातिदेशः । १०८ सङ्गतिकतया गौतमप्रत्युगमनं, ताङ्गीकारः सिद्धिश्च । १०१ ॥ प्रथमे दशमः ॥ व्यावृतभोजिवीरवर्णनं, लोक७८ श्रेष्ठिदरिद्रादेः समाऽप्रत्याख्यान सिद्धिसिद्ध मरणस्वरूप, स्कन्दकिया। ॥ इति प्रथमं शतकम् ॥१॥ कदीक्षा, मुनित्वं, प्रतिमा, गुण सुत्ताणि | ॥१०॥ ~1237 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हत्क्रमः॥ यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम श्री रत्नतपः, कृशतावर्णनम् । १२६ | पञ्चेन्द्रिययोनिबीजकालः । , | ११२ वैभारगतमहातपउपतीरप्रश्रवणेभगवत्यंग-IN९३-९५ विपुलेऽनशनविधिना कालक- | १०३-५ एकजीवपितृसरण्या, एक. जाति 03- जीवपितमाख्या, एक- ययूथिकमतनिरासः । १४२ । रणं, कायोत्सर्गोऽच्युतगतिः। १२९ जीवपुत्रसङ्ख्या , मैथुनासंयम ॥ द्वितीये पञ्चमः । ॥ द्वितीये प्रथमः ॥ स्योपमा । १३४ ११३ भाषातिदेशः। ॥१०॥ ICT ९६ समुद्वातातिदेशः। १३० १०६ तुलिकाबादवर्णनम् । १३६ || द्वितीये षष्ठः ॥ ॥ द्वितीये द्वितीयः॥ १०७ पापित्यागमः । १३७ ११४ भवनाद्यतिदेशः। ९७-२०% पृथिव्यतिदेशः।। १०८ विधिना श्रावकनिर्गमः। १३८ ॥ द्वितीये सप्तमः ॥ ॥ द्वितीये तृतीयः ॥ १०९ संयमतपःफलं, पूर्वतपास - ११५ चमरस्योत्पातपर्वतः, प्रासादा यमकमित्वसज्ञित्वैर्देवत्वं, का९८ इन्द्रियातिदेशः। वतंसकादि, चमरचञ्चा, तत्यालिकमैथिलानन्दरक्षितकाश्य॥द्वितीये चतुर्थः॥ कारादि, अर्चनाधतिदेशः। १४६ पानां पृथगुत्तराणि । १३९ ९९ अनेकधापरिचारणायामप्येको ११०श्रीगौतमवीरप्रश्नोत्तरे, सत्य - ॥ द्वितीयेऽष्टमः ॥ वेद एकदा देवस्य । १३३ | एषोऽर्थो नात्मभाववक्तव्यता। १४० ११६ समयक्षेत्रवक्तव्यताऽतिदेशः। १४७ १०० उदकतियङ्मानुषीगर्भकालः ।" | १११-२१० पर्युपासनाश्रवणादिफल- ॥ द्वितीये नवमः ॥ १०१-२ कायभवस्थकालः, मनुष्य परम्परा । १४१ / ११७-११८ पञ्चास्तिकायप्ररूपणा, सं ॥१०४॥ सुत्ताणि ~124 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्री हत्क्रमः। १४९ यहां भगवत्यंग देखीए सूत्रे ॥१०५|| दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम पूर्णस्यास्तिकायता, नैकायू- का | १३३ तामलिनः प्राणामा प्रव्रज्या,। १६४ | १२५ मोकायामग्निभूतिकृतश्चमरनस्य। बैंक्रियशक्तिप्रश्नः । १५५ | १३४-१३५ अनशनबलिचञ्चाऽसुरमा ११९ अनन्तमत्यादिज्ञानपर्यायोपयो- | १२६ चमरसामानिकत्रायशिलो | प्रार्थनाऽनिदान, ईशानेन्द्रता, गादुत्थादियुतो जीवः । १४९ कपालाप्रमहिषीप्रश्नः । १५६ । हीलना च । | १२० लोकाकाशस्य जीवजीवदेश- | १२७ अग्निभूत्युक्तस्याश्रद्धानं वीर- १३६ ईशानेन्द्रकोधः, बलिराजधान्या स्वादि,धर्मास्तिकायादेरपि । १५१ पृच्छा पश्चाद्वायुभूतिक्षामण च । १५६ | उपद्वः, क्षामणं, शान्तिश्च ॥ १६८ | १२१ अलोकाकाशस्यापि । । १२८ अग्निभूतिवायुभूतिकृतबलीन्द्रा- १३७ शक्रादीशानस्य पृथग विमाना१२२ धर्मास्तिकायादिमहत्ता। " दिशकान्ततत्सामानिकादिवकि- न्युश्चत्वं चैषां। १६८ यशक्तिप्रश्नः। १२३-२४ । २२० धर्मास्तिकायस्य १५८ | १३८ ईशानान्तिके शकागम आदरे, लोकस्पर्शन, रत्नप्रभादेर्धर्मा| १२९ सामानिके तिष्यकानगाराधिका इतरस्योभयथाऽपि, कार्य च स्तिकायावेः स्पर्शनम् । १५२ रः वैक्रियशक्तिप्रश्नश्च । | १५९ | इतिभो ईशान इत्यादि । , ॥ द्वितीये दशमः ॥ १३० वायुभूतिकृत ईशानशक्तिप्रश्नः ।, | १३९ शक्रेशानविवादनिर्णायकः स १३१-१३२ कुरुदत्तशक्तिप्रश्नः स- | नत्कुमारः । ॥ इति द्वितीयं शतकम् ॥ नत्कुमारादितत्सामानिकादिवै- १४०-२४ । २५० सनत्कुमारस्य भ२३० उद्देश (१०) सङ्ग्रहगाथा १५३ क्रियशक्तिप्रश्नः। १६० । व्यत्वादि श्रमणादीनां हिता ॥१०५॥ सुत्ताणि ~1254 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-५. "भगवती ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक बहतकमा भगवत्यंग यहां देखीए ॥१०६॥ - दीप - दिकामत्वात् । तिष्यककुरुदत्त- भक्तपानप्रत्याख्यानं, एकादश- . [ १५१ प्रमादयोगजा निर्गन्धानां क्रिया। १८२ || स्तपादि । २४० वर्षपर्यायस्य वीरस्य सुसुमारे विमानोञ्चत्वप्रादुर्भावादिसङ् एकरात्रिकी प्रतिमा, चमरस्य १५२ एजनादिमतामारम्भादिभावान्नाग्रहः । २५० न्तक्रिया, इतरस्य स्यात् , तृणक्रोधः, वीरशरणं, शक्राक्रोशः, ॥ तृतीये प्रथमः ॥ तृणपूलकोदविन्दुनौदष्टान्ताश्च । १८५ वज्रमोचनं, वीरपादान्तरे प्र | १५३ प्रमत्ताप्रमत्तकालः । १४१ असुराणां तृतीयपृथिवीं यावद् वेशः। पूर्ववैरिमित्रबाधाशान्तिकरणाय १४४ आशातनाभयाद्वजग्रहणम् । १७६ | १५४ गीतमकृतलवणवृद्धिहानिप्रश्ना गमनं, नन्दीश्वरद्धीपगमने या-. १४५ वीराय स्ववृत्तान्तनिवेदनं, क्षा तिदेशः। वर्हजन्ममहादिकारणानि, सौ- ____मणं, असुरेन्द्राभयं च । ॥ तृतीये तृतीयः ॥ धर्म यावद्भवप्रत्ययवैराद् गमनं, | १४६ शक्रवजासुरगतिनिर्णयः । १७९ | १५५ वैक्रिययानादिज्ञानप्रक्षः । आत्मरक्षान् वित्रास्य रत्नचौर्य । १८७ १४७ वीरप्रभावेण मुक्तत्वाद्वीरभक्तिः। १८० १७० १५६ पताकाबिकुर्वर्ण, अनेकयोजन१४२ अर्हत्तचैत्यानगारनिश्रयाऽसु १४८ शकदिर्शनार्थमसुराणामुत्पातः१८१ गमनादि वायोः । रोल्पातः । | ॥ तृतीये द्वितीयः ॥ | १५५७ बलाहकस्य ख्यादिरूपपरिणामः १८८ १४३ विन्ध्यगिरिपादमूले मेलस- १४९ मण्डिककृतक्रियाप्रश्नः । १८२ १५८ मरणोत्पादयोः समलेश्याकनिवेशे पूरणस्य दाणामा प्रव्रज्या, । १५० पूर्व क्रिया पश्चाद्वेदना । । त्वम् । १८९ क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम - बायो। - - सुत्ताणि ॥१०६ ~126~ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक बहतक्रमः। यहां देखीए सूत्रे दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम श्री. II १५९ प्रणीतभोजनादेर्मायिनो पै- । नतदायत्तदेवकार्यग्रहनिरूपणम २०० ॥ चतुर्थ चत्वारः ॥ १-४॥ भगवत्यंग- II क्रियं, अमायिन आलोचितस्या ॥ तृतीये सप्तमः ॥ | १७२ ईशानलोकपालराजधान्यः ।, राधना। १६८-३०७ असुराँदिनिकायसौधर्म॥ तृतीये चतुर्थः ॥ ॥ चतुर्थेऽष्टौ ॥ शानाद्यधिपाः (१०)। २०१९७३ नारको नरके उत्पद्यते इत्याद्य१६०-२६% स्त्रीअसिचर्मपल्यङ्कादि ॥ तृतीयेऽष्टमः ॥ तिदेशः । विविधवैक्रियकरणं भाविता २०५ ॥ चतुर्थे नवमः ॥ त्मनः । १९१ | १६९ इन्द्रियविषयातिदेशः । , १७४।३३ लेश्यापरिणामवर्णाधतिदेशः२०६ ॥ तृतीये पश्चमः ॥ ॥ तृतीये नवमः ॥ १६१-१६२ मिथ्याट वितात्मनः | १७० असुरादिपर्षदतिदेशः। ॥ चतुर्थे दशमः ॥ २०२ सम्यग्दृष्टेश्च समुद्घाते रूपज्ञान ॥ तृतीये दशमः ॥ ॥ इति चतुर्थ शतकम् ॥ प्रश्नौ। १९३ ३४० उद्देश (१०) सङ्ग्रहणी । २०६ १६३ चमराद्यात्मरक्षकसङ्ख्याति ॥ इति तृतीयं शतकम् ॥ १७५ उदमाच्यामुगम्य प्रारदक्षिणादेशः। १९४ | ३१६ उद्देश (१०) संग्रहणी । २०३ | ___गमनमित्यादिसूर्यवक्तव्यता । २०७ ॥ तृतीये षष्ठः ॥ १७१ ॥ ३२७ ईशानलोकपालबिमान- १७६ मेरुदक्षिणोत्तरा दिदिनरा१६५-१६७।३९० शकलोकपालतद्विमा- । स्थितयः। २०३ | . त्रिमुहूर्तपृच्छा । २०९ सुत्ताणि ।१०७॥ ~127 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- "भगवती । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीभगवत्यंग - सूत्रे ॥१०८॥ १७७ दक्षिणोत्तरार्द्रादौ समयावलिकादिप्रथमतानिर्णयः । १७८ लवणघातक्यभ्यन्तरपुष्करार्द्धप्यपि । ॥ पञ्चमे प्रथमः ॥ १७९ पूर्वपश्चिमादिषु वातसाम्य, दी पसमुद्रयोर्व्यत्ययान्न लवणवेलातिक्रमः, उत्तरक्रियायां पूर्ववातादि, वायुकुमारकृतमपि । २१२ १८० ओदनादेरग्निशरीरता । १८१ लचणविष्कम्भातिदेशः । ॥ पञ्चमे द्वितीयः ॥ २१४ २१४ २१५ १८२ अायुर्वेदनिरासः । १८३ कृतायुषो भवान्तरे सङ्क्रमणम् । २१६ ॥ पञ्चमे तृतीयः ॥ २१० २११ १८४ स्पृष्टारगतशब्दश्रवणं छनस्थानां निर्वृत्तज्ञानदर्शने केवलिनः । २१७ १८५ चारित्रमोहनीयेन हसनं, दर्शनावरणीयेन निद्रादि । २१८ १८६ योनितो गर्भे संहरणम् । २१९ १८७ अतिमुक्तकाधिकारः पतग्रहवा 33 हनं, अग्लान्या वैयावृत्त्योपदेशः । १८८ महाशुकीयदेवकृतो मनसा वीर शिष्यसिद्धिप्रश्नः, गौतमजिज्ञासा, वीराज्ञया गौतमदेवप्रश्नोत्तरे । २२१ १८९ नोसंयता देवाः । २२१ १९० देवानामर्द्धमागधी भाषा । १९१-९६ केवलितच्छ्र- वकादेरन्तकृ स्वनिर्णयः १९१ चतुष्यमाणातिदेशः १९२, केवल्यादेश्वरम ~128~ ~ 22 कर्मादिशानं १९३, प्रणीतमनोवाग्ज्ञानं वैमानिकानाम् १९४, केवल्यनुत्तरयोरालापादि मनोज्ञानं व १९५, उपशान्तमोहा २२३ अनुत्तरोपपातिनः १९६ ॥ १९७ ९९ निर्वृतज्ञानानां नादानैः प्रयोजनम् १९७, एतद्भविष्यत्समययोर्न समप्रदेशेषु हस्तायवगाह: १९८, चतुर्दशपूर्विकृतोत्करिकाभिन्नघटसहस्रादिदर्शनं १९९ । ॥ पञ्चमे चतुर्थः ॥ २००-२ न छद्मस्थस्य केवलसंयमादीत्याद्यतिदेशः । २००, एवंभूतवेदनानिरासः २०१, कुलकरादिस्वरूपातिदेशः २०२ । २२५ २२४ बृहत्क्रमः। ॥१०८॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत हवक्रमः।। सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ॥ पञ्चमे पञ्चमः ॥ ॥ पञ्चमे षष्ठः ॥ |२१९ हेत्वहेतुज्ञानाशानादि । २३९ भगवत्यंग-IN२०३ अल्पदीर्घाशुभशुभदीर्घायुःका- | २१२-१३ परमाणुजात्वेजनादि, द्विप्र ॥पञ्चमे सप्तमः ॥ रणानि । २२८ देशिकादिदेशैजनादि २१२, अ- २२० पुद्गलसा ना दिप्रश्नोत्तरे, २०४ भाण्डापहाराऽऽगमक्रयविक्रयो- नन्तप्रदेशिकस्यैव छेदभेदाईत्व नारदनिम्रन्थीपुत्रयोः । (पुद्ग॥१०९॥ पनयादिषुक्रिया, अधुनोज्ज्व- विघातादि २१३। २३३ | लषदर्विशिका)। २४४ लितानी महाकर्मता । २२९ २१४ परमावासामध्यपाहि | २१४ परमाण्वादेः सालमध्यप्रदेशादि- २२१ जीवनरकसप्तकादिवृद्धिहानिका२०५-२०६ ऊर्ध्वगतेषुणा हिंसायां कि प्रश्नः । लसोपचयादितत्कालनिरूपणम्।२४६ यापश्चकम् २०५, तस्येषोः पतने | | २१५ परमाण्वादेः देशसर्वस्पर्शना । २३४ ॥पञ्चमेऽष्टमः ॥ हिंसायां चतुरादिक्रियाविचा २१६ परमाण्वादेः स्थितिसैजनिरेजरः २०६। २३० २२२ पृथिव्यबाधे राजगृहता। २४६ २०७-९ चतुष्पञ्चयोजनशतान्याकु त्वगुणपरिणामप्रश्नः,शब्दाशब्द- |२२३-२२४ नारकासुरादीनामन्धकालाः नरकाः, न नरलोकाः २०७, परिणामकालप्रश्नः। २३५ रोद्योतकारकाः । २२३, नारनार कवैक्रियातिदेशः २०८, आ| २१७-३५ द्रव्यक्षेत्रावगाहनभाव काणां न समयादिव्यवहारः धाकर्माधनवद्यचिन्तकादर्नारा-.. स्थित्यल्पबहुत्वम्, (खण्डषट् २२४। ૨૪૭ धना २०९ । त्रिंशिका)। २३७ | २२५-२६-३६७ पार्थापत्यस्थवि२१०-११ आचार्यस्य प्रयो भवाः२१०, २१८ नारकतिर्यग्नरदेवानामारम्भ राने पार्श्वनाथबचःसंवादेन लोअभ्याख्यानकर्म २११। २३२ । परिग्रहौ। २३८ । कासख्यत्वनिर्णयः पञ्चया१. २३१ । ॥१०९॥ सुत्ताणि ~129 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत श्री. हतक्रमः सूत्रांक भगवत्यंग २६७४ यहां देखीए ॥११॥ Tail दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम माङ्गीकारः २२५, चतुर्विधदे ॥ षष्ठे द्वितीयः॥ २३९-४२ प्रत्याख्यानिप्रत्याख्यानवलोकातिदेशः २२६, उद्देश- ३९०-४०७ उद्देशार्थसङ्ग्रहणीगाथा २५३ तज्ज्ञानकरणतन्निर्वर्तितायुर्विकार्यसनहणी ३६७ । २४९ २३२ महाकर्मादेः पुगलानां चयनादि चारः । ॥ पञ्चमे नवमः । ५-९ ॥ अहतवस्त्रस्येव, अल्पकर्मादेर ॥ षष्टे चतुर्थः॥ २२७ चन्द्रोदयवक्तव्यताऽतिदेशः। २४९ न्यथा। २५४ २४० तमस्कायस्वरूप-तत्समुत्थान॥ पञ्चमे दशमः ॥ | २३३ वस्त्रदृष्टान्तेन योगैः कर्मोपचयः।। | निष्ठा-संस्थानविष्कम्भादिमह॥ इति पञ्चमं शतकम् ।। | २३४ कर्मोपचये सादित्वादिचतुर्भङ्गी त्ताऽतिक्रमणकालाः, गृहाद्य| ३७७ उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी । २५० भावः, असुरादिकृतत्वं, बादरप्रक्षः,नारकादीनां सादित्वादि । २५५ पृथिव्याघभावः, तन्नामानि, अ२२८ महाऽल्पवेदननिर्जरानिरूपण स- २३५-३६ कर्मप्रकृतिस्थित्यवाधे २३५, प्रकृतिबन्धे वेदसंयतदृष्टयादि बादिपरिणामता । रष्टान्तम् । २७० २२९-३०-३८० मनोवाकायकर्मकर विचारः २३६ । २५९ | २४१-४३७ कृष्णराजीसंख्यापरस्प| २३७ स्त्रीपुंजपुंसकवेदावेदानामल्प रस्पर्शसंस्थानविष्कम्भादि नाणनिरूपणं २२९, जीवादीनां मानि च। महाऽल्पवेदनानिर्जराकत्वं २३०, बहुत्वम् । " |२४२-४५ लोकान्तिकानां विमानउद्देशकार्थसङ्ग्रहणी ३८ । २५२ ॥ पठे तृतीयः ॥ ६-३ परिवारस्थितिलोकान्ताबाधाः।२७२ | ॥ षष्ठे प्रथमः ॥ | २३८-४१० गतिकायाहारकमब्या ॥ षष्ठे पञ्चमः ॥ २३१ आहारातिदेशः। २५२ | विषु सप्रदेशाप्रदेशविचारः। २६६ । २४३-४४ अनुत्तरान्तावासा, मरण २७१ सुत्ताणि ~130~ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक बहतक्रमः र यहां सगवत्यंग देखीए ॥११॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम समुदधाते तत्रगतप्रतिनिवृत्ता- २४९ जातिजामनिधत्ताधायुर्वन्धाः । २८१ | २५७ २५८०५२ स्वावगाढादेराहारः। नामाहारपृच्छा । २७४ | २५० लवणे उत्सुतोदकादित्वं, द्विद्धि २५७, केवलिनो नादानानं, ॥ षष्टे षष्ठः ॥ | विष्कमा द्वीपसमुद्राः शुभनामानः।२८२ उद्देशकार्थसमहणी २४५ शाल्यादिकलायाद्यतस्यादियो ॥ षष्ठेऽष्टमः ॥ निकालः । २७४ २५१ वन्धाबन्धातिदेशः । २८३ ॥ षष्ठे दशमः ॥ २४६-४७१५०० मुहर्तायावलिकादि२५२ तत्रगतपुद्गलादाने देववैक्रियं, ॥ षष्ठं शतकम् ॥ पस्योपमसागरोपमसुषमसुष पुगलपरीणामपरावृत्तिश्च । २८३ | ५३० उद्देशक (१०) संग्रहणी। २८७ मादिप्ररूपणा २४६-५०8, सु २५३ समुद्घातासमुद्घाते शुद्धाषमसुषमायां भरताकाराद्यति २५९ अनाहाराल्पाहारकालः । २८८ देशः । २४७। २७८ शुद्धलेश्यस्य शुद्धाशुद्धलेश्य २६० लोकसंस्थानम् । | ॥ षष्ठे सप्तमः ॥ देवदेवीज्ञानादि । २८४ २६१-६३ सामायिकवतः श्राद्धस्या२४८-५१ रत्नप्रभादेरधो गृहाय ॥ षष्ठे नवमः ॥ धिकरणी क्रिया २६१, पृथ्वीं भावः, देवादिकृतं वर्षादि, च- २५४ यावद्भूतं सुखादिदर्शनाशक्तिः। २८५ खनत प्रत्याख्यानिनस्तृणवनतुादेरधो देवकृतं वर्षादि, २५५ जीवजीवयोर्जीवनारकादिकयो- स्पतिवधेऽपि नातिचारः २६२, सौधर्मेशानयोरधो देवासुरकृतं यभिचारेतरविचारः । , श्रमणप्रतिलम्भनान्मोक्ष: २६३।२८९ व, तमस्कायादिसङ्गहगाथा २५६ एकान्तदुःखाहत्यसातैकान्तसा. २६४ सदृष्टान्तं निःसङ्गत्वादिना:२७९ ताहत्यासातविमात्रावेदना। २८६ । कर्मणो गतिः । २९० सुत्ताणि ॥११॥ ~131 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-५. "भगवती ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां Sxsali देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम २६५ दुःखिनो दुःखस्पर्शादि । २९१ पुद्गलम्युबमाद् ग्रीष्मे तच्छोभा, २८२-८५ नारकादेरिहायुःकरण, उ. वृहत्क्रमः॥ भगवत्यंग-N२६६-६८ अनायुक्तगमनादेः साम्प २७४, मूलकन्दादीनां पृथिवी. त्पन्नस्यैकान्तदुःखाहत्यसातादि रायिकी २६६, साकारधूमादेसूत्रे मूलादिप्रतिबन्धादाहारादि २७५ २८२, अनाभोगनिवर्तिता - रर्थः २६७, क्षेत्रकालमार्गप्रमा आलुकमूलकादीनामनन्तकायता युषो जीवाः, २८३, वधाणातिकान्तानामर्थः २६८ । २६३ २७६ । ३०० दिना कर्कशवेदनीयानि, तद्वि॥११२॥ | २६९ शस्त्रातीतादेरर्थः। २९४ | २७७ कृष्णनीलादिलेश्यानां क्रमा रमणेन त्वितराणि २८४, प्राणा॥सप्तमे प्रथमः ।। स्थित्यपेक्षया महाकर्मता । ३०१ द्यनुकम्पादिभिः सातं, दुःखना२७० अज्ञातजीवादेवधप्रत्याख्यानं दु | २७८ वेदनं कर्मणः, निजरा नोकर्मणः, दिभिरितरत् २८५ । ३०५ पत्याख्यातत्वादि। भिन्नकर्मता न वेदननिर्जरयोः । ३०२ २८६-८७ दुष्षमदुषमायां भरतस्या| २७१-५४ देशसर्वमूलोत्तरप्रत्याख्या- | २७९ नारकादेः शाश्वताशाश्वतत्वे ।, कारप्रत्यवतारः २८६, तत्र मनुनानि । २९७ || सप्तमे तृतीयः ॥ म्याणामाकारप्रत्यवतारः २८३। ३०९ ॥ २७२ मूलोत्तरप्रत्याख्यान्यप्रत्याख्या- २८०-५५ षड्विधसंसारसमापन्नजीन्यल्पबहुत्वम् । || सप्तमे पष्ठः ॥ वाद्यतिदेशः । ३०३ | २७३ जीवस्य शाश्वताशाश्वतत्वे । , | २८८-८९ सकषायिणः संवृतस्यापि ॥ सप्तमे द्वितीयः ॥ ॥ सप्तमे चतुर्थः ॥ साम्परायिकी२८८, कामभोगा| २७४-७६ प्रावृषि बहुः, ग्रीष्मे चाल्पा- २८१-५६७ योनिसानहायतिदेशः । ३०३ नां रूपित्वसचित्तत्वादि २८९ । ३११ IC॥११२॥ हारो बनस्पते, उष्णयोनिजीव | २९० भोगत्यागान्महापर्यवसानं, प॥ सप्तमे पञ्चमः ॥ सुत्ताणि ~132 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीभगवत्यंग-IN यहां देखीए सूत्र ॥११३॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम रमावधिकेवलिनी क्षीणभो - |२९९ महाशिलाकण्टकाधिकारः, चतु- ३०५ पापकल्याणफलविपाकतानि - Iावहतक्रमः। गिनौ। ३११ रशीतिलक्षजनक्षयः, ओसनं रूपणम् । ३२६ २९१ अकामप्रकामवेदनास्वरूपम् । ३१२ नरकतिर्यक्षु । ३१९ | ३०६-७ अग्निज्यालननिर्वापनयोर्महा॥ सप्तमे सप्तमः ॥ | ३००-३ रथमुशलाधिकारः, मुश- ऽल्पकर्मत्वादि ३०६, तेजोले२९२-९३ छद्मस्थादीनां केवलसंय- लस्वरूप, षण्णवतिलक्षजन - श्याऽचित्तपुद्गलानामवभासादि, माद्यभावभावौ २९२, हस्तिकु क्षयः, ओसन्नं नरकतिर्यक्षु कालोदायिसिद्धिश्च ३०७ । ३२७ मथ्वोः समो जीवः २९३। ३१३ ३००, कोणिकस्य देवेन्द्रः पूर्वस || सप्तमे दशमः ॥ २९४-९५ कृतस्य दुःखता, निर्जीर्ण गतिकः, चमरः पर्यायसङ्गतिकः ॥ इति सप्तमं शतकम् ॥ स्य सुखता २९४, दश सञ्चाः, ३०१, राजाभियुक्तबरुणसुभट ५७७ उदेश (१०) सङ्ग्रहणी । ३२८ देवगतिप्राप्त्या सङ्ग्रामहतानां नारकादीनांशीतादिवेदना २९५,३१४ २९६-९७ हस्तिकुन्थ्वोः समाऽप्रत्या स्वर्ग इतिवाद:, तन्मित्राधि- ३०८ प्रयोगादि (३) परिणताः, ख्यानक्रिया २९६, आधाकर्म कारो देवप्रातिहार्यं च ३०२, पुद्गलाः । भोगफलाद्यतिदेशः २९६ । ३१५ वरुणतन्मित्रयोदेवमानुष्यगती ३०९ सप्तभेदैकेन्द्रियादिप्रयोगपरिण३०३ । ३२३ । ताः पुद्गलाः । ३३२ ॥ सप्तमेऽष्टमः ॥ ॥ सप्तमे नवमः ॥ ३१०-११ मिश्रपरिणताः ३१०. वि. २९८ असंवृतानगारस्येहपुद्गलादानेन ३०४ कालोदायिनः प्रतिबोधो. दीक्षा- | असापरिणताः ३११ । वैक्रियम् । ३२५ । ३१२ एकद्रव्यस्य प्रयोगादिपरिणामा-" ॥११३॥ सुत्ताणि ~133 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- "भगवती । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री भगवत्यंग सूत्रे ॥११४॥ रम्भादिविचारः । ३३६ ३१३ इत्यादिद्रव्याणां प्रयोगादि । ३३९ ३१४ प्रयोगादिपरिणतानामल्पबहुत्वम् । ॥ अष्टमे प्रथमः ॥ ૯૦ | ३१५ जातिकर्माशीविषनिरूपणम् । ३४२ ३१६ छद्मस्थसर्वभावाशेयकेवलि ज्ञेयाः । ३१७ आभिनियोधिकादिज्ञानाज्ञानस्वरूपं, जीवनारकादीनां ज्ञाम्यशानित्यादि । ३१८ गतीन्द्रियादिमार्गणासु ज्ञान्यज्ञानित्यादि । ३१९ ज्ञानदर्शनादि (१०) लब्ध्यलधिषु ज्ञान्यज्ञानिविचारः । (परिहारविशुद्धयधिकारः) । ३५४ " ३४५ ३२० उपयोगयोगलेश्यावेदाऽऽहारमार्गणासु शान्यज्ञान्यधिकारः । ३५६ ३२१-२२ ज्ञानाज्ञानानां विषयः ३२१, स्थितिपर्यायात्पबहुत्वं ज्ञानाज्ञानानाम् ३२२ । ॥ अष्टमे द्वितीयः ॥ ३२३ सङ्ख्याऽसव्याऽनन्तजीवि ३६४ काः । ३६५ "" ३२४ छिन्नकूर्मादेरन्तरा प्रदेशानां नावाधादि ३२५ पृथ्व्यादीनां चरमादिरतिदेशेन । ३६६ ॥ अष्टमे तृतीयः ॥ ३२६ काoियादिक्रियाऽतिदेशः । ३६७ ॥ अष्टमे चतुर्थः ॥ ३२७ सामायिके 'नो मे हिरण्य-' मित्यादिभावेऽपि ममत्वभावातदीयं भाण्डादि । ~ 134~ ३६८ ३२८-३० स्थूलप्राणातिपातादी एकोनपञ्चाशद्भङ्गाः ३२८, 'अक्षीणप्रतिभोजिनः सत्वाः' इत्याजीविकमते तालाद्याः कर्मादानवर्जकास्तु धावकाः ३२९, देवलोकातिदेशः ३३० । ३७३ ॥ अष्टमे पञ्चमः ॥ ३३१ श्रमणादिप्रतिलाभे एकान्तनिजरादि । ३७४ ३३२ पिण्डप्रतिग्रहादियष्टिसंस्तार कान्तावद्दशनिमन्त्रणं निर्मस्थस्थविरविधिना । ३७६ ३३६ अकृत्ये प्राप्त्यप्राप्त्योराराधनाविराधनाऽधिकारः । ३३४ अमनिं न वर्त्यादेः । ३३५ औदारिकादिशरीरेभ्यः क्रिया । ३७८ ३७६ - ३७५ बृहत्क्रमः।। ॥११४॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक बृहत्क्रमः॥ यहां देखीए ॥११५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ॥ अष्टमे षष्ठः ॥ रीषहावतारः, वेदनीयपरीषहाः ।। सयोगसवव्यतया प्रमादप्रत्य ५८०, मोहपरीषहाः ५९७ । ३९२ यात्कर्मयोगभवायूंषि प्रतीत्यशभगवत्यंग-IN३३६-३३७ दीयमानस्य दत्तत्वान्नादत्तादानं, देशंदेशेन वजनान हिं | ३४३ सूर्यस्योद्गमनादौ दूरमूलदर्श- रीरप्रयोगबन्धः, देशसर्वबन्धसाः, इत्यन्ययूथिकान् प्रति- नादिकारणं, प्रत्युत्पन्नगमनप्र- स्थित्यन्तराल्पबहुत्वानि । ४०४ | हत्य स्थविरा गतिप्रपाताध्ययन भासनादि, तापक्षेत्रमानं, उप- ३४७ बैक्रियादिप्रयोगवन्धनिरूपणम् । ४०९ पातबिरहः । ३९४ जगुः ३३६, गतिप्रपाताति ३४८ तैजसबन्धनिरूपणम् । ११० ॥ अष्टमेऽष्टमः॥ देश: ३३७ । ३८२ ३४८ कार्मणशरीरप्रयोगबन्धः, अष्ट३४४-३४५ प्रयोगविश्रसाबन्धौ ३४४, ॥ अष्टमे सप्तमः ॥ कर्मबन्धहेतवः, स्थित्यादि च । ४१२ अनादिविश्रसाबन्धो धर्मादेः, | ३५० शरीराणां परस्परं बन्धावन्ध३३८ गुरुगतिसमूहानुकम्पाश्रुतभा सादिर्बन्धनभाजनपरिणामैः, त देशसर्वबन्धविचारः। ४१३ बप्रत्यनीकाः । स्थितिश्च ३४५। ३९५ ३५१ देशसर्वावन्धकानामल्पयत्व३३९-३४१ आगमादिः पञ्चविधो | ३४६ प्रयोगबन्धे सिद्धानां साद्यपर्य म् । (वन्धपत्रिंशिका)। ४१७ व्यवहारः ३३९, ईर्यापथिकसावसितः, आलापनाश्रयणशरी ॥ अष्टमे नवमः ॥ म्परायिकयन्धे वेदनाकालानां रशरीरप्रयोगेषु सादिसपर्यव- ३५२ केबलशीलादेरश्रेयस्कता, श्रुतसाधनादिना देशसर्वाभ्यां च सितः, शरीरवन्धे पूर्वप्रयोगे शीलसंपन्नः सर्वाराधकः । ४२८ विचारः रु. ४०-३४१ । ३८८ समवहतां प्रदेशानां, प्रत्युत्पन्ने | ३५३ आराधनाया भेदास्तत्फलं च । ४२० ३४२ ५८-५९७ कर्मप्रकृत्यादिषु प- | केवलिसमुग्धातनिवृत्ती, वीर्य- | ३५४ पुगलानां वर्णादिपरीणामाः। ४२० सुत्ताणि ॥११५॥ ~135 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ARS प्रत वृहतक्रममा सूत्रांक यहां 4-0 देखीए * दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम श्री- ३५५-३५६ एकादिद्रव्याणां द्रव्यद्र सङ्ख्याऽतिदेशः ३६१, लव भगवत्यंग-INI व्यदेश(८)त्वादिविचारः ३५५, णादौ चन्द्रादिसङ्ख्यातिदेशः लोकाकाशैकजीवप्रदेशाः ३५६॥ ४२१ ३६२ । ४२८ ३५७ अनन्तैः कर्माविभागेरावेष्टित ॥ नवमे द्वितीयः ॥ ॥११६।। परिवेष्टितो जीवैकैकप्रदेशः । ४२२ ३६३ अन्तरद्वीप (२८) स्वरूपाति३५८-५९ ज्ञानावरणादीनां परस्परं । देशः ३६३ । सद्भावविचारः ३५८, संसारि ॥ नवमे त्रिंशत्तमः॥ णः पुगलिनः पुद्गला अपि, सिद्धः ३६४-६५ अश्रुत्वाकेवल्यधिकारः, न अपुगलः ३५९ । ४२५ प्रजाजनादि ३६४, विभङ्गस्थाव|| अष्टमे दशमः ॥ धिभवनरीतिः ३६५ । ४३४ ॥ अष्टमं शतकम् ॥ ३६६-६८ अश्रुत्वाकेवलिनो लेझ्या६०० उद्देश (३४) समहणी । ४२५ दिविचार: ३६६, एकज्ञातकथ३६० जम्बूद्वीपसंस्थानाधधिकाराति- नं ३६७, ऊर्ध्वादिक्षेत्रविचारः ४२६ ३६८ । ४३७ ॥ नवमे प्रथमः॥ ३६९ श्रुत्वाकेवल्यधिकारः । ४३८ | ३६१-६२ ६१ जम्बूद्वीपे चन्द्रादि- । ॥ नवमे एकत्रिंशत्तमः ॥ ३७०-७१ पापित्यगाङ्गेयकृतो ना रकादिषु सान्तरनिरन्तरोत्पादविचारः ३७०, सान्तरनिरन्तरो द्वर्त्तनविचारः ३७१ । ४३९ ३७२ एकादिजीवानां रत्नप्रभादिप्रवेशनकविचारः । ४५१ ३७३ तिर्यग्योनिकप्रवेशनकविचार। ४५२ ३७४-७६ मनुष्यप्रवेशनकविचारः ३७४,देवप्रवेशनकविचार:३७१, नारकप्रवेशनकादीनामल्पबहुत्वं ३७६ । ४५३ ३७७-७८ उत्पादोद्वर्त्तनयोरिकादी नां सदसत्त्वविचार:(पायन शाश्वतो लोक उक्तः), स्वयंजानामि न श्रुत्वा मितामितज्ञानित्वात्, कर्मोदयादिना नारकादिषु गम ॥११६॥ सुत्ताणि ~1360 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हवक्रमः॥ यहां भगवत्यंग देखीए ॥११७॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम नम् ३७७, सर्वत्रत्वप्रत्ययः, पञ्च- । किल्विषदेवाधिकारः ३८८, ज- | ३९५ संवृतस्य सकषायस्य साम्प- 1 यामाङ्गीकारः, सिद्धिश्च ३७८।४५६ मालेः संसारः ३८९ । ४९० । रायिकी क्रिया। ४९६ ॥ नवमे द्वात्रिंशत्तमः ॥ ९-३२॥ ॥ नवमे त्रयस्त्रिंशत्तमः ॥ | ३९६-९७ योन्यधिकारातिदेशः ३९६, ३९० पुरुषाश्वत्रसपिघाते तत्तदन्यव- वेदनाधिकारातिदेशः ३९७ । ४९७ ३७९-८२ कुण्डग्रामे ऋषभदत्तः श्र ३९८-९९ भिक्षुप्रतिमाधिकारातिदेमणोपासकः, देवानन्दा श्रमणोपासिका, श्रीवीरागमः, सर्व शः ३९८, अन्ते आलोचनावि३९१-२२ पृथ्वीकायादीनां पृथ्वीका चारेऽपि नाराधना ३९९ । ४९८ यादिभिरुच्छ्वासादि ३९१, वृ. वर्षा गमनं ३७९,पूर्वपुत्रस्नेहानुक्षमूलकन्दादिपातने वायोनिच ॥ दशमे द्वितीयः ॥ रागेणागतप्रश्रवा ३८०, ऋषभदत्तदेवानन्दयोर्दीक्षादि ३८१ । ४६१ तुःपश्चक्रियत्वम् ३९२ ४९२ ४०० चतुष्पञ्चदेवावासातिक्रम आ स्मद्धर्चा, परतः परज़र्या, अल्प| ३८२ जमालिप्रतिबोधः। ॥ नवमे चतुस्त्रिंशत्तमः ॥ ४६२ सममहर्दिकानां देवदेवीनां म३८३ मातापित्रोरनुमतिः। ४७२ ॥ नवमं शतकम् ॥ ध्यगमनमोहाधिकारः । ४९९ ३८४ जमालेदीक्षा। ४८४ ६२० उद्देशक (२८) सङ्ग्रहणी। ४९२ | १०१-२६३-६४० अश्वस्य हृदयय३८५-८६ जमालेनिनवता ३८५, ज- ३९३ दिग्दशकतन्नामानि, जीवजीव- । क्नोरन्तरे कर्बटकवायुः ४०१, मालेनिरुत्तरता किल्विषत्वेनो- देशादि(६)त्वं । ४९४ भाषाधिकारातिदेशः ६३-६४ त्पादन ३८६ । ४८८ ३९४ शरीरस्वरूपाचतिदेशः । ४९५ ४०२। | ३८७-८९ जमालिगतिप्रश्नोत्तरे ३८७, ॥ दशमे प्रथमः। ॥ दशमे तृतीयः ॥ ५०० सुत्ताणि d | ॥११७॥ ~137 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्री- मगवत्यंग हत्क्रमः।। यहां ५०७ देखीए ॥११८॥ ४०३ वीर शिष्यसामहस्तिप्रश्ने काक- ४०६६५ शकसुधर्मासभाद्यतिदेशः, ४१६-१७७०७ शिवराजस्तापसत्वं, म्दकाचमरत्रायविंशाः, गौत- सूर्याभवदलङ्कारार्च निकायति- । होत्रिकादयस्तापसाः (४४), मप्रश्ने प्रायस्त्रिंशशाश्वतत्वं, बिभे- देशः, । दिक्मोक्षितत्वं, शिवभद्रस्य रालका बलिना, पालाशकाः शक्र ॥ दशमे षष्ठः ॥ ज्याभिषेकः, दिक्मोक्षणविधिः, स्य, चम्पाका ईशानस्य । ५०२४०७ उत्तराहान्तरद्वीपा(२८)ऽधिका- ४१६, ७०, विभङ्गज्ञान, सप्त॥ दशमे चतुर्थः ॥ रातिदेशः। द्वीपसमुद्रदर्शनप्ररूपणे, जना| ४०४-५ स्थविरप्रने चमराममहिष्यः, ॥ दशमे चतुर्विंशत्तमः ॥ लापः, बीरप्ररूपणा, द्वीपसमुद्राजिनसक्थनां सत्त्वाश्चमरसिंहासने न मैथुनम् ४०४, बमरस्य ॥ दशमं शतकम् ॥ दिषु सवर्णाविद्रव्यसत्ता, शिव स्य शङ्का, पर्युपासना, दीक्षा, सोमादिलोकपालानामग्रमहि४०८७६६-६९ उत्पलस्योत्पातप सिद्धिश्च ४१७ । ५२१ ष्यः, सिंहासने सक्थ्नां सत्त्वा रिमाणापहारादि (३३), बन्धन्मैथुननिषेधः, बलेस्तल्लोकपा कादिभङ्गाः ८, साकारोपयुक्तादि | ४१९ सिण्डिकातिदेशः । १ लानां, धरणादेस्तल्लोकपालानां, ८, उच्ढ़ासनिश्वासादि २६। ५१३ ॥एकादशे नवमः॥ कालादेस्तल्लोकपालानां, चन्द्रा ॥ एकादशे प्रथमः ॥ ४१८ लोकस्वरूपेऽधोलोकः सप्तविधः, झारकशक्रेशानतल्लोकपालानां - ४०९-१५ सालुकपलाशकुम्भिकनालि- तिर्यक अनेकविधः, ऊर्ध्वः पञ्चचाग्रमहिष्यादि ४०५। ५०६ । कपनकर्णिकानलिनानामधिकाराः।५१४ दशविधः, लोकसंस्थानं, जीव॥ दशमे पञ्चमः ॥ || एकादशेऽष्टमः ॥ जीवदेशादि, एकेन्द्रियद्वीन्द्रि दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम - ॥११८॥ सुत्ताणि ~138 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हत्क्रमः भगवत्यंग यहां देखीए ॥११९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम यादिदेशादि, अजीवाजीवदे- । बलाधिकारः, वासगृहसिंहस्वप्न- ४३४, पुद्गलपरिव्राजको, विभङ्गः, शादिविचारः । ५२५ तत्पन्नस्वमपाठकागमः ७९७, ब्रह्मलोकज्ञानप्ररूपणादि ४३५ । ५५२ ४२०-२२ लोकालोकमहत्ता ४२०, तत्सत्कारगर्भपोषणजन्मप्रीति - ॥ एकादशे द्वादशम् ॥ दानानि । एकाकाशप्रदेशे एकेन्द्रियादि ५४३ ॥ एकादशं शतकम् ॥ प्रदेशानामवस्थाने रङ्गस्थानद्द- | ४२८ जन्ममहकुलमर्यादानामस्थापन - ७२७ उद्देशक (१०)सङ्गहणी । ५५२ धान्तः ४२१, जघन्योत्कृष्टपद संस्कारभवनानि । ५४६ ४३६ शकश्रावका उत्पला भार्या,पुष्कली, जीवप्रदेशसर्वजीवाल्पबहुत्वं ४२९ विवाहप्रीतिदाने । ५४८ ४३७-३८ पाक्षिकपौषधार्थमशनायु४२२, (निगोदषत्रिंशिका)। ५३२ ४३०-४३१ धर्मघोषागमनप्रतियोध पस्कारः, शङ्कस्य चतुर्विधः पौ॥ एकादशे दशमः ॥ स्वराज्याभिषेकदीक्षाब्रह्मलोक - षधः, दर्भसंस्तारकारोहः,पुष्क गमनसुदर्शनजन्मानि ४२३ सुदर्शनश्रेष्यधिकारः, प्रमाणय ल्यागमनं, उत्पलाविनयः, पौष ४३०, थायुर्मरणाद्धाकालाः। धशालायामीर्यापथिकी, वीराजातिस्मरणदीक्षामोक्षाः ४३१ ॥५५० ५३३ गमनं, बन्दित्वा पारणविचारः, ४२४ जघन्योत्कृष्टपौरुषीदिनरात्रिमानं ॥ एकादशे एकादशः ॥ प्रवरवनपरिधान, पौषधस्वरूपं प्रमाणकाले । ५३४ |४३२-३५ ऋषिभद्राद्यधिकारदेवस्थि क्षामणं च ४३७, बुद्धाबुद्धसु४२५-२६ यथायुरादिकालः ४२५,नार- तिनिरूपणेतराश्रद्धानानि ४३२, दर्शनजागरिकाः ४३८ । ५५६ कादिस्थित्यतिदेशः ४२६ । ५३५, वीरसमवसरणस्थितिनिरूपण- ४३९ क्रोधादिफलम् । ४२७ पल्योपमसागरोपमक्षये महा- क्षामणानि ४३३, ऋषिभद्रगतिः । ॥द्वादशे प्रथमः ॥ " सुत्ताणि ॥११९॥ ~139 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत श्री- सूत्रांक हत्क्रममा भगवत्यंग-NI यहां देखीए ॥१२०॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ४४०-४२ जयन्तीवर्णनं ४४०, वीर- | ४४६-४४७ औदारिकादिपुद्गलपरा- । ॥ द्वादशे पष्ठः ॥ समवसरणमुदायनजयन्त्यादि वस्तिकालाल्पवहुवे। ५७०४५६ अजावाटकरान्तेन जीवानां गमनं ४४१, जीवगुरुलघुत्वहे ॥ द्वादशे चतुर्थः ॥ लोकस्पर्शनम् । तवः, सिद्धत्वं स्वाभाविक, स| ४४८-४९ आश्रववर्णादि, क्रोधाद्यभि | ४५७ नारकाद्यावासेष्वनन्तकृत्व उवैभव्यसिद्धावपि आकाशश्रेणिधानानि (१०-१२-१५-१५) ४४८, त्पत्तिः सर्वेषाम् । ५८१ वव्यवच्छेदः, सुप्तजागरितताविरमणोत्पत्तिक्यवग्रहोत्थानाव द्वादशे सप्तमः ॥ बल्यवलितादक्षतादक्षतानां सा काशनारकलेश्यायोगसर्वद्रय्या- ४५८ च्युतदेवस्य द्विशरीरनागमणिध्वसाधुते, इन्द्रियवशताफलं, दिवर्णादिविचारः ४४९। ५७४. वृक्षेषूत्पत्तिरर्चनादिप्राप्तिश्च । ५८२ जयन्त्या दीक्षा मोक्षश्च ४४२ । ५६० ४५०-५१ गर्भव्युत्क्रान्तौ वर्णादि ४५०, ४५९ गोलालवृषभादीनां सागरोप॥ द्वादशे द्वितीयः॥ ___ कर्मणो जगद्विभक्तिः ४५१ । ५७५ मस्थितिके नरके गतिः। ५८२ ४४३ पृथ्वीनामगोत्राद्यतिदेशः । ५६१ ॥ द्वादशे पञ्चमः ॥ ॥ द्वादशेऽष्टमः ॥ ॥द्वादशे तृतीयः॥ ४५२ ग्रहणं, राहुनामानि (९) पञ्च |४६०-६५ भव्यद्रव्यदेवनरदेवधर्मदेव४४४ याद्यनन्ताणुकस्कन्धसंघात वर्णा राहोः,ग्रहणेरीतिरन्तरं च ।५७७ देवाधिदेवभावदेवानां स्वरूपं मेदभङ्गविचारः। ५६७ | ४५३-५४ शश्यन्वर्थः ४५३, आदि- '४६०, तेषामुत्पत्तिः ४६१ स्थितिः ४४५ पुगलपरावर्तस्वरूपतदतिका त्यान्वर्थः ४५४ । ५७८ ४६२, बैंक्रिय ४६३, गतिः स्थिन्तादिविचार। ५६९ । ४५५ चन्द्रसूर्यादिकामभोगवर्णनम् । ५७९ तिरन्तरमल्पबहुत्वं च ४६४, ॥१२०॥ सुत्ताणि ~140 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां ६०८ बृहत्क्रममा भगवत्यंग-N देखीए सत्रे ॥१२१॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम व्यन्तरादिभावदेवाल्पबहुत्वम् । सङ्क्शविशुजिभ्यां लेश्यापरी- । ऐन्द्रयादिप्रवहदिक्प्रदशादिख... णामः ४७१ । रूपम् ४७९ । ॥ द्वादशे नवमः ॥ ॥ त्रयोदशे प्रथमः ॥ ४८०-७० पश्चास्तिकायोपकाराः, कोटि४६६-६७ द्रव्यकषाययोगोपयोगज्ञान- ४७२ सङ्ख्यातादिविस्तृतदेवावासेपू- सहनमपि मायात् ७४७-४८०६०९ दर्शनचारित्रवीर्यात्मनां परस्पर- त्पत्तिसङ्ख्यादिविचारः। ६०४ ४८१-८३ धर्मास्तिकायादिप्रदेशस्पसत्त्वमल्पबहुत्वं च ४६६, आत्म- | ॥प्रयोदशे द्वितीयः ॥ शविचारः ४८१, जीवास्तिकायनानादीनां भेदाभेदी ४६७ । ५९२४७३ प्रविचारणाऽतिदेशः । पुद्गलास्तिकायपरमाण्वादेः प्रदे ६०४ ४६८ रत्नप्रभादीनामात्मना आत्मादि शस्पर्शावगाहविचारः ४८२, ॥ त्रयोदशे तृतीयः ॥ विकल्पाः । ५९६ षटकायावगाहविचार:४८३ । ६१५| ४७४ पृथिवीनां महत्तादि, महाकर्म- ॥ द्वादशे दशमः ॥ ४८४ दीपप्रभावन धर्मास्तिकायादिस्वादिमहधिकत्वादिविचारः। ६०६ वासनादिशक्तिः । ६१६ ।। द्वादशं शतकम् ॥ | ४७५-७९ नारकाणां पृथिव्यादिस्पर्श- ४८५ लोको बहुसमः सर्ववैग्रहिक७३० उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी । ५९६ | वेदना ४७५. रत्नप्रभादिलघु स्थाने । ४६९-७१ सङ्ग्यातादिविस्तृतनरका- महत्त्वविचारातिदेशः ४७६, ४८६ तिर्यगादिलोकसंस्थानास्पब -" द्यावासेषु उत्पादलेझ्याकृष्णपक्षी- रत्नप्रभादिषु पृथ्वीकायादेर्म हुत्के। यादि (३९) द्वारविचारः ४६९, रणादेरतिदेशः ४७७, लोका ॥ त्रयोदशे चतुर्थः ॥ " सम्यग्दृश्यादिविचारः ४७०, धऊर्ध्वतिर्यग्लोकमध्ये ४७८, ४८७ नारकादीनामाहारातिदेशः । ६१६| सुत्ताणि | ॥१२१॥ ~141 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक वृहत्क्रमः। श्रीभगवत्यंग- सूत्रे यहां देखीए ॥१२२॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ॥ त्रयोदशे पञ्चमः ॥ निर्गतादि, आयुःकरणमनन्तर४८८ नारकादिसान्तरोत्पादाद्यति - ४९६ कर्मप्रकृत्यतिदेशः । खेदोत्पन्नादि । देशः। ॥त्रयोदशेऽष्टमः ॥ ॥ चतुर्दशे प्रथमः ॥ ४८९ चमरचश्चाबासतत्प्रमाणवसत्य- ४९७ केयाघटिकाहिरण्यपेटाबल्गुली- ५०१-३ यक्षावेशमोहनीयोन्मादनिरून्वर्थकथनम् । वीजबीजकादिवैक्रियविचारः ६२८ | पण ५०२, शक्रादीनां वृष्टिक४९०-९१ उदायननुपाधिकारः अमी ॥ त्रयोदशे नवमः ॥ रणे रीतिः, अईजन्मादिषु वृष्टिचिं त्यक्त्वा केशिने राज्य, उदा. ४९८ छद्मस्थसमुद्घातादिदेशः । ६२९ १२९ । करण च ५०३। ६३६ यनमोक्षः ४९०, अभीचेरसुर ॥ त्रयोदशे दशमः ॥ ५०४ ईशानादेस्तमस्करणरीतिः । , त्वम् ४९१ । ६२१ ॥ चतुर्दशे द्वितीयः॥ ॥ त्रयोदशं शतकम् ॥ ॥ त्रयोदशे षष्ठः ॥ | ५०५ सम्यग्दृष्टिदेवार्भावितानगारम ७५% उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी । ६३० ध्येऽव्यतिक्रमः। ६३७ ४९२ भाषाणामन्यत्वरूपित्वाचित्तत्वा- ४९१-५०० यथालेश्यं देवावासाः । | ५०६-७ असुरादीनां सत्कारादे (१०)जीवत्वानि, भाषासमये भाषावं, ४९९, एकद्वित्रिसमयेषु नारका रस्तिता, न नारकैकेन्द्रियादेः, भाषाचातुर्विध्यम् । ६२३ दीनामुत्पत्तिः. एकेन्द्रियाणां । तिरश्च आसनाभिग्रहानुप्रदाने ४९३-९४ मनःकाययोरपि पूर्वव - चतु:सामयिकविग्रहेण ५००। ६३३ वर्जयित्वा ५०६, अल्पसममह| द्विचारः। ६२४ | ५०१ अनन्तरपरम्परोत्पन्नतदनुत्पन- चिकदेवदेवीव्यतिक्रमणविधिः ४९५ आवीचिमरणादिविचारः। ६२६ । स्वरूपमायुःकरणप्रश्ना, अनन्तर- । ५०७। ६३८ ॥१२॥ सुत्ताणि ~142 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक बहक्रममा यहां ममवत्यंग देखीए ॥१२३॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ५०८ रत्नप्रभादिषु पुद्गलपरिणामानु- ५१५ नारकादीनामनिष्टादिशब्दाच - । ५२३ प्रत्यास्यातभक्तस्यापि मरणभवातिदेशः। ६३८नुभवः । ६४३ समुद्घातनिवृत्तस्याप्याहारः।। ॥ चतुर्दशे तृतीयः॥ ५१६ बाहापुद्गलानादाने नोल्लानादि । ६४४ ५२४-२५ लबसप्तमदेवस्य सप्तलव५०९ पुद्गलानां रूक्षत्वादि शाश्वता ॥ चतुर्दशे पञ्चमः ॥ न्यूनायुष्कता ५२४, षष्ठतपोशाश्वतं च । ६३९ ५१७-५१८ नारकादीनां पुद्गलाहारा- न्यूनता ५२५ । ५१० जीवानां दुःख्यदुःखित्वादि,शा- दित्वं ६१७, वीच्यबीचिद्रव्या ॥ चतुर्दशे सप्तमः ॥ श्वताशाश्वते । ६४० हारित्वम् ५१८ । ६४४ | ५२६ रत्नप्रभादिपृथ्वीनां परस्परं ज्यो५११-१२ परमाणोद्रव्यपर्यायार्थाभ्यां ५१६ शकादीन्द्राणां भोगाय भिन्नवि- | तिष्कसौधर्मादीषत्प्रारभाराणा - शाश्वताशाश्वतत्वे, द्रव्यादिभिश्व मानविकुर्वणा। ६४६ | मन्तरम् । ६५२ रमाचरमत्वे च । ॥ चतुर्दशे षष्ठः ॥ ५२७ शालवृक्षशालयष्टिकोदुम्बराणां ५१३ परिणामातिदेशः । ६४१५२० गौतमाय चिरसंसृष्टोऽसीस्या गतिः । ॥ चतुर्दशे चतुर्थः ॥ शुक्तिः । ६४७ ५२८-२९ अम्बडशिष्यवक्तव्यताति५१४ नारकादीनामझिमध्येन विग्रह - ५२१. अनुत्तरोपपातिकानामपि चिर- देशः ५२८, अम्बडवक्तव्यतागतौ व्यतिक्रमः, देवादीनाम- संसृष्टत्वादिज्ञानम् । ६४८ तिदेशः ५२९ । ६५३ विग्रहेऽपि, ऋद्धिप्राप्ततिर्यग् - ५२२ द्रव्यक्षेत्रकालभवभावसंस्थानतु- | ५३०-३२ अक्षिपने नाम्यं न च मनुष्ययोरपि । ६४२ ल्यतानिरूपणम् । पुरुषस्याबाधा इत्यव्याबाध · | सुत्ताणि | ॥१२३॥ ~143 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत चहतका सूत्रांक श्रीभगवत्यंग ASIA यहां देखीए सूत्रे ॥१२४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम देवाः ५३०, शिरश्छेदचूर्णप्रति ॥ चतुर्दशे दशमः ॥ सन्धानेऽपि नाबाधा इति शक्रसामर्थ्यम् ५३१, अन्नादि (१०) ॥ चतुर्दशं शतकम् ॥ जम्भकेभ्योयशोऽयशसी.दीर्घ | ५३९ श्रावस्त्यां हालाहला, शानकवैताठ्यादिस्थाश्च ते ५३२ । ६५५ लन्दाद्या दिक्चराः, चतुर्विश॥ चतुर्दशेऽष्टमः ॥ तिवर्षपर्यायो गोशाला, अनति५३३ सकर्मलेश्यजीवज्ञानेऽपि कर्म- क्रमणीयलाभालाभादिशानं जिलेझ्याया शानमवभासनादि च।६५५ | नालापितादि । ६६० ५३४-३५ पुगलानामनात्तत्त्वादि ५३४, ५४० गौतमप्रश्नाद् गोशालस्योत्था वैक्रियसहस्रभाषासहस्त्रेऽप्येक- नपर्यानिका, गोशालस्य जन्म भाषा ५३५ । ६५६ नाम च । |५३६ सूर्यतत्प्रभाछायालेश्याऽन्वर्थः ।, [५४१ वीरगार्हस्थ्यातिदेशो भावना| ५३७ मासादिपर्यायेण व्यन्तरभवन- वत् , द्वितीयचतुर्मास्यां गोशा वासिचन्द्रादिलेझ्यातिक्रमः । ६५७ लकमिलनं, दानदिव्यानि, को॥ चतुर्दशे नवमः ॥ ल्लाके पारणं, गोशालस्यान्ते५३८ केवलिसिद्धयो. परस्परज्ञानं, उ. वासिता, प्रणीतभूमौ षड् वर्षा स्थानादिमान् केवली। ६५८ | णि विहारः॥ ५४२ तिलस्तम्बतिलोत्पत्तिः । ६६५ ५४३-४६ वैश्यायनलेश्या, अनुकम्पया रक्षणं, तेजोलेश्योपायकथनं ५४३, तिलसप्तकदर्शनात्परावतपरिहारवादः ५४४, तेजोलेश्योत्पादनं ५४५, वीरसत्यप्ररू पणया गोशालस्यामर्षः ५४६ । ६६८ ५४७-४९ आनन्दभ्रमणाय वणिगौप मिककथनं ५४७, गोशालानगारस्थविराईतेजोलेश्यानां क्रमादनन्तगुणविशिष्टता ५४८, धार्मिकनोदनानिषेधः ५४९ । ६७३ ५५० महाकल्पदिव्यसंयूथसशिगर्भ प्रवृत्तपरिहारकर्मकर्मशिनिरूपणं, पणेज्जकादिपरिवर्ताः २२२१-२०-१९-१०-१७-२६ व सुत्ताणि पाणि । ॥१२॥ ६७७ ~144 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्री- भगवत्यंग बृहत्क्रमः॥ यहां देखीए ॥१२५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ५५१-५६ वीरोक्तः स्तेनदृष्टान्तः ५५९, गोशालककृत आक्रोशः ५५२, सर्वानुभूतिसुनक्षत्रदहनं, वीरकृत उपदेशः, तेजोलेझ्यामोचनं, षण्मास्यन्तमरणकथन, बोउशवर्षविहारप्रादुर्भावनं, गोशालस्य निस्तेजस्कता, निष्पृएप्रश्नव्याकरणता, क्रोधेऽपि बाधनाशक्तिः, आजीविकस्थविराणां सत्यश्रद्धा, गोशालस्य नृत्यादि ५५३, अङ्गादिदाहिका गोशाललेश्या, चरमपानाद्यटकं, पानचतुष्कप्ररूपणा, अयंपुलागमनं, हल्लासंस्थानपृच्छा अम्बकूणकादित्यागः, मत्तवाक्यं, मृते सत्कारकरणप्रेरणा, ५५४, सम्यक्त्वलाभः, यथार्थ कथनं तिरस्कारप्रादुर्भावनप्रे ॥ पञ्चदशं शतकम् ॥ रणा ५५५, पिहितद्वारे गृहे ७६७ उद्देशक (१४) सङ्ग्रहणी। ६९६ उद्घोषणादि, पश्चाद् ऋद्धया। ५६२-६३ अधिकरण्यां वायुः ५६२, सत्कारः ५५६। ६८५ ____ अङ्गारकारिकाग्निस्थितिः ५६३।६९७ ५५७-५९ पित्तज्वरः, सिंहरोदनं, | ५६४ अयउत्क्षेपादौ क्रिया । ६९७ | रेवतीगृहात्पाकानयनादेशः,रो ५६५-६६ अधिकरण्यधिकरणसाधिगोपशान्तिः ५५७, सर्वानुभूते करणिनिरधिकरण्यात्मपरोभमहाशुके सुनक्षत्रस्याच्युते याधिकरण्यात्मादिप्रयोगनिर्वउत्पादः ५५८, गोशालभवपर तितस्वरूपं ५६५, शरीरेन्द्रिम्परा,सुमङ्गलस्योपसर्गः, ज्ञात ययोगेष्वधिकरण्यादिविचार: वृत्तान्तेन तेजोनिसर्गात् सरथ-.. मातः,सर्वार्थसिद्धे उत्पादः५५९/६९१ | ॥ षोडशे प्रथमः ॥ ५६० गोशालभवाः,सर्वत्र शखवध्यः।६९४ ५६७ शरीरमनोवेदनयोर्जराशोकी । ७०० ५६१ गोशालभवाः, दृढप्रतिशभवे ५६८ पालकविमानमुत्तरत्यो निर्याण केवलज्ञानं, स्वयं आचार्यादिप्रत्य- मार्गः, आग्नेयीरतिकरेऽवतारः, नीकताफलकथनम् । अवग्रहस्य पृच्छाऽनुज्ञा च । ७०२ सुत्ताणि ॥१२५॥ ~145 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत बी सूत्रांक वृहत्क्रमः।। भगवत्यंग-IN यहां देखीए ॥१२६॥ पश्चकियत्वञ्चनादौ ५८७ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ५६९ शक्रः सम्यग्वादी सत्यादिभाषी । ५७५, गङ्गदतीत्तरे परिण - J५८४-८५ लोकपूर्वाधन्तानां जीवजी सावद्यादिभाषी, सूक्ष्मकायनि! मन्त इत्यादि, नाट्योपदर्श- वदेशादिविचारः ५८४, आलोहनेनानवद्या भाषा । ७०१ | नम् ५७६ । ७०७ कान्तात् परमाणोः समयेन ५७० दुःस्थानाद्येश्यकृतानि कमोणि।७०२ | ५७७ मुनिसुव्रतकाले गनदत्तदीक्षादि, गतिः ५८५। ७१७ ॥ पोडशे द्वितीयः ॥ विदेहे मोक्षः। ७०८ | ५८६ वर्षशानाय हस्ताद्याकुञ्चनादौ ५७१ वेदाबेदाद्यतिदेशः। ७०३ ॥ षोडशे पञ्चमः ॥ यावत्पश्चक्रियत्वम् । ७१७ ५७२ अर्शश्छेदकस्य क्रिया । ७०४ | ५७८-८० सुप्तजागराणां स्वप्रदर्शन ५८७ देवोऽप्यलोके हस्ताद्याकुचना॥ षोडशे तृतीयः ॥ ५७८, संवृतादीनां स्वमदर्शन, दिभ्यो न प्रभुः। ७१७ ५७३ चतुर्थषष्ठाष्टमादिभ्यः परा वर्ष- स्वमानां सख्या तत्फलं च ॥ षोडशेऽटमः ॥ शतादिभ्यो निर्जरा। ७०५ ५७९, वीरदृष्टस्वामदशकं तत्फलं ५८८ रुचकेन्द्रोत्पातादिवर्णनम् । ७१९ ॥ षोडशे चतुर्थः ॥ च ५८० । ला षोडशे नवमः ॥ ५७४-७६ बाह्यपुद्गलाननादाय नागम ५८१ तद्भवमोक्षसूचकाः स्वप्नाः । ७१३ | ५८९ अवधेरतिदेशः। ७१९ नादि, शक्रता उत्क्षिप्त - ५८२ घ्राणसहगतपुद्गलानां वानम् । ७१३ | ॥षोडशे दशमः ॥ प्रश्नाः, संभ्रान्तिकवन्दनम् ॥ षोडशे षष्ठः ॥ | ५९० द्वीपकुमाराणामाहारोच्छ्वास - ५७४, महाशुक्रीयमहासामान |५८३ उपयोगपश्यत्तातिदेशः। ७१४ | समत्वादि, लेश्यातद्वदल्पबहुस्थी देवी, पुदलपरिणामे विवाद: ॥ पोडशे सप्तमः ॥ वादि, उदधिदिक्स्तनिताना ॥१२६॥ सुत्ताणि ~146 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत - सूत्रांक हवक्रमः॥ यहां भगवत्यंग - देखीए ॥१२७॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम मपि । ७१९ ॥ सप्तदशे द्वितीयः ॥ यस्य ६०७-८, वायोः ६०९-१०, ॥ षोडशे चतुर्दशः ॥ ५९९ शैलेश्यां न स्वयमेजना, द्रव्या एकेन्द्रियाणां ६११, नागसुवर्ण॥ षोडशं शतकम् ॥ घेजनास्वरूपम् । ७२६ विद्युदग्निकुमाराणां समाहार त्वादि ६१२-६१६ । ६००-१शरीरेन्द्रिययोगचलना ६००, ७७% उद्देशक (१७) सङ्ग्रहणी। ७२० ७३१ ॥ सप्तदशे सप्तदशः ॥ संवेगनिदादीनां (४९) प्रश५९१ उदायिभूतानन्दहस्तिराजगतिः, ५९२ तालफलपातादौ किया। ७२१ स्तता ६०१। ७२७ ॥ सप्तदशं शतकम् ॥ ५९३ शरीरेन्द्रिययोगेभ्यः क्रिया । ७२२ ॥ सप्तदशे तृतीयः ॥ ७८० उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी ७३१ ५९४ भावषट्कातिदेशः। ६०२-३ प्राणातिपातादिभिः क्रिया | ६१७ ७९७८08जीवसिद्धाहारकम॥ सप्तदशे प्रथमः ॥ ६०२, आत्मकृतं दुःखवेदना व्यसशिष्टिसंयतकषायज्ञान५९५ संयतादीनां धर्मादिस्थत्वम् । ७२३ योगोपयोगवेदशरीरपर्याप्तिभिः ५९६ एकवधाविरताबपि नैकान्तबा सप्तदशे चतुर्थः ॥ प्रथमाप्रथमत्वे चरमाचरमत्येच लता, बालादिस्वरूपम् । , ६०४ ईशानसुधर्मसभाधिकारः । ७२९ । ७९०८०७ ७ ३७ ५९७-९८ प्राणातिपातादौ औत्पत्या ॥ सप्तदशे प्रञ्चमः ॥ ॥ अष्टादशे प्रथमः ॥ १८-१॥ दौ उत्थानादौ च जीवात्मनो- ६०५-१६ पृथ्व्यादीनां पूर्व पश्चाद्धा उ- ६१८ कार्तिकश्रेष्ठ्यधिकारः, आदीरैक्यं ५९७, यावत्संसारं नारू- त्पादप्रकटनादि ६०५, सौधर्मतो प्तप्रदीप्तो लोक इत्यादि, मुनिसुपित्वम् ५९८ । ७२५ । रत्नप्रभादिषूत्पादः ६०६, अप्का- ___ व्रतस्थविरान्तिके प्रव्रज्या चतु सुत्ताणि ॥१२७|| ~147 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत श्री. हतकमा सूत्राक यहां भगवत्यंग सूत्रे देखीए ॥१२८|| दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम दशपूर्वाध्ययनं, शक्रेन्द्रता । ७३९ ।। ॥ अष्टादशे तृतीयः॥ ॥ अष्टादशे पञ्चमः॥ ॥ अष्टादशे द्वितीयः॥ ६२४-२६ प्राणातिपातादीनां जीवा- | ६३१ भ्रमरादीनां वर्णादिषु निश्चय६१९ माकन्दिकप्रश्ने कापोतलेश्यादि- जीवद्रव्यता,तत्परिभोगश्च केषा- व्यवहारी। ७४८ । पृथ्वीकायादीनां मानुष्यमुक्तिः, ञ्चित् ६२४, कषायातिदेशः, ना- | ६२२ परमाण्याद्यनन्ताणुकान्तसूक्ष्म - शेषश्रमणाथद्धानादि प्राग्वत् । ७४० रकपृश्व्यादिपञ्चेन्द्रियतियसि- यादरपरिणतस्कन्धवर्णादि । ७४९ | १२० बरमनिर्जरापुद्रलानां लोकव्यादस्त्र्यादीनां कृतयुग्मादिविचा ॥ अष्टादशे षष्ठः ॥ पकत्वं, संश्युपयुक्तमनुष्याणां र ६२५, परापरे अन्धकवृष्ण ६३३ केवली यक्षावेशेनापि न मृवैमानिकानां च ज्ञानपूर्वमपित- यः ६२३ । पामिश्रभाषकः। ७४९ दाहारता । ७४२ ॥ अष्टादशे चतुर्थः ॥ | ६३४ नारकादीनां कर्मशरीरोपकरणो६२१ द्रव्ये प्रयोगविश्वसाबन्धी, भा- ६२७ असुरादेविभूषिताविभूषितशरी- पधिपरिग्रहसदसत्प्रणिधानानि ।७५० | वे मूलप्रत्युत्तरप्रकृतिबन्धौ । ७४३ | रयोः प्रतिरूपाप्रतिरूपत्वे । ७४६ | ५३५-३९ कालोदायिकादयोऽन्यती६२२ कृतकरिष्यमाणकर्मनानात्वम्।। |६२८ मायिमिथ्याष्टिनारकादीनां म- र्थिकाः, मकश्रावकः, अस्ति६२३ गृहीताहारपुद्गलानामसख्येय हाकर्मत्वादि । ७४७ कायदर्शनज्ञानपृच्छायां वायु - भाग आहारोऽनन्तभागो निर्ज- ६२९-३० स्थितभवायुषोर्वेदनमन्य - गन्धपगलारण्यग्निसमुद्रपार - रा न च तत्रासनादि, माक स्य पुरस्कारः ६२९, मायिनो देवलोकरूपैः प्रत्यवस्थान, वीरन्दिकप्रक्षाः । बक्रबैक्रियम् ६३० । ७४७ । प्रशंसा ६३५, एकजीवानेकवैकि ॥१२॥ सुत्ताणि ~148 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- "भगवती । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री भगवत्यंग सूत्रे ॥ १२९ ॥ वयुद्धं ६३६, देवानां तृणाद्यपि प्रहरणमसुराणां तु वैक्रियं ६३७, रुचकवरं यावदनुपर्यटनं पञ्चाङ्गमनं ६३८, पञ्चशत्या पञ्चशतसहया च देवानां कमशक्षयः६३९ । ७५४ ॥ अष्टादशे सप्तमः ॥ ६४० समितस्य कुकुटादिव्यापत्ता - वीर्यापथिकी । ६४१-४२ समितस्यैकान्तपण्डितत्वं, ६४१, परमावधिकेवलिनोः पर माणुज्ञानदर्शने समयविशिष्टे न ६४२ । ७५४ ७५६ ॥ अष्टादशेऽष्टमः ॥ ६४३ भव्यद्रव्यदेवतिर्यङ्मनुष्यना - रकाणां स्थितिः । ॥ अष्टादशे नवमः ॥ ७५७ ६४४ भावितात्मनोऽसिधारादिना न छेदादिः । ७५७ ६४५ सूक्ष्मानन्ताणुकान्तो वातेन स्पृष्टः, न तु तेन सः, वस्तिवायुवत् । ७५७ ६४६ पृथ्व्यादेरधः कालादिगुणवत्पु ला अन्योऽन्यसमुदायतया । ७५८ ६४७ सोमिलाधिकारः, व्याकरणे वमदनप्रतिज्ञा, यात्रायापनीयाव्याबाधप्राशुकविहार सर्षपमापकु - ७६० लत्थप्रन्नाः । १४८ एकाक्षयाव्ययादिप्रश्नाः, आवकधर्माङ्गीकारः । ७६१ ॥ अष्टादशे दशमः ॥ ॥ अष्टादशं शतकम् ॥ ८१७ उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी । ७६९ ६४९ लेश्यातिदेशः ६४९ 35 ~ 149~ ॥ एकोनविंशतौ प्रथमः ॥ | ६५० लेश्यागर्भातिदेशः ६५० । ॥ एकोनविंशे द्वितीयः ॥ ६५१ पृथ्व्यादीनां प्रत्येकता, लेश्या ७६२ याहारसादिप्राणातिपाता - युपाख्यानोत्पत्तिस्थितिसमुद् - ७६४ घाताः । ६५२ सूक्ष्मवादरपर्याप्तापर्यात जघन्योकृष्टावगाहना (४४ ) ऽल्पबहुत्वम् । ६५३ पृथ्व्यादीनां सर्व सूक्ष्मवाद्रमरुपणा । ( अनन्तसूक्ष्मवनस्पतिप्रमितः सूक्ष्मवायुः शेषेष्वसस्यतागुणत्वम् ) । ६५४ पृथ्व्यादिकायस्वल्पत्वे वेदनायां च वर्णकपेशिकादि । ७६७ ७६६ ७६५ बृहत्क्रमः । ॥ १२९॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम । एकोनविंशे तृतीयः ॥ तयः । ७७२ | ६६६ प्राणातिपातादीनामात्मनि परी हत्क्रममा भगवत्यंग-IN६५५ महापाधवक्रियावेदनानिर्जराणां । ॥ एकोनविंशे अष्टमः ॥ णामः । ७७७ भङ्गाः । ७६८ | ६६१८४-८५० व्यक्षेत्रकालभव- ६६७ गर्भव्युत्क्रमवर्णाद्यतिदेशः। ७७७ ॥ एकोनविंशे चतुर्थः ॥ भावकरणानि, द्रव्ये शरीरा ॥ विंशती तृतीयः ।। ॥१३०॥ ६५६ परमा नारकाद्या महाबेदनाः, दे दीनि। |६६८ इन्द्रियोपचयाद्यतिदेशः। ७७८ वाश्वरमाः । ७६९ । ॥ एकोनविंशतौ नवमः ॥ ॥विंशतौ चतुर्थः ॥ ६५७ निदानिदावेदनाऽतिदेशः। ६६२ व्यन्तरसमाहारत्वादि। " |६६९ परमाण्वादिवर्णगन्धरसरस्पर्श॥ एकोनविंशे पञ्चमः ॥ ॥ एकोनविंशे दशमः ॥ भङ्गाः । ७८५ ६५८ द्वीपसमुद्रसंस्थानाद्यतिदेशः । ७७० ॥ एकोनविंशतितमं शतकम् ॥ ६७०-७१ बादरपरिणतेर्भङ्गाः ६७०, ॥ एकोनविंशे षष्ठः ॥ ८६ उदेशक (१०) सङ्ग्रहणी। ७७३ द्रव्यादिपरमाणुस्वरूपम् ६७१।७८८ ६५९ आवासानां शाश्वताशाश्वतत्वे, | ६६३वीन्द्रियादीनां प्रत्येकत्वादि । ७७५ ॥विंशतौ पञ्चमः ॥ ॥ एकोनविंशे सप्तमः ॥ ॥ विंशती प्रथमः॥ ६७२-७४ रत्नप्रभादिषु पृथ्व्याधु६६०८२-८३० एकेन्द्रियादिशाना- ६६४ अधोलोकादीनामवगाहभागः ७७५ त्पातः । ७९० वरणाचीदारिकादिसत्यादिको - ३७७ धर्माधर्माकाशजीवपुद्गलप . ॥विंशती षष्ठः । वाचनान्तराधादिकालादिसंस्थानसज्ञाले - र्यायाः। ७७७ भिप्रायेणाष्टमः ८॥ श्यादृष्टिज्ञानयोगोपयोगनिवृ - ६७५ जीवानन्तरपरम्परबन्धप्ररूप - Id॥१३०॥ | सुत्ताणि ~150 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक WEEGET यहां भगवत्यंग देखीए ॥१३॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम णा, कर्मवेदशरीरलेश्याज्ञानत- ६८६ सोपकमेतरायष्कनिरूपणम् । ७९५ | ६९२ तालनिम्बास्थिकवृन्ताकीधीयद्विषयाणामपि। ७६१ ६८७ आत्मपरोपक्रमनिरुपक्रमादिभि- कस्फल्यादीनां वर्गाः (६)। ८०४ ॥ विंशतौ सप्तमः ॥ रुत्पत्युदर्तने, ७९८ । ॥ द्वाविंशतितमं शतकम् ।। ६७६-८३ कर्माकर्मभूमितत्कालाः, भ ६८८ कत्यादिषदकादिद्वादशकादि- ८० वर्ग (५-५०) संग्रहणी । ८०४ रतादिजिनस्वरूप ६७७, जिना चतुरशीत्यादिसश्चितविचारः । ८०० ६९३ आलुकलोहियायप्राथमिकमासन्तरे कालिकसूत्रविच्छेदः ६७८, ॥ विंशती दशमः॥ पादिवर्गाः । ८०५ भरते पूर्वधरकालः, वीरतीर्थ। विंशतितमं शतकम् ॥ ॥५-५० ॥ कालः ६८०, उत्सर्पिणीचरम- ८७ वर्ग (८) सङ्ग्रहणी ८०० ॥ त्रयोविंशतितमं शतकम् ॥ जिनतीर्थकालः ६८१, तीर्थ- ६८९-९१ शाल्यादीनां मूलायुत्पत्त्यादि, ९०० ९२० उपपातपरिमाणसंहननोस्वरूपं ६८२, प्रवचनं द्वाद६८९ दशोद्देशाः । प्रथमो वर्गः चत्वसंस्थानलेश्यादृष्टिज्ञानाशा - शानी, उग्रादीनां सिद्धिः, देव ६९०, कलाया २ तसी ३ वंशे ४- नयोगोपयोगसञ्झाकषायेन्द्रियलोकातिदेशश्च ६८३ । ७९३ क्षु५ सेटिका ६ भ्ररुह ७ तुल समुद्घातवेदनावेदायुरध्यवसा॥ विंशतौ अष्टम ॥ स्यादीनां ८ वर्गाः ६९१। ८०१-२ यानुबन्धकायसंवेधानां नारका६८४-८५ जपाचारणविद्याचारण ॥८० उद्देशाः ॥ दिषु (२४) विचारः । ८०५ स्वरूपम् । ॥ एकविंशतितमं शतकम् ॥ ६९४ गत्यागत्योः जघन्याजघन्योत्कृष्ट॥ विंशतौ नवमः ॥ ८0 (६) वर्गसमइणीगाथा । ८०३ । स्थितिभिर्गमकनवकं सर्वत्र, अ सुत्ताणि ॥१३॥ ~151 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) HA . प्रत हत्क्रम सूत्रांक भगवत्यंग यहां सूत्रे देखीए ॥१३२॥ मायां मनुष्योग८१४/७०५-८ " २४ वादशः ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सज्ञितिर्यपञ्चेन्द्रियाणामधि- धिकारः। ८२६ । ॥२४-२३ ॥ कारः। ८०९ | ७०३ द्वीन्द्रियादितिर्यग्भ्यः । ८३०/७१६ सौधर्मशानादिदेवोत्पत्यधिकारः। ८५२ ६९५ सजितिर्यक्रपञ्चेन्द्रियाधिकारः।८१२|७०४ मनुष्यदेवेभ्यः। ८३२ | ॥२४-२४ ॥ ६९६ शर्करादिषु पञ्चेन्द्रियतियंगधि ॥ चतुर्विशतितमं शतकम् ॥ कार।। ८१४ | ७०५-८ अप्लेजोवनस्पतीनामुत्पत्त्यधि-.. | ९३ उद्देशक (१२) समहणी । ८५२ ६९७-९८ रत्नप्रभायां मनुष्योत्पत्त्यधि- काराः। ॥ २४ षोडशः॥ ७१७ लेश्यातिदेशः । कारः ६९७, शर्करादिषु मनुष्यो , ७१८ सूक्ष्मैकेन्द्रियापर्याप्तादिजघन्यो७०९-२१ द्वित्रिचतुरिन्द्रियोत्पत्त्यधित्पत्त्यधिकार ६९८ । कारः १३४ स्कृष्टयोगाऽ (२८) ल्पबहुत्वम् । ८५४ || २४ प्रथमः ॥ ॥ २४ एकोनविंशतितमः ॥ ७१९ प्रथमसमयोत्पन्ननारकादीनां १९९ असुरोत्पत्त्यधिकारः । ८२१ | ७१२ पञ्चेन्द्रियतिर्यगुत्पत्त्यधिकारः । ८४२ | समविषमयोगिता। ८५४ ॥ २४ द्वितीयः ॥ ॥२४ विंशतितमः॥ ७२० पञ्चदशयोगजघन्योत्कृष्टाल्प - ७०० नागोत्पत्त्यधिकारः । ८२२ | ७१३ मनुष्योत्पत्त्यधिकारः । ८४६ बहुत्वम् । ॥ २४ तृतीयः ॥ ॥२४ एकविंशतितमः ।। ॥२५-२॥ | ७०१ सुवर्णाद्युत्पत्त्यधिकाराः। ८२३ | ७१४ व्यन्तरोत्पत्त्यधिकारः । ८४७ | ७२१ जीयाजीवद्रव्यसमा । ८५६ ॥ २४ एकादशः ॥ ॥ २४-२२ ॥ ७२२ औदारिकादिभिरजीवद्रव्याणाGI ७०२ पृथ्वीकायेषु पृथ्वीकायाद्युत्पत्त्य- |७१५ ज्योतिकोत्पत्त्यधिकारः । ८४८ । मेव परिभोगः । ॥१३२॥ सुत्ताणि ~152 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-५. "भगवती ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक ८७८1वकमा यहां देखीए भगवत्यंगसूत्रे ।१३३।। दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ७२३ एकप्रदेशे निर्वाधाते षड्दिक- दिगति (५.८) एकेन्द्रियादिजाति । दिसैजनिरेजदेशसईजत्याधिकारः | पुद्गलोपचयादि । ८५७ (६) पृथ्व्यादिकायादि (७) जीवपुद्ग- ७४०। | ७२४ स्थितास्थितपुङ्गलानामौदारिका- लादिसर्वपर्यायान्तायुर्यन्धकाना- | ७४९ परमाण्बादीनामवगाहस्थित्यादितया ग्रहणम् । मल्पबहुत्वातिदेशः ७३४-९४६८७२ दिभिरल्पबहुत्वम् । ८७९ | ॥२५ शतके २ उद्देशः॥ ॥ २५ शतके ३ उद्देशः ।। | ७४२ परमाणुसङ्ख्यातासङ्ख्यातान७२५ परिमण्डलादिसंस्थानषट्कद्र - |७३५ नारकादीनां धर्मास्तिकायतत्प्र न्ताणुकानामेकादिसमयस्थित्य - व्यप्रदेशात्पबहुत्वम् । ८५९ | देशावगाहादीनां रानप्रभादीनां वगाहगुणानां इव्यप्रदेशोभया७२६ परिमण्डलाधिकारः । ८६० च कृतयुग्मादिविचारः । ८७४ | थैरल्पबहुत्वम् । ८८१ ७२७ वृत्तादिसंस्थानाधिकारः । ८६२ | ७२६ जीवनारकादिसिद्धानामेकत्वप्रथः । ७४३-४४ परमाण्यादीनां द्रव्यप्रदेशा७२८ संस्थानेषु कृतयुग्माद्यधिकारः । ८६६ । क्त्वाभ्यां विचारः । ८७५ वगाहनादिषु कृतयुग्मत्वादि ७२९-३४० लोकाकाशश्रेण्याद्यधि- ७३७ जीवादीनामवगाहस्थितिभ्यां ७४३, परमाण्वादेः सार्द्धत्वादि कारः ७२९, सादिसपर्यवसिविचारः। ७४४। तादिश्रेण्यधिकारः ७३०, ऋज्वा- ७३८ जीवे मतिज्ञानादिपर्यायेषु कृत- | ७४५-४६ परमाणुद्वयणुकादेः सेजयतादिश्रेण्यधिकारः ७३१, न- युग्मादिविचारः। ८७७ निरेजयोः कालान्तरमल्पबहुत्वं रकावासायधिकारातिदेश:७३२, ७३९-४० शरीराधिकारातिदेशः ७३९, द्रव्यप्रदेशोभयाथैधाल्पबहुत्वं, गणिपिटकातिदेशः ७३३, नारक. | जीवसिजशैलेशीप्रतिपन्ननारका- | देशैजसधैजनिरेजकालाद्यपि ७४५, S सुत्ताणि ॥१३३॥ ~1537 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- "भगवती । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री भगवत्यंग - सूत्रे ॥१३४॥ धर्मास्तिकायादिमध्यप्रदेशाः, जीवमध्याष्टप्रदेशावगाहा ७४६ ८८७ ॥। २५ शतके ५ उद्देशः ॥ ७४७-४९ पर्यवातिदेशः ७४७, आवलिकादितीताद्धान्तकालसमयाः ७४८, अनागतातीत सर्वाद्धानामपबहुत्वम् । ७४९ ७५०-५१ निगोदाधिकारातिदेशः ७५०, पविधनामातिदेशः ७५१ । ८९० ॥। २५ शतके ५ उद्देशः ॥ - ९.७३ प्रज्ञापनादि ( ३६ ) द्वार गाथाः ३ । ८८९ ८९० ७५२ पुलाकादीनां (५) खरूपं वेदः । ८९३ ७५३-५६ वीतरागत्वादि ७५३, स्थि तास्थितजिनकल्पादि ७५४, सामायिकादि ७५५, प्रतिसेवा ७५६ । ८९४ ७५७-५८ ज्ञानानि ७५७, ७५८। ८९५ ७५९-६२ तीर्थातीर्थादि, स्वान्यगृहिलिङ्गानि औदारिकादिशरीराणि, कभूम्यादि । ८९६ ७६३ अवसर्पिण्युत्सर्पिणीतद्भिनका लसुषमसुषमादितत्प्रतिभागाः । ८९७ ७६४ भवनवास्यादीन्द्रत्यादिगतिः । ८९८ ७६५ संयम स्थानानि तदल्पबहुत्थम् । ८९८ ७६६-६९ चारित्रपर्यायाः, स्वपरस्था नाभ्यां समुदायेन चाल्पबहुत्वं, सयोगित्वादि, साकारोपयोगादि सकपायत्वादि । ९०१ ६७०-७१ लेश्यावर्द्धमानहीयमानाव .स्थितपरीणामास्तरिस्थतिः । ९०३ ७७२-७४ मूलप्रकृतीनां बन्धो वेदनमुदीरणं च । ~ 154 ~ ९०४ ७७५ ७७ त्यागोपसंपत्ती, सम्झानो सम्शोपयुक्तता आहारकानाहारकत्ये । ७७८-७९ भवग्रहणानि, एकलानाभविकाकर्षाः । ७८०-८१ स्थितिकालोऽन्तरं । ७८२-८५ समुद्घाताः, संस्थातभागादिक्षेत्रस्पर्शने, भावः । ९०८ ७८६ प्रतिपद्यमानप्रतिपन्नजघन्योत्कृएसइया । ९०९ ॥ २५ शतके ६ उद्देशः ॥ ७८७ । ९८-१०२७ सामायिक (५)संयतादीनां स्वरूपम् । ९१० ७८८-८९ वेदरागकल्पाः ७८८, पुलाकादिप्रति सेवाज्ञानतीर्थलिङ्गशरीरकर्मभूमयः ७८९ । ९११ ७९०-९३ उत्सर्पिण्यादिकालः । ७९.०, २०५ ९०६ ९०७ बृहत्क्रमः । ॥१३४॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत हत्क्रममा सूत्रांक यहां श्रीभगवत्यंग सूत्रे देखीए ॥१३५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम गत्यायरादि ७९.१, संयमस्था- ८०३-५ । १०७ सप्रमेदं द्वादशविधं | ८१९, रएिज्ञानसशावेदकषायोनानि ७९२, चारित्रपर्यायस्वपर तपः ८०३,१०७७ ध्यानाधिकारः पयोगेषु ८१२। ९३० स्थानसमुदायाल्पबहुत्वं योगो ८०४, व्युत्सर्गादितपः ८०५ । ९२७८१३-१४ नारकादिषु (२४) वन्ध्यादिपयोगकषायलेश्याः ७९३। ९१४ ॥२५ शतके ७ उद्देशः ॥ विचारः ८१३, जीवादिषु ज्ञाना७९४ बर्द्धमानादिपरीणामतत्कालौ। , ८०६-१० नारकादीनामुत्पादरीतिः, वरणीयादि (४) बन्ध्यादिवि चारः ८१४, ९३२ ७९५-९७ यन्धो वेदनमुदीरणं ७९५. शीघ्रगतिः, परभवायुःकरणं, | त्यागोपसंपत्तिः ७९६, सज्ञा- गत्युत्पादकारणानि ८०६, ९२८ | ८१५ जीवादिष्वायुर्वन्ध्यादिविचारः, ऽऽहारभवग्रहणानि ७९७ । ९१६ ॥२५ शतके ८ उद्देशः॥ नारकादीनामायुर्वन्ध्यादिवि-.... चारः। ७९८ आकर्षाः । भव्याभव्यसम्यग्मिथ्याष्टिना ॥२६ शतके १ उद्देशः॥ ७९९ स्थितिरन्तरं समुद्घाताः क्षेत्र रकादीनाम ८०७-१०। ९२८ ८८१६ अनन्तरोत्पन्ननारकादीनां पापस्पर्शना भावः, प्रतिपद्यमानादि- ॥२५ शतके ९-१०-११-१२ उद्देशाः॥ बन्ध्यादिविचारः। ९३५ सङ्ख्या , तदल्पबहुत्वे । ९१९ ॥पञ्चविंशतितमं शतम् ॥ ॥ २६ शतके २ उद्देशः ॥ ८०० ११०३-५७ प्रतिसेवा(१०)ऽऽलो- १०८७ जीवादि (११) द्वारसंग्रहणी। ८१७-१८ परम्परोत्पन्ननारकादीनाम् - चकगुणा (१० दायकगुणाः (4)९२० | ८११-१२ जीवे पापकर्मणि बन्ध्यादि ८१७, अनन्तरपरम्परावगाढा८०१-२०६६, सामाचार्यः ८०१, प्राय- (४) विचारः, शुक्लादिलेश्या हारपर्याप्तचरमाचरमनारकादीनां श्चित्तानि ८०२। ९२० लेश्ययोः कृष्णशुक्लपाक्षिकयोः पापबन्ध्यादिविचारः ८१८ । ९३८ ॥१३५॥ सुत्ताणि ~1550 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हत्क्रममा यहां श्रीभगवत्यंग-IN सूत्रे देखीए ॥१३६| दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ॥ २६ शतके ३-११ उद्देशाः ॥ युर्वन्धविचार, केवलसलेझ्या- ८४३-४४ क्षुद्रकृतयुग्मादिनारकाणापद्विशतितमं शतम् ॥ दिक्रियावाद्यादिषु भव्याभव्य · । मुद्वर्तना, कृष्णलेश्यादिविशि त्वादिविचारः। ९४७ - ८१६ करिंसुशतम् । ष्टानामपि । ९३८ । ॥ २७ शतके ११ उद्देशाः ॥ ॥३० शतके १ उद्देशः॥ । ॥ ३२ शतके २८ उद्देशाः ॥ |८२७-२९ अनन्तरोत्पन्नादिनारका- ८२०-२२ समजिणिसुशतम्। । ९४० ॥ द्वात्रिंशत्तमं शतम् ॥ ॥२८ शतके ११ उद्देशाः॥ दीनां क्रियावादित्वादिविचारः।९४० ८४५-५० एकेन्द्रियाणां पृथ्वीकायानां ८२३-२४ समकप्रस्थापननिष्ठापनश ॥३० शतके ११॥ च मेदाः, कर्मप्रकृतयस्तयन्धो तम् । ९४२ ॥ त्रिंशत्तमं शतम् ।। वेदन (चतुर्दशमेदं) ४५,. ॥२९ शतके ११ उद्देशाः ॥ | ८३०-४२ क्षुल्लककृतयुग्मनारकाणा - अनन्तरोत्पन्नादिविशेषणानाम् ८२५ जीवलेश्यजीवादिषु नारकलेश्य- मुत्पत्त्यादि । ८३०, कृष्णनील ८४६-४८, प्रथममेकेन्द्रियशतं, नारकादिषु क्रियावाद्या दिविकापोतभव्यामव्यसम्यग्मिध्या- | कृष्णलेश्यादिविशिष्टानां ८४९चारः, केवलसलेश्यादिक्रिया दृष्टिकृष्णशुक्लपाक्षिकक्षुद्रकृत - | ५९ द्वादशाऽवान्तरशतानि ।। ९५४ वाद्यादीनामार्युबन्धविचारः । युग्मनारकोत्पत्त्यधिकारः ८३१-.. (क्रियावाद्यादिभेदाः) ९४५ ४२। ९५० ॥ त्रयस्त्रिंशत्तमं शतम् ।। ८२६ क्रियाबायादिनारकादिषु (२४) ॥३१ शतके २८ उद्देशाः॥ ८५१ पर्याप्तापर्याप्तसूक्ष्मबादरपृथ्थ्याकृष्णलेश्यादिक्रियावाद्यादिषु आ ॥ एकत्रिंशत्तमं शतम् ।। । दीनां रत्नप्रभादिपूर्वान्तादिषु स ॥१३६॥ सुत्ताणि ~156~ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- ५. “भगवती" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री भगवत्यंग - सूत्रे ॥१३७॥ ९५७ महत्योत्पादः (विग्रहाविन हाभ्यां श्रेणिभिध ) ८५२ अधः क्षेत्रलोकादिनाज्या बाह्यादिषु समवहत्योर्ध्वक्षेत्रादिनाच्या बाह्यभागादिषु पृथ्ध्यादीनां पृव्यादिवे एकादिविग्रहविचारः, पृथ्व्यादीनां स्थानोत्पादसमु - धाततुल्यस्थित्यादि । (पञ्चसामयिक्यपि गति: ) । ९६२ ८५३-५५ अनन्तरोत्पन्नवादरसूक्ष्मपृव्यादीनां स्थानप्रकृत्यादि ८५३, परम्परोत्पन्नादीनां कृष्णलेश्यादीनां ८५४, ८५५ । ॥ द्वादशैकेन्द्रियशतानि ॥ ९६४ ॥ चतुखिंशत्तमं शतम् ॥ ८५६ कृतयुग्मकृतयुग्मादि (१६) स्व ९६६ रूपम् । ८५७ तद्विशिष्ट केन्द्रियाद्युत्पादादीनि । ९६७ ।। ३५ शतके १ उद्देशाः ॥ ८५८-५९ प्रथमाप्रथमचरमाचरम-प्रथमाप्रथम प्रथमचरम-चरमचरम-चरभाचरम-समयकृतयुग्म कृतयुग्मैकेन्द्रियाद्युत्पत्यादि । ९६९ ८६० कृष्णलेश्यप्रथमसमयकृष्णले श्यादिभव्य कृष्णलेश्यादिभव्याभव्य कृतयुग्मकृतयुग्मै केन्द्रियायुत्पादादि । ॥ पञ्चत्रिंशत्तमं शतम् ॥ ८६१-६५ कृतयुग्मकृतयुग्मादिद्वित्रिचतुरिन्द्रियराज्यसङ्क्षिपञ्चेन्द्रि याणामुत्पत्तिः । ८६६ कृष्णलेश्यादिकृतयुग्म २ सशि ~ 157 ~ ९७० ९७३ पञ्चन्द्रियाणामुत्पत्तिः, एकविं शतिः सञ्चिमहायुग्मशतानि, एकाशीतिर्महायुग्मशतानि । ९७५ ॥। ४० शतानि ॥ कृतयुग्मनारकादीनां सान्तरनिर न्तरमुत्पादः, युगपद् द्वियुग्मता, आत्मयशोऽयशउपजीवनं स लेश्यालेश्यक्रिया क्रियसिद्धयादि, योजादीनां कृष्णलेश्यादिकृतयुग्मादीनां भव्यभव्यसम्यग्मिथ्यादृष्टिकृष्णशुक्लपाक्षिककृतयुमनारकादीनामुत्पत्त्यादि । ।। १९६ उद्देशाः ।। ॥ एकचत्वारिंशचमं शतम् ॥ ८६८ प्रदक्षिणावन्दनादियुक्तस्याङ्गी - ९७८ ९.७८ ८६७ कारः । बृहत्क्रमः ।। ॥१३७॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत _स्तुतिः । सूत्रांक यहां देखीए मगवत्यंग- ८६९-१०९४-१४७ भगवतीपदभा वादिमानं, समुद्ररूपेण सङ् - घस्य स्तुतिः, श्रुतदेवतास्तुतिः, योगविधिः, श्रुताधिष्ठाच्यादि ९८० ॥ प्रशस्तिः ॥ यशश्चन्द्रसाहाय्यात् जिनचन्द्रनियोगान् वृत्तिकृतिः, शोधका द्रोणाचार्याः, प्रथमादर्शलेखका विनयगणिप्रभृतयः, दायिकसुत माणिक्यप्रेरणया, ११२८ वर्षे । ९८१ ॥ इति भगवतीविषयानुक्रमः॥ ॥१३८।। दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~158~ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- ६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) ज्ञाताधर्मकथायाः विषयानुक्रमः सूत्रागाथाः सूत्राणि १५६ मङ्गलादि ॥ १ चम्पावर्णनातिदेशः (वर्णनम् ) । १२ पूर्णभद्रचेत्यातिदेशः (वर्णनम् ) । १३ कोणिक नृपवर्णनातिदेशः (वर्णनम् ) । ४ सुधर्मगणभृद्वर्णनम् । १ २ ३ ७ ५, १-२ पर्यनिर्गमादि, जम्बूटच्छा उपोद्घातः, उत्क्षिप्तज्ञातादि (१९) नामानि १०२ । १० ६-७ नन्दावर्णनातिदेशः (वर्णनम् ) ६, अभयकुमारवर्णनम् ७ । १२ ८-९ धारिणीवर्णनातिदेशः ( वर्ण ~ 159~ १९४ नम् ) ८, वास गृहवर्णनं, गजस्वनः, निवेदनं, फलपृच्छा च ९। १७ १०-११ उपबृंहणा १०, स्वप्रप्रतीच्छा, धार्मिककथाभिः स्वप्नजागरिका ११।१८ १२ । ३ श्रेणिकस्य स्नानं, भद्रासन रचनं, स्वमपाठकाद्वानं, चतुर्द ॥ १३८ ॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [ अंगसूत्र-4. "ज्ञाताधर्मकथा' | पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री भगवत्यंग सूत्रे ॥१३९॥ शादिस्वनफलकथनं, ३ राश्यै निवेदनं वासगृहागमनम् । १३ मेघदोहदः । १४-१९ दोहदापूर्त्ती खेदः, दासचेटीनामग्रे मौनं श्रेणिकाय कथनं, श्रेणिकोक्तिष्वपि मौनं, शपथशापनं, दोहदकथनं दोहदपूरणप्रतिशा १४, अभयकुमारागमनं, अनादरादि, अञ्जलीकरणं, कारणपृच्छा, दोहदपूरणप्रतिज्ञा १५, स्वगृहे सिंहासने उपवेशनं, पूर्वसङ्गतिकदेवाराधनायाऽष्टमपौषधः, देवस्यासनचलनं स्नेहेनागमनं १६, कृत्याच्ञा, दोहदनिरूपणं, वैभारे मेघः, नगरश्टङ्गारः सेचनके धारिण्या आरोहः, आरामादिषु भ्रमणेन २४ २८ दोददसंपूर्णता १७, देवसत्कारः, मेघोपसंहारः १८, गर्भपोषणम् १९ । ३६ २०-२४ मेघस्य जन्म, बर्दापन, कुलमर्यादा, मित्रज्ञात्यादिभोजनादि, नामस्थापनं, बालपालनं, द्वाससतिः कलाः २० कलाचार्यसत्कारादि २१, मेघकुमाराय प्रा सादः २२, सदाया अष्ट कन्याः २३, श्रीवीरागमादि २४ । २५ मेघस्य निर्गमः, पञ्चविधोऽभि गमः, धर्मकथा । २६ गृहागमनं, धर्माकर्णन निवेदनं, उपबृंहा, दीक्षानुमतियाच्या मातुः शोकः । २७ अनुकूलप्रतिकूलैर्निरोधः समा धानं च । 2 ४६ 160~ મુદ્ ४८ ५२ २८ राज्याभिषेकः कुत्रिकापणाद्रजोहरणायानयनं काश्यपाहानं, अलङ्कारः, शिविका, धात्र्याचारोहः, शिविकाया वहनं, गुणशीले आगमः । *** अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं २९ मेघस्यार्पण, मातृदत्ताशीः । ३०-३१ आदीप्तो लोक इत्यादिकथ नेन प्रवज्यायाच्या प्रवज्या, साधुकर्त्तव्योपदेशः ३०, संस्तारकरेणुभिरुद्वेगः, वीरपार्श्वे आ गमनम् ३१ । ३२ मेघाभिप्रायनिवेदनं, वैताढ्यगिरौ सुमेरुप्रभहस्तिनो वर्णनं, क्रीडा, चनवदर्शनं, पङ्कमज्जनं, बिमध्यगिरी हस्ती, दावानलं दृष्ट्वा जातिस्मरणं, मेरुप्रभ इति नाम, ५९ ६० ६२ बृहत्क्रमः ।। ॥१३९॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां भगवत्यंग सूत्र देखीए ॥१४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम मण्डलकरणं, ज्येष्ठामूले वन- दवः, शशकानुप्रवेशः, प्राणानुकम्पनया संसारपरीत्तिकरणम् मनुष्यायुर्वन्धः, शान्तेऽग्नौ पातः, मेघतया जन्म । ३३ जातिस्मृतिः, अक्षीणि मुक्त्वा शरीरव्युत्सर्जनं, एकादशाङ्मयध्ययनम्। ७२ ३४ द्वादश प्रतिमाः। ७४ ३५-३६ मेघशरीरवर्णनं, अनशनं, कालः, कायोत्सर्गादि ३५, विजयविमाने उत्पत्तिः ३६। ७७ ॥ उत्क्षिप्तज्ञाताध्ययनम् ॥ १॥ ३७ जीर्णोद्यानमालुकाकच्छवर्णनम्। ७९ ३८-४० धन्यमद्रासार्थवाहीवर्णनं ३८, पन्थकदासधन्यवर्णनं ३८, । क्षः, श्रेष्यादिबाह्याभ्यन्तरपर्षद वृहत्क्रममा विजयतस्करवर्णनम् ४०। ८१ भ्युत्थानादि. भद्रामीनं, संवि४१-४२ नागप्रतिमादिपूजनोपया - भागकारणकथनं, अभ्युत्थानाचने ४१, गर्भो दोहदपूरणं, लिङ्गनादि, विजयस्य नरकगजन्मदेवदत्तनामस्थापनादि४२। ८३ मनं, लुब्धसाधुर्विजयतस्करसमः । ८९ ४३-४४ देवदत्तस्थापहारो मालुका ४८-४९ धर्मघोषागमनं, धन्यदीक्षाकच्छप्रवेशः ४३, धन्यभद्रा दि ४८, ज्ञानाद्यर्थमाहारादि, शोकः, नगरगुप्तिककथनं, दार इहार्चनादि मोक्षश्चामुत्र ४९ । ९० कशरीरप्राप्तिः ४४। ८६ ४५-४६ तस्करशिक्षा, देवदत्तमृत ॥ द्वितीयं सङ्घाटकज्ञातम् ॥ ककार्य २४५, सार्थवाहस्य ह ५० चम्पादिजिनदत्तसागरदत्तपुत्रडिबन्धः, भोजनपिटकानयनं, ___ वर्णनम् । विजयतस्करयाचनं, प्रतिषेधः, ५१-५२ मित्रप्रतिज्ञा ५१, देवदउच्चारबाधा, सहानागमनं, सं- । त्तागणिकावर्णनं, मित्रागमनं, विभागप्रतिज्ञानम् ४६। ८८ | सुभूमिभागोयाने मजनादि ५२॥ ९३ | ४७ भद्रारोषः, मित्राद्यर्थसारेण मो- | ५३-५६ उद्यानानुभवः ५३, मयूर्य IP॥१४॥ सुत्ताणि ... अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं ~161 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक दृहतकमा यहां भगवत्यंग-| देखीए ॥१४॥ ॐ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ण्डकग्रहणं ५४, शङ्कादेरुद्धर्त्तनादि, तद्वत्प्रवचने शङ्कितः,५५, जिनदत्तपुत्रस्य मयूरपोतकनिप्पत्यादिः, प्रवचने निःशङ्कितस्योपनयः ५६ । ९६ ॥ तृतीयमण्डकज्ञातम् ॥ ५७ वाराणसीमृतगङ्गातीरहदे पाप शृगालवर्णनं, दान्तादान्तकूर्मयोः सोपनययोर्वर्णनम् । ९९ ॥४ कूर्मज्ञातम् ॥ ५८ द्वारिकारैवतकपर्वतनन्दनवनसु रप्रिययक्षायतनकृष्णवर्णनम् । १०० ५९ स्थापत्यापुत्रनेमिसमवसरण को मुदीभेरीताडननेमिवन्दनानि । १०१ ६० स्थापत्यापुत्रवैराग्यनिरुपायानु मतिकृष्णप्राभृतस्वयंनिष्कमण सत्कारकरणप्रतिशा स्थापत्यापुब्रदीक्षानिरोधकामभोगदानदुरतिक्रमणीयकर्मक्षयप्रयोजनकथनं, परप्रवज्योत्साहनोद्घोषणानिष्कमणच्छत्रातिछत्रविद्याधरचारणदर्शनमातृशिक्षाप्रव्रज्या - सहस्रपरिवारबहिर्विहाराः । १०४ ६१-६२ सेलकपुरं, समूमिभागमु द्यानं, सेलको राजा मन्त्रिपच्चशती, सर्वेषां श्रावकत्व, सौगन्धिकीनगरी, नीलाशोकमु - द्यान, सुदर्शनो नगरश्रेष्ठी, शुकः परिवाद, शौचमूलध - मनिरूपणं, सुदर्शनस्याङ्गीकारः, स्थापत्यापुत्रागमनं, विनयमूलधर्मप्ररूपणा, सुदर्शनप्रश्नोत्तर, रुधिरलिप्तरुधिरक्षालनदृष्टान्त न प्रतिबोधः, श्रावकत्वं, शुकस्यानादरः, शुकेन सह स्थापत्यापुत्रान्तिके गमनं, यात्रायापनीयादिप्रश्नोत्तराणि, धर्मकथा, परिवाजकसहस्त्रेण दीक्षा, पुण्डरीके मोक्षः शुकस्य, ६१, से लकदीक्षा, पुण्डरीके सिद्धिः६२।११० ६३-६७ सेलकस्य रोगोद्भवः, म पदककृता चिकित्सायाच्या, यानशालागमनं, विकटेन रोगोपशान्तिः, सेलकस्य पार्श्वस्थता ६३, पन्थकं स्थापयित्वा शेषाणां विहारः ६४, चातुर्मासिकक्षा - मणं प्रतिबोधः, विहार, ५ उपनया, शेषानगारोपगमनं ६६ सेलकप्रमुखाणां पुण्डरीके निवृतिः ६७। ११३ सुत्ताणि ॥१४॥ ... अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं ~162 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ _ [ अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत * सूत्रांक बहतक्रममा यहां - देखीए - दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम श्री ॥ ५ सेलकज्ञातम् ।। भगवत्यंग-NI ६८ मृत्तिकातल्लेपापगमदृष्टान्तेन जी वानां गुरुलघुत्वम् । ॥ ६ तुम्बकज्ञातम् ॥ ॥१४२॥ ६९ राजगृहे धन्यभद्रयोरुज्झिताद्याः सुताः, कुटुम्बाधारस्थापनविचारः, मित्रादिमेलनभोजने, पञ्चशास्यर्पण, उज्झनभक्षणरक्षणवपनानि, कुलं निमन्त्र्य पुनर्याच्या, शपथेन यथार्थस्वरुपाख्यानं, यथाई कार्यार्पण शेषाणां, रोहिण्याः कुलाधिपत्वं, पञ्चमहाव्रत्योपनयः । १२० । ||७ रोहिणीज्ञातम् ।। |७०,४-६७ विदेहे निषधस्योत्त - रस्यां शीतोदाया दक्षिणस्यां सलिलावत्यां बीतशोका नगरी, इन्द्रकुम्भोद्यान, वलधारिण्योमहाबलः पुत्रः, सदायकमलश्री. प्रमुखपश्चशतपत्नीपाणिग्रहणं, अचलाद्या बालवयस्याः, सर्वेषां दीक्षा, समानतपःकरणप्रतिज्ञा, महाबलेन अहंदादिस्थानकैस्तीर्थकृत्पदस्य मायया स्त्रीत्वस्य चार्जनं, सर्वेषां प्रतिमा, सिंहनिकीडितद्वयं, चारुपर्वतेऽनशनं, विजये देवत्वम् । ७७ १२४ ७१ प्रतिबुद्धिचन्द्रच्छायशङ्करुक्मि दीनशत्रुजितशत्रूणां जन्म, मिथिलायां कुम्भकराझ्याः प्रभावत्याः कुक्षी महाबलस्याव - तारा, माल्यदोहदपूत्तिः, - जन्म। ७२-७३, ७०-८७ जन्ममहिमाद्यतिदेशः, मल्लीशरीरवर्णनं ७२७-८ प्रतिबुद्धयादिबोधाय कनकप्रतिमायां प्रत्यहं कबलक्षेपः ७३| १३० ७४ संवत्सरप्रतिलेखकश्रीदामगण्डे नप्रतिबुद्ध्यागमनम् । १३२ ७५-७६, ७-८ अ. अर्हन्नकस्य लवणे गमन, योजनशतावगाहनं पिशाचागमनं, साकारप्रत्या - ख्यानं, अनेकधोपसर्गाः, शकेन्द्रप्रशंसाकथनं, कुण्डलयुगलापं] ७५, शकटेन मिथिलायां गमनं, कुण्डलपरिधान मल्ल्याः , उच्छुल्कीकरणं, गम्भीरपत्तने गमनं, चम्पायां चन्द्रच्छायाय कुण्डलयुगलार्पणं, रूपाश्चर्येण - - सुत्ताणि ॥१४२॥ ... अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं ~163 Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [ अंगसूत्र-4. "माताधर्मकथा' । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) श्री भगवत्यंग - सूत्रे ॥१४३॥ चन्द्रच्छायागमनम् ७-८. ७६ । १४० ७७-७८ कुणालादेशे श्रावस्ती, सुबहुपुत्री चातुर्मासिक मज्जनकेन रुक्म्यागमनं ७७, वाणारस्यां शङ्खनुपः, कुण्डलसन्ध्यघटनेन सुवर्णकार श्रेणेर्निर्विषयता, शङ्खस्याने मल्लीस्वरूपकथनं शङ्खागमनम् । ७८ । ७९ हस्तिनागपुरे ऽदीनशत्रु, मलदत्तसभाचित्रणं, महीरूपचित्रणं, कुमारस्य लज्जा, चित्रकराय रोपः स्वरूपकथनं निविषयाशा, महीचित्रदर्शनं, अ दीनशत्रोरागभनम् । ८०-८१, ९ काम्पीस्ये जितशत्रुः, १४२ १४४ चोक्षापरिव्राजिकाया निरुत्तरता दासीकृता हेलनाया:, जितशत्रोः पार्श्व गमनं, अवरोधगर्वः, कूपदर्दुरदृष्टान्तः, जितशत्रोरागमनं ८०, वृतपट्कावमाननं युगपद्यात्राग्रहणं कुम्भकपराजयः, मिथिलारोधः, मल्ल्यै चिन्ताकथनं सर्वेषामाह्नानं, प्रतिमादर्शनं, पराङ्मुखत्वमुपदेशः, जातिस्मरणं, सर्वेषां वैराग्यं, प्रतिगमनम् ८९ । ९० । ८२-८३ । १०-१५ इन्द्रागमनं वरवरिकाघोपणं, कुम्भककृता महानसशाला ८२-१०-११७ लोकान्तिकागमनं १२, तीर्थप्रवर्त्तनप्रार्थना, तीर्थकराभिषेकः, शक्रादीन्द्रागमनं अभिषेको वि १४८ ~ 164~ भूषा शिविका शक्रादिभिर्वहनं १३-१४, सिद्धान्नमस्कृत्य यारित्रप्रतिपत्तिः, मनः पर्यवज्ञानं, पाती परिवारः, राजकुमाराष्ट्रकदीक्षा १५, निष्क्रमणमहिमानन्तरं नन्दीश्वरेऽष्टाहिका, केवलज्ञानम् ८३ । १५३ ८४ देवासनचलनादि, जितशत्रवादीनामागमनं, प्रवज्या, मोक्षः, भिपप्रमुखगणधरभ्रमणादिवकम्यता, परिनिर्वाणमहिमाऽतिदेशः । ॥ इति मलिज्ञातम् ॥ ८५-८७ चम्पायां माकन्दी जिनपालितजिनरक्षितौ, एकादश लवण - यात्राः, पुनरनुशया गमनं ८५, ••• अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं १५५ बृहत्क्रमः। ॥१४३॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [ अंगसूत्र-4. "ज्ञाताधर्मकथा' | पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री भगवत्थंग सूत्रे ॥१४४॥ उपद्रवः, नौभङ्गः ८६, रत्नद्वीपः फलाहारः, नालिकेरतैलाभ्यङ्गः, देवतागमनं, भोगाः ८७ । १५९ ८८ । १६-२१ लवणशुद्धयै गमनं, पूर्वादिवनखण्डतऋतुवर्णनम् १६- २१, दक्षिणवनखण्डग मननिषेधः ८८ । ८९-९५ । २२-३१७ प्रासादादिष्वर तिः, दक्षिणवनखण्डे आघातनदर्शनं शूलायितकाकन्दिकाश्यवणिग्वृत्तान्तः, सेलकयक्षस्तारकः ८९, यक्षपार्श्वे गमनं, पूजा, प्रार्थना, दृढत्वप्रतिशा, वैक्रियं, चम्पाये गमनं ९०, देवताऽऽगमनं कुमारादर्शनं लवणे आग १६२ मनं विलापः २२-२९ जिनर क्षितस्य मोहः, शनैर्यक्षेणोत्सारितः, देव्या वलीकृतः ९१, कामभोगासक्तभ्रमणैरुपनयः ३०-३१ ९२ जिनपालितस्य दृढता, चम्पागमनं ९३, जिनरक्षिततान्तनिवेदनं ९४ प्रव्रज्या, सौधर्मे देवः, अनासक्तस्योपनयः । ॥ ९ माकन्दीज्ञातम् ॥ ९६ चन्द्रवृद्धिहानिदष्टान्तेन जीवदिहानिकथनम् । ॥ १० चन्द्रज्ञातम् ॥ ९७ द्वीपगवातेन दावद्रवा श्वान्यतीर्थकासहनादेशविराधक: समुद्रवातवत् श्रमणाद्यसहनाद्देशा १६९ ~ 165~ १७१ राधकः, उभयाभावात्सर्वचिराधकः, उभयभावात्सर्वाराधकः । १७३ ॥। ११ दावद्रवज्ञातम् ॥ ९८-९९ जितशत्रू राजा, धारिणी देवी, अदीनशत्रुर्युवराजः, सुबुद्धिरमात्यः परिखोदकवर्णनं ९८, भोजनस्य वर्णनं, सुबुद्धिकृतं पुनल स्वरूपवर्णनं नृपस्याश्रद्धानं, अववाहनिका, परिखोदकनिन्दा, तत्त्वाभिगमनविचारः, परिखोदकानयन संस्कारी, जितशत्रोरुपनयनं, स्थानपृच्छा यथार्थाख्यानं, प्रतीतिः, जिनभावश्रवणेच्छा, द्वादशवतग्रहणं, स्थविरागमनं, प्रवज्येच्छा, द्वादशवर्ष रोधः, उभयोर्दीक्षादि ९९ । १७७ ••• अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं बृहत्क्रमः ॥ ॥१४४॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [ अंगसूत्र-4. "ज्ञाताधर्मकथा' | पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) श्री ज्ञातधर्म कथासूत्रे ॥१४५॥ ॥ इति १२ उदकज्ञातम् ॥ १०० दर्दुरदेवागमः, नन्दस्य श्रावकत्वं, साध्वदर्शनादिना मिथ्यात्वं, ज्ये gogमभक्त पौषधः तृषाऽभि भवः, पुष्करिणीखननविचारः, राजाऽनुज्ञा, पुष्करिणीचनखण्डचित्रसभामहानसशालाचिकित्सेकशालाअलङ्कारिकसभाकरणं, प्र १८९ शंसा । १०१-२२षोडश रोगाः, उद्वलनादिभिरनुपशमः पुष्करिणीमूर्च्छया दर्दुरता, प्रशंसा, स्मरणाज्जातिस्मृतिः, पूर्वप्रतिपन्नव्रताङ्गीकार, षष्ठषष्ठाभिग्रहः, वन्दनाय गमनं श्रेणिकराजाश्वेनाक्रमणं, सर्ववधादिप्रत्याख्यानम् । १८४ १३ ॥ इति १३ दर्दुरज्ञातम् || १०२-५ तेतलिपुरं कनकरथो देवः, प आवती देवी, तेतलिरमात्यः, क लादो मूषिकारः, पोट्टिला पुत्री, अभ्यन्तरस्थानीयेन पुत्रीयाचना, सत्कार्य विसर्जनं गत्वा पोट्टि लादानं १०२, पुत्रव्यङ्गनं, अमात्याय कुमारार्पण, पोट्टिलाकृतं मृतदारिकादर्शन, कनकध्वजनामकरणं, १०३, अनिष्टया पोलिया दानादिकारणं १०४, सुव्रताऽऽऽऽगमनं, चूर्णयोगादिपृच्छा, धर्मकथा, श्राविकात्वम् १०५ । १०६-७ देवीभूतेनागमनस्य प्रतिज्ञानात्यज्याऽनुशा, देवत्वं १०६, ~166~ છૂટ नृपमरणं, नृपयाच्या रहस्यकथनं अभिषेकः, अमात्योपकारनिवेदनं, अर्धासनेनोपनिमंत्रणादि १०७ । १८९ १०८-१० अबोधान्नुपरुष्टताकरणं, बाह्याभ्यन्तरपर्षदोरनादरः, तालपुटादिनाऽप्यमरणं, प्रपातहस्तिनयादिदर्शनं प्रव्रज्याशरणाभिसन्धिः १०८, जातिस्मरणं, स्वयं महाव्रतारोपः, चतुर्दशपूर्वाभिसमागमः केवलं १०९, व्यन्तरकृतौ दुन्दुभिनादपुष्पवर्षों, कनकध्वजागमनं, द्वादश व्रतानि तेतलिसिद्धिः ११० । १९२ ॥ इति १४ तेतलिज्ञातम् ॥ १९१ चम्पा, धन्यः, ईशाने ऽहिच्छत्रा, बृहत्क्रमः।। ॥१४५॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [ अंगसूत्र-4. "ज्ञाताधर्मकथा' | पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) श्री ज्ञातधर्म कथासूत्रे ॥१४६॥ कनककेतुर्नृप, धन्यस्य साथै नाहिच्छत्रागमनायोद्घोषणादि, नन्दिफलमूलादिवर्जनोद्घोषणा, वर्जकानां जीवितं, अहिच्छत्रागमनं, चम्पाप्रत्यागमनं, स्थवि - पार्श्वे दीक्षादि । १९५ ॥ इति १५ नन्दिफलज्ञातम् ॥ ११२-१४ चम्पा, सुभूमिभागमुद्यानं, सोमसोमदत्तसोमभूतीनां नागश्रीभूतश्रीयशश्रियः, एकत्र भोजनादि, कटुकतुम्यकसंस्कारः ११२, धर्मघोषशिष्यधर्मरुचिप्रतिलाभनं, परिष्ठापनानुज्ञा, पि. पीलिकायधदर्शनाद् भक्षणं, अनशनं, भ्रमणैरन्वेषणं पूर्वगतोपयोगेन दाध्यवगमः, धर्मरुचेः सर्वार्थसिद्धे उत्पादः ११३, धर्म-घोषस्थविरजनकृतो नागधिया धिक्कारः, गृहान्निष्काशनं, पोडश रोगाः, षष्ठ्यात्मुपादः, मत्स्यादिषु भवेषु ११४ | ११५-१९ सुकुमालि कात्वनोत्पत्तिः ११५, सागरदत्तेन विवाहः ११६, गृहजामातृत्वाङ्गीकारेणविवाहः, अशुभाङ्गस्पर्शात्पलायनं ११७, सागरदत्तायोपालम्भः, द्र मकाय दत्ता, सोऽपि नष्टः ११८, गोपालिकाऽऽऽऽगमनं, निपेधेऽपि षष्ठेनातापना ११९ । २०५ १२०-२१ देवदत्तागोष्ठीकपुरुषक्रीडा २०० दर्शन, भोगनिदानं १२०, शारीरवकुशत्वं पृथग्विहारः, ई ~167~ शाने देवगणिकात्वम् । २०६ १२१ १२२-२५ काम्पील्ये द्रौपदी, स्वयंबरदानं कृष्णादिदशाराणां पाडुराजादीनां अङ्गराजादीनां शिशुपालादीनां दमदन्तादीनां धरादीनां सहदेवादीनां रुक्म्यादीनां कीचकादीनां शेषाणां चाहानाय दूतदशकं १२३, सर्वेपामागमनं, अशनप्रसन्नादिप्रेषणं, हस्तिस्कन्धेनोद्घोषणा, स्वयंवरागमनं १२४, जानजिनपूजादि १२५ | २११ १२६-३७ नृपवर्णनं, पाण्डववर्णनं १२६, शेषविसर्जनं, कल्याणकरणं १२७, नारदवर्णनं पाण्डवानामादरः, द्रौपया अनादरः १२८, द्वेषात्प बृहत्क्रमः ।। ॥१४६॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा' ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हत्क्रमः यहां श्रीज्ञातधर्मकथास्त्रे देखीए ॥१४७॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम मनाभाय कथनं, पूर्वसङ्गतिकेनानयनं, शोकेन षष्टषष्टकरण १२९, द्रौपद्यन्वेषणं, कुन्त्या द्वारिकागमनं, कृष्णस्यानयनप्रतिशा, नारदात्समाचारः, पूर्ववैताल्या गमनं सर्वेषां, सुस्थितदेवाराधनं, पद्मनाभाद्यनयनोक्तावपि मार्गयाचनं, दारुकसारधिप्रेषणं, अपमान, पाण्डवपराजयः, कृष्णधनुष्कारात्पद्मनाभवलक्षयः, नगरीरोधः, नरसिंहरूपेण नगरीभङ्ग, शरणागमन, भरताय प्रत्यागमनं १३०, कपिलवासुदेवेन सह शङ्गशब्देन मीलनं, पद्मनाभस्य निर्विषयता १३१, गायां नावोऽप्रेषण, कृष्णस्य स्वयमुत्तरण, पाण्डवानां निर्विघयता- प्रदेशः, रथमर्दनकोडुनिवेशः १३२,कुन्तीविज्ञप्त्या दक्षिणवैताल्यां पाण्डुमथुरानिवेशाज्ञा १३३, पाण्डुसेनजन्म, राज्याभिषेका, सर्वेषां दीक्षा १३४,द्रौपद्या दीक्षा, एकादशाक्यध्ययनं १३५, नेमिवन्दनप्रतिज्ञा, हस्तिकल्पे आगमन, निर्वाणश्रवर्ण, भक्तपानं परिष्ठाप्य शत्रुञ्जये आगम्यानशन, मोक्षः १३६, द्रौपद्या ब्रह्मलोके उत्पादः १३७ । २२७ ॥ इति १६ अपरकङ्काज्ञातम् ॥ १३८-४० हस्तिशी सांयात्रिकवणि जः, कालिकावातेन नौभ्रमणं, कालिकाद्वीपे उत्तरर्ण, हिरण्यादिभिः पोताना भरण १३८, अ ध्वनिवेदनं, वीणादिभिश्च प्रेषणं, अश्वाऽऽश्वासनं, अरक्ताश्ववन्मुच्यन्ते मुनयः२३९,मुखबन्धा दिभिरश्वदमन, उपनयः १४०।२३२ १४१ । ३३-५२० संवृतासंवृतगुण दोषाः ३३-५२१४१ । २३५ ॥ इति १७ अश्वज्ञातम् ।। १४२-४४ राजगृहे धन्यस्य धनादीनां लघुपुत्री सुषमा,चिलातोदास, बहुशो निवारणेऽपि दारकाद्याक्रोशादेनिष्काशनं १४२, मयादिप्रसङ्गी, सिंहगुहायां विजयतस्करः, प्रारब्धचिलातगमन, चौरविद्याशिक्षणं, अभिषेकः १४३, घाटीपातनं, तालोद्घाटिन्यादिप्रयोगः, सुषुमां गृहीत्वा निर्गमः । २३९ ॥१४७॥ सुत्ताणि ~168 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [ अंगसूत्र-4. "ज्ञाताधर्मकथा' | पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ज्ञातधर्म कथासूत्रे ॥१४८॥ १४५-४६ प्राभृतपूर्व विज्ञप्तिः, नगरगुप्तैः सह निर्गमः, सुषुमाघातः, वर्णादिहेत्वाद्वारे उपनयः, क्षुधातृषार्त्तता, स्वखादनाभ्यर्थना, सुषुमाखादनं १४५, वीरसमवसर णादि, धन्यादिवत्सिद्धिगमनायाहारे उपनयः १४६ ॥ इति १८ सुषमाज्ञातम् ॥ १४७-५३ पूर्वविदेहे पुष्करावत्याः पु ण्डरीकियां महापद्मनृपः स्थविरपार्श्वे दीक्षा सिद्धिका १४७, स्थविरागमनं, पुण्डरीकवैराग्यं, कण्डरीकदीक्षा १४८, कण्डरी कस्य रोगाः, चिकित्सा, लज्जया विहारः, अशोकवनिकायामागमः, राज्याभिषेकः १४९, पुण्ड रीकस्य लोचदीक्षे १५०, कण्ड २४२ रीकस्य पित्तज्वरः अप्रतिष्ठाने नारक: १५१, पुण्डरीकस्य व्रतं, पित्तज्वरः, समाधिना कालः, सर्वार्थसिद्धे गमनं, असक्त श्रमणादीनामुपनयः १५२. एकोनविंशत्यध्ययनस्वरूपोपनयकथनं १५३ । ॥ इति १९ पुण्डरीकज्ञातम् ॥ ॥ प्रथमः श्रुतस्कंधः ॥ १५४ प्रथमवर्गे चमरस्याग्रमहिषीणां, · द्वितीये बलेः, तृतीये दाक्षिणात्यानां चतुर्थे उत्तरत्यानां पञ्चमे दाक्षिणात्यानां व्यन्तराणां षष्ठे उत्तरत्यानां सप्तमे चन्द्रस्य, अष्टमे सूर्यस्य, नवमे शक्रस्य, दशमे ईशानस्याग्रमहिषीणामधिकारः, काल्या नाट श्री. ~ 169~ २४६ दारिकाया दीक्षादि, शरीरबाकु शिकत्यादि । १५५ ६५ ५३ ५६ राजीदेव्याद्यध्ययनानि (५) १५५, शुम्भायध्ययनानि (५) १५६, इलाद्यध्ययनानि (५४) १५७, रूपायध्ययनानि (५४) १५८, क मलायध्ययनानि (३२) ५३५६ १५९, उत्तरत्यानां सहशनान्यो देव्यः १६०, सूर्यप्रभा द्यध्ययनानि (४) १६१, चन्द्रप्रभायध्ययनानि ( ४ ) १६२, पद्मायध्ययनानि (८) १६३, कृष्णाद्यध्ययनानि (८) १६४, उपसंहारः १६५, प्रशस्तौ द्रोणाचार्यकृता शुद्धिः । ॥ २ धर्मकथाश्रुतस्कंधः ॥ २ ॥ ॥ इति ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रम् ॥ २५० २५४ बृहत्क्रमः॥ ॥१४८॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-७. "उपासकदशा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्राणि ५८ ॥ उपासकदशाड़े विषयानुक्रमः॥ सूत्रगाथाः १३६ हवक्रमः॥ यहां उपासकांग देखीए १४९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम मङ्गलादि । | १०-१२ आनन्दस्य प्रवज्याया अ- । ॥ इति १ आनन्दाध्ययनम् ॥ १ चम्पापूर्णभद्राऽतिदेशः। १ भावः, अरुणे देवत्वं भावि, १८-१९ कामदेवस्य ऋदयादि धर्म२-२॥ दशाध्ययनानि । वीरविहारः १०, आनन्दस्य पालनान्तं १८, पिशाचोपस शिवानन्दायाश्च धर्मपालनं ११, ६-५ वाणिज्यग्रामे आनन्दधाव गेऽचलता १९ । चतुर्दशवर्षातिक्रमे प्रतिमावि- २० खड्गच्छेदवेदना । कः, शिवानन्दा भार्या, कोल्ला चारः १२ २१ हस्तिरूपेणोपसर्गः ।। के मित्रादि, वीरागमनं, पर्युपा १३ प्रतिमाऽऽराधनम् । सना ३, धर्मकथादि ४, द्वाद २२ सर्परूपेणोपसर्गः। १६ | २३ देवप्रादुर्भावशकप्रशंसोदित्यादि। २६ शत्रतयात्रा ५। २ १४-१६ भक्तपानप्रत्याख्यानं, अब २४ बीरवन्दनानन्तरं पौषधपालन६ द्वादशवतोच्चारः । धेरुत्पादः १४, गौतमागमनं १५, प्रतिक्षा, शुद्धवस्त्रपरिधानादि, ७ सम्यक्त्वाद्यतिचाराः (देशविरअवधिज्ञानप्रश्नोत्तरे, आनन्द पयुपासना,धर्मकथा (धर्मकथातावतिचारसिद्धिः)। १२ क्षामणम् १६। स्वरूपम्)। ३० ८ सम्यक्त्वोच्चारः, शिवानन्दादेशः।१३ । १७ अनशनेन कालः, देवत्वं सि- २५ वीरेणोपसर्गवृत्तान्तकथनं, श्रम९ शिवानन्दाया प्रतााचारः। १४ । शिश्च । णानामनुशास्तिः, । ३० ॥१४९ सुत्ताणि * ~170~ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-७. "उपासकदशा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक वृहतक्रमः। यहां श्रीउपासकांग सूत्रे देखीए ॥१५०॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम २६ प्रतिभाप्रतिपत्त्यादि । ३१ ।। सप्त मांससोल्लकाः, ऋद्धिनयने । मन्त्रणं ४१, भाजनभङ्गप्रिया॥ इति २ कामदेवाध्ययनम् ।। चलनम् । अरुणशिष्ट देवत्वम् ३४॥ ३६ भोगशिक्षावचनेन प्रतियोध नम् ४२ । २७ चुलनीपितृवर्णनादि । ॥ इति ५ चुल्लशतकाध्य० ॥ ३२ | | ५३ धर्मप्रतिपत्तिः अग्निमित्राभा - २८-२९ मांससोल्लज्येष्ठपुत्रादि - ३५-३६ कुण्डकोलिकस्य ऋद्धया र्याऽऽदेशः, धर्मप्रतिपत्तिः, म- IN भद्रामातृघतिरुपसर्गः, कोलाह दि ३५, आजीविकदेवस्य नि ___ हावीरविहारः । ल:, मातृशिक्षयाऽऽलोचनादि रुत्तरता ३६। ३८ गोशालागमः, वीरगुणकीर्तन, २८, प्रतिमादि (श्रावकस्य ३७-३८ कुण्डकोलिकवृत्तान्तेन वीरेण सह वादकरणासामध्ये, प्रायश्चित्तसिद्धिः ) २९ । ३४ श्रमणानां वीरशिक्षा ३७, अरु वीरस्तुत्या पीठादिना निमन्त्रण, ॥ इति ३ चुल्लनीपित्रध्ययनं ॥ णध्वजे देवत्वम् ३८। ३९ | श्रान्तस्य गोशालस्य विहारः। ४७ ॥ ६ इति कुण्डकोलिकाध्ययनम् ॥ | ३० सुरादेवस्य ऋद्धयादि । ३४ ४५ उपसर्गे नव मांससोलकाः, पुत्र३९ सद्दालपुत्रस्याजीविकोपास - ३१ स्वस्य पुत्राणां च पञ्च २ सो त्रिकघातः, अग्निमित्राघाते चकता। लकाः, पोडशरोगोडवे चल लनादि, अरुणभूते देवत्वम् । ४८ ४० देवेन महामाहनागमनकथनं, नादि । ॥ इति ७ सद्दालपुत्राध्यययनम् ।। पर्युपासनाविचारः । ४६ | ४६-४७ महाशतकस्य तद्भार्याणां ॥ ४ इति सुरादेवाध्ययनम् ॥ ४१-५२ वीरागमनं पर्युपासन, देव च ऋद्धयादि ४६, प्रतप्रतिप३२-३४ चुल्लशतकस्य ऋद्धयादि, | वाक्योदितिः, पीठादिनोपनि त्यादि ४७। ४८ सुत्ताणि ॥१५०॥ ~171 Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-७. “उपासकदशा" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) श्री अन्तकृद्दशांग सूत्रे ॥ १५१ ॥ ४८ रेवत्याः सपत्नीनां मारणम् ४८ । ४९ ४९. अमाघातः गोपोतघातनम् ५० रेवत्युपसर्ग: । ५१-५२ अवध्युत्पत्तिः ५१ मतरेवत्युपसर्गः, नरकगमनकथनम् ५२ । ५१ 35 ५० ५३ प्रतिक्रमणाय गौतमप्रेषणम् । ५२ ५४ प्रतिमादि । ॥ इति ८ महाशतकाध्ययनम् ॥ ५५-५८ २१-१३० नन्दिनीपित्रधि कारः ५५, शालिहीपित्रधिकारः ५६, दशानामपि पर्यायादि ५७, 23 172~ आनन्दादीनां ग्रामादि २४१३७-५८ । || प्रशस्तिः ॥ ॥ इति उपासकदशाङ्गम् ॥ *** अत्र 'उपासकदशा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'अन्त्कृद्दशांग इति मुद्रितं ५४ बृहत्क्रमः।। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-८. “अंतकृद्दशा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए सूत्राणि २७ अन्तकृद्दशायाः विषयानुक्रमः। सूत्रगाथा १२8 दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि १-४,१-३६ उपोद्घातः,गौतमाद्यध्य यनो (१०) देशः १०, द्वारिकारवतकपर्वतसुरप्रिययक्षायतनानि, कृष्णवर्णनं, अन्धकवृष्णेर्धारिणीदेवी, महाबलातिदेशः २७, नेम्यागमनं, गौतमदीक्षा, एकादशाश्ग्यध्ययन, प्रतिमादि, शत्रुञ्जयसिद्धिः१, एवं वहयाइयो नब २, अक्षोभा यध्ययनो (७)द्देशः ३७, सवेषां शत्रुजये सिद्धिः३, अनीय साद्यध्ययनो (१३) देशा, भदिले नागसुलसे, द्वात्रिंशत्कन्यापाणिग्रहणादि, शत्रुञ्जये सिद्धिः, शेषाणामपि पश्चानां शतुञ्जये सिद्धिः ४। ५-६सारणकुमारः, पञ्चाशत्कन्याः । ५ नेमिशिष्यानगारषट्कप्रवज्या, पष्टषष्ठाभिग्रहः, सवाटकत्रिकेन देवकीगृहे गमन, आहारटुलभताप्रश्नः, समाधान, अतिमुक्तश्रमणवाक्यानृतत्वशङ्का,नेमिना प्रकटन,सुलसाकृता हरिणेगमेषिभक्तिः, अनुकम्पया द्वयोः ॥१५॥ ~173~ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-८. “अंतकृद्दशा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां अन्तकुद्दशांग सूत्रे देखीए ॥१५२॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम समं सर्नुकत्वं अपत्यव्यत्ययः, अनगारषट्कवर्णने, आगतप्रस्रवत्वादि, प्रजातस्य बाल्याननुभवेन शोकः, षण्मास्या वासुदेवागमनं, बालकमातृप्रशंसा, कृष्णायाभिप्रायकथनं, हरिणेगमेषिणे अष्टमपौषधः, वरदानं, सिंहस्वप्नः, गजसुकुमालनामस्थापनं, बन्दनाय गच्छता सोमादर्शनं, कन्यान्तःपुरे प्रक्षेपः, गजसुकुमालवैराग्य, राज्याभिपेकप्रार्थना, प्रव्रज्या, महाकाले प्रतिमा, सोमिलद्वेषः, अङ्गार - प्रक्षेपः, केवलशानं, सुरमिगन्धोदकादि, कृष्णनिर्गमन, इटिकाभारवाहकसाहाय्य, ग जसुकुमालस्थानप्रश्नः, सिद्धिनिनारकत्वं, अममतीर्थकरता, श्रुः | हत्क्रमः वेदनं, रोषवारण, दृश्या मरणेना स्वाऽऽस्फोटनादि, निष्कमणपमिज्ञान, भूमिपवित्रीकरणम् ६।१४ टहा, दीक्षाग्राहकाणां प्रथाप्रवृ. ७ द्वारिकायां बलदेवस्य धारिणी, त्तिवृत्त्यनुज्ञा, पद्मावतीप्रव्रज्या सुमुखाद्याः कुमाराः, वसुदेवधा यक्षिणीशिष्यात्वं, सिद्धिः। १८], रिण्योद्धौं, शत्रुञ्जये सिद्धाः । १४ । १० गौर्याद्या देव्योऽष्टौ । १८ ८-४ चतुर्थे जाल्याद्यध्ययनानि ११ शाम्बभार्या मूलश्रीः,मूलदत्तात(१०) गौतमवजाल्यादिकुमाराः, शत्रुञ्जये सिद्धाः। १४ ॥५ वर्गः॥ ॥४ वर्गः॥ १२६-७मङ्काय्याद्यध्ययनानि (१६) १-५, पद्मावत्याद्यध्ययनानि (१०) ६-७, राजगृहे वीरान्तिके ५७,द्वारिकायां नेमिसमवसरणं, दीक्षा, विपुले तस्य किंकर्मणश्च सुराऽग्निद्वैपायनमूलकनाशकथ सिद्धिः । नं, प्रवज्याऽशक्तेनिन्दा, कृतनि- १३ अर्जुनमाली, बन्धुमती भार्या, दानत्वात्, कोशाम्बवने जराकु मुद्गरपाणिप्रतिमाऽर्चा, यत्कृतमारेण भावी द्यातः, तृतीयस्यां सुकृतैललितागोष्ठीपुरुषैः परि- C॥१५२॥ सुत्ताणि ~174 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ - [अंगसूत्र-८. “अंतकृद्दशा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक वृहत्क्रममा यहां अन्तकृद्दशांग सूत्रे देखीए ॥१५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम भवः, काष्ठत्वचिन्तनं, यक्षावेशेन खीसप्तमघातः प्रत्यह, बीरागमनं, मातापितृवारणेऽपि सुदर्शनस्य गमनं, यक्षागमनं, साकारानशनं, यक्षतेजोधातः सभुद्रप्रतिगमः, अर्जुनमूर्छा, वीरागमथुतेर्वन्दनाद्यभिलाष:, दीक्षा, षष्ठषष्ठाभिग्रहः, आको शादि, भक्तपानाथलाभः सिद्धिः।२३ १४ काश्यपक्षेमाद्या एकादश, विपुले । सिद्धिः। १५ पोलाशे विजयश्रियोरतिमुक्तः, इन्द्रस्थाने क्रीडा, गौतमानयन, श्रिया प्रतिलाभनादि, गौतमेन सह भगवद्वन्दनाय गमनं, धर्म कथया वैराग्य, यन्न जानामि त- । १९ महाकाली क्षुल्लसिंहनिष्कीडितं जानामीत्यादि, अनुमत्या दीक्षा, तपः । । गुणरत्नं तपः, विपुले सिद्धिः, २० कृष्णा महासिंहनिष्क्रीडितं तपः। २८ वाणारस्यामलक्षोऽपि विपुले २१ सुकृष्णा, सप्तसप्तमिकायाः प्रसिद्धिः । तिमाः । ॥ ६ वर्गः ॥ २२ महाकृष्णा, क्षुल्लकसर्वतोभद्रग्न तिमा । १६८७-९ सप्तमे नन्दायध्यनानि (१३) ८-९७, सर्वासां सिद्धिः । २५ २३ वीर कृष्णा, महासर्वतोभद्रा । १७-१०-११ काल्यादीन्यध्यय २४ रामकृष्णा, भद्रोत्तरप्रतिमा । नानि (१०) १०॥ॐ, कोणिक २५ पितृसेनकृष्णा, मुक्तावलीतपः । ३२ चुल्लमाता काली, आर्यचन्दना २६ महासेनकृष्णा, आचाम्लवर्द्धमाशिष्या, रत्नावलीतपः ११, नं, सिद्धिः, श्रेणिकभार्यापर्यायः संलेखना सिद्धिश्च । २७ | १२ अन्तकृद्दशाङ्गोपसहारः। ३२ १८ श्रेणिकभार्या सकाली, कनका- २७ श्रुतस्कन्धवर्गाद्देशादि । ३२ बलीतपः । २८ ॥ इति अन्तकृद्दशाः॥ सुत्ताणि ॥१५३॥ ~175 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-९. "अनुत्तरौपपातिकदशा ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक सूत्राणि १-६ अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गे विषयानुक्रमः वृहत्क्रमः॥ 1le यहां अनुत्तरोपपातिकसत्रे ॥१५॥ देखीए १-६ वर्गत्रये प्रथमवर्ग जाल्यायध्य यनो (१०) द्देशः, एकादशाङ्ग्यध्ययनं, गुणरत्नं, विपुलेऽनशनं, विजये देवत्वं, एवं नव, देवत्वं विजयादिषु १, दीर्घसेनाद्यध्ययनो (१०) देशः, विजयादी देवत्वंर, धन्याद्यध्ययनो (१०)देशः, काकन्दीवर्णनं, सदाया द्वात्रिंशद् भार्याः, मात्राथुक्तिप्रत्युक्तिः, षष्टषष्ठाद्यभिग्रहः, भक्तपानाद्यलाभः,पादाङ्गुलीजानूरुकट्युदरपांशुलीपृष्ठकरण्डकोर:कटकवादहस्तहस्ताङ्गुलीग्री - बाहन्बोष्ठजिदानासाक्षिकरण - शीर्षवर्णनं, जीवंजीवेन वदनादि ३, वीरागमनं, दुष्करकारक प्रश्नः, धन्यप्रशंसा, श्रेणिकेन धन्यस्य वन्दनं ४, विपुलेऽनशनं सर्वार्थसिद्धे देवत्वम् ५, ॥३-१॥ सुनक्षत्रदारकः, एकादशाङ्गाध्ययन,सर्वार्थसिद्धे देव., शेषाण्यष्ट ६.। ।। अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गे विषयानुक्रमः S दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~1764 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१०. "प्रश्नव्याकरण"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए प्रश्नव्याकरणांगे विषयानुक्रमः। मङ्गलादि, पूर्व विद्याप्रतिपादक- स्वेऽप्यधुनाऽऽधवसंवरप्रतिपा. दकत्वम् । १७ आश्रयसंवरकथनप्रतिज्ञा १७ । ३७ यादृशकादि (५) द्वारोद्देशः। ५ (प्रत्यन्तरस्थ उपोद्घातः)। ३ | १ प्राणातिपातस्वरूपं द्वाविंशत्या | २७ आश्रवोद्देशः। ४ । विशेषणः । M ॥१५४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~177 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१०. "प्रश्नव्याकरण"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्री प्रश्नव्याकरगांगसूत्रे देखीए ॥१५५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम २ प्राणातिपातनामानि (३०)। ७ एकात्मवादिनः, अकारकवादिनः, ३ प्राणातिपातकारकाः पाठीनाद्याः, अभ्याख्यानदायकाः, कन्याऽलीचर्मवसादिकारणैः, पृथ्वीज- कादिवादिनः, भूतोपघातवादलाग्न्यनिलवनस्पतिहिंसाकार - कार, अनर्थदण्डोपदेशकाऽनुणानि । मोदकाः । (अण्डयादा, स्वशौकरिकायाः,शकाया म्लेच्छा- यम्भूवादा, विष्णुमयत्वे मार्कस्तत्कारकाः, नरकादिषु विपाकः, ण्डर्षिगाथाः)। नरके तिर्यक्षु कुमानुष्यत्वे च ८ अलीकस्य फल विपाकः । ४२ वेदना । ॥ मृषावादाध्ययनम् ॥ २॥ ॥ प्राणातिपाताध्ययनम् ॥१॥ ९ अदत्तादानस्वरूपम् । ४३ ५-६ मृषावादस्वरूपं ५, तन्नामानि १० अदत्तादाननामानि (१०)। ४४ (३०)६। २८ । ११ तस्करायास्तकारकाः, युद्धख७ असत्यवादकाः, कुटिलाद्याः, ना रूपं, समुद्रतरणं, कालाकालसस्तिकाः, पञ्चस्कन्धवादिनः, सु वरणादि। ५३ कृतफलाद्यपलापकाः, अण्डप्र--१२ चारकप्रवेशादिविविध फलम्। । जापत्युद्भववादिनः, वैष्णवाः, । (संसारस्य समुद्रेणौपम्यम् )। ६४ | ॥ अदत्तादानाध्ययनम् ॥३॥ कहतक्रममा १३ मैथुनस्वरूपम् । १४ अब्रह्मनामानि (३०)। ६८ १५ असुराचा भेदाः, चक्रवत्तियल देववासुदेवमाण्डलिकनुपयुगलि कनरवनितावर्णनम् । ८५ १६ अब्रह्मफलं, सीताद्रौपदीरुक्मि णीपद्मावतीताराकाञ्चनाऽहल्यासुवर्णगुलिकाकिन्नरीविद्युन्मतीरोहिणीनिमित्ताः सङ्ग्रामाः, भवभ्रमः । ॥ अब्राध्ययनम् ॥ ४॥ १७ परिग्रहस्वरूपम् । १८ परिग्रहनामानि (३०)। ९३ १९-२०, ४-८० भवनवास्यादयो भेदाः, शिल्पादीनि लोभाय १९, ॥१५५॥ सुत्ताणि ~178~ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-१०. "प्रश्नव्याकरण" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हवक्रमः। श्री प्रश्न व्याकरणांगसूत्रे यहां देखीए ॥१५६॥ भवभ्रमः २० । आश्रवपञ्चकनिगमनम् ४७८ ॥ परिग्रहाध्ययनम् ।। ५॥ । प्रथमः श्रुतस्कन्धः॥ २१-२३, ९-११० संवरकथनप्रतिज्ञा० २०, संवरद्धारोद्देशः १००, अहिंसोपोद्घातः ११०, महाव्रतस्वरूपं, अहिंसानामानि (६०)। २१, अहिंसास्वरूपं, तत्कारकाः, तीर्थकरावधिऋजुविपुलमतिपूर्वधराद्याः (८५1, संयमः (१७) कोटिनवकं, चिकित्सादिलक्षणादिवन्दनमाननपूजनादिवर्जन, यतनादियुक्तत्व २२, भावनापञ्चकं, आलोच्य निमन्ध्य प्रमृज्य प्राण दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम धारणार्थमाहारः, पीठादि (द- । दाता,बालादिवयावृत्यसंस्कारी, ण्डकः) संयमवृद्धये, साधु तपस्विकुलगणसधचैत्याद्यर्थस्वरूपम् २३ । ११३ मुद्यमी, अप्रीतिमतः पीठफल। अहिंसाध्ययनम् ॥१॥ कादि (दण्डक)न सेवते, २४ सत्यस्वरूपं, समुद्रोत्तरणादि भावनापञ्चकम् ! १३० महिमा, सावद्यबाग्वजन, नामा- ॥ अस्तेयाध्ययनम् ॥ ३॥ ख्यातनिपातोपसर्गादियुतभाष- २७-१२-१५७ ब्रह्मचर्यस्वरूप, व्रणम् । ११८ झचर्योत्कृष्टता १२-१४३, ब्रह्म२५ भावनापञ्चक, क्षेत्रा (९) द्यर्थ चारिवयंस्थानानि, भावनापमृषावादः । १२१ शकम् । ॥ सत्याध्ययनम् ॥ २॥ ॥ ब्रह्मचर्याध्ययनम् ॥ ४॥ २६ अदत्तादानस्वरूप, विस्मृताध- २८ एकासंयमाद्या एकोत्तराः । १४७ ग्रहण, अप्रीतिमद्गृहाप्रवेशः, २९ अल्पादि, दासादि छत्रकादि अप्रीतिमतः पीठफलकादि (द. पुष्पादिच अकल्प्चं,ओदनादीनां ण्डक) वर्जन, पीठफलकाद्य संनिधेरकल्प्यता, उद्दिष्टादिसम्भोगितावर्जन, उपध्यादि वर्जन, कल्प्याहारादि, (पात्र १४२ १५६॥ सुत्ताणि ~179~ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र - १०. “प्रश्नव्याकरण" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री उपासकांग सत्रे केशरिकापटलगोच्छकादि ), साधुस्वरूपं विशेषेण, भावना पञ्चके शब्दादिप्रकाराः, तेष्यरक्तद्विष्टता । ॥ इति प्रश्नव्याकरणाङ्गम् ॥ ॥ अपरिग्रहाध्ययनम् ॥ ५ ॥ ३० श्रुतस्कन्धाद्युपसंहारः *** अत्र 'प्रश्नव्याकरणांग' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'उपासकदशांग' इति मुद्रितं 180~ १६५ बृहत्क्रमः। Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- ११. “विपाकसूत्र" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥१५७॥ ३४ ३६ १ मङ्गलादि, चतुर्ज्ञानः सुधर्मा, चम्पा, जम्बूपृच्छा । २- १ मृगापुत्राद्यध्ययनानि (१०) १० मृगापुत्रस्वरूपं, भूमिगृहे रक्षणम् २ । ३ कारुण्यवृत्तिको जात्यन्धः, विजयक्षत्रियनिर्गमः, जात्यन्धागमः । ३६ ४ जात्यन्धप्रक्षे मृगापुत्रस्वरुपकथनं, दर्शनाय गौतमस्य गमनं, भूमिगृहस्थपुत्रदर्शनेच्छा, भक्तशकीं गृहीत्वाऽऽगमनं, मुखबन्धनप्रेरणा, मृगापुत्राहारादि १४ ॥ विपाकसूत्रम् ॥ दर्शनं, नरकप्रतिरूपता, आगम्य निवेदनम् । ५-२० शतद्वारे धनपतिः, विजयबर्द्धमानखेट, पञ्चशतग्रामाभोगं, इकाइराष्ट्रकूटोऽधार्मिकः, करादिपीडनं श्रुताद्यपलापः, पोडश रोगाः २ उद्घोषण, अभ्यङ्गादिभिरनुपशमः सार्वशतद्वयायुर्मृत्वा रत्नप्रभायां नारकः, मृगापुत्रतया गर्भः, मातुरनिष्टः, उपायेऽपि न पातादि, मृगापुत्रनाक्यादिस्वरूपं, जन्मनि मृगावत्या भयः, प्रथमगर्भ ~ 181~ ૨૮ त्वात्पतिवचनेन भूमिगृहे पालनम् । ६ सिंहादिभवाः, सुप्रतिष्ठे गतिः श्रमण्यं सौधर्मे देवा, महाविदेहे सिद्धिः । ॥ १ मृगापुत्राध्ययनम् ॥ ७ वाणिजे सुधर्मयज्ञायतनं, मिअस्य श्रीदेवी, कामध्वजगणिकावर्णनम् । ८ विजयमित्र सार्थवाहपुत्र उज्झि तकः, गौतमस्य भिक्षाचर्या, संनद्धहस्त्यादि, तिलशश्छेदः स्वकर्मापराधोद्घोषणा | ४३ ४४ ४६ ४७ ॥१५७॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-११. "विपाकसूत्र" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत | वहतक्रमः॥ सूत्रांक यहां ज्ञातधर्म ९ गौतमप्रने हस्तिनापुरे सुनन्दः, गोमण्डपः, भीमः कूटग्राही, उत्पळा भार्या, नगरगोरूपायूधस्तनादिभिर्दोडदा, गोमण्डपा कथासूत्रे देखीए ॥१५८॥ त्पूर्तिः । पुत्रः, पितृसेननपुंसका, मन्त्र- . विद्याप्रयोगैरभियोगः, रत्नप्रभायां नारकः, सुसुमारादि भूत्वा चम्पायां श्रमणः, सौधर्मे देवादि। ५५ ॥२ उज्झिताध्ययनम् ।। १४-१९ पुरिमतालेऽमोघदर्शियक्षा यतनं, शाला चौरपही, विजयोऽधिपतिः, १४, ग्रामघातादि, स्कन्दश्रिया अभमसेनः पुत्रः, पुरिमताले बीरागमः, अष्टादशसु चत्वरेषु चुल्लापत्रादिकुटुंबनाशनं १५, पूर्वभवे उदितोदितराज्ये निर्चयोऽपडवणिक, तृतीयस्यां नारकः १६, स्कन्दश्रिया दोहदः, पुत्रजन्म नामस्थापनं १७, सेनापतित्वं, क दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम - ल्पाकग्रहण, जानपदमेलकः, परिमताले महावलाय विज्ञप्तिः, दण्डायादेशः, अभनसेनाय गुप्तपुरुषसंदेशः, अन्तरा दण्डस्य प्रतिषेधः, सामभेदोपप्रदान - प्रवृत्तिः १८, कूटागारशालायां विश्वास्य रोधः, ग्रहणं च सकुटुम्बस्य, नारकत्वादि, भ्रांत्वा वाणारस्यां मुक्तिः १९, ६४ (निरुपक्रमत्वानोपद्रवोपशान्तिः) ।। अभग्नसेनाध्ययनम् ॥३॥ २०-२२ शाखाअन्यां देवरमणेऽमो घयक्षायतनं, महाचन्द्रो नृपः, सुसेनोऽमात्यः सुदर्शना गणिका, सुभद्रभद्रयोः शकटः पुत्रः, बीरागमादि, छगलपुरे सिंहगि १० शब्देन गवां त्रासात् गोत्रासः, कूटप्राहित्य, गोमांसादिना वृत्तिः नारकः। ११ बिजयमित्रसुभद्रयोः पुत्रः,उत्कु रुटे उज्यनादुझितकः, विजयमित्रस्य लवणे काला, ईश्वरादिकृतं हस्तनिक्षेपादि गृहीत्वाऽ पक्रमण, सुभद्राऽपि शोकान्मृता। ५२ १२ निष्काशितस्योज्झितकस्य वे श्यासक्तत्वादि, राज्ञा दण्डः । ५४ १३ भ्रान्स्वा इन्द्रपुरे गणिकाकुले । - - - ॥१५८॥ सुत्ताणि ... अत्र 'विपाकसूत्र' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' इति मुद्रितं । ~182 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र- ११. “विपाकसूत्र” ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) श्री ज्ञातधर्म कथासूत्रे ॥१५९॥ रिर्नृप, छणिकछागलिकः, चतुर्थ्यां नारक: २०, शकटतया जन्म, निर्धाटितो वेश्यायां लग्नः, सुसेनेन दण्डकारणं २१, रत्नप्रभायां नरकः, राजगृहे मातङ्गः, सुदर्शनाभगिन्या कूटग्राहस्य स हवासः, नारकत्वादि २२ । ॥ शकटाध्ययनम् ॥ ४ ॥ २३ कौशाम्यां चन्द्रावतरणे श्वेतभद्रो यक्षः, शतानीकमृगावत्योरुदायनः, पद्मावती देवी, सोमदत्तवसुदत्तयोर्बृहस्पतिदत्तः पुरोधाः, वीरागमनादि, सर्वतोभद्रे जितशत्रुः, महेश्वरदत्तः पुरोधाः प्रत्यहं ब्राह्मणादिमेकेक, अष्टमीचतुर्दश्योद्वौ द्वौ, ६७ चतुर्मास्यां चतुरश्चतुरः, षण्मास्यामष्टाष्ट, संवत्सरे पोडश षोडश, परवलाभियोगे ऽष्टशतं पुत्रान् हन्ति २३ । २४ पञ्चम्यां नारकः, बृहस्पतिदत्ततया जन्म, उदायनस्य प्रियवालवयस्यः, पद्मावत्यां लग्न, हतो रत्नप्रभायां गमनमित्यादि २४ । ६९ || बृहस्पतिदत्ताध्ययनम् ॥ ५ ॥ २५-२६ मथुरायां भण्डीरोद्याने सुदर्शनो यक्षः, श्रीदामबन्धुश्रियोर्नन्दिवर्द्धनः सुबन्धुरमात्यः, बहुमित्रः पुत्रः, चित्र आलङ्का रिकः, अयः कलशाद्यभिषेकादिदर्शनं सिंहपुरे सिंहरथः, दुर्योधनश्चार कपाल: शिक्षोपक ६८ ~183~ रणानि, शिक्षाप्रकाराः षष्ठयां ग मनं २५, नन्दिषेणतया जन्म, श्रीदाममारणेच्छा, चित्रस्य भेदो भयाद् राशे निवेदनं च रत्नप्रभागमनादि । २६ ७३ ॥ सुदर्शनाध्ययनम् ॥ ६ ॥ २७ पाडलखण्डे उंबरदत्तो यक्षः, सिद्धार्थो राजा, सागरदत्तगङ्गदतयोरुम्बरदत्तः सार्थवाहः, बीरागमनादि, रोगिदेहबलिकद्रमकदर्शनं, विजयपुरे कनकरथः, कुमारभृत्याद्यायुर्वेदनिपुणो धम्वन्तरिः, मांसोपदेशः, पछ्यांग मनं, उम्बरदत्तोपयाचितपूजादि, उपयाचितकरणं, नामस्थापनं, षोडश रोगाः, रत्नप्रभागमनादि । ७८ ••• अत्र 'विपाकसूत्र' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' इति मुद्रितं बृहत्क्रमः । ॥१५९॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4 ] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-११. "विपाकसूत्र" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक वृहतक्रमः यहां अन्तकृद्दशांग सूत्रे देखीए ॥१६०॥ । उम्बरदत्ताध्ययनम् ॥७॥ २८ सौर्यपुरे सौर्यावतंसके सौर्यो यक्षः, सौर्यदत्तो राजा, मत्स्यान्धपाटके समुद्रदत्तयोः सौर्यदत्तः, वीरागमनादि, नन्दिपुरे मित्रनुपस्य श्रीयकः सूदः, अनेकधा मांससंस्कारः, षठ्यां नरकः, उपयाचितेन जन्मनि सौर्यदत्तनाम, यमुनायां हदगालनादीनि, गले मत्स्यकण्टकः, महावेदना, रत्नप्रभागमनादि । ८१ ॥ सौर्यदत्ताध्ययनम् ॥ ८॥ २९ रोहिडके पृथ्व्यवर्तसके धरणो यक्षः, वैश्रमणदत्तधियोः पुष्यनन्दिः, दत्तकृष्णधियोर्देवदत्ता. वीरागमनादि, सुप्रतिष्ठे महासेनधारिण्योः सिंहसेनः, कन्यापञ्चशतीविवाहः, श्यामा विनाऽन्यत्रारुचिः, तन्मातॄणां द्वेषः, श्यामाया राक्षे उक्तिः, कूटागारे आमन्त्रणं अशनाद्यानयनं च विधाय निशीथे प्रदीपनं, सिंहसेनः षष्ठयां,देवदत्तातया जन्म, यशा पुष्यनन्दार्थ याचनादि, मातृभक्तिः, अपाने लोहदण्डप्रक्षेपण धिया मारण, देवदत्तावधः रत्नप्रभायांगमनमित्यादि । ८७ ॥ देवदत्ताध्ययनम् ॥९॥ ३० वर्द्धमाने माणिभद्रो यक्षः, विजयमित्रो राजा, धनदेव - प्रियङ्वोरञ्जर्दारिका, बी रागमनादि, इन्द्रपुरे इन्द्रदत्तो राजा, पृथ्वीश्रीगणिका, पश्यां नारकः, अञ्जुश्रीतया जन्म, राज्ञा विवाहः, योनिशूलं, रत्नप्रभायां गमनमित्यादि। ८९ अवध्ययनम् ॥१०॥ ॥ प्रथमः श्रुतस्कन्धः॥ ३७ सुबाहादीन्यध्ययनानि (१०) ३१ हस्तिशीर्षे पुष्पकरण्डके कृत वनमालप्रिययक्षायतन, अदीनशत्रू राजा, धारिण्याद्या देव्यः, पञ्चशतो दायः, वीरागमादि, सुबाहोः श्रावकधर्माङ्गीकारः, हस्तिनागपुरे सुमुखो गाथा पतिः, धर्मघोषस्थविरागमनं, विधिना सुदत्तमुनिप्रतिलाभनं, दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ३ । - - सुत्ताणि ॥१६॥ ... अत्र 'विपाकसूत्र' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'अन्तकृद्दशांग' इति मुद्रितं ~184 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-११. "विपाकसूत्र" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक हस्तमः।। यहां अन्तकृद्दशांग सूत्रे देखीए मनुष्यायुः दिव्यानि, सुबाहुतया जन्म, श्रावकधर्मपालनं चतुर्दश्यादिषु पौषधः, पौषधोऽष्टमेन, धर्मजागरिका, सुबाहोर्दीक्षा, सौधर्म देवः, प्रवज्या, ब्रह्मादी देत्वमित्यादि । । सुबाहध्यय० ॥२-१॥ ३२ भवनन्दिना युगवाहुस्तीर्थरः, सुजातेन पुष्पदत्तः सुवासवेन वैश्रमणभद्रः, जिनदासेन सुधर्मा, वैश्रमणेन संभूतिविजयः, महाबलेनेन्द्रपुरः, भद्रनन्दिना धर्मसिंहः,महाचन्द्रेण धर्मवीर्यः, वरदत्तेन धर्मरुचिरनगारः प्र तिलम्भितः । । ३३ श्रुतस्कन्धाधुपसंहारः । ॥ इति विपाकसूत्रम् ॥ ॥१६॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम इति श्रीआचाराङ्गादीनामेकादशानामङ्गानां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ च समाप्तिमवापुः । इति श्रीएकादशाङ्ग्यकारादि ॥ सुत्ताणि ॥१६॥ ... अत्र 'विपाकसूत्र' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'अन्तकृद्दशांग' इति मुद्रितं ~185 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजैनानंदपुस्तकालीयविक्रेयपुस्तकानि दशवैकालिकचूर्णिः | वारसासूत्रं सचित्रं १२-०-० | बुद्धिसागरः ०-३-० उत्तराध्ययनचूर्णिः ऋषिभाषितानि ०-३- विशेषावश्यकटीका (भागद्वयं) ११-०-० पंचाशकादिशास्त्राष्टकं ४-०-० प्रत्याख्यान, सारस्वतवि०॥ भवभावनावृत्तिः पूर्वाध ३-८-० ३५०, १५०, १२५ स्तवनानि १-४-० ०-८-० विशेषणवती वीशवीशी । कल्पकौमुदी २-०-० पंचाशकादिदशअकारादिः ४-०-० विशेषावश्यकगाथाक्रमादि ०-५-० | षोडशकप्रकरणं सटीक ज्योतिष्करंडका सटीकः ३-०-० ललितविस्तरा ०-१०-० पडावश्यकसूत्राणि पंचवस्तुकः सटीका ३-०-० तत्वतरंगिणी उत्पादादिसिद्धिः २-८ क्षेत्रलोकप्रकाशा २-८-० बृहसिद्धप्रभाव्याकरणं तत्त्वार्थकर्तृसमीक्षा युक्तिप्रबोधः स्वोपशः १-१२-० मध्यम सुबोधिका प्रेसमां विचाररत्नाकर आचारांगसूत्रवृत्तिः (भागद्वयं) ७-0-. भगवतीवृत्ति (अभयदेवीया) वन्दारुवृत्तिः भगवतीजीदानशेखरसूरिटीका ५-०-० भवभावना (उत्तरार्ध) पयरणसंदोहो पुष्पमाला मल० हेम० स्वोपज्ञा ६-०-० | प्रवज्याविधानवृत्तिः अहिंसाएकसर्वशसिद्धिपेन्द्रस्तुति ०-८-० | तत्त्वार्थटीका हारिभद्रीया ६-०-० | प्रवचनपरीक्षा नवपदप्रकरणबृहद्वृत्तिः ४-०-० पर्युषणादशशतकं ०-१००/-प्राप्तिस्थान:संवत् १९९३ पोष शुद १. सुरत-श्री जैनानंदपुस्तकालय, गोपीपुरा सुरत. पालीताणा-मास्तर कुंवरजी दामजी, मोती कडीयानी मेडी. जाMOSजानाजा जजाजजजजजजजजज जजजाजताजाजाजजजजजाजजजजजाज मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: परिसमाप्त: ~186 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित - सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः भाग-4 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रम (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह ) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलितः “अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः” नाम्ना परिसमाप्तः आगम-संबंधी - साहित्य' श्रेणि, भाग-४ 187 Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ पूज्य श्रीअ नमो नमो निम्मलदसणस - सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः [आगम-संबंधी- साहित्य] [आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.] (किञ्चित् वैशिष्ठ्य समर्पितेन सह) पुनः संकलनकर्ता — मुनि दीपरत्नसागर 01/02/2017, बधवार, २०७३ महा शक्ल ५ (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि) 188~ 'आगम-संबंधी- साहित्य श्रेणि भाग-४ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी - साहित्य) Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-."-" पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीआगमोद्धारसंग्रहे भागः २ णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स उपांगप्रकोणेकसत्रविषयक्रमः दीप क्रमांक के लिए श्रीऔपपातिक-राजमश्नीय-जीवाजीवाभिगम-प्रज्ञापना-चंद्रसूर्यप्रज्ञप्तियुग्म-जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-उपांगपंचकमयनिरयावलिका-चतुःशरणादिप्रकीर्णकदशकानां सूत्रसूत्रगाथानामकारादिक्रमः लघुर्वहंश्च विषयानुक्रमः देखीए 'सवृत्तिक आगम प्रकाशका-सूर्यपुरीया श्रीजैनपुस्तकप्रचारकसंस्था इदं पुस्तकं सूर्यपुरे श्रीजैनविजयानन्दमुद्रणालये फकीरचन्द मगनलाल बदामीद्वारा मुद्रयित्वा प्रकाशितम् प्रतयः २५०१ विक्रमसंवत् २००५, वीरसंवत् २४७५, इ० स० १९४८ . [वेतनम् रु. ४-८- 0 4 सुत्ताणि ... मूल संपादकेन प्रकाशित उपांग-प्रकीर्णकसूत्र-विषयक्रमस्य 'ओरिजिनल टाइटल' ~189~ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-."-" पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए प्रस्तावः श्रीऔपपातिकादीनां द्वादशानामुपांगानां चतुःशरणादिकानां दशानां प्रकीर्णकानां च गाथायनुक्रमः भो। परमपुरुषपरमेश्वरप्रणीताब्याबाधाविरुजहितोपदेशमात्रप्रवचनप्रवणागमामृतपानपुष्टान्तःकरणाः कृतिनः ! सफलधरतस्य शाखस्य साचरणश्रद्धानवृद्धिक्रियाद्वारा ग्रहणेन मे परिश्रमलेश, प्राक्तावत् १ नन्दी २ अनुयोगद्वार ३ आवश्यक४ ओघनियुक्ति ५ दशकालिक ६ पिण्डनियुक्ति ७ उत्तराध्ययनसूत्राणां गाथाकारादिक्रमविषयानुक्रमयुगलान्युन्मुद्राप्य निर्णयसागरमुद्रणालये श्रीमत्याऽऽगमोदयसमित्या प्रतीनां सार्धद्वादशशती प्रचारिता, पण्यं च रूप्यकद्वयं स्थापितं पश्चात्तु श्रीमालवदेशान्तर्गतश्रीऋषभदेवजीकेशरीमलेत्यभिधया श्वेतांबरसंस्थया ८ आचारांग ९ सूत्रकृतांग १० स्थानांग ११ समवायांग १२ श्रीभगवत्यपराभिधव्याख्याप्रज्ञप्ति १३ शातधर्मकथा १४ उपासक १५ अन्तकृद्दशा १६ अनुत्तरोपपातिकदशा १७ विपाकश्रुत १८ प्रश्नव्याकरणांगसूत्राणां गाथाकारादिविषयानकमयगलानि श्रीइंद्रपुरीयधीजैनबंधमुद्रणालयश्रीभावनगरीयमहोदयमद्रणालयद्वारा मुद्रापयित्वा पंचशती पुस्तकानां प्रचारिता, पण्यं च चतुष्टयं रुप्यकाणां धृतं, ततः शेषाणां गाथाकारादिविषयानुक्रमयुगलानामुन्मुद्रणायायमुपक्रमः श्रीसुरत,गीयजैनपुस्तकप्रचाराण्यसंस्थया क्रियते । प्रत्यश्चात्र सार्धद्विशतीमात्राः पण्यं च साध रुष्यकचतुष्टर प्रियते । एतच्च वर्तमानयुगस्थितिक्षिणां सुशानामवभासिष्यतेऽल्पतममेव । अत्र च १९ श्रीश्रीपपातिक२० श्रीराजप्रश्नीय २१ जीवाजीवाभिगम २२ प्रशापना २३-२४ सूर्यचंद्रप्राप्तियुग्म २५ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति २६ उपांगपंचकमयनिरयावलिका २७ चतुणादिप्रकीर्णकदशकानां गाथाकारानुक्रमो लघुर्वहन विषयानुक्रमश्च समुन्मुद्रिताः, तत एतत्प्रयोगं यथार्ह कृत्वा सफलयन्तु सजना मे ज्ञानाभ्याससहायमनोरथमित्याशासे। २००५ कार्तिकशुक्ला पूर्णिमा, सुरत. श्रीश्रमणसंघसेवक आनन्दसागरः 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~190~ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक: लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम पृष्ठांक: । पृष्ठांकः आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: क्रमांकः | आगम का नाम | | लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम | आगम का नाम पृष्ठांक: | पृष्ठांक: अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः . आचार . उपासकदशा सूत्रकृत् ०८ . अंतकृद्दशा . स्थान अनुत्तरोपपातिकदशा समवाय प्रश्नव्याकरण भगवती विपाकश्रुत ०६ . ज्ञाताधर्मकथा ---------- . ०५ . उपांग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: १२ . औपपातिक | १३ . राजप्रश्नीय १४ . जीवाजीवाभिगम १५ . प्रज्ञापना १६+१७. सर्य+चन्द्र-प्रज्ञप्ति १९७ । २०६ ।। १८ १९८ २१० १९९ २१४ । २३५ ।। २१ २०१ २३ . जंबदवीपप्रज्ञप्ति . निरयावलिका कल्पवतंसिका . पुष्पिता पुष्पचूलिका . वृष्णिदशा - २०२ २०३ २०३ २०३ २०३ २०३ । । । । २७६ २९२ २९२ २९२ २९२ २९२ २६६ ~1914 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम पृष्ठांक: । पृष्ठांक: २०४ २०४ । आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: क्रमांक: | आगम का नाम | | लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम | आगम का नाम पृष्ठांक: | पृष्ठांक: । प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: २४ . चतुःशरण २९६ ।। २९ . संस्तारक आतुरप्रत्याख्यान २०४ २९७ ३०. गच्छाचार महाप्रत्याख्यान २०४ । २९८ ।। ३१ . गणिविज्जाय भक्तपरिज्ञा २०४ । २९९ ।। ३२ . देवेन्द्रस्तव . तंदुलवैचारिक २०४ । ३०१ ।। ३३ . मरणसमाधि ... [३४-३९] छेदसूत्र-वृत्ति का विषयानुक्रम पूज्य आगमोद्धारकश्रीने नही बनाया ... मूल-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः २०४ . । २०४ २०४ ३०३ ३०४ ३०६ ३०७ ३०९ २०४ ४० . आवश्यक ४१/१ . पिंडनियुक्ति . ओघनियुक्ति ४२ ४३ . दशवैकालिक . उत्तराध्ययन ----------------------- ४१/२ चूलिका-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: yu • नन्दी ।। ४५ . अनुयोगद्वारा CRECRACK ~192 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत-अनुसार कुल-सूत्र कुल१०७ । दीप अनुक्र २१४ २१८ ३६५ ०२१ واه و | واه ؟ १७८ १३१ ०४ ०२० । ००२ ००५ आगम-सूत्राणाम् प्रत-क्रमांक: एवं दीप-क्रमांक: आगम प्रत-अनुसार आगम का नाम । दीप | आगम | आगम का नाम क्रम कुल-सूत्र | कुल-गाथा | अनुक्रम | क्रम . आचार ४०२ | १४७ | ५५२ | १६ . सूर्यप्रज्ञप्ति ०२ . सूत्रकृत ०८२ ७२३ ८०६ १७. चन्द्रप्रज्ञप्ति ०३ . स्थान ७८३ १६९ १०१० १८. जंबूदवीपप्रज्ञप्ति |. समवाय १६० ०९३ ३८३ १९ . निरयावलिका ०५ . भगवती ८६९ ११४ १०८७ २०. कल्पवतंसिका ०६ . ज्ञाताधर्मकथा १६५ २४१ २१ - पुष्पिता ०७. उपासकदशा ०५८ ०७३ २२ . पुष्पचूलिका ०८ . अंतकृद्दशा ०२७ ०१२ ०६२ २३. वृष्णिदशा ०९. अनुत्तरोपपातिकदशा ००६ ००२ ०१३ २४ . चतु:शरण १०. प्रश्नव्याकरण ०१४ ०४७ २५. आतुरप्रत्याख्यान ११ . विपाकश्रुत ०३४ ००३ ०४७ २६ . महाप्रत्याख्यान १२ . औपपातिक ०४३ २७. भक्तपरिज्ञा १३ . राजप्रश्नीय ०८५ ०८५ | २८ . तंदलवैचारिक १४ . जीवाजीवाभिगम २७३ ०९३ ३९८ २९ . संस्तारक १५ . प्रज्ञापना | ३५२ | २३१ । ६२२ । ३० . गच्छाचार ००६ ००२ ०११ ०५७ ०१३ ००१ ००३ ००२ ००५ ००१ ०६३ ०६३ ०७१ وااه १४२ १७२ १३९ १३३ १४२ १७२ १६१ १३३ १३७ १३७ • आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र- १ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकरीने संपादित नही किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नहि ~193 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम-सूत्राणाम् प्रत-क्रमांक: एवं दीप-क्रमांक: आगम आगम का नाम ___प्रत-अनुसार । दीप आगम आगम का नाम क्रम कुल-सूत्र | कुल-गाथा | अनुक्रम | क्रम _प्रत-अनुसार । दीप कुल-सूत्र | कल-गाथा अनुक्रम ०२१ ३१. गणिविज्जा ३२ . देवेन्द्रस्तव ३३ . मरणसमाधि *४०. आवश्यक ४१/१ . पिंडनियुक्ति ०८२ ३०७ । ३०७ | ४२ ६६३ ६६४ ०२१ ०९२ ४४ | ६७१ । ७१२ । ४५ |. ओघनियुक्ति . दशवैकालिक . उत्तराध्ययन . नन्दीसूत्र . अनुयोगदवार ०८८ ८१२ । ११६५ ५१५ ५४० १६४० १७३१ ०९० १६३ १४१ ३५० ०५० ०५९ । १५२ । • आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र- १ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकरीने संपादित नही किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नहि ~194~ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ उपांगसूत्र + प्रकीर्णक-सूत्रलघुबृहविषयानुक्रमौ] इस प्रकाशन की विकास-गाथा ] * यह प्रत "उपांगसूत्र + प्रकीर्णक-सूत्र लघुबृहविषयानुक्रमौ' नामसे सन १९४८ (विक्रम संवत २००५) में 'सूर्यपूरीया श्री जैन पुस्तक प्रचारक संस्था' द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराजसाहेब | * पूज्यपाद् आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेबने 'औपपातिक' वगैरेह उपांगसूत्रो तथा "चतुःशरण" वगैरेह प्रकीर्णको के मूलसूत्र एवं उस पर पूर्वाचार्य रचित वृत्ति आदि का संपादन किया था | उन प्रतोमे जो मूलसूत्र, गाथा, वृत्ति आदि थे उन सभी सूत्रादि के विषयो का अनुक्रम संक्षेप और विस्तार से लिखकर इस प्रतमे प्रकाशित करवाया है । अर्थात् १२ उपांग और १० प्रकीर्णकसूत्रो के लघु और बृहत् विषयानुक्रम के रचयिता, संपादक और प्रकाशक श्री आगमोद्धारक आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब ही है। * पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेवश्रीने इसी तरह अंगसूत्रो और नन्दी आदि अन्य आगमसूत्रो के सूत्र-आदि के विषयो का अनुक्रम भी संक्षेप और विस्तार से लिखकर संपादन और प्रकाशन करवाया है । • हमारा ये प्रयास क्यों?* आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, अब तक मेरे प्रकाशित किये हुए पुस्तको के १,००,००० से ज्यादा पृष्ठ हो चुके है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिस के बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे प्रत संबंधी उपयोगी माहिती लिख दी है, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसे वर्ण का क्रम चल रहा है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके | * पूज्यपाद आगमोद्धारकरी ने आगम संबंधी ५२ विषयो को वर्गीकृत किया था, आज भी उनमे से ऐसी कई प्रते मिलती है, जिसमे ये विभाजन-क्रमांक देखने को मिलते है, उनमे से थोडे विषयो का काम हुआ भी है, जो मुद्रित स्थितिमे भी प्राप्त है। * शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म.सा. की प्रेरणा से और श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'आगम-संबंधी-साहित्य' भाग-4 का मुद्रण हुआ है, हम उनके प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है। .... मुनि दीपरत्नसागर. ~195 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आदय संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा.] उपांग + प्रकीर्णकसूत्र लघु-विषयानुक्रम: * पुन: संकलनकर्ता → आगम दिवाकर मुनि दीपरत्नसागर(M.Com.,M.Ed.,Ph.D.,श्रुतमहर्षि) ~1964 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-१ "औपपातिक"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपांगादीनां विषयानुक्रमादिः दीप क्रमांक के लिए देखीए POSEXSEXECXIMIREMESTER णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स श्रीआगमोद्धारसंग्रहे भागः २. उपांगादिनां विषयानुक्रम: [लघु विषयानुक्रमः] । [आगम-१२] उपांगसूत्र-१ “औपपातिक' श्रीऔपपातिकोपांगे लघुविषयानु- | २१ श्रीवीरागमनश्रीवीरवर्णनसाधुतद्गुणक्रमा | वर्णनम् सूत्राणि ४३ सूत्रगाथाः३० | ३३ असुरादिदेवनृपराज्ञीपर्षनिर्गमवर्ण ७ ७ सूत्रांकः। पत्रांकः॥ नम् १. चम्पापूर्णभद्रवनखण्डाशोकवृक्षपृथ्वी- | |४३, ३० देशना गौलमस्वामिप्रश्नैकविशिलापट्टककोणिकराजधारिण्यादि- शतिअम्मडसमुद्घातसिद्धवर्णनम् ११९ इति श्रीऔषपातिकोपागस्य संक्षिप्त क्रमः वर्णनम् 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~197 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-२ "राजप्रश्नीय" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए [आगम-१३] उपांगसूत्र-२ “राजप्रश्नीय” दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीराजप्रश्नीयोपांगे लघुविषयानु क्रमः सूत्राणि ८५ ५ आमलकल्पादिश्वेतनृपधारिणीसूर्याभ- ४५ सौधर्मविमानपीठिकोपपातादिसभा- । तद्धिवर्णनम् १७/ पूजनफलस्नानपूजादयः ११३ ११ बन्दनविचारमण्डलाद्यादेशमण्डलक- ८५ प्रदेशिचरिततदास्तिकतादेवत्वपाप्ति रणयानविमानादिवर्णनम् १५ विदेहमोक्षवर्णनम् १५० २६ धर्मकथानाट्यकूटागारदृष्टान्ताः ५९ इति राजप्रश्नीयोपाङ्गम्. 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~198~ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीप. विषयानुक्रमे देखीए श्रीराय श्रीजीवा० भीमज्ञा० रघुविषयानुक्रमः ॥२ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ९६, २४* तृतीयो नारकोद्देशः (१३१) | २४३ अष्टनी प्रतिपत्तिः [आगम-१४] उपांगसूत्र-३ २४४ नवमी प्रतिपत्तिः ४३५/ इति नारकाः ॥ इति संसारसमापन्नाः "जीवाजीवाभिगम" १०० प्रथमस्तियगुद्देशः (१३१) २७३, ९३ सिद्धादीनां स्थित्यन्तरारूप१०५ द्वितीयस्तिर्यगुद्देशः (१४३) बहुत्वानि ४६७ १५४,२९" जम्बूद्वीपाधिकारः (३००), जीवाजीगभिगमसूत्रस्य लघु इति जीवाजीवामिगमसूत्रस्य १९१, ८३* द्वीपसमुद्राः (३७३) विषयानुक्रमः॥ लघुविषयानुक्रमः॥ २०७, ८५* ज्योतिष्कोद्देशः (३८५) सूत्राणि २७३ सूत्रगाथा: ९३ | २.९, प्रथमो वैमानिकोद्देशः (३९०) १४ प्रथमा प्रतिपत्तिः ५१ २२४, ८८* द्वितीयो वैमानिकोद्देशः ४०७ ६५, ५* द्वितीया प्रतिपत्तिः ८८/२२६ चतुर्थी प्रतिपत्तिः ४११] २२४, ८८* तृतीया प्रतिपत्तिः ४०७, २४०, ९२ पञ्चमी प्रतिपत्तिः ४२७ ८१, ७* प्रथमो नारकोद्देशः (१०२) २४१ षष्ठी प्रतिपत्तिः ५२८ | ९५, १३* द्वितीयो नारकोद्देशः (१२९)/ २४२ सप्तमी प्रतिपत्तिः ४३१ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~199 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए रावृत्तिक आगम सुत्ता' [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- "प्रज्ञापना" | पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक - सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) सूत्राणि ३५२ प्रज्ञापनासूत्रस्य लघु-विषयानुक्रमः सूत्रगाथा: २३१ ३८, १३३ प्रज्ञावनापदम् १ ५४, १७९ स्थानपदम् २ ९३, १८१* बहुदक्तव्यतापदम् ३ १०२ स्थितिपदम् ४ १२१ विशेषपदम् ५ १४०, १८४* व्युत्क्रान्तिपदम् ६ १४६ उच्छ्वासपदम् ७ १४८] सापदम् ८ १५३ योनिपदम् ९ १८० १६०, १९१ चरमाचरमपदम् १० १७५, १९८ भाषापदम् ११ शरीरपदम् १२ १८५, २०० परिणामपदम् १३ १९०, २०१] कषायपदम् १४ २०१, २०८० इन्द्रियपदम् १५ १९८, २०६ प्रथम इन्द्रियोद्देशः ७१ ११३ [आगम-१५] उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" २१८ २२१ ३३० ३७३ १६८ २०१, २०८ द्वितीय इन्द्रियोद्देशः (३१७) २९९ २१७ कर्मप्रकृतिपदम् २३ ४९१ १७८ २०५ प्रयोगपत्रम् १३ २९३, २१७ * प्रथमः कर्म प्रकृत्युद्देशः (४६५) २०४२३२, २१०* १७ लेश्यापदम् २९९ द्वितीयः कर्मप्रकृत्युद्देशः (४९२ ) ३०० कर्मबन्धपदम् २४ ३०१ कर्मवेदपदम् २५ ३०२ कर्मवेदबन्धपदम् २३ ३०३ कर्मवेद वेदपदम् २७ ४९४ ४९४ २२४ ४१७ २२८ ४९८ २४६ २१३, २०० प्रथमो लेश्योंदेशः (३४३) २२१ द्वितीयो लेश्योद्देशः (३५२) २२४ तृतीयो लेश्योद्देशः (३२८) २३०, २१०० चतुर्थी श्ये देशः (३७०) २३१ पञ्चमो लेश्योद्देशः (३७२) २३२ षष्ठो लेश्योद्देशः (३७३) २२४, २१२० कार्यस्थितिपदम् १८ ३९५ २८२ २५५ सम्यत्पदम् १९ ३९५ २९२ २६७, २१३* अन्तक्रियापदम् २० ३१७२७९, २१६* शरीरपदम् २१ (१०८) २८८ क्रियापदम् २२ २६८ २८४ ५२४ ३१२, २२०* आहारपदम् २८ ३०९, २१९ प्रथम आहारोद्देशः (५११) ३१२२२०० द्वितीय आहारोद्देशः (५२४) ३५३ उपयोगपदम् २९ ५२८ ३१५ पश्य तापदम् ३० ५३३ ४०७ ४३५ ३१६ २२१ सशिपदम् ३१ ४५२ ३१७, २२२० संयतपदम् ३२ ५३४ ५३८ ~200~ ५४३ ३२१, २२३ अवधिपदम् ३३ ३२९, २२५* प्रवीचारपदम् ३४ ५५३ ३३२, २२७ वेदनापदम् ३५ ५५८ ३५२, २३१" समुद्घातपदम् ३६ ६१९ इति प्रज्ञापनाया लघुविषयानुक्रमः । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीप्रज्ञा यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे , (१००) देखीए श्रीसूर्य लघुविषयानु क्रमः , दीप (११) क्रमांक के लिए देखीए [आगम-१६+१७] १८ पष्ठ प्रा० १९ सप्तमं प्रा० उपांग-५ + ६ २० अष्टमं प्रा० सूर्य+चन्द्रप्रज्ञप्ति २३ द्वितीयं प्राभृतं २१ प्रथम प्राभृतप्राभृतम् २२ द्वितीयं प्रा० श्रीसूर्यप्रज्ञप्तर्लघुविषयानुक्रमः ॥ २३ तृतीयं प्रा० सूत्राणि १०७ सूत्रगाथाः १०२ | २४ तृतीयं प्राभृते २०, १५" प्रथम प्राभृतम् । ४४ २५ चतुर्थ प्रा० ११,१५प्रथमं प्राभृतप्राभूतम् (१६)/२६ पञ्चमं प्रा० १३ द्वितीय प्रा. , (२१)| २७ षष्ठं प्रा० १४ तृतीयं प्रा० , (४)| २८ सप्तमं प्रा. १५ चतुर्थ प्रा० (२८)/ २९ अष्टमं प्रा. १७ पञ्चमं प्रा (३१) ३१ नवमै प्रा. (३५) ७०,२४ दशमं प्रा० (३७) ३२ प्रथम प्राभूतप्राभृतम् (४४), ३४ द्वितीय प्रा०, (१०४) ३५ तृतीयं प्रा. (१०५) (४८) ३६ चतुर्थ प्रा. (५०), ३७ पंचमं प्रा. " ३९ षष्ठ प्रा. ४० सप्तमं प्रा०, ११ अष्टमं प्रा० , ४२ नवमं प्रा० ४३ दशमं प्रा० ॥ (१३७) ४५ एकादशं प्रा., ४६ द्वादशं प्रा." ९९ ४७, १८* त्रयोदशं प्रा० ।, (१४७) . : . vo.96 . 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥ ४ ॥ ~2017 Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) । [आगम-१७] उपांगसूत्र-७ “जंबूदवीपप्रज्ञप्ति" श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्ल घुविषयानु. क्रमः॥ सूत्राणि १८१ सूत्रगाथाः १३१* ११२, ६९* चतुर्थो वक्षस्कारः ३८२ १७, ३ प्रथमो वक्षस्कारः १२४,८०* पञ्चमा वक्षस्कारः ४२४ ४१, ८* द्वितीयो वक्षस्कारः १७८ १२६, ८२* षष्ठो वक्षस्कारः ७२, ४१ तृतीयो वक्षस्कारः २८१ १८१,१३१* सप्तमो वक्षस्कारः ५४२ • ७१, ४१* भरतचरित्रम् (२८०) श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्लघुर्विषयानुक्रमः॥ ८८ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~202 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ८ से १२ "निरयावलिका-पंचक"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत [आगम १८-२३] उपांगसूत्र ८-१२ निरयावलिका-आदि पंचक सूत्रांक यहां देखीए (२९) १९ दीप क्रमांक के लिए देखीए (३६) निरपावलिकाना लघुर्विषयानुक्रमः सूत्राणि ३१ सूत्रगाथा: ५* २० प्रथमो, वर्ग: १९ प्रथमाध्ययनम् (१९) २० अध्ययनचतुस्कम् २२, १* द्वितीयो वर्ग: २८, २* तृतीयो वर्गः २३, २* प्रथमाध्ययनम् २४ द्वितीयमध्ययनम् २५ तृतीयमध्ययनम् २६ चतुर्थमध्ययनम् २७ पञ्चममध्ययनम् २९ १* चतुर्थों वर्गः ३.५* पञ्चमो वर्गः इति निरयावलिकानां लघुविषयानुक्रमः ।। (२३) 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~203 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- १ से १० “चतुः शरण- आदि" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां० विषयानुक्रमे ॥ ६॥ ५ प्रकीर्णकदशके लघुर्विषयानुक्रमः | ७०९ संथारपइणयं ६. १२३, ६१ सूत्राणि २० सूत्रगाधाः १८९९* ८४६* गच्छायारपणयं ७. १३७, * ७० ९२८* गणिविज्जापणयं ८. ८२, ७६ ६३* चउसरणं १. १२३५ देविदत्थयपइणयं ९. ३०७, * १, १३३* आउरपचक्खाणं २. ७०, १० ९६ २७५ महापञ्चकखाणं ३. १४२, १९ १८९* मरणविहिपइण्णयं १०, ६६४, * ४४७* भतपरिष्णं १४२ ४. १७२,३१ २०,५८६* तंदुलवेयालियं ५. १९, ५३ इति प्रकीर्णकानां लघुर्विषयानुक्रमः ॥ इति उपांग + प्रकीर्णकसूत्र लघु विषयानुक्रमः [आगम २४-३३] प्रकीर्णक १-१० विषयानुक्रमः ~204~ प्रकीर्णक० निस्यावलि० लघुविषयानु क्रमः ॥ ६ ॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आद्य संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा.] उपांग + प्रकीर्णकसूत्र बृहविषयानुक्रमः - पुन: संकलनकर्ता , आगम दिवाकर मुनि दीपरत्नसागर(M.Com.,M.Ed.,Ph.D..श्रुतमहर्षि) ~205 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- १ “औपपातिक" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) श्रीउपां० विषयानुक्रमे 119 11 ॥ श्रीउपांगादीनां ब्रहृद्विषयानुक्रमः [आगम-१२] उपांग-१ औपपातिक श्री औपपातिकोपांगस्य बृहदूविषयानुक्रमः ७ धारिणीराज्ञीवर्णनम् । १.३ 98 ८ प्रवृत्तिव्यावृतिवर्णनम् । ९ कोणिकराजोपस्थानशालो पवेशनम् । १४ १० श्रीमहावीरवर्णनं, उपग्रामे श्रीबीरागमनं च । २२ ११. प्रवृतिव्यापृतकृता वर्द्धापनिका । २४ १२. कोणिक कृतमभ्युत्थाननमस्कारप्रीतिदानादि । २६ ११ १३ श्रीवीरस्य पूर्णभद्रे समवसरणम् । २६ । १२ १६ उप्रप्रत्रजितादिसाधुवर्णनं मतिज्ञान्या- २१ सूत्राणि ४३; सूत्रगाथाः ३००. मङ्गलोपोषातादि । १ चम्पावर्णनम् । २ पूर्णभद्र चैत्यवर्णनम् । ३ वनखण्डवर्णनम् । ४ अशोकवृक्षवर्णनम् । ५ पृथ्वीशिलापट्टकवर्णनम् । ६कोणिकराजवर्णनम् । १ 8 ६ ८ दि. कनकावल्यादितपो, मासिक्यादिप्रतिमाकारक साधुवर्णनं, जात्यादिसाधु गुणवर्णनम् । १७ ईर्यासमित्यादिगुणानामप्रतिबद्धतायाश्च वर्णनम् । १८ बाह्याभ्यन्तरे तपसी । ~206~ ३४ ३७ ३७ १९ अनशनादीनां बाह्यभेदानां वर्णनम् । ४१ २० प्रायश्चित्तादीनामभ्यन्तरभेदानां वर्णनम् । मुनीनां वाचनापृच्छ धर्म कथादि ४५ श्री औपपा० बृहद्विषयानुक्रमः ॥७॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-१ "औपपातिक*] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपां. वर्णनं, संसारस्य समुद्रेग रूपकं, संय- | २९ आभिषक्पहस्ति रत्नानयनादेशः। ६१ पञ्च महाबतद्वान ब्रतस्वरूपम् । ८२ISI श्रीआपपा० विषयानुक्रमे मस्य च पोतेन। ४८ . हस्तिनो वर्णनं, तदानयनं, यानवर्णनं, | ३५-३७ श्रोतृणां दीक्षाद्वा शतप्रतिपत्ति विषयानुक्रमः ॥८॥RI २२ असुरकुमारागमनवर्णनम् । ५० यानशालिकेन यानानयनम् । ६४ सम्यक्बानि ३५ कोणिककृता २३ शेषभवनवास्यागमनवर्णनम् । ५५ ३१ कोणिकस्याट्टनशालापवेशमर्दनमज्ज- | प्रशंसा, ३६ सुभद्रादिराज्ञीकृता२४ व्यन्तरागमनवर्णनम् । नविलेपनालङ्कारनिर्गमाष्टमङ्गलपूर्ग- प्रशंसा ३७। २५ ज्य तिष्कागमनवर्णनम् । ५२ कलशादिच्छत्रयष्टिमहादिहयगजर- ३८६-७* गौतमस्य वर्णने, जातश्रद्ध २६ वैमानिकागमनवर्णनम् (देव्यागमन- | थवर्णनं, महा निर्गमश्च । ७३ त्वादि, प्रश्नश्च (१२) वर्णनम् । ५६ ३२ अर्थाांद्यभिनन्दनादि, पञ्चाभि- (१) असंयतस्य पापाश्रवः, (२) २७ चम्पायां जनसमवायः, वीरागमनसमा- | गमाः, पर्युपासना च। ७६] मोहाश्रवः (३) मोहनीयवेदने चारः, उग्रपुत्रादीनां वन्दनपूजनाद्यर्थः | ३३ कुछ जादिदासी परिवृतसुभदार श्याग-। मोहबन्धभजना (४) उस्सन्नत्रसमागमेच्छा, स्नानादि, हयरोहादि, | मनादिवर्ण तम्। घातिनां नरके उपपातः, (५) अकाप्रदक्षिणादि। ६१ ३४,१५* श्रीवीरस्य पर्षस्वरयोर्णनं, मतृक्षुधादिमतां दशसहस्र स्थितिषु २८ प्रवृत्तिव्यापूतकृता वीपनिका, प्रीति- | लेकालो कास्ति वादिपाणातिपातवि- देवेषूपपातः (६) अन्दुबद्धादीनां दानादि च। ६। रमणादिदेशना, नरकादिगतिहेत्वादि, | द्वादशवर्षसहसस्थितिकेषु (७) प्र IV VANNAKIVISVAN EVEMENU 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~207~ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-१ "औपपातिक"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुको श्रीऔपपा० यहां बृहद देखीए विषयानुक्रमः ॥९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए *TANETRANEPRAEEEEEEEE कृतिभद्रकमातापितृशुश्रूषकादीनां च- व्युत्सर्गः, अनशनं च, दशसागरोप- | रश्चां चाष्टादशसागरेणूत्पत्तिराराधकाश्च, टुर्दशवर्षसहस्रस्थितिकेषु (८) पति- । मेधूपपातः, नवरमाराधकाः। ९६ (१७) द्विगृहान्तरिकाद्याजीविकानां गतिकानां चतुःषष्टो (९) दक- ४० (१४) अम्बडस्य वैक्रियलब्धिरब- द्वाविंशतौ (१८) आत्मोत्कर्षिता द्वितीयादीनां चतुरशीतौ (१०) धिज्ञानं शतगृहे बसतिः अभिगत- दीनां द्वाविंशतौ,(१९)बहुरतादीनाहोत्रिकादिवानप्रस्थानां (१५) का. जीवत्यादि आधाकमांदिवजन अ- मेकविंशतो, अनाराधकाश्च, (२०) न्दर्पिकादिनामपि (1) सांख्य- नर्थदण्ड ( ४ ) त्यागः जलमानादि अल्पारम्भदेशविरतिजीवाजीवावज्योतिगदिपरिव्राजकानां दानशौच- अन्यतीर्थिकवन्दनत्यागश्च, अनश- बोधादियौषधालोचनसमाधियुताना तीर्थाभिषेकवादिनां च दशसागरोप- नेन ब्रह्मलोके उत्पत्तिः, महाविदेहे- द्वाविंशती (२१) अनारम्भसर्वपापमेषूपपात ७° ऽवतारः दृढप्रतिज्ञे यभिधान, द्वास- निवृत्तिमता साधूनां तु त्रयविंशति, ३२ (१३)अम्बडशिष्यसप्तशत्या अदत्ता- सतिः कलाः कलाचार्यसत्कारः | (२२) क्षीणक्रोधादीनां मोक्षः । १०७ दानरक्षा वालुकासंस्तारकः अह- भोगेऽन्यासमा, प्रवज्या सिद्धिश्च १०३ ४२,८ केबलि समुद्राते (प्रदेशनिर्जरापु@ोराम्बडनमस्कारः अम्बडसमीपप्र- |४१ (१५ आचार्यपत्यनीकादीनां त्रयो. द्गलैश्च लोकव्याप्तिः, व्याप्तघ्राणपुद्गत्याख्यातहिंसादेवी रसाक्षिकं प्रत्या- | दशसागरोपमेषूत्पत्तिरनाराधकाचा लवच्छद्मस्थैरज्ञानादि, वेदनीयादिख्यानं चतुर्विधाहारत्यागः शरीर. : (१६) जातिस्मारकाणुषतादिमता, तिः | क्षयार्थ समुद्घातः, असंख्यातसाम 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~208 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-१ "औपपातिक*] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. यहां विषयानुक्रमे श्रीऔप. श्रीराजप्रश्नो. देखीए ॥१०॥ विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए यिकमावर्जीकरणं, अष्टसामयिकः समुद्घातः, औदारिकतन्मिश्रकार्म - णयोगास्तत्र, निवृत्तानां त्रियोगिता, पीठादिप्रत्यर्पणम्। ४३ सयोगानामसिद्धिः, योगनिरोधः, गुणश्रेणिकर्मक्षपण, सिद्धिः, सिद्वानां स्वरूपं, संहननसंस्थानायूषि, ईषत्पाग्भाराया वर्णनं, नामानि, उपरितने गव्यूते स्थानम् । ११५ ९-३० सिद्धानां प्रतिघात-प्रतिष्ठा-तनु त्यागसंस्थानावगाहनापरस्परस्पर्श लक्षणसुखस्वरूपादि। ११९ Sl॥इत्यौपपातिकसूत्रवृहविषयानुक्रमः ।। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥१०॥ ~209~ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- २ "राजप्रश्नीय" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री उपां० विषयानुक्रमे ॥ १० ॥ [आगम- १३] उपांग-२ राजप्रश्नीय श्रीराजप्रश्रीयोपाङ्गस्य बृहद्विषयानुक्रमः । सूत्राणि ८५. वीरनमस्कारः ॥ गुरुनियोगाद्विवरणकरणप्रतिज्ञा ॥ राजप्रश्रीयोपाङ्गशब्दयोरन्वर्थी । १ आमलकस्पानगर्यतिदेशः । २. आम्रशालवनाद्यतिदेशः । ३ अशोकवर्णनाद्यतिदेशः । ४] श्वेतनृपधारिणी देवी वीरसमवसरणायतिदेशः । 9 ४ १४ ५ सूर्याभदेवतद्ऋद्धिवीरवन्दनानि । १७ ६ वन्दनाय गमनविचारः । १७ ७ आभियोगिकाय योजनमण्डल करणाचादेशः । ~210~ १९. ८ आभियोगिकानामुत्तरं वैक्रियकरण मागमनं वीरवन्दनादि च । ९ पुराणजीतादिकथनम् । १० वैक्रियसमुद्घातः, संवतक वातविकुणा, अभ्रवाल, वृष्टिः पुष्पवादलं, जलस्थलज पुष्पवर्षणं, प्रत्यागत्य नि. वेदनम् । २० २० २३ ११. सुस्वरघण्टावादनाऽऽदेशः । २५ १२ वन्दनार्थं गमनाज्ञा । २६ १४ जिनभक्तिधर्मादिभिर्बन्दनपूजनाद्यर्थ देवागमनं १३, मानविमानविकुबणादेशः १४ । १५ यानविकुर्वण, त्रिसोपानतोरणबहुमध्यभूभागकृष्णादिमणितगन्धस्पर्श २७ श्री ओप श्रीराजप्रश्नो० बृहद्विषयानुक्रमः ॥ १० ॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- २ "राजप्रश्नीय" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां० विषयानुक्रमे ।। ११ ।। प्रेक्षागृह मण्डपमणिपीठिका सिंहास नविजयदृष्य सामानिकादिभद्रासनवर्णनम् । ४२ १६ विमानारोहणं मङ्गलाष्टकं छत्रचामरादिवर्णनम् । १७- १९ औतराहनिर्याणेन निर्गमनं, आग्नेयरतिकरे सङ्क्षेपः, आमलकपायामागमः, ऐशान्यां यानस्थापनं, वीरप्रदक्षिणा १७, पुराणाद्युवस्याऽनु मोदनं १८, बन्दनादि १९, ४४ २०-२३ धर्मकथा २०, सूर्याभस्य भवसिद्धिकादीनि प्रश्नोत्तराणि २१, नाटूयदर्शनप्रार्थना २२, प्रेक्षागृह मण्डप - मणिपीठिका सिंहासनविकुर्वण भगव ४० ५९ दाज्ञाग्रहणनिषदनकुमारकुमारीविकुर्वणाऽऽतोद्यग्रहणवादनस्वस्तिका दिनट्यदर्शनम् २३ । ५२ ३० चक्रध्वजादिभौमाष्टमङ्गलद्वारसड्२५ आदिद्वात्रिंशद्विधनाट्यदर्शनं ख्यातदायामादिवर्णनम् । २४, सूर्याभप्रतिगमनम् २५ । ५६ ३२ भूमिभागपञ्चवर्ण तृणमणिशब्दवर्णनं २६ ऋद्धिसंकोच कूटागारशालाड- १३, वापीपुष्करिणीदीर्घिकादित्रिसोष्टान्तः ( गौतमवर्णनम् ) । पानाद्युत्पादादिपर्वतसाद्यासनाss२७ सौधर्मावतंसकस्य पूर्वस्यां सूर्याभवि स्यादिगृहजात्यादिमण्डपहंसासनसं मानं, तत्माकारद्वारादिवर्णनम् । ६३ स्थानादिशिलापट्टक देवकीडावर्णनम् २८ चन्दनकलश नागदन्तदाम सिकगधूप ३२ । घटीशालभञ्जिकावर्णनम् । २९ घण्टा वनमालाप्रकण्ठकतोरणहयादिसङ्घाटक दिकस्वस्तिकादिमनोगुलिकावात करकरत्नकरण्डकयादिक ३३ प्रासादावतंसक तन्मानाधिष्ठायवर्ण. नम् । ३४ पद्म वरवेदिका हेमादिजालहयादिस खाटक वेदिकातद्वीध्याद्युपलादिवे ~211~ ष्ठपुष्पादि चङ्गेरीच्छत्रचामरसमुद्रवर्णनम् । ६६ ७१ ७९ ८१ ८२ श्रीराजमभी० बृहद्विषयानुक्रमः ॥ ११ ॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- २ "राजप्रश्नीय" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) अनारका साधतः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकी श्री उपां० विषयानुक्रमे ॥१२॥ दिकाशाश्वतशाश्वतत्ववनखण्डायामादिवर्णनम् । ८५ ३५ मध्यमासादतत्परिवारप्रासादवर्णनम् ॥८६ ३६ सुधर्मासभा द्वारादिमुखमण्डप प्रेक्षा गृहमण्डपक्षपाटकमणिपीठिका सिंहास नस्तूपजिनमतिमा चैत्यवृक्ष महेन्द्रध्वजनन्दापुष्करिणीमनोगुलिकादि चैत्यस्तम्भफलक नागदन्तसमुद्भकजिनस विथतत्पुज्यतावर्णनम् । ३७ देवसैन्यवर्णनम् । ३८ शुल्कक महेन्द्रध्वजवर्णनम् । ३९ सिद्धायतनमणिपीठिका देवच्छन्द जि नप्रतिमाहस्तपादादिस्वरूपच्छत्रधरादिप्रतिमाष्टशतध्वज कडुच्छुकान्तव ९२ ९३ ९४ र्णनम् । ९७ ४० उपपातसभादाभिषेकसभाभाण्डालङ्कारिकसभाव्यवसाय सभापुस्तकरत्नतदुपकरणादिवर्णनम् । ४१ सूर्याभस्योत्पत्तिः, पूर्व श्रेय आदिवि - चारजिनप्रतिमासक्थिपूजनफलम् । १०४ ४४ जलावगाहाभिषेकसभागमनाष्टसहखसौवर्ण कलशादिवैकियक्षीरोदपुष्करोदमागधादितीर्थ जलहूद नदी मलमृ चिकाक्षुल्क हिमवदादित्वराद्यानयनेन्द्रत्वाभिषगन्धोदकदृष्ट्या दिवार्जि गीतनृत्यादिदेवाशीर्वादस्नानालङ्कारपरिधानवर्णनम् ४२ व्यवसाय सभाग मन-पुस्त करनवाचनानन्दापुष्करिणी ~212~ गमनजलोत्पलादिग्रहणानि ४३, उत्पलड् स्तशेषदेवदेवीयुक्तता, जिनप्र तिमाप्रणाम पूजाऽष्टमङ्गलस्तुतिपुष्पप्रकर दक्षिणमुखमण्डपतरस्तम्भपड़िकस्तूपप्रतिमापूजन सुधर्म सभागमनादिव्यवसाय सभागमन पुस्तक पूजादिवर्णनं त्रिकादिषूद्घोषणा च ४४ । १२ ४५ सामानिका महिषी पर्यदात्मरक्षकवर्णनम् । ५५ सूर्याभस्थितिः ४६, तद्ऋद्धिमा प्तिन्नः ४७ प्रदेशिराजवर्णनं ४८, सूर्यकान्तादेवीसूर्यकान्त कुमारवर्णनं ४९, ५०, चित्रसार विवर्णनं ५१, १.१३ श्रीराजप्रश्री० बृहद्विषयानुक्रमः ॥ १२ ॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- २ "राजप्रश्नीय" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां० विषयानुक्रमे ॥ १३ ॥ समाभृतस्य चित्रस्य श्रावस्तीगमनम् ५२, केशिकुमारवर्णनम् ५३, चित्रस्य श्रावकधर्माङ्गीकारः ५४, चित्रस्य श्रावकधर्मपालनम् ५५ । १२४ ६१ चित्रस्य विसर्जन, श्वेताम्बिकाऽऽगम नाय केशिनो विज्ञप्तिः, प्रदेशिनुपस्वरूपकथनं ५६, स्वोद्यानपालकाय केशिकुमारागमने वन्दनाद्युपदेशः ५७, प्रदेशिसमाचारकथनं ५८, केशिकुमारागमनं उद्यानपालकवन्दनादि वर्द्धापनमागमनं च ५९, प्रदेशिप्रतिबोधविज्ञप्तिः ६०, धर्मप्राप्त्यप्राप्तिकारणानि, अश्वव्याजेनानयनकथनम् ६१ । १२८/. ६४ अश्वन्याजेनानयनं, जडमूढादिवि चारः; आहारादिप्रश्नः केशिस्वरूपकथनं जिगमिषा च ६२. आघोडनधिकान्नजीविकप्रश्नः, विचारकथ नं च ६३, मतिश्रुतादिज्ञानस्वरू पम् । १२१ ६६ उपवेशाज्ञा, तज्जीवतच्छरीरे पित्रनागमः साधनं ६५, मात्रनागमेन जीवाभावसाधनम् ६६ । १३८ ७४ अयः कुम्भीचौरहृष्टान्तः ६७, वृद्ध स्य पञ्चकण्डकानुत्पाटनं ६८, अयोभाराद्यवहनं ६९, भाराविशेषः, देहच्छेदेऽदर्शनं ७०, पर्षत्तदपराधदण्डनिरूपण', व्यवहार्य व्यवहारिनिरूपणं च ७१, वायोरदर्शनं, धर्मा ~213~ स्तिकायायदर्शनं ७२, हस्तिकुन्थुजी श्रीराजमश्री० वसमत्वम् ७३ । परम्परागतमिथ्या. बृहद्स्वात्यागेऽयो ग्राहिदृष्टान्तः ७४-१४१ ॐ विषयानुक्रमः ८० गृहिधर्मप्रतिप्रत्तिः ७५, कलाशिस्पधर्माचार्यविनयः ७६, सान्तःपुरेण द्वितीयदिने क्षामणं ७७, पश्चा दरमणीयतानिषेधः सदृष्टान्तः राज्यचतुर्भागकरणोक्तिः ७८, राज्यचतुभीगकरणं ६२, विषदानं ८०, १४५ ८५ आराधना ८१, महाविदेद्दे दृढमति ज्ञजन्मादि ८२, कला ग्रहणादि ८३, निर्लेपता दीक्षा सिद्धिश्व ८४, उपसंहारः ८५ । | इति श्रीराजप्रश्नीयोपाङ्गवृहद्विषयानुक्रमः १५० ॥ १३ ॥ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र - ३ “जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) [आगम-१४] उपांग-३ “जीवाजीवाभिगम १६ अटकायभेदाः १७ बादरा काय भेदाः १७-१८ वनस्पतिभेदाः, सूक्ष्मवनस्पति भेदाः श्रीउपां० विषयानुक्रमे ॥१४॥ श्रीजीवाजीवाभिगमस्य विषयसूचिः १ शास्त्रभूमिका प्रामाण्यं च २ अभिगमभेदौ ३ अजीवाभिगमभेदाः ४ अरूप्यजीवाभिगमभेदाः ५ रूप्यजीवाभि० ६ जीवाभिगमभेदाः ७ असंसारसमापन्नभेदाः ८ संसारसमापन्नभेदाः ९ प्रतिपत्तिभेदाः १० स्थावरमेदाः ११ पृथ्वी कायिकभेदाः १२ - १३ सूक्ष्मपृथ्वीकायिक भेदाः १४-१५ श्लक्ष्णबादर पृथ्वी काय २ ४ १९ बादरवनस्पतिभेदाः २० प्रत्येक वनस्पतिभेदाः ७ २१. साधारणबादरवनस्पतिभेदाः ८ २२ प्रसभेदाः ८२३ तेजस्कायमेदाः ९ २४ सूक्ष्मतेजस्काय भेदाः ९ २५ बादरतेजस्काय मेदाः १० २६ वायुकाय भेदाः १० २७ औदारिकत्रसभेदा: २२ २८ द्वीन्द्रिय मेदाः ~ 214~ २४ २९ श्रींद्रियमेदाः २४ ३० चतुरिंद्रियभेदाः ३१. पंचेंद्रियमेदाः २५३२ नैरयिक भेदाः २६ ३३ तिर्यक्पंचेंद्रियभेदाः २६ ३४ समूर्च्छिमभेदा: २७ ३५ जलचरभेदाः २७ ३६ समूच्छिमपंचद्रियतिर्यग्भेदाः २८ ३७ गर्भजतिर्यग्भेदाः २८ ३८ गर्भजजलचरतिर्यग्भेदाः २८ ३९ गर्भजस्थलचरभेदाः २९ ४० गर्भजखेचरभेदाः ३० ४१ मनुष्य भेदाः ३० | ४२ देवभेदाः ३२ ३२ ३३ ३५ ३५ ३६ ३७ ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ४८ श्री जीवा ० विषयसूचिः ॥ १४ ॥ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपा. विषयानुक्रमे ॥ १५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ४३ त्रसस्थावरस्थितिभेदाः ५० ५६ पुरुषाल्पबहुत्यभेदाः ७१ ६९ पृथ्वीकाण्डादिभेदाः श्रीजीवा. इति प्रथमा प्रतिपतिः ५७ पुरुषवेदस्य स्थितिभेदाः ७४ ७० नारकावाससंख्याभेदाः विषयसूचिः ४४ जीवास्त्रिभेदाः ५२ ५८ नपुंसकभेदाः ७१ घनोदध्यादिभेदाः ४५ स्त्रीभेदाः ५२ ५९ नपुंसकस्थित्यन्तरभेदाः ७२ काण्डाद्यन्तरभेदाः ४६ स्त्रीवेदस्थित्यादिभेदाः ५३ ६० नपुंसकानामरूपबहुत्वमेदाः ७३ रत्नप्रभाकाण्डादिद्रव्यस्वरूपभेदाः ९१ ४७ तिर्यकत्रीस्थित्यादिभेदाः ५४ ६१ नपुंसके बन्धस्थितिभेदाः ८२ ७४ रत्नप्रभादिसंस्थानभेदाः ४८ सामान्यविशेषतया खीत्वस्थितिभेदाः५७ ६२ वेदानामरूपबहुत्वभेदाः ७५ रत्नप्रभादीनामलोकाबाधादिभेदाः ९४ ४९ स्त्रीणामन्तरभेदाः ६. ६३ वेदानां स्थितिभेदाः ७६ घनोदधिबाहल्यमानभेदाः ५० स्त्रीणामल्पबहुत्वभेदाः ६२ ६४ वेदानामरूपबहुत्वमेदाः ७७ रत्नप्रभासर्वजीवपुद्गलोत्पादः ५१ स्त्रीवेदबन्धस्थितिभेदाः ६५ इति द्वितीया प्रतिपत्तिः ७८ रत्नप्रभायाः शाश्वतेतरत्रे भेदौ ५२ पुरुषभेदाः ६५ ६५ जीवाश्चतुर्भेदाः ७९ काण्डाद्यन्तरवर्णनम् ५३ पुरुषस्थितिभेदाः ६५६६ नारकाणां पृथ्वीनां भेदाः ८० रत्नप्रभादीनामरूपबहुत्वमेदाः ५४ पुरुषवेदस्य स्थितिभेदाः ६७ ६७ नारकाणां पृथ्वीनां नामगोत्रमेदाः ८८ | ५५ पुरुषवेदस्यान्तरभेदाः ६९.६८ , बाइल्यभेदाः ८८ ८२ नरकावाससंस्थानभेदाः । PAL॥१५॥ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~215 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपा. विषयानुक्रमे | श्रीजी वा० विषयसूचिः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ८३ नरकावासानां वर्णभेदाः १०६/ ९७-१०२ तिर्यग्योनिभेदाः ८५ नरकावासाना महत्त्वं .१००/ १०३-१०४ तिर्यकत्रीभेदाः ८५ नरकावासाधिकारः १०९/१०५ मनुष्यभेदाः |८६ उपपातसंख्याऽवगाहनाभेदाः ११०/१०६ संमूछिममनुष्यभेदाः ८७ नारकाणां संहननसंस्थानगन्धाद्या १०७ गर्भजमनुष्यभेदाः भेदाः ११८१०८ अन्तरद्वीपभेदाः । ८८ नारकाणां श्वासाहारलेश्यादृष्टिज्ञाना- | १०९ एकोरुकमनुष्याणां भेदाः ज्ञानयोगोपयोगसमुद्घातभेदाः ११५/ ११०-११३ मनुष्याधिकारः ८९ नारकाणां क्षुत्पिपासभेदाः ११६ ११४ देवभेदाः ९. नैरयिकाणां स्थितिभेदाः १२६/ ११५ भवनवासिभेदाः ९१ नारकाणामुद्वर्तनाभेदाः ११६ भवनबासिभवनभेदाः ९२-९५ नरकेषु पृथिव्यादिस्पर्शस्वरूप ११७ असुरकुमाराणां भवनभेदाः भेदाः १२९ ११८ चमरस्य पर्षभेदा: | ९६ तिर्यगभेदाः १३१ ११९ उत्तरत्यानामसुरकुमाराणां भवनानि भेदश्चः १६६ १४२] १२० नागादिकुमाराणा भवनभेदाः । १४३ १२१ वानमन्तराणां भवनभेदाः १७१ १२२ ज्योतिष्काणां भवनभेदाः १७४ १४४ | १२३ तिर्यगलोकद्वीपसमुद्रभेदाः १२४ आकारभेदाः १२५ पावरवेदिका १५६/ १२६-१२७ वनखण्डवर्णनम् १५८/१२८ विजयद्वारवर्णनम् , १२९ जंबूद्वीपविजयद्वारवर्णनम् १३. विजयद्वारवर्णनम् , १३१ विजयद्वारतोरणभेदाः १६५ १३२ विजयद्वारचक्रध्वजभेदाः १३३ विजय० रत्नवर्णनम् 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~216~ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे श्रीजीवा० विषयसूचिः यहां देखीए ||१७|| दीप क्रमांक के लिए देखीए FARSORAS १३. विजय० विजयदेववर्णनम् | १३५ बिजयदेवराजधानीवर्णनम् १३६ विजयद्वारवनखण्डभेदाः १३७ विजयदेवसभावर्णनम् १३८ माणवकस्तम्भदेवशयनीय वर्णनम् १३९ सिद्धायतनादिवर्णनम् १.४० तिर्यगधिकारे सिद्धायतनम् | १४१ बिजयदेवाभिषेकवर्णनम् १४२ विनयदेवजिनपूजावर्णनम् | १४३ बिजयदेवपरिवारस्थित्यादि वर्णनम् १४४ वैजयन्तद्वारभेदाः १४. वैजयन्तस्यान्तरभेदाः २१६ १४६ स्पर्शोत्पाटपृच्छावर्णनम् २१८, १४७ उत्तरकुरुवर्णनम् । १.४८ यमकपर्वतवर्णनम् २२६/ १.४९ नीलवद्धदादिवर्णनम् १५० काञ्चनपर्वतवर्णनम् २३० १५१ जम्बूपीठवर्णनम् २३२ १५२ जम्बूवृक्षवर्णनम् २३५/ १५३ जम्बूद्वीपे चन्द्रसूर्याधिकार२३७ वर्णनम् २५२| १५४ लवणसमुद्रवर्णनम् १५५ लवणे चन्द्रादीनां वर्णनम् २५९/१५६ लवणे वेलावृद्धिवर्णनम् २६०/ १५७ लवणे जलवृद्धौ कारणं १५८ लवणे वेलन्धरवर्णनम् २६१ १५९ वेलन्धरभेदाः २६२] १६० अनुवेलंधरराजभेदाः २८६/ १६१ गौतमद्वीपवर्णनम् ३१४ २८७१६२ जम्बूद्वीपगतचन्द्रसूर्यवर्णनम् ३१५ २९१ १६३ लवणगतचन्द्रसूर्यवर्णनम् ३१५/| १६४ धातकीखण्डगतचन्द्रसूर्यवर्णनम् ३१७ १६५ कालोदगतचंद्रसूर्यवर्णनम् , १६६ द्वीपसमुद्रवर्णनम् १६७ देवद्वीपादिचन्द्रसूर्यद्वीपादि वर्णनम् ३०३१६८ लवणे वेलन्धराद्या उच्छ्रितो ३०५ दत्वादिवर्णनम् ३०७/ १६९ लवणे चन्द्रसूर्यद्वीपादिवर्णनम् ३२१ ३०८/१७० लवणे उद्वेधोत्सेधौ वर्णनम् ३२२ ३१८ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥१७॥ X: ~217 Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ३ “जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्ण संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी - साहित्य) श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ।। १८ ।। १७१ लवणे गोतीर्थवर्णनम् १७२ लवणस्य विष्कम्भवर्णनम् १७३ लवणसमुद्राधिकारः १७४ धातकी खण्डवर्णनम् १७५ कालोद धिवर्णनम् १७६ पुष्करवरद्वीपवर्णनम् १७७ समयक्षेत्रवर्णनम् १७८ मानुषोत्तरवर्णनम् १७२ अन्तर्बहिश्चन्द्रादीनामूर्ध्वीप पन्नत्वादिभेदाः १८० पुष्करवरवरुणवरौ १८१ क्षीरवरक्षीरोदयोर्वर्णनम् १८२ घृतवरघृतोदवरक्षोदोदाः १८३ नंदीश्वरवर्णनम् ३२३ १८४ नंदीश्वरोदवर्णनम् ३२४ १८५ त्रिप्रत्यवताराः समुद्राः ३२५ १८६ सहना मानोऽसंरूयद्वीपवर्णनम् ३२७ १८७ वादक वर्णनम् ३२२. १८८ समुद्रेषु मत्स्यकच्छपवर्णनम् ३३१ १८९ द्वीपोदधिमानम् ३३३ १९० द्वीपसमुद्रवर्णनम् ३४२ १९५ पुगलपरिणामः "7 १२२ देवकृतः पुद्गलो बालमन्थनं च ३४५ ३७४ ३४७ १९३ चन्द्रादेरधः समोपरिभागेषु ताराः ३७५ ३५२ १९४ महादिपरिवरवर्णनम् ३७६ ३५.३ १५५ मेरुलोकान्तपरस्परावाधावर्णनम्," ३५७ १९६ अन्त यो पर्यधस्तनास्ताराः ३७७ ~ 218~ ३६५ ३६६ ३७० ३७ ३७२ १९७ चन्द्रादिसंस्थानायामादिवर्णनम् ३७८ ३८० १९८ चन्द्रादिवाहनानि वर्णनम् १९९ चन्द्रादीनां शीघ्रमन्दगतिमत्त्वं ३८२ २०० चन्द्रा० अल्पमहर्द्धिकत्वं २०१ जम्बूद्वीपे तारान्तरवर्णनम् २०२ चन्द्रस्याग्रमहिषीवर्णनम् " ३७३ २०३ चन्द्रस्य देव्यः 39 ३८३ " " २०४ सूर्यस्य देवीनां वर्णनम् २०५ चन्द्रस्य स्थितिवर्णनम् २०६ चन्द्रसूर्याणामरूपबहुत्वं २०७ वैमानिकभेदाः " २०८ वैमानिके शक्रस्य पर्यवर्णनम् ३८६ २०२ विमानाधारवर्णनम् २१० विमान पृथ्वीबाहल्यवर्णनम् ३९४ " ३८५ "" " श्रीजीवा० विषयसूचिः ।। १८ ।। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत श्रीउपां. ११८ सूत्रांक यहां देखीए विषयानुक्रमे श्रीजीबा० विषयसूचिः वर्णनम् ॥१९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए २११-२१२ विमानानामुच्चत्वसंस्थान | २२४ एकेन्द्रियादिभेदस्थित्यन्तराणि ४०८/२३७ सूक्ष्मवादरयोररूपबहुत्वं ३१५/ २२५ एकेन्द्रियादीनामरूपबहुत्वं ११०२३८ निगोदाधिकारः २१३ आयामादिवर्णनम् | इति चतुर्थी पतिपत्तिः । २३९ निगोदसंख्या २१. वैमा० संहननसंस्थानवर्णनम् ३१६२२६ पृथ्वीकायभेदाः इति पंचमी प्रतिपत्तिः २१५ देववर्णादिवर्णनम् २७ पृथ्व्याः स्थितिः २४० नैरयिकस्थित्यादिवर्णनम् १२७ २१६ वैमा० अवधिवर्णनम् १०२ २२८ , कायस्थितिः इति षष्ठी प्रतिपत्तिः २१७ समुद्घातवर्णनम् २२९ , अल्पबहुत्वं ३|२४१ प्रथमसमयनैरयिकादिवर्णनम् ४२९ S२१८ वैमानिकानां विभूषावर्णनम् ४०४ २३० सूक्ष्मस्य स्थितिः इति सप्तमी प्रतिपत्तिः २११ वैमानिकानां कामभोगवर्णनम्, २३१ सूक्ष्मस्य कायस्थितिवर्णनम् ४१४ २४२ पृथ्यादेः कायादिस्थितिः १३१ २२० वै० स्थितिवर्णनम् " २३२ सूक्ष्मस्यान्तरवर्णनम् इत्यष्टमी प्रतिपत्तिः २२१ वै० उद्वर्तनावर्णनम् १०६ २३३ सूक्ष्मस्याल्पबहुवं ४१५/ २४३ प्रथमसमयिकादीनां स्थितिकाय२२२ वै० जीवानां स्थितिवर्णनम् ,२३४ चादरस्य स्थितिवर्णनम् स्थित्यन्तराल्पबहुत्वं ४३३ २२३ , अल्पबहुत्वं | २३५ बादरे कायस्थितिवर्णनम् ४१७/ २४४ सर्वजीवाभिगमे सिद्धासिद्ध ॥इति तृतीया प्रतिपत्तिः २३६ बादरस्यान्तरं 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ४१८ भेदा: ४३६ ~219~ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां भाउपा. विषयानुक्रमे देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए २४५ सर्वजीवानां सेन्द्रियकायवेद | २५६ सर्व सादिवर्णनम् ४४९/ २७१ सर्व० दशविधत्वं पृथ्व्यादिभिः श्रीजीवा कषायलेश्याभेदाः ४३७/ २५७ , मनोयोगादिवर्णनम् , प्रथमाप्रथमसमयनारकादिभिश्च ४६४ | विषयसूचि बृद्विषया२४६ सर्वजीवज्ञानस्थितिः १३९/ २५८ , स्त्रीवेदादिवर्णनम् ४५०२७२ सर्वजीवदशविधत्वमुपसंहारः ४६६/2 नुकमश्च २४७ सर्वजीवाहारकेतरस्थिति- २५९ -२६४ सर्वजीव चातुर्विध्ये इति जीवाजीवाभिगमस्य विषयमूचिः। वर्णनम् चक्षुर्दर्शनादि वर्णनम् ४५१ २४८ सर्वजीवभाषकसशरीरेतरवर्णनम् ४४३ | २६५-२६६ सर्व सप्तविधत्वं काय२४९ सर्व० चरमेतरवर्णनम् ४४४ लेश्यावर्णनम् च ४५७ २५० सम्यदृष्ट्यादिवर्णनम् ४४५ २६७ सर्व० अष्टविधस्वं ज्ञानाज्ञाने ४५९ २५१ सर्वजीवनविष्ये परित्तादिवर्णनम् ४४६ २६८ सर्व० नारकतिर्यग्योनतिर्यग२५२ सर्व: पर्याप्तापर्याप्तवर्णनम् ४४७ योन्यादिभेदाः २५३ सूक्ष्मवादरवर्णनम् ४४८२६९ सर्व नवविधत्वमिन्द्रियगति२५४ सर्व त्रैविध्ये संज्ञित्वादि सिद्धभेदाश्च ४६१ वर्णनम् ४४८/ २७० सर्व प्रथमापथमसमय२५५ सर्व० भव्यत्वादिवर्णनम् ४४९| नारकादिभिः 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ४६२ ॥२०॥ ~220 Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए रूप्यरूप्यजीवाभिगमौ ३,धर्मास्तिका- | सज्ञालेश्येन्द्रियसमुपातसज्ञिवेद- २२,१-४० सूक्ष्मवादरवनस्पतयः१८, यादयोऽरूपिणः (१०)४, स्कन्धा- पर्याप्त्यपर्याप्तिदृष्टिदर्शनज्ञानयोगोप- पर्याप्तापर्याप्ताः१९, प्रत्येकसाधारणदयो रूपिणः ५, (धर्मास्तिकायादि- योगाः, अनन्तप्रदेशत्वाद्याहारस्वरूपं भेदौ २०, वृक्षगुल्मादि(१२). सिद्धिः क्रमोपन्यासप्रयोजनम् )। ७ आगतिस्थितिमरणसमुद्घात भेदाः, (एकबहुबीजादि, एकाखण्डसंसारासंसारसमापन्नजीवाः ६, अन- गतिनिरूपणं (स्वल्पानाभोगसंभवात् शरीरसमाधानम् ) २१७१-४*, न्तर(१५) परम्परसिद्धभेदाः ७ ८ पृच्छा, शरीरपञ्चकव्युत्पत्त्यादि, आलूकादिसाधारणभेदादिः २२॥ २८ ८ संसारसमापन्न प्रतिपत्तिनवकम् । ९ | संहननसंस्थानवर्णनं, इन्द्रियस्वरूपं, | २६ तेजोवायुद्वीन्द्रियाद्यास्त्रसाः २३, ९ सस्थावराः। समुद्घातस्वरूपम् )। २१ सूक्ष्मबादरतेजसी २४, सूचीकलाप१० पृथिव्यवनस्पतयः स्थावराः ।, १५ श्लक्ष्णखरवादरपृथिवीकायिकाः १४, | संस्थिताः सूक्ष्माः २५, बादरेऽङ्गा११ सूक्ष्मचादरपृथ्वीकायिकाः। १० लक्षणा सप्तधा, पर्याप्ताऽपर्याप्ता च, रादिभेदादिः २६ । २९ १२ पर्याप्तापर्याप्तसूक्ष्माः (पर्याप्तिस्वरूपं, शरीरादीनि द्वाराणि, (चत्वारिंशत्- | २७ सूक्ष्मबादरा वायवा, प्राचीनादि शरीरावगाहनादीनि गत्यागत्यादीनि । खरपृथ्वीभेदाः) १५। २४ भेदादिः, पताकासंस्थानं, शरीरच द्वाराणि)। ११ १७ अप्कायस्य सूक्ष्मादिभेदादिः १६, । चतुष्कम् । ३० | १३ शरीरावगाहनसहननसंस्थानकषाय- | बादरेऽवश्यायादिभेदादिः। २५/२९ द्वीन्द्रियाद्याः (४) उदारत्रसाः २८, श्रीजीवाजीवाभिगमस्य बृहद् विषयानुक्रमः सूत्राणि २७३, सूत्रगाथा: २३*. मझक, प्रयोजनाद्युपन्यासः, द्वीपसमुद्रनामग्रहणस्य मङ्गलता, मङ्गलत्रयम्। जिनमतादिविशेषणं जीवाजीवा भिगमाध्ययनं स्थबिरप्रणीतम् । ४ २ जीवाजी दाभिगमौ देखीए 'सवृत्तिक आगम सुल्ताणि ~221 Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ३ “जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री उपां० विषयानुक्रमे ॥ २२ ॥ द्वीन्द्रियाणां पुलाकृम्यादिमेदादिः २९ । ३१ ३१ त्रीन्द्रियाणामौपयिकादिभेदादिः ३०, चतुरिन्द्रियाणामन्धिकादिमेदादिः ३१ । ३३ पञ्चेन्द्रियाणां नारकादयो मेदाः ३२, नारकाणां रत्नप्रभादिमेदादिः संहननविचारः) । ३५ ३७ संमूच्छिमगर्भजास्तिर्यञ्चः ३४, जलस्थलखेचराः ३५, संमूच्छिमजलचराणां मत्स्यादिभेदादिः ३६, संमूच्छिम स्थल चराणां चतुष्पदोरः परिसर्पभुजपरिसर्पभेदाः, चर्मपक्ष्यादिभेदादिः ३७ ॥ ३२ ३९ गर्भजा जलचरायाः ३८, जलचराणां मत्स्यादिभेदादिः ३९ ( संहननसंस्थानवर्णनम् ) । ४१ स्थलचराणामेकखुरादिचतुष्पदोरगादिपरिसर्पमेदादिः ४०, चर्मपक्ष्यादयः खेचराः ४१ । ४२ संमूर्च्छिमगर्भजमनुष्याणां शरीरादिः (केवले शेषज्ञानापगमः) । ४८ ४३ असुरकुमारादिभवनपत्यादिदेवानां शरीरादिः । ४४ स्थावराणां त्रसानां च भवकायस्थित्यन्तरास्पबहुत्वानि (संव्यवहारेतरराशी ) । ॥ इति प्रथमा प्रतिपत्तिः ॥ 222~ ४३ ४४ ४९ ५१ ४६ स्त्रीपुंनपुंसकाः ४५, मत्स्यादिचतुपद्यादिपरिसप्र्थ्यादिचर्मपक्षिण्यादितिर्यक् कर्मभूभिजा दिनारी भवनपत्यादिदेवस्त्रियः ४६, (स्त्रीत्वादिलक्षणम् ) ५३ ४८ स्त्रीवेदस्थितावादेशपञ्चकम् ४७, सप्रभेदजलचरस्थलचरख चरकर्मभूमिजादिभवनपत्यादिस्त्रीस्थिति: ५७ ४८ । ६१ ४९ स्त्रीवेदसप्रभेदतिर्यग्मनुष्यदेवस्त्रीकाय स्थितिः । ५० स्त्रीसप्रभेदतिर्यगादिस्त्रीवेदान्तरम् । ६२ ५१ तिर्यङ्मनुष्यदेवस्त्रीणां स्वस्थानेऽन्योन्यं चापबहुत्वम् । ५२ स्त्रीवेदबन्धावाधानिषेकप्रकाराः । ६५ ६४ XXXXXXX श्री जीवा o बृहद्विषयानुक्रमः ॥ २२ ॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीजीवा. यहां विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपा०. ५४ तिर्यगादयः पुरुषाः ५३, तिर्यक् । परस्परं चाल्पबहुत्वम्। संख्याः ) ७२॥ विषयानुक्रमे वेदादिस्थितिः ५४। ६७/६५,५* रूपादिकायस्थितिः ६४, ७३ खररत्नादिपसाबहुलरत्नप्रभादि५५ सप्रभेदपुरुषवेदकायस्थितिः। ६९/ मनुष्यतिर्यग्देवानां स्त्रीपुंसयोरल्प- घनोदधिधनवातादिवाहल्यम्। ९ ५६ समभेदानुत्तरान्तपुरुषवेदान्तरम्। ७१] बहुत्वम् ६५, ५ ८ ८७४ रत्नप्रभादिषु सर्ववर्णादिपुद्गलसत्ता। १३ ५७ स्वस्थाने परस्परं च पुरुषाणारूप- | ॥ इति द्वितीया प्रतिपत्तिः॥ ७६ रत्नप्रभाखररत्नादिकाण्डादिशर्करा बहुत्वम् । (कृष्णपाक्षिकादिलक्षण, ६९, ६ नारकादयो भेदाः (४) ६६, | प्रभादिसंस्थानम् ७५, रत्नप्रभादिदेवानामरूपबहुत्वं च) प्रथमाद्याः पृथिव्यः ६७, पृथ्वीनां पृथिवीलोकान्ताऽवाधाः। ९५ S५८ पुवेदवन्धस्थित्यादिः । नामगोत्राणि ६८, तासां बाहल्यादिः, | ७७ रत्नप्रभादिधनोदध्यादिवलयमानम् । ९७ ५९ नारकादयो नपुंसकभेदाः। ६१, ६°। ८९/७८ सर्वजीवपुद्गलानां तद्रूपता । ९८ ६. साभेदनारकादिनपुंसकस्थिति। ७. खरकाण्डपङ्काब्बहुलकाण्डानि, रन. ७. स्नप्रभादीनां शाश्वताशाश्वतत्वे । ९८ रन्तरं च । काण्डादिभेदाः (१६)। ९०८० पृथिवीकाण्डघनोदध्याद्यन्तरा६. स्वस्थाने परस्परं चाल्पबहुत्वम् । ८२ ७२,७* रत्नप्रभादिषु नरकावाससंख्या बाधादिः । ६२ नपुंसकस्थित्यादिः। ७१, ७* रत्नप्रभावो घनोदध्यादि। ८१ पृथ्वीनां परस्परं बाहल्यतुल्य६३ सप्रभेदस्त्रीपुनपुंसकानां स्वस्थाने , (आवलिकाप्रविष्टप्रकीणकनरक- स्वादिः । SAKESTANTANTRIKEKIAAJENTS 'सवृत्तिक १०१ आगम सुल्ताणि ॥२३॥ ~223 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे ब |श्रीजीवा बृहद् विषयानुक्रमः १२. देखीए ॥२४॥ ए दीप क्रमांक के लिए देखीए ॥ इति प्रथमो नारकोदेशः॥ । समयराशेराधिक्यं भवधारणीयोत्तर- । संस्थानादिसङ्ग्रहगाथा: ९५, ९- ८२ रत्नप्रभादिषु नरकावासानां स्थानं । वैक्रियतनुमानं च (प्रतिपस्तटम् ।। ११३] स्वरूपं च। १०४ ८८ संहननसंस्थानशरीस्तवर्णगन्ध- ॥ इति द्वितीयो नामकोद्देशः॥ ८३ रत्नप्रभादिषु आवलिक.प्रविष्टप्रकी- | स्पर्शाः। १११ ९६,१४-२४* नरके पुद्ग गनुभवः, केशणकानां नानाविधसंस्थानानि आया- ८९ अनिष्टोच्छ्वासलेश्यादृष्ट्पादिः। ११६/ वादीनामुत्पत्तिः, बैंक्रियकाल', पुद्गला. मविष्कम्भादि च। १०६/ ९० नारकाणां क्षुत्पिपासामुद्रादिवैक्रिय- घनिष्टता, सातकालः, योजनपञ्च८४ नरकावासानां वर्णगन्धरसस्पर्श- शीतोष्णवेदनानिरयानुभावानुभवाः राम- शत्युत्पातः। निरूपणम् । ___जमदग्यादि(५)वर्णनं वेदनादिश्च ।१२५ ॥ इति तृतीयो नारको द्देशः॥ ८५ नरकावासानां महचानिरूपगम् । १८९९२ नारकाणां जघन्योन्कृष्टस्थिती ९१, । ॥ इति नारकाः। ८६ नरकावासानां वज़मयत्वं सर्वजीव. (प्रतिप्रस्तटं) गतिश्च १२।१२७९७ एकेन्द्रिये पृथ्वीकायसूक्ष्मादिभेदाः, | पुद्गलोत्पत्त्यादिमत्त्वं शाश्वताशाश्व- ९५,९१३* नारकाणां पृथ्व्यादिस्पर्शः, | खेघरादियोनिसंग्रहश्च । १३२ तत्वे च । परस्परं पृथ्ख्यादीनां क्षुल्लकत्वादिः ९३, ९: तिरश्चां लेश्पादिः, कुलकोटियोनि८७,८ रत्नप्रभादिप्वसज्ञिसरिसृपादि- | सर्वजीवानामनन्तश उत्पत्तिः, महा- | स्थितयः । भ्य आगतिः, असंख्यातोत्सर्पिणी- वेदनादिमत्त्वं च १४, पृथिव्यवगाह. | २९ गन्धशतानि, पुष्पजातय, बल्लीलता १०८ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥२४॥ ~224 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ३ “जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री उपां० विषयानुक्रमे ।। २५ ।। शतानि, हरितकायाः, चतुरशीतिलक्षाः । १३७ १०० स्वस्तिकादि ( ११ ) विमानानां महत्त्वं देवातिक्रमकालय तथैवाचिरादिकामादिविजयादीनामपि, ( चण्डादिगतिमानम् ) । १३२ ॥ प्रथमस्तिर्यगुद्देशः ॥ १०१ पृथ्वी कायायाः सर्वार्थसिद्धान्ताः । १३९ १०३ लक्ष्णायाः पृथ्वीभेदाः (६) एकद्वादश चतुर्दशषोडशाष्टादशद्वात्रिंशतिसहस्रस्थितिकाः, नारकादीनां स्थितिः सर्वदा जीवपृथिव्यादित्वम् १०२, पृथ्व्या दिनिर्लेपनविचारः १०३ । १४१ १०४ अविशुद्धासमवहतानगारा विशुद्धलेश्वदेवेतरादिज्ञानादिविचारः । १४२ १०५ सम्यक्त्वमिथ्यात्वक्रिययोर्न योगपद्यम् | ॥ द्वितीय स्तिर्यगुद्देशः ॥ १०७ संमूच्छिमगर्भजमनुष्याः १०६, संमूच्छिममनुष्योत्पत्त्यतिदेशः १.४३ १८७। १०९ कर्मभूमिजादिगर्भजाः १०८, एकोरुकाथा आन्तरद्वीपकाः १०९ । १४४ ११० एकोरुकस्य स्थानायामादिवेदिकान्तम् । 225~ १४४ १४५ १११ वनखण्डतॄणवर्णादिवापीप्रभृतिः । १४५ ११.२ एकोरुके भूमिभागः, उद्दालक हेरुबालतिलकाद्यावृक्षाः पद्माद्या लताः, सेरिकाद्या गुरुमाः, वनराज्यः, मत्ता कल्पवृक्षाः (१०), तत्र नराणामाकारलक्षणस्वरसंहननाद्युच्छ्रयपृष्ट करण्डकाहारार्थाः, नारीणामपि, पृथ्वीपुष्पफलाहारास्ते, पृथ्व्यादीनामास्वादः, वसतिवृक्षाणां संस्थानं, गृहादिप्रामाद्यस्याद्यभावः, हिरण्याद्यनुपभोगः, राजदासाद्यभावः, मात्रादिप्रेमरूपं, अरिमित्राऽऽवाहेन्द्रमहनटप्रेक्षा शकटाश्वसिंह शालीगर्चास्थाणुदेशा हिमहदण्डडिम्बमहा श्रीजीवा० बृहद्विषयानुक्रमः ।। २५ ।। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. विषयानुन यहां श्रीजीवा० बृहद्विषयानुक्रमः देखीए ॥ २६॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए युद्धातिवर्षायआकरादिभावाभाव- । १२० बलिनः पर्षत्तद्देवस्थित्यादयः। १६७/ १३० विजयादीनि द्वाराणि १२९, विचारः, आयुर्गतिप्रसवाः, आभा- | १२१ नागकुमारादिभवनादिः, धरणादि- विजयद्वारकपाटादिनषेधिक्यादिपिकादीनामपि । पर्षदादिः। वर्णनम् १३०। २०८ ११५, २६* हयकर्णाद्यन्तरद्वीपाना स्व- | १२२ व्यन्तरतदिन्द्रस्थानपर्षदादिः। १७४ १३१ प्रकण्ठकमासादावतंसकमणिपीठिका रूपम् ११३, २५-२६ हैम- | १२३ ज्योतिष्कानां स्थानादिः। १७६ | सिंहासनादिवर्णनम् । २११ वतभरतार्यादिभेदाः ११४ । १५८/१२४ द्वीपसमुद्रस्थानसंख्यामहत्त्वसंस्थाना- | १३२ षेधिक्या तोरणनागदन्तयसंघाटभवनवास्थादयो देवाः ११५, ऽऽकारादिः। १७७ कभृङ्गारादर्शस्थालपात्रीसुप्रतिष्ठअसुरकुमारादिभेदातिदेशः ११६, | १२५ जम्बूद्वीपाऽऽयामादिजगतिजाल कमनोगुलिकाफलकशिक्कावातभवनावासादिस्थानातिदेशः ११७ | कटकवर्णनम् । १७८ करकरत्नकरण्डकयकण्ठपुष्पचङ्गेअसुरकुमारादिभवनस्थानातिदेशः | १२६ पद्मवरवेदिकावर्णनम् । १८३ र्यादिपुष्पपटलसिंहासनच्छत्रचा११८। १६४ १२७ वनखण्डवर्णनम् । १९९ मरतिलसमुद्गादिवर्णनम्। २१५ ११९ चमरस्य समिताचण्डा जाताः पर्षदः, १२८ बापीत्रिसोपानतोरणाष्टमङ्गलोत्पा- १३३ अष्टशतचक्रध्वजादि-भौमनवकतद्देवसाहरूयः, तद्देवदेवीस्थितिश्च। तादिपर्वतहंसासनाद्यादिगृहादि जाति- | सिंहासनविजयदेव-तत्सामानि मण्डपादिहंसासनादिवर्णनम् । २०१ काग्रमहिषीपर्षदारक्षकदेवदेवी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~226~ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीजीवा० श्रीउपां. विषयानुक्रमे यहां विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ARRIERSEENETINEER भद्रासनवर्णनम् । वृक्षतिलकलवकादिवृक्षमहेन्द्रध्वज- | १४२ विजयदेवस्योपपातः, सङ्कल्पः, १३४ अष्टमङ्गलकृष्णचामरादिवर्णनम्।२१७ पुष्करिणी त्रिसोपानमनोगुलिका- जिनप्रतिमासक्थ्यर्चातासंकल्पः, १३. विजयदेवसामानिकादिवर्णनम् , | गोमानसी फलकधूपघटिकावर्णनम् । देवदूष्यपरिधानजलमज्जनेन्द्राभि१३६ विजयदेवराजधानीतत्याकारकपि २३० धेकोपस्थापनाऽऽज्ञासौबर्णिकादिशीर्षकद्वारधिकीपकण्ठकसप्त- १३९ माणवकचैत्यस्तम्भायामादिफलक- कलशादिवैक्रिय पुष्करोदकादि दशभौमादिवर्णनम् । २२० सिक्कगसमुद्गकार्चनीयजिनसक्थि- मागधादितीर्थमृत्तिकागङ्गादिजल१३७ अशोकसप्तपर्णचम्पकचूतवन महामणिपीठिकामहासिंहासन हिमवदादितूबरादिपद्मइदाधुदकादिप्रासादावतंसकतदधिष्ठायकवर्णनम् , | देवशयनीयादिवर्णनम्। २३२ भद्रशालादितूबरादिग्रहणोपस्थापनउपरिकालयनायामादिमणिपीठि- ११० सिद्धायतनादिदेवच्छन्दकजिन सामानिकाद्यभिषेकगन्धोदककादिप्रासादावतंसकतत्परिवार प्रतिमातदवयवचामरधारादिप्रतिमा- वर्षादिद्रुतादि(३२)नाट्याशीप्रासादोच्चत्वादिवर्णनम्। २२३ | घण्टाचन्दनकलशादिवर्णनम् । २३५ यंदाः। २४८ १३८ सुधर्मसभाऽऽयामादितद्वारमुख १४१ उपपातसभादेवशयनीयाभिषेकाल. | १४३ अलकारसभाप्रवेशगात्ररूक्षणयुग मण्डपाष्टमङ्गलप्रेक्षागृहाक्षाटकमणि- कारव्यवसायसभावर्णनं, पुस्तकरत्न- लनिवेशहारादिपरिधानचतुर्विधापीठिकाचैत्यस्तूपजिनप्रतिमाचैत्य- वर्णन च । कारविभूषाव्यवसायसभाप्रवेश 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥२७॥ ~227~ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. यहां विषयानुक्रमे देखीए विषयानुक्रमः ॥ २८ ॥ दीप क्रमांक के लिए पुस्तकरत्नवाचनधार्मिकव्यवसाय- स्थितिः। २६० १५२ जम्बूपीठमणिपीठिकासुदर्शनायामाग्रहणनन्दापुष्करिणीप्रवेशहस्तादि- | १४६ वैजयन्तजयन्तापराजितद्वाराणि | दि चैत्यवृक्षवर्णनं च। २९५/ प्रक्षालनपद्मादिग्रहणसिद्धायतना १४५, परस्परद्वाराबाधा १४६। । १५३,२७-२८ शालचतुष्कप्रासादागमनपरिवारानुगमनदेवच्छन्दा वतंसकसिद्धायतनादिपरिवारजम्बू- ... गमनजिनप्रतिमाप्रणामप्रमार्जन- १४७ द्वीपसमुद्रप्रदेशस्पर्शजीवोत्पाताद्याः। | सामानिकादिजम्बूबनखण्डपुष्कस्नानदेवदूष्यनिवेशपुष्पाद्याभरणा २६२ रिणीप्रासादावतंसकसिद्धायतन न्तारोहणाष्टमङ्गलालेखनधूपोत्क्षेप- १४८ उत्तरकुरुवर्णनं, पद्मगन्धादिमनुष्या- भवनकूटसिद्धायतनतिलकादिवृक्षामहावृत्तस्तुतिशक्रस्तवपाठमण्डला- नुप्सर्जना। २८५ ष्टमङ्गलानि, द्वादश नामानि, अनालेखनद्वारचेटीप्रमार्जनादिचल्यस्तूप १४९ यमकपर्वताधिकारः। २८७| हृतराजधानीवर्णनादिः। ३.० प्रमार्जनादिजिनप्रतिमाप्रणामादि- | १५० नीलबद्धदतत्पद्मभवनद्वारमणि- १५४,२९* जम्बूद्वीपे चन्द्रसूर्यादि सुधर्मासभाप्रवेशजिनसक्थिपक्षा- पीठिकापरिवारपद्मकर्णिकापरिरय- | प्रभासनादिः। लनार्चनादिशृङ्गाटकाद्यर्चनादेश प्रयाणि। २९० ॥ इति जम्यूटीपाधिकारः॥ सिंहासनोपवेशनानि। २५८१५१ काञ्चनकपर्वताधिकारः, उत्तर- |१५५, ३० रवणसंस्थानविष्कम्भद्वार१५४ सामानिकायुपवेशनं, पल्योपम- कुरुद्रहाधिकारः। चतुष्कतदबाधाप्रदेशस्पर्शा. देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~228 Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ३ “जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ॥ २९ ॥ न्यर्थाः। १५६ लवणे चन्द्रादिसंख्या, (लवणे दिवसरात्र्यादिविचारः, दकस्फाटिकविमानानि ऊर्ध्वश्याकता च) । ३०४ ३०३ १२७ लवणस्य चतुर्दश्यष्टम्युद्दिष्टपूर्णिमासु वर्धनं, वलयामुखाद्याः पातालकलशा, कालाया अधिछायकाः, त्रयस्त्रिभागाः वाय्यादिमन्तः, क्षुल्लक पातालाः, (७८८४) वायून्न | मेनोदको नामः । १५ अहोरात्रे द्विषृद्धिहानी । १५२ लवणशिखाविष्कम्भान्तरवाद्य लोकधारा (४२७२६० ३०७ ३०८ सहस्राः) १६०, ३१० गोस्तूपाचा बेलन्धरनागराजाः, गोस्तूपोदकभास शङ्खदकसी मवासपर्वत स्थानायामादिप्रासादावतंसकतद्राजधानीवर्णनम् । ३१३ १६१ कर्कोटकादिवेलन्धर तदावासादि। ३१४ १६२ सुस्थितसत्कगौतमद्वीपभौमेयविहारादिवर्णनम् । ३४५ १६७, ३३॥ जबूद्वीप- १६३ अभ्यन्तरबालवण- १६४घातकीखण्ड-१६५ कालोदकपुष्करवरादिचन्द्रसूर्यद्वीपराजधान्यः १६६, जम्बूद्वीपलवणादिद्वीप ३०९ ~ 229~ समुद्रनामानि १६७, ३३ ॥ ३१९ १७० देवद्वीपसमुद्रस्वयम्भूरमणद्वीपचन्द्रसूर्यद्वीपराजधान्यः १६८, लवणे एव वेलन्धरायाः १६२, उच्छ्रितक्षुभितजलता लवणे वर्षा च, बाह्याः पूर्णाः १७० । ३२२ १७१ लवणे उद्वेधपरिवृद्धिः (२५) । ३२३ १७२ लवणे गोतीर्थतद्विरहित क्षेत्रो ३२४ दकमालप्रमाणम् । १७४] लवणसंस्थानविष्कम्भोधोत्सेधसर्वाणि १७३, जम्बूद्वीपानुपदादिदेवलोकानुभावादि कारणम् । (लवणघनप्रतर गणितानि ) १७४ । ३२६ AIN UUE श्रीजीवा० बृहदविषयानुक्रमः ॥ २९ ॥ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ३ “जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां० विषयानुक्रमे ॥ ३० ॥ १७५, ३५० घातकीखण्ड संस्थानचक्रवालविष्कम्भद्वारचतुष्कराजधानीद्वाराबाधाप्रदेश स्पर्शधिन्वर्थनिमित्तधातकी महाधातकीतद्देवचन्द्रादिप्रभासादि । ३२९ १७६, ३१* कालोदसंस्थानादि । ३३१ १७७, ४८ पुष्करवरद्वीपसंस्थानादि मानुषोत्तराभ्यन्तरपुष्करार्द्धसंस्थानादि च । १७८, ८३* समयक्षेत्र विष्कम्भचन्द्रसूर्यप्रभासादि चन्द्रादित्यादिपिटकपङ्किमेरुप्रदक्षिणा मण्डलसंक्रमसुखदुःखकारणचार विशेषतापक्षेत्र वृद्धिहानिसंस्थानचन्द्रवृद्धिहानिराहुस्थान- १८२ क्षीरवरक्षीरोदवर्णनम् । ३३४ शुक्लकृष्ण भाग परक्षेत्र चन्द्रादिसंख्याकरणान्तराभिजित्पुष्ययोगाः, (प्रव्रज्यादौ शुभयोगेषणा) । ३४१ ३४५ १७९ मानुषोत्तरस्योच्चत्वोद्वेधमूलादिविष्कम्भपरिरयान्वर्थाः वर्षवर्षधरादयोsafa | १८० अन्तर्मनुष्य क्षेत्रस्य चन्दादीनां चारोपपन्नकादित्वं, इन्द्रच्युतौ सामा निकोपसंपत् षण्मासीविरहः, बहिश्चारस्थितिकवादि । ३४७ १८१ पुष्करोदवरुणवरवरुणोदवर्णनम् । ~ 230~ १८३ धृवतरघृतोदक्षोदवरक्षोदोद स्वरूपम् । १८४ नन्दीश्वरद्वीप, अनकपर्वतसिद्धायतनमुखमण्डप प्रेक्षागृह मण्डपस्तूपजिनप्रतिमाचैत्यवृक्षा नन्दोत्तराद्याः पुष्करिण्यध, भवनपत्यादीनां चतुर्मास्यादिषु कल्याणकादिषु च महिमकरणम् । ३६५ १८५ नन्दीश्वरोदवर्णन संक्षेपः । ३६६ १८६ अरुणारु गोदा रुगवरारुणवरोदा ३५५ रुणवरावभासकुण्डलादिरुचकादिहारादिप्रभृति सूर्यवरावभासदेवदेवोदस्वयम्भूरमणोदान्ताः । ३७० ३५३ | १८८ द्वीपसमुद्रनाम संख्ये १८७, ३५२ श्रीजीवा० बृहद्विषयानुक्रमः ॥ ३० ॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां० विषयानुक्रमे देखीए ॥३१॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए एबणपुष्करक्षीरघृतक्षोदस्वयम्भू- १९२ इन्द्रियविषयपरिणामाः। ३७४ १९९ चन्द्रविमानवाहकदेववर्णनम् । ३८२ | श्रीजीवा० रमणोदजलरसाः, लवणवरुण- १९३ पुद्गलः पूर्वपश्चातर्शघ्रमन्दगतिः, २०१ चन्द्रादिषु शीघ्रमन्दगत्योः २००, IS बृहद् विषयानुक्रमः क्षीरघृतोदाः प्रत्येकरसाः, काल- | देवस्य प्रन्थिदीर्घहस्वानां करणम्।। अरुपमहत्योंश्च स्वरूपम् २०१। । पुष्करस्वयम्भूग्मणोदा उदकरसाः, ३८३ शेषाः क्षोदरसाः १८८। ३७२] १९०८५० यथाऽऽतपश्चन्द्रसूर्ययोरुपर्यादी । २०५ तरफयोरन्तर २०२, चन्द्र१८९ लवणकालोदस्वयम्भूरमणा बहु तारकाः १९४, चन्द्रसूर्य स्यानमहिष्यः २०३, जिनमत्स्याः , सप्तनवार्द्धत्रयोदशलक्ष परिवारे ग्रहनक्षत्रतारकाः १९५, सक्थिसद्भावान्न सुधर्मसभायां । मत्स्ययोनिकाः, पञ्चसप्त ३७६ मैथुनं २०४, सूर्यस्याप्रमहिष्यः दशयोजनमत्स्याश्च । ३७२, १९७ मेरुलोकान्तज्योतिश्चक्राबाधा, शुभनामादिमन्तः साद्धद्वयोद्धार अधस्तनोपरितनतारकचन्द्रसूर्य- २०६ चन्द्रादीनां स्थित्याचतिदेशः। , सागरसमयमाना द्वीपसमुद्राः रत्नपभावाधा १९६, बाह्याभ्यन्तर- | २०७ चन्द्रादीनामरूपबहुत्वम्। । १००, पृथ्व्यादिपरिणामाः, नक्षत्राऽबाधा १९७। ३७८ ॥इति ज्योतिष्कोदेशः॥ सर्वजीवोत्पादोऽनन्तशः ५९१३७३| १९८ चन्द्रादिविमानसंस्थानबाहत्यादि। ।२०८ वैमानिकविमानदेवस्थानाधति॥ इति द्वीपसमुद्राः॥ ३८० देशः। ३८८ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~231 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपो. श्रीजीवा. यहां विषयानुक्रमे ॥३२॥ देखीए ४.९/ विषयानुक्रमः __ दीप क्रमांक के लिए देखीए २०९ शकेशानादीनां समिताचण्डाजाता: रसस्पर्शपुद्गलपरिणामलेण्यादृष्टि- | २२५ एकेन्द्रियादिभेदाः भोगपर्याप्तापर्षदः, तद्देवदेवीप्रमाणस्थिती। ३९० ज्ञानादि । २१६। १०२ पर्याप्तभेदैः परापरे स्थिती काय॥ प्रथमो वैमानिको देशः ॥ २१७, ८८" देवानामवधिमानम् । स्थितिश्च । विमानप्रतिष्ठानम् । ३९४ | २१८ समुद्घाताः, क्षुपिपासाऽभावः, |२२६ ओषपर्याप्तापर्याप्ताना तेषामरूप२१६ सौधर्मादिविमानपृथिवीवाहल्यादि वैक्रिय, सातौँ। ४०४/ बहुत्वम्। २११, विमानानामुञ्चत्वं २१२, २२१ देवदेवीनां विभूषा २१९, ।। इति चतुर्थी प्रतिपतिः॥ तेषां संस्थान २१३, आयामादिवर्ण- कामभोगातिदेशः २२०, २२९,८९ पृथ्व्यादयो मेदाः २२७, गन्धरसस्पर्शाः, महत्व, किंमयत्वं स्थित्यतिदेशः २२१। १०५ स्थितिः २२८, कायस्थितिरन्तरं च जीवाद्युपादादि, शाश्वताशाश्वतत्वे, २२२ कल्पेषु पृथिव्यादितया सर्वजीवो | २२१, ८९ । ४१२ उत्पादः, समयसंख्या, असंख्यो- त्पातोऽनन्तशः। ४०६ २३१ ओषपर्याप्तापर्याप्तानामरूपबहुत्वं सर्पिणीमानता, अवेयकानुत्तरेषु २२४ नारकादिस्थित्यन्तरे २२३, २३०, सूक्ष्मपर्याप्तापर्याप्तानां पल्यासंख्यांशमानता, भवधारणी- तेषामरूपबहुत्वं च २२४ । ४०७ स्थितिः । २३१। । ४१५ योत्तरवैक्रियमानं च २१४, देवानां | ॥ द्वितीयो वैमानिकोदेशः॥ २३३ सूक्ष्मादीनां कायस्थितिः २३२, संहननसंस्थाने २१५, वर्णगन्ध- | ॥इति तृतीया प्रतिपचिः॥ । अन्तरं च २३३। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥३२॥ ~232 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ३ “जीवाजीवाभिगम" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री उपां विषयानुक्रमे ॥ ३३ ॥ २३४ सूक्ष्मपर्याप्तापयातानामरूपबहुत्वम् । स्थित्यन्तरास्पबहुत्वानि । ४१६ ।। इति षष्ठी प्रतिपत्तिः ॥ २३५ बादरपर्याप्तापर्याप्तानां स्थितिः ।४१७ २४२ प्रथमाप्रथमसमयनारकादीनां २३६, ९२ बादरबादरपृथिव्यादीनां स्थित्यन्तरापबहुत्वानि । कायस्थितिः । ॥ इति सप्तमी प्रतिपतिः ॥ २३७ बादरबादरवनस्पतिनिगोदबादर- २४३ पृथ्व्यादिद्वीन्द्रियादीनां स्थित्यादि । निगोक्षनामन्तरम् । ४३३ ४१८ "" २३८ सप्रमेदसूक्ष्मवादराणामरूपबहुत्वम् । ४२३ ४२४ २३९ निगोदभेदाः । २४० सप्रभेदानां निगोदतज्जीवानां द्रव्पप्रदेशाभ्यामपबहुत्वम् । ४२७ ॥ इति पश्चमी प्रतिपत्तिः ॥ २४१ नारकतिर्यङ्नरदेवतत्स्त्रीणां ४२८ २४६ इन्द्रियकाय वेदकषायलेश्या भेदैः स्थित्यादि । २४७ ज्ञानोपयोगैः स्थित्यादि । ४३१२४८ छद्मस्थभवस्थसयो ग्याहार के तराणां स्थित्यादि । (क्षुल्लकभवादिनिरूपणम्) ४४३ २४९ भाषकाभाष कशरीर्यशरीरिस्थित्यादि । ४४४ ॥ इत्यष्टमी प्रतिपत्तिः ॥ २४४ प्रथमाप्रथमसमयै केन्द्रियादिस्थित्यन्तराल्पबहुत्वानि । ४३५ ।। इति नवमी प्रतिपत्तिः ॥ ॥ इति संसारसमापन्नाः ॥ २४५ सिद्धा सिद्धयोः स्थित्यन्तराल्पबहुत्वानि । ~ 233 ~ ४३६ ४३९ ४४० २५० चरमाचरमस्थित्यादि " २५१ सम्यग्दृष्ट्यादिस्थित्यादि । ४४५ २५२ संसारकायपरीतादिस्थित्यादि । ४४७ २५३ पर्याप्तादिस्थित्यादि । २५४ सूक्ष्मादिस्थित्यादि । २५५ सज्ज्ञादिस्थित्यादि । श्री जीवा ० बृहद्विषयानुक्रमः "2 882 11 ४ ॥ ३३ ॥ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. यहां विषयानुक्रमे जीवाजीव विषयानुक्रमः देखीए ॥३४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए | २५७ भव्यादि २५६ सादिस्थित्यादि। | २६८ मत्यादिज्ञान्यज्ञानिस्थित्यादि । ४६० ४४२२६९ नारकादिस्थित्यादि । ४६.. २५८ मनोयोग्यादिस्थित्यादि। . २७. एकेन्द्रियादिस्थित्यादि। ४६२ (सम्पदायमामाण्यम्) ४५०/ २७१ प्रथमसमयनारकादिस्थित्यादि । ४६४ | २५९ रुयादिस्थित्यादि। ४५१२७२ पृथ्व्यादिस्थित्यादि। ४६५ | २६० चक्षुर्दर्शन्यादिस्थित्यादि। ४५२] २७३ प्रथमसमयनारकादिस्थित्यादि। ४६७ | २६१ संयतादिस्थित्यादि । | | प्रशस्तिः ।। २६२,९३* क्रोधादिस्थित्यादि। ४५४ ॥ इति जीवाजीवाभिगमसूत्र विषयानुक्रमः।। २६३ नारकादिस्थित्यादि। २६४ मतिज्ञान्यायेकेन्द्रियादि स्थित्यादि। २६५ औदारिकादिस्थित्यादि। ४५७ २६६ पृथ्वीकायिकादिस्थित्यादि । | २६७ कृष्णलेश्यादिस्थित्यादि। ४५९/ ४५६ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥३४॥ ~234 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां० विषयानुक्रमे यहां [आगम-१५] उपांग-४ “प्रज्ञापना" | जीवाजीव विषयानुक्रमः देखीए ॥३४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ६.९* षट्त्रिंशत्पदनामानि १ प्रज्ञापनाभेदी २ अजीबप्रज्ञापनामेदौ ३ अरूप्यजीवप्रज्ञापनाभेदाः ४ रूप्यजीवप्रज्ञापनामेदाः ५ जीवप्रज्ञापनाभेदी ६ असंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापनाभेदी ७ अनन्तरसिद्धपज्ञापनाभेदाः (स्त्रीमुक्तिसिद्धिः) (१५) (प्रत्येक श्रीप्रज्ञापनायाः विषयसूचि. बुद्धस्वयंबुद्धभेदाः) १* श्रीवीरजिननतिरूपं मंगलम् २८ परम्परसिद्धप्रज्ञापनाभेदाः २* आसन्नोपकारितादर्शनम् ४९ संसारसमापन्नजीवप्रज्ञापनाभेदाः (५), ३४* आर्यश्यामनमनं (प.) ५१. एकेन्द्रियप्रज्ञापनामेदाः (५) ५* भगवद्धचोऽनुसारिता ६ ११ पृथ्वीकायप्रज्ञापनाभेदाः , 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ३४॥ ~2350 Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे K ॥ ३५॥ प्रज्ञा० विषयसूचिः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए NI १२ सूक्ष्मपृथ्वीकायमेदो। २५ कायभेदाः। भेदाः (५)। १३ बादरपृथिवीकायभेदौ। , २४, १७-८३* साधारणवनस्पतिकाय- ३४ स्थलचरपंचेन्द्रियतैर्य-योनिक१४ श्लक्ष्णपृथ्वीकायमेदाः। (७) २६] वृक्षादीनां भेदाः (अनन्ताः)। ३४ मेदाः (२)। १५, १०-१३* खरपृथ्वीकायभेदाः २५, ८५-९६* अनन्त-प्रत्येकवनस्पति- | ३५ परिसर्पपञ्चेन्द्रियतिर्यग्भेदौ। ४६ (अनन्ताः )। कायलक्षणम् । (मूलाद्यपत्रवादः) । ३६, ३६, ११२ खचरपंचेन्द्रियतिर्यक् | १६ अप्कायमेदो। २८/२६, ९७-११०* साधारणवनस्पति- प्रभेदाः (४)। १७ तेजस्कायभेदौ। लक्षणम्। ३९/ ३७, ११३-१३३* मनुष्यप्रज्ञापनाभेदौ १८ वायुकायभेदौ। | २७ द्वीन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः । | (अन्तरद्वीपाः२०) (द्वाराणि२०)।५० १९ वनस्पतिकाय भेदौ। २८ त्रीन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः। ४२/ ३८ देवप्रज्ञापनाभेदाः (४)। ६९ २० सूक्ष्मवनस्पतिकायभेदी। ।२९, १११ चतुरिन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः। इति प्रथम प्रज्ञापनाख्यं पदम् । २१ बादरवनस्पतिकाय भेदौ। ३० पंचेन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः (४)। ३९ पृथ्व्यप्तेजास्थानानि । २२, १४* प्रत्येकबादरवनस्पतिकाय- | | ३१ नैरयिकप्रज्ञापनाभेदाः (७)। ४३] ४. वायुवनस्पतिस्थानम् । ७७ मेदाः (१२)। २२ तिर्यपचेन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः (३)1, ११ विकलेन्द्रियस्थानम् । २३, १५-१६* चादरपत्येकवनस्पति- ३३ जलचरपंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक- ४२ सामान्यपश्चेन्द्रियनारकस्थानम् । ७९ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~236~ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे प्रज्ञा |विषयसूचिः देखीए ॥ ३६॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ४३, १३४-१३७* रत्नप्रभादिनारक- इति द्वितीय स्थानपदम। ६६ लेश्याभिरल्पबहुत्वम् । स्थानम् । ८२] १८०-१८१* दिगादिभेदाः (२७)। ११३६७ दृष्टिभिरल्पबहुत्वम् । ४४ तिरखा पायेन्द्रियाणां स्थानम् । ८४/५५ दिग्द्वारं सामान्येन । ११४/६८ ज्ञानाज्ञानास्पबहुत्वम् । ४५, १३८ मनुष्याणां स्थानम् । , ५६ पृथिव्यायल्पबहुत्वम् । ११६/ ६९ दर्शनाल्पबहुत्वम् । १६, १३९-१४९* भवनपतीनां स्थानं । ५७ नारकादीनां पश्चानामष्टाना(सवेदानां) | ७० संयताल्पबहुत्वम् । असुरादीनां च । चाल्पबहुत्वम्। ११९/ ७१ उपयोगाल्पबहुत्वम् । ४७ व्यन्तरस्थानम् । ९५ ५८ एकेन्द्रियाद्यल्पबहुत्वम् । १२० ७२ आहारकेतराल्पबहुवम् । १८, १५०-१५१* पिशाचस्थानम् । ९७ ५९ षट्कायास्पबहुत्वम् । १२२/ ७३ भाषकेतराल्पबहुवम् । ४९, १५२-१५४ बानमन्तरस्थानम् |, ६० सूक्ष्मबादराल्पबहुत्वम् । ७४ परीत्तेतरारूपबहुत्वम् । ५. ज्योतिष्कस्थानम् । ९९ ६१ बादराल्पबहुत्वम् । ७५ पर्याप्ततराल्पबहुत्वम् । | ५१ वैमानिकस्थानम् । १०० ६२ सूक्ष्मबादराणामल्पबहुत्वम् । ७६ सूक्ष्मेतराल्पबहुत्वम् । ५२ सौधर्मस्थानम् । १०१ ६३ योग्यास्पबहुत्वम् । १३४ ७७ संश्यसंश्यल्पबहुलम् । ५३, १५५-१५८* ईशानादिस्थानम् ।१०५/ ६४ वेदैरल्पबहुत्वम् । ७८ भवसिद्धिकेतराल्पबहुत्वम् । ५४, १५९.१७९* सिद्धस्थानादि । १०६| ६५ कषायैररुपबहुत्वम् । १३५/ ७९ अस्तिकायारूपबहुत्वम् । १२. 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~237 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताण [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ॥ ३७ ॥ " ८० चरमेतशल्पबहुत्वम् । ८१ जीवाल्पबहुत्वम् । ८२ क्षेत्रानुपातेन जीवाल्पबहुत्वम् । १४४ ८३ गत्यपेक्षयाऽल्पबहुत्वम् । १४५ ८४ विशेषेण देवानामरूपबहुत्वम् । १४६ ८५ एकेन्द्रियारूपबहुत्वम् । १-१ ८६ क्षेत्रानुपातेन विकलेन्द्रियारूप ४३ । ९१ क्षेत्र दिग्भ्यां पुद्गलद्रव्याल्पबहुत्वम् ॥१५८ ९२ द्रव्यक्षेत्रकालभावारूपबहुत्वम् । १६० ९३ महादण्डकः (९९ भेदानां ) । १६२ ॥ इति तृतीयमल्पबहुत्वपदम् ॥ ९४ सामान्यपर्याप्तापर्याप्त रत्नप्रभादिनाकाणांस्थितिः । बहुत्वम् । ८७ क्षेत्रानुपातेन पञ्चेन्द्रियास्पबहुत्वम् । १५२ १५३ ८८ क्षेत्रानुपातेन पृथ्व्यादीनामरूपबहुत्वम् । १५४ ८९ क्षेत्रानुपातेन त्रसकायिका रुपबहुत्वम् । ९० आयुर्बन्धकाद्यहपबहुत्वम् । १५५ १६९ २५ सामान्य विशेषतो देवानां स्थितिः । १७१ ९६ पृथ्व्यादीनां स्थितिः । ९७ द्वीन्द्रियादीनां स्थितिः । ९८ जलस्थलखचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग् योनिकानां सामान्य विशेषतः स्थितिः । ९९ मनुष्याणां स्थितिः । १०० व्यन्तराणां स्थितिः । ~ 238~ "" " १७३ १७४ " १७५ १७६ १०१ ज्योतिष्काणां स्थितिः । १०२ वैमानिकानां स्थितिः । ॥ इति चतुर्थे स्थित्याख्यपदम् ॥ १०३ जीवपर्यायाः (पर्याय मेदो) । १७९ १०४ नारकपर्यायाः द्रव्यप्रदेशस्थितिभेदौ च । १८० १०५ असुरकुमारादीनां पर्यायाः । १८४ १०६ पृथिवीकायिकादीनां पर्यायाः । १८५ १०७ द्वीन्द्रियादीनां पर्यायाः । १०८ पंचेन्द्रियतिरां पर्यायाः । १०९ मनुष्याणां पर्यायाः । ११० वानव्यन्तराणां पर्यायाः । १११ जघन्यावगाहनादीनां नैरथि काण पर्यायाः । "" " נ "" १८७ प्रज्ञा ० विषयसूचिः ॥३७॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपा० विषयानुक्रमे प्रज्ञा० विषयसूचिः ॥ ३८॥ दीप क्रमांक के लिए ११२ ज० असुरकुमारादीनां पर्यायाः। । १२२, १८२* उपपातविरहो गतिषु । २०५/ १३७ वैमानिकानामुपापतः।। २१४ १८९/ १२३ रत्नप्रभादिभेदैरुपपातविरहः। २०६/ १३८ नारकाणामुद्वर्तना। Pा ११३ ज. पृथ्व्यादीनां पर्यायाः। १२४ रत्नप्रभादिभेदैरुद्वर्तनाविरहः। २०७/ १३९ असुरकुमाराणामुतना । ११४ ज० द्वीन्द्रियादीना पायाः। १९०/ १२५ सान्तरनिरन्तरोपपातः। २०७/ ११० पृथ्वीकायिकादीनामुद्वर्तना। " ११५ ज० पचन्द्रियतिरबां पर्यायाः। , | १२६ सान्तरनिरन्तरोद्वर्तना। | १४१ पंचेन्द्रियतिरश्चामुद्वर्तना। । ११६ ज. मनुष्याणां पर्यायाः। १९२१२७ उपपातसंख्या। २०८, १४२ मनुष्याणामुद्वर्तना। ११७ असुरकुमारादिपर्यायाः। १९५/ १२९, १८३-१८४ नारकाणामागतिः।, | १४३ वानव्यन्तरादीनामुद्वर्तन।। २१६ ११८ अजीवपर्यायभेदौ। १९६/ १३० असुरकुमाराणामुपपातः। २११] १४४ परभवायुर्बन्धः। १६ ११९ रूप्यजीवपर्यायाः (४)। । १३१ पृथिवीकायिकानामुपपातः। २१२/१४५ जातिनामनिधत्ताचायुबन्धभेदाः १२० परमावादीनां द्रव्यप्रदेशावगाह- | १३२ विकलेन्द्रियाणामुपपातः। २१३ | | (६)। २१७ ___स्थितिगुणैः पर्यायाः। २०० | १३३ पंचेन्द्रियतिरश्चामुपपातः। ॥ इति व्युत्क्रान्त्याख्यं षष्ठं पदम् ।। १२१ जधन्यप्रदेशादीनां पर्यायाः। २०१] १३४ मनुष्याणामुपपातः । | १४६ उच्चासतद्विरहै। २२० ॥ इति विशेषापरपर्याय पर्यायाख्यं । १३५ वानव्यतराणामुपपातः। २१४ ॥ इति सप्तममुच्चासाख्यं पदम् ॥ पञ्चमं पदम् ॥ .. ।१३६ ज्योतिष्काणामुपपातः । । १४७ दश संज्ञाः । देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ||॥३८॥ ~239 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे प्रज्ञा विषयसुचि यहां बहुता। देखीए ॥३९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए १४८ दण्डकभेदेनाहारसंज्ञादिमतामरूप- | चरमादिभेदेनाल्पबहुत्वम्। २३०/ १६५, १९२-१९७* सामान्यतो २२३१५७ परमाणोश्वरमतादिविचारः । २३२ भाषायाः कारणानि सप्रभेद॥ इत्यष्टमं संज्ञाख्यं पदम् ।। १५८, १८५-१९०* द्विपदेशादीनां सत्यादिभेदाश्चः। १४९ योनिभेदाः (३)। २२४ चरमादित्वम्। २३८ १६६ भाषकाभाषको । १५० नारकादीनां शीताद्या योनयः। १५९ संस्थानभेदाः (५)। २४२१६७ नारकादीनां भाषाजातानि। २६० १५१ नारकादीनां सचित्ताचा योनयः | १६०, १९१* जीवादीनां चरमाचरम- १६८,१०८* भाषाद्रव्यग्रहणादि विभागः। २४१ विचारः। १५२ संवृताद्या योनयः २२७/ ॥ इति दशम चरमाख्यं पदम् ॥ | १६९ सान्तरनिरन्तरग्रहणनिसर्ग१५३ मनुष्याणां कूर्मोन्नताद्या योनयः।२२८ १६१ अवधारिण्याः स्वरूपं सत्यारा भेदादि। ॥ इति योन्याख्यं नवमं पदम् ॥ | धिन्यादित्वं च । २४६/१७० भाषाशब्दव्यभेदाः (५)। १५४ पृथ्वीनां चरमाचरमते। १६२ लिङ्गवाक्सत्यता। २४८१७१ नारकादिभाषा स्थितभाषा१५५ रत्नप्रभादीनां चरमाचरमाद्यरूप- १६३ संज्ञिणां वागाहारादिराज द्रव्यग्रहणं च । बहुत्वम्। २२९/ कुलादिवाचनज्ञानम् । २५२ १७२ सत्यादितया गृहीतनिसर्गयोर| १५६ अलोकस्य लोकालोकयोश्च चरमा- | १६४ एकवचनादिका भाषा। २५३/ भेदाः। 'सवृत्तिक आगम २६६ सुत्ताणि ॥३९॥ ~240 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे प्रज्ञा० | विषयसूचिः देखीए ॥४०॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए १७३ षोडश वचनानि। २६६ ॥इति द्वादशं शरीरारुपं पदम् ॥ | १९०, २० * अष्टकर्मप्रकृतिचयोप१७४ चतस्रोऽप्याराधिन्यः सत्यभाषका- १८१ परिणामभेदौ । २७९ चयादिहेतुता। २९२] द्यल्पबहुत्वम् । २६७/ १८२ जीवपरिणाममेदाः (गत्यादि १०)। । ॥ इति चतुर्दशं कषायाख्यं पदम् ।। १७५ सत्यादिभाषानामल्पबहुत्वम् । २६८ २८३/ २०२-२०३* इन्द्रियाणां संस्थानादि॥ इति भाषाख्यमेकादशं पदम् ॥ | १८३ गतिपरिणामादिनिरूपणं (१०)। | द्वाराणि (१६)। २९३ १७६ शरीरभेदाः (५ दण्डकेषु) २७० २८६] १९१ इन्द्रियाणां संस्थानबाहल्यपृथक्त्व- l १७७ औदारिकादीनां भेदौ संख्या च। , | १८५ अजीवपरिणामभेदाः (१०)। २८७ प्रदेशाः। १७८ नारकाणामौदारिकादिशरीर- १८५, १९९-२०० बन्धपरिणामादि- [१९२ अवगाहनाल्पबहुत्वे। तत्संख्यापृच्छा। २७४ भेदाः। (१०) | १९३ नैरयिकादिषु इंद्रियादीनि । १९७/ १७१ असुरकुमारादीनामौदारिकादि- ॥ इति त्रयोदशं परिणामाख्य पदम् ॥ | १९४ शब्दादेः स्पृष्टास्पृष्टत्वादि । २९८ शरीरतत्संख्यापृच्छ। २७५/ १८६ कषायभेदाः । २८९१९५ इन्द्रियाणां विषयपरिमाण१८० पृथ्वीकायिकादीनां द्वीन्द्रियादीनां १८७ कषायप्रतिष्ठोत्पत्तिश्च । निरूपणम् (इन्द्रियविषयेष्वंचौदारिकादिशरीरतत्संख्यापृच्छा | १८८ क्रोधादिभेदाः २८९ गुलासंख्येयभागादि मानम् | २९९ (गर्भजमनुष्यसंख्या)। २७७/१८९ आभोगाद्याः क्रोधभेदाः। २९१ | १९६ अन्त्यनिर्जरापुद्गलदर्शनज्ञाना 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~241 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपां. विषयानुक्रमे प्रज्ञा० हा विषयसूचिः दीप क्रमांक के लिए देखीए हारादिप्रश्नः। ३०४ २०४ जीवादिषु पदेषु नियतप्रयोगा- २१३ लेश्यापदे चतुर्विशतिदण्डकस्या१९७ आदर्शादिच्छाय प्रश्नः। भावः। हारादिषदैनिरूपणम् । ३४१ ११८, २.४.२०६० कम्बलावकाशा- २०५ गतिप्रपाताः प्रयोगो(२५)पपात- | २१४ लेश्याभेदाः। रामदास ३४३ काशस्पर्शनादिप्रश्नः। ३.५ (३)विहायो। १७)गतिमेदाः । ३२५, २१५ नैरयिकाणा लेश्याः । १९९,२८७-२०८* संस्थानादीनीन्द्रि- ॥ इति षोडशं प्रयोगपदम्।। २१६ लेश्यादीनामष्टानामरूपबहुत्वम्। , याणां द्वाराणि (९) अनगारादीन्य. २०६, २०१* समाहारशरीरादीनि द्वाराणि | २१७ नरयिकेषु लेश्यानामल्पबहुत्वम् ।३४५ लोकान्तानि च (१६)। ३०८ (७) (लेश्यास्वरूपम् ) ३३१ २१८ तिर्यपश्चन्द्रियेष्वल्पबहुत्वम् । ३४६ २०० इन्द्रियापायेहावग्रहमेदाः ३१०/ २०७ समकर्मत्वाद्यधिकारः। ३३२/ २१९ मनुष्येष्वरूपबहुत्वम् । ३४७ २०१ द्रव्येन्द्रियभावेन्द्रियसंख्या, नारका- | २०८ समक्रियाऽधिकारः। ३३४ २२० देवविषयमल्पबहुत्वम् । ३१८ दीनामतीतानागतवर्तमानद्रव्य- २.९ असुरकुमारादिष्पाहारादि- २२१ भवनवासिदेवविषयम् । भावेन्द्रियसंख्या च । ३४ पदनवकम् । ३३५ २२२ नैरयिकेषूपपातविषयम् । ३५२ ॥ इति पञ्चदशमिन्द्रियाख्यं पदम् ॥ | २१० समवेदनादि । | २२३ कृष्णलेश्यादिनैरयिकसत्कावधि२०२ प्रयोगस्य भेदाः। ३१७/ २११ लेश्यापदे मनुष्यविषये। ३३९ ज्ञानदर्शनविषयक्षेत्रपरिमाण२०३ नारकादीनां प्रयोगाः। ३१९२१२,,, व्यन्तराणां विषये। ३४० तारतम्यम् । ३५५ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ।११ ~242 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां० विषयानुक्रमे प्रज्ञा विषयसूचिः देखीए ॥४२॥ दीप क्रमांक के लिए २२४ का लेश्याः कतिषु ज्ञानेषु २३४ कायस्थितीन्द्रियद्वारम् । लभ्यन्ते। ३५७/ २३५ कायद्वारम्। २२५, २१० लेश्याणां परिणाम- २३६ कायद्वारे सूक्ष्मकायिकादीनां लक्षणम्। ३५८/ कालनिरूपणम् । | २२६ लेश्यानां वर्णाधिकारः। ३६०/ २३७ योगद्वारम् । | २२७ लेझ्यानां रसाधिकारः।। ३६४ २३८ वेदद्वारम् । | २२८ लेश्यानां गन्धाधिकारस। ३६६/ २३९ कषायद्वारम् । | २२९ लेश्यानां परिणामद्वारम्। ३६७/ २४० लेश्याद्वारम् । | २३० लेश्यानां स्थानद्वारम् । ३६८ २४१ सम्यक्त्वद्वारम् । २३१ देवनैरयिकविषयम्। ३७० २४२ ज्ञानद्वारम् । २३२ सामन्यतया लेश्यावर्णनम् । ३७१] २४३ दर्शनद्वारम् । ॥ इति सप्तदशं लेश्याख्यं पदम् ॥ | २४४ संयतद्वारम् । | २३३, २११-२१२* कायस्थितिपरि- २४५ उपयोगद्वारम् । णामः। ३७४/ २४६ आहारकद्वारम् । ३७७/ २४७ भाषाद्वारम् । ३७८ २४८ परीत्तद्वारम् । २४२ पर्याप्तद्वारम् । ३८१ २५० सूक्ष्मद्वारम् । ३८२/ २५१ संशिद्वारम्। ३८३ | २५२ भवसिद्धिकद्वारम्। ३८५/२५३ अस्तिकायद्वारम् । | २५४ चरिमद्वारम् । ३८७ ॥ इत्यष्टादश कायस्थितिपदम् ।। ३८९/ १५५ सम्यग्दृष्ट्यादिभेदेन जीवाः । ३९५ इत्येकोनविंशतितम सम्यक्त्वपदम् ।। ३९ १५६, २१३* अन्तक्रिया, तीर्थकृत्त्वा३९२ दिप्राप्तिसंग्रहः, जीवादिष्वन्त क्रियाविचारः। ३९६ देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥१२॥ ~243 Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए प्रज्ञा विषयसूचिः ४२७ दीप क्रमांक के लिए देखीए २५७ नैरविकेष्वन्तक्रिया। ३९६/२६६ उपपातोऽसंयताभन्यद्रव्यदेवादी- २७५ तैजसशरीरभेदाः (५)। ४२६] २५८ नैरयिकादिभवेभ्यः समयेनान्तक्रिया- | नाम् (१४)। ४०४ २७६ तैजसावगाहनामानम्।। मानम्। ३२८ २६७ असंज्ञयायुभेदाः (१)। ४०६, २७७ पुद्गलचयनम्। ४३१ २५९ नैरयिकाणामुद्भुते धर्मश्रवणादि- . ॥ इति विंशतितमं क्रियापदम् ॥ | २७८ औदारिकादीनां द्रव्यपदेशोभयैक्रिया। २१४* विधिप्रमाणसंस्थानादिसंग्रहः १०७ रूपबहुत्वम् । २६० असुरकुमाराणामुदत्ते धर्म | ४०० २६८ शरीरभेदाः (५)। ४०८/२७९ औदारिकादीनां जघन्योत्कृष्टो२६१ पृथिवीकायिकादीनामवृत्तधर्म०।४०१ २६९ संस्थानानि । भयावगाहनाविषयमरूपबहुत्वम् । २६२ विकलेन्द्रियाणामद्वृत्ते धर्म। , | २७०, २१५-२१६* अवगाहनामानम् । २६३ पञ्चेन्द्रियतिरश्चामुद्वृत्ते धर्मश्रव- ... ४१२ ॥ इत्येकविंशतितमं शरीरपदम् ॥ णादिः। , २७१ वैक्रियशरीरभेदौ । ४१५/ २८० क्रियाभेदाः (4)। ४३५ २६४ रत्नप्रभा द्वताना तीर्थकरत्वाद्याप्ति- | २७२ वैक्रियसंस्थानानि । ४१६२८१ जीवानां प्राणातिपातादिना क्रियाः । विचारः। ४०२२७३ वैकियावगाहनामानम् । ११७ २६५ रत्नप्रभादिभ्यश्चक्रवत्तित्वाद्याप्तिः। |२७४ आहारकशरीरस्य विधिसंस्थाना- २८२ जीवानां प्राणातिपातादिभ्यः ४०३ : वगाहनास्थानानि । ४२३ कर्मबन्धः। ४३८ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~244 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे यहां प्रज्ञा० विषयसूचिः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए S| २८३ जीवनारकादीनां जीवनारकादिभ्यः | २९४ कर्मप्रकृतिविचारः। ४६५/ इति पञ्चविंशतितमं कर्मवेदाख्यं पदम् क्रियाः। ४३९/ २९५ पंचविधज्ञानावरणीयादिकर्मस्थितिः। | ३०२ कर्मप्रकृतिवेदबन्धः। ४९५ २८ क्रियासंवेधः। १४३ ४७५] इति पड्विंशतितम वेदबन्धाख्यं पदम् २८५ क्रिया(५)णा सहभावविचारः १४४६ २९६ एकेन्द्रियाणां कर्मस्थितिः। ४८५, ३०३ कर्मवेदवेदः । ४९७10 २८६ हिंसादिविरमणहेतुः। १४८ २९७ द्वीन्द्रियादीनां कर्मस्थितिः। १८८ इति वेदवेदाख्यं सप्तविंशतितमं पदम् ।। २८७ प्राणातिपातविरमणे कर्मप्रकृति- २९८ ज्ञानावरणीयादिकर्मणां जघन्य- | ३०४ नारकादीनां सचित्ताद्याहारादि। ४१८ बन्धमानम्। स्थितिबन्धः ४८८ ३०५, २१८-२१९ असुरकुमारादीना- D | २८८ विरताना क्रियाभावः। ४५, २९९ ज्ञाना० उत्कृष्टस्थितिबन्धः । ४९० माहारादि। ४९९ ॥ इति द्वाविंशतितम क्रियापदम् ॥ ॥ इति त्रयोविंशतितमं कर्मप्रकृत्या- | ३०६ पृथ्वीकायिकादीनामाहारादि । ५०५ २८९, २१७ कर्मप्रकृतेर्भेदाः (८)। ४५२ ख्यं पदम् ।। ३०७ द्वीन्द्रियाणामाहारादि। ५०७ | २९० कर्मप्रकृतबन्धः। १५०/३०० कर्मप्रकृतिबन्धबन्धनम् (८) ४९ ३०८ नारकादीनामेकेन्द्रियशरीराबाहारः।। २९१ कर्मस्थानानि । १५५ ॥इति कर्मबन्धाख्यं चतुर्विंशति ५०० २९२ कर्मवेदना। तमं पदम् ॥ ३०९ नारकाणामोजआहारादिः। ५१० | २९३ कर्मकर्मानुभावः । - ४५८ ३०१ कर्मबन्धवेदः । १९४/ २२०* आहारपदाधिकाराः (१३)। ५११ 'सवृत्तिक आगम म पदम्॥ सुत्ताणि ॥१४ ~245 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां० विषयानुक्रमे ॥ ४५ ॥ ५४० ३१० जीवानामाहारानाहारादि । ५१२ ॥ इति द्वात्रिंशत्तमं संयमाख्यं पदम् ॥ ३११ सलेश्यजीवानामाहारादि । ५१६ ३१८, २२३* अवधिज्ञानभेदौ । ५३६ ३१२ गत्यादिष्वाहारकत्वादिः । ५२० ३१९ अवधिज्ञानविषयः । ॥ इत्यष्टाविंशतितममाहाराख्यं पदम् || ३२० अवधिज्ञानसंस्थानद्वारम् । ३१३ नारकादीनां सागारोपयोगादिभेदाः । ३२१ नैरयिकभवनपति व्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकानामवधिः । ५४२ ॥ इति त्रयस्त्रिंशत्तममवध्याख्यं पदम् ।। ३२२, २२४-२२५* परिचारणा । ५४३ ३२३ परिचारणा, आहारविषयमा भोग नम् । ५२५ ॥ इत्ये कोनत्रिंशत्तममुपयोगाख्यं पदम् ॥ ३१४ पश्यत्ताभेदाः (९) ( मतिज्ञानाज्ञानयो र्न ) । ५२९ ३१५ आकारादिज्ञानदर्शनपृथक्त्वम् । ५३१ ॥ इति त्रिंशत्तमं पश्यत्तापदम् ॥ ३१६, २२१* संज्ञाभेदाः । इत्येकत्रिंशत्तमं संज्ञाख्यं पदम् ।। ३१७, २२२ संयतः । ५३३ ३२४ परिचारणाविषयः । ३२५ परिचारणाभेदाः । ३२६ शीतपरिचारणा ५३४ | ३२७ शुक्रपरिचारणा । ३२८ स्पर्शपरिचारणा । ३२९ कायपरिचारणा । " ५५६ ॥ इति चतुस्त्रिंशत्तमं प्रवीचारपदम् ॥ ५४१३३०, २२६-२२७* वेदनाभेदाः । ५५३ ३३१, ३३२ वेदना भेदौ । ।। इति वेदनाख्यं पञ्चत्रिंशत्तमं पदम् || २२८* वेदनादिसमुद्घाताः । ३३३ समुद्घातभेदाः । ३३४ नैरयिकेषु समुद्घाताः । ~246~ ५४४ ५४७ ५४८ "" " ५४८ ५५९ ५६१ ५६२ ३३५ नैरयिकेषु वेदनासमुद्घाताः । ५६५ ३३६ स्वपरस्थाने वेदनासमुद्घाताः । ६७५ ३३७ स्व० कषायस्य समुद्घाताः । ५६९ ३३८ नारकादेर्नारकत्वादौ मारणान्तिकायाः समुद्घाताः । ५७३ प्रज्ञा० विषयसूचिः ।। ४५ ।। Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ॥ ४६ ॥ ३३९ नारकादीनां नारकत्वादी समुद्र घाताः ५७५ ३४०-३४१ समुद्घातानामरूपबहुत्वम् । ३४२ स्वपरस्थाने कपायस० । ३४३ क्रोधादिसमुद्घाताद्यल्पबहुत्वम् । ५८८ ३४४ छास्थिकाः समुद्घाताः । ५९० ३४५ समुद्घातपुद्गलपूरणादि । ३४६ वैक्रियसमुद्घातः । ३४७ के बलिसमुद्घातनिर्जरापुद्गलसूक्ष्मता । 19 ५९६ ३५२ योगनिरोधः । ६०५ ६०७ ५७८ ।। इति षट्त्रिंशत्तमं समुद्घाताख्यं पदम् । ५८१ ॥ इति श्रीप्रज्ञापनाया विषयसूचिः || ५९८ ३४८ केवलिसमुद्घातप्रयोजनम् । ६०५ ६०७ ३४९ आवर्जीकरणम् । ३५० केवलि० समयाः । ३५१, २२९-२३० कृतसमुद्घातस्य योगाः । " ~ 247~ CU AUNGUN प्रज्ञा० विषयसूचि बृहद्विषया नुक्रमश्ध ॥ ४६ ॥ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ।। ४६ ।। । [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] रातः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) AAAAAVANANANAX XX XX I अथ श्रीप्रज्ञापनोपाङ्गस्य बृहद्विषयानुक्रमः बीरनमस्कारमङ्गादि । प्रज्ञापनाशब्दार्थः, प्रयोजनाभिधेयमङ्गलचर्चा | १* महावीरनमस्कारः, (अतिशयचतुष्कम् ) । २* वीरस्यासन्नोपकारिता । ~248~ ܕ २ ४ ५ ४* प्र० आर्यश्यामनमस्कारः । ५* दृष्टिवादनिरस्यन्दाध्ययनकथनप्रतिज्ञा । ९. प्रज्ञापनादि ( ३६ ) पदानामुद्देशः । १ जीवाजीवप्रज्ञापने । २ रुप्यरूप्यजीवज्ञापने । ७ ३ धर्मास्तिकायतदेशादि (१० भेदाः । ९ ४ स्कन्धादीनां ( ४ ) वर्णगन्धादि (५) परिणामा (परिमण्डलादिसंस्थानानि ) १८ ५ संसारा संसारसमापन्न प्रज्ञापने । ८ अनन्तरपरम्परसिद्ध ज्ञापने ६, तीर्था दि (१५) सिद्धाः, (स्वयंबुद्धप्रत्येक बुद्धविचार:, स्त्रीमुक्तिसिद्धिः ) ७, अप्रथमसमयसिद्धादिप्रज्ञापना ( ८ ) 1 २३ 22 ६ ६ 6. " प्रज्ञा० विषयसूचि बृहद्विषया नुक्रमश्ध ॥ ४६ ॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां विषयानुक्रमे प्रज्ञा० बृहद् देखीए विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपां. S९ एकेन्द्रियादिप्रज्ञापना, (द्रव्यभावेन्द्रि- १८ सूक्ष्मवादरपर्याप्तापर्याप्तवायुकाय।। ४३ शाल्याद्यौषध्युदकादिजलयाणि) रुहआयादिकुहुणप्र०, एकानेकजीव॥४७॥ 2. पृथ्वीकायादिप्रज्ञापना। २२, १४* सूक्ष्मवादरवनस्पतिप० । स्कन्धादिषु श्लेषवृत्तितिलपर्पटिकादृष्टा१. सूक्ष्मबादरपृथ्वीप्रज्ञापना। १९, पर्याप्तापर्याप्तसूक्ष्मव-प्र० न्तौ४६। ३१ १२ पर्याप्तापर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीप्र० २०, प्रत्येकसाधारणबादरव०प्र० २४, ८३ अबकाद्याः साधारणभेदा:५३* (पर्याप्तिनिरूपणम् )। २१, वृक्षादि (१२) बादरवः प्र० संख्याऽसंख्यातजीवशृङ्गाटकजीवा१३ श्लक्ष्णखरपृथ्वीप्र० २२,१४ । नन्तप्रत्येकमूलादिलक्षणम् । ८३* ३६ १४ लक्ष्णकृष्णादि(७)मृत्तिकाप्रज्ञा- २३, ४६* निम्बाम्राकास्थिक१७*- २५, ९६* अनन्तप्रत्येकचिलभेदाः। ३८ पना । अस्थिकादिबहुवीजवृक्ष२०*- ९८* मूलप्रथमपत्रयोरेककर्तृकता ९७* | १५, १३* खरपृथ्वीशर्करादि(४०)-, वृन्ताकादिगुच्छ२५ सेचन किशलयोऽनन्तकायः ९८ । ३९ योनयः, पर्याप्तनिश्रयोत्पत्तिः। २८ कादिगुल्म२८* पद्मादिलता २९. | २६, ११०* साधारणानां युगपदुत्पत्यादि, S| १६ सूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्याप्ताप्कायप्र०।२९ पुस्फल्यादिवल्ली३४* इक्ष्वादिपर्वग- अनन्तशरीरदृश्यता, अनन्तप्रत्येक१७ सूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्याप्ततेजस्काय ।। ३६* साण्डिकादितृण३८* ताला- मानं (गोला निगोदाश्च) १०६, २९| दिवलय ४०* आर्यावरोहादिहरित सूक्ष्मानामाज्ञानाचत्वम् १०७* प्र०, 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥४७॥ ~249 Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां० विषयानुक्रमे ॥ ४८ ॥ पर्या पर्याप्त वनस्पति संख्या, कन्दादीनां त्वगादिष्वनियतादियोनिः ११०* । ४१ २७ पुताकृम्यादिद्वीन्द्रियप्रज्ञापना (योनिकुलयोर्भेदः) ४१ २८ औपयिकादित्रीन्द्रियमः । ४२ २९, १११ अधिकादिचतुरिन्द्रियप्र० । ३० नैरयिकादिपञ्चेन्द्रियप्र० । ३१ रत्नप्रभादिनारकप्र० । ३२ जलचरादितिर्यक्प्र० । ३३ मत्स्यादि (५) क्ष्णमत्स्याद्यस्थि कच्छपादिदिल्यादिग्राहसोण्डादि मकरादिजलचर ० " ४३ " "" ४४ ३४ अश्वाद्येकखुरोष्ट्रादिद्विखुरहस्त्यादि गण्डी पदसिंहादिसनख चतुष्पदमः ॥४५ ३५ आशीविषादिदव कर दिव्याकादि मुकुल्या जगराऽऽशालिकमहोरगोरः परिसर्पनकुलादिभुजपरिसर्पप्रः । 8 ३६, ११२ वल्गुल्यादिचर्मपक्षिढङ्कादिरोमपक्षिसमुद्रविततपक्षिप्र०, (कुकोटिसंग्रह) ११२* । ५० ३७, १३३* संमूच्छिमन रोत्पत्तिस्थानकर्माकर्मभूम्यन्तरद्वीपकमनुष्याधिकारः (युगलिकवर्णनम् ), शकादयो म्लेच्छाः, ऋद्धिक्षेत्र जाति कुलकर्मशिल्पभाषाज्ञानदर्शनचारिश्रार्याः, (नि ~ 250 ~ ६८ सर्गादिभेदाः, निश्शङ्कितादय आ चाराः परिहारविशुद्धिः) । ३८ सप्रभेदभवनवास्यादिदेवप्रज्ञापना । ७१ ॥ इति प्रथमं प्रज्ञापनापदम् ॥ ३९. सूक्ष्मबादरपर्याप्त पर्याप्तपृथिव्यते ७८ जसां स्थानानि (शिष्यप्रत्ययाय गौतमप्रश्न, तिर्यगुलोकतट्टे च ) । ७७ ४० बादरादिवायुवनस्पति स्थानानि । ४१ द्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियस्थानानि । ४२ नारकाणां स्थानम् (सवर्णनम् ) | ४३, १३७ रत्नप्रभादिनारकस्थानानि सवर्णनानि । ८१ " ४४ पञ्चेन्द्रिय तिर्यक्स्थानानि । ४५ मनुष्यस्थानानि । ८४ 27 "2 प्रज्ञा० बृहद्विषयानुक्रमः ॥ ४८ ॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत १२६/ प्रज्ञा श्रीउपा० विषयानुक्रमे सूत्रांक यहां देखीए प्रज्ञा दीप क्रमांक के लिए देखीए ४६, १४९* सवर्णनभवनपत्यादिदक्षि- | स्पर्शलक्षणसुखपर्यायाश्च। ११३| पर्याप्ताल्पबहुन्वम् । णोत्तरतद्भेदस्थानानि । ९५ ॥इति द्वितीय स्थानपदम् ॥ ६१ बादरबादर पृथ्व्याद्यल्पबहुत्वम् । १२९ ४७ सवर्णनव्यन्तरस्थानानि । ९७/ १८१* दिगादीनि द्वाराणि (२७)। ११४ ६२ सूक्ष्मसूक्ष्मव्यादिबादरबादरपृथ्व्या४९, १५४* पिशाचत दस्थानानि ४८, | ५५ जीवानां दिगनुपातेनाल्पबहुत्वम् । | पल्पबहुत्यम् । १५१, अनपर्णिकादिस्थानानि ११५, ६४ सयोगमनोयोम्या(५)धल्पबहुत्वम् ४,१५४ । __९८५६ पृथिव्यप्तेजोवाय्वादीनां सिद्धान्तानां । ६३, सद्बदस्त्रीवेदाद्यल्पबहुत्वम् ६४॥ ५. ज्योतिष्कस्थानानि। ९९ दिगनुपातेनाल्पबहुत्वम् । ११९/ ५१ वैमानिकस्थानानि। १००५७ नारकतिर्यग्देवसिद्धानां पश्चाष्टगति- | ६६ सकषाय्यादि६५सलेश्यायल्प५२ सौधर्मदेवस्थानतदिन्द्रवर्णनम् । १०१ रूपेणाल्पबहुत्वम् । १२० बहुत्वम् ६६ । १३६ ६३,१५८* ईशानादिदेवस्थानवर्णन, |५८ सैकादी(७)न्द्रियाल्पबहुत्वं, मोघ- १८ सम्यम्हएयादि ६७ आभिनिसामानिकात्मरक्षकविमानसंख्या च।। पर्याप्तापर्याप्त विशेषितं च । १२२ बोधिकज्ञान्यायल्पबहुत्वम् ६८ ११३७ १०६/ ५९ सकायपृथ्वीकायाद्य(८)रूपबहुत्वम्। | ७२ चक्षुर्दर्शन्यादि६९ संयतादि७०५४,१७९ सिद्धानां स्थानं तन्नाम साकारोपयुक्तादिआहारकास्वरूपे, अपतिघातसंस्थानावगाहना- |६० सूक्ष्मसूक्ष्मपृथ्व्यादितत्पर्याप्ता घल्पबहुत्वम् ७२। १३८ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥ १९ ॥ ~251 Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए श्रीउपां. IS ७८ भाषकादि७३ परीत्तादि७४पर्याप्तदि- ८५ ऊर्धादिक्षेत्रेष्वेकेन्द्रियतदपर्याप्त- शानामेकादिप्रदेशावगाढानामेकादि- प्रज्ञा विषयानुक्रमे ७५सूक्ष्मादि७६सम्झ्यादि७७- पर्याप्तानामरूपबहुत्वम् । समयस्थितिकानामेकादिगुणकालका विषयानुक्रमः ॥५०॥ भव्यायल्पबहुत्वम् ७८ | १४०८६ ऊर्ध्वादिषु द्वीन्द्रियादितदपर्याप्त- दीनां पुद्गलानामल्पबहुत्वम् । १६१/8 ७९ धर्मास्तिकायादीनां द्रव्यप्रदेशोभयैर- | पर्याप्त नामरूपबहुत्वम् । १५३/ ९३ गर्भव्युत्क्रान्तिकादि(९८)सर्वजीवा- | ल्पबहुत्वम् , (कालस्यानन्तगुण- ८७ ऊर्वादिषु पञ्चन्दियतद पर्याप्त पचहुत्वम् (महादण्डकः)। १६८ त्वसिद्धिः)। १४३ पर्याप्तानामल्प०। १५४ ॥ इति तृतीयं बहुवक्तव्य तापदम् ।। चरमाचरमाल्पबहुत्वम् । ८८ ऊर्वादिषु पृथ्ख्यादीनामोषिकापर्याप्त- | ९४ ओधिकरत्नप्रभादितदपर्याप्त८१ जीवपुद्गलाद्धासर्वद्रव्यप्रदेशपर्याया- | पर्याप्तानामा १५५] पर्याप्ततारकाणां परापरे स्थिती। १७० रूपबहुत्वम् । १४४८९ ऊर्धादिषु सानामोधिक पर्याप्त- १०१ देवदेवीसप्रभेदभवनपत्यादि८२ ऊर्चलोकादिक्षेत्रानुपातेनाल० । पर्याप्तानामरूप। देवदेवीनामपर्याप्तपय तानां परापरे १४५ ९० आयुर्वन्धकादी(१४)नामल्प० । १५८ स्थिती२५ भोषिकसूक्ष्मबादर८३ क्षेत्रानुपातेन पञ्चष्टगत्यल्प० । १४८९१ त्रैल,क्यादिपूर्वादिषु च पुद्गलानां पृथिव्यादीनां ९६ द्वीन्द्रियादीनां ८५ क्षेत्रानुपातेन भवनपतितद्देवीन्यन्त. द्रव्याणां चारूपबहुत्वम् । १६० ९७ ओधिकसंमूछिमगर्भजजलराद्यल्पबहुत्वम्। १५१ / ९२ परमाणुसंख्याऽसंख्याऽनन्तपदे चरचतुष्पदोरोभुजपरिसर्पखचराणां देखीए MERMANEMALEKEX 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~252 Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे प्रज्ञा० बृहद् विषयानुकर देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ९८ ओघसंमूछिमगर्भजनराणां | ११० असुर दीनां १.५ पृथळ्यादीनां रूप्यजीवपर्यायाः ११९ पर ९९ व्यन्तरदेवदेवीना १००१०६ द्वीन्द्रियादीनां १०७ मावादीनां द्रव्यप्रदेशादगाहनाज्योतिष्कतईवीचन्द्रादितहेवीनां . पञ्चेन्द्रियतिरश्वां१०८मनुष्याणां स्थितिकालादिपर्यायैस्तुल्यहीन परापरे स्क्रिती १०१। १७६ १०९व्यन्तरादीनां द्रव्यादिभिः त्वादि१२०, जघन्यमध्यमोत्कृष्ट१०२ वैमानिक दे देवीसौवर्मशान पर्यायाः ११०। १८६/ प्रदेशानां पर्यायतुल्याधिकत्वादि देवपरिगृहीतापरिगृहीतदेवीसन १११ नारकाणां जघन्यमध्यमोत्कृष्टा २०४ कुमारादिदेवानां परापरे स्थिती।। वगाहनास्थितिकालादिज्ञानादि- || इति पञ्चमं विशेषपदम् ॥ पर्यायैररूपबहुत्वम् ! १८९ १२२, १८२* नारकादिसिद्ध्यन्तगतीना।। इति चतुर्य स्थितिपदम् ॥ ११७ असुरादीनां ११२ पृथ्व्यादीना- मुत्पादोद्वर्तनाविरहः। २०५ १०३ जीबनारकासुरकुमारादीनां पर्यायाः।। ११३ द्वीन्द्रियादीनां ११४ | १२४ रत्नप्रभाद्यसुरादिपृथ्व्यादिद्वी पञ्चेन्द्रियतिरश्चां ११५ मनुष्याणां न्द्रियादिसंमूछिमगर्भनतिर्यग्१०४ नारकाणां द्रव्यप्रदेशावगाहना ११६ व्यन्तगदीनां पर्यायाणां नरज्योतिष्कसौधर्मादिसिद्धोत्पादस्थितिकालादिवर्णादिमत्यादिज्ञान- | तुल्याधिकत्वादि ११७। १९६ विरहः १२३ रत्नप्रभादिपूनाया दर्शनपर्यायैरल्पबहुत्वम्। १८४|१२१ अरूप्यजीवभेदाः(१०)११८ । बिरहः १२४ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~253 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे प्रज्ञा बृहद्विषयानुक्रमः देखीए ॥५२॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए २१७ १२६ नारकादीनां सान्तरनिरन्तर- १४३ नारकाणां १३८ असुरादीनां १४. आहारादि(१०) सज्ञा, नारमुत्पत्तिः १२५ तथोद्वर्त्तना १२६। । १३९ पृथ्व्यादीनां १४० कादीनां १४७ बाहुल्यसन्तति२०८ पञ्चेन्द्रियतिरश्चां १४१ मनु भ्यां सज्ञोपयुक्तविचारः, गतिका १२८ उत्पाते नारकरत्नप्रभाद्यसुरादि । घ्याणां १४२ व्यन्तरादीनां च भेदेन सज्ञाऽल्पबहुत्वं च । २२४ सिद्धान्तानामेकसमयसंख्या १२७, गतिः १४३। २१६| ॥ इत्यष्टम सज्ञापदम् ।। उद्वर्तनायां संख्या १२८। २०९/ १४४ नारकादीनां परभवायुर्बन्धकालः । १५० शीतोष्णमिश्रा योनयः १४९ १३७,१८४ सप्रमेदनारकाणां १२९, नारकासुरपृथ्वीसंमूछिमगर्मज१८४* असुरादीनां १३० | १४५ जातिनामनिधत्तायुष्कादीना तिर्थग्मनुष्यव्यन्तरादीना योनिः पृथ्व्यादीनां १३१ द्वीन्द्रियामाकर्षाः । शीतयोन्यायल्पबहुत्वं च १५०। दीनां ॥३२ पञ्चेन्द्रियतिरश्चा ॥ इति षष्ट व्यु क्रान्तिपदम् ।। १३३ मनुष्याणां १३४ व्यन्त- | १४६ नारकासुरादिपृथिव्यादिमनुष्य- १५१ नारकादीनां सचित्तादियोनिः । २२७| राणां १३५ ज्योतिष्काणां १३६ व्यन्तरज्योतिष्कसपमेदवैमा- १५२ नारकादीनां संवृतादियोनिः ।, सप्रभेदवैमानिकानां चागति निकामुच्छ्वासान्तरम् । २२१ १५३ कूर्मोन्नतादियोनिविचारः। २२८/ विचारः १३७॥ ॥ इति सप्तममुच्छासपदम् ॥ । ॥ इति नवमै योनिपदम् ॥ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥५२॥ ~2540 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक मज्ञा० यहां देखीए विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपा. S१५४ रत्नप्रभादीनां चरमाचरमत्वादि- स्थितिभवादिः (११) चरमा- १६७ जीवादीनां भाषकाभाषकविचारः विषयानुक्रमे विचारः। २३० चरमत्वं च । २४६१६६ जीबादीनां सत्यामृषादि॥ ५३॥ १५६ रत्नप्रभादीनामचरमचरमतदन्त- । ॥ इति दशम चश्माचरमपदम् ॥ | __ भाषत्वम् । १६७। २६० प्रदेशानां द्रव्यपदेशोभयारल्प | १६१ अवधारिण्याः भाषायाः सत्यादिता। | १६९, १०.८* भाषाया द्रव्याबगाहबहुत्वं १५५ अलोकस्य लोका स्थितिवर्णादिस्वष्टावगाढादिलोकयोरचरमचरमाद्यरूपबहुत्वम्। | १६३ गोमृगादिव्याज्ञापन्यादिभाषा २५२ बिचारः १६८, १९८", सान्तर२३२ १६३ बालादीनां भाषाऽऽहारयोर निरन्तरभिन्नाभिन्नग्रहणविचारः । १५८, १९०* परमाणोश्वरमाचरमा- ज्ञानेऽपि प्रवृत्तिः। २५३ | १६९। बक्तव्यतादिभङ्गाः (२६) १५७, १६४ एकबहुवचनस्त्रीपुंनपुंसकादिभाषा। |७३ खण्डपतराया(4)भेदाः, तद द्विपदेशादीनां चरमत्वादि रूपत्वादि'७०, नारकादीनां १९० १५८ २४२/१६५, १९७* भाषाया आदिमबह स्थितादिभाषापुद्गलग्रहण १७१ १५९ संस्थानतत्संख्याप्रदेशमानाबगाहाः, संस्थानान्ताः, पर्याप्तापर्याप्तभेदाः, . सत्यादितया ग्रह्णनिसगौं१७२ तच्चरमत्वादि च । २४४ सत्यमृषामिश्रव्यवहारभाषाभेदाः । एकद्विवचनादि(१६)वचनानि १६०, १९१* जीवनारकादीनां गति- (१०-१०-१०-१२)। २५९/ १७३। २६७. २५५ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ||५३ ~2550 Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां प्रज्ञा वृहद विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए श्रीउपा १७५ भाषाचतुष्केऽपि संयतासयत- विषयानुक्रमे योराराधनाविराधने १७४ सत्या. ॥५४॥ दिभाषकाल्पबहुत्वम् १७५/ २६८ ॥ इत्येकादशं भाषापदम् ॥ | १७६ शरीरभेदाः नारकादीनां शरीर संख्या च। | १७७ नौदारिकादीनां बद्धमुक्ताल्प- बहुत्वम् । १७८ नारकाणामौदारिकादिषु बद्धमुक्त विचारः। १८० असुरादीनां १७२ पृथ्व्यादीनां द्वीन्द्रियादीनां मनुष्याणां व्यन्तरा ॥ इति द्वादशं शरीरपदम् ॥ | प्रतिष्ठितत्वं, क्षेत्रवास्तुशरीरो१८२ जीवाजीवपरिणामौ १८१ गत्यादि। पधिभ्य उत्पत्तिः १८७ अन (१०)परिणामाः १८२। २८६ न्तानुबन्ध्याद्या भेदाः १८८। २९१| १८३ गतीन्द्रियकषायलेश्यायोगो- १९०, २०१* आभोगानाभोगोप पयोगज्ञानदर्शनचारित्रवेदभेदा- शान्तानुपशान्तक्रोधादयः १८९ स्तै रकादिविचारश्च । ८७ क्रोधादिभिरष्ट कर्मचयोपचवबन्धो१८५, २००* बन्धनगतिसंस्थानादयो- दयोदीरणवेदननिर्जराः १९०, (१०)ऽजीवपरिणामाः १८४ सिग्धरूक्षबन्धम्पृशदस्पृशद्ग ॥ इति चतुर्दशं कपायपदम् ॥ त्यादिपरिणामविचारः १८५२८३* संस्थानबाहल्यादिसमणीगाथे १०३। २९३ ॥ इति त्रयोदशं परिणामपदम् ॥ १९१ इन्द्रियाणां भेदसंस्थानबाहल्य१८८ नारकादीनां क्रोधादयः १८६ पृथक्त्वप्रदेशविचारः १९१ । २९५/ क्रोधादीनामात्मपरोभयनि- १९२ इन्द्रियाणामवगाहतदस्पबहुस्वे २०१। देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि विचारा १८० | २८४ ॥ ४ ॥ ~256~ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपा० विषयानुक्रमे प्रज्ञा ॥५५॥ ३२५ दीप क्रमांक के लिए देखीए कर्कशगुर्वादिगुणारूपबहुत्वं च । २९६ कायादिभिर्व्याप्तिः, जम्बूद्वीपादे- न्द्रियसंख्या। १९३ नारकासुरादिभेदेनेन्द्रियतत्संस्था- धर्मादिभिः, द्वीपसमुद्रपरिपाटी, ॥ द्वितीयोद्देशः, इन्द्रियपदं १६॥ विषयानुक्रम नादिविचारस . २९८ लोकालोकयोधर्मादिस्पर्श- २०२ सत्यमनआदयः प्रयोगा:(१५)।३१९/ १९४ स्पृष्टादिशब्दादिश्रवणादि- | विचारः। ३०८ २०३ नारकादीनां प्रयोगसंख्या । ३२० विचारः। २९९ ॥ इन्द्रियपदे प्रथमोद्देशः ॥ |२०४ जीवादिषु सत्यमनआदिप्रयोग- IA १९५ श्रोत्रादीनां जघन्योत्कृष्टविषय- २८७-८* इन्द्रियोपचयनिर्वर्तनादिसम- । भङ्गाः । मानं (आत्माङ्गुलेनेन्द्रियमानं हगाथे। ३०९/ २०५ प्रयोग(१५)तबन्धच्छेदोपपातचक्षुषः प्रकाश्ये)। । ३०२१९९ नारकादीनामिन्द्रियोपचयनिर्वर्तन- (५)विहायो(१७)गतिभेदाः १९६ लोकव्यापिचरमनिर्जरापुद्गला तत्समयमानलब्ध्युपयोगाद्धा (स्पृशदस्पृशदुपसम्पद्यमानादि ____ नामभेदाद्यज्ञानेऽप्याहरणम्। ३०४ तज्जघन्योत्कृष्टारूपबहुत्वा बिहायोगतौ। १९७ आदर्शादिषु स्वप्रतिभागप्रेक्षणम्। वगाहना। ॥ इति पोडशं प्रयोगपदम् ।। ३०५/२०० अपायेहाऽवग्रहमेदाः नारकादीनां | २०७,२०९* (लेश्याया योगपरिणाम१९८, २०६* आवेष्टितविततयोः समा- | तत्संख्या च । ३५ स्वसिद्धिः) आहारसमशरीरादि नोऽवगाहः, आकाशस्य धर्मास्ति- | २०१ नारकादीनां भूतानागतबद्धमुक्ते- । संग्रहणी२०९* नारकाणां समा 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~257 Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रम [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपां० विषयानुक्रमे ।। ५६ ।। हारशरीराच्या सादिविचारः २०६ समकर्मवर्णलेश्यावेदनाविचारः २०७ । २०८ नारकाणामारम्भिक्यादिक्रियाssयुरुत्पातसमत्व विचारश्च । ३३५ २०९ असुरकुमारादीनां समाहारत्वादिविचारः । २१० पृथ्व्यादीनामपि पञ्चेन्द्रिये संयतासंयतानां तु क्रियात्रयम् । ३४० २११ मनुष्याणां समाहारत्वादि, अप्रमायाप्रत्ययैव । ३४१ ३३४ ३३८ २१२ व्यन्तरादीनामपि समाहारत्वादि, २१३ नारकादीनां लेश्याभेदे समाहारत्वादिचिन्ता । ३४३ || इति लेश्यापदे प्रथमोदेशकः !! २१६ षड् लेश्याः २१४, नारकादीनां लेश्याविभागः २१५ सलेश्यादीनामरूपबहुत्वम् २१६ । ३४५ २१८ कृष्णलेश्यादिनारकाणामनबहुत्वं २१७ तिर्यगेकेन्द्रियपृथ्व्यतेजोवायुवनस्पतिद्वित्रिचतुःपञ्चन्द्रियसंमूच्छिमगर्भजतत्स्त्रीतदुभयसंमूच्छिमस्त्रीगर्भजस्त्रीसंमूच्छिमगर्भस्त्रीपश्चेन्द्रियतिर्यक्त्रीतिर्यक्त्रीलेश्या - बहुत्वम् । २२१ मनुष्याणामपि २१९ देवदेवी ~ 258 ~ ३४७ भवनपति ज्योतिष्क वैमानिक देवदेवीतदुभयसर्वेषा मल्पबहुत्वं २२० कृष्णादीनां लेश्यानामरूपमहर्द्धिकत्वम् २२१ | ३५२ ॥ इति लेश्यापदे द्वितीयोदेशकः ॥ २२२ नारकादीनामुत्पादोद्वर्तनयोः समलेश्यत्वं न पृथ्व्यादिषु । ३५५ २२३ नारकाणां लेश्याभेदेनावधिभेदः । २२४ लेश्यासु मत्यादिज्ञानविचारः । ३५८ ॥ इति लेश्यापदे तृतीयोदेशः ॥ २२५, २१० लेश्यापरिणामवर्ण ३५७ रसादि (१४) द्वारसंग्रहणी २१० कृष्णादेनादितया परिणामश्या ३६० प्रज्ञा० बृहद् - विषयानुक्रमः ॥ ५६ ॥ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां प्रज्ञा बृहद् देखीए विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए IS| २२६ कृष्णादिलेश्यानां वर्णाः। ३६४ ॥ इति लेश्यापदे पश्चमोद्देशकः ॥ | निन्द्रियौघाद्यपर्याप्तपर्याप्तकाय२२७ तासां रसवर्णनम् । ३६६ २३२ मनुष्यमानुषीकर्मभूमिभरतैर स्थितिः। २२८ तासां गन्धवर्णनं, अविशुद्धा- -वतान्तरद्वीपहैमवतारण्यवत- | २३५ सकायाकायौपृथिव्याद्यपर्याप्तप्रशस्तसंक्लिष्टशीतरूक्षदुर्गतिगामि- । हरिवर्षरम्य गगनुष्यमानुषीणां पर्याप्तकायस्थितिः। ३८१ त्वानि सप्रतिपक्षाणि च। ३६७/ लेझ्याष? ऽल्पवहुत्वं, समा- २३६ ओघसूक्ष्मवादरपृथिव्यादिनिगोद | २२९ तासां त्रिनवविधादिपरिणामो. नान्यलेश्याकगर्भजनकत्वं च । ३७३ तदपर्याप्तपर्याप्तकायस्थितिः। ३८२ ऽनन्तपदेशिकताऽसंख्यप्रदेशा | ॥इति ले पापदे षष्ठोद्देशकः ॥ |२३७ सयोगमनोयोग्यादिकायबगाहोऽनन्ता वर्गणाश्च । ३६८ ॥इति सप्तदश लेश्यापदम् ।। स्थितिः। S२३० तासां स्थानानि, जघन्योत्कृष्ट- २३३, २१२० जीवगतीन्द्रियादि- २३८ सामान्यविशेषवेदावेदस्थितिः। ३८५ स्थानानां द्रव्यप्रदेशोभयैरल्प (२२)द्वारसग्रहणीगाथे २१२ २३९ सामान्यविशेषकषाय्यकषायिबहुत्वं च। जीवस्थितिः, नारकतिर्यग्मनुष्यः | स्थितिः। ॥ इति लेश्यापदे चतुर्थोद्देशकः ॥ देवतस्त्रीसिद्धनारकाद्यपर्याप्तपर्याप्त- | २४. सलेश्यकृष्णलेश्याद्यलेश्यस्थितिः। २३१ लेश्यानां न तद्रूपतादिपरिणामः, - स्थितिः। आकारप्रतिभागौ स्याताम्। ३७२/ २३४ ओधैकद्वित्रिचतुःपञ्चन्द्रियाऽ- २४१ सम्यम्दष्ट्यादिस्थितिः, (एका XXXENTERTAINMETS: 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~259~ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत प्रज्ञा० सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपा. विषयानुक्रम विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए क्षराश्रद्धाने रुचिनिन्दयोरभावे- दीनां २५२धर्मास्तिकायादीनां |२५९ उद्त्तनारकाणां नरतिर्यग्गत्यो ऽपि मिथ्यादृष्टित्वम् ) । ३८९/ २५३चरमाचरमयोश्च कायस्थितिः धर्मश्रवणश्रद्धाज्ञानशीलाद्यवधि२४२ ओघमत्यादिज्ञान्यज्ञानिस्थितिः। । २५४। संयतत्वादिप्राप्तिविचारः। ४०० इत्यष्टादशं कायस्थिति पदम् ॥ २६० असुरादीनामुद्वर्तना। २४३ चक्षुर्दर्शन्यादिस्थितिः (विभङ्गे २५५ जीबनारकासुरादिषु दृष्टिविचारः। | २६१ पृथिव्यादीनां परत्र धर्मश्रवणादि । ऽवधिदर्शनविचारः)। . ३९१/ २४५ संयतादिस्थितिः२४४, साकारो- ॥ इत्यकोनविंशतिः सम्यक्त्वपदम् ॥ २६३ द्वीन्द्रियादीना२३२ पश्चन्द्रियपयोगादिस्थितिः २४५। ३९२/ २५८, २१३* नारकाद्यन्तक्रियाऽन तिरश्च म्। २६३। ४०२ २४६ छद्मस्थकेवल्याद्याहारकानाहारक- न्तरादि(१०)द्वारगाथार १३ २६४ रत्नप्रभादिनारकाणां तीर्थकृत्वास्थितिः । जीवनारकादीनामन्तक्रियाविचारः न्तक्रियामनःपर्यवादिलाभप्रश्नः । भाषकाभाषकयोः२४७काय२५६नारकादीनामनन्तरपरम्परा ४.३ संसारपरीत्तापरीत्तादीनां२४८ गताना२५७अनन्तरागतनार- | २६५ रत्नप्रभादिनारकादीनां चक्रिवल. पर्याप्तादीनां२४९सूक्ष्मादीनां कादीनामेकसमयान्तक्रिया वासुदेवसेनापत्यादित्वलाभ२५० सम्यादीनां२५१भव्याविचारश्वः २५८। विचारः। EARRRRRRRESEXSEXTRAILER देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~260~ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां औउपां. विषयानुक्रमे प्रज्ञा बृहद् देखीए 3Eye विषयानुक्रमः ॥ ५९॥ विचारः। दीप क्रमांक के लिए देखीए २६६ असंयतभव्यद्रव्यदेवादि(१४) २७१ वैक्रिपशरीरस्य स्वामिनः। ४१६/ परस्परं संवेधश्च। ४३३ जघन्योत्कृष्टोपपातविचारः। १०६ / २७२ तस्य संस्थानम् । ४१७ २७९ तेषां द्रव्यपदेशोभयरस्पबहुत्वं २६७ असश्यायुभेदाल्पबहुत्व- २७३ वायुकायरत्नप्रभादिनारकासुर २७८,जघन्योत्कृष्टावगाहना कुमारादीनां वैक्रियमान(प्रस्तट स्थबहुत्वम् २७१। ४३५/ ॥ इति विंशतितममन्तक्रियापदम् ॥ । भेदेन । ४२३ ॥ इत्येकविंशतितमं शरीरपदम् ॥ २६८, २१४० विधिसंस्थानपमाणादि. २७४ आहारकस्य स्वामिसंस्थाना- २८० कायिक्यादिक्रियाणामनुपरतादि(१०)द्वारसंग्रहगाथा२१४ वगाहनाः, (मनः पर्यवादिलब्धि- भेदाः। शरीरभेदाः, औदारिकस्वामि विचारः)। ४२६ २८१ हिंसामृषावादादिभिः षड़जीवविचारश्च । ४१०२७६ तेजसस्य स्वामिसंस्थाने२७५ निकायादिषु क्रिया। १३९/ २६९ एकेन्द्रियाद्यौदारिकशरीरस्य । जीबैकेन्द्रियपृथिव्यादिनामनुः | २८३ प्राणातिपातादीनां सप्तविधबन्धासंस्थानम् । तरान्तानां मरणसमुद्घाते तैज- दिविचार:२८२,ज्ञानावरणीया२७०, २१६* एकेन्द्रियपृथिव्याद्य साऽवगाहना, कार्मणस्य स्वाम्यादि दिबन्धे क्रियात्रयादिविचारः, पर्याप्तपर्याप्तभेदेनौदारिकावच २७६ । जीवनारकादीनां जीवनारकादिगाहनामानम् २१६, २७०।४१४ | २७७ औदारिकादीनां चयोपचयदिशः, भ्यस्त्रिक्रियत्वादिविचारः(गुण GEN 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~261 Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउप० विषयानुक्रमे ।। ६० ।। चन्द्रवाल चन्द्रकुरुपुत्रदृष्टान्तः ) २८३ । २८४ कायिक्यादीनां संवेधः । २८५ आरम्भिक्यादीनां स्वामिनः संवेध | २८८ हिंसाविरत्यादिषु स्वामिविषयाः २८६, सप्तविधयन्धादिविचारः २८७, आरम्भिक्यादिक्रियातद पबहुत्वविचारः २८८ | ॥ इति द्वाविंशतितमं क्रियापदम् ॥ २९०, २१७ प्रकृतिबन्धादिद्वार (६) ४४४ ४४६ २९२ ज्ञानावरणीय दिवेदकाः । २९३ ज्ञानावरणीयादीनां दशनवाष्टपञ्चचतुश्चतुर्दशाष्टपचविधा अनुभावाः । २९४ कर्मणां मतिज्ञानावरणादि(१५८) मेदाः | २९५ सप्रभेदानां ज्ञानावरणीयादीनां परापरे स्थिती अवाधा निषेकश्च । ૪૮૪ ४४८ ४५२ २९१ रागद्वेषाभ्यां तद्बन्धः ( नये रागद्वेषौ । ४५७ गाथा २१७, नारकादीनां कर्मप्रकृतयः २८९, ज्ञानावरणोदयादिनाऽष्टकर्मप्रकृतयः २९० । ४५५ ~ 262 ~ 17 २९६ एकेन्द्रियस्य ज्ञानावरणीयादिस्थितिबन्धः । २९७ द्वीन्द्रियादीनां ज्ञानावरणीयादि ४७२ स्थितिबन्धमानम् । २९८ ज्ञानावरणीयादिजघन्यस्थितिबन्धस्वामिनः । ४९१ २९९ ज्ञानावरणीयाद्युत्कृष्ट स्थितिबन्धस्वामिनः । ४६५ ॥ इति त्रयोविंशतितमं कर्म प्रकृतिपदम् । ३०० ज्ञानावरणीयादिवन्धे तदन्यससाष्टादिबन्धबन्धादिभङ्गाः । ४१४ ।। इति चतुर्विंशतितमं कर्म प्रकृतिबन्धपदम् ।। ३०१ ज्ञानावरणीयादिवन्धेऽष्टसच विवादि वेदनभङ्गाः । ॥ इति पञ्चविंशतितमं कर्मवेदपदम् ॥ ३०२ ज्ञानावरणीयादिवेदने सप्ताष्टविधादि ४९४ बन्धभङ्गाः । ४९७ ४८६ ४८८ ४१० प्रज्ञा० बृहद् ॐ विषयानुक्रमः ।। ६० ।। Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत श्रीउपा सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए HARIREMIXESAXCAXELECT ॥ इति षड्विंशतितमं कर्मवेदवन्धपदम् ॥ नामाहारार्थादि३०५। ५.५ हारकत्वादिभङ्गाः। ५२०४ प्रज्ञा ३०३ ज्ञानावरणीयादिवेदने सप्ताष्टविध- |३०६ पृथ्व्यादिनामाहारार्थतद्दिगादि। ५०६/२१२ ज्ञान्यज्ञानिसयोगसवेदसशरीरा- विषयानुक्रमः वेदनम् । ४९८ ३०७ द्वीन्दियादिमनुष्यन्यन्तरज्योति- हारादिपर्याप्तादिष्याहारकत्वाSI॥ इति सप्तविंशतितमं कर्मवेदवेदपदम् ॥ एकसौधर्मादीनामाहारार्थादि । ५०८ दिभनाः। ५२४ ३०५, २१९* सचित्ताहाराादि(८). ३०८ नारकादीनामेकेन्द्रियाद्याहार- ॥ इत्याहारपदे द्वितीयोदेशकः॥ द्वाराणि२१८५, एकेन्द्रियशरीर- | लोमाद्याहारविचारश्च । १० ॥ इत्यष्टाविंशतितममाहारपदम् ॥ लोमाहारमनोभक्षिद्वाराणि२१९, | ३०९ नारकादीनामोजोमनोभक्षितादि- | ३१३ नारकासुरादीनां साकारानाकानारकाणां सचित्ताद्याहारविचारः, विचारः। ५११/ रोपयोगसंख्या। ५२८ आभोगानाभोगाहारकालः, अनन्त- | ॥ इत्याहारपदे प्रथमोद्देशकः ॥ ॥ इत्येकोनत्रिंशत्तममुपयोगपदम् ।। प्रदेशिकादिपुद्गलैराहारः, आहारो- | २२०* आहाराभव्यादि(१३)द्वाराणि ।५१२/ ३१४ नारकादीना साकारा(६)ऽनाकारच्वासयोरभीक्ष्णं, कादाचित्कत्वे | ३१० जीवनारकादीनामाहारानाहारक- (३)पश्यत्ताविचारः। ५३१ असंख्येयभागे, आहारोऽनन्त त्वभङ्गाः, भव्यसञ्झ्यादिजीवा- | | ३१५ केवलिन एकसमयेन ज्ञानदर्शनाभागे, आस्वादः,दुःखतयापरिणामः | दीनामाहारकत्वादिभङ्गाः। ५१६ भावः । ३०४,असुरादिस्तनितकुमारान्ता- |३११ लेश्यादृष्टिसंयतसकषाय्यादिष्वा- ॥ इति त्रिंशत्तमं पश्यत्तापदम् ।। KENNELWASANAN 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥ ६ ॥ ~263 Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. विषयानुक्रमे यहां मज्ञा. देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ३१६, २२१ जीबनारकादीनां सब्जि- | वधिविचारः ३२१ । ५४३/ दीनामल्पबहुत्वम् ३२९। ५५३ स्वादिविचारः। ५३४ ॥इति प्रयस्त्रिंशत्तममवधिपदम् ॥ ॥ इति चतखिशत्तम प्रवीचारपदम ॥ LI. वृहद् ॥ इत्येकत्रिंशसमें सब्जिपदम् ।। ।३२२, २२५* अनन्तरागताहारादि- विषयानुक्रमः | ३३०, २२७* शीतद्रव्यशारीरादि३१७, २२२* जीवनारकादीनां संयत- (७)द्वारगाथै२२५२, नारकादी द्वारगाथे२२७ , नारकादीनां स्वादिविचारः। नामनन्तराहारादिवैक्रियान्तस्य । शीतादिद्रव्यादिशारीरादिसातादि॥ इति द्वात्रिंशत्तम संयतपदम् ।। विचारः। ५४० दुःखादिवेदना। ५५६ ३१८, २२३* भेदविषयसंस्थानादि- ३२३ नारकादीनामाहारपुद्गलज्ञाना- ३३, नारकादीनामौपक्रमिक्यादि.. (१०) द्वारगाथा२२३, भवः | ज्ञानादि। वेदनाविचारः । प्रत्ययक्षायोपशमिकस्वामिनः । ५३९ ३२१ देवानां देवीतत्परिचारणादि ३३२ नारकादीनां निदाऽनिदा नारकादीनामनुत्तरान्तानामवधि३२४कायस्पर्शरूपशब्दमन: वेदनाविचारः क्षेत्रमानम् । ५४१ प्रवीचारविचार:३२५इच्छा- ॥ इति पञ्चत्रिंशत्तम वेदनापदम् ॥ ३२१ नारकादीनामवधेराकारः३२० मनस उपशान्तिः३२६देवशुक्र- २२८* वेदनादिसमुद्घातास्तत्स्वामिनश्च । नारकादीनामन्तरदेशानुगामि- " । पुद्गलपरिणामः३२७स्पर्शादिवर्द्धमानप्रतिपात्यवस्थितेतरा- प्रवीचाररीतिः३२८कायप्रवीचारा- | ३३३ वेदनादिसमुद्घातकालमानं, AAAAAAA 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥६२ ॥ ~264~ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री उपां विषयानुक्रमे ।। ६३ ।। नारकादीनां समुद्घाससंख्या भ ५६२ ३३४ नारकादीनामतीतानागतवेदना समुदूधाताः । ५६५ ३३५ वेदनाऽऽहारक केवलिसमुद्याताः ! ५६७ ३३३ नारकादेर्नास्कादित्वेऽतीता. नागतवेदन समुद्घातमानम् । ५६९ ३३७ तथैव कषायसमुद्घातमानम् । ५७२ ३३८ सर्वदण्डकानां सर्वदण्ड के पु समुद्ातमानम् । ३३९ नारकादीनां नारकादित्वे वेद नादिसमुद्घातमानम् । ३४१ समुद्घातानां जीवानाम रूप ५७५ ५७८ बहुत्वं ३४०, समुद्घातानां नानाम् । ३४१ ५८१ ५८८ ३४२ नारकादीनामतीतानागतक्रोधादिसमुद्घातसङ्ख्या । ३४३ क्रोधादिसमुद्वाता पबहुत्वम् । ५९० ३४४ नाकादीनां छाद्मस्थिक संमुद्घातसंख्या । ३४५ वेदनादिसमुद्वातज विश्वयासपुद्गलेभ्यस्त्रिक्रियत्वादि, मारणातिक समुद्घातव्याप्तिश्च । ५९६ ३४७ क्रियसमुद्घाते क्षेत्रकालमानं, तेजससमुद्घाते, आहारके च ३४६, क्षेत्र व्याप्तिकिये, लोकव्या ~265~ 13 पचर पनिर्जरापुद्गल ज्ञानाज्ञानादि २४७॥ ३५०, २३०* केवलिनः समुद्वात ६.१ ३५१ कारण ३४८, ०३००, आवजीकरण कालमानं ३४०, केवलिसमुद्घातस्तत्र योगब्ध ३५०/६०५ समुद्घातस्य मनोवचनकाययोगाः (न पण्मासी शेषे )। ६०७ ३५२, २३१" योगनिरोधादिरीतिः, सिद्धरूपं च । ६११ । इति पदशितमं समुद्घातपदम् ॥ ॥ प्रशस्तिः ॥ ६११ ।। इति श्रीप्रज्ञापनाया बृहद्विषयानुक्रमः ॥ प्रज्ञा ० वृहद्विषयानुक्रमः ॥ ६३ ॥ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक सूर्य यहां देखीए [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ "सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) [आगम-१६+१७] उपांग-५+६ "सूर्य+चन्द्र-प्रज्ञप्ति" श्रीउपा. अथ श्रीसूर्यप्रज्ञप्लेविषय सूचिः ८ मुहूर्त्तवृद्ध्यपवृद्धी। ९.२१ सूर्यस्य तिर्यपरिभ्रमः ४५ विषयानुक्रमे वीरस्तुतिः १। ९ दिवसरात्रिविषये मु०। १०२२ भेदघातकर्णकले विपतिपत्तयः विषयसूचिः ॥ ६४॥ तीर्थकरस्तुतिः । १० सूर्यमण्डलानि। (२) आगमस्तुतिः ३। ११ सूर्यमण्डलविषयः। ११ २३ मुहूर्तगतिः विप्रतिपत्तयश्च (४)। ५२ सूर्यप्रज्ञप्तिस्तुतिः ४-५। १२ दक्षिणार्द्धमण्डलसंस्थितिः। २१ ॥ इति द्वितीय प्राभूतम् ॥ | १ मिथिलानगयुधानवर्णनम् । १३ उत्तराद्धमण्डलसंस्थितिः। , २४ प्रकाश्यक्षेत्रपरिमाणम् । २ समवसरणदिशावर्णनम् । १४ चीर्णचरणम् । ॥ ॥ इति तृतीयं प्राभृतम् ।। ३, १५* प्राभृताधिकाराः १५ अन्तरपरिमाणं विप्रतिपत्तयश्च २५ प्रकाशसंस्थानम् । ४, ६-७* प्रथमपाभृते पाभृतमाभूतनामानि - २५ ॥ इति चतुर्थ प्राभृतम् ।। १६१७ अवगाहनामानम् (५)। ३१ २६ लेश्याप्रतिघातः। ५, ८* सूर्यस्य प्रतिपत्तयः। | १८ विकम्पनमानविप्रतिपत्तयः (१)। ३२ ॥ इति पञ्चमं प्राभृतम् ।। ६,९११* सूर्यस्योदये अस्तमयनेषु १९ मण्डलसंस्थानविप्रतिपत्तयः (८)। ३६२७ ओजः संस्थितिः। च विप्रतिपत्तयः । २० मण्डलविष्कम्मविप्रतिपत्तयः (३)।३८ ॥ इति षष्ठं प्राभृतम् ।। ७, १२.१२ दशमप्राभृताधिकारः। ॥ इति प्रथम प्रामृतम् ।। | २८ सूर्याबारकः। ।। ६४ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम X3S सुत्ताणि ~266~ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूर्य सूत्रांक यहां देखीए विषयसूचिः RSEENERTAL दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपां. ॥ इति सप्तमं प्राभृतम् ॥ ४० सन्निपातो द्वयोश्चन्द्रं प्रति। १२८५४ संवत्सराः । १५३| विषयानुक्रमे २९ उदयसंस्थितिः। ८४ ४१ नक्षत्राणामाकाराः। १२९/ ५५ नक्षत्रसंवत्सराः। ॥६५॥ ॥श्यष्टमं प्राभृतम् ॥ ४२ नक्षत्रेषु तारामानम् । ५६ युगसंवत्सराः। S३० पौरुषीच्छायाप्रमाणम् । ९२ ४३ नेतृणि नक्षत्राणि। १३२ ५७ प्रमाणसंवत्सराः। ३१ पौ० निर्वर्तनम् । ९३ ४४ चन्द्रमार्गाः। १३७ ५८, २५.२९ लक्षणसंवत्सराः। ॥ इति नवमं प्राभतम् ॥ ४५ चन्द्रमण्डलमार्गः। १३० ५९ नक्षत्रद्वाराणि। ३२ योगस्वरूपे नक्षत्राणां विचारः। ९२ ४६ नक्षत्रदेवाः । १४६/६० नक्षत्रयोगादि। S३३ नक्षत्रे मुहूर्तमानं चन्द्रम्य । १०० ४७,१६-१८* मुहूर्त्तनामानि । ६१.६२ नक्षत्रसीमाविष्कम्भादि। १७७ || ३४ नक्षत्राणां सूर्यण योगः। १.१ १८,१२.२२॥* दिनरात्रिनामानि । १४७/६३ पूर्णिमामावास्याः। ३५ पूर्वादिभागाः। १०४ ४१ तिथिभेदाः। १४८ ६४ सूर्यस्य पौर्णमासीदेशस्थितिः। १८१ ३६ योगस्यादिः । १.३ ५. नक्षत्रगोत्राणि। १५० ६५ चन्द्रम्य पौर्णमासीदेशस्थितिः । १८२ D३७ कुलोपकुलानि। ११. ५१ नक्षत्रभोजनानि । १५१ ६६ सूर्यचन्दयोयुक्ति। ३८ पौर्णिमादिनक्षत्रम् । ५२ युगे सूर्यचन्द्रचाराः। १५२/ ६७ नक्षत्रेण सूर्यचन्द्रयोयुनक्ति। ३९ कुलोपकुलाधिकारः। १२०/५३, २३-२४* मासनामानि । १५३ | ६८ अमावास्यानक्षत्राणि । १९. 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि Au६५॥ ~267~ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ "सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक मा सूर्य श्रीउपा० विषयानुक्रमे यहां ISS विषयसूचिः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ६९ ताहगन्यनक्षत्रयोगः। १९४ ॥ इति द्वादशमं प्राभूतम् ॥ इति पोडशम प्राभूतम् ॥ ७० चन्द्रादेः सर्वत्र समयोगिता। १९७/ ७९ चन्द्रमसो वृद्धयपवृद्धी। २३४ ८८ च्यवनोपपाती। ॥इति दशमं प्राभूतम् ॥ | ८० पूर्णिमामावास्यान्तरं । ८. पूर्णिमामावास्यान्तरं । २३६ ॥ इति सप्तदशमं प्रामृतम् ।। ७१ संवत्सराणामाद्यतौ। १९८ ८१ चन्द्रायनमण्डलचारः। २३८ ८९ चन्द्रसूर्याधुच्चत्वम् । ॥ इति एकादशमं प्राभूतम् ॥ ॥ इति त्रयोदशमं प्राभूतम् ॥ ९० तारकस्याणुतादि। ७२ नक्षत्रादिवर्षानिन्दियमुहर्तमानम्। ८२ ज्योत्स्नाप्रमाणम् । २४४ / ९१ चन्द्रस्य ग्रहपरिवारः । २०१ ॥ इति चतुर्दशमं प्राभृतम् ॥ ९२ अबाधाचाराः । ७३ नोयुगयुगराबिन्दियमुहर्तमानम् । २०६८३-८४ चन्द्रादीनां गतितारतम्यम्। | ९३ अभ्यन्तरचाराः । ७४ स्यादीनामाद्यन्तसाम्यम् । २०७ २४५ ९४ चन्द्रादेः संस्थानमायामादिवाहिनश्च । ७५,३०° ऋतुन्यूनाधिकरात्यधिकारः। ८५ नक्षत्रादिमासैश्चन्द्र दीनां चारः। २५० २०९/८६ चन्द्रादीनामहोरात्रमण्डलयुगगत्तयः। ९५ अल्पेतरगतिऋद्धी । ७६ आवृत्तयः। २५३] ९. तारान्तरम् । ७७ हेमन्त्य आवृत्तयः। २२८ ॥ इति पञ्चदशमं प्रामृतम् ॥ ९७ चन्द्रादिदेवी। ७८ वृषभानुजात द्या योगाः।। २३३/ ८७ ज्योत्स्नालक्षणम् । २५५/ १८ ज्योतिष्कस्थितिः। २५२ 'सवृत्तिक आगम 10 : सुत्ताणि m ~268~ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति + चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) यतः मान दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक श्रीउपां० विषयानुक्रमे ॥ ६७ ॥ २९ चन्द्रसूर्ययोरबहुत्वम् । || इत्यष्टादशं प्राभृतम् ॥ २६६] १००, ३१-८७* चन्द्रसूर्य। दिपरिमाणम् । २६८ २८२ १०१ पुष्करोदादयः । ॥ इत्येकोनविंशतितमं प्राभृतम् ॥ १०२ चन्द्रादीनामनुभावः । १०३ राहुक्रिया | १०४ चन्द्रादित्यान्यर्थः । १०५ कामभोगाः । " १०६, ८८ ९६ अष्टाशीतिर्ब्रहाः । २२४ १०७, ९७ १०२* शास्त्रोपसंहारः । २९५ ॥ इति विंशतितमं प्राभूतम् ॥ ॥ इति श्री सूर्य प्रज्ञप्तेर्विषयसूचिः ॥ २८५ २८७ २९१ ~ 269~ सूर्य विषयसूचिबृहद्विषया नुक्रमश्च ।। ६७ ।। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे सूर्य | विषयसूचि विषयाনম্ব देखीए ११ दीप क्रमांक के लिए देखीए १६ अथ श्रीसूर्यप्रज्ञप्तेर्तृहविषयानुकमः मुहूर्तायादीनि(२२)दशमे प्राभूतश्रीवीरश्रुतकेवलि जिनवचनानां नम- | प्राभृतानि । ९ ! स्कारादि, नियुक्तर्युच्छेदारसूत्रवृत्ति- ८ मुहूर्त्तवृद्धयपवृद्धी। प्रतिज्ञा। १० सर्वमण्डलचाराहोरात्रमानं९,सकृद्१ मिथिलामाणिभद्रचैत्यजितशत्रुधारिणी- | द्विर्वा मण्डलचारः १०॥ ११॥ समवसरणपर्षनिर्गमधर्मकथाद्यति- ११ अष्टादशादिमुहूर्ता, रात्रिदिनमानम् । देशः। २ इन्द्रभूतिवर्णनातिदेशः। ६ ॥ इति प्रथमे प्रथम प्राभताभृतम् ॥ ३, १-५° मण्डलादि(२०)माभृतार्थाधि- १३ दक्षिणार्द्धमण्डलचारे दिनरात्रिमानं कारः। ७ १२,उत्तरार्द्धमण्डलचारेऽपि १३॥ २१ ७, ६-५५* मुहूर्त्तवृद्ध्यपवृद्धयादि(८)- ॥ इति प्रथमे द्वितीयं प्रा०प्राभूतम् ॥ प्राभृतमाभूताधिकाराः ४, पडाद्याः १४ अद्धसंपूर्णमण्डलचीर्णचरणम् । २४ प्रथमप्राभृतप्रतिपत्तयः५, उदयास्त- ॥ इति प्रथमे तृतीयं प्रा०प्राभृतम् ।। मनाद्या द्वितीये प्रतिपत्तयः६, आवलिका- | १५ सूर्ययोरन्तरे प्रतिपत्तिष स्थितपक्ष 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~270 Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे सूर्यपज्ञप्ते e p विषयानुक्रमः देखीए ६८॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए SEEIREJARINJALI XSRXXENT श्व, प्रवेशनिर्गमयोदिनरात्रिमानम् । २८ २१ सूर्यस्य तिर्यम्गतौ प्रतिपत्त्यष्टकं, २५ चन्द्रसूर्यतत्तापक्षेत्रसंस्थित्योः प्रति- । ॥ इति प्रथमे चतर्थ प्रा०प्रामतम् ॥ | स्थितपक्षश्च । १८| पत्तिषोडशकं स्थितपक्षध । ६७ १६ द्वीपसमुभवगाहे पतिपत्तिपक्षकम् । ३१ ॥ इति द्वितीये प्रथम प्रा०प्राभूतम् ।। | ।। इति चतुर्थ प्राभृतम् ।। १७ स्थितपक्षः। ३१/ २२ मण्डलान्तरसङ्क्रमे प्रतिप्रत्तिद्वयं, २६ सूर्यलेश्याप्रतिघाते विंशतिः प्रतिपत्तयः ॥ इति प्रथमे पश्चगं प्रा०प्राभूतम् ।। । मेदघातकरणकलाभ्याम्। ५० स्थितपक्षश्च । हा १८ दिनराज्योर्विकम्पने प्रतिपत्तिसप्तकं ॥ इति द्वितीये द्वितीय प्रा०प्राभृतम् ।। ॥ इति पञ्चमं प्राभृतम् ॥ स्थितपक्षश्च। ३५/२३ प्रतिमुहूर्त सूर्यगतौ प्रतिपत्तिचतुष्कं | २७ ओजःसंस्थितौ पञ्चविंशतिः प्रति॥ इति प्रथमे षष्ठं प्रा०प्राभृतम् ॥ | स्थितपक्षश्च (मुहूर्तगतिदृष्टिपथप्राप्ति- पत्तयः, स्थितपक्षश्च, त्रिंशत १९ मण्डलसंस्थितौ प्रतिपत्त्यष्टकम् । ३७ विचारः)। मुहूर्तानवस्थिता, षण्मासीभ्यां ॥ इति प्रथमे सप्तमं प्रा०प्राभृतम् ॥ । ॥ इति द्वितीये तृतीयं प्रा०प्रामृतम् ।। । वृद्धिहानी। २० मण्डलपदायामादौ प्रतिपत्तित्रयं, ॥ इति द्वितीय प्राभृतम् ॥ ।। इति षष्ठं पामृतम् ॥ स्थितपक्षः, तत्कारणं च। ४४/२४ चन्द्रसूर्यप्रकाश्य क्षेत्रे प्रतिपत्तिद्वा- २८ सूर्यप्रकाश्ये विंशतिः प्रतिपत्तयः ॥ इति प्रथमे अष्टमं प्राभृतप्राभृतम्॥ दशकं स्थितपक्षश्च। स्थितपक्षश्च । ८४ इति प्रथम प्राभूतम् ।। ॥ इति तृतीयं पामृतम् ॥ ॥ इति सप्तमं प्राभतम् ।। EARNERNAYA 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥६८॥ ~271 Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ "सूर्यप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांगादि २९ उदयसंस्थितौ प्रतिपत्तित्रय, स्थित- ३३ नक्षत्राणां चन्द्रेण योगकालः। १०२/ दीनि । सूर्यपज्ञप्तेविषयानुक्रमे पक्षश्च, मन्दरपूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणासु ३४ नक्षत्राणां सूर्येण योगकालः। १.४ ॥इति दशमे पष्ठं प्रा०प्राभूतम् ॥ विषयानुक्रमः ॥ ६९॥ दिनरात्रिमानादिप्रथमसमयादि. |॥ इति दशमे द्वितीयं प्रा०प्राभूतम् ॥ | ४० पूर्णिमाऽमावास्यानक्षत्रैक्यविचारः। II विचारः। ९२/ ३५ नक्षत्राणां पूर्वपश्चान्नक्तोभयभागाः। ॥ इत्यष्टम प्रामृतम् ।। १०५ ॥ इति दशमे सप्तम प्रा०प्राभृतम् ।। ३. पौरुषीच्छाये प्रतिपत्तित्रय, छिन्न- । ॥ इति दशमे तृतीयं प्रा०प्राभुतम् ॥ | ४१ अभिजिदादीनां संस्थानानि । १३० लेश्यासंमूर्च्छनादीनां स्थितपक्षः। ९५ ३६ श्रावणाद्यभिजिदादिदिनमानम्। ॥ इति दशमे अष्टमं पाभृतप्रभृतम् ॥ ३१ पौरुषीपादे प्रतिपत्तयः पञ्चविंशतिः, ११० ४२ अभिजिदादीनां तारकसंख्या । १३१ सातिरेकैकोनषष्टी खितपक्षः, ॥ इति दशमे चतुर्थ पा०प्रामृतम् ॥ | ॥ इति दशमे नवमं प्रा०प्राभतम् ॥ स्तम्भादि(२५,छायाभेदाः। ९९/३७ नक्षत्रेषु कुलोपकुलोभयानि। १११ ४३ श्रावणादिमासेषु नक्षत्रदिनपौरुषी ॥ इति नवमं प्राभूतम् ॥ ॥ इति दशमे पञ्चमं प्रायाभूतम् ।। | S३२ नक्षत्रावलिकायोगे प्रतिपत्तिपञ्चकं, ३८ श्रावणादिपौर्णमासीनक्षत्राणि । १२० ॥ इति दशमे दशमं प्रामाभूतम् ।। अभिजिदादियोगे स्थितपक्षः। १००/ ३९ श्रावणादिपौर्णमासीकुलोपकुलो- ४४ नक्षत्राणां चन्द्रेण दक्षिणोत्तरप्रमई॥ इति दशमे प्रथम प्रा प्राभूतम् ।। भयानि, अमावास्यानक्षत्रकुला १३८ ॥६९॥ मानं । 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि योगाः। ~272 Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ "सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपांगादि यहां विषयानुक्रमे द्विषया देखीए नक्रमः १७९ दीप क्रमांक के लिए देखीए | १५ चन्द्रमण्डलानि नक्षेत्रर्युक्तान्ययुक्तानि | ॥ इति दशमे सप्तदश प्रा०प्राभृतम् ॥ ॥ इति दशमे विंशतितमं प्रा० प्राभृतम् ॥S सूर्यपज्ञप्ते १४५/ ५२ युगे नक्षत्रमासादिसंख्या। १५३ ५९ नक्षत्राणां द्वारेषु प्रतिपत्तिपञ्चक, ॥ इति दशमे एकादशं प्रा०प्राभृतम् ॥ ॥ इति दशमे अष्टादश प्रामाभूतम् ॥ अभिजिदादीनां पूर्वादिद्वारेण स्थितHI४६ नक्षत्राणां देवताः । १९६५३, २४* अभिनन्दादिमासनामानि । १५३/ पक्षः। ॥ इति दशमे द्वादश प्रा प्राभूतम् ॥ ॥ इति दशमे एकोनविंशतितमं ॥ इति दशमे एकविंशतितम प्रा०प्राभृतम् ।। | ४७,१८* रौद्रादिमुहूर्तनामानि। १४७... प्रामाभृतम् ॥ ६० जम्बूद्वीपे सूर्यचन्दनक्षत्राणां मानं | ॥ इति दशमे त्रयोदशं पायाभूतम् ॥ | ५५ नक्षत्रादयः संवत्सराः५४, नक्षत्रादि- नक्षत्राणां योगमानं च। १७६/R | ४८, २२॥ दिवसरात्रिनामानि। १४८/ संवत्सरमासाः५६। १५४| ६२ नक्षत्राणां सीमविष्कम्भः६१, प्रातः- 10 ॥ इति दशमे चतुर्दशं पायाभूतम् ।। | ५६ चन्द्रादिसंवत्सरास्तत्पर्वाणि च । १६८ सन्ध्यादियोगश्च ६२। १८० ४९ दिवसरात्रितिथिनामानि । १५० ५७ प्रमाणसंवत्सरे नक्षत्रचन्द्रादि- ६३ द्वाषष्टिपूर्णिमाचन्द्रयोगाः। १८५ | ।। इति दशमे पञ्चदशं प्रा०प्राभृतम् । वर्षभेदाः । १७१ ६६ द्वाषष्टिपूर्णिमासूययोगा:६४,द्वाषष्ट्य५० अभिजिदादीनां गोत्राणि। १५१५८,२५ लक्षणसंवत्सरभेदाः, नक्षत्र- मावास्याचन्द्रयोगा:६५,द्वाषष्ट्य इति दशमे पोडशं प्रा०प्राभूतम् ॥ संवत्सरादीनां लक्षणानि, शनैश्चर | मावास्यासूर्ययोगाः ६६। १८५ ५१ नक्षत्रभोजनानि । १५२| संवत्सरभेदाः। १७३/ ६७ द्वापष्टिपूर्णिमानक्षत्राणि । १९० ORREETIRSANSACTERNAL 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~273 Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री उपांगादि विषयानुक्रमे ।। ७१ ।। २२८ ६८ द्वाषष्ट्यमावास्यानक्षत्राणि । १९४७६ प्रावृडाद्यावृतिषु चन्द्रसूर्यनक्षत्रयोगाः । ६९ नक्षत्रचन्द्रसूर्ययोगान्तरम् । १९६ ७० परस्परचन्द्रगति योगादिसाम्यम् । १९७७७ ।। इति दशमे द्वाविंशतितमं प्रा० प्राभृतम् ।। ॥ इति दशमं प्राभृतम् ॥ ७१ युगसंवत्सरादिनक्षत्रयोगाः । २०२ ॥ इत्येकादशं प्राभृतम् ॥ ७२ नक्षत्रसवत्सरादिदिनरात्रिमुहूर्तमानम् । २०६ २०७ ७३ नोयुगदिनरात्रिमुहूर्तमानम् । ७४ आदित्य संवत्सरादीनां समादिपर्यवसाने । ७५, ३०* प्रावृडादिऋदिनरात्रिमानमवमातिरात्राश्च हैमन्तिक्यः वृत्तिषु चन्द्रसूर्यनक्षत्रयोगाः । २३६ २३३ ७: वृषभवेणुकमादि (१०) योगाः । २३४ ॥ इति द्वादशे प्राभृतम् ॥ ७९ चन्द्रवृद्ध्यपवृद्धिमुहूर्त्तसंख्या । ८० पूर्णमास्यमावास्या मुहूर्त्तानि । ८१ चन्द्रार्द्धमासमण्डलानि । ॥ इति त्रयोदशं प्राभृतम् ॥ ८२ ज्योत्स्नान्धकारयोरल्पबहुत्वम्। २४५ ॥ इति चतुर्दशं प्राभृतम् ॥ ८३ चन्द्रादीनां शीघ्रमन्दगतित्वम्। २४७ २१९८४ चन्द्रसूर्यादीनां गतिषु विशेषः । २४९ २०९ ~274~ "7 २४३ २५६ ८५ नक्षत्रादिमासेषु चन्द्रादीनां मण्डलचारसंख्या । २५३ ८६ दिनेन चन्द्रमण्डलादिसंख्या, मण्डलेनाहोरात्रसंख्या च ॥ इति पञ्चदशं प्रामुनम् ।। ८७ ज्योत्स्नासूर्यलेश्यादेर्लक्षणानि । " ॥ इति षोडशं प्राभृतम् ॥ ८८ चन्द्रादीनां च्यवनोत्पातयोः प्रतिपत्तयः पञ्चविंशतिः स्थितपक्षे चन्द्रादिस्वरूपम् । ॥ इति सप्तदशं प्राभृतम् ॥ ९३ सूर्यस्योचत्वे प्रतिपत्तयः पञ्च विंशतिः स्थितपक्षे सूर्याच्चत्वं ८९, चन्द्रादेरधस्तनादिषु तारकाः २५८ सूर्यपज्ञते बृहद्विषया नुक्रमः ॥ ७१ ॥ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे देखीए सूर्यप्रज्ञप्त| बृहद्विषया नुक्रमः जम्बूद्वीप० विषयसूचिश्व ॥ ७२॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ९०, चन्द्रादेहादिपरिवारमानं द्वादश प्रतिपत्तयः, स्वमते द्वधादि- १०७, ८८-१०२* अष्टाशीतिम्रहनामानि। ९१, मेरुपर्वतज्योतिश्चक्राबाधा चन्द्रसूर्यसङ्ख्या । २८२ १०६, ९६* उपसंहारः १८७, ९२, सर्वाभ्यन्तरबाडादिनक्षत्राणि | १०१ पुष्करवरद्वीपादयस्तचन्द्रसूर्यादि- १०२। २९७ ९३। सङ्ख्या च । २८५ ॥ इति विंशतितमं प्राभृतम् ॥ ९५ चन्द्रादिविमानसंस्थानायामबाहक- ॥ इत्येकोनविंशतितमं प्राभृतम् ॥ । प्रशस्तिः। देवस्वरूपनिरूपण९४, चन्द्रादीनां | १०२ चन्द्रायनुभावे प्रतिपत्तिद्वयं ॥ इति श्रीसूर्यप्रज्ञप्तविषयानुक्रमः॥ शीघ्रमन्दगतित्वं ९५। २६५ स्थितपक्षे तद्देवस्वरूपम्। २८६ ९९ तारकयोरन्तर९६, चन्द्रादेरग्रम १०३ राहुप्रतिपत्तिद्वयं, स्थितपक्षे तद्देवहिषी, जिनसक्थ्याशातनाभया स्वरूपनाम(१२)विमान(५)दन्यत्र भोगः ९७, चन्द्रादेः गमनागमनविकुर्वणादि, ध्रुवपरापरे स्थिती९८, चन्द्रायल्प पर्वराहुचन्द्रलेश्यावर्णादि। २९१ बहुत्वम् ९९। २६८ १०. चन्द्रसूर्ययोः राश्यादित्यत्वे ।। इत्यष्टादश प्राभृतम् ।। हेतुः १०४, चन्द्रसूर्यकाम१००, ३१-८७* चन्द्रसूर्यसङ्ख्यायां भोगस्वरूपम् १०५। २९४ | 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥७२॥ ~275 Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए سعر سعر दीप [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"1 पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) अथ श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेविषयसूचिः सूरिस्तुतिः २ । हीरविजयगुरुस्तुतिः ४-५। " वीरस्तुतिः। १ मलयगिरिस्तुतिः। वाचकानाशीर्वादः । अन्धनाम ७। श्री उपांगादि- १नमस्कारनिक्षेपाः। ९ | १५ वैतादयवर्णनम् । ८४) २७ द्वितीयारकस्वरूपम् । १२८धा जम्बूद्वाप० विषयानुक्रमे विषयसूचिः २ गौतमवर्णनम्। २८ तृतीयारकस्वरूपम् । १४/१६ उत्तरभरतवर्णनम् । ॥ ७३ ॥ ३ जम्बूद्वीपस्थानादिः। १८१७ ऋषभकूटाधिकारः। ८६/२९ कुलकराः। ४ वेदिकावर्णनम् । २०॥ इति भरतक्षेत्रनिरूपणो नाम प्रथमो | ३. कुलकरनीतिः । ५ बनषण्डाधिकारः। २७ वक्षस्कारः ।। | ३१ कलादि ऋषभदीक्षा च । १३५ ६ पद्मवरवेदिकावनषण्डवर्णनम् । ३१ १८, ४-६* समयादिशीर्षप्रहेलिकान्तः | ३२ श्रीऋषभप्रभोः श्रामण्यादि। १४६] ७ जम्बूद्वीप(४)द्वाराधिकारः। ४७ कालवर्णनम् । ८९ ३३ श्रीऋषभप्रभोः जन्मकल्याणकादि८ विजयद्वारवर्णनम् । , १९, ७-८* पल्योपमप्ररूपणा। ९२ नक्षत्राणि। ९,१* विजयादिद्वारान्तराणि। २० सुषमसुषमाधिकारः ९७/३४ प्रभोः संहननादि निर्वाणगमनं च।१५६ १. भरतक्षेत्रवर्णनम् । ६६ २१ कल्पद्रुमाधिकारः। ९९ ३५ चतुर्थास्कस्वरूपम् । ११ दक्षिणभरताद्ध वर्णनम् ।। ६८ २२ युग्मिस्वरूपम् । १०८३६ पञ्चमारकस्वरूपम् । १२ वैतादयस्वरूपम् । ७१ २३ प्रथमारकनराहारवर्णनम् । ११८ ३७ षष्ठारकस्वरूपम् । १६४ १३ तत्सिद्धायतनवर्णनम् । ७७ २४-२५ प्रथमारकनरवासादिवर्णनम् ।११९/ ३८ उत्सर्पिण्यां प्रथमद्वितीयारकस्व. १४,२-३° दक्षिणाद्धकटादिवर्णनम् ८२/२६ प्रथमारकनराणां स्थित्यादि । १२६/ रूपम् । १७१का ॥ ७३ ।। سه क्रमांक XIXNXXREELER के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम PER सुत्ताणि [आगम-१८] उपांग-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति" ~276~ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"1 पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे देखीए ॥ ७४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए | ३९ पुष्कलसंवत्तक्षीरवृत्तामृतरसमेघाः। ४९ चतुर्घण्टाश्वरथवर्णनम्। २१० ५९, १९* छत्ररत्नवर्णनम् । २४१ जम्बूद्वीप | विषयसूचिः १७३ ५. सिन्धुदेवीसाधनम्। २१४ ६०, २०* चर्मरत्ने धान्याद्युत्पादनम् । १० मांसवर्जनव्यवस्था। १७५/ ५१ वैतादथकुमारकृतमालसुरसाधनम्। ४१ शेषोत्सर्पिणीवर्णनम् । २१६६१, २१-२४* आपातकिरातसाधनम् । ॥ इति द्वितीयो वक्षस्कारः॥ ५२ सुषेणेन सिन्धुपश्चिमनिष्कूटसाधनम् । ४२ विनीतावर्णनम् । २१७/ ६२ क्षुल्लकहिमवगिरिदेवसाधनम् । २४८ ४३ भरतराजवर्णनम् । १८१ ५३ सुषेणेन तिमिश्रगुहादक्षिणकपाटो- ६३, २५-२६ ऋषभकूटे नामलिख- | | ४४, ९-११ चक्रोत्पत्तितत्पूजोत्सवाः। द्घाटनम् । २२२ नम्। १८४/५४ मणिरत्नं, काकिणीरत्नेन मण्डला- ६४, २७* नमिविनमिसाधनं श्रीरना. IN ४५ सचक्रस्य मागधतीर्थगमनम्। १९४ लेखनं च । २२४] तिब्ध। ४६, १२-१५* मागधतीर्थकुमार- ५५ उन्मन्नानिमम्नास्वरूपम्। २२९/ ६५ खण्डमपाताधिपनृत्तमालसाधनं साधनम् । १९८ ५६ आपातचिलातयुद्धम् । २३. निर्गमश्च गुहायाः। ४७ वरदामतीर्थसाधनम् । २०५५७, १८* अश्वरत्नखारत्ने। २३३ ६६, २८-४१* गमाकुले निधिप्राप्तिः ४८, १६-१७ वास्तुनिवेशविधिः । २०७/५८ मेघमुखदेवाराधना वृष्टिश्च । २३८ पश्चिमदिक्साधनं विनीतागमश्च ।२५७/ ७४ ।। ANDRRIALREALANARANE २५० 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~2770 Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादिः विषयानुक्रम देखीए ॥ ७५॥ S दीप क्रमांक के लिए ६७ भरतस्य विनीतायां प्रवेशः। २६०/ ७९ हैमवतान्यर्थः । ३००/ ९२, ५४* उत्तरकुरुमाल्यवदादि | जम्बूद्वीप ६८ भरतस्य चक्रवर्तित्वाभिषेकः। २६८/८० महाहिमवान् पर्वतः। ३०१|| बक्षस्काराः। विषयसूचिः ६९ रत्नानि। २७७८१ महाहिमवति महापद्मादि। ३०२ ९३ सहसाबकूटं माल्यवदर्थश्च । ३३८18 ७० चक्रिणः समृद्धिः। . २७७/८२ महाहिमवति कूटानि। ३०३ | ९४, ५५* कच्छविजयः । । ७१ भरतस्य केवलं श्रामण्यं मोक्षश्च।२७८ ८३ हरिवर्षम् । ३०४ ९५ चित्रकूटवक्षस्कारः। ७२ भरतनामान्वर्थम् । २८० ८४ निषधः । | ९६, ५६* शेषविजयादि। इति भरतचकिचरितवर्णनो नाम | ८५ सनदीकति गिछिद्रवर्णनम् । ३०७/ ९७, ५७.५८ विदेह द्वितीयविभागः। तृतीयो वक्षस्कारः॥ ८६ महाविदेहाः । ३१० ३५२ ७३ क्षुल्लकहिमवत्स्वरूपम्। ८७ गन्धमादनः। ३१३ | १८,५९* सौमनसदेवकुरवः। ७४ पद्मादस्वरूपम्। २८२ ८८ उत्तरकुरवः। ९९ चित्रविचित्रकूटौ। ७५ गङ्गासिन्धुरोहितांशा नद्यः। ८९, ४२-४३* यमकः । ३१६/ १०० निषधादिद्रहाः। ७६ हिमबति कुटानि। २९६/ ९०,४४-४६* नीलबदादिद्रहकाञ्चन- | १०१ कूटशाल्मली। | ७७ हैमवतं वर्षम् । २९८ पर्वताः। ३२९१०२, ६०* विद्युत्मभः । | ७८ शब्दापातिवैताढ्यः । २९९/ ९१, ४७-५३ जम्बूवृक्षः। ३३०/ १०३, ६१-६४ विजयाः । ॥ ७५॥ देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~278 Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"1 पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां मरूपवतः। जम्बूद्वीप० विषयसूचिः देखीए ३७३ दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांगादि २०४, ६५* मेरुपर्वतः । ३६० त्सवः । ३९१ ॥ इति पश्चमो जिनजन्माभिषेकाख्यो विषयानुक्रमे १०५ नन्दनवनम् । ३६६/ ११६ पालकविमानम् । ३९५ ववस्कारः॥ ॥ ७६॥ है १०६ सौमनसवनम् । ३६९ ११७ जन्ममहोत्सवाय यानविमानम्। । १२५, परस्परस्पर्शजीवोत्पादौ। १२५ १०७ पण्डकवनम् । ३९९| १२६, ८१-८२ खण्डयोजनादिपिण्डः। । १०८ अभिषेकशिला। ३७२ ११८ जन्ममहे शकेन्द्रागमः। ४०१ ४२६ १०९ मेरुकाण्डानि। | ११९,७६-७८* जन्ममहे ईशानेन्द्रा- | ॥इति षष्ठो वक्षस्कारः ।। १०, ६६-६७* मेरुनामानि। ३७ द्यागमः । ४०५/ १२७, ८३* चन्दौ। D१११, ६८ नीलबगिरिवर्णनम् । ३७६ १२०, ७९* जन्ममहे चमराद्यागमः। १२८ सूर्यमण्डलानि । | ११२, ६१* रम्यकादीनि। ३७८ १०७/१२९ अबाधाः। ॥इति चतुर्थो वक्षस्कारः ॥ १२१-१२२ जन्ममहे अच्युताभियोगः। | १३० सूर्यस्यान्तराबाधाः । ११३, ७० दिक्कुमार्युत्सवः। ३८३ / ४१२१३सूर्यपरिमाणम् । ११४, ७१* ऊर्श्वलोकदिकुमार्युत्सवः। | १२३, ८०% अच्युताशीर्वादः शेषे | १३२ मेरुमण्डलाबाधा । ३८८ न्द्राभिषेकश्च । ११९ १३३ मण्डलायामादि । ११५, ७२-७५ रुचकवासिकुमायु- १२४ कृताभिषेकजिनानयम् । ४२२| १३४ मुहूर्तगतिः। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥७६ ॥ ~279 Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"1 पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए ५००विषयसूचिः दीप क्रमांक के लिए देखीए श्री उपांगादि१३५ दिनरात्रिमानम् ४४९/१४८ चंन्द्रमण्डलायामादि। ४६८ १६०, १०४-११०* नक्षत्रगोत्रसंस्थाने । जम्बूद्वीप विषयानुक्रमे १३६, ८४* तापक्षेत्रमानम् । ४५३:१४९ चन्द्रमुहूर्तगतिः। ४७० ॥ ७७॥ १३७ दूरादिदर्शनम् । ४५८ १५० नक्षत्रमण्डलादि। ४७४ १६१, १११-११८ नक्षत्रचन्द्रसूर्य१३८क्षेत्रगमादिः। १५. सूर्यादेरीशान्यादावुद्गमादिः । ४७१ योगकालः । १३९ क्रियाः। १५२, ८५-९० संवत्सरभेदाः। ४८५ १६२, ११९ कुलादिपूर्णिमामावास्याः। १४. उर्धादितापः। २ १५३, ९१-९९* संवत्सरेषु पंचसु मास ५०४ | १४१ ऊर्बोत्पन्नत्वादि। पक्षादिनामानि । ४९० १६३, १२० माससमापकनक्षत्रवृन्दम् । S१४२ असूर्य स्थितिः विरहादि च। | १५४ करणाधिकारः । ४६३ १५५ संवत्सरायधिकारः। ४९४ १६४, १२१-१२२७ अणुत्वादि । ५२१ १४३ चन्द्रस्य मण्डलम् । ४६४ १५३, १००* नक्षत्राधिकारः। ४९५/ १६५ परिवारः । १४४, क्षेत्रम् । १५७, १०१. दक्षिणादियोगाधिकारः।।१६६ अवाधाः। १४५ चंन्द्रयोरवाधाः। ४९६ १६७, १२३-१२५* अभ्यन्तरसंस्थान१४६ चंद्रस्यायामः। , १५८ नक्षत्रदेवाः। ४९८ विस्तारादि। ५२४ १४७ चन्द्रमण्डलाबाधा। ४६६ १५९, १०२-१०३ ताराणां संख्या।,, | १६८, १२६-१२७* चन्द्रादिविमान IS.७७11 BAAREERXXXRAKAR ना . 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~280 ~ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपांगादि| यहां विषयानुक्रमे 9 जम्बूद्वीप विषयसूचि |बृहद्विषया नुक्रमश्च देखीए ।। ७८ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए बाहकाः। ५२६ १८० द्वीपनामहेतुः। १६९ ज्योतिष्कगतिः। ५३१ १८१ उपसंहारः। १७. ज्योतिष्काणामृद्धिः । ॥ इति सप्तमो वक्षस्कारः।। १७१ तारकान्तराणि। ॥ इति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तर्विषयसूचिः ॥ १७२, १२८-१२९ अग्रमहिन्यो ग्रहाश्च । ५३२ १७३ स्थितिः। १७४, १३०-१३१ नक्षत्राधिष्ठातारः। 'सवृत्तिक आगम १७५ चन्द्राद्यल्पबहुत्वम् । १७६ द्वीपेजघन्योत्कृष्टजिनादिसंख्या , १७७ द्वीपस्योद्वेधाः । १७८ शाश्वतत्वादि। १७९ परिणामाः। ५३८ सुत्ताणि | ।। ७८ ॥ ~281 Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादि| विषयानुक्रमे देखीए ।। ७८ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ALTERNEAREKAREERY ॥ अथ श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्वृहद् विषयानुक्रमः॥ श्रीवीरगन्धहस्तिमलयगिरिहीरविजयसकल चन्द्राणां स्तुतिनमस्कारादि, शेषाङ्गोपाझविवरणात्परिशेषताऽस्य, मलयगिरिकृतवृत्तिपुच्छेदः, गणितानुयोगोऽत्र, फलयोगमङ्गलादिविचारः, दशवर्षानन्तरमस्य दान, उपकमादिद्वारावतारः जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तीना निक्षेपाः । ९ | जम्बूद्वीप १ मिथिलामाणिभद्रजितशत्रुधारिणी विषयसूचि वर्णनातिदेशः, स्वाम्यागमनादि (नम हद्विषया नुक्रमश्च स्कागर्हतोनिक्षेपाः, नामस्थापनाद्रव्यभावनयमतानि, स्थापनानमस्कार्यता)। १४ ३ श्रीगौतमवर्णनाद्यतिदेशः२, जम्बू द्वीपस्य महत्त्वस्थानाकारादिप्रश्नो तराणि (परिध्यानयनम् ) ३। २० ४ जगतीपद्मवस्वेदिकावर्णनम् । २७ ५ बनखण्डवर्णनातिदेशः।। ६ वनखण्डभूमिभागवर्णनातिदेशः। ४७ ८ विजयादिद्वारराजधान्यतिदेशः . ७, विजयादिद्वारतत्स्थानोच्चत्वादि PRA|| ७८ ॥ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~282 Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे १०८ देखीए ।। ७९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए वर्णनातिदेशः ८॥ ६५१६ वैतादयस्यान्वर्थतद्देवनामशाश्वत- २१ मत्ताङ्गदादिकल्पवृक्षवर्णनातिदेशः। जम्बूद्वीप० ९,१. परस्परं द्वाराणामबाधा। त्वानि१५, उत्तरभरताद्धस्थानाकार बृद्विषया१० भरतक्षेत्रस्थानस्वरूपाकारविभागाः । भागायामाकारमनुष्याकाराः१६, २२ भरते सुषमसुषमारकनरवर्णनम् । ११८ ६७ (जीवानयनयनरीति वा च)। ८६२३ तन्मनुजानामाहारास्वादौ। ११९ ११ दक्षिणा भरतविभागायामादि भूमि |७ ऋषभकूटवर्णनम् । ८८२५ तदसति:२४.गृहप्रामासिहिरण्यभागतन्मनुजवर्णनं च। ७० ॥ इति प्रथमो वक्षस्कारः।। राजदासाम्रात्ररिमित्राबाधेन्द्रमहनट१२ वैतादयस्य स्थानायामादिवनखण्ड प्रेक्षाशकटगवाश्वसिंहशार्दुलाहिगुहाविद्याधरश्रेणिनगरतन्मनु जाभि१८, ४-६* सुषमसुषमाद्याः काल स्थाणुदेशमशकडिम्बदुर्भूतादिभावाला योग्यश्रेणिदेवशिखरतलकूटसङ्ख्याः । | भेदाः, शीर्षप्रहेलिकान्तानां कालानां भावविचार: १२५ वर्णनं च। २ ताग्मिनामायुस्चत्वसंहननसंस्थानहा सिद्धायतनकूटदेवच्छन्दकजिन |१९,७८-* निश्चयव्यवहारपरमाणोरारभ्य गतियुगलप्रसवाः पद्मगन्धादि(६)प्रतिमावर्णनादि । योजनान्तानां पल्योपमसागरोपमा- भेदाश्च । १२८ ४२३ दक्षिणाईभरतकटादितहासि- | दीनां च निरूपणम् । ९३२७ द्वितीयारकतदयुम्युञ्चत्वादि. एका देवराजधान्यादिवर्णनादि। ८४/२० भरतसुषमसुषमारकस्य वर्णनम् । ५९ दि(४)भेदाश्च । १३१ ॥ ७९ ॥ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~283 Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए जम्बूद्वीप बृहद्विषया नुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांगादि २८ सुषमदुष्पमाभागत्रयादि। .१३२| ३४ अष्टापदे निर्वाणं, देवेन्द्र द्यागमन, । ॥ इति द्वितीयो वक्षस्कारः।। विषयानुक्रमे २९ सुमत्यायाः(१५)कुलकराः। १३३/ जिनादिशरीरस्नानादि चितिका ४२ विनीतावर्णनम् १८१ ॥ ८ ॥ ३. कुलकराणां हकाराद्या दण्डनीतयः । । सक्थिग्रहणं नन्दीश्वराष्टाहिकाकृत- ४३ भरतचक्रिणो लक्षणादिवर्णनम् । १८४| समुद्गकक्षेपार्चाः। ६४ ४४, ९-११* रत्नोत्पत्तिवर्धापनिकातद३१. ऋषभदेवस्य कुमारवासमहाराज्य- ३७ दुष्पमसुषमायाः३५ दुष्षमायाः र्चाप्रीतिदानतन्महोत्सवमजनेश्व कलामहिलागुणशिल्पदर्शनपुत्रा ३६ दुप्पमदुषमायाश्च वर्णनम् । रादिपरिवारानुगमनचक्ररत्नप्रमाभिषेकदीक्षात्सवाः। र्जनाष्टमङ्गलालेखनााच्छुल्ककादिINSI ३२ ऋषभस्य साधिकवर्षचीवरधारितोप- | ३८ उत्सर्पिणीदुष्षमादुप्पमारक करणानि। १९४ सर्गसहनेर्यासमित्यादिश्रमणगुणाः वर्णनम् । १७३४५,१२-१५* मागधाभिमुखचक्रगमनकेवलज्ञानोप्तादः सभावनाकमहावत- ३९ पुष्करसंवतक्षीरघृतामृतरसमेघाः। १७५/ भरतनिर्गमनपौषधशालाकरणाष्टमप्ररूपणाः ऋषभसेनादिपरिवारादिः ४१ मांसादिवर्जनमर्यादा४०,तत्र दुष्पम- | पौषधरथारोहाः । वर्णनं च। दुष्पमसुषमसुषमदुप्पमात्रिभाग- ४६ लवणावतारदेवनत्यादिचापमोचन३३ ऋषभस्य पञ्चोत्तराषाढाऽभिजित्- | सुमत्यादि(१५)कुलकरवर्णनम् क्रोधनामाङ्कदर्शनमाभूतानयनाज्ञप्ति पष्ठत्वम् । १७८ किंकरत्वमत्युत्तारमज्जनगृहादि। २८५ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~284~ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां जम्बूद्वीप बृहद्विषया देखीए नुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांगादि [गाद IS४७ सैन्यवर्णनं, वरदामसाधनाय चक्रिणो | देशसाधनाऽऽभरणभूषणोपायनादि। | ६०,२०* गाथापतिरत्नकृता शाल्याविषयानुक्रमे गमनम् । २०७ . २२२ यु पत्तिः । ।। ८१ ॥ ४८, १७* एकाशीतिपदादिविभागे ५३ सुषेण कृततिमिस्रगुहाद्वारोद्घाटन- ६१,२४* नागकुमारनिर्धाटन, चिलातपौषधशालाकरणम्। २१० पौषधादि। २२४ वशीकाररत्नोपायनादि। २४८ ४९ स्थाश्वयोर्वर्णनं, वरदामप्रभाससाध- ५४ समहिममणिरत्नेनोद्योतः, काकिणी- | ६२ क्षुल्लकहिमवत्कुमाराष्टममालानादि। २१४ लेन मण्डला(४९)लेखनम् । २२९ गोशीर्षोपायनादि । २५० ५. सिन्धुदेव्या अष्टमपौषधादि, अब ५६ संक्रमेणोन्ममनिमझोत्तरणम् । २३१ ६३, २६ ऋषभकूटे नामलिखनम् । २५१ धिनाऽऽलोक्य भद्रासनाद्युपायनादि। | ५६ आपातचिलातैः सैन्यप्रतिरोधः । २३२/ ६४, २७* विनमिनम्यष्टमो दिव्यमत्या २१६/५७,१८* सुषेणकृतःसमहिमाश्वासिरना । स्त्रीरत्नरत्नाधुवयन, गङ्गासाधनादि 1. वैतादयगिरिकुमाराष्टमपौपधान्ते कटका- भ्यामापातचिलातनिषेधः। २३८ च। २५४ द्यपणादि, तिमिसगुहाधिपकृतमाला- | ५८ नागकुमाराराधनाऽऽगमनवृष्ट्यादि। ६६ खण्डपपाताधिपनृत्तमालसाधनाष्टमान्ते तिलकचतुर्दशकार्पणादि ।२१७/ २४१ ऽलङ्क रोपायनादि, सुपेणकृतगङ्गा8 ५२ सेनापतिवर्णन पाश्चात्यनिष्कुटे |५९,१९" समहिमचर्मच्छवरनाभ्यां | पाश्चात्यनिष्कुटसाधनरत्नानयनादि, हस्त्यादिरत्नैः सिंहलबर्बरादि- : सैन्यरक्षा। २४३] खण्डमपातगुहाद्वारोद्घाटनादि, 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~285 Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत श्रीउपांगादि सूत्रांक यहां देखीए जम्बूद्वीप० द्विषया३०४ा नुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए ___उन्माननिममोत्तरणम् । २५६/ ॥ इति तृतीयो वश्वस्कारः ॥ ८१ महापद्महदही देवीरोहिताहरिविषयानुक्रमेना lel६६, ४१* गङ्गापश्चिमकूले निध्यष्टम- क्षुल्लकहिमवर्षधरवर्णनम् । २८२ कान्तानदीप्रपातकुण्डद्वीपादिवर्णनम् । ।। ८२ ।। ताप्रादुर्भाववर्णनादि। २६०/७४ पद्मादतत्पद्ममणिपीठिकाशयनीय | ६७ चतुर्दशरत्ननिधिनवकस्त्रीरत्नादि | श्रीदेवीतत्सामानिकपद्मपरिक्षेपादि- ८२ महाहिमवत्कूटानि(८)। युतस्य महक्ष्यां विनीताप्रवेशः।२६४ वर्णनम् । २८८ ८३ हरिवविकटापातिवर्णनम् । ३०६ ६८ चक्रवर्तिताऽभिषेकवर्णनं, देवादि- ७५ गङ्गासिन्धुरोहितांशाप्रपातकुण्डद्वी- ८४ निषधपर्वततिगिन्छिदधृतिदेवीसत्कारादि । २७६ पादिवर्णनम् । २९५ वर्णनम् । | ६१ चक्रादिरस्नोत्पत्तित्यानानि। २७७/७६ हिमवति सिद्धायतनक्षुलहिमवत्कूटादि- | ८५ हरिसीतोदाप्रपातादिसिद्धायतन ७० चक्रवर्तिऋद्धिवर्णनम् । २७८ (११)वर्णनम् । २९८ कूटादि(२)वर्णनम् । ३१० ७१ आदर्शप्रेक्षणं, कैवल्यं, दशसाहस्था |७७ हिमवद्वर्षाधिकारः। ।२९१/ ८६ पूर्वपश्चिमविदेहदेवोत्तरकुरुभेदैदीक्षा, अष्टापदेऽनशनादि। २८०७८ शब्दापातिवृत्तवैताइयतद्देववर्णनम्। महाविदेहवर्णनम्। ३१२ ॥ इति भरतचरित्रम् ॥ ३०० ८८ गन्धमादनतत्कूट(७)८७, उत्तर७२ भरतान्वर्थे पल्योपमस्थितिको भरतो | ७९ हिमवद्वर्षान्वर्थः । ३०१ कुरुतगमभागवणन, पद्मगन्धाद्याः देवोऽपि । २८१/८० महाहिमवत्पर्वताधिकारः। (६) जातयः ८८। ३१६ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥८२॥ ~286 Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे जम्बूद्वीप० | बृहद्विषया नुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ८,४३ यमकपर्वतसविस्तरतद्देव- वर्णनम् । जातिवर्णन२८,५५* चित्रवि राजधानीजिनसक्थ्यादिवर्णनम् । ९४, ५५* कच्छविजयतद्वैतादयविद्या- ।। चित्रकूटवर्णनं २९,निषधादि(५)३२९/ धरनगराभियोगिक श्रेणिसिन्धु द्रवर्णनं च १००। ३५६ १०, १६ नीलबहादिद्रह(५)काञ्चन | गङ्गाकुण्डादिवर्णनम् । ३४४|१०२,६०* कूटशाल्मलीवर्णनं १,०१, ___पर्वतवर्णनम् । ३३० ९५ चित्रकूटवक्षस्कारतत्कूटादिवर्णनम् । विद्युत्पभवक्षस्कारतस्कूटदेवराज९१, ५३* जम्बूवृक्षवेदिकात्रिसोपान धान्यन्वर्था१०२, ६० । ३५७/ मणिपीठिकाशालादेवच्छन्दजिन- ९६, ५६* सुकच्छादिविजयतद्राज- १०३, ६४ पक्ष्मादिविजयाश्व प्रतिमाभवनशयनीयानादृततत्परि- धानीगाथापत्यादिकुण्डनदीतद पुरादिराजधान्यकावत्यादिवश वारजम्बूपादिपुष्करिणीकूट न्यादिवर्णनम् । ३५३/ स्काराद्यतिदेशः। ३५९ वर्णनं, जम्बूनामा (१२)ऽन्वर्थादि। | ९७, ५८* सीतामुखनववच्छादिविजय- |१०४,६५* मेरुस्थानायामादि, भद्रसुसीमादिराजधानीत्रिकूटादि शालनन्दनसौमनसपण्डक९२, ५४* उत्तरकुरोरन्यर्थः, मास्य- वक्षस्कारादिवर्णनम् । ३५३ वनानि, कुमुदाद्याः पुष्करिण्यः, बक्षस्कारतत्कूट(२)वर्णनं च। ३३८ १००, ५९° सौमनसवक्षस्कारसिद्धा- पद्मोत्तरादयो दिक्कूटाः। ३६६ ९३ हरिषहकूटतदधिपमाल्यवदन्वर्थ- यतनादिकूटदेवकुरुपद्मगन्धादि- १०५ नन्दनायामादिसिद्धायतनपुष्क 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~287 Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति" 1 पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे जम्बूद्वीप० यहां हद्विषयानुक्रमः देखीए ॥८४ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए NATURALREATKXIXED रिणीनन्दनादि९)कूटानि। ३६९| ११३, ७०" जिनजन्माभिषेके भोगंकरा- | रूपकस्थापनमेरुनयनानि। ४.५ | १०६ सौमनसायामादि । उधोलोकवास्तव्यदिक्कुमारी. १५९, ७८० ईशानादि(९)देवेन्द्रा | १०७ पण्डकचूलिकायामादि। ३७१ कृत्यम् । ३८८ गमनम् । १०७ १०८ पाण्डुशिलाघभिषेकशिलाः। ३७४ | ११४, ७५ मेघंकराचू लोकदिक्कुमारी- १२०,७९ चमरवलीन्द्राद्यागमनम् । ४०९ १०९ मेरोः काण्डत्रयस्य स्वरूपम् । ३७५ | कृत्यम् । ३९० १२१ अभिषेकसामग्र्यानयनम्। ४१२ ११०, ६७* मेरो मान्यन्वर्थश्च। ३७६ ११५, ७५ नन्दोत्तरासमाहारेला- १२२ अभिषेकहिरण्यवृष्ट्यादिवाद्यगेय१११, ६८* नील वर्षधरसीतानारी देव्यलाम्बुषादि(३२)पूर्वाद्रिदिक् । नृत्यादि। कान्तानदीसिद्धायतनादि ९)कूट- चित्रारूपादि(८) विदिग्मध्य- | १२३, ८०* अलक रविभूषाऽष्टमङ्गलातदन्वर्थाः। ३७८ रुचकदिकुमारीकृत्यम्। ३९५/ लेखन, स्तुतिः, वृषभशृङ्ग११२, ६९ रम्यकगन्धापातिरुक्मि- ११६ शकेन्द्रासनकम्पस्तुतिमहिम रभिषेकश्च । तत्कूट(८)हैरण्यवतमाल्यवन्त चिकीर्षादेवाहानोद्घोषणापालक- १२४ जिनस्य प्रत्य नयनं, हिरण्यादि. वृत्तवैताढ्यशिखरितत्कूटैरावत- यानविकुर्वणादेशः। ३९९ वृष्टिरशुभचिन्तननिरोधोद्घोष स्वरूपतदन्वर्थाः। ३८२, ११७ पालकविमानरचना। ४.१ णामष्टाहिका च । ४२४ ।। इति चतुर्थो वक्षस्कारः॥ ११८ शकसामानिकादिनिर्गमप्रति- । ॥ इति पञ्चमो वक्षस्कारः ।। STARIANIRUARY 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥ ८ ॥ ~288 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपांगादिविषयानुक्रमे ॥८५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए SAXSEXERCIRREARRECTLE १२५ जम्बूलवणप्रदेशस्पर्शजीवप्रत्या प्रतिमण्डलं तद्बुद्धिः,बाह्यमण्डला तद्विरहकालश्च । ४६४जम्बूद्वीप गमनादि। बाधा च ४३७ १४६ चन्द्रस्य मण्डलानि१४३,अभ्य- | बृहद्विषया|१२६, ८२* खण्डयोजनवर्षपर्वतकूट नुक्रमः अभ्यन्तरादिमण्डलायामविष्क न्तरवाखाबाधा१४४,मण्डलपरतीर्थश्रेणिविजयद्रहसरित्पमाणम्। म्भादि। स्पराबाधा१४५,मण्डलायामादि । ४३२ १३४ मण्डलेषु मुहूर्तगतिः। ४४९/ ॥ इति पष्ठो वक्षस्कारः॥ १३५ दिनरात्र्योबृद्धिहानी। ४५३/१४७ मेर्वभ्यन्तरादिमण्डलाबाधा । १६८ १२७, ८३* चन्द्रादीनां प्रकाशादि। | १३६, ८४* सर्वाभ्यन्तरादिमण्डलतापः | १४८ सर्वाभ्यन्तरादिमण्डलायामादि । ४७०13 ४३४ क्षेत्रस्थितिः। ४५८१४९ अभ्यन्तरादिमण्डलेषु मुहूर्तगतिः। १३१ सूर्यस्य चतुरशीतं शतं मण्डलानां १३९ उद्गमनादौ दूरमूलादिदर्शनं १७३ १२८,अभ्यन्तरवाघमण्डला १३७, अतीतादिक्षेत्रे गमनादि १५. नक्षत्राणां मण्डलान्यवगाहोऽ. बाधा१२९, प्रतिमण्डलमभ्यन्तरं १३८,क्रियादि१३९। ४६२ भ्यन्तरबाबान्तरं च, परस्परमन्तर५.३०, मण्डलायामविष्कम्भ- १४१ ऊ दितापः १.४०, ऊर्ध्वकल्प मायामादि मेर्वबाधा मुहूर्तगति परिक्षेपाः१३१। १३६ विमानोत्पन्नत्वादि १४१। ४६३/ श्चन्द्रमण्डलावतारभागशतगम३२ सर्वाभ्यन्तरमण्डलमन्दराबाधा, ।१४२ इन्द्रत्यवने सामानिकव्यवहारः, नानि। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~289 Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"1 पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपांयादि विषयानुक्रमे यहां जम्बूद्वीप० वृहद्विषया देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए १५१ चन्द्रसूर्ययोरुदमाच्युद्गमनादि- १५७, १०१* नक्षत्राणां चन्द्रेण . १६३, १२० श्रावणादिषूतराषाढादि. (दिनरात्रिमानायतिदेशः)। ४८५ दक्षिणोत्तरादियोगः। ४९८ नयनदिनमानपौरुषीमानानि १५२, ९०* नक्षत्रादिसंवत्सरतन्मास- १५९, १०३* अभिजिदादीनां देवता । योगादिसङ्ग्रहगाथा च। ५२१ पर्व रक्षणानि । १५८तारकाणि च १५९, १६६, १२२ अबस्तनादिस्थान१५३, ९९ लौकिकलोकोत्तरमास. १०३ । ५०० शशिपरिवारादिसमहगाथे पक्षदिवसतत्तिथिरात्रितत्तिथि १६०, ११, नक्षत्राणां गोत्राणि १२२ चन्द्रसूर्ययोरधस्तनामुहूर्तनामानि । १.०७१, संस्थानानि११०, दिषु तारकाः१६४, अष्टाशीति१५४ चबादीनि चलस्थिरकरणानि महादिनामानि परिवारः१६५, तत्तिथिनियमश्च । ४९४ १६१, ११८* अभिजिदादीनां चन्द्र- मन्दरधरणीतलपरम्परज्योति१५५ संवत्सराद्यषु चन्द्राद्यादयः, सूर्याभ्यां सह योगकालमानम् । श्चक्र द्यबाधा १६६। ५२४ युगेऽयनादिमानं च । ५०४|१६७,१२७* बाधाभ्यन्तरोपर्यधो१०. योगादि(20)द्वारगाथा ! १६२, ११९ कुलोपकुलतदुभयानि नक्षत्रचारश्चन्द्रसंस्थानादि च। ५२५ पूर्णिमाऽमावास्यातन्नक्षत्रकुलो- १६८, १२७* चन्द्रविमानवाहकदेव१५६ नक्षत्रनामानि । पकुलादियोगाः। वर्णनम् । ... . 'सवृत्तिक आगम ४९५ सुत्ताणि ~2904 Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे ॥ ८७॥ देखीए जम्बूद्वीप वृह द्विषया नुक्रमः निरयावल्या असूचा च दीप क्रमांक के लिए देखीए XXSEXANENUERIENCE १७१ चन्द्रादीनां शीघ्रमन्दगतयः १६९, | १७२ जम्बूद्वीपस्यायामविष्कम्भपरिमहापद्धिकता च १७०, तार क्षेपोद्वेधोच्चत्वसर्वाग्राणि १७७, कयोरन्तरम् १७१। ५३२ तस्य शाश्वताशाश्वतत्वं१७८, १७३, १२९* चन्द्रस्याग्रमहिष्या, पृथिव्यादिपरिणामः सर्वप्राणो. पूज्यजिनसक्थिमावाद्विमाने पातश्च१७९। ५३९ मैथुननिषेधश्च, अङ्गारकादिन- १८१ जम्बूद्वीपस्यान्वर्थः १८०, हाममहिष्यः १७२,१२९* उपसंहारः१८१ ५ ४२ चन्द्रादिदेवदेवीजघन्योत्कृष्ट ॥ इति सप्तमो वश्वस्कारः।। स्थितयः १७३। ॥ प्रशस्तिः॥ ४६ १७५,१३१* नक्षत्रदेवताः। ५३६/ ॥ इति श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्त१७६ चन्द्रादीनामल्लबहुत्वं १७२, जम्बूद्वीपे तीर्थकर चक्रिवलवासु बृहद्विषयानुक्रमः ।। देवनिधिपञ्चकेन्द्रियरत्नसंख्या १७६। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ८७॥ ~291 Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम [भाग-4] उपांग-सूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ संबंधी साहित्य [ उपांगसूत्र- ८ से १२ "निरयावलिका-पंचक"] - पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत | आगम १९-२३] उपांग ८-१२ "निरयावलिका-आदि पंचक" सूत्रांक अथ श्रीनिरयावलिकासूत्रस्य ११ २४ परिवहति | ३९ ५ १२ य ॥१ ॥ यहां सूत्रतद्वगाथासूचा सान्ताब्दा १२ १३ संबड़ेति । १२/ ३५ ३० पण्णत्ते ॥ २६ ॥ इति मृत्रगाथाङ्कमचा।। देखीए सूत्राणि ३१ सूत्रगाथा: ५१२ २४ दाओ १३ ३६ १४ निखेवओ।॥ २७ इति निरयावलि कास्त्रस्य सूत्रतद्गाथाङ्कपत्राङ्क पत्तयङ्गः शब्दान्तः सूत्राङ्कः | १३ ८ हवमागच्छति १४ ३६ २२ सम्मत्तो॥ सूचा ॥ दीप १ १२ पुडविसिलापट्टए १ ६ होत्था १५/ ३८ २५ , २ १७ पडिगया २१४८ विहरति क्रमांक ३१ विहरति ३ निच्छुहावेइ | ४२ १५ सम्मत के लिए । ३ २१ कण्हे १० उ २५ उवबन्ने | इति सूत्राङ्कसूचा देखीए ४ १९ सुरूवे २ पन्नते अथ सूत्रगाथाङ्कसूचा ६ १७ ओयाए ११ भाणियब्बो तहा २०१९ १६ परियत्ता ।।१।। १ ५ पडिगया ७ २०८ तिबेमि ॥१॥ २१ २२ २० ॥१॥ 'सवृत्तिक ९ ९ उक्न -४ सम्मत्तो २२ २६ २१ समादहे। आगम ९ १७ अणुपविट्ठा ५ निक्खेवओ ॥१॥ २३ २७ १ समादहे ॥ ३॥ || ११ १८ परिवहति २३ २० , २॥ २४ ३७ ३ गंधदेवी य ॥१॥ ४॥ सुत्ताणि | ~292 Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र ८ से १२ “निरयावलिका-पंचक" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥ अथ श्रीनिरपावलिकाया बृहद्विषयानुक्रमः ॥ १ राजगृहनगर गुणशीलचैत्यादिवर्णनातिदेशः । १. २ आर्यसुधर्मवर्णनाद्यतिदेशः केशियत् । २ २ ३ जम्बूस्वामिवर्णनातिदेशः । ४ निरयावलिकाकल्पावर्तसिका पुष्पिकापुष्पचूलिकावृष्णिदशावर्गाः, निरयावलिकासु कालादी (१०)न्यध्ययनानि । ५ चम्पापूर्णभद्रश्रेणिकपुत्रकोणिकपद्मावतीकाली कालकुमारवर्णनाति देश: । ५ ६ कालस्य रथमुशकसङ्ग्रामे गमनम् । ६ ७ श्रीवीरसमवसरणादि, प्रभे रथमुशल ३ युद्धे कालस्य कालकरणकथनम् । ९ ८ कालस्य पद्मप्रभायां हेमा दशसागरस्थितिकतयोत्पत्तिः । 23 ९ युद्धनिमित्तकथनेऽभयस्य वर्णने चित्रस्यातिदेशः चेलणायाश्च प्रभावत्याः । १० गर्भागमनदोहदपूर्त्तिः । 35 ११ ~293~ ११ गर्भस्थानाशः । १२ कोणिकजन्मोत्कुरुटिकायां त्यागः, श्रेणिकग्रहणं च । १३ कोणिकाङ्गुलीवेधः मुखे धरणमष्टको १२ दायश्च । १४ श्रेणिकबन्धनं, कोणिकस्य नृपत्वं च । १५ चेलणातुष्टिपृच्छा, स्वरूपकथनं परशुहस्तस्य गतिः, तालपुरभक्षणं, कणिकविलापः चम्पानिवेशश्च । १६ काकादीनां राज्यभागदानम् । १७ विहल्लस्य सेचनकक्रीडा, हारहस्तियुगलयाचनं, विशाला गमनं, त्रिर्दूतप्रेषणम् । .. १२ १३ १४ " १८ अर्द्धराज्यदानेऽर्पणोक्तिः, काला दीनामैकमत्यं युद्धाय निर्गमः, गण(१८) राजसभा, युद्धाय निर्गमः । १८ १९ कालस्य दृढभतिज्ञयद्विदेहेषु मुक्तिः । १९ ॥ इति प्रथमाध्ययनम् ॥ २० सुकालकुमारवर्णनं, शेषाणा (८)मतिदेशश्च । " ।। इति निश्यावलिकायाः प्रथमो वर्गः ॥ २९ पद्मादी (१०) न्यध्ययनानि, कालपद्मावत्योः पुत्रः पद्मः, स्थविरा - ते दीक्षा, सौधर्मे देवत्वम् । २२, १० कालपुत्र महापद्मस्येशाने गतिः, शेष व्यष्ट २० २१ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [भाग-4] उपांग-सूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र ८ से १२ “निरयावलिका-पंचक" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री उपांगादि विषयानुक्रमे ॥ ९० ॥ ॥ इति द्वितीयो वर्गः ॥ २३, २* चन्द्रस्योत्पत्तिः पार्श्वान्तिके दीक्षा च । २४ सूर्यस्योत्पत्तिः । २५ शुक्रस्योत्पत्तिः पार्श्वान्तिके सोमिलस्य यात्रादिप्रश्नाः, श्रवकधर्माङ्गी कारः, मिथ्यात्वं, आम्राद्यारोपणं, होतृकादिषु तापसत्वं दिशां प्रोक्षणं, देवागमः, दुष्प्रत्रजितत्वाख्यानं, काटमुद्राबन्धः पञ्चमदिवसे प्रश्नोत्तरे, अणुव्रतप्रतिपत्तिश्च । २६ सुभद्रायाः पुत्राभिलाषः सुत्रताssassगमनं श्रधर्माङ्गीकारः, दीक्षा, बालाभ्यञ्जनादि, पृथग्भावः, २३ 11 २९ बहुपुत्रिकतयोत्पत्तिः, बिभेले जन्म, द्वात्रिंशत्पुत्राः, राष्ट्रकूटाज्ञा श्रावकधर्माङ्गीकारः प्रव्रज्या च । २७ पूर्णभद्रदीक्षादि । ॥ इति पञ्चमो वर्गः ॥ २८ माणिभद्रदीक्षादि, दत्तायतिदेशश्च । ३६ ३१ निरयाबलिका श्रुतस्कन्धवर्गादि । ॥ इति श्रीनिग्यावलिकाया बृहद्विषयानुक्रमः ॥ ३५ ३६ ॥ इति तृतीयो वर्गः ॥ २९, ४||* भूता दारिका, पार्श्वसमवसर णादि, भूतादीक्षा, शरीरवकुशत्वं, श्रीदेव्याद्यतिदेशः । ॥ इति चतुर्थो वर्गः ॥ ३०, ५॥ * निषचा ( १२ ) अध्ययनानि, रैवतकनन्दनद्वारवती कृष्णवर्णनं, मिगणभृद्वरदत्तता निषधपृच्छा, वीराङ्गदभवे दीक्षा, मनोरमे देवः, ३८ ~294~ निषधस्य धर्मजागरिका, दीक्षा, सर्वार्थसिद्धे देवत्वं, विदेहेषु मुक्तिः । ४२ मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: उपांग-सूत्र लघुबृहत् विषयानुक्रमः परिसमाप्तः " निरयावल्याः प्रकीर्णकानां च बृहद्विषयानु क्रमः 112,0 11 Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रमः नमो नमो निम्मनदसाम द-क्षमा ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरु प्रकीर्णक-सूत्र बृहत् विषयानुक्रम: [आगम-संबंधी-साहित्य] आदय सपादक ज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी (किञ्चित् वैशिष्ठ्य समर्पितेन सह) सकलनकता 28/07/2017, शक्रवार, २० ty's Net Publ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ~295 Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गम संबंधी प्रत सूत्रांक यहां देखीए प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रम: [ प्रकीर्णकसूत्र- १ "चतु:शरण" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) | || अथ श्रीचतुःशरणादिप्रकीर्णक २९* विविधसिद्धगुणकीर्तनतच्छरणे। २ दशकस्य वृहद्विषयानुकमः। ४०* चतुर्दशपूादिसाधुशरणम् । " १॥ अथ चतुःशरणम् ।। ४८* विविधमहिम्ना धर्मस्य शरणम्। ४ १. आवश्यकषट्के षडाधिकाराः। १ ५४ मिथ्यात्वाईदाद्यवर्णजीवपरितापना६७ सामायिकेन चारित्रस्य चतुर्विशतिस्तवेन दर्शनस्य प्रतिपत्त्या ज्ञानादीनां धर्मविरुद्धादीनां गरे। ५८* अर्हदादीनामहत्त्वादेर्जिनवचनाप्रतिक्रमणेन तत्स्खलितम्य नुवारिकृत्यानां चानुमोदना । , कायोत्सर्गेण चरणाघतिचाराणां ६०* कुशलप्रकृतिबन्धशुभानुबन्धादि। ५ प्रत्याख्यानेन तपोऽतिचारस्य स.. ६३* त्रिकालकर्तव्यता जन्मसफलता रावश्यकैर्वीर्याचारस्य च शुद्धिः । " नितिकारणत्वं च। ८"स्वम चतुर्दशकम् । ९* कुशलानुबन्ध्यध्ययनकीर्तनप्रतिज्ञा। १ १०* चतुःशरणदुष्कृतगासुकृतानु मोदनानि । ११* अहंदादिचतुष्कशरणलाभो धन्यस्य । दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि २२७ विविधार्हद्गुणकीर्तनेन तच्छरणम् । २ [आगम-२४] प्रकीर्णक रण" ~296~ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रम: [प्रकीर्णकसूत्र- २ "आतुरप्रत्याख्यान" ] म पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥२ अथातुरप्रत्याख्यानम् ॥ ८६ सिद्धनमकारः, तत्त्वश्रद्धा, पाप लक्षणम् । १२८ धीरकापुरुषसुशीलदुःशीलाना ६४* बालपण्डितमरणलक्षणम् । प्रत्याख्यानं, संस्तारकप्रतिज्ञा, । १०७ जिनवचनाज्ञस्य बालमरणम्। " मरणम् । ६५ देशविरतिलक्षणम् । दुष्कृतव्युत्सर्गः, सामायिकोच्चारः, १०९ शस्त्रग्रहणादीनि मरणानुबन्धानि, १२९* ज्ञानाापयोगकारकस्य मुक्तिः। , ६८* अणुवतगुणवतशिक्षावतानि। , उपधिशरीरादिन्युत्सर्गः, साम्यादि, पण्डितमरणप्रतिज्ञा। ९ १३०* चिरोषितब्रह्मचर्यादिसिद्धिः। । ७० बाल्पण्डितमरणे आशुकार ११. उद्वेजकजातिमरणवेदनास्मरणम्। , रागाद्युत्सर्गः, आत्मालम्बनं च। ७ १३१* निष्कषायादेः शुभप्रत्याख्यानता । मरणादिकारणानि। ५ १११* वेदनोत्पादे स्वभावदर्शनम् । , १३३' आतुरभल्याख्यानस्य फरमुप७१* भक्तपरिज्ञोक्तोपक्रमातिदेशः। ५ ८७* आत्मनो ज्ञानादिमयत्वम्। ७ ११४* सर्वपुरलाहारादि, सरिद्भिर्लबण संहारश्च। ७२* कल्पोपपत्यादि तत्फलम् । ५ | ९४ एकशस्यैवोत्पत्त्यादि, आत्मनः शाश्वत. यत्कामभोगैरतृप्तिः, सचित्ताहारत्वं, संयोगमूलं दुःखं, मूलोत्तर७३* पण्डितपण्डितमरणोपक्रमः। ५ विपाकेक्षणम्। गुणानाराधनाप्रतिक्रमणं, भयमद१ उत्तमार्थादिप्रतिक्रमणमज्ञानादि ११८ परिकर्मण आवश्यकत्वम् । । स-ज्ञागौरवाशातनारागद्वेषासंयमा. ध्यानत्रिषष्टिपतिक्रमणं च। ६ ज्ञानमिथ्यात्वममत्वनिन्दागहादि। ८ १२४* भवविमुक्तिलक्षणं, सर्वज्ञोपदेशः, ७८* श्रीवर्द्धमानगणधरनमस्कारः, प्राणा- ९५. बालवदालोचना । वीतरागहेतुपदस्मृतिः, आराधनारम्भादिप्रत्याख्यान, साम्य, वैराशा. ९६* आलोचकगुणाः। फलम् । नां व्युत्सर्गः, समाधिपालनमाहार९७* अकृतज्ञताक्षामणम् । श्रमणत्वसंयतत्वध्यान, शेषन्युसज्ञागौरवकषायममत्वत्याग९८ बालादि(३ मरणत्रयलक्षणानि। , त्सर्गः, जिनवचोमार्गलाभः, मरणे ९९* अनाराधकलक्षणानि । क्षामणानि साकारप्रत्याख्यानं च। ७ १०६* मरणविराधनायां कान्दर्पिकाद्या निर्भयत्वम् । (५)देवटुगतयः, दुलभसुलभ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि आगम-२५] प्रकीर्णक-२ “आतरप्रत्याख्यान" ~297 Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रमः [प्रकीर्णकसूत्र- ३ "महाप्रत्याख्यान" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥३ अथ महाप्रत्याख्यानम् ।। १७१ क्षीरनयनोदकयोः सागरसमत्यम्। उपदेशबलेन तपःपोतधरणम्। , २४४* श्रमणत्वायनुध्यान, निषिद्धत्यागः, १५७ तीर्थकरादिनमस्कारः, श्रद्धान, १३ २१७* कन्दरासु दुर्गेऽप्यर्थसाधनं, किं पुनः उपध्यादेरचिन्तनीयादेरसंयमादेश्व पापप्रत्याख्यान, दुष्कृतनिन्दा, १८१* यावल्लोकप्रदेश प्रतियोनि च मरण, सङ्ग्रहयले जिनोक्तिश्रवणे च, व्युत्सर्गः। सामायिककृतिः, उपध्यादित्यागः, बालमरणानि, मात्रादिसम्बन्धबहुता, शिलातलगता धन्याः। २४६* एकेनापि पदेन प्रत्याख्यानात्समाधिः। रागादिव्युत्सर्गः, क्षामणा, निन्द्यएकस्य कर्मकरणादि, गतिचतुष्क- २२१* परिकर्मण आवश्यकता। २५१* अईसिद्धाचार्योपाध्यायसाधूना निन्दादि, ममत्वपरिज्ञानादि, वेदनादेः स्मरणेन पण्डितमरणम् ।, २२२* तपसा कर्मनाशः। मालत्यादि। आत्मनो ज्ञानत्यादि, आराधना१. पण्डितमरणे फलं, विधिः, सर्व२२३ पण्डितमरणान्मरणान्तः। " | २५३* सिद्धोपसम्पत्यादिना आराधकत्वम्। निन्दादि, आत्मन एकत्वादि, संयोग- पुद्गलानामाहारपरिणामिते, नरक- २२५० अनशनादिना पण्डितमरणम्। " १७ मूल दुक्खं, असंयममिथ्यात्वादि- म्लेच्छजातिभ्रमणम् , कामार्थ २२६* इन्द्रियसुखसातस्य मोहः। " २५८ वेदनासु नरकवेदनाना कृतकर्मणा परिज्ञानादि, अपराधक्षामणा, भोजनगन्धशब्दादि, युग्म्यादिसुखै२२७* लज्जादिनाऽनालोचकाऽनाराधकाः। दुःख विपाकानां च स्मरणम् । बालवन्भायात्यागेन ऋजोनिर्वाणम् । रतृप्तिरत्राणं च, राज्यभोगैरपि, २७२* अभ्युद्यतमरणं महापुरुषसेवितं, तृष्णासुखेच्छायोरच्छेदः, प्रार्थना- २३१* आराधनायाः श्रेयस्त्वं, आत्मनः तपःस्नेहपानं, आराधनापताकाहरणं, १६२* भावशल्यदोषाः। निन्दा, मुक्तिकारणानि, महाव्रता- संस्तारकत्वं, जिनवचनानुगमादिना कर्मवल्लीच्छेदः, भवत्रयेण मुक्तिः, ५६५* आलोचनादिना कर्मलघुता, यथा रावतारः, बद्धकक्षता, कषायादिऽमूढसज्ञता, प्रमोदे तपोलोपः । १६ रोपः, क्रोधकलहादित्यागः, इन्द्रिययत्पायश्चित्तकृतिः, यथावृत्तकथनम् । नाशेन पताकाहरण, जीवनमरणयोसंवरणादि, लेश्याभयगुप्त्यादीनां २३४* संवरेण कर्मदाहः ज्ञानिनः कर्म रचिन्ता, उद्यतभावत्वं उत्कृष्टजघन्य क्षयश्च । १६७° प्राणारम्भादिपत्याख्यानम् । । त्यागादाने। मध्यमाराधनाफलम् । १६९* पालनभावविशुद्धस्वरूपम् । २३९* मरणे पदस्याप्युपकारः। , १३ २७५ सर्वभूतसाम्यादि धीरमरणं प्रत्या२१२. संगशल्यत्यागः, गुप्तिसमितिशरण, २४. धर्मस्य भूतहितत्वादित्वम् । , ख्यानफलं च । 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि १९ [आगम-२६] प्रकीर्णक-३ “महाप्रत्याख्यान" ~298 Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रम: [ प्रकीर्णकसूत्र- ४ “भक्तपरिज्ञा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ॥ ४ अथ भक्तपरिज्ञा ॥ २८,* वीरनमस्कारः शासनस्तुतिः ज्ञान व्यवसायोपदेशः, मोक्षसुखस्याबाध्यता, भवसुखस्य परिणाम दारुणता च। २० २८३* आज्ञाऽऽराधनात् शाश्वतसुखं, ज्ञाना द्याराधनं, अभ्युद्यतमरणेनाविकलाराधनम् । २० २९० भक्तपरिज्ञा(३)यभ्युतमरणं, सविचाराविचारमाद्य, धृतिथलविकलानां प्रशमसुखपिपासितादीनां भक्तपरिज्ञा। २९१" भवस्य दुरन्तता। ३०. नत्वा भक्तपरिजविज्ञप्तिः, आलो चनादिप्रतिपत्तिः, वन्दनं, शुद्धि- हारत्यागः, चैत्यवन्दनं, सङ्घक्षामणा, सदर्शनस्यापर्यटनं, दर्शनरहितस्याहेतुराराधना, बाल्यादालोचनादानं, आचार्यादिक्षामणा, अपराधक्षामणा, सिद्धिः, सदर्शनस्य जिननामदर्शनप्रायश्चित्तप्रतिपत्तिः,महावताधारोपणं, मृगावतीवत्पापक्षयः । २३ स्यान_ता, अक्षयसुखहेतुता च । २४ यावज्जीवप्रतिज्ञाप्रत्यर्पण; उपस्थापना, २७ अनुशास्तिस्वरूपम् । ३५०* अहंदादिभक्तिः, दुर्गतिनिवारण, देशविरतस्याणुवतारोपणा २१ ३३४* मिथ्यात्वच्छेदः, सम्यक्त्वभावना, परम्परसुखप्राप्तिश्च, नाभक्तिमतो ३१०*गुरुसवाजा, जिनेन्द्र भवनादिषु वीतरागभक्तिः, नमस्काररतिः, निवृतिः, अभक्तिमानूषरे शालीवापी द्रव्यदानादि, संस्तारकात्रज्या, स्वाध्यायोद्यमः, तरक्षा, शल्य- अबीजसस्येप्सुः अनभ्रवर्षे सुश्च चरमप्रत्याख्याने, भक्तपरिज्ञाप्रति- त्यागः, इन्द्रियदमः, कषायधातः, मणिकारदृष्टान्तः। पत्तिः । मिथ्यात्ववर्जन, दृढसम्यकत्वता, ३५६* संसारक्षयकारणो नमस्कारः, ३१४ क्षेत्रप्रतिलेखना, त्रिविधाहार नमस्कारकुशलता च । संसारोच्छेदः, मेण्ठदृष्टान्तः, ते प्रत्याख्यान, द्रव्यदर्शन, भुक्त्वा- ३४४मृगतृष्णावदधर्मात्सुखेच्छा, विना द्रव्यलिङ्गत्वं, आराधनाहस्तः, ऽपि संवेगः, शुभध्यानम् । अध्यादेरपि तीन मिथ्यात्वं, दत्त सुगतौ रथा, सुदर्शनदृष्टान्तः। २५ ३१७% समाधिपान तल्लक्षणं फल च। इव साधुष द्वयसन, सम्यक्त्वप्रति- | ३६३ ज्ञान, हृदयपिशाचवशीकरण, १२५ सङ्घनिवेदनमुत्सर्गश्च, चतुर्धाss- छानि ज्ञानादीनि, जिनशासनरक्तता, ! हृदयकृष्णसर्पोपशमनं, मनोमर्कट 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [आगम-२७] प्रकीर्णक-४ "भक्तपरिज्ञा" ~299 Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रम: [ प्रकीर्णकसूत्र- ४ "भक्तपरिज्ञा" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक बन्धनं, संसारेऽप्यनाशकारणं, धर्मविरुद्ध, दारिद्रयादिहेतुः, पाणनाशिकाः मुनिमनोविद्राविकाश्च यहां यवर्षे: चिलातिपुत्रस्य च श्रावकपुत्रो दृष्टान्तः । सिंहगुहावासिमुनिदृष्टान्तः,नदीवन्निदेखीए दृष्टान्तः। ४०५* कामा दोषहेतवः, दुःखाबहा मैथुन- मज्जिकाः, तारुण्यं महार्णववत् । २८ ३७१* जीवववत्यागः, आत्मौपम्येन दया, सज्ञा, कामो भुजङ्गोपमः, ललक- ४०९ सजवर्जन, सङ्गेन मारणादि. मणि- दीप अनन्यधर्मत्वं, वधे सम्बन्धिवधः, वेदना, वणिजः कुबेरदत्तस्य च पतिदृष्टान्तः, निःसनस्य चक्रिणोदयायां स्वदया, हिंसाफलं दुःख, दृष्टान्तः, महिला दोषवध्यः, दुःख- ऽप्यधिकं सुखम् । २८ क्रमांक अहिंसाफलमारोग्यादि, चण्डाल- समुद्रपातहेतुः, नदीबद् गुरुगिरि |४१६* निदानस्वरूपं, रागद्वेषमोहभेदाः, के लिए दृष्टान्तः । भेदिन्यः, महिलासु भुजङ्गीधिव गङ्गदत्तविश्वभूतिचण्डपिङ्गलदृष्टादेखीए |३७६* यतेरपि भाषादोन लेपः, सत्य वाविश्वासः, निधनकारिकाः, न्ताः, काचेन वैडूर्यहारण, दुःखप्रशस्तं, सत्यवचसो विश्वासादि, हृदयहारिकाः वध्यमालाबद्वि क्षयादिप्रार्थन, निदानादिरहितः 'सवृत्तिक इतरस्य पाषण्डचाण्डालता, वसुः नाशिका: मालतीच मर्दनासहाश्च, शिवसाधकः। २९ आगम दृष्टान्तः। देवरतिनृपदृष्टान्तः, शोकदुरिता- |४२४* इन्द्रियासक्तः संसारभ्रमिः, स्वा३८१* अदत्तदन्तशोधनस्यापि त्यागः, | दिकारिण्यः अपलापनस्थानं धन- स्थिलेहनवद् विषयाः, सङ्गे परिश्रमः, अर्थहारी जीवितहारी, अदत्तं लोक- || मालावन्मोहविषयवर्द्धिन्यः चारित्रः । कदलीवमिस्सारा विषयाः, पोषित प्रियादिका(५)दृष्टान्ताः, विषया पेक्षस्यं भवः। ४२९' इन्द्रियदमः, आराधना, क्रोधा दिनिग्रहः, सुखदुःखे तद्भावाभावजे, नन्दपरशुरामाद्या दृष्टान्ताः। ३. १४७* अनुशास्तिपार्थना, परीषहादि संभवे प्रतिज्ञास्मारणं, अवन्तीसुकुमाल दृष्टान्तः, भवनैगुण्यं, धर्मयानदुर्लभता, चिन्तामण्यादिवदपूर्वता, नमस्कारस्मरणेन प्राणत्यागः, जघन्यतः सौधर्मे उत्कृष्टतोऽच्युते सर्वार्थसिद्धौ बा, उपसंहारः। ~300~ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रम: [ प्रकीर्णकसूत्र- ५ "तन्दुलवैचारिक"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे कीर्णकानां हद्विषयानुक्रमः देखीए || ९७|| दीप क्रमांक के लिए देखीए LATESEPSATARNAKALANET | ॥५ अथ तन्दुलबचारिकम् ॥ ७ मातापित्रानि । ३. ४५०* मङ्गलादि, अभिधेयनिर्देशः। ३१ ८ गर्भगस्य नरके उपपातः । ४५५° गर्ने दिनरात्रिमुहूर्तश्वासमानम् । ३२| ९ गर्भगस्य देवलोके उपपातः । ४६१* योनिऋतुबीजकालमानम्। ,१० गर्मगस्य चानत्वादि । ४६३* स्वादीनां रक्ताद्युत्कटत्वं, स्थानं, ४६८* पधैर्गर्भस्वरूपम् । । पितृपुत्रसंख्या, गर्भस्थितिः। , ११, ४७.* स्त्रीत्वा(४)बन्यतरजन्म ३६ २ ओजआहार: १२ पादादिना जन्म। ३ कललार्बुदपेशीप्रभूत्यवस्था, शिराधमनी- ४७१* द्वादश वर्षाणि गर्भस्थितिः । रोमादिसङ्ख्या । ३३ ४७३* जन्मदुःखादिना जातिस्मरणाभावः ४ गर्भगस्योच्चाराद्यभावः, सर्वाहारस्य । मातुर्वेदना च । श्रोत्रादीन्द्रियतयोपचयः। ४७७*. अशुचिस्वरूपम् । ५ कवलाहाराभावः, सर्वत आहारादि, ४८८* बालादि (१०) दशास्वरूपम् । ३७ रसहरणीशिरास्वरूपम् । १३, ४९५ दशाक्षेपणोपक्षेषाद्यवस्था । ३८ ६ ओजाहारः, रसहरण्याऽऽहारः। ३४ ४९६ सुखिनोऽपि धर्मकर्तव्यता, दुःखिनो | KARANJERREATRERNET 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि |९ ॥ [आगम-२८] प्रकीर्णक-५ "तन्दुलवैचारिक" ~301 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि प्रकीर्णकसूत्र-बृहद्विषयानुक्रमः [ प्रकीर्णकसूत्र- ५ “तन्दुलवैचारिक" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) श्री उपांगादि. विषयानुक्रमे ॥ ९८ ॥ IXPRES विशेषेण, सुखप्राप्तये दुःखवारणाय च धर्मः, जातिकुलादिपुरस्कारश्च १४ बातिकादिरोग बहुलत्वेन शोभना भविष्यन्ती धर्मचिन्ता । १५ युगलधार्मिकपुरुषवर्णनम् । १६ संहननसंस्थानवर्णनम् । ५०१ संहननसंस्थानादिहानिः । ५२२० वर्षशताशीर्वादे युगायनतु पासपक्ष रात्रि दिवसमूहती संख्या, तन्दुसङ्ख्या मुद्गलवणस्नेहपटशाकसङ्ख्या, समयोच्छ्वासप्राणस्तो कलवमुखरूपं नालिकाछिद्रस्य तदुदकस्य च स्वरूपं, वर्ष राज्यच्छासादिमानम् । ५२९* आयुषि निद्रादिविभागः, धर्माकरणे पश्चात्तापः, आत्मज्ञानोपदेशः, जीवि - तादीनां नदीवेगादिसमत्वं भवस्य जरामरणव्याप्तत्वम् | ४५ ४१. ४० १७ पृष्ठकरण्डकपांशुलिकादिमानादि, अधोगामिन्यादिविरास्वरूपं, पित्तधारिप्यादिशिरामानं रुधिरादिमानं च । ४६ ५३१ [अन्तर्वाद्यपरिवर्तजुगुप्सा, भच्छादनाचे रम्यता । १८ मनुष्यशरीरस्याशुचिता । १६८, १९ विषयवैराग्यं, स्त्रीनिन्दा, बहिः पदार्थर्मनोहरता । २० स्त्रीणां प्रकृतिविषमत्यादि (९३) स्वरूपं, ४६ ४७ ४९ ३८ ܕܕ " नार्यादितत्पर्यायन्युत्पत्तिश्च । ४४ ५७६* स्त्रीचरित्रस्वरूपे । ५८३* जस्य सर्वं निरर्थकं पुत्रादि नालम्बनं मरणे द्वितीयो धर्मः, धर्म एव त्राणशरणादि प्रीतिकरादिश्च, भोगज्ञानेन्द्रत्वादि राज्यादि च धर्मफलम् । ५३ ५८६* उपसंहारः, उपदेशश्च । ~302~ ५२ 33 प्रकीर्णकानां बृहद्विषयानुक्रमः ॥ ९८ ॥ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि प्रकीर्णकसूत्र- बृहद्विषयानुक्रमः [ प्रकीर्णकसूत्र - ६ “संस्तारक" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ।। ६ अथ संस्तारकप्रकीर्णकम् ।। ५८७* वर्धमाननमस्कारादि । ६००* संस्तारकस्याराधनादिस्वरूपत्वं, भूतग्रहणाद्युपमा च देवेन्द्रध्येयत्वं, सत्यस्मिन् सिद्धिपताका, शुक्लध्यानकेवलज्ञाननिर्शणलाभः श्रामण्यस्योत्कृष्टता । " ६४ ६१४ संस्तारकस्य परममङ्गलता, तद्वतः शौयं परमार्थलाभः, वसुधारोपमा, कल्याणरत्नमाकारस्नाहरणं, निर्वाणलाभाश्रव निरोधाद्यर्थत्रिकत्वात्तीर्थस्वं, निर्वाणस्य राज्यत्वं, राज्याभिषेकता, परमार्थता, देवानामपि विनय, चन्द्रादिवरप्रेक्षणीयस्वादि । ६२९* संस्तारके भ्रमणस्वरूपं शुद्धा शुद्ध संस्तारक स्वरूपम् । ५५ ५६ ६३७" संस्तारके प्रथमदिवसे लाभबहुता प्रतिसमयं कर्मक्षयः, तत्र चक्रिणोऽप्यधिकं सुखं नाट्याज्जिनवचने परा रतिः, वीतरागस्य विशुद्ध सुखे, सेवितगच्छा अपि भवे मनाः । ५६ ६३८* अन्तेऽपि संस्तारकादात्मनः पथ्यम् । ६४० आत्मैव संस्तारकः, संस्तारके यथाख्यातत्वम् । ६४१ वर्षारात्रे तया हेमन्ते संस्तारकः । ५७ ५७ ७७४* अर्णिकापुत्रस्य स्कन्धकशिष्याणां दण्डकस्य सुकोशल, अवन्तीकुमालस्य कार्तिकार्यस्य धर्मसिंहस्य चाणक्यस्य अमृतघोषस्य चण्डवेगस्य ललितघटायाः सिंह सेनस्य कुरुदत्तस्य चिला तीपुत्रस्य मजसुकुमालस्य वीरशिष्ययोश्वाराधनायां दृष्टान्ताः । ५९ ६७८* सागारप्रत्याख्यानं, पानक व्युत्सर्जनं च सर्वक्षामणा, सर्वापराधक्षामणा ६८४* उत्तमार्थानुमोदनं, चतुर्गतिसुख ~ 303~ दुःखसारणं नरकेऽवशासनं देवमनुजस्ये पराभियोगः, तिर्यक्त्वे भीमवेदनादि, अतीतजन्ममरणा नन्त्यम् । ६८६* मरणभय जन्मदुःख चिन्तनाच्छरीरात्मान्यत्व चिन्तनाच्च ममत्वोच्छेदः । ५२ [आगम-२९] प्रकीर्णक-६ "संस्तारक" " ६८८" कायममत्वेन निर्विशेषदुःखम् । ६० ६२२* सङ्घस्य आचार्यादेः श्रमणसङ्घस्य जीवराशेश्व क्षामणम् । " ६९४० क्षामिताविचारादिरनन्तभवकर्म क्षपणम् । ७०९ अनुशास्ति गिरावप्युमार्थसाधनं, धर्मार्थ शरीरत्यागः, संस्ताकर्मवलीकम्प, ज्ञानिनो बहुकर्मक्षयः, संस्तारातृतीये भवे मुक्ति, सङ्घस्य महामुकुटत्वं चन्द्रक वेधसमत्व संस्तारकस्य, उपसंहारथ ६१ ६० Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रम: [ प्रकीर्णकसूत्र- “गच्छाचार ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादिविषयानुक्रमे ६४ बृद्विषया देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए स्ततस्तत्परीक्षा। न्दता, शिष्यवर्गानोदने आज्ञा- प्रकीर्णकानां ७२०" उन्मार्गस्थितमरिलक्षणम् । विराधना। ७२२* आचार्यस्याप्यालोचना। ७५८* गच्छकुगच्छलक्षणं गीतार्थमहिमा II ७२५ सङ्महादिहीनः सामाचार्यग्राहकः । अगीतार्थनिन्दा च अगीतार्थकुशीमार्गादेशकश्च सूरिईरी। लादिसंसर्गवर्जनम् । ७२७* स्मारणादिमान् भद्रका गुर्वबोधकः | ७५९ कुगच्छर क्षणम् शिष्यो वैरी। | ७६७* गच्छाबासे फलं, गच्छवासिलक्षणं च। ७२९* गुर्वनुशासनविधिः। . ७३०* सचारित्रिलक्षणम्। ७६८* आहारकारणानि। ॥ ७ अथ गच्छाचारप्रकीर्णकम् ॥ | | ७४०* सन्मार्गोन्मार्गस्थितसूरि लक्षणानि। ,७७५* ज्येष्ठसन्मानं आर्याकल्पाभोगः ७१.* मङ्गलाभिधेयादि। ,७४५* शुद्धकथकस्य संविनपक्षता संविझ तदङ्गोपानाध्यानं च गच्छे । ७१६ गच्छचासेऽपि तन्निरपेक्षाणां भव- पक्षलक्षण च। ६३/ ७७२* आर्यासंसर्गवर्जनम् । ६६ वृद्धिः, निपुणगच्छे वासः। ७४८केषाञ्चित्सूरीणां नामग्रहेऽपि प्राय- | ७८०* भ्रष्ट चारित्रस्य निग्रहः । का ७१७* गच्छस्य मेढ्यादिभूत आचार्य- श्चित्तं, प्रतिपृच्छादिरहितत्वे स्वच्छ | ७८४* संनिहितादिवर्जन, निभूतस्वभाव- 1 ॥१०॥ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [आगम-३०] प्रकीर्णक-७ “गच्छाचार' । ~304~ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रम: [ प्रकीर्णकसूत्र- ७ "गच्छाचार" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्रीउपांगादि त्वादि, नानाभिग्रहाः, पृथ्व्याद्यः | आर्याऽध्यापनवर्जनं, स्त्रीराज्यकुत्सा, कथा, क्लेशः, अनालोचनं, वेष्ट- कीर्णकाना विषयानुक्रमे पीडकत्वं च। ६६ मण्डल्यामार्याऽनागमः, कषाया- लादिप्रयोगे दुर्गच्छता आर्याणाम् ।६९ द्विषयानु ७८५* खर्यापमार्जनेन दयाहीनत्वम्। ,, नुदीरकत्वं, कषायरोधः, बहवो ८३१ प्रापूर्णकावत्सलत्वं गतिविभ्रमादियु७८६* जलवर्जनं, ज्वलनोज्ज्वालनवर्जनं, गीतार्थाः, अशूनत्वं, चारित्रोज्ज्व- तत्वं बहुश उच्छोलनादि च न गच्छे। यतनया स.रूपिकादिभिः कारण, लत्वं, क्रयविक्रयवर्जन, सुविहिते पुष्पादिसंघट्टनादिवर्जन, हास्यक्री- वासश्च । ६८८४० तरुणी स्थविरान्तरा, धावनादि- . डादेः स्त्रिया बालादिकानामपि ८१६* उपाश्रयस्यैकक्षुल्लादिना क्षुल्लि । वर्जिका, समीपे न खराद्याः, पशवः न करतनुस्पर्शस्य च वर्जनम्। ६७ कादिना वा न रक्षा। भुक्तयोगादि, अनालस्यादिगुणा७९४ अई तोऽपि स्त्रीकरस्पर्शे निर्गुणत्वम् । ८१७* बहिःश्रमणीवसती दुर्गच्छत्वम् ।। श्वार्याः संविनादिगुणाः, उत्तरप्रत्युत्तर ८२० एकाकिश्रमणश्रमणीजल्पे जकार- बर्जिकाः गणिनीपृष्ठिस्थितभाषिका, ८१४ अयोग्यादीक्षणं, निर्गुणनिर्धाटनं, मकारादिजल्पे गृहस्थभाषाजल्पे च । गुप्तिविभेदानाख्यायिकाश्च । ७० शुषिराणामपरिभोगः, शुक्ल वस्त्र, दुर्गच्छत्वम् । ,,८४२ विहारभेदेऽदर्शनादि, धर्मोपदेश । हिरण्याचस्पर्शः,आर्या प्रतिग्रहाभोगः, ८२८ चित्ररूपत्वं, सीवनादि, सविलास- | मुक्त्वा न भाषणम् । सदौषधाभोगः, एकवीसावर्जन, गत्यादि, गृहस्थगृहे कथा, रात्री. |८४३° गृहस्वभाषायां मासोपवासाद्यपि । । निष्फलम् । ८४६* महानिशीथादेरुद्धारः, उत्तमता गच्छाचारस्य फलं च। SEXXEXI RARE: 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~305 Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि प्रकीर्णकसूत्र-बृहद्विषयानुक्रमः [ प्रकीर्णकसूत्र- ८ "गणिविज्जा" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री उपांगादिविषयानुक्रमे ॥ १०२ ॥ ॥ ८ अथ गणिविद्याप्रकीर्णकम् ॥ ८४७* अभिधेयप्रामाण्यम् । ८४८* दिवसतिथिनक्षत्राद्यभिधेय निर्देश:,, ८४९ दिवसरात्र्योर्बलाबलत्वम् । ८५६* प्रतिपदादितिथीनां फलं बलाबलं च । 19 ८८६* गमनादिषु नक्षत्राणि सन्ध्याग 21 चैत्यपूजादिषु वयवयनक्षत्राणि । ७३ तादीनां स्वरूपं फलं च पादपोपगमनविद्याको चोपस्थापनादिकार्यारम्भविद्याधारण मृदुकर्मभिक्षागुरुप्रतिमातपः कर्मोपकरण ८९१* बवादीनि करणानि तदानयनो पाय, निष्क्रमणादिषु प्राह्माणि च। ८९३* निष्क्रमणादिषु गुर्वादयो वाराः ।,, ९०१ रुद्रादिमुहूर्तानां छायामानं, तत्कृत्यानि च । ७१५१४* शकुनानां पुंस्यादित्वं तत्कृत्यानि चलस्थिरराशिहोरादिकृत्यानि । ७४ ९२२० निमित्तानां स्वरूपं, तत्कार्य, तत्माबल्यं च । ७५ ९२८* तिथ्यादिषु निमित्तान्तेषु बलाबलविचारः । [आगम-३१] प्रकीर्णक-८ "गणिविज्जा" ~ 306~ प्रकीर्णकानां बृहद्विषया नुक्रमः | ॥१०२॥ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताण प्रकीर्णकसूत्र-बृहद्विषयानुक्रमः [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ “देवेन्द्रस्तव” ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥ ९ अथ देवेन्द्रस्तवकीर्णकम् ॥ ९२९ मङ्गलाभिधेयादि । "9 ९३४० आवकता वीरस्तुतिः । ९३८ देवेन्द्रतद्वाससंख्यास्थितिभवनबाहल्यादिरतिलयनो सावध्यादिप्रश्नाः । ९४२० उत्तरस्योपक्रमः । ९७३* भवनपतीनामिन्द्राः, तद्भवनसड़ख्या, उत्तरदक्षिणभेदेन स्थितिः । तद्भवनस्थानं सद्भवनस्वरूपाऽऽयामादि, दक्षिणोत्तरभेदेनेन्द्राणां नामानि भवनसङ्ख्या, अग्रमहिषीसख्या । २७८* जम्बूद्वीपादिसमश्रध्या आवासादी ७९ 37 " सङ्ख्या, असुरादीनामावासस्थानम् । ७९ महारूपद्धिकत्वं अभ्यन्तरबाह्यनक्षत्रत्वं च । ९९४ चमरादीनां (२०) वैक्रियशक्तिमानम् । १०२८* जघन्योत्कृष्टनिर्व्याघातेतरतारकान्तरम् । १०३६* अभिजिदादीनां चन्द्रसूर्यैयोगकालः । १०६३* जम्बूद्वीपादिषु चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रतारकसङ्ख्या, पिटकानि, पङ्क्यः, मेर्वनुचराः । ८५ १८६७ ज्योतिष्क चारेण सुखदुःख विधिः । ८३ ८० १००८ व्यन्तराणां भेदास्तन्नामानि च तद्वसतिः, भवनस्थान, भवन विस्तारः, दक्षिणोत्तरभेदेनेन्द्राः, तत्स्थितिश्च । ८१ १०१२* ज्योतिष्कानां भेदाः, विमानाकारः, ज्योतिश्चक्रबाहल्यं, 'चन्द्रसूर्यनक्षत्रमताराणां विष्कम्भादि । १०२१ विमानवाहकामराः । १०२६* चन्द्रादीनां मन्दशीघ्रगतित्वं, ८१ १०६९० तापक्षेत्रस्य वृद्धिहानी, बहिरन्तः संस्थानम् । ८२ २०७५* चन्द्रस्य वृद्धिहान्यादि, राहुगा [आगम-३२] प्रकीर्णक- ९ "देवेन्द्रस्तव” ८५ ssवरणं च । ८२ १०८६० नृक्षेत्राद्बहिरवस्थिता ज्योतिष्काः, परस्परान्तरितत्वं अन्तरमानं, एकशशिपरिवारब्ध । १०९०* ज्योतिष्काणां परापरे स्थिती, १०९६० द्वादश कल्पाः, ग्रैवेयकेषु नान्यलिङ्गनोत्पादः, व्यापन्नदर्शनानां "मैवेयके पूत्पादः । ~307~ " " ८७ ११११ सौधर्मादिषु विमानसङ्ख्या, स्थितिः, नवत्रैवेयकनामानि तद्विमानसङ्ख्या, स्थितिश्च । १११४* अनुत्तराणां नामानि दिव्यवस्था, स्थितिश्च । ક १.११८० कल्पमैवेयकानुत्तरसंस्थानानि, Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रम: [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ "देवेन्द्रस्तव" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) R प्रत सूत्रांक श्रीउपांगादिविषयानुक्रम यहां कीर्णकानां द्विषयानुक्रमः देखीए ॥१०४|| दीप क्रमांक के लिए देखीए AMARPRANEXTARAXECTED तदाधारस। विमानानां सङ्ख्या, वैमानिका- १२३०* सिद्धानां स्थानं, प्रतिघातादि, ११२५* भवनपत्यादीनां लेश्यावर्णः, द्यल्पबहुत्वं च। ९० संस्थानं, त्रिभेदावगाहना, अन्योशरीरमानं, स्थित्यनुसारेण शरीर-|११५२* सौधर्मेशानयोर्देवीविमानसङ्ख्या , | न्याबगाहना, लक्षण, स्पर्शना, मानकरणम् । अनुत्तराणां सुखस्पर्शगन्धाः, । ज्ञानदर्शने, सुख, म्लेच्छदृष्टान्तः, 10 ११२६ विमानपृथ्व्योर्मानं द्वात्रिंशच्छ । एकगर्भाश्च । १० नामानि, अव्याबाधत्वं च। ९५ तानि । १९६०* स्थितिविशेषेण देवानामाहारो- १२३५ अर्हता वन्दनमहिमस्तुति११३०* कायस्पर्शरूपशब्दमन:प्रवीचारा वासकालः। सिद्धिदानकीर्तनेनोपसंहारः। ९६ प्रवीचाराः। ,,११६८* सौधर्मादीनामवधिविषयः, ४४* विमानानां गन्धस्पर्शवर्णनं, नारकाद्या अवघेरबाद्याः।। ऊर्ध्वलोकविमानानां आवलिका- | १२००* सौधर्मादिषु पृथ्व्या चाहत्य, प्रविष्टानां पुष्पावकीर्णानां च विमानानां वर्णः देवदेवीवर्णनं, सङ्ख्या स्थान संस्थानं पर प्रासादासनवर्णनं च। ९३ स्परस्थितिः प्राकारादिभेदाश्च ।९० | १२०६ सिद्धशिलाया अन्तरं संस्थान११४७* भवनानां भीमनगराणा ज्योतिष्क- मायामादि बाहल्यं च। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥१०॥ ~308 Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए प्रकीर्णकसूत्र-बृहद्विषयानुक्रम: [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ "मरणसमाधि"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥ १० अथ मरणसमाधिप्रकीर्णकम् ॥ १३२७* आलोचनसंलेखनाक्षामणादि१२३६ मङ्गलाभिधेयादि। ९६ (१४)मरणविधिः। १०२ १३९३ सम्यक्त्वचारित्रप्रशंसा।। १०७ १२४५° अभ्युद्यतमरणे गुणवदाचार्याय १३३२ विनयफल, शुद्धिकारकस्वरूपं, १४२३* शुद्धिरुपध्यादित्यागः, तपशिष्यपृच्छादि । अष्टादशविधः, करूपः आलोचक उद्यमः, परिकर्म, विषयत्यागः, १२५१* आराधनोपदेशः दर्शनज्ञाना गुणाः, उपस्थापनास्थानानि(१०), संलेखना च। १०९ द्याराधना च। अतिचारालोचना, यथावत्कथनं, १.४४२४ कषायविषयवर्जन, समिति१२५५* दर्शनाऽऽराधना तत्फलं च। , दव्यभावशल्यवर्जन च। १०२ गुप्तियुक्तता, रागादेर्दुःखादि। १२५८ बालपण्डितमरणानां फलं, पण्डित१३४४५ अनाराधकाराधकलक्षणं भालो हेतुत्वं, अनिदानसा च। । ११० मरणस्वरूपम्। चनायाः तत्फलं तद्विधिश्च । १०३ १५३५ आतुरप्रत्याख्यानाध्ययनम् । ११६ १२७७* परिकर्मविधिः। १३५७ शस्त्रादिभ्योऽधिकं शल्यं दुर्लभ १५५८* सिद्धाधुपसंपत्तिः, वेदनायां । १२९३* पण्डितमरणविधिः। १०० बोधित्वहेतुश्च, शल्यभेदाः, अति सालम्बन, अभ्युद्यतमरणं, आराधना१३०१* कान्दर्पिकाद्या(५)भावनाः। , सेवाकारणानि, अज्ञातापराधक्षा विधिः, उत्कृष्टमध्यमजघन्या१३०४. समाधिपात्यप्राप्तियोग्याः। १०१ मणा च। राधनाफलं, धीराधीरयोमरण १३१० धर्मप्राप्तिदुर्लभता, कामानां १३६१ आलोचनादोषाः(१०),प्रायश्चित्त सुविहितस्य वैमानिकत्वादि।१८ - तुच्छता, विषयतृष्णानिन्दा च।.. विधिश्च । । १३१२* बालमरणस्वरूपम् । १३६३% द्वादशभेदं तपः। १०५ १३१३* मोहिनोऽप्यालोचनायामाराधक १३८४ स्वाध्यायप्रशंसा, श्रुतयोगफलं च । स्वम 'सवृत्तिक आगम सुल्ताणि [आगम-३३] प्रकीर्णक-१० "मरणसमाधि" ~309~ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रकीर्णकसूत्र-बृहविषयानुक्रम: [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ "मरणसमाधि" ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत ICI सूत्रांक यहां देखीए प्रकीर्णकांन वृहद्विषया नुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए RCRETREAKXEEXXX १५६९ अविचारानशनकारकगुणाः, घातादि वैतरण्यादि च, तिर्यक्षद्वेगा, अन्नकस्य चाणाक्यस्य द्वात्रिंश- निर्यामकगुणाश्च । नरत्वे भीषणता, समुद्रे वृक्षानेच द्घटायाः इलापुत्रस्य हस्तिमित्रस्य १५८९* आचार्यादिक्षामणा, अनशन वासः, कृतं मातुर्दुग्धं नयनोदकं च सुमनोभद्रादेः जातिमूकस्य कारकस्वरूपं, स्नेहदीपक्षयवरक्षयः चिन्तयित्वा ममत्वच्छेदश्च । १३१. स्थूलभद्रस्य दत्तस्य कुरुदत्तसुत संस्तारकस्य, तस्य विधिः स्वानं, १७३० आराधकलक्षण आप्रेरौद्रयोः । स्य सोमदत्तस्य अर्जुनस्य कृष्ण चतुर्विधाहारव्युत्सर्गश्च । १२० रागद्वेषयोश्च वर्जनं वेदनासहन,सन- स्य ढण्ढनस्य कालवेश्यस्य नन्द१६१४* निर्यामणाविधिः, अप्रमादक्षमादि कुमारस्य, जिनधर्मश्रेष्ठिनः कस्य इन्ददत्तस्य अशकटपितुः कुटुम्बवैराग्यं च। । १२२ मेतार्यस्य चिलातीपुत्रस्य गजसुकु- आषाढभूतेः तिरश्चः वानरयूथपतेः १६३९* गतिषु सुखदुःखे वेदना क्लेशः मालस्य नभःसेनस्य अवन्तीसुकु- सिंहसेनगजस्य गन्धहस्तिनः जन्ममरणे च गर्भवासदुःखं, जन्म- मालस्य चन्द्रावतंसकस्य दम भुजङ्गयोश्च दष्टान्ताः। १३२ दुःखं, गर्भेऽशुचिता, वैमानिक दन्तस्य स्कन्दकशिष्याणां | १७७२५ पादपोपगमनविधिः। १३३ स्यापि योन्यन्धकारे कलमले भैरवे- धन्यशालिभद्रयोः सुरचितादीनां | १७७८* इङ्गिनीमरणविधिः । , ऽवतार: गिरिगुफायां वासः, नरके पाण्डवानां दण्डस्य सुकोशलस्य १७८४* आहारत्यागोपदेशः शिलातलात्रप्वादिपानं उद्दामशब्दश्रवणं वर्षेः क्षुल्लकस्य धर्मयशसः दावनशनं च। REE 'सवृत्तिक आगम RESEN सुत्ताणि १३४१०६॥ ~310~ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि प्रकीर्णकसूत्र-बृहद्विषयानुक्रमः [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ “मरणसमाधि" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) श्री उपांगादिविषयानुक्रमे १०७ ॥ १७८५० भक्तपरिज्ञास्थानम् १८०४ उपसर्ग जन्मादेः गतिदुःखानां चचिन्तनम् | १८७५ भावनाद्वादशकम् । पृष्ठांकः भागः पंक्ति: २ १ २ २ 3 १३४ | १८९६ मनुष्यजाते वैचित्र्यं नरत्यादेदोंलभ्यं मात्रादेरत्राणत्वं दुःखा नुपशमकत्वं रोगादिपीडा, धर्मस्य दुःखप्रतिपक्षत्वं जिन मतमहिमा च । १४२ शुद्धिपत्रकम् ર ی १३० १४० अशुद्धम् भिच्छो शुद्धम् निच्छो पृष्ठांकः भागः पंक्ति अशुद्धम् आहाराभाव्यादि ६१ ६६ २ २ ७६ १९, ४ त्रिंशाधि० १९, १३९० त्रिंशद्विध० १० ८ समूमिचद्रिय० संमूर्च्छिमपंचेन्द्रिय० पृथिव्यादिनाम० पृथिव्यादीनाम० ટ २ पृथ्व्यादिनामा० पृथ्थ्यादीनामा० ૯૮ ६ १० १४ ५९ ६१ इति श्रीपपातिक-राजप्रश्नीय-जीवाजीवाभिगम-प्रज्ञापना-चंद्रसूर्यप्रज्ञप्तियुग्म जंबूद्वीपप्रक्षप्ति - उपांगपंचकमय निरयावलिकाचतुःशरणादिप्रकीर्णकदशकानां सूत्रसूत्रगाथानामकारादिक्रमः लघुवृहंश्च विषयानुक्रमः समाप्तः । श्रीभगमोद्धारसंग्रहे भागः २ १८९२ उपसंहारः । १४२ ।। इति किम् ॥ | ॥ इति श्री चतुःशरणादिप्रकीर्णकदशकस्य वृर्धन् विषयानुक्रमः ॥ ર 311~ . ११ भव्य सञ्झ्यादिजीवा भव्य सम्श्यादिजीवा १४ कृताभिषेकजिनानयम् कृताभिषेकजिना - नयनम् १० ? शुद्धम् आहारभव्यादि १९ २९ २० २१ प्रकीर्णकनां बृहद्विषया नुक्रमः शुद्धिपत्रके च १॥ १०७॥ मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्र लघुबृहत् विषयानुक्रमः परिसमाप्तः Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: भाग-4 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च उपांग+प्रकीर्णक-सूत्र लघुबृहविषयानुक्रमा (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: “उपांग+प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम:" नाम्ना परिसमाप्त: आगम-संबंधी-साहित्य' श्रेणि, भाग-४ ~312 Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नन्द्यादिनां विषयानुक्रम: नमो नमो निम्मनदसणम्स मानंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर 'नन्दी-आदि-सप्तसूत्र' लघु-बृहविषयानुक्रम: [आगम-संबंधी-साहित्य] आदय सपादक ज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुनः संकलनकर्ता मनि Ri(M.Cor 01/02/2017, बुधवार, २०७३ महा शुक्ल साहित्य श्रेणि भांग-४ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ~313 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ ["---"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ANANAANAANANJARNARNARWARNARTARWARWAAWAANAANANAS श्री-आगमोदयसमिति ग्रन्थोद्धारे ग्रन्थाकः ५५. श्रीनन्दी-अनुयोगद्वार-आवश्यक-ओपनियुक्ति-दशवकालिक-पिण्डनियुक्ति-उत्तराध्ययनानां सूत्रपत्रगाथानियुक्तिमूलभाष्यभाष्याणामकारादिक्रमः अंकशुद्धिः लघुहंश्व विषयानुक्रमः । (नन्द्यादि विषयानुक्रमः) neecteeप्रकाशक:-श्री आगमोदयसमितेः कार्यवाहकः जीवनचन्द्र साकरचन्द्र झवेरी। इदं पुस्तकं मुम्बय्या निर्णयसागरमुद्रणालये कोलभाटवीथ्या २६-२८ तमे गृहे रामचंद्र येसु शेडगेद्वारा मुद्रयित्वा प्रकाशितम् । प्रतयः १२५०] वीरसंवत् २४५४, विक्रमसंवत् १९८४, सन १९२८. [वेतनं १०२-०-०. PUUVINNUMAMMUTUUNUUMAUNUMINUM WARNANWARNANTARWARNE ONIANNANNAANAANAND सुत्ताणि ... मूल संपादकेन संपादित: 'ओरिजिनल टाईटल' पेज ~314 Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ ["-"] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) विजयतेतरां श्रीमद्गुणपतिद्वादशाङ्गात्मा. विदितपूर्वमेतद्विपश्चितां यदुतागमवाचनाप्रकाशकारिण्या यथार्याभिधानया आगमोदयसमित्या श्रीमजिनवरेन्द्रवदनविनिर्गतत्रिपदीहिमवजातप्रभवः कोष्ठबुद्धिकत्वायनन्यसाधारणगुणगणभृद्भिर्गणभृद्भिः रचित आगमनिचय ऐदंयुगीन श्रमणस्योपकृतये वाचनायां सौकर्याय च मुद्रापितः, मुद्रापिते च तस्मिन् उत्तमोत्तममुद्रणालय सत्कोत्तमोत्तमाक्षरैर्जातमस्त्येव समेषां पाठकाध्येतृविलोककानां शर्मानूनं, परं येषामन्यग्रन्थावलोकनेऽनेकत्र दुर्बोधा विषया अवभासेरंस्तेषां यथार्थतया तद्विषयमूलस्थान जिज्ञासापूरणाय सूत्राकारादिक्रमयुतो विषयानुक्रमोऽयमुपदीक्रियमाणो विदुषां करिष्यत्युपकारमसमं, विषयानुक्रमो लघुस्तावद् अध्ययनानामनुक्रमेण महांस्तु विषयदर्शनपुरस्सरं वादादिस्थान विशेषसूचनयाऽलंकृतः, क्षन्तव्योऽपराधोऽत्र यत् मुद्रणसौकर्यांय सर्वेषामागमानां स्वानि सूत्राणि स्वा गाथा चैकीकृताः, प्रतिवाक्प्रयं निर्युक्तिगाथा भाष्यगाथा अपि च संमील्य विवक्षिताः, अन्यथा प्रतिस्थानं श्रुतस्कन्धाध्ययनोद्देशसूत्रगाथानां पृथक् पृथगंकन्यासेन निर्युक्तिमूलभाष्यभाष्यध्यानशतकसंग्रहणीगाथादीनां पृथक्पृथगक्षरोपन्यासेन च गौरवं स्यात्, या च क्षतिर्मुद्रणे जाताऽङ्कानां विहारादिना कारणेन तस्याः मार्जनाय चात्राङ्कशुद्धिरादाववधृता लघ्वी महती च सा विलोकनीयाऽवश्यं, प्रारंभे दृष्टिगोचरीकार्यश्च संकेतसूचकोऽधिकारश्च सहैव तेन मुद्रापितो मतिमद्भिः, परशास्त्रगतसूत्रसूत्रगाथानिर्युक्तिमाप्यादिस्थान जिज्ञासायां अकारादिक्रमावलोककानां चोपकरिष्यति | स्पष्टं विशिष्टशङ्खशुद्धिपत्रिकाऽकारादिक्रमस्य पुरतो मध्ये घृतेत्यर्थयन्ते आनन्दसागराः १९८४ पौषकृष्ण १३ शुक्रवासरे इडरदुर्गे. शान्ति कृतः शान्तिजिनस्य मूर्त्या, दुर्गस्थ चैत्यालयमाश्रयन्त्या । अधिष्ठिते हीडरधानि एषा, प्रस्तावनाऽकारि जनावबुद्धयै ॥ १ ॥ ... पूज्यपाद आनन्दसागरसूरीश्वरेण लिखितं प्रास्ताविक -कथनं ~315~ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम पृष्ठांक: | पृष्ठांक: आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: क्रमांक: | आगम का नाम | | लघुअनुक्रम बृहदनुक्रम पृष्ठांक: | पृष्ठांक: क्रमांक | आगम का नाम अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः . आचार . उपासकदशा सूत्रकृत् ०८ . अंतकुद्दशा . स्थान अनुत्तरोपपातिकदशा समवाय प्रश्नव्याकरण भगवती . विपाकश्रुत ०६ . ज्ञाताधर्मकथा ०५ ... - - -- उपांग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: |. औपपातिक | १३ . राजप्रश्नीय १४ . जीवाजीवाभिगम १५ . प्रज्ञापना १६+१७. सर्य+चन्द्र-प्रज्ञप्ति १८ . जंबुदवीपप्रज्ञप्ति - निरयावलिका - कल्पवतंसिका ।। २१ . पुष्पिता । २२ . पष्पचलिका २३ . वृष्णिदशा । RECENT ~316~ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम पृष्ठांक: | पृष्ठांक: आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: | लघुअनुक्रम बृहदनुक्रम क्रमांक: आगम का नाम | | आगम का नाम पृष्ठांक: | पृष्ठांक: | प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: . चतु:शरण २९ . संस्तारक आतुरप्रत्याख्यान 30 . गच्छाचार . महाप्रत्याख्यान . गणिविज्जा भक्तपरिज्ञा ३२ . देवेन्द्रस्तव - तंदुलवैचारिक ३३ . मरणसमाधि ... [३४-३९] छेदसूत्र-वृत्ति का विषयानुक्रम पूज्य आगमोद्धारकश्रीने नही बनाया ... मूल-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः २८ स ४० ४१/१ ४१/२ . आवश्यक . पिंडनिर्यक्ति • ओघनियुक्ति ३३७ । ३४७ ।। ४२ ३९४ | ०८६ ।।४३ ३६५ । ०५७ . दशवकालिक . उत्तराध्ययन ----------------------- ३२५ ३२६ । चूलिका-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: • नन्दी ३२३ । ३२८ ।। ४५ . अनुयोगद्वार ३२३ ३३१ ~317 Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत-अनुसार कुल-सूत्र कुल१०७ । दीप अनुक्र २१४ २१८ ३६५ ०२१ واه و | واه ؟ ७८३ १६९ १०० १७८ १३१ ०४ ०२० । ००२ ००५ आगम-सूत्राणाम् प्रत-क्रमांक: एवं दीप-क्रमांक: आगम प्रत-अनुसार आगम का नाम । दीप | आगम | आगम का नाम क्रम कुल-सूत्र | कुल-गाथा | अनुक्रम | क्रम . आचार ४०२ | १४७ | ५५२ | १६ . सूर्यप्रज्ञप्ति ०२ . सूत्रकृत ०८२ ७२३ ८०६ १७. चन्द्रप्रज्ञप्ति ०३ . स्थान ७८३ १६९ १०१० १८. जंबूदवीपप्रज्ञप्ति |. समवाय १६० ०९३ ३८३ १९ . निरयावलिका ०५ . भगवती ८६९ ११४ १०८७ २०. कल्पवतंसिका ०६ . ज्ञाताधर्मकथा १६५ २४१ २१ - पुष्पिता ०७. उपासकदशा ०५८ ०७३ २२ . पुष्पचूलिका ०८ . अंतकृद्दशा ०२७ ०१२ ०६२ २३. वृष्णिदशा ०९. अनुत्तरोपपातिकदशा ००६ ००२ ०१३ २४ . चतु:शरण १०. प्रश्नव्याकरण ०१४ ०४७ २५. आतुरप्रत्याख्यान ११ . विपाकश्रुत ०३४ ००३ ०४७ २६ . महाप्रत्याख्यान १२ . औपपातिक ०४३ २७. भक्तपरिज्ञा १३ . राजप्रश्नीय ०८५ ०८५ | २८ . तंदलवैचारिक १४ . जीवाजीवाभिगम २७३ ०९३ ३९८ २९ . संस्तारक १५ . प्रज्ञापना | ३५२ | २३१ । ६२२ । ३० . गच्छाचार ००६ ००२ ०११ ०५७ ०१३ ००१ ००३ ००२ ००५ ००१ ०६३ ०६३ ०७१ وااه १४२ १७२ १३९ १३३ १४२ १७२ १६१ १३३ १३७ १३७ • आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र- १ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकरीने संपादित नही किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नहि ~318 Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम क्रम आगम का नाम ३१ * गणिविज्जा ३२ * देवेन्द्रस्तव ३३ * मरणसमाधि *४० ४१/१ आवश्यक * पिंडनिर्युक्ति आगम-सूत्राणाम् प्रत- क्रमांक: एवं दीप - क्रमांक: प्रत- अनुसार दीप कुल - सूत्र कुल - गाथा अनुक्रम ----- ०५० ०८२ ३०७ ६६३ ०२१ ६७१ ०८२ ३०७ ६६४ ०९२ ७१२ आगम आगम का नाम क्रम ४१/२ * ओघनिर्युक्ति ४२ * दशवैकालिक ४३ * उत्तराध्ययन ४४ * नन्दीसूत्र ४५ * अनुयोगद्वार प्रत- अनुसार दीप | कुल-सूत्र कुल-गाथा अनुक्रम 319~ ०२१ ०८८ ०५९ १५२ ८१२ ५१५ १६४० ०९० १४१ ११६५ ५४० १७३१ १६३ ३५० * आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र- १ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकश्रीने संपादित नही किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नह Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ नन्दी-आदि-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ] इस प्रकाशन की विकास-गाथा ] * यह प्रत "नन्यादि-सूत्र लघुबृहविषयानुक्रमौ” नामसे सन १९२८ (विक्रम संवत १९८४) में 'आगमोदय समिति' नामक संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराजसाहेब | - पूज्यपाद् आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेबने 'नन्दी, अनुयोगद्वार, आवश्यक' वगैरेह मूल तथा चूलिका-सूत्रो के सूत्र एवं उस पर पूर्वाचार्य रचित वृत्ति आदि का संपादन किया था | उन प्रतोमे जो मूलसूत्र, गाथा, वृत्ति आदि थे उन सभी सूत्रादि के विषयो का अनुक्रम संक्षेप और विस्तार से लिखकर इस प्रतमे प्रकाशित करवाया है | अर्थात् ४+१ मूलसूत्र और नन्दी आदि चूलिका-सूत्रो के लघु और बृहत् विषयानुक्रम के रचयिता, संपादक और प्रकाशक श्री आगमोद्धारक आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब ही है * पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेवश्रीने इसी तरह अंगसूत्रो, उपांगसूत्रो और प्रकीर्णक सूत्रो के सूत्र-आदि के विषयो का अनुक्रम भी संक्षेप और विस्तार से लिखकर संपादन और प्रकाशन करवाया है | * हमारा ये प्रयास क्यों? - आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, अब तक मेरे प्रकाशित किये हुए पुस्तको के १,००,००० से ज्यादा पृष्ठ हो चुके है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे प्रत संबंधी उपयोगी माहिती लिख दी है, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौन से वर्ण का क्रम चल रहा है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके | + पूज्यपाद आगमोद्धारकरी ने आगम संबंधी ५२ विषयो को वर्गीकृत किया था, आज भी उनमे से ऐसी कई प्रते मिलती है, जिसमे ये विभाजन-क्रमांक देखने को मिलते है, उनमे से थोडे विषयो का काम हुआ भी है, जो मुद्रित स्थितिमे भी प्राप्त है | * शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म.सा. की प्रेरणा से और श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'आगम-संबंधी-साहित्य' भाग-4 का मुद्रण हुआ है, हम उनके प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है। मुनि दीपरत्नसागर... ~320 Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आद्य संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा. ] नन्दी - आदि सप्त- सूत्राणाम् लघु-विषयानुक्रमः पुनः संकलनकर्ता → आगम दिवाकर मुनि दीपरत्नसागर (M.Com.,M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि) ~321~ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ ["--"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां सूत्रादीनां चिहावली. देखीए 9463 57 १५२ । र अनुयोगद्वाराणि दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम SSOSIAS नन्यादिसप्तसूच्या अकारादिक्रमः लध्वी बृहती च अङ्कसूचा लघुद्विषयानुक्रमौ च, तत्र सूत्रादीनां चिढावली ॥ २ अनुयोगद्वाराणि १४२ * ५ दशवकालिकसू. ५१५ (२१ । एतैश्चिकैः सूत्रादीनि शास्त्रक्रमञ्च सूत्रगाथा ?* यः, यथाऽकाराविक्रमे 'आमि ३७३ नियुक्तिः१ . जिबोहियणाण' ३-१ एवमस्ति, (६३+ तथा च तृतीयशास्त्रस्य श्रीमदावमूलभाष्यं १४ २१. ६ पिण्डनियुक्तिः। १९७१ श्यकस्य नियुक्तरिय प्रथमा गाति, भाष्यं १ ३ आवश्यकसूत्रम् । 2 ३७+ एवं तत्तत्सूत्रभाष्यादिषु ज्ञेयं । य-| २५७+X ध्यानशतकम् । १ काराकारणकारनकारसंयोगपुरक।१०५ इस्खदीर्घादेशकाविलुप्तालुप्तवादिन समणि: +१ +७१ भेदभागत्र । ८८ ओपनियुक्तिः। २८१२७ रत्तराध्ययनानि। १६४०%23 ३२२+ ४५+1 LACEMEDA सुत्ताणि १ नन्दीसूत्रम् ~322 Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताण नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ "नन्दी + अनुयोग" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) नं. अ.आ. ओ. द.पि. उ. ॥ १२९ ॥ अथ नयादिसप्तसूत्र्या लघुर्विषयानुक्रमः । १ नन्दीसूत्रम्. विषयः विषयकः गायक: १ तीर्थंकरगणधराचावलिका ४३* २ पर्षद ४७* ३ अवधिज्ञानम् सू. १६ ।। ५७ १८ ॥ ५८* २३ ॥ ६०* ४ मनः पर्यवज्ञानम् १११ ५ केवलज्ञानम् १३९ ६ मतिज्ञानम् ३७ ॥ ८०* १८४ ७ श्रुतज्ञानम् ५८ ।। ८५० २४७ पत्रांकः ५४ ६४ ९८ ~ 323~ २ अनुयोगद्वाराणि. १ आवश्यक श्रुतस्कन्ध निक्षेपाः ५७॥५० ४३ २ उपक्रमाधिकारः १४९।। १२२ २४८ १ आनुपूर्वी १२०।१६ १०४ | २ दशनामाधिकारः १३०॥९२* १५० ३ प्रमाणद्वाराधि. १४६ ।। १२२* २४१ ३ निक्षेपाधिकारः १५०।१३२ २५७ अनुगमाधिकारः १५१ ।। १३५* २६१ ५ नयाधिकारः १५२|| १४१* २६७/ लघुः विष यानुक्रमः ॥ १२९ ॥ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ "आवश्यक" ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) नं. अ.आ. ओ. द.पि. उ. ॥ १२९ ॥ ३ श्री आवश्यकसूत्रम् नि. भा. प. १ सामायिकाध्ययनम् पीठिका ५० ७९ प्रथमा वरवरिका २२० ३० १३६ द्वितीया वरवरिका ४६१ १११ १८८ उपसर्गाः ५२६११४२२७ समवसरणं ५९० ११९२३९ गणधरवादः ६५९ २५६ दशधासामाचारी ७२३ १२३ २७१ निडववतव्यता ७८७ १४८ ३२५ शेष उपोद्घातनिर्युक्तिः ८७९ १५१ ३७४ नमस्कारनिर्युतिः १०२४ ४५२ सामायिकनिर्युक्तिःसू. १-१०६६ १८९४९० २ चतुर्विंशतिस्तवाध्ययनम् * १११३ २०५५१० ३ वन्दनाध्ययनम् सू. २ १२४२५५० ४ प्रतिक्रमणाध्ययनम् सू. २५।। ९* १५२४७६३ ~324~ ७२ ध्यानशतकम् १०५ ६१ पारिष्ठापनिकानि० १३७० २०६ ६४ संग्रहणी ७१ योगसंप्रहनिर्युक्तिः १४१७ २१६ ७२ अखाध्यायनिर्युक्तिः १५१४ २३१ ७५ ५ कायोत्सर्गाध्ययनम् सू. ३५ नि. १६५९ मा. २४१ ८० प्रत्याख्यानाध्ययनम् सू. ५४।२१ नि. १७१९ भा. २५७ ८६६ । लघुः विषयानुक्रमः ।। १२९ ।। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ ["ओघनियुक्ति, दशवैकालिक, पिंदनियुक्ति"] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ४ ओपनियुक्तिः ५ पिण्डैषणाध्ययनम् ६ पिंडनियुक्तिः प्रतिलेखनादीनि द्वाराणि ३३० १९१ १२७ १ प्रथम उद्देशः १५९४२३६६१ १८० नि. मा. प. पिण्डद्वार ६६६ ३१२ २०७ २ द्वितीय उद्देशः २०९* २४६६२ १९० १ पिण्डनिरूपणम् ७२ १५ २८ उपधिनिरूपणं ७६३ ३२२ २२२ ६ महाचारकथा ( धर्मार्थकामाध्यय नम्): अनायतनवर्जनं. ७८५१२४ २७७* २७० २०६ २ उमदोषाः १०३ ३०११ ३ स्पादनादोषाः ५१५ ३७१४६ प्रतिषेवणाद्वारम् ७८९ २२४ ७ वाक्यशुद्धयध्ययनम् ३३४* २९४ २२३ ४ पक्षणादोषाः ६२८ १७० आलोचनाद्वार ७९२ २२५ ८ आचारप्रणिध्यध्ययनम् ३९८०३१०२३८ ५ प्रासैषणाक्षेषाः १ १७८ विशुद्धिद्वारम् ९ विनयाध्ययनम् ८१२ २२७ १ प्रथम उद्देशकः ४१५१३२९ २४५ ५ दशवकालिक २ द्वितीय उद्देशकः ४३८५२५१ --x--x--x--x-- १ ठुमपुष्पिकाध्ययनम् ५१५३ ८२ ३ तृतीय उद्देशकः ४५३ २५४ २ श्रामण्यपूर्विकाध्ययनम् १६६१७९ ९९ ४ चतुर्य उद्देशकः सू.२०॥४६०२५८ ३ क्षुल्लिकाचारकथा ३१४२१७ ११८ १० समिश्वध्ययनम् ४८११३६० २६८ ४ षड्जीवनिकाध्ययनम् सू. १५॥५९* नि. ११रतिवाक्यचूडा सू.२१४९९२३६९२७७ २३५ भा. ६० प. १६० १२ विविक्तचर्याचूडा ५१५१३७३ ६३ २८४ सुत्ताणि ~325 Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ ["उत्तराध्ययन ] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां लघुः विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम १०३२६* हुबपत्रकाध्वयनम् ३०९३४१२४९४७७ प्रवचनमात्रध्ययनम् ४६३ ५२० ११३५९ बहुभुतपूजाध्यय० ११७३५३/२५९९१* यशीयाध्ययनम् ४८२५३१ १२४०५० हरिकेशीयाथ्यवनम् ३२७३७३२६१०४३ सामाचार्यध्ययनम् ४८९५४७ १३४४००चित्रसंभूतीयाध्ययनम् ३५७३९७२७१०६०%खलहीयाध्ययनम् ४२८५५४ ७ अथोत्तराध्यनानि १४४९३* इषुकारीयाध्ययनम् ३७२४११० २८१०९६*मोक्षमार्गाध्ययनम् ५०५५६९ १४००विनवाव्ययनम् २९८८ सू. सम्यक्त्वपराक्रमा०५१३५९८ ६४ १६/१५५०९० सभिक्षुकाध्ययनम् ३७९४२० २९४७ परीचहाच्यवनम् १सू.१४१ १३९ १६५२६* प्रमचर्यसमा०१०॥३८५४३०१ ३०११३४ तपोमार्गाध्यवनम् ५१६६१० ४१०३१११५५४ चरणविध्यध्ययनम् ५२१६१८ ३११४० चतुरजीयाध्यय०१-८-२-१८८१७५४७७ पापभमणाध्ययनम् ३९०४३६१ ३२१२६६*प्रमावस्थानाध्ययनम् ५२९६३९ ४ १२७० संस्कृताध्ययनम् २०७२२७१८६००% संवतीयाध्ययनम् ४०४४५०, पन २०० ८ २००७ सपनायायवनम् ४०४४५०३३१२९१ कर्मप्रकृत्यध्ययनम् ५३६६४८ ५१५१०मकाममरणाण्ययनम्न३५२५४१९६९८७ मृगापुत्रीयाध्ययनम् ४२१४६६० १२६/३४ १३५२ श्याध्ययनम् ५४५६६२ ६१७वकनिर्मन्बी०२४३-२०-२७०/२०७५८० महानिन्धी०४२८-४५-४८१३५१३७७७अनमारमार्गाच्य० ५५१६६८ ७२०४ औरभ्रिकाध्ययनम् २४९२८५/२१७८२७ समुद्रपालीयाम्य० ४४२४८८१६१४जीवाजीववि० ५६२ ७१३ | ८२२७० कापिलीयान्वयनम् २१९२९७२२८३१रयनेमीयाध्ययनम् ४५०४९० ९२८९० नमित्रम्याध्ययनम् २७९३२०२३ ९२०० शिगौवमीवाय० ४५७५१२ इति उचराध्ययनानि सुत्ताणि ~326 Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आद्य संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा. ] नन्दी - आदि सप्त- सूत्राणाम् बृहत्-विषयानुक्रमः ← पुनः संकलनकर्ता → आगम दिवाकर मुनि दीपरत्नसागर (M.Com.,M.Ed., Ph.D.,श्रुतमहर्षि) 327~ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४४] चूलिका-१ 'नन्दीसूत्र' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) 44456456 नन्दीश्रवृद्धविषयानुक्रमः । ॥ तीर्थकरगणधराद्यावलिका ॥ नन्यादिसप्तसूत्र्या बृहद्विषयानुक्रमः । गाथादि (१-२) जिनसद्वचनस्तुतिः १* भगवतीर्थंकृत्स्तुति ( जीवसिद्धिः, शाब्दप्रामाण्यं तस्यानुमात्वनिरासः, मवविमोचनखण्डनम् ) २# वर्द्धमानखामिनमस्कारः (चेक्ापौरुषेयत्वनिरासः) ३* श्रीमहावीरस्यातिशयद्वारेण स्तुतिः । ( सर्वज्ञवादः, रागादेरत्यन्द- २३ क्षयः, नैरात्म्यनिरासः, सा पत्रं १ शामुक्तिनिरासः, भेदाभेदसिद्धिः ) ४- १७* श्रीसङ्घस्य नगर-चक्र-रथपद्म-चन्द्र-सूर्य-समुद्र- मेदभि रुपमा २ | १८-१९* तीर्थकरावलिका | २०-२१० गणधरावलिका २२* शासनस्तुतिः १५ २३- ४२# स्थविरापलिका ४३* कृतश्रुतनमस्कार ज्ञानपर्वप्ररूपणां प्रतिजानीते झेलपनकुटादिभिर्योग्यायो यत् । (दृष्टान्ताः ) ४४# ~328~ | ४५-४७* विज्ञाविशदुर्विदग्धपर्यदः ६३-६४ सु. १ ज्ञानभेदाः (५) (भेदपचकवकमसिद्धिः ) प्रमाणद्वैविध्यम् (मतिश्रुतयोः पारो ) इन्द्रियनोइन्द्रियप्रत्यक्षे इन्द्रियप्रत्यक्षाणि ( ५ ) नोइन्द्रियप्रत्यक्षाणि ( ३ ) अबधिभेदो भवत्ययौ द्वौ क्षायोपशमिको द्वौ (क्षयोपशमसिद्धिः ) गुप्तोऽवचिभेदषटुम् २ ४२ ४७ ३ ४८ ४ ४८ ५ ४८ ५४ 10 ५४ ८ ९ [आगम-४४] चूलिका-१ 'नन्दीसूत्र' ६५ ७१ ७५ ७६ ७६ ७६ ८१ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४४] चूलिका-१ 'नन्दीसूत्र' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां ॥ ॥१३ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम नन्दात्री १० आनुगामुकेऽन्तगतमध्यगती १९ केवलज्ञाने सयोग्ययोगिकेवलम् ११२ * सिक्या लक्षण, तद्रष्टा(३) (नियतानियताववधी)८१ २० द्विभेदसिद्धकेवलज्ञानम् । (स ताश्च (२६) १४४६ यानुक्रम ११ अनानुगामुकम् त्पदादिभिः (८) क्षेत्रका- ६६-६८ वैनयिक्या लक्षणं तदृष्टा१२॥४८-५५४वर्द्धमानावधिः, जय लादीनां (१५) प्ररूपणा) ११३ * ताश्च (१५) न्योत्कृष्टी, क्षेत्रकालप्रतिवन्धः, २१ अनन्तरसिद्धभेदाः (१५) ६९-७० कर्मजाया लक्षणं तद्रष्टाकालाद्यैः सूक्ष्मता च ९० (वयंबुद्धप्रत्येकबुद्धविशेषः, ताश्च (१२) .. १३-१५-हीयमानप्रतिपात्य श्रीमुक्तिसिद्धिः) १३०/७१-७४ पारिणामिक्या लक्षण तद्प्रतिपात्यवधया ९७ २२॥५९* परम्परसिद्धानां केवलज्ञानं दृष्टान्ताश्च (३१) ४/१६ द्रव्यक्षेत्रकालभावैरवधिज्ञानम् ९७ द्रव्याद्यैश्च (युगपदितरैको. २७ श्रुतनिभितभेदाः (४) ५६-५७* भवप्रत्ययगुणप्रत्ययद्रव्यक्षेत्र पयोगचर्चा) १३३ २८ अवाहभेदो कालबाह्याभ्यन्तरावधिसङ्ग्रहः ९८२३॥६०*तीर्थकवचसो द्रव्यश्चतता १३९० व्यचनावग्रहाः (४)(न११७ मनःपर्यवज्ञानम् (अन्तरवी- २४ मतिश्रुतयोभिन्नता १४० यनमनसोरप्राप्यकारिता, श्रुतेः पाः, पर्याप्तयः, चारणाः) १००/२५ मतिश्रुतयोरसम्यगितरते १४३ प्राप्यकारिता, शब्दस्य द्रव्यता) १६९ ॥१३॥ १८ मनापर्यवशाने वद्वेदतज्ज्ञेया- २६ मतिज्ञानेऽश्रुतनिमितभेदा औ- ३० अर्थावप्रहाः । (६) F५८धिकारः । (क्षुलकपतरौ) १०८६१-६५ त्पत्तिक्याद्याः (४) औ- . ३१ अवमहकार्थिकानि (५) १७४ B21 सुत्ताणि ~329~ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४४] चूलिका-१ 'नन्दीसूत्र' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां F45454594 ३३ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ३२ ईहाभेदास्तदेकार्थिकानि च (५)१७५/४२ मिथ्याभुतं, (सम्बग्मिथ्याश्रुतत्वे ५७॥८२-८४ दृष्टिवादःसप्रभेदःपरि० २३५ षडियोऽपायस्तदेकार्थिकानि हेतुश्वारो द्रव्याद्यैः (४) पर्य- ७-८६ सूत्र २२-८८ पूर्वगत १२.२०चू.४, वाक्षरमक्षरानन्तभागः, काल- २ व. १४ वृ.१२,३व.८,चू.८,४ ५.१८चू.| ३४ षड्विधा धारणा तदेकार्थिका-.. चक्रवरूपं च) १९४१०,५३.१२,६-२,७-१६,८-३०,९-२०,* नि च (६) साद्यवसानेतरक्षुताधिकारः १९५/१०-१५,११-१२,१२-१३,१३-३०,१४३५ अवमहादेः कालः १७७४४ गमिकेतरी, आवश्यकोत्का २५, अनुयोग २ चूलिका ४ ३६ व्य जनावग्रहे प्रतिबोधकम लिककालिकप्रकीर्णकभेदाः २०२ भेदाः । (सिद्धपञ्चाशिका) लकदृष्टान्तो १७८४५-५६ अङ्गप्रविष्टभेदाः २०९५८ द्वादशाङ्गीविराधनाऽऽराधना-.. ३७ द्रव्यादेराभिनिबोधिकभेदाः, आचाराङ्ग १ सूत्रकृताङ्ग २- ८५ *फलं नित्यत्वविषयश्च २४७ ७५-८० कालः, स्पष्टत्वादि, मिश्रश (३६३ पाखण्डा धिकारः) ५९ सवगाथा (श्रुतभेदाः (१४) * ब्दादि, तदेकार्थिकानि च । १८४ स्थानाङ्ग ३ समवायाङ्ग ४. ८६-९० बुद्धिगुणा (८) अनुयोगाः ३८ श्रुतज्ञानभेदाः १८७ व्याख्याप्रज्ञप्ति ५शाताधर्म. * (७) (३) (अनुज्ञानन्दियों३९।।८१* अक्षरानक्षरभुते १८७ ६ उपासकदशाङ्गा ७ ऽन्त गनन्दिश्च) २४९ ४० सद्भ्यसज्जिछते (कालिक कदशाका ८ऽनुत्तरौपपातिकहेतुरष्टिवादसज्ञाः) ९ प्रभव्याकरण १० विपा इति नन्दीविषयाः ४१ सम्यक्चतम् १९२० कक्षुता ११ नामधिकाराः २३४॥ CROSSAGES AAAAAACREASE सुत्ताणि ~330 Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४५] चूलिका-२ 'अनुयोगद्वार' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां अनुयोगे वृद्धविषयानुक्रमः॥ अनुयोग ॥१३२ ॥ वृद्धविषयानुक्रमः देखीए ६ दीप | १ क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम AAMSANCHAR श्रीवीरजिनगौतमाविधर्माचार्य- भुतदेवताममस्काराः १ भावश्यकभुतस्कन्धनिक्षेपाः ज्ञानपञ्चक मत्यादीनां नोद्देशसमुद्देशानुज्ञाः किन्तु श्रुतस्यैव, अनुयोगश्च, (उद्देशावि विधिः) स्वाषा) ३ ३-४ अङ्गाननयोगद्देशादि कालि- कोकालिकयोकसादि६ ५ आवश्यकततिरिक्तयोहरे शादि । (सूरिगुणाः निक्षेपैकार्थावि व्यापयापर्षदमेवा). आवश्यकामवतस्कंधाध्ययनो- १३ शिक्षिताविगुणं द्रव्यावश्यक देशप्रमः (विद्याधरदृष्टान्तः) १५ आवश्यकश्चतस्कंधाभ्यननिक्षेप- आवश्यकश्चतकंधाभ्यननिक्षेप- १४ १४ द्रव्यावश्यकैकानेकवे नयाः १७ प्रतिज्ञा निक्षेपचतुष्कनियमः १०१५ नोआगमतो द्रव्यावश्यकत्रैनामस्थापनाद्रव्यभावावश्य विष्यम् १९ कानि (नामलक्षण) १०१६ शय्यासंस्तारकनैषेधिकीसिद्धनामावश्यकं जीवादेर्नाम शिळातळगतं शरीरमाद्यम् । १९ काष्ठकर्मादौ सद्भावासद्भाव एष्यत्यावश्यकधारी द्वितीयं २१ स्थापने (स्थापनालक्षणम्) १२ १८ लौकिककुमावनिकलोकोनामस्थापनयोभिनत्वम् १३ चरिकाणि तद्व्यतिरिक्त २१ | बागमनोआगमाभ्यां द्रव्या- १९ रामादीनां अङ्गधावनावि राजवश्यकम् (द्रव्यलक्षणम् ) १४ देवकुळाविप्रवेत्रश्च गैक्षिके २३ ९ १० सुत्ताणि [आगम-४५] चूलिका-२ 'अनुयोगद्वार' ACE5CRAL ~331 Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४५] चूलिका-२ 'अनुयोगद्वार' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए R दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम AC++AASAACAR घरकचीरिकादीनामिन्द्रादेरुपलेपनादि २८-३* अहर्निशान्तयोरवश्यकर्त्तव्यता ३१/४४.४५ स्कन्धनिक्षेपाः (४) नामखापनाकुमावनिके २५ २९-३६ श्रुतनिक्षेपचतुष्कं; नामश्रुतं, स्थाप- ऽतिदेशश्च ३९ घटकायनिरनुकंपादेरावश्यक नाश्रुतं, भागमनोआगमद्रव्यश्रुतभेदो,४६ द्रव्ये आगममोआगमौ व्यतिरिक्त लोकोत्तरिकं (असंविनदृष्टान्तः) २६ | बशरीरद्रव्यश्रुतं भव्यशरीरद्रव्यश्रुतं सचित्ताचित्तमिश्राः ३९ . भागमनोभागमाभ्यां भावावश्यकम् च ३१-३३ ४७-४९ सचित्ताचित्तमिनस्कंधनिरूपणम् ४० (भावलक्षणम् )२८ पत्रकादि अंडजादि च नोआगमे ५०-५३ अथवा कृत्वाकरमानेकद्रव्यस्कन्धाः | बागमतो भावावश्यक २८ व्यतिरिकं द्रव्यश्रुतं ३४ सतस्वरूपं च ४१ नोआगमतो भावे लौकिकादि त्रिधा |३८ भागमनोआगमाभ्यां भावभुतम् ३५/५४-५७ भावे आगमनोआगमौ, आगमे २५ डौकिके भारतरामायणवाचना आगमभावश्रुतं ३६ उपयुक्त, नोआगमे आवश्यकश्रुत२६ घरकचीरिकादेः इज्याचल्यादि ४० नोआगमभावभुतभेदो स्कन्धः ४२ कुविचनिके २९ ४. भारतरामावणमीमाबुरसफौष्टि- १७७५ कन्कार्पिकानि ४५ ४|१०-२७ अमणादीनां तच्चित्वावित्वेन लोको- स्यादि लौकिके ३६ बावश्यके षड् अर्थाधिकाराः ४३ तरिक धावश्यकेकाथिकानि (6)४२ चासंगावि लोकोत्तरे ३७ विण्डार्थोपसंहारः प्रत्येकाध्ययनच ३१ 1४३-४ कार्थिकानि (10) साथमप्रतिज्ञा च ४४. ECENCESSA सुत्ताणि ~332 Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४५] चूलिका-२ 'अनुयोगद्वार' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां अनुयोग ५९ वृद्धविषयानुक्रमः देखीए दीप MMERCANEBARSCRICA ६२ अध्ययननामानि अनुयोगनामानि च अथ उपक्रमाधिकार लौकिकोपक्रना (६) द्रव्ये व्यतिरिक्त सचित्ताचित्तमिश्राः ४५ ० सचित्ते द्विपदचतुष्पदापदेषु परिकमणि नाशे च ४६ ७१ नटादिमागधान्तानां द्विपदः अश्वादीनां चतुष्पदः आम्रादीनामपदः खन्धादीनामचित्तः स्थासकादियुक्तावादेमिश्रः ४७७३ हलकुलिकादिः क्षेत्रस्योपक्रमः, नालिकादिभिः कालस्य ४८७४ भावे आगमनोगमौ, नोआगमे ७५ । प्रशस्ताप्रशस्तौ, अप्रशस्ते ग्रामण्या-७६ पविशतिभङ्गकीर्तनानि ५६ दीना, प्रशस्ते गुर्वादीनां (माधणी-७७ भङ्गकीर्तनप्रयोजनम् ५७ । गणिकामात्यकथाः) ४९ ८ भङ्गदर्शनम् (२६) ५८ शास्त्रीयोपक्रमे आनुपूर्वीनामप्रमाण-७९ आनुपूदिव्यसमवतारः ५९ वक्तव्यतार्थाधिकारसमावताराः ५१८०४८ अनुगमे सत्पदप्ररूपणाथाः (९) ५९ नामाद्यानुपूर्व्यः (१०), आगमद्र-८१-८९ सत्पद्प्ररूपणा, द्रव्यप्रमाणं क्षेत्र व्यानुपूर्वी नोआगमद्रव्यानुपूर्वी, व्य- पर्शना काल: अंतरं भागो भावः तिरिक्ते औपनिधिक्यनौपनिधिको द्रव्यप्रदेशोभयार्थैरल्पबहुत्वम् ६९ च नैगमव्यवहारयोः, संग्रहस्य चा-९० संग्रहानौपनिधिक्या अर्थपदप्ररूपन्या ५२ णाद्याः (५) बाद्यवोः अर्थपदप्ररूपणाभङ्गकथ- ९१ अर्थपदप्ररूपणा ७० नभङ्गदर्शनसमवतायनुगमाः ५३ ९२ तत्प्रयोजनं भङ्गकीर्तनं तत्प्रयोजनं च अर्थपदप्ररूपणा ५४ ९३-९४ भनदर्शनं समवतारच ७१ प्ररूपणाप्रयोजनं ५५ ९५,९७ सत्पदप्ररूपणादीनि अष्टौ ७२ क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि 4 % % * ~333 Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४५] चूलिका-२ 'अनुयोगद्वार' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) * ল औपनिधिक्यां त्रयम् ७३ पूर्वानुपूर्वी पञ्चानुपूर्व्यानुपूर्व्यः ७४ (षद्रव्यसिद्धिः) पुद्गलास्तिकाये पूर्वानुपूर्व्यायाः ७७ ९९- क्षेत्रानुपूर्वी भेदौ नैगमव्यवहारयोः ९६ ९७ ९८ :: १०० संग्रहस्य च ७८ १०१, १०* नैगमव्यवहारयोरनौपनिधिक्या अधोलोके रत्नप्रभाद्याः (८) तिर्थग्लोके | ११७-११८, १६* स्थानानुपूर्वी, सामाचार्याजम्बूद्वीपायाः, नुपूर्वी इच्छामिच्छायाः (१०) १०२ १२-१४* ऊर्ध्वलोके सौधर्माया : (१५) ९२ ११९ भावानुपूर्व्या औदयिकाद्याः (६) १०४ १०४-१११ कालानुपूय, नैगमव्यवहारयो- १२० एकादिदशान्तनामोपदेशः रनौपनिधिकी, अर्थपदप्ररूपणतायाः, अर्थपदप्ररूपणता भङ्गकीर्त्तनं भङ्गदशैनं समवतारोऽनुगमः (अर्थपद्मरूपणतायाः ९) ९७ ॥। १० नामाधिकारः ॥ १२१,१७* एकनाम १०५ १२२ एकानेकाक्षरनानी जीवाजीवनानी सामान्यविशेषनाम्नी ( सभेदनारकतिर्यक्मनुष्यदेवाः ) १०९ १२३ द्रव्य (६) गुण (२६) पर्यायना१८-२३* मानि लिङ्गभेदेन वा अन्त्या क्षरोद्बोधितान मर्थप्ररूपणताद्याः (५) अर्थप्ररूपणा ११२-११३ सङ्ग्रहेऽनौपनिधिकी अर्थपद्म भङ्गदर्शनं समवतारः, अनुगमे सपदायाः (९) ८५ ११४ १०२-११* संग्रहेणानौपनिधिकीक्षेत्रानुपूपदरूपणताद्याः (५) ८७ १०३ औपनिधिकीक्षेत्रानुपूर्व्यः (३) ११६ गणनानुपूर्व्यां दशकोटिशतान्ताः १०१ १२४ आगमलोपप्रकृतिविकारैश्चतुर्नाम ११२ रूपणतायाः (५) औपनिधिकी कालानुपूर्व्यं समयादिः सर्वाद्वान्तः ९९ ११५ उत्कीर्तनानुपूर्व्यां वृषभाद्याः (२४) १०० ~334~ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४५] चूलिका-२ 'अनुयोगद्वार' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) 3 प्रत सूत्रांक यहां अनुयोग० वृद्धविषयानुक्रमः देखीए २४७ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम १२५ नामिकनैपातिकाऽऽख्यातिकौपसर्गिक- योच्छासाकारगुणवतभणितिभिः १३२ १३१ प्रमाणभेषाः (१) १५१ मित्रभेदाः पचनामनि ११३ १२८,५७-६२० अष्टनामनि विभक्तयः १३२,९३-९४७ द्रव्यप्रमाणे प्रदेशनिष्पन्नवि-C १२६ पण्णानि औदयिकः (निर्देशाद्याः) १३३ मांगनिष्पन्ने मानोन्मानाबमानगणिजीवा (३४) जीवो (५२०) दय- १२९,६३-८२७ नवनामनि वीराधा रसाः मप्रतिमानानि, घान्यमाने असखादि, निष्पन्नौ, औपाशमिक उपशमनि- सस्वरूपदृष्टान्ताः १३९ | रसनाने चतुःषष्टिकादि, उन्मानेऽर्ध-14 प्पन्नश्च (११) क्षायिका क्षयनि-१३०,८३-५२० दशनाम गौणागौणादानपन्नश्च (४६) क्षयोपशमः (१), कर्षादि, अवमाने हस्तादि, गणिम परप्रतिपक्षपदप्रधानताऽनादिसिद्धा. क्षयोपशमनिष्पन्नश्च (५१) पारिणा- तनामावयवसंचोग (४) प्रमाणैः | एककादि, प्रतिमाने गुंजादि, १५५ मिकः साद्य (जीर्णसुरादीपत्प्राग्भा (४) (स्थापनाप्रमाणे मात्र १३३,९५-१०२% क्षेत्रप्रमाणे प्रदेशनिष्पन्नः रान्तः ) नादिको (धर्मास्तिकायादि देवतापाषण्डगणजीविकाहेत्वाभिप्रा- विभागनिष्पन्ने पल (३ सूचिधन१०)सान्निपातिकः (1 ) यिकानि (७) भावप्रमाणे सामासि- प्रतर.) वितस्त्यावलोकान्तं, नैश्चयि कत्तद्धित्तज(७) कर्मशिल्पश्लोकसंयो- कपरमाण्वादि, २४ दण्डकेवगाहना |१२७,२५-५६* सप्तनाभनि पहजाचाः का- गसमीपसंयुतैश्वर्यापत्यैः) धातुनै- भेदाः, प्रमाणाहुल १७३ रणलक्षणग्राममूर्छनास्थामयोनिसम- | इकानि १५. (१३४-१३१,१०३* काळप्रमाणभेदी, प्रदेश ॥१३४॥ सुत्ताणि ~335 Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४५] चूलिका-२ 'अनुयोगद्वार' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां ******* देखीए दीप निष्पना, विभागनिष्पने समवावि (१) नोइन्द्रिये (३) अनुमाने पूर्ववत् १४७ बक्तम्वताः (३) २४३ पुद्रलपरावर्चान्तं १७५ क्षतवर्णाविना शेषवत् ( कार्यकारण- १४८,१२३* अर्थाधिकाराः २४५ १३७,१०४-१०६ समयप्ररूपणा, आव- गुणावयवाशयैः) दृष्टसाधर्म्यवत् (सा-१४९,१२४* समवतारे नामायाः (६)२४७॥ लिकादि पल्योपमान्तं १८३ मान्यविशेषाभ्या) (अतीताऽनागतव- ॥ अथ निक्षेपाधिकारः॥ १३८,१०७-११०* उद्धाराद्वाक्षेत्रपल्यसा- समानाः) औपम्य साधर्म्यवैधये १५०,१२५-१३१* निक्षेपे ओपनामसूत्रागरोपमाणि। आगमे लौकिकलोकोत्तरौ सूत्राों- छापकाः, ओघे अध्ययनाक्षीणाय-| १३९,१११-११२* दण्डकेषु स्थिति: १८४ भये, दर्शने (४) चारित्रे (५) २२१ क्षपणानिक्षेपाः, नानि सामायिक१४०,११३, सूक्ष्मेतरक्षेत्रपस्यसागरो- १४५ नयप्रमाणे प्रस्थकवसतिप्रदेशदृष्टा निक्षेपः, उरगागुपमाः (१२) २५७ दिपमाः १९२ न्ता: २२७ ॥ अनुगमाधिकारः॥ १४१ षट् द्रव्याणि १९३ १४६,११९-१२२% संख्यायां नामस्थापना-१५१-१३२-१३ अनुगमे सूत्रानुगमनिर्यु१४२ शरीरभेदा बद्धमुक्ताभ्यां दण्डकेषु२०९/ द्रच्यौ (एकभबिकादि) पम्बपरिमाण- स्वनुगमौ, अन्ये निक्षेपोपोद्घात१४३ भावप्रमाणानि(३)गुणनयसंख्याः११० जाणणा (कालिकवतादि) (सद- (२७) सूत्रस्पर्शाः (संहिवादि) २६१॥ १४४,११४-११६* गुणा जीवा(८)ऽजीव- सदादिना) गणनाभावाः, जघन्य- ॥नयाधिकारः॥ योः, अजीवे वर्ण (4) गंध (२) रस- मध्यमोत्कृष्टानि संख्यातानि, परित्तयु-१५२-१३६-१४३ नये नेगमाद्याः, ज्ञान(५) स्पर्श (८) संस्थानानि (4) जीवे कअसंख्यासंख्येषु जघन्यायाः, परि- क्रिये च । २६७ ज्ञाने प्रत्यक्षादि (४) प्रत्यक्षे इन्द्रिय- तयुतानन्तानन्तकेषु जघन्वाचा:२४१ इति श्रीअनुयोगद्वाराणि C+Me+CCCC क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम **** * सुत्ताणि ** ~336~ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां नन्द्यादिवृहद्विषयानु आवश्यकवृद्धविषयानुक्रमः । आवश्यकवृ०विषयानुक्रमः देखीए *- ॥१३५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम नतवीरश्रुतदेवतागुरुसाधुर्विवृति प्रति- नमनसोरणाप्यकारिता ) १२ १८ श्रुतचतुर्दशभेदकथनप्रतिज्ञा २४ जानीते । (१) सङ्ग्रेपरुच्यनुप्रहाय ६ केवलमिभवासितशब्दश्रवणम् १४ १९-२० श्रुतभेदकथनं, उसित्ताद्यनक्षरकृतिः (२) १ ७ भाषाद्रव्यप्रणनिसर्गों श्रुतम् २५ ॥ अथ ज्ञानपञ्चकरूपा नन्दी ॥ ९ त्रिविधशरीरे भाषा. चतर्विधा सा१६२१-२२ आगमकारणशुश्रूषादिबुद्विगुणाष्ट(प्रयोजनादिचर्चा, मङ्गलत्वसिद्धिः,, मालवासात १०-११ भाषायाः लोकपूर्तिसमयाः १७ । कम् २६ । नामादिलक्षणानि,ज्ञानज्ञेययोरैक्यम्), ज्ञानपञ्चकोद्देशः (मतिश्रुतयोर्विशेषः) ७ यावत् १३-१६ सत्पदप्ररूणादीनि (९) गत्यादिषु २४ व्याख्यानविधिः सूत्रार्थादिकः (३)२६ अवमहेद्दापायधारणाः ९ (२०) (शाने व्यवहारनिश्चयौ ) २५-२६ अवघिरसंख्यभेदो भवगुणप्रत्ययौ अवमहादेखरूपम् १० मतिज्ञानस्योपसंहारः, श्रुतस्य प्र- ततश्चतुर्दश भेदाः ऋद्धिप्राप्ताश्च । २७॥ अवमहादेः कालमानम् ११ तिज्ञा २२ २७-२८ अवधौ क्षेत्रादि (१४) प्रतिपत्तयः२८ इन्द्रियाणां प्राप्ताप्राप्तविषयता ( नय-१७ थावदारसंयोग श्रुतप्रकृतिरिति २३ २९ अवधिनिक्षेपाः (७) २९ or सुत्ताणि 305 [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' । ~337 Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक - यहां - देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ३० जघन्यावधिक्षेत्रम् (५४-५५ स्तिबुकाद्या अवघेराकाराः ६७ सम्बद्धाऽसंबद्धाववधी ४६ |३१ उस्कृष्टावधिक्षेत्रम् ३० ५६ देवनारकयोरनुगामी, शेषयो- ६८ गत्यायतिदेश ऋद्धिकथनप्रतिज्ञा च ३२-३५ अवधेः क्षेत्रकालप्रतिबन्धः । ( म- बिधा ४२ ६९-७० आमौंषभ्याद्याः (१६) लध्धयः४७ ध्यमः) ३१ ५७-५८ क्षेत्रद्रव्यपर्यायकाले त्रयस्त्रिंशत्साग-७१-७५ वासुदेवचक्रितीर्थकरबलानि ४८ ३६-३७ द्रव्यादिवृद्धिप्रतिबन्धास्तत्सूक्ष्म- रान्तर्मुहूर्तसप्ताष्टसमयषट्षष्टिसागराणि ७६ चारित्रवतां नरक्षेत्रविषयं मनःप ोयम् ४९ ता च ३३ ५९ द्रव्यादिषु वृद्धिहानी ४३ ७७ केवलज्ञानस्वरूपम् ३८ अवधेः प्रारम्भसमाप्तिद्रव्यम् ६०-६१ स्पर्धकाः, अनुगामि (३) प्रतिपात्या-७८ प्रज्ञापनीयदेशना, वाग्योगध सा ५० ३९-४० औदारिकादिवर्गणाः (१९) दयः (३) ९ खान्यानुयोगित्वाछूतेनाधिकारः । ४१ गुरुलध्वगुरुलघुद्रव्याणि ३६६२-६३ बाझे उत्पादप्रतिपातौ नान्तरे सम- ॥इति ज्ञानपञ्चकरूपा नन्दी। ४२-४३ द्रव्यक्षेत्रकालप्रतिबन्धोऽवधेः येन ४४ ४४-४५ परमावधेव्यक्षेत्रकालभावाः ३८६४ असंख्येयाश्चत्वारश्च पर्यायाः पराप- ॥अथ उपक्रमादि ॥ ४६-४७ नारकतिरश्चोरवधिः रावध्योः ४५ ८०-८३ आवश्यकनिक्षेपाः अगीतासंविग्रह-| ४८-५२ देवानामवधिः ३९ ६५ नानुत्तरे विभंगः ष्टान्तः, आवश्यकार्थिकानि १०, अ-16 ५३ जघन्योत्कृष्टौ प्रतिपात्यप्रातिनौ च४१ ६६ बाह्याभ्यन्तरावधिमन्तः र्थाधिकारः, सभेदा उपक्रम (ब्राझ-1 सुत्ताणि 1455423456 96-4-5-4545 ~338 Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र- १ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्द्यादिव हद्विषयानु क्रम. ॥ १३६ ॥ 34445 ण्यादिदृष्टान्ताः ) निक्षेपानुगमाः, उ- ९८-९९ अन्धस्य दीपकोटिवदचरणस्य मुधा | ११२ ११३ संज्वलनोदयेऽतिचाराः शेषेषु पोद्घातनिर्युक्तो मङ्गलं प्रतिज्ञा च श्रुतं चक्षुष्मतो दीपवत्सचरणस्य छेदः, द्वादशक्षयादितचारित्रम् ७८ (तीर्थस्वरूपम् ) ५९ सफलम् ११४-११५ चारित्रभेदाः (५) (कल्पाः १०, ८४-८६ आवश्यकादि (१०) शास्त्रनिर्युक्ति- १०० चन्दनगर्दभवदचरणो ज्ञानी परिहारविद्धितः) १९ प्रतिक्षा ६१ १०१-१०९ एकैकेन विना इते ते पबन्ध- ११६ उपशमश्रेणिः ८१ सामायिक नियुक्तिप्रतिज्ञा ( द्रव्यपर११७-१२० सूक्ष्मसंपयस्वरूपं, कषायमवत् संयोगेन फलम् ७१ परदृष्टान्तः) ६२ हिमा, ऋणादिट सार, तेष्वविश्वासिनिर्युक्तस्वरूपम् ६७ ८९-९२ गणधरकृता सूत्ररचना तत्प्रयोजनं च १३ श्रुतज्ञानं तत्सारश्च तत्सारो निर्वाम् ६९ मोक्षे ज्ञानतपः संयमव्यापाराः ७२ श्रुतं क्षयोपशमे, क्षये कैवल्यज्ञा ता ८३ ८८ ९९-९६ नायमिनः श्रुतान्मोक्षः, वायुद्दीनप्रोक्त। नम् ७३ १०५-१०६ कोटा कोट्यन्वयऽन्यतरलाभः १०७ सामाविकलाने परयांदिष्टान्ता (९) ७५ १०८-१९१ प्रथमादिकायाणामुदचे सम्यक्त्वाराभठामौ । ७७ अपणो हुडति ७० ८७ ९७ १०३ १०४ ~ 339~ १२१-१२६ क्षपकश्रेणिः, मध्यज्ञेयाः द्विच रमे निद्रायाः (२७), चरमे ज्ञानावरणाद्याः ८३ केवलिनः सर्पदर्शिता ८५ प्रवचनोत्पत्तिः उदे कार्षिकसद्विभागौ द्वारणवव्याख्यानविभ्यनुवरेषा द्वाराणि (१) ८६ १२७ १२८ आवश्यक बृ० विषयानुक्रमः ॥ १३६ ॥ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां -1994 देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम १२९ प्रवचन (५) सूत्रा (५) नुयोगै (५)- ॥ अथोपोद्घातनियुक्तिः॥ १४९ कुलकरवंशेक्ष्वाकु कुलाधिकाराः कार्थिकानि। |१४०-१४१ सद्देशनिर्देशादीनि (२६ उपो- १५०-१५१ पस्योपमाष्टभागे पक्षिणमध्य-| १३२ अनुयोगनिक्षेपाः (६) ८७ घातनियुक्तिद्वाराणि) १०४ । भरते कुलकराः (७) १०९ १३३-१३४ वत्सकगवाद्या दृष्टान्ताः (५) १४२-१४३ सद्देशनिर्देशनिक्षेपाः (८) तद्वि-१५२ पूर्वभवजन भावे श्रावकभार्यायाः (७) ८८ शेषश्च १०६ द्वाराणि । ११० षकविभाषकव्यक्तिकरेषु काष्ठक-१४४ निर्देशयनिक १५३-१५४ अपरविदेहेषु वयस्यौ, भरते र्भाधुपमाः (६) ९६ चारः १०६ हस्ती मनुष्यश्च, नाम नीतिश्च १३६ व्याख्यानविधौ गोचन्दनकन्यायाः १४५ निर्गमनिक्षेपाः (६) १०७ |१५५-१६८ कुलकराणांनामप्रमाणसंहननव | सप्रतिपक्षाः (७) दृष्टान्ताः। नौसंस्थानोश्चत्ववर्णायु:स्यायुःकुल॥ अथ वीरजिनादिवक्तव्यता ॥ करत्वकालदेवत्ववस्त्रीहस्त्युपपातनी१३७ शिष्यदोषगुणाः १०० . १४६ अटवीभ्रष्टसाधुमार्गदर्शने सम्य- तयः १११ १३८-१३९ शिष्यपरीक्षायां शैलपनकुटावयः क्त्वम् १०८ |१६९-२४ मानवकारण्डनीतिक, आहार ऋष(१४) १०० १-२४ तदेव १०९ भव, भरतस्य परिभाषणाचा (४) इत्युपक्रमादि |१४७-१४८ साध्वनुकम्पया सम्यक्त्वं,देवत्वं, नीतिः । ११४ मरते मरीचिः १०९ . ऋषभवक्तव्यसासूचा ११४ सुत्ताणि ~340 Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां नन्यादिवृहद्विषयान आवश्यकवृ०विषयानुक्रमः देखीए ॥१३७॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम PRAKASHARABAR |१७१-१७२ धनसार्थवाहः, अटवीवासः, १८६ जन्मनामजयादीनि(८)द्वाराणि१२१ १९९-२०० राज्याभिषेका, विनीतानिवे पृतदानं च। ऋषभपूर्वभवाः(प्र)९८७ चैत्रकृष्णाष्टम्यां जन्म, तन्महश्च ।। शश्च १२८ उत्तरकुरुपु, सौधर्मे, विदेहेषु वेयपुत्रो teदिकमारीकृत्यम् १२३ २०१-२०२ अश्वादि (३)उमादि(४)सदः राजपुत्रादिवयस्यः ११४ . २०३-२०६ आहारादीनि (४०)द्वाराणि १२८ १७३-१७४ कुष्ठिसाधुचिकित्सा ११७ १८९ वंशस्थापना, अल्यामाहारका ५-९ नराः कन्दाचाहाराः, क्षत्रिया इक्षुधा-| १७५-१७८ देवलोका, पुण्डरीकिण्यां वजसे- न्तिः १२५ न्यभोजिनः, जिनोक्तं घर्षणतीमनादि नपुत्रो वजनाभो बाहुसुबाहुपीठमहा-१९० इक्षुभक्षकत्वादिक्ष्वाकवः |१०-११ अग्नरुत्पत्तिः पाकारम्भश्च १३१ पीठाश्च, चतुर्दशपूर्विता, तीर्थकरत्वं, १९१-१९२ नन्दासुमङ्गलायुतस्य वृद्धिः१२६ दयोः वैयावृत्यादि, अप्रीतिश्च ११८ १९३ जातिस्मरत्रिज्ञानोऽधिककान्तिबुद्धिः १२-३० कर्मादीनि (४०) द्वाराणि १३२ २०७ शिल्पशतम् १३२ १७९-१८१ अहंदादिस्थानकानि(२०)११९१९४ अकालमृत्युः, कन्याग्रहर्ण च : १८१-१८४ आद्यान्तयोः सर्वाणि, मध्यमा-. २०८-२११ जिनसंबोधनादि (२१) द्वा राणि १३४ नामनियतानि, अग्लान्या वेदनमा . १९५ विवाहः १२७ अर्वाक तृतीये नरवादी बन्धः १९६-४+ पदपूर्वलक्षेषु भरतादिजन्म २१२-२१३ जीतेन घोधिताः, सांवत्सरिकं, |१८५ सर्वार्थे, आषाढबहुलचतुर्थी च्यव- १९७-१९८ एकोनपञ्चाशयुगलजन्म, त्यागः, परिवारः, उपधिः १३५ नम् १२० नीत्यतिक्रमः, नृपयाच्या, नाभेरनुज्ञा २१४-२१५ लोकान्तिकनामानि तेबोधनं च सुत्ताणि ॥१३७॥ ~341 Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम SARASWALA | २१६-२२० अर्वाक् संवत्सराकोट्यधिक वर-३१४-३१६ चैत्रकृष्णाष्टम्यां सुदर्शनया चतु:-३४८-३४९ षट्खण्डविजयः, सुन्दरीप्र वरिकापूर्व दानं, संवत्सरदानद्रव्यसंख्या सहस्त्रीयुतस्य प्रव्रज्या विहारच त्रज्या, भ्रातृदीक्षा च १५२ २२१-२२३ जिनानामभिषेकषीराज्यवि-३१७-३२२ आहारालाभात्तापसाः, नमिवि- ३२-३७४ युद्धपञ्चकं बाहुबलिनो दीक्षा भगिन्यागमः, केवलं, भरतभोगाः, नम्योर्विद्याधरत्वं, कन्यादिमिर्निमचारः । १३६ मरीचेर्दी झाध्ययने ५५२ &२२४-२३२ दीक्षापरिवारो वय उपधितपः- अणं, संवत्सरेणेक्षुरसभिक्षापच दि व्यानि श्रेयांसात्पारणं, तक्षशिला ३५०-३६१ उद्वेगः, पारिवाज्यं, उपदेशः, स्थानकालाः शिष्यार्पणं च । १५४ ४२३३-२३७ विषयसेवाविहारपरीषहजीवाशु- गमनम् १४३ _ ३६२-३६५ समवसरणं, प्राह्मणानुत्तिरर्द्धभ-| ||३२३-३३४ जिनपारणस्थानदातृवृष्टिदातृगपलम्भश्रुतोपलम्भवतसंयमाः १३७ रताधिपता च दण्डवीर्य यावत् ,कालेन तयः १४६ |२३८-३०५ छद्मस्वकालतपोज्ञानोत्पादतरो-३३५-३४१ धर्मचक्रमनार्यविहारः पुरिमताले ३६६ प्राधणदानं वेदकृति(९)द्वाराणि।१५८ मिथ्यात्वं, षष्ठे मास्यनुयोगः १५७ प्रतपःपरिवारतीर्थगणगणधरदेशनाप- केवलं पञ्च महाप्रतानि, ज्ञानमहिमा ३६७-३६८ चकिच्छा, पत्रयादीनां (१०), यायकुमारत्वादिश्रामण्यद्वाराणि १३८ च। १४८ जिनपृच्छा। ३०६-३१३ निर्वाणतपःस्थानपरिवाराः (प्रथ-३४२-३४७ ज्ञानचक्रोत्पाती, तातपूजा, मरु- ३८४३६९-३७५ तीर्थङ्कराः (२३) चक्रिणां _मानुयोगात) प्रकृतं च १४२ देवी निर्गमः, पुत्रादेमरीचेश्च दीक्षा | प्रश्नो नामानि च. १५९ CAAAAAAAAAAg. सुत्ताणि ~342 Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए SHASRC4 दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ३९-४३४ वासुबलदेवानां स्वरूपनामशत्रवः ४२२-४३२ मरीचेनिर्देशः, पदवीत्रय, वन्दन निदान महाशुके, त्रिपृष्ठः सप्तम्यांआवश्यकइद्विषयानु51३७६-३५० तीर्थकराणां वर्णप्रमाणगोत्रपुर- प्रशंसा, मदश्च १६७ प्रियमित्रः महाके नन्दमः, पुष्पो- क्रमे वृ० विष| जननीजनकगतयः १६० |४३३.४३४ अष्टापदे गमनं, शसाहरुयारे (अन्तराऽन्तरा संसारख्य)१७१/ यानुक्रमः ॥१३८॥ मोक्षः १६८ ४५५६ विंशतिस्थानकादीनि १७७ है|३९१-४०१ चक्रवर्तिमा वर्णप्रमाणायुःपुर ४३५ निर्वाणं, चिता, सक्थीनि, स्तूपाः, ४५७ देवानन्दाकुक्षाववतारः १७८ | मातापितगतयः १६१ ___याचकाः, आहितामयः १६९४५८ खनापहारामिमहादीनि हाराणि ४४०२-४१५ वासुबलदेवानां वर्णप्रमाणगोत्रा-४५४ स्तूपाश्चैत्यम् ४६-१११४ व्युत्कान्तौ खना, सहरणवियुःपुरमातापितृपर्यायगतिनिदा- ४३६ आदर्शगृह, मुद्रिकापातः, ज्ञानं दीक्षा चारः, पक्रयादय उत्तमकुले नैगमेषिनानि १६२ च भरतस्य कथनं, त्रिशलाकुक्षौ संक्रमः, स्वप्ना(१-१५) जिनान्तराणि प्र. १६४ ४३७-४३९ मरीचेर्दुर्वचनं, तत्कलं, ब्रह्मदेव- -पहारः, स्वप्रदर्शन, सप्तमेऽभिप्रहः, लोकः कपिलः, (पष्टितबं) १७० माधिकनवमासां चैत्रशुद्धत्रयोदश्यां |४१६-४२० जिनान्तरे चक्रवर्तिवासु जन्म, आभरणाविवृष्टिः, इन्द्रागमः, ४४०-४५० कौशिकः, पुष्पमित्रः, सौधर्मे, ॥१३८॥ देवाः १६५ अग्निद्योतः, ईशाने, अमिभूतिः, देवतुष्टिः, देवागमः,मन्दरेऽभिषेका, |४२१ चक्रिवासुदेवान्तराणि १६६ सनत्कुमारे, भारद्वाजः, माहेन्द्र, जनन्यर्पण, क्षौमादि, रत्नानयनं, ४४४४ भरतजिनप्रभाः १६७ स्थावरः, ब्रह्मलोके, विश्वभूतिः, वृद्धिः, वर्णनं, जासिस्मरणं, शक RSOCCNX ~343 Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ALSACCORNSRCOALACHI प्रशंसा देवागमः तिन्दुसकक्रीडा, ४६१-४६४ इन्द्रागमः, पारण, अभिग्रहा। लेखशालोपनयनं पृच्छा ऐन्द्रव्या- (५) शूलपाणिः, वेदनाः, स्वप्नाः, करणं, विवाहः, भोगाः सन्तानं, अच्छन्दकश्च १८८ दीक्षा १८३ ११२-११४४ शूलपाण्युपसर्गाः १९४ 8.४५९-४६० सांवत्सरिकदानादि, लोकान्ति-(१ प्र.) निमित्ते, अच्छन्दकद्वेषः। कबोधादि, दीक्षापरिणामे निरन्तर ४६५-४६६ अङ्गुलीच्छेदधौर्यावि, कंटके देवसंचारः, चन्द्रप्रभा शिविका तत्प्र- वनं च। माणवर्णन, अलङ्कारः, पाठभक्तं, ले-४६७-४७१ चणकौशिकः, उत्तरवाचालायां श्याशुद्धिः, इन्द्रचामरवीजन, पारणं नैयकराजवन्दनं कम्बलशम्ब लभक्तिर्गङ्गायाम् । १९७ शिविकोत्पाटन, पुष्पवृष्टिः, गगन-- तळशोभा,वाजित्राणि ज्ञातखण्डवना ४७२-५३८ सामुद्रिकः पुष्यो, गोशाला, विगमः लोचा, केशानां क्षीरोदधिनयनं, जयानन्दसुनन्दैः पारणानि, कोल्लाके गोशालपत्रज्या, सुवर्णखले नियतितूष्णीकता, व्रतं, मनःपर्यायः, मुहु- प्रहः, नन्दोपनन्दौ, दाहः, चम्पायां र्चावशेषे कूर्मारपामगमनं १८३] चतुर्मासः, कालाके सिंहा, पत्राळके| स्कन्धः, कुमारायां मुनिचन्द्रः, सोमाजयन्तीभ्यां मोचन, पृष्ठचम्पा, कृतङ्गले दरिद्रस्थविराः, गोशालपात्रे मांस, अक्षिविक्रिया मुखत्रासः, मण्डपब्वालनं, कालहस्त्युपसर्गः, पूर्णकलशे शक्रागमः, भद्रिकायां चातुर्मासी, अच्छार्याभकं, नन्दिघेणाचार्यः, विजयाप्रगल्भे, गोशालवाइन, वैशाल्यां शकागमा, विमेलकमहिमा, वापस्युपसर्गः, शालिशीर्षे लोकावधिः, भद्रिकाचतुर्मासी, गोशालागमः, आलमिकाचतुर्मासः, कुण्डाके मर्दने च गोशालचेष्टा, कटपूतना, उत्पला, वग्गुरपूजा, दन्तुर सुत्ताणि २४ नया ~344 Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र- १ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्द्यादिसप्तके आवश्यके ॥ १३९ ॥ इसनं, बालाटे गोशालबन्धः, राजगृहे चतुर्मासी, छाढावाशुद्धभूम्योविहार, वर्षारात्रश्च तिलस्तम्बः, गोब्बरे वैश्यायनः, शीतलेश्यामोचनं, वैशाल्यां शङ्खपूजा, चित्रपूजा, वाणिज्ये आनन्दकथिता ज्ञानोत्पत्तिः, आवस्त्यां चतुर्मासी भद्रायाः प्रतिमाः बहुलिकागृहे दिव्यानि पेढाले एक रात्रिकी, शक्रप्रशंसा, सङ्गमकागमः, विंशतिरुपसर्गाः, चौरकाणाक्ष्य अलिविटपिशाचोन्मत्तरूपाणि शक्रकृतो यात्रादिपृच्छा, वध्यादेशः सप्तकृत्वो रज्जुमोक्षः, कौशिक कृतो मोक्षः, त्रज- ५३९-५४२ महसेने द्वितीयं समवसरणं, सोप्रामे पारणं मन्दरे निर्वासनं, हरिहरि- मिलयज्ञः, देवमहिमा | सहस्कन्दप्रतिमामहिमा, चन्द्रसूर्याव- ११५५५४३ ज्ञानोत्पादमहिमा समवसरणे । तारः, शक्रेशानजनकधरणभूतानन्दाः, वैशाल्यां चतुर्मासी, चमरोत्पातः, सनत्कुमारागमः नन्दीमहिमा गोपशिक्षा, भाषाभिग्रहः, सनत्कुमा रमाहेन्द्रागमः वादिशिरश्छेदः, चम्याचतुर्मासी, यक्षसेवा स्वातिदत्तप्रभाः, नाट्यज्ञानोत्पत्तिकथने, चमरागमः कैवल्यं तपः संख्या २२८ ॥ इति वीरजिनादिवक्तव्यता ॥ ॥ अथ समवसरणवक्तव्यता ॥ विधिः, सामायिकविधानरूपप्रभोतर श्रोतृ परिणामवृत्तिदानदेवमाल्यानयानि २३० ५४४-५९०,११६* ११९४ अमृतपूर्वे म हर्द्धिकागमे वा समवसरणरचना, प्राकारादिविधिः, आयान्त पौरुष्योर्देशना, कमलनवकं, प्रतिमाः, आमेष्यां गणिः, रूपातिशयः, पदां निवेशः, द्वितीये तिर्यभ्यः, तृतीये यानानि, सामायिककथा, तद्विधिश्च द्वादशयोजन्या आगमः, गणधरादिको रूपक्रमः, प्रशस्तसंहननादिः, अनुमोदना, युगपदुत्तराणि, स्वस्वगी: परिणामः, कीढीदासी, चक्रयादेः प्री ~345~ उपोद्घाते * श्रीवीरसम वसरण गणधरसामाचार्यादि ॥ १३९ ॥ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां AA -०८-२-५ देखीए - दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम तिदानं भत्त्यादि फलं, बलितन्दुल- ॥दशधासामाचारी॥ ६८१ असंपादनेऽपीच्छाकारे लाभः २६३ पछटनवासप्रवेशभागविधिः, गणि-६६०-६६५ कालनिक्षेपाः (११)द्रव्ये स्थितिः ६८२-६८७ वितथे मिथ्या, अकरणं, भूदेशनायाँ गुणा विधिः, तज्ज्ञानं च। (४) अद्धायां समयायाः, यथायुष्के योऽकारः, करणे माया, मिध्यादु२३९ निर्वतितानुभवः, उपक्रमे त्रिविधा कृताक्षरार्थः। ॥ इति समवसरणव०॥ सामाचारी ओघाद्या (३) २५७६८८-६९० तथाकारस्य योग्यो विषयः, इ॥ अथ गणधरवक्तव्यता॥ ६६६-६६७ इच्छामिथ्याादेशः २५८ । २६६.६६७ इच्छामध्यायुदशः २५८ छादेः फलं च २६४ ५९१-६४१ देवघोषः, गणधरा(११)ऽऽगमः, ६६८ अभ्यर्थनाया कारणजात चच्छा-६९१-६९४ आवश्यकीनैषिधिक्योर्भदे प्रमः जीव-कर्म-तज्जीव भूत-ताश-बन्ध- कारः २५९ अर्थैक्यं, गुप्तस्र्यादिमतः गमने* देव-नारक-पुण्य-परलोक-निर्वाणसं- ६६८-६७६ अनिगहितबलवीर्येऽझे व्याशयाः,परिवारा, अमर्षः, वेदपदार्थः आवश्यिकी । २६५ पृते, विनाशे तत्कुर्वति, मानवैया-1. दीक्षा २५४ वृत्त्यादिकारणान्तरे इच्छाकारः ।। ६९५-६९७,१२०-१२३४ शय्यादौ नैषे६४२-६५९ गणीनां प्रामनक्षत्रमातापितगो-६७७-६७९ अश्ववदविनीते आज्ञावलामि धिकी निषिद्धात्मत्वात् । आपृच्छा | त्रागारच्छग्रस्थकेवलिपर्यायायुरागम- योगी । २६० द्याः (४) २६७ मोक्षनिर्वाणतपांसि २५४ ६८० प्रार्थनायां प्राहाणवानरौ, स्वयंकरणे ६९८-७२३ शानदर्शनचारित्रोपसम्पदः ॥ इति गणधराः॥ वणिजौ २६२ त्रित्रिद्विभेदाः, संदिष्टादिचतुर्भङ्गी, ACCCCCCALOCALS सुत्ताणि ~346 Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां नन्दादि उपक्रमो R देखीए सप्तके आवश्यके ॥१४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम GAAAAAAकरक वर्तनासन्धनामहणखरूपं, प्रमाण- धमपौरुष्याऽधिकारः,भावे भगवरक्षा-७६२-७६४ आर्यवनात्परतोऽसमवतारा, -161 ननिषद्यादिविधिः, श्रवणविधिस्त- यिकगणिक्षायोपशमिकाभ्याम् २७४ बस्तुतिः (तचरित्रम्) २८५ निहवाच. त्फलं, चिन्तकस्य उघोरपि वन्दन- ७३६ पुरुषनिक्षेपाः (८) २७७ ७ ६५-७७२ द्विर्गुणकनिमनगा, वाचकत्वे सिद्धिा, इत्वरिकादि वैयावृत्त्ये, वि-७३७-७४८ कारणनिक्षेपाः (१) वदन्यद्रव्ये देवमहः, रुक्मिणीप्रतिबोधनं, आकृष्टाविकृष्टतपस्युपसंपत् ,गणपृच्छया, निमित्तनैमित्तिनौ समवाय्यसमवा काशगामिनी, तद्विषयः, परानर्पणं, समाप्तौ स्मारणा विसर्गो वा, अव-/ यिनी, कादि (६) द्रव्ये, भावेऽज्ञा माहेश्वरीगमनम् । २९० प्रहयाचा, उपसंहारः फलं च २७० नज्ञानादि, प्रकृते प्राक्तृतीयमनु॥ इति सामाचारीवक्तव्यता ॥ व्यभवबद्धजिननाम, गणिनो ज्ञाना-७७३-७७६ पृथक्त्वकृत पार्यरक्षिताः, माचव्याबाधान्तम् २७७ त्राघाचार्यादि ( आर्यरक्षित चरि७४९-७५० प्रत्ययनिक्षेपाः (४) द्रव्ये वप्त- त्रम्) २९६ ७२४.७२६ आयुरुपक्रमाः (७) सदृष्टान्ताः माषादिः, भावेऽवध्यादिः। २८० १२४४ अनुयोगचतुष्क सूत्राणि ३०९ ॥१४॥ दण्डकशाया हेतवः २७२ ७ ५१-७५३ लक्षणनिक्षेपाः (१२), भावे ७७७ महाकल्पच्छेदाः कालिके । ३०९ ७२४-७३५ प्रशस्ताप्रशस्तदेशकालौ, दिव ॥ अथ नितववक्तव्यता ॥ सरात्री प्रमाणकाली, वर्णकालः, ७५४-७६१ नयसप्तकं, तल्लक्षणभेदाः, त्रिमिः ७७८-७८३ निद्ववमतानि, तदादिपुरुषप्रामभावस्थितिः (४), प्रमाणकालेन प्र- श्रोत्रपेक्षयाऽधिकारः २८२ | काळाः ३११ 6454 सुत्ताणि ~347~ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम "COLORCAMERICAKAAM १२५-१४८४ निवाधिकारः सविशेषः, स-७९७.८०३ सामायिकखरूपं, बहुशो देश-८१२-८२९ सम्यक्त्वश्रुते चतसृषु व्रतं नरे| पूर्वोत्तरपक्षः ३२४ । सामायिकम् ३२९ मिश्र तिर्यक्षु भव्यश्चत्वारि संश्युच्छा-1 ७८४-७८८ निहवरप्युपसंहारः, प्रत्येकदो-८०४-८०६ क्षेत्रदिकालगतिभव्यसंयुच्छ्रा- सको च, दृष्टौ नयौ, आहारकः पास्तत्फलं च, तन्निमिचाना दिग्रहण- सदृष्याहारपर्याप्तसुप्तजन्मस्थितिवेद- पर्याप्तकश्व, सम्यक्स्वभुतेऽनाहारकाभजना, न बोटिके ३२५ सज्ञाकषायायुज्ञानयोगोपयोगशरी- पर्याप्त कावपि प्रतिपन्नौ, जागरोऽन्य॥ इति निदववक्तव्यता॥ रसंस्थानसंहननमानलेश्यापरिणाम- तरत्, अण्डपोतजयोनिकं जरायो ७८९ नैगमसंग्रहव्यवहायत्रिविधं, शब्दा- वेदनासमुद्घातकर्मवनिर्वेष्टनोद्वेष्टना- चतुष्कं, मध्यमस्थितौ उभयं, आयुष याः संयम मन्बते । ३२६ श्रवाल द्वारशयनासनस्थानचक्क्रमणैः उत्कृष्टायामपि, वेदत्रयसब्ज्ञाचतु७९० आत्मा सामायिकम् सामायिकविचारः ३३० कयोः प्रतिपत्तिः, अप्रथमे कषाये १४९४ नवविचारः ३२७ ८०७-८०८ सम्यक्त्वश्रुतयोस्निपु, विरति- संख्यायुश्चत्वारीतरः सम्यक्त्वश्रुते, ७९१ प्रतविषयः सर्वजीवादिः नरे मिश्र तिर्यश्वपि, प्रतिपन्नास्त्रयाणां चतुर्बानी त्रियोगी उपयोगद्विक १७९२-७९५ द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकयोद्रव्य- | त्रिषु, चरणस्य द्वयोः, भजनोर्द्ध- औदारिक चत्वारि वैक्रियं द्वे, सर्वगुणसामायिकस्खे बादः ३२७ । लोके ३३१ संस्थानसंहननमध्यममाने चत्वारि, |७९६,१५०४ सम्यक्त्ववत (३) चारित्राणि ८०९-८११ दिप्रिक्षेपाः (१८) विक्षु प्रतिप- षट्सु लेश्यासुद्धे तिसृषु चारित्रं, पूर्व (२) सामायिकम् ३२९ । चमानः, प्रतिपन्नोऽन्यतरस्याम् । । प्रतिपन्नोऽन्यतरस्यां, वर्द्धमानावस्थिती SAHARSACHAR सुत्ताणि ~348 Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां नयः प्रतिपन्नादि नमस्कार देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्यादि द्विविधवेदनाऽसमवहतः, निर्वेष्टय- अप्रतिपतितानामल्पबहुत्वं तत्संख्या, ॥अथ सूत्रस्वरूपम् ।। सप्तक झुद्धत्तः निश्रावयन् चतारि ३४० अन्तरमविरहविरही भवाकयौं क्षेत्र-८८०-८८६ सूत्रस्वरूपं, दोषाः (३२) गुणाः आवश्यक ८३० सम्यक्त्वादिविषयः स्पर्शना तत्स्पर्शना ३६१ (८-६) ३७४ 1८३१-८३५ मानुष्यार्यक्षेत्रादिदुर्लभत्वे चो- ८६१-८६५ सम्यक्त्व(७) श्रुत (७) देश(क) ॥१४१॥ ॥इति सूत्रवरूपम् ॥ हाकादिदृष्टान्ताः, युगदृष्टान्तो गा- सर्व (८) विरतिनिरूक्तयः, दमद रुक्तयः, दमद- ॥अथ नमस्कारख्याख्या। थाभिः ३४१ न्तायाः (८) दृष्टान्ताः ३६३ ८३६-८४४ धर्मकरणे उपदेशः, आलस्याद्याः १५१+ दमदन्तवृत्तम् ३६५ ८८७ नमस्कारे उत्पत्तिनिक्षेपपदपदार्थप्ररू(१३) श्रुतिविघ्नाः, ज्ञानाबरणादि-८६६-६८ मुनित्वखरूपम् पणावस्त्वाक्षेपप्रसिद्धिक्रमप्रयोजनफवद्, प्रवक्षान्त्यादि, दृष्टादौ कर्मक्षये ८६९-७० मेतार्यस्तुतिः ३६९ लानि (११) ३७७ शुभयोग प बोधिः ३४५ ८ ७१ कालिकाचार्यस्तुतिः ३७० ८८८-८९० आदिनेगमेऽनु रामः, शेषाणां ८४५-८४८ अनुकम्पाऽकामनिर्जरावैद्यमि- |८७२-७५चिलातीपुत्रस्तुतिः ३७१। समुत्थानवाचनालब्धित उत्पन्नः, ण्ठादीनां (११) सम्यक्त्वलाभः ८७६-८७९ लक्षश्लोकसङ्केपः, धर्मरुचिरना परजावनाये, शेषा लम्धि मन्वते, (वैद्यवानरदेवः ) अभ्युत्थानविन- कुट्टयाम्, इछापुत्रः परिक्षायां, प्रत्या निहवादि द्रव्ये (द्रमकदृष्टान्तः) याद्यैश्च ३४७ ख्याने तेतलिः ३७२ नैपातिकात् द्रव्यभावसङ्कोचः ३७७ ६८४९-८६० सम्यक्त्वस्थितिः, प्रतिपत्तप्रतिप- ॥ इत्युपोद्घातनियुक्तिः॥ ८९१-९०२ किं कस्य केन कियचिरं कतिवि ॥१४१॥ ~349 Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि धमिति षट्पदा, सत्पदायेगेंती- ९३१-९३३ विद्यामनयोविशेषः, आर्यख- शैलेशी, अलावुकादियद्गतिः, -1 न्द्रियादिषु नवपदा, आरोपणाभ- पुटस्तम्भाकर्षकदृष्टान्तौ ४११ । लोके स्खलनेत्यादि ४३८ जनापूपठादापनानियोपनाभिः पभा-९३४-९३६ योगेअर्यसमित:. बागमे |९६०.९९२ सिद्धशिलावर्णन, सिद्धावगाह विधा प्ररूपणा ३७९ ९०३ मार्गाद्या नमस्कारहेतवः ३८३ गौतमः, अर्थे मम्मणः, यात्रायांनादेशप्रदेशस्पर्शलक्षणसुख (म्लेच्छ ___दृष्टान्तः) एकार्थिक (८) नमस्कार त्रुटितः ४१२ |९०४-२६ महासार्थवाहत्वादि, दृष्टान्ताः । फानि ४४२ |९३७-९५१ बुद्धिसिद्धलक्षणम् , औत्पत्तिसविशेषाः, रागद्वेषकषायेन्द्रियाणि (सदृष्टान्तानि) कषायनिक्षेपाः (८) क्यादिभेदाः, लक्षणानि दृष्टान्ताश. ९९३-९९९ आचार्य निक्षेपाः (४) ४४८ (षण्णयमार्गणा च) परीषहोपसर्गाः भरतशिलापण्यवृक्षायाः (१६) भ- १०००-१००७ उपाध्यायनिक्षेपाः (४) अ(श्लोका दृष्टान्तानि च) अईच्छब्द- रतशिलामेषायाः (२६) निमित्तार्थ- क्षरार्थादि ४४९ . निरुक्तिः, तन्नमस्कारफलम् । ४०६ शाखाद्याः (१४) सुवर्णकारकर्षका- १००८-१०१७ साधोनिक्षेपाः, सरू९२७-३० कर्मशिल्पादिभिः (११) सिद्ध- थाः (१२) अभयाद्याः (२२) - पादि ४४९ निक्षेपाः, कर्मशिल्पयोर्भेदः, सह- ष्टान्ताः ४३७ १ ०१८-१०२१ पञ्चविधत्वे क्रमे च शङ्कागिरिसिद्धः, कोकासो वर्द्धकिश्च दृष्टा-९५२ तपःसिद्धे दृढप्रहारी ४३८ | समाधानम् ४५० न्तौ ४०८ ९५३-९५९ सिद्धस्य निरुक्तिः, समुद्घातः, १०२२-१०२४ प्रयोजनफले, कर्मक्षयादि, +HARMACANCE ~350 Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्यादि सप्तके आवश्यके ॥१४२॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि 55454545445-45 अर्थकामादि (८)(त्रिदण्यावि-- अजीवप्रयोगे वर्णादि जीवस्य मूले १८३४ उद्देशवाचना(समुद्देशा)ऽनुज्ञा । ४७१ AAसामायिरष्टान्वाः ५) ४५१ शरीपञ्चकमनोपानावि, उत्तरे के-१०४०-४१ देशविघातिशुद्धी ककारला- काधिकाराः ॥ इति नमस्कारच्याख्या ॥ शरचनादि, सातशाटोभयानि । भः ४७२ १०२५-२६ नन्द्यनुयोगोपोद्घातान् ज्ञात्वा विस्तरेण,पटादिषु सामान्येन ४६२ १८४-१८५४ भयसौं । पञ्चमजलं पठित्वा सूत्रारम्भः ४५४१०२९-१०३८ क्षेत्रकालकरणे, जीवभाव- १०४२-४४ सान्न एकाधिकानि (सामसमस-1 ॥ अथ सामायिकव्याख्या। करणे श्रुते बद्धाबद्धनिशीथानिशीथे म्यगिकाः) निक्षेपाश्च प्रत्येकस्य, १ सू० सामायिकसूत्रम् । (अनादेशः, द्वैपायनाः) नोचते गुणे द्रव्ये शर्करातुलायोगचितयः, भावे दुःखाकरवं माध्यस्थ्यं शानादि १०२७-२८ सूत्रस्पर्श करणभयान्तसामायि- वपःसंयमी, योजनायां मनोवाकायाः . तत्त्रोतनं च ४७४ - कसर्ववर्ययोगप्रत्याख्यानयावज्जीव- (४-४-७) अधिकारब ४६२ १०४५ सामायिककार्थिकानि ४७४ त्रिविधानां निरूपणम् ४५६ १०३९ कृताकत केन केषु कदा नयः कति-१०४६-४८ कर्चाऽऽत्मा, कर्म सामायिक, १५२-१७४४ करणनिक्षेपाः (६), सब्ज्ञायां विधं कथं द्वाराणि ४६७ । करणमात्मा ॥१४२॥ कटकरणादि, नोसम्झायां धर्मादे। १७५-१७७४ कृताकृतादिद्वारविवेचनम् । १०४९ सर्पनिक्षेपाः (७) ४७६ करणादि, अभ्राण्वादिषु चाक्षुषाचा- १७८-१८२४ आलोचनाविनयक्षेत्रदिकाल- १८६-१८९४ द्रव्ये सर्वासर्वद्रव्यदेशैभङ्गाः, शुषी संघातभेदोभयादि विभसाकरणे गुणामिव्याहाराः । ४६९ सर्वधत्तनिरूपणं, भावसर्व च ४७६ ~351 Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम | १०५०-५१ क्रोधादयो वय, सम्यक्त्वादिः १०५९-१०६३ द्रव्यप्रतिक्रमणे चेलका, | न, संयमवतः पुष्पाचर्चा न ४९२ शस्तो योगः ४७८ भावे मृगावती, व्यनिन्दायां चि- १९६४ श्राद्धय द्रव्यस्तवः संसारप्रतनु१०५२-५३ प्रत्याश्याननिक्षेपाः (६), द्रव्ये- प्रकरसुता, द्रव्यगीयां माक्षणः, | करणः ४९३ निवादि, क्षेत्रे निर्विषयादि, भावे द्रव्यव्युत्सर्गे प्रसन्नचन्द्रः, अनुगम-१७ मईत्कीर्तनप्रतिज्ञा । श्रुते पूर्वापूर्वे नोश्रुते मूलोत्तरे। समाप्तिः ४८४ १०५४.१०५५,१९०४ यावजीवार्थ:,जाव-१०६४-१०६६ज्ञानक्रियानयो, उपसहारा, १९७-२०५४ द्रव्ये जीवाजीवो रूप्यरूपिणो |१०६८ लोकनिक्षेपाः (८) ४९४ निक्षेपाः, ओघे आयुः, भवे नार चरणगुणस्थितस्य साधुता ४९० । काद्यायुः, भोगे चश्यादि, अधि सप्रदेशाप्रदेशौ नित्यानित्यौ, गति|॥ इति सामायिकव्याख्या ॥ भाग २॥ कारश्च ४८० सिद्धभव्याभव्याः पुद्गलानागवातीत१०५६ सूत्रस्पर्शे सप्तचत्वारिंशं शतं भङ्गा-[.. ॥ अथ चतुर्विशतिस्तवः ।। धर्माद्याः स्थिति चतुके, क्षेत्रे ऊर्ध्वानाम् ४८१ |१०६७,१९१-१९२४ चतुर्विशतिस्सवे चतु- घस्तियंग्लोकाः, काले समयावलि१०५७ करणप्रत्याख्यानप्रतिक्रमणानां वर्त- विशतेः (६) सवस्य च (४) काद्याः, औदविकाधा उत्कटरागादिमानतादि ४८३ निक्षेपाः, द्रव्यस्तवे पुष्पादि, भावे मांश्च भावे, वर्णाद्यगुरुळपुतीप्रदुः-12 १०५८ त्रिविधेनेत्यस्य विवरणं, विकल्पगुण- स्तुतिः ४९१ खपरिणामाः पर्यवे ४९५ - भावना ४८४ |१९३-१९५४ भाषस्तवाव्यस्तवो बहुगुणो १०६९ लोकैकार्थिकानि (४) ४९६ सुत्ताणि ~352 Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्यादि सप्तके आवश्यके दीप क्रमांक के लिए देखीए १०७०-१०७३ द्रव्योद्योतेऽन्यादि, भावे १०९१-११०२ जिनानां सामान्यविशेष- | ॥अथ वन्दनाध्ययनम् ॥ चतुर्विंशज्ञानं, लोकालोकयोर्जिना भावोद्यो- नामहेतवः ५०२ तिस्तवा० १११४-१५ वन्दनैकार्थिकानि (४) कस्येत्यातकराः ४९६ ५ -६* जिनप्रसादप्रार्थना, आरोग्यबोधि वन्दनाध्य. दीनि (९) द्वाराणि च ५११ १०७४-१०७५ द्रव्यधर्मे गम्यादि कुलिङ्गश्च, समाधिप्रार्थना प ५०७ .१११६ वन्दनचित्यादिषु शीतलक्षुल्लकादिभावे श्रुतचरणम् ४९७ ११०३ नतिकीयकार्थिकानि (४-४) ५०८ १०७६-१०८०तीर्थनिक्षेपाः(४),द्रव्ये दाहो- ११०४ मिथ्यात्वाज्ञानात्रततमोभ्यो मुक्ता, दृष्टान्ताः ५१२ पशमादियुतं, भावे क्रोधाद्यष्टविध "१९१७-१९वन्दनीयावन्दनीये मालादृष्टान्तः, उत्तमाः ५०८ कर्मच्छेदि दर्शनादियुतम् ४९८ ११०५-१११२ प्रार्थनाया अनिदानता, .. ज्ञानादितीर्थाधिकार सूचा ५१६ |१०८१-१०८६ करनिक्षेपाः (६),द्रव्ये गोम- भक्त्या व्यवहारभाषा, उपदेशदाते, (१ प्र.) पार्श्वस्थादिभेदाः ५१७ हिष्यादेः (१८), भावेऽप्रशस्तः कल- भक्त्या कर्मक्षयः, तत आरोग्यावि- ११२०-३३ पार्श्वस्थादेवन्दने दोषाः, तस्य च हादिकरः, शस्तेऽर्थहितादिकरः ४९९/ लाभः, निर्भक्तिकोऽनायतिः, चैत्यादेः दुर्लभा बोधिः चारित्रनाशः, चम्पक|१०८७-१०९० जिनत्वाईत्त्वे,वर्शनादि, देश- संयमः श्रेयः। माला-शकुनीपारग-वैडूर्यदृष्टान्ताः नाकीर्तिः, भपिशब्दादन्यजिनाः, सिद्धिप्रार्थना ५१० (असत्सङ्गदोषाः) ५१९. ॥१४३॥ केवलित्वं च ५०० १११३ केवलेन लोकालोकप्रकाशः ५१०२०६४११३४.५१ लिङ्गाप्रामाण्यचर्चा, अ-14 २-४* चतुर्विशति जिनस्तुतिः ५०१ | ॥इति चतुर्विंशतिस्तवः ॥ ! पूर्वदृष्टे लिझावशेषे च पर्यायादिमति 440452 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~353 Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुल्तान नन्दी आदि सप्त- सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [आगम-४०] मूलसूत्र- १ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी - आदि- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) विधिः, प्रतिमामिषं रूप्यटकचतु भङ्गी ५२२ नानि तद्वादिनिराकरणम् ५३५ १२०० २ मन्दस्य सर्वोऽपि लोक आलम्बनम्, तीव्रस्य सचारित्राः ५३८ ११५२-६४ ज्ञानतीर्थवादः, आल्यादिना सुविद्दितज्ञानं, प्रत्येकबुद्धालम्बनानां चारित्रनाशः, उन्मार्गदेशका अद्र- १२०३ ६ ये शासनयशोधाविनस्तद्वन्दने दोषाः, ये यशःकारिणस्तद्वन्दने ष्टव्याः ५२७ गुणाः ५३९ १९६५-८२ (१-३प्र.) दर्शनतीर्थवादः चारि त्राच्छ्रेयो दर्शनं, अविरतश्रेणिकादयो १२०७ आचार्यादेः (स्वरूप) कृतिकर्म ५४० नरकगतिकाः, चारित्रपुष्टिः, उद्यमे १२०८-११ अमात्रादिसाधुर्वन्दक, अव्यागुणाः ५३० हिमादौ उपशान्तादीन् वन्देत १९८३-८६ सालंबन सेवा, भग्नानां तदेव १२१२-१३ प्रतिक्रमणादौ (८) ध्रुवाधुवाणि प्रधानम् ५३४ वन्दनानि १२१४-१८ पञ्चविंशतिरावश्यकानि तत्फउम् ५४२ ५४१ १९८७-९९ नित्यवासे चैत्यभक्तावार्यालाभे विकृतिप्रतिबन्धे च सङ्गमाचार्याः स्वामिन उदायoर्षयः आलम्य- १२१९-२६ बन्दनदोषाः (३२) ५४३ १२२७-२९ वन्दनाफलं ( विनयादितोऽक्रियान्तं ) विनयश्रेष्ठता च ५४५ २ सू. वन्दनकसूत्रम् । ५४६ १२३०-३३ इच्छादीनि (६), इच्छानुशा sवग्रहाणां निक्षेपाः (६-६-६) ५४८ 2 ~354~ १२३४-३५ अनुज्ञाप्य प्रवेशः, शिरःस्पर्शः, यात्रायापणे क्षामणा .५४९ १२३६-३७ आचार्यवचनानि, बन्दनप्रतीच्छाविधिश्व १२३८-४२ क्रियानैक्यपरिहारः द्वितीयवन्दनशङ्कापरिहारः, वन्दनफलं च५५० ॥ इति वन्दनाध्ययनम् ॥ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां नन्यादि अतिक्रमणाध्यानतकंच. देखीए दीप ॥१४ ॥ क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ACADRESCAC ॥ अथ प्रतिक्रमणाध्ययनम् ॥ थिके, पाक्षिकचातुर्मासिकसांवत्स- ७ सू. इच्छामि पडिक्कमिउं, इरिया। | १२४३-४४ प्रतिक्रमणप्रतिक्रमकप्रतिक्रान्त- रिकोत्तमार्थानि, महात्रवानि भक्तप- ८ सू. इच्छामि पडिकमि पगाम०। ४७४ व्यानि, आये त्रिकालिकं, द्वितीये रिशाच यावत्कथिके, उच्चारादावित्व- ९ सू. पडिकमामि गोयर० । ५७५ प्रशस्तयोगवान् ५५१ रम् ५६३ १०सू. पटिकमामि चाउ० (अतिक्रमादि) |१२४५-५४ कृतिक्रमणकार्थिकानि (८)प्रति-. क्रमण प्रतिचरणा-परिहरणा-वारणा १२६४-८४ मिथ्यात्वासंयमकषाययोगेभ्यः | ५७६ निवृत्ति-निन्दा-गह:-शुद्धीनां निक्षेपाः, संसाराहा भावप्रतिक्रमणं, गन्धर्वदत्त-११सू. परिकमामि एग०। (दण्डगुमिपूवा-1 अध्वादिनिक्षेपाः (6) अध्वादिष्टा दृष्टान्ते क्रोधाद्या नागाः, विषोचा- हरणानि ) ५७७ न्वाः (0) ५५७ रणे अनत्याहारादिविद्याप्रयोगः५६४|१२सू. पडि० वीहिं सल्लेहिं । (गौरवे मना१२५५ अधिकमासे चूतोपालम्भः ३ सू. बचारि मंगल सूत्र चार्यः, सानादिप्रत्यनीकता, सज्ञा१२५६ साभ्यं साधनीयं समरे वा मर्त्तव्यम् ४ सू. चत्तारि लोगुत्तमा सूत्र हेतवः, विकथाः (१६) ५७९ १२५७-६० आलोचने आराधना, आद्या-५ सू. चचारिसरणं सूत्र ॥ अथ ध्यानशतकम् ॥ न्तयोः सदा चारित्रे च दे, मध्यमा-६ सू. इच्छामि पडिकमिङ, जो मे देव०।१ मङ्गलं प्रतिज्ञा च (योगीश्वरः)५८२ | नामापन्ने चारित्रं चैकम् ५६२ । ५६९ ध्यानचित्तयोर्लक्षणे, भावनानुप्रेक्षा१२६१-६३ देवसिकरात्रिके, इत्वरयावत्क- १२८५ प्रतिषिद्धकरणाविषु प्रतिक्रमणम् ५७३ चिन्ताचित्तानि ५८३ ॥१४४॥ सुत्ताणि ~355 Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम 31३-४ ध्यानस्थितिः, चिन्ताध्यानान्तरे, । रागादिदोषध्यानं, फर्मप्रदेशाविध्यानं, १३ पडि० पंचहिं किरियाहिं (२५ ध्यानसन्तानः। लक्षणसंस्थानादि लोकक्षित्यादि जीव- भेदाः) ६११ ध्यानभेदास्तत्फलं च ५८४ लक्षणादि संसारसमुद्रव्रतपोतध्यानं, १४ पडि० पंचहिं काम । (ईर्यासमि||६-१८ आध्यानभेदाः, संसारवर्द्धनं, न क्षीणोपशान्ता धर्मस्य स्वामिना, पूर्व- त्यादिषु दृष्टान्ताः) ६१५ मुनेः शस्तालम्बनस्य, संसारबीजता धरकेवलिनः शुकृस्य, ध्यानोपर- ॥ अथ पारिष्ठापनिकानियुक्तिः॥ तस्य, लेश्यानिमित्तानि स्वामिनश्च । मेऽनित्यतायाः, लेश्याः पीताद्याः, १२८६-८९ प्रतिज्ञा एकेन्द्रिये तज्जाताजात।१९-२७ रौद्रस्य भेदाः, स्वामिनो, लेश्या अद्धादि लिङ्गम् । ६०२ । भेदी आभोगानाभोगजात्मपरप्रहलिङ्गानि च ५८८ ॥६५-९२शुहस्य क्षान्यायालम्बनानि, विषभा- णानि । ६१९ |॥२८-६४ धर्मध्यानस्य भावनादेशकालासनाल रतोयापनयनवद् योगरोधः, नानानय- २०७४ तज्जातस्याकरावी, अवजातस्य कार्पम्बनक्रमध्याव्यतध्यात्रनुप्रेक्षालेश्या पूर्वगतेन ध्यानं, केवलिनोऽन्त्यो भेदी, रादौ । ६२२ लिङ्गफलानि, ज्ञानदर्शनचारित्रवैरा- आश्रवद्वाराद्यनुप्रेक्षा, शुक्ला लेश्या, १२९०-९२ नोएकेन्द्रियत्रसेषु तज्जातातग्यभावनाः, स्थानकालासनानि, वाचअवधादीनि लिङ्गानि । ६०९ जाते ६२३ नादीन्यालम्बनानि, आज्ञाया विशेष-१९३-१०५ धर्मशुक्लफलानि,उपसंहारश्च ।६०९१२९३-१३१५ सचित्तसंयतमनुष्यपचेन्द्रिस्वरूप, कमभङ्गाः, गहने श्रद्धास्थितिः, ॥इति ध्यानशतकम् ॥ यस्याशिवादी कारणेऽनाभोगेन सुत्ताणि २५नंद्या. ~356~ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताण नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र- १ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्द्यादिसप्तके आवश्यके ॥ १४५ ॥ वा दीक्षितस्य कटिपट्टकादियतना, व्य- | वहारः, गुणयुक्सूत्रानध्यापनं, व्युत्सर्जनं, जड्डे मम्मणे च विधिः। ६२८ १३१६-५२ अचित्तसंयते गीतार्थेन परिष्ठा स्वाध्याय, शकुनाः, गतिः, अशिवे- ४२ नव ब्रह्मगुप्तयः । ऽपवादः । ६३७ | x ३ दशधा यतिधर्मः । १३५३-७० असंयते बाले, अचित्तवनीप- x४ (११) आवकप्रतिमाः । कादौ, नोमनुजसचित्ताचित्ते जलच- ४५ (१२) साधुप्रतिमाः । रादौ, नोत्रसे आहारादौ, आधाक- x६ (१३) क्रियास्थानानि । र्मादौ त्रिः स्थानं श्रवणं, आचार्याय- १६ चोदसहि भूमगामेहिं । ६४९ esजातं, नोआहारोपकरणे, वस्त्रे x७ (१४) भूतप्रामाः । रेखा पात्रे चीवरं (१.) मूलोत्तर- ४८-९ (१४) गुणस्थानान शुद्ध एकं द्वे त्रीणि, उचारादी छाया x१०-११ (१५) परमधार्मिकाः । दिग्द्वयं, अनुकूलेभ्यो दानम् । ६३९ x१२-१३ (१६) समयादीन्यध्ययनानि । इति पारिष्ठापनिका निर्युक्तिः ॥ ॥ पने प्रतिलेखनादीनि द्वाराणि (१६), महास्थण्डिलप्रत्युपेक्षा (१ प्र.) दिक् तत्फलंच; अनन्तककाष्ठयोर्ग्रहणं, अविषादः, अधिष्ठाने विधिः, पुत्तलकविधिः, आचमनं तत्पथाऽनिवर्त्तनं समा शय्या, ककारतकारकरणं, अभिग्रामं शीर्ष, चिह्न, उत्थाने त्यागः, १५ २०८ प्रवेशे योगवृद्धिः, नामग्रहणे विधिः, ४१ अप्रदक्षिणत्वं कायोत्सर्गे विधिः क्षपणा पढि० छहिं जीव० x१४ सप्तदशविधः संयमः । x१५ (१८) अब्रह्माणि । लेइयासु जम्बूखादकप्रामघातकट - x१६-१७ (१९) ज्ञाताध्ययनानि । ष्टान्तौ भयानि मदाय | ६४४ । x१८-२० (२०) असमाधिस्थानानि । ~ 357 ~ % % ন ध्यानश तर्क पारिठापनि कानि. ।। १४५ ।। Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक 20-25% यहां देखीए दीप % क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम एकवीसाए सबलेहिं । ६५५ |४२१-३० एकविंशतिः शवलाः । |४३१-३३ त एव प्रकारान्तरेण । |४३४-३५ (२२) परीषहाः। |४३६ (२३) पुण्डरीकादीनि अध्ययनानि |४३७ (२४) देवाः। F४३८-४२ पञ्चविंशतिर्भावनाः । |+४३ (२६) उद्देशानां कालाः |४४४-४५ (२७) अनगारगुणाः |४४६-४८ (२८) आचारप्रकल्पाः । x४९-५० (२९) पापश्रुतानि । ४५१-६५ (३०) मोहनीयस्थानानि । x६६ (३१) सिद्धगुणाः। ४६७ त एव प्रकारान्तरेण । । ॥ अथ योगसाहाः॥ पालकसुतराष्ट्रवर्धनसुतावन्तीसेनम- | १३७१-७५ आलोचनानिरपलापतादयो यो णिप्रभौ। ६९९ गसंग्रहाः (३२) ६६३ १ ३८५-१३८९ अलोभे क्षुल्लकः । यशोभद्रा-1 १३७६ आलोचनायामट्टनः दृष्टान्तः ६६४ राझ्यादीनां 'मुहु वाइय'मिति गीति|१३७७ निरपलापवायां दृढमित्रः । ६६६ कायां दानं, तितिक्षायां सुरेन्द्र१३७८ द्रव्यापदि धर्मघोषः । ६६७ दत्तः । ७०२ |१३९० आर्जवेऽनर्षिः। ७०४ १३७९ भावापदि दण्डः। |१३८० अनिश्रितोपधाने महागिरिः। ६६८१३९१-१३९३ शौचे यज्ञयशःपुत्रयज्ञदत्तपुत्र|१३८१ शिक्षायां स्थूलभद्रः, (क्षितिप्रति- नारदः (सीमन्धराया जिनाः)७०५ वितचनकपुरकरपभपुरकुशामपुरराज-१३९४ सम्यक्त्वे विमलप्रभाकरी ७०६ । गृहचम्पापाटलिपुत्राणि नन्दशक-१३९५ समाधौ सुत्रवर्षिः । ७०७ टालादयश्च)६९८ १३९६ वाचारे ज्वलनदहनौ । १३८२ निष्प्रतिकर्मत्वे नागदत्तः १३९७ बिनये निम्बकः । ७०८ |१३८३-१३८४ अशातत्वे धर्मवसुशिष्यौ, १३९८ धृतिमल्योर्मतिसुमत्यौ। सुत्ताणि 1562-595 ~358~ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां नन्यादि सप्तके आवश्यके देखीए ॥१४६॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम है १३९९-१४०० संवेगे वारत्रकर्षिः । ७०९/१४११-१२ अप्रमादे मगधसुन्दरी, 'पत्ते प्रकृतिपुरुषरूपो वा लोक इत्यस्य योगसंग्रहाः १४०१ द्रव्यप्रणिधौ गुग्गुलः, भावप्रणिधौ वसंवमासे' गीतिका। खण्डनम् । ७३० अखाध्याभवन्तमित्रकुणाली । ७१२ १४१३ लवाल विजयः। ७२१ २० व्याविद्धाविकाः (१४) भुताशा-1 यनि. |१४०२-३ सुविधौ वैतरणिः । ७१३ १४१४ ध्याने पुष्पभूतिः। ७२२ वनाः । ७३१ १४०४ संवरे नन्दश्रीः। १४१५ मारणान्तिके धर्मरुचिः ७२३ ॥ अथ अखाध्यायनियुक्तिः॥ | १४०५ आत्मदोषोपसंहारे जिनदेवः । ७१४ १४१६ स्नेहत्यागे जिनदेवः । ..१४१८-२३ अखाध्यायनियुक्तिप्रतिज्ञा संय१४०६ विरक्तत्वे देवलासुतः। १४१७ प्रायश्चित्ते धनगुप्तः, आराधनायां' मघातीपपातिकसादिव्यज्युहहशा१४०७-०८ मूलगुगप्रत्याख्याने शत्रुजयः, मरुदेवी । ७२४ रीरैः परसमुत्थं पञ्चधा । (म्लेच्छ-12 उत्तरगुणप्रत्याख्याने धर्मघोषधर्म- ॥ इति योगसङ्ग्रहाः॥ राजदृष्टान्तः सोपनयः) ३१७ यशसौ। ७१५ १८ तेत्तीसाए आसायणाहिं । ७२५ ९४२४.२६ महिकाभिनवर्षसचित्तरजांसि २०९-२१६४ व्युत्सर्गे प्रत्येकवुद्धाः (४), ४६८-७१ प्रयाधिशदाशातनाः, अहंदाशा- द्रव्यक्षेत्रकालभावैः त्याज्यानि, सोवृषभेन्द्रध्वजवलयचूतवृक्षस्वरूपम् । तनादिकाः सूत्रोक्ता वा ७२७ पनयपञ्चपुरुषीदृष्टान्तः ७३२ का॥१४६॥ १९ अईदाद्याशावनाः (१९) ७२८ २२०-२२१४ महिका दिखरूपम् । ७३३ १४०९-१० गजुवक्रयोर्गुणदोषाः । ७२१ २१७-२१९४ सप्तद्वीपोदधिः प्रजापतिकृतः | १४२७ संयमीपपातिके यतना । ७३४ - सुत्ताणि ~359~ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम SROSAROSCRECAPALESEARS १४२८-३० पांशुमासादिवर्षे ऽहोरात्रं, पां-११४५२-९९,२२६-२३१४ मानुष्यरुधिरादौ, १५००-१४ भात्मसमुत्थेऽस्वाध्याये व्रण-| श्वादिस्वरूपं, स्वाभाविके चैत्रीयका- जन्मनि सप्ताष्ट दिनाः, ऋतौ त्रयं, विधिः, श्रमण्या इतरस्मिन् सप्त | योत्सर्गे स्वाध्यायः। दन्ते त्यागः, अस्थि द्वादश वर्षाणि, बन्धाः, अस्वाध्याये श्रुताभत्तयावि, १४३१-४० गन्धर्वनगरादि सादिव्यं, अस्थिशोधने मृतकनयने च विधिः। उपसंहारश्च । (चतुस्त्रिंशतः शतं ग्रहणे आचीर्णानाचीर्णादि, महामहाः कालप्रतिलेखनायां भूमि (२७)प्रति- यावत्स्थानानि) ७५७ (४), अकालखाध्याये दोषाः ७३५ लेखना, श्राद्धादिकथाऽभावे सर्वे ॥ इति अखाध्यायनियुक्तिः॥ १४४१-४५ दण्डिकादिव्युद्हे अहते मृतके कायोत्सर्गस्थाः, प्रतिक्रमणं, कालप-. २१ जिननमस्कारः। ७६० विकीर्णे च विधिः । ७३८ हणविधिः, गण्डकदृष्टान्तः, काल-. ग्राहिगुणा, २२ प्रवचनवर्णनम् । १४४६-५०,२२२ जलस्थलखचराणां शोणि-, अद्धाना दिस्वरूपं, असंयमादित्यागः। वादो विधिः, अन्तहितिपकासख) व्यापावाः, सर्वैः प्रस्थापन, शङ्काविधिः, उल्कादिविधिः, तारामहाकाये च विधिः। ७४१ दर्शनं कालग्रहणकालप्रमाणं, प्रोषि-२४ अस्मृतप्रतिक्रमणम् । ७३२ १४५.१, २२३-२२५४ अण्डभेदे विधिः, | तपतिविधिः, हते नववेला प्रहणं, २५ मुनिवन्दनम्। (१८०००शीलाङ्गानि) अखाध्यायिकप्रमाणं, जरायोः पौ- व्याघातिमे न गण्डकमरुकदृष्टान्तौ । ८-९* सर्वजीवक्षामणानि ७६३ रुपीत्रयं, रुधिरस्पर्शेऽस्वाध्यायः। । ७५४ ॥ इति प्रतिक्रमणाध्ययनम् । भाग ३॥ सुत्ताणि ~360~ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां कायोत्स देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्यादि ॥ अथ कायोत्सर्गाध्ययनम् ॥ (१प्र.) एकार्थिकानि (११) च, भिक्षाचर्यायां | १५९५ दिवसातिचाराः । सप्तक ४१५१५ प्रायश्चित्तभेदाः (१०) चेष्टा, उपसर्गेऽमिभवः । ७७१ १५९६-९७ मुखपत्रिकादितोऽतिचारचिन्तन आवश्यके १५१६-२४ तदुद्भवागन्तुकत्रणदृष्ट्वान्तः सो-१५५०-५५ सांवत्सरिकोऽभिभवः, योद्धृट- ध्यानं च । ७८१ ॥१४७॥ पनयः । ७६४ ___ष्टान्तश्च । ७७१ १५९८-१६०१ दैवसिकादौ गमत्रय,तच्छङ्का४१५२५ कायोत्सर्गे निक्षेपैकार्थिकादीनि १५५६-५८उच्छ्रितोच्छूिताविभेदाः(९)७७२ समाधाने । (११) द्वाराणि । ७६६ १५५९-७५ कायोत्सर्गगुणाः, ध्यानलक्षण- १६०२-३ मिध्यादुष्कृताक्षरार्थः। २३२-२३५४ कायस्योत्सर्गस्य च निक्षेपाः फले, ध्यानस्थानं, न केवलं मनः-, परिणामो थ्यानं, भङ्गिकश्रुते त्रिविधं . १६०४-६ उत्तरप्रायश्चित्वादिव्याख्या ७८२ (१२-६) ध्यानम् । ७७३ १६०७-१३ उच्छवासाद्यनिरंभणं, वातनिस१६-४३ गतिकायस्तैजसकार्मणं, नतालि गादौ यवना, अन्याद्याकाराः।७८३ निकायकायो जीवनिकायः, द्रव्यका- ध्यानचित्तयोर्भेदः । ७७६ १६१४-२० ससूर्ये भूमि प्रेक्ष्य काले कायोयचर्चा, पर्यायकायः समूहः, भार-२६ इच्छामि ठाइट काउस्तम्गं । ७७८ त्सर्गः, गुरोर्द्विगुणं देवसिकं, प्रतिकायः कापोती, कार्यकार्थिकानि २७ तस्स उत्तरीकरणेणं. अन्नत्थ०७७९/ क्रमणविधिः। ७८४ (१३) (१-२प्र.)१५९४ एकमनसोऽतिचारज्ञानं २८ सव्वलोए अरिहंत० ७८६ १५४४-४९ उत्सर्गस्य निक्षेपाः (६) ततः शुद्धिश्च । ७८० २९, १०-१३* पुक्खरवरदीवड्ढे ७८८ ॥१४७॥ ~361 Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम SAKASACCECACADCASSAC+ |३०,१४-१८* सिद्धार्ण बुद्धाणं । ७८९ (१६३६ पादसमा उच्छ्वासाः । ७९७ । । पर्षत् कथनविधिः फळं च द्वा-४ | १६२१ बर्द्धमानस्तुतित्रयम् । ७९० . १६३७-४०,२३९-२४० (१प्र.) निर्माय राणि ८०३ | १६२२-२४ देवसिकरात्रिकयोः कायोत्सर्ग २४२-२४७४ (१५) प्रत्याख्याननिक्षेपाः ___व्यत्ययः, षण्मासीतपश्चितनम् । ७९१ १६४१-४४ कायोत्सर्गे विधिः, दोषाश्च (६) द्रव्ये राजसुतादृष्टान्तः, भावे १६२५ क्षामणेषु गुरुवाक्यानि । नोक्षुते मूले सर्वदेशे इत्वरयाव (१९) ७९८ ३१ क्षामणासूत्रम् । ७९२ कयिके, मूलगुणाः (१) ८०५ | ३२-३५ पाक्षिकक्षामणासूत्राणि । ७९३ १६४५-४७ वासीचन्दनकल्पस्योपसगेसहस्य १६५३-५८ श्रावकभेदाः (३२) (१४७ २३६-२३७४ चातुर्मासिकादौ देवताकायो- शुद्धः, सुभद्राद्या दृष्टान्ताः (४) भङ्गाः) ८०७ त्सगोंदि । ७९४ फलं च । ७९९ (१.१-४प्र.)अणुवतभङ्गा । (१६८०८)८०७४ | १६२६-२९ दैवसिकादिकायोत्सर्गमानम्। २४१४ कचवकर्मनाशः । ८०१ २६ सम्यक्त्वालापकः सातिचारः। 6 ७९५ १६४८-५१ कायोत्सर्गे भावना । ( अमियोगेषु कार्तिक-वरुणश्रा| १६३०-३५, २३८४ गमनागमनादौ मुक्तादौ वक-भिक्षूपासकसौराष्ट्रदृष्टान्ताः) अविहारे उद्देशादौ च कायोत्सर्गः ॥इति कायोत्सर्गाध्ययनम् ॥ तिचारेषु पेया अश्वापहृतनृपचौरदुर्ग(प्र.१-१.) दुःस्वप्ने नावुत्तारादौ व कायो- ॥अथ प्रत्याख्यानाध्ययनम् ।। न्धिकादृष्टान्ताः) (३६३ पाखत्सर्गः । ७९७ १६५२ प्रत्याख्यानप्रत्याख्यातृप्रत्याख्येयानि | ण्डिनः)८११ C4050-64004-CASSACREASkt सुत्ताणि ~362~ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां प्रत्याख्यानाध्य. देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम नन्यादि- 11३७ स्थूलप्राणातिपातप्रत्याख्यानं व्रतमार्य ४४ कर्मादानानि । ८२९ १ ६७० साकारप्रत्याख्यानं। ८४३ सप्तके सातिचारम् । कोकणकसाप्तपदिकक्षेम-४५ अनर्थदण्डः सातिचारः। ८३० १६७१ निराकारम् । ८४४ आवश्यके दृष्टान्ताः, व्रतविधिश्न) ८१८ ४६,१९-२१* सामायिके स्वरूपं शिक्षादि भे- १६७२ दत्त्यादिभिः कृतपरिमाणम् । ॥१४८॥ ३८ सातिचार द्वितीयम् , (कोकणकमथु- दाः सर्वपदाभगनमविचाराश्च । ८३१ १६७३ निरवशेषम् । रावणिपरिवादृष्टान्ताः) ८२०१७ दिन सातिचारम् । ८३४ १६७४-७५ अवमुक्ष्यादि सकेतं पौरुष्या-16 तृतीयं सातिचारम् । (गोष्ठीश्रा-४८ पौषधोपवासः सातिचारः। ८३५ द्यद्धाप्रत्याख्यानं च। ८४५ वकः) ८२२ ४९ चतुर्थ सातिचारम् । ( मात्रादिग-१ अतिथिसंविभागः। ८३७ १६७६-८१ एकविधमेकविषेनैतानि ८४६ मने दृष्ट्वान्ताः, कच्छकुलपुत्रकञ्च)/१० अणुप्रतादीनां कालः,सम्यक्त्वभेदाः, १६८२,२४८-२४९ श्राद्धकुलानां दर्शनं दानं | ८२३ प्रतिमाचा, संलेखनाऽतिचाराः।८३८ च, शुद्विषटुप्रतिज्ञा, श्रद्धानहानविनपञ्चमं सातिचारम् । (लोभ- १६५९-६१ उत्तरगुणे अनागतातिकान्तावि- यानुभाषणानुपालनाभावाः । ८४७ नन्दिः ) ८२५ (१०) प्रत्याख्यानभेदाः । ८४० २५०-२५७४ श्रद्धानादिस्वरूपम् । ४२ दिग्नतं साविचारम् । ८२७ १६६२-६३ अनागतं पर्युषणावितपः । ८४१५१ नमस्कारसहितम् ८४९ X४३ उपभोगादिपरिमाणं सातिचारम् । १६६४-६९ अतिक्रान्तं कोटिसहितं निय- १६८३-८४ आहारभेदव्युत्पची । ८५० ८२८ श्रितं (प्रथमसंहनने) ८४२ | १६८५-८७ सुखेन श्रद्धार्थ भेदाः। ॥१४८॥ सुत्ताणि ~363 Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४०] मूलसूत्र-१ 'आवश्यक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम १६८८ शब्दाहावः प्रमाणम्। ८५१ १६९९-१७०१ आचामाम्लभेदाः कुडङ्ग- १७१५ आज्ञयाऽऽज्ञामायो दृष्टान्तादितरो १६८९ स्पृष्टपालितशोभिततीरितकीर्तितारा- पञ्चकं च।। वाच्यः । द्वपदानामर्थः । ८५१ १७०२-५ विकृतिकनिर्षिकतिकविचारः। १७१६ प्रत्याख्यानस्य फले धम्मिादामनको |१६९०-९२ आश्रवद्वारपिधानादि मोक्षा- ८५७ दृष्टान्तौ। न्तं फलम् । १७०६ पारिष्ठापनिकाविचारः । ८५८ | १७१७ प्रत्याख्यानान्मोक्षः। ८६४ १६९३-९७ प्रत्याख्याने आकाराः। ८५२ १७०७-८ पारिष्ठापनिकाविधिः । ८५९ |१७१८-१७१९ ज्ञानक्रियानवे स्थितपक्षश्च, ५२ पौरुषीप्रत्याख्यानम् । १७०९-१२ क्षेतरयोश्चतुर्भङ्गी, प्रत्याख्यातप्रत्याख्यायकखरूपम् । ८६० चरणगुणस्थितः साधुरिति । ८६४ ५३ एकाशनप्रत्याख्यानम् । (विकृतौ १७१३ द्रव्येऽशनादि भावेऽज्ञानादि प्रत्या- । ॥ इति प्रत्याख्यानाध्ययनम् ॥ अभिप्रहे च भेदाः) ८५३ । ख्येयम् । ८६१ ॥ इत्यावश्यके वृद्धविषयानुक्रमः॥ |१६९८ विकृतौ अष्टनवाकारस्थानम् । ८५४ १७१४ उपस्थितविनीताब्याक्षिप्तोपयुक्ताः ८५४ निर्षिकृतिकप्रत्याख्यानम् । पर्षदः। ८६२ सुत्ताणि ॐॐॐ ~364 Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां ॥ ओघनियुक्तिवृद्धविषयानुक्रमः॥ AC देखीए प्रयोजन क्षेत्रप्रति लेखना. दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि सामाचार्युपक्रमेणाऽऽवश्यके सम्ब-८-१०४ वनकनकरजतलोहाकरदृष्टान्तः। ९/ व्यानि कुम्भवत् । १३ न्धयोजनारूप उपोद्धातः ॥ १ ११-१२+ अल्पाक्षरमहार्यचतुर्भङ्गी, ओघ- ६-७ एकोऽनेके, निष्कारणिका इतरे च, अहंदादिनमस्कारः, चरणानुयोगा- ज्ञातदृष्टिवादकांसादिदृष्टान्ताः।१० कारणिकैकस्यकथनम् । दल्पाक्षरादिनियुक्तिप्रतिज्ञा । २ १३-१४४ प्रथमालिकावमभक्त दृष्टान्तेनौप- ८ अशिवदुर्भिक्षादीनि (१०) कारओधैकार्थिकानि (४), नियुक्तिशनियुक्तिः । ११ ___णानि । १३ ब्दार्थः । ५ ॥ अथ प्रतिलेखना ॥ |१५-१६+ अतिशयावैराग द्वादशवर्ध्या निचरणसप्ततिः । ६ गैमः । १४ करणसप्ततिः। प्रतिलेखनापिण्डोपधिप्रमाणानायतन-१७-१८+ अशिवकारिणीखरूपं तत्र वा-18 |४x अन्यानुयोगसत्त्वात्पञ्चमी। ७ वर्जनप्रतिसेवाऽऽलोचनाविशुद्धयोणि च। |५x चरणधर्मगणितद्रव्येषु यथाक्रम द्वाराणि (७)। ११ १९-२२४ ग्लाने उद्वर्त्तनादिविधिः, अभिमहर्द्धिकता। ८ प्रतिलेखनैकार्थिकानि (१०) । १२ प्रवृद्धिः, सांभोगिके निक्षेपः, वृन्द६.७४ शेषाणां चरणार्थत्वाचरणं महत् । ५ प्रतिलेखकप्रतिलेखनाप्रतिलेखित- । घाते भिन्नता, एकीभवने आलोच-| C OACCISCEM ॥१४९॥ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' ~365 Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप २८+ नादि, सोममुख्यादावनन्तरविशेष- दोषाः, जागरणविधिः, प्रभातं या- ३३४ मधुसित्थपिण्डकचिक्खिलस्वरूपम् । स्थानादि । १५ वत्ससहायः, प्रामासन्नोपयोगः, हि-२५-२६ व्यालादिस्तेनाविप्रत्यपायाः, आका२३-२७+ अवमे गोदृष्टान्तो भेदे निर्विषय- मस्तेनाविभयं, नेहपयोवर्जन, स्थाभक्तनिषेधोपकरणजीवहरेपु, अन्त्य- पनाकुलाद्भिक्षा, अपरिणते गव्यू न्वानाक्रान्तसप्रत्यपायेतरे विधिः।३० योर्भेदः, अमिमरादिशङ्कया राजद्वेषः, तम् । २२ २७-२८॥ पादलेखनिकाखरूपम् । मालवक्षोभा, पावेन राजद्वेषः । १८१४ अस्थण्डिलसंक्रमणविधिः । (चल-२९-३४ अन्तरिक्षाप्काये विधिः, भौमेऽने-15|| निर्यापणाय सूत्रार्थपृच्छायै प्रविच- व्याक्षिप्तानुपयुक्तभङ्गाः (८) २३ । काङ्गादि (५) पदभङ्गाः (६४), संडेरितुं वा भेदः। २० पृच्छा(३)यतन(३-३-३-३-३)यो। वके चलादि (३) भङ्गाः(८), पाषाण२९.३०+ स्फिटिते मन्दगतिः औषधायः शैक्षो. विधिः। २४ मधुसित्यवालुकाकर्दमभेदैर्जलम् । । वा देवतादेशश्चेति भेदकारणानि। १६-२२ पुरुषस्त्रीनपुंसकानि स्थविरमध्यमत-३४+ संघट्टलेपोपरिभेदास्तीरे उत्सर्गश्च। ३२ ' रुणाः, स्वान्यधार्मिकौ, आत्मतृतीयः। ३१-३२+ चरमायां संदेशाः, आभिप्रहिका- उत्सर्गापवादो, पार्श्वस्थितोऽनुज्ञाप्यः, "३५-३९ संघटादिजलोत्तरणविधिः । भावे गणामवणं, पृच्छाविधिः, पृच्छायां पुरुषादिसंयोगाः। २९ ४०-४३ तेजोवायुवनस्पतित्रसद्वाराणि । ३३ कृतिकर्म । २१ २३-२४ पृथिवीकाये सचित्तादि (३) क-४४-४६ परसरसंयोगे यतना। ३५ |९-१३ पौरुषीकरणाकरणे, द्विरपृच्छायां । ष्णादि (५) शुष्काईगमनविधिः, ४७-६१ संयमादात्मनो रक्षा, न लोकेन क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम १५ SAKSHESARKESAXE SECRECENTROCEXA4-%C4-Site सुत्ताणि ~366~ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां नन्यादि देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम समानता, भवमोक्षयोस्तुल्या हेतवः, ६८-७२ चैत्यसाधुग्लानवैद्यानयनविधिः। ४०/५०-६४४ ब्रजपामयोः वीरमहणे विधातः.1 मार्गे ग्लाने सप्तके यतायतयोनिर्वाणभवी, दलिकं प्राप्य ७३-७६ एकाकिग्लाने विधिः। ४२ । ४ ओपनि-5 संखड्यां स्त्रीस्पर्शप्रभूतभक्षणादि, ग्रामप्रवेशे युक्तो. विधिनिषेधौ, अतिचारशुद्ध्योरेक-७७-८१ संयतीविधिः। दाननाद्धे घृतपुरुषादि, भद्रे लङ्ग-1 हेतुता, न परप्रत्ययो बन्धः, शुद्धयर्थ ८२-८४ श्रावकनिमन्त्रणे ग्लानयोग्यस्य ग्रह कादि, महानिनादे निग्धादिदोषाः,181 ॥१५॥ यतना, हिंसापरिणामो न शुद्धिलिङ्ग, णामहणे,पार्श्वस्थादीनां यतनया। ४४ पारिहट्टिकक्षीरादिना परितलितादिना | त्यागपरिणामस्य मुक्तिः ३८ ३५-४१+ ग्लानप्रति जागरकादिग्रहणामहणे व्याघातो ग्लानत्वादि च, तक्रौदन-2 ||६२ ग्लानसब्ज्ञिसाधर्मिकवसतिस्थितिद्वा विधिः, प्रासुकेन पञ्चानां, देवकुलिराणि प्रवेशे। योर्महणं, दूरोत्थितक्षुल्लकादौ प्रवेश:, कानां खरण्ट नम्, अविशेषे निद्वानां करणम् । ४६ कारणे दीर्घा भिक्षा, विधिनाऽऽपृच्छय | प्रवेशे ऐहिकपारत्रिकगुणाः, सा१४२-४६+ जिनाचार्याऽऽज्ञयोः प्राबल्यं, भो दोषवर्जनेन प्रवेशः, उद्गमादिप्ररूपणा, | म्भोगिकासाम्भोगिकैकानेकसाधर्मि- जिकदण्डिकदृष्टान्तौ । ४७ बहिःस्थाने दोषाः, प्रवेशे विधिः, कादिषु द्रव्यादियतना । ३९४७-४९४ प्रथमालिकार्य बहिर्गमनं यावद् दोषशुद्धिः, बालकाभावे विधिः, प्रवृत्तिः दर्शनं सङ्कडिआद्धा इहलोके, ग्लानवैयावृत्त्यं तदावश्यकता । ४७ शून्यगृहे विधिः, सागारिके विधिः, ॥१५॥ ग्लानचैत्यवादिप्रत्यनीकाः परलोके । ८५-९५ प्रजिकप्रामसंखडिदानश्राद्धभद्र विश्रामणा वैद्यबोधः, स्थण्डिलान्यप्रा६५-६७ स्वपक्षेण पृच्छा। विधयः मयोर्भिक्षा, न द्विगव्यूतातिक्रमः ५४ सुत्ताणि ~367~ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप **ASSASSASSACHUS % |९६-११६, ६५-६६+ साधर्मिके ज्ञाताज्ञान- १२४-१४३,६८-७२४यतमानविहरदवघाव- द्यनुज्ञापना, साधुमानकालाकथनं, रष्टादृष्टभुताश्रुतप्रशस्ताप्रशस्तविधिः, नाहिण्डकाः, प्रत्येकबुद्धाद्या निर्गताः, संकीर्णे प्राघूर्णके आगते विधिः, साधूनां बाह्याभ्यन्तरप्रत्युपेक्षणा, आचार्याद्या गच्छे, लिङ्गविहाराभ्या- अन्यपथे नागमनं, गुरोरालोचनं, संविनसम्झिभद्रकशून्येषु वसतिः, मवधावनता, गच्छगतविहरणविधिः, कथनविधिः, मतमहणं, आचार्यअमनोज्ञे निवेद्य मिन्ना वसतिः, क्षेत्राप्रत्युपेक्षणेऽनाप्रच्छने क्षेत्रे मार्गे प्रामाण्य, दुष्टाश्ववन्मध्यबलाः सामनोज्ञापरिभुक्तेऽपाक्षिकखाध्यायागतसंयतीवर्जिते पार्श्वस्थादिवसतौ च दोषाः, शिष्यप्रतीच्छकतरुण- घवः, तरुणाश्चतुर्थे, स्थविराया अनुस्थानविधिः,अशिवादौ स्थाने स्थितिः, वृद्धपृच्छाविधिः, बालवृद्धागीतार्थ- कूले, पच्चकैलं, शय्यातराऽऽपृच्छा, वर्षासु गमने दोषाः, स्थाने दण्डका योगिवृषभप्रेषणे दोषाः, कारणे अपृच्छायां नियमकथने च दोषाः, चार्यसामाचार्यों, एकाकिन उपसं. | विधिः। ६६ ज्ञापनविधिः, ७३ हारः। ६० १४४-१७५,७३-७८xगमने उचारभूम्यादि-१७६-२१०,७९-९४४ विण्टिका, प्रशस्त११७-१२३, ६७+ सागरमीनवत्त्याजिवाः, प्रत्युपेक्षणं, सूत्रार्थाकरण, क्षेत्रत्रिभा- तिथ्यादौ मध्याह्ने प्राग् वृषभप्रेषणं, चक्रस्तूपायर्थमनुपदिष्वाऽगीतार्थाः, गादिविधिः, गुर्वाद्यर्थ स्निग्धादि, स्थ- शकुनाः, शय्यातरालापन, उपकरगीतार्थतन्निवाविहारी, अन्यस्य वि- ण्डिलाविप्रत्युपेक्षणा, शय्यावरानुझा, जवहनविधिः, अप्कायवनायधिराधना ६० वृषभकल्पनया बसतिः, द्रव्या- करणं, पश्चान्मुक्तेन सहेता, स्वपना % क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि - 4%-29 २६ नंद्या ~368~ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्यादि सप्तके श्रीओषनियुक्ता. विहार विधिः भिक्षाविविश्व, ॥१५१॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि पुपघातः, गच्छगमनविधिः, स्थण्डि- धिः, साधर्मिकविधिः, बालोचनापूर्व स्थापनाकुलदर्शन, भिक्षाचैत्यविधिः, लदर्शनम्, उदसितादिना स्थानं । मण्डली, दिनत्रयं प्राघूर्णकाः। ८८ गृहचैत्यवन्दनायाचार्यगमन, त्रिस्थावार्थ रेखा, अभ्यासे गमनागमनं, २१७-२३६संकीर्णविस्तीर्णवसत्योरावश्यक्या न्यां दानकुलकथनं, स्थापनादि-8 वसतिग्रहणे प्रवेशः, व्याघाते | धिकरणाविका दोषाः, प्रमाणयुतायां कुलानि, तत्कथनविधिः, गीतार्थ- मार्गणा प्रवेशविधिः, भुक्त्वा प्रवेशे संस्तारकविधिः, निर्गमनविधिः, क्षु प्रवेशः, अन्यथा कदर्यनद्रव्यक्षयोदोषाः, विकाले प्रवेशे मार्गणे । द्माशुद्धिः, कार्यनाशाचार्याविहान्यौ | ल्लिकायां यतना विस्तीर्णायां च । ९२ संस्वारे उच्चारादौ च दोषाः, अपवा--.. जहादिदृष्टान्तेन । ९७ दव, रात्री प्रवेशविधिः, संस्तारक-/२३७-२३९ क्षत्रप्राप्तानों यवना, उद्याने २४०-१३३-१४५४ पैव्यापत्यकरलक्षणविधिः, निर्गमनविधिः, वसतिप्र- स्थान, मनलसादि, श्राद्धकुले द्रव्यप्रमाणावेशः, अप्रावृते विधिः। ८४ १०४-१३२४ प्रविशतां शकुनाः, स्पर्द्धकेन विज्ञान, भनेकप्रवेशे पचदश, बहि । हिण्डनेऽगारी दृष्टान्तः, कुब्जबदरी२११-२१६,९५-१०३x विहृताविहृतौ मा- प्रवेशः, उत्तिष्ठति धर्मकथी, शय्या- दृष्टान्तः प्राघूर्णकदाने। १०० मयोः, अवसन्ने पञ्चदश, संविनाध- तरालापः, अन्यथा दोषाः, आचार्य-२४१-२५६,१४६-१५०४ आपृच्छ्यान्यतनुज्ञा, पृथगवसतो विधिः, अविहुते धर्मकथा, संस्तारकविभागः, उच्चार- दन्यप्रामगमनं, अन्यथा स्तेसाधुरहिते विधिः, लाभे निवेदनवि-/ भूम्यादिकथनं, अभक्के नामङ्गलं, नादेशादिदोषाः, चैत्याद्यर्थ गते सूरौ % % % ~369~ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनिर्युक्ति' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) तन्नियुक्तः पूर्वनियुक्तो वा पृच्छयः | विस्मृतौ कायिक्युशारद्रवादिनिर्गतः शय्यावरादिना वा संदिशेत् दूरोत्थि 'तादिदोषपरिहारः स्थिताः प्रान्तप्रायं भुजते, चिरे प्रतिचरणं, एकः पथा द्वावुन्मार्गे, शब्दं कुर्वन्तञ्चिहं कृत्वा, वार्त्तालंभे बोल:, एवमुद्रमादिपरिहारः पुरुषाद्यपेक्ष्याचार्यवैयावृत्ये विशेषः, प्रथमालिका भक्तपानग्रहविधिः, प्रथमालिकाविधिः, पुनरहिण्डनमपि । १०५ २५७-२६३ संसक्के केवलिनः, संसक्तासंसयो स्थानां, समुद्वातोऽपि भाarतिलेखना, आरक्षकदृष्टान्तेन अनन्ता अतः, अप्रतिलेखनायां न सर्वाऽऽराधना, जितेन्द्रियो गुप्तस्तपोनियमसंयमवानाराधकः, जितेन्द्रि 'यत्वादीनां विवरणं, प्रेक्षोत्प्रेक्षापरिष्ठापनसंयमाः, स्वाध्यायः । ११४ २८२-२९६, १७४-१७७+ निश्चयव्यवहा राभ्यां पौरुषी, तद्वृद्धिहानी, अबमरात्राः, प्रतिलेखनाकालः, पात्रप्रत्युपेक्षणविधिः, मूषकोत्केरादिविधिः, पात्रस्थापना, वर्षाखबद्धं, ऋतुबद्धेऽबन्धने दोषाः । ११९ यनादेशाः, पुरुषोपध्योरविपर्यासः, २९७-३०९ आपातसंलोकभङ्गाः, स्वपक्षकथादौ पट्कायविराधना, अन्योऽन्याबाधयाऽसपत्त्रो योग:, मुक्ता परपक्षसंयतसंयतीसंविनासंविग्नमनोज्ञामनोज्ञतत्पाक्षिकान्यपाक्षिक द्रव्यप्रत्युपेक्षणायां दण्डः, किं कय- | मित्यादि भावप्रत्युपेक्षणा । १०६ २६४-२८१, १५१- १७३४ प्रत्युपेक्षणीये -त्रिधास्थानं, उच्चारादि कृत्वा कायोसर्गः, न सूरिपार्श्वमपृष्ठादौ भारादिदोषात् संडासादि प्रसृज्य निषदनं विनाऽध्वादि न दिवाशयनं, निरीक्ष्य प्रसृज्य चोपकरणादानं, मुखवस्त्रिकादिप्रतिलेखनाविधिः, वस्रो दि अनर्चितादि, अनारभटादि, ऊनरिक्तविपर्यासभङ्गाः, अरुणोदया ~ 370~ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्यादि सप्तके श्रीओपनि युक्तो . ॥१५२॥ S दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम मनुष्यतिर्यपुंखीनपुंसकदण्डिकको- विधिः, अवमहयाच्या, उपकरणस्थाटुम्बिकप्राकृतिकशौचाशौचना- | पनस्थानं, अमनोज्ञादिष्वपवादः। हप्तजघन्यमध्यमोत्कृष्टजुगुप्सिताजु १२६ गुप्सितविचारा, अधिकरण, शैक्षा- ३२३-३२५,१८६-१८७+हष्टस्य नावष्टम्भः, न्यथाभावः, परिभवसङ्केतो, अल्प- कुन्थ्वादिविराधना, यूकादिमर्दन द्रवादि, आहननादिदोषाः, तथा स कल्पते ग्लानस्य । १२६ लोके, मनापातासंलोकः शुद्धः।१२१ ३२६-३३०,१८८-१९१४ युगदृष्ट्या गमनं ३१०-३२२, १७८-१८५+ तृतीयायां का नोर्ध्वमुखादित्वेन, संयमात्मविराधने उसजा, आपृच्छापानकादि, पात्र पात्रभेदे उड्डाहादि, प्रतिलेखनाविधरणगमनडगळपणानि, अनापावा म्युपसंहारः । १२८ संलोकादि (१०) भङ्गाः (१०२४), ॥ इति प्रतिलेखनाद्वाराणि ॥ आत्मप्रवचनसंयमोपघाताः, स- ॥ अथ पिण्डद्वारम् ॥ माऽचिरकालतविस्तीर्णासन्नाबिल- ३३१-३७१ पिण्डगवेषणमहणमासैषणकथनव्याख्यान, दिपवनसूर्यच्छायादि- प्रतिज्ञा, पिण्डनिक्षेपाः (४-६)। द्रव्येऽचित्तः (१०) सचित्तमिश्री प्रतिलेखना (९-९) पृथिव्यष्कायाद्याः (१०)181 पिंडव. निश्चयव्यवहारसचित्तौ, क्षीरदुमादेरष एकादिपौरुषी मिश्रा, शीतोष्णा-| दिनाऽचित्तः, लूतादौ स्थानादौ च 3 प्रयोजनं, अप्काये बनोदध्यादयो । निश्चयेन, कूपादौ व्यवहारेण, बुद्रुवायादेशान् मुक्त्वाऽबहुप्रसन्नमनुद्वृत्तं पतिवमात्रं च, शीतोष्णादिनाs-| चित्र, परिषेकपानावि प्रयोजनं, ऋतुबद्धे धावने दोषाः, वर्षावधावन, वनधावनविधिः, नीत्रोदकग्रहणविधिः, धावने गुर्वादिक्रमः, आ- ॥१५२॥ च्छोटनादिवर्जनं छायातपयोः शो सुत्ताणि ~371 Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनिर्युक्ति' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी - आदि - सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी- साहित्य) पण, कल्याणकप्रायश्चित्तं, अभिकाये इष्टापाकादौ निश्चयेन, अङ्गारादौ व्यवहारेण सचित्तः, मुर्मुरादौ मिश्रः, ओदनव्य अनाथचित्तेन प्रयोजनं, वायुकाये धनवातादौ निःश्वयेन, प्राच्यादौ व्यवहारेण सचित्तः, आक्रान्तादिकोऽचित्तः, अचित्तस्य चितीभवने क्षेत्रकालमानं, अचिचेन हानादेः प्रयोजनम्, वनस्प तिकायेऽनन्तकायो निश्चयेन, शेषो व्यवहारेण प्रम्लानफलादिर्भित्रः, संस्तारकपात्रायचित्तेन प्रयोजनं, अक्षशङ्खादि-उद्देहिकादि-मक्षिकापुरीषादिना विकलेन्द्रियप्रयोजनं, चर्मा स्थ्यादिना तिरधि, प्रत्राजनादिना | मनुष्ये क्षपकादिकाठादिना देवे प्रयोजनम् । १३५ ३७२-४१०, १९२-२११+ लेपे नवानवसंयोगः, नाव कालिको लेपः, लेपे आत्मादिविराधना, न यवनायां अलेपे वाः, लवणे पाने रोट्टादौ संयमस्य पात्रदेशनालेपोऽपि दिष्टः, गत्वा लेपः, दस्ते शोषः, शय्यावर - हरिवप्रतिष्ठितादौ न महणं, वत्सवादन, आगम्या लोचनं, पविधिःवैयावृत्त्यविधिः, लिप्ते तापनधाव, नादिविधि:, अकार्ये लेपादियागः, शिशिरमीष्म यो ः स्थापनकाल:, अभीक्ष्णमुपयोगः, लेपसया, लेपयन्धप्रकाराः, पिण्डैकार्थिकानि (१२), भावेऽप्रशस्ते द्विविधादि, प्रशस्ते त्रिविधः । १४७ लेपः, प्रमुपृच्छा, लेपघ्राणं, षट्काय- ४११-४५८, २१२+२३९ + एषणानिक्षेपाः यतनेति पूर्वपक्षः सर्वेषां परिहार:, (४) गवेषणायां प्रमाणकालाव जीर्णानां दर्शयित्वा लेपः, पूर्वाद्दे श्यकसंघाटको पकरणमात्रककायोत्सकृत्वेच्छाकारं ग्रहणविधिः, न श- यस्पयोगाः सप्रतिपक्षाः, कालवारे, य्यातरपिण्डः, न नृपतेः पृच्छा, काले प्रथमपौरुष्यद्धत् प्राग् भ ~ 372~ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) S प्रत सूत्रांक यहां नन्यादिश्रीओपनि देखीए सप्तके युक्ती ॥१५३॥ + K दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम द्रप्रान्तादिदोषाः, स्फिटिते उद्गमाद्याः, नादि, सुविहिवालये गमनं, अवसन्ने । आवश्यकाशुद्धौ उहाहः, स्फेट- छोभः, ग्लानस्थापनाकुलयोः पृच्छा, नादि, एकाकिनः स्त्रीश्वप्रत्यनीक- बाहादिना दर्शनेऽन्यादिदोषाः, भिक्षाऽविशुद्धिमहानतदोषाः, गर्वित- प्रतिकुष्ठचिह्नानि, स्थापनाकुलेवकवित्वादीन्येकाकित्वकारणानि, ज- प्रवेशः, जुगुप्सितपिण्डादौ दुर्लभा घन्यत आचारभाण्डकं मात्रकं च बोधिः, प्रजाजनवसतिभक्तपानेषु गृहीत्वा गमनं, आपृच्छादीनि (४), प्रतिकुष्ठाः, प्रवचनानपेक्षस्थानन्तः श्राचार्याद्यर्थमनेकशो भिक्षा, समनो संसारः, एषणाऽनेषणयोरज्ञाने जिज्ञादिस्थाने व्युत्सर्जनं, गर्वितादौ नमताज्ञता, गच्छेऽपि पार्श्वस्थवा, प्रज्ञापना, प्रियधर्मण्यनुज्ञा, स्यादि द्रव्यभावगवेषणे कनकपृष्ठमृगहस्तिदोषे यतना, उपकरणादिष्वपवादः, दृष्टान्ती, भावे च धर्मरुचिवनखामात्रकामहणे दोषाः, त्वरितादावप्रहणं, कायोत्सर्गाकरणेऽनाभा मिनौ। १६० व्यं, स्वमामे स्मृतिकाले, परनामे ४५९-५०९, २४०-२६१+ द्रव्यमणैषणे पूर्ववत्पूच्छा, देशकाले पात्रप्रमार्ज- वानरयूथदृष्टान्तः, भावपणैषणे । आत्मप्रवचनसंयमोपघातपरिहारः, 8 लेप: एगवादिभिरात्मनि, पृथिव्यादिसंघट्ट- पणाच. नादिभिः संयमे, उच्चारस्थानादिभिः प्रवचने, अव्यक्ताप्रभुस्थविरपण्ड-18 कमत्तक्षिप्तचित्तहप्तयक्षाविष्टत्वग्दोपगुर्विणीबालवत्साकण्डयन्तीषिन्तीमर्जयन्तीकर्तयन्तीपिजयन्तीभ्यो न प्राशा, प्रहणे दोषाश्च, अव्यक्ते भद्रिका, केषुचिहणविधिश्व, दायकस्य गमने विधिः, नीचद्वारा-8 दावाहणं, स्थविरा अदृष्टावप्युपयो-18 गेन गृहन्ती, उपयोगविधिः, आग-IPI ॥१५३॥ मनविधिः, दातृपात्रावेक्षणे वणिगजायागोवत्सकदृष्ट्वान्तः, सन्नि-6 AGARSARKAR सुत्ताणि ACCAL ~373~ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ग्वाविपात्रवर्जन, पतितपिण्डनिरूपणं, विधिः, प्रतिसेवनाऽऽलोचनाविकटअन्यथा विराधना, गुरुद्रव्यपिधान- नाचतुर्भङ्गी, व्याक्षिप्तपराङ्मुखादेचतुर्भङ्गी, महास्थास्यादिनाऽग्रहणं, र्नालोचन, नृत्यबलचलादिवर्जनं, प्रीष्महेमन्तवर्षाखीनपुंसकतरुणम- ओघालोचना, सप्रतिमहशीर्षप्रमार्जध्यस्थविराणामुदकार्टादौ शोषभागाः, ना भक्तदर्शनविधिः, दूरालोचनकाप्रशस्ताप्रशस्तभावयोर्भ्रातृजायाह योत्सर्गः, स्वाध्यायप्रस्थापना, मण्डटान्ती, लोकोत्तरे वर्णाद्यर्थमप्रशस्तः, ल्युपजीवीतरे, प्राघूर्णकादिनिमन्त्रणं, वाचार्याधर्य प्रशस्तः, समुदान- अमहणेऽपि निर्जरा, एकस्य निन्दाशुद्धिः, प्रामकालभाजनपर्याप्तौ निवृ- पूजयोः सर्वेषां ते, वैयावृत्त्यस्याप्रति- तिः, भूमित्रिकेक्षणे परमावगाहे पातित्वं, भरतादिदृष्टान्तेन बहु- जघन्योत्कृष्टौ कालौ । १७४ लाभः । १८० ५१०-५३९, २६२-२७४+ पादप्रमार्जनं ५४०-६२६,२७५-३०८+ द्रव्यप्रासैषणायां नषेधिकीत्रयं वाग्नमस्कारः, प्रमृज्य मत्स्यदृष्टान्तः, भावेऽनुशास्तिः, श्रायष्टिभाजनवस्नस्थापना, कायोत्सर्ग- गढयोगिनियूंढाऽऽत्मार्थिकप्राघूर्णक - शैक्षकसप्रायश्चित्तबालवृद्धकुष्ठाद्याः पृथग्भोजिनः, द्रव्ये आलोको दी-15 पादिः, भावे स्थानादिः (७), मण्डलीनिष्कमणप्रवेशसागारिकस्थानानि वर्जयित्वा, गुरोरीशानानेयकोणयोः प्रकाशे प्रकाशमुखमाजने कुछुट्य-14 ण्डकमात्रकवलेन गुरुदृष्टौ ज्ञानाचथै भुङ्क्ते, मण्डलीकारणानि, वसतिपालकार्य, अच्छद्रवग्रहणं, गालनं, भाचाराद्यर्थ सुखाचमनाय, अच्छद्रवपात्रमानं, द्रवसत्त्वविधिः, प्रतीक्षा, असहिष्णौ विधिः, मण्डलीस्थविरखरूपं, पूर्वोक्तानि स्थानादीनि, रत्नाधिकः पूर्वमुखः, क्षपकादीनां सागा सुत्ताणि ~374 Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्यादि सप्तके श्रीओपनि युक्ती ॥१५४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि रिकरक्षा, मल्लकाहणभोजनविधिः, बाघभियोगे, छाराक्रमेण परिष्ठापन, ६३३-६३५ उचारादि (२४) काल (३)-18 मंडलीयथाकृतानि पूर्व, निग्धमधुराणि, योगविद्यामनेषु दृष्टान्ताः, पाचा- भूमिप्रतिलेखना। संध्याकटकातरच्छेदौ, सिंहखादितं, धू- यद्यर्थमधिकग्रहण, तरुणाचाचार्यो ६३६-६३८ निर्व्याघाते सर्वे, श्राद्धादिकथा-10 विधि: माङ्गारवर्जनं, सुरसुरादिवर्जनं, भो- मण्डलीभोजी, सूत्रार्थस्थिरीकरणादि, व्याघाते गुरुं विना, सूत्रार्थस्मरणाय जनं, सारासारता, स्तन्यनिर्जरे,ससा- द्रव्याद्यैराचार्ययोग्य, ग्लानाद्यर्थ बहु कायोत्सर्ग कुर्वते,बालादिरुपविष्टः।२०० रोपवेशनोत्थाने, पात्रकभ्रमणविधिः, भिर्याचनं, अजातायां पुषत्रयं, ६३९-६६६ त्रिस्तुत्यनन्तरं कालग्रहणं, घर शालायां कथायां वा व्याघातः, तृतीधूमाङ्गारस्वरूपं, यात्रामात्रार्थमा- पुजकरणकारणं, अनापावादिस्ख याय निवेदनं, कालग्रहणविधिः, हारः, हितायाहाराः अरोगिणः, ण्डिलचतुष्क, अशक्तस्य साझादी, तद्वपापाताः, गण्डकोपमाः, कालवेदनादीन्याहारकारणानि, आतङ्का- तत्र न्यायश्च । १८९ इविपिण्डः सन्ध्ययोः समता, कालमाहिगुणाः, दीन्यनाहारकारणानि, आहारस्याप-६२०६३२ चरमपौरुष्यां स्वाध्यायः, भक्ता- शवायां विधिः, स्वाध्याये मरुकदृष्टावादता, पात्रसंलेखनविधिः, उद्धृत- भक्तार्थिनो मुखानन्तकसकायगुर्वन- न्तः, खगणे त्रयाणां शङ्किते घावः, भोजनविधिः, परिष्ठापनविधिः, शनग्लानशैक्षोपधिप्रतिलेखना, अभ- प्रादोषिके समकं खाध्यायः, कनक ॥१५४॥ जाताजाते, एकान्तानापावादी एक- कार्थिनश्वरमः पट्टः परस्य पट्टकमात्र- वारकोल्का व्याघातः, वृषभादीनां शपुजेन, लोभे पुजदयेन, विद्याम-. कादि, पुनः स्वाध्यायादि। १९९/- यनयामाः,ऋतौ चतुर्यु चतस्रो दिशः, ~375 Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम अष्टेऽपि तारके प्राभातिका, खिते-६७५-६७९, ३१३-३२०+ आर्यिकाणां प- संख्या, प्रमाण प्रयोजनं च । २१३॥ नापि काळमहर्ण, कालमहणविरु श्च विंशतिरुपकरणानि, तत्स्वरूपं, उ-७०४-७०५ रजत्राणप्रमाणप्रयोजने । जागरणशयनविषेरतिदेशः। २०७ | स्कृष्टः ८ मध्यमः १३ जघन्यः ४७०६-७०७ कल्पानां प्रमाणप्रयोजने ।२१३ ॥ इति कालग्रहणविधिः॥ ६८० जिनकल्पिनामक पात्र, स्थविराणां ७०८-७११, ३२२+ रजोहरणस्य स्वरूपं ॥ अथोपधिनिरूपणम् ।। 6. मात्रकद्वितीयम् । २१० प्रमाणं किंमयत्वं प्रयोजनं च । २१४ ६६७ उपध्येकार्थिकानि (८) २०७ ६८१-६८४ पात्रकप्रमाणम् । ७१२-७१३ मुखवखिकायाः प्रमाण प्रयोजनं ६६८ मोधिकौपग्रहिको, गणनातः प्रमाण- ३२१+ यावृत्त्यकरस्य २१० च । २१४ तब। २०८ ६८५ नन्दीभाजनं, तत्प्रयोजनं च । ७१४-७२१ मात्रकस्य विधाप्रमाणं प्रयोजन, ६६९-६७२ स्थविरकल्पिकानां चतुर्दश, जि- ६८६-६९१ पात्रलक्षणापलक्षणानि । २११/ अनुज्ञाहेतुः, वत्र ग्रहणे विधिः।२१६ नकल्पिकानां द्वादश, भार्याणां पच-६९२-६९३ पात्रप्रयोजनं पटायरक्षादि ग्ला-७२२-७२३चोळपट्टकस्य प्रमाणे प्रयोजनं च। विंशतिः, ऊर्ध्वमौपग्रहिकः। नादि च। |७२४-७२५ संस्तारकोत्तरपट्टयोः प्रमाणं प्रयो६७३ जिनकल्पिकानां जघन्यमध्यमोत्कृष्ट ६९४-६९७ पात्रबन्धकस्खापनकगोच्छकप्रत्यु- जन च । २१७ उपधिः । पेक्षणिकानां प्रमाणानि प्रयोजनं च। ७२६ रजोहरणाभ्यन्तरनिषद्याप्रमाणम् । ६७४ स्थविरकल्पिकानां मध्यमः । (जघ- २१२ २७ वर्षासु वर्षाकल्पादिगुिणः । न्योत्कृष्टावपि) |६९८-७०३ पटलाना खरूपं, कालविशेषेण ७२८ यथावते न सन्धनाच्छेदी । . सुत्ताणि ~376~ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/१] मूलसूत्र-२/१ 'ओघनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि 18|७२९-७३० चर्मचर्मकोशकादीनि औपन- ॥अथानायतनवर्जनम् ॥ । र्णा, मिन्नवर्गेऽष्टकर्णा, सिद्धाव-18 उपधिः ताहिके गुरोः, प्रत्येकं दण्डयष्ट्यौ। २१८७६४-७८२ अनायतनस्सैकार्थिकानि (४) सानाऽपि, तदेकाथिकानि (८)। आयतन श्रीओपनि- ७३१-७४१ यष्ट्यादिः (4), यष्टया लक्षण, खरूपं, ततो हानिः, भावुकाभावु- ॥ इत्यालोचना ॥ शुद्धिब. तत्फलं, प्रयोजनं च। २१९ ७४२-७४७उपकारकमुपकरणं तद्धारणरीतिः। ॥ अथ विशुद्धिद्वारम् ॥ ७४८-७५४ प्रयोगेनानवद्यस्य न बन्धः,शान्य-७८३-७८६ आयतने जिनगृहादि द्रव्ये, भावे ७९३-८०९ वैयदृष्टान्तेन जानतोऽपि गहज्ञानिप्रमत्तानां हिंसासु विशेषः।२२० पार्चे शुद्धिा, अज्ञानादिना प्रति-IA |७५५ आत्मैव हिंसाहिंसे, अप्रमत्तोऽहिं- तत्सेवाफलं च। २२४ सेवा, बालवदालोचना, दुर्लभबोसकः, पर इतरः । २२१ ॥ इत्यनायतनवर्जनम् ॥ ध्यनन्तसंसारित्वहेतुः शल्यं, नि:७५६-७५९ परिणामविशेषात् हिंसाविशेषः, ॥अथ प्रतिसेवनाद्वारम् ॥ शल्यस्यासन्ना मुक्तिः । २२७ अन्यभावा मनोऽमनोरक्तादेः। ७६०-७६३ यतनायां विराधना निर्जराफला. ७८७-७८९ मूले (६) उत्तरे (३) च प्रति- ॥ इति विशद्धिद्वारम् ॥ निश्चये परिणामः प्रमाण, बाह्यकरणा सेवना, तदेकाथिकानि (८) २२५८१०-८१२ सामाचार्या उपसंहारः फलं लसाश्चरणघातकाः, विधिमानाय- ॥ इति प्रतिसेवना॥ । मानं च । ॥१५५॥ वनम् । २२२ ॥ अथालोचनाद्वारम् ॥ ॥ इत्योपनियुक्तिवृहद्विषयानुक्रमः ॥ ॥ इत्युपधिनिरूपम् ॥ ७९०-७९२ दुःखक्षयार्थ विशुद्धिः, चतुष्क 6456464560564545454 ~377 Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां ॥ अथ दशवैकालिकबृहद्विषयानुक्रमः॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम SASSAMACROCOMCHOCOCAROO मालोपोद्घाती सिद्धनमस्कारेण ११-१२ कालनिक्षेपाः(९) विकाले नियूँढमिति च, प्रथमाध्ययने द्वारचतुष्क, धर्म-18|| मंगलं, नियुक्तिप्रतिज्ञा च। दशकालिकम् १ प्रशंसाऽधिकारः मङ्गलत्रिकं मंगलनिक्षेपश्च । २ १३ येन यं यदादीनि (५) द्वाराणि १० २७-३३ ओघेऽध्ययनानि नामायाः, भावे श्रुतज्ञानेनुयोगः ३ १४ जिनप्रतिमादर्शनबुद्धशय्यंभवनम- अध्ययनाक्षीणायक्षपणाब्याख्या १६ (४) अपृथक्त्वे ४ स्कारः (शय्यंभवकथा ) १२३४-३६ द्रुमपुष्पयोनिक्षेपाः (४) एकार्थिनिक्षेपैकार्थी (४) दीनि (११) १५ मणकायोवृतम् । कानि (६) च १७ कल्पवर्णितगुणस्यानुयोगयोग्यता ६/१६-१८ आत्मकर्मसत्यप्रत्याख्यानप्रवावपूर्वे-३७, हुमपुष्पिकैकार्थिकानि (१४) १९|| दशकामधुतस्कन्धाध्ययनोदेशनि- भ्यो गणिपिटकापडाबोद्धारः१३ । (रजवणिग्दृष्टान्तः) क्षेपाः १९-२३ दश अध्ययननामानि तदर्थाधिकाराः १ देवनमनीयधर्मस्वरूपं, देशादीनि, एककनिक्षेपाः . . व्याख्यालक्षणं च २० दशकनिक्षेपाः (६) २४ चूडाद्वयार्थाधिकार: ३८ पृच्छापुच्छयोः कथनम् २१ बाल्याचा दश दशाः८ २५-२६ पिण्डार्थोपसंहारः प्रत्येककथनप्रतिज्ञा ३९-४३ धर्मनिक्षेपाः (४) द्रव्येऽस्तिकायप्र HOTOSAKALASA १५ सुत्ताणि [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' ~378 Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्द्यादिसप्तके श्रीदशवे कालिके. ।। १५६ ।। ४४ ४५ ४६ ४७ ४८ ४९ ५० ५१ ५२ चारधर्माः, भावे पर्यवाः, गम्यपशु - (५३ देशराज्यादि (९), कुतीर्थिकः सावयः, छोकोत्तरे (२) २३ द्रव्यभावमङ्गले २४ अहिंसामङ्गाः (४) संयमभेदाः (१७) २५ शिवो वा दृष्टान्तः द्रव्यानुयोगे सव्यभिचारे विशेषणम् ४४ ५४-५६ अपावोपायस्थापनाप्रत्युपन्नविनाशः, ६९-७२ प्रत्युत्पन्नविनाशे गान्धर्वोदाहरणं शि द्रव्यापाये भ्रातरौ क्षेत्रापाये दशाई- ध्यरागनिषेधः शून्यवादिवचनास्तिवर्ग: काले द्वैपायनः भावे मण्डूक- ता, जीवसिद्धौ जीवाभाववचनं ४६ काक्षपकः ३९ ७३-८० तद्देशाहरणे अनुशास्तिः (३) सुभद्रा गुणोत्कीर्त्तने, आत्मनः कर्तृत्वं, उपालम्भे (मृगावती) नास्तीति कुविज्ञानं, पृच्छायां (कोणिकः ), निआयां गौतमखामी ( कुविज्ञानपरोक्षतायां च दानाय फळता ) ५२ ६३-६५ अप्रत्यक्षस्यात्मनः सुखादेप्राता द्र- ८१-८२ तदशेषाहरणे अधर्मयुक्ते ( नळदाम ) फालभावसंक्रमे ४३ तैर्वा परिणाम साधनं च प्रतिलोमे ( अभयगोविन्दवाचको आत्मोपन्यासे (पिङ्गलः) दुरुपनीते (मिक्षुकः) ५३ | ६७-६८ स्थापनाकर्मणि उष्ट्रलिण्डकं हिंगु अभ्यन्तरं तपः (६) ३२ जिनवचने मोत्रपेक्षया हेतुः धर्मे ३३ पंचदशावयवे वाक्ये ३३ चरितकल्पितोदाहरणयोश्चातुर्विध्यं, हेतुश्च चतुर्धा ३३ दृष्टान्तैकार्थकानि (५) ३४ चरितकल्पितयोः आहरणतद्देशत | दोषोपन्यासाः पृथिव्यादिसंयमभेदाः (१७) २६ ५७-५८ द्रव्यायपायानामुपयोगः क्रिया ३९ वाह्मं तपः (६) २९ ५९-६० द्रव्यानुयोगे जीवस्य नित्यानित्यत्वे ४० ६१-६२ उपायचातुर्विध्यं ( अभयोक्ता वृद्धकुमारीकथा ) ४२ ~ 379~ द्रुमपुष्पि कार्या आहरणाधिकारः. ॥ १५६ ॥ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम | ८४-८६ उपन्यासाहरणे तवस्तुनि (अपूर्व-/९९-११० अभप्रहणात् मुनेरारम्भः, एणा-1 कर्मगत्या सर्वे (अनाकाशाः) विहा साधका) वदम्यवस्तुनि अन्यत्वे दिभ्यः वर्षादिवत , आदित्यात् वृष्टिः, योगतिः (वक्राः) चलनगतिः (संसाएकत्वे प्रतिनिमे (लक्षधारण) हेती किं दुर्भिक्षनिर्घातौ? ऋतौ प, न भ्रम- रिणः) संज्ञायां पक्षिणः ७१ यवक्रयः) ५७ 'रेभ्यो द्रुमपुष्पन,भ्रमरयुक्तो ठुमः न, ४-५*१२४-१२५ एषणात्रिकं अदत्तादान८७-८९ हेती यापके (उष्ट्रलिंडानि) स्थापके कर्मणः, अभ्रमरा अपि मा प्रकृत्या त्यागच, उपसंहारशुद्धिः अनुपघातः | (लोकमध्यं) व्यसके (शकटवित्तिरिः)| भरतौ पुष्पनं, न भमणार्थे पाकः, का- यथाकृतग्रहणं अनिश्रितादानं नानालूषके (मोदकः) ६२ न्तारादौ रात्रौ च पाकात्, श्रमणा- पिण्डाः साधवः ७२ | ९०-९२ प्रतिक्षा हेतुर्दृष्टान्त उपनयो निगमनं हेतुतः, अश्रमणे पाकः प्रकृत्या, तत्र १२६-१३७ असंयताः श्रमणाः न, देशोपमच धर्मे ६३ श्रमणानां एषणा नवकोट्यादिशुद्धस्य त्वात् ७४ हुमवत् नागराः, भ्रमर|९३-९६ अत्रैव प्रतिज्ञातद्विशुद्धी हेतुतद्विशुद्धी . सिद्धिरुपसंहारष ६८ वत् मुनयः, स्वभावसिद्धमन्वेष१-४+ दृष्टान्तवद्विशुद्धी ६४ शृंगवत् एषणारताः श्रमणाः यन्ति, भ्रमरवत् अवधजीविनः, २* भ्रमरवद् गोचरी ६४ २ ९४-२२३ द्रव्ये विहङ्गमः कर्म, भावे ईर्यादिषु यताः, उपनयनोपसंहार९७-९८ अमर बाहरणको, अलियनवृत्तिवा गुणसंकावन्ती गुणसिख्या लोको विशुद्धी, दयादिगुणैः साधित -विहङ्गमा, भावगत्या अस्तिकायाः) खात् धर्म उत्कृष्टं मङ्गलं, तीर्था सुत्ताणि ~380 Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्दादिअनु.आव. ओष, दश. पिण्ड, उत्त. ॥१५७॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम AKASGAccc न्तरीया अबुद्धयतनाः, उद्गमाविमो-१५५-१५९-१३. श्रमणस्वरूपं, उरगविषा- न्यपराधे (क्षुल्लकदृष्टान्तः) शीलाजिनोऽगुप्ताः, योगेन्द्रियदमात् सा- गुपमाः ८४ रक्षार्थ तर्जन, अष्टादश सहस्रशीधवः साधकाः १६०-१६१ श्रमणकार्थिकानि (११) (२०). लानानि ९१ * १३८-१४९ दशावयवाः (प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा- पूर्वनिक्षेपाः (१३) ८५ -९* अच्छन्दा न त्यागिनः (सुबन्धुहविशुद्ध्यादयः प्रतिज्ञा तद्विषयविभागः ष्ट्वान्तः) स्वाधीनत्यागे त्यागः (काहेतु: तद्विषयविभागः साध्यादिवि-६* काममग्नः संकल्पवशः छहारकदृष्टान्तः) न सा मे नाहं तस्याः पर्ययः तनिषेधः दृष्टान्तस्तदाशङ्का-१६२-१६७ कामनिझेपाः (१) द्रव्ये उदय- (भिन्नघटदासीजायार्थिदृष्टान्तौ) ९५ प्रतिषेधौ निश्चयः) ८० । कराः, अप्रशतेच्छा, धर्मोत्क्रामक-१०-१२ आतापनाशुपदेशः, वान्तापानं, १५० शानक्रियानये ८० त्वात् कामत्वं, कामानां रोगवं, वान्तेच्छायां मरणं श्रेयः ९६ १५१-१५३ नायमीत्यावृत्त्या द्वयोः, सिद्धा भावे इच्छामदनौ ८६ १ ३-१६* राजीमत्युपदेशः, उपसंहारा (नुन्तपक्षः, उपसंहारः ८२ १ ६८-१७९ पदनिक्षेपाः (४) द्रव्ये आकु- पूरपण्डिताख्यानं ) ९९ ॥ इति द्रुमपुष्पिकाध्य०१॥ । .ट्टिकाद्याः (११) भावेऽपराधेतरे, ॥इति श्रामण्यपूर्विकाध्य०२॥ ॥ अथ श्रामण्यपूर्विकाध्य०॥ | अन्त्ये मातृकानोमातृके, अन्त्ये ॥ अथ क्षुल्लिकाचारकथा । १५४ श्रमणनिक्षेपाः (४) पूर्वनिक्षेपाः प्रथितप्रकीर्णके चतुरनेकप्रकारे, | १८०-१८९ क्षुल्लकनिक्षेपाः (८) आचार-18 (१३) ८३, गद्यपद्यगेयचौर्णखरूपं, इन्द्रियादी- निक्षेपाः, द्रव्याचारे नामनादीनि, सुत्ताणि ॥१५७॥ ~381 Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत C सूत्रांक - यहां देखीए CACA दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ACACADEMOCCUSA 'भावाचारे ज्ञानाचारादयः (सुळसा त्मपरशरीरेहपरलोकाः संवेजिन्या, ॥ अथ षड्जीवनिकाध्य०॥ . श्रेणिक-वअस्वामि-आर्यापाढ-अका दसः, इहपरलोकपापविपाका: ५+ षट्जीवनिकोद्देशः, संबन्धः १२० सूत्रपाठि-विद्यार्पकचण्डाल-आ निवेदिन्याः, तसः, संवेगनिदख-२१८-२२१ जीवाजीवाधिगमचारित्रधर्म(५)-IN लापकशिव-अशकटपिता-नापितहरूपं, कथापावापय च ११४ यतनोपदेशधर्मफलानि प्रतिज्ञा, एष्टान्ताः) १०६ २०८-२१७ लोकवेदसमयैः मिश्रा, श्रीम ककनिक्षेपाः (७), षटू निक्षेपाः (६) कराजचौरादि (९) विकथाः, प्रज्ञा- २२२-२२३ निक्षेपप्ररूपणा लक्षणास्तिलान्य१९०-१९३ अर्थकामधर्ममिश्नकथाः, विद्या पकापेक्षयाऽकथाकथाविकथाः, तत्- वामूर्तत्वनित्यत्वकर्तृत्वदेहव्यापित्व-४ शिल्पोपायानिर्वेदसञ्चयदाक्ष्यसाम खरूपं, श्रमणस्याकर्तव्यकर्तव्ये, | गुणित्वोर्ध्वगतित्व निर्मयत्वसाफल्यपदण्डभेदोपप्रदानान्यर्थकथा, (सार्थकथाकरणघातरीयौ ११५ रिमाणैः जीवपरीक्षा १२१ वाहमुतादिदृष्टान्तः) १०९ |१९४ रूपवयोवेषदाक्ष्यविषयशिक्षादृष्टभु१७.२६* औदेशिकावीन्यनाचीर्णानि (५२) २२४ जीवनिक्षेपाः (४) भारे ओघभव। तद्भवाः वानुभूतसंस्तवाः कामकथा |२७-३१% आश्ववर्जनादि,आतापनावि,परी-६-८+ अगुणपर्यायो द्रव्ये, आयुष्मान् ओघे, १९५-२०७ आचारव्यवहारप्रज्ञप्तिदृष्टिवादाः पसहावि, दुष्करक्रियादि, कर्मक्षया- चतुर्विधस्तद्भवे १२२ आक्षेपिण्यः, तसः, स्वपरसमय- वियुताः सिद्धिगामिनः ११९ ९-१०+सूक्ष्माः सर्वलोके, पर्याप्ता अपर्याप्ताश्च, मिथ्यासम्यग्वादा विक्षेपिण्या, आ- ॥ इति क्षुल्लिकाचारकथा ३॥ । भादराः सुत्ताणि ~382 Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां नन्दादिअनु. आव. देखीए ओघ, दश. पिण्ड, उत्त ॥१५८॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम GRO4SCRCLES २२५-२९६, ११-२४+ लक्षणकार्थिकानि ४५-४७+कारणाविभागादि, नित्यत्वे कार-२३४ मूलप्रथमपत्रयोरेककत्ता १४० (५) आदानपरिभोगयोगोपयोगक-| णाविभागविनाशाभावप्रत्ययाभावाः, ५८-६०+ विध्वस्ताविध्वस्ते योन्यौ, अन्य-द। पायलेश्याऽऽनप्राणप्राणेन्द्रियबन्धो- विरुद्धाप्रादुर्भावाः १३० स्थापि व्युत्तमः मूलजीवकृतं प्रथमप ३-४ अदयनिर्जराचित्तचेतनासंज्ञाशानधार-२२०-२२९, ४८-४९+ स्तनामिलापोपस्था- त्रकन्दादिवीजातं, अध्ययनार्थाः पञ्च,8 ध्ययने. णाबुद्धीहामतिवितर्काः लक्षणम् १२६ नादेन नित्यः, निर्मयः, उपसंहारः१३२ सूक्ष्मसूक्ष्मसूक्ष्मसूक्ष्मवादरवादरसूक्ष्म२५-३८+२२७ शब्दादस्तिता, न शून्य-५०-५७+ कर्तृत्वादीनि द्वाराणि १३४ । बादरवादरबादराः पुद्गलाः अणुस्कसिद्धिः, जीवाभावे दानाद्यानर्थक्यं क्य, २३०-२३१ कायनिक्षेपाः (१२) (कापोती- न्धाद्याः, धर्माद्या नोपुद्गलाः १४३ नित्यो जीवः, पृथग्देहात् , अच्छेचा रष्टान्तः) निकायकायेन अधिकारः २ षट्कायदण्डनिवृत्तिः भेद्यः, सपुरीषः, आसीद् गजः, त्रिविधः संसारः, आदिमत्प्रतिनिय प्रथममहावते सूक्ष्माविवधत्यागः (उपताकारान् , ज्ञानादेः ज्ञानसिद्धदर्शनात् १सू. षड्जीवनिकोदेशपृच्छानिर्देशाः, स्थापनायां पटादिदृष्टान्ताः, पठितादो) आप्तवचनात् जीवसिद्धिः, अन्यत्वा षड्जीवनिकायखरूपं च १३८ । सूक्ष्मत्रसस्थावरौ वादरत्रसस्थावरी मूर्तत्वनित्यत्वागि १२८ २ ३२-२३३ शस्त्राग्निविषादीनि शस्त्राणि भा- च १४६ M ॥१५८॥ ३९+४४ नेन्द्रियाण्युपलब्धिमन्ति, अमूर्त- पवाकाया विरुद्धा भावे, स्वपरोभय- ४ सृपावादत्यागो द्वितीये, सद्भावप्रतिषेनित्यत्वे.१३० कायमयं द्रव्ये, असंयमो भावे १४०/ धादिचतुर्भङ्गी च १४६ १३५ ३ सुत्ताणि ~383 Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम CAT बदत्तारामविरतिः तृतीये १४०४१-५६७१प्र. जीवाजीवशास्त्र संयमः, ततः] पाणायाः, अधिकाराः, कोटिनवक मैथुनविरतिः चतुर्थे १४८ पारम्पर्येण क्रमशः सिद्धत्वं, सुगते- षट्सगमकोटिः, क्रीवत्रिके विशुद्धिः, परिग्रहविरतिः पञ्चमे १४९ दुर्लभसुलभत्वे, प्रियतपादेः पश्चा- विशुद्ध्यविशुद्धिकोट्यौ, नवाष्टदशादिराषिभोजनविरतिः षष्ठे, चतुर्भशी, प्यमरभवनं १५९ भेदाः १६३ सर्वत्रते (४७)भङ्गाः, प्रतिपत्तिश्च ५७-५९४२३५ श्रामण्याविराधनोपदेशः उप-६०-६१५ मिक्षाकाले अव्याक्षिप्तेन चरणम् संहारश्व १६० ६२-६७६ महीं पश्यन् पीजहरितादि अव१०. पृथिवीकायवधयापा ॥ इति पहजीवनिकाध्य. ४॥ | पातविजलमादि संक्रमं अकारावि - अप्कायवधत्यापः १५१ ॥अथ पिण्डैपणाध्ययनम् ॥ । प्यादि च वर्जयम् १६४ १२ अग्निकायवधत्यागः १५३ |६१-६२+२३६-२४६ उपक्रमः पिण्डे एप-६८-७० पैश्यासामन्ते अनायतने अच१३ वायुकायवधत्यागः १५४ णायां च निक्षेपाः, द्रव्ये गुडौदनावि रणम् १६५ १४ बनस्पतिकायवधत्यागः १५५ भावे क्रोधाविकाः, धात्वर्थः पिण्ड-७१-७७* वाद्यनुलपनं अनुन्नतादि स्थान |१५ बसकायवधत्यागः शब्दार्थः, सचित्तादीनां द्रव्यैषणा, द्रुतगमनाविवर्जन थालोकायध्यान |३२-४०* अयतनायाः कटुक फळं, बसनया भावे प्रशस्ता सानादिना अप्रशस्ता राजादिरश्यवर्जन प्रतिकुष्ठादिनि गमनावि, पापकर्माबन्धकस्थितिः१५७... क्रोधादिना, भावस्योपकारित्वं द्रव्यै , पेधः कपाटानुद्घाटनं १६७ (११ सुत्ताणि ~384~ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए कालिके. ४.५-६ अध्ययने I दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्यादि- ८* वर्षोमूत्रयोरधारणं ११४-१२३७ औदेशिकादि (७) वर्जनं निः-१५६-१५९४ तिक्कादेरनिन्दा मुधदायिजी अनु. आव.. ७९-८५* नीचद्वारादिपुष्पाकीर्णादिवर्जनम्, शंकितमहः पुष्पापुन्मिश्र दकतेजोनि- विनौ दुर्लभी सुगतिको च (परित्रा R ओष, दश एलकायनुसंधनं, असंसक्तं लोकन, क्षिप्तं सत्वष्कनादिना अकल्यम१७५/ जकदृष्टान्त।) १८२ पिण्ड. उच्च. अतिभूमिवर्जन, सानादिसँलोकवर्जनं, १२४-१२८७ संक्रमनिश्रेण्याचारोहेण ब. | ॥इति प्रथम उद्देशः ॥ ॥१५९॥ दकमृत्तिकादिवर्जनं १६८ नं १७६ १६०-१६२* सर्वभोजनं, असंस्तरे पुनर्ग81८६-८८ अकल्यं परिशाटितं प्राणादिस- १२९-१३३* कंदादि, सक्तचूर्णादि, सरज- वेषण मर्दयुतंच वर्जयेत् १६९ आदि, बह्वस्थिकादि, बहूज्झितकं च १६३-१७२७ काले निष्कमादि, अकालचरणे 8 १८९-९५* सचिचे निक्षिप्तादिः, अवगाहा, पु- वय १७७ - गर्दा, अलाभे न शोचः, भक्तार्थ्यनुराकर्मणा, सदकावि, भसंसृष्टेन १३४-१४०० चिरपौतमजीवमास्वाद्यानस-1 हानं, कथात्यागः, अर्गलाधनवष्टवर्जनम १७० . मलं गृहीयात्, विपरीतं परिष्ठा- म्भनं, श्रमणाधनतिक्रमणम् १८४ *९६-१०३* अनिसृष्टस्य, गुर्विण्याः कालमासे, पयेत् १७८ १७३-१८३* उत्पलादि संलुच्य संमर्थ दत्तं - स्तम्यं ददत्या न माह्या भिक्षा १७२ १४१-१४५* गोचरे भोजनविधिः १७८ । न गृह्णीयात् , अनिर्वृतं शालूकादि|१०४-११३० दकवादिपिहितं, दानपुण्यव- १४६-१५५* आलोचनविधिः स्वाध्यायो वि- प्रवालादि-तरुणिकादि-कोलतन्दुलक नीपकश्रमणार्थकमकल्प्यम् १७४ | श्रामणा निमश्रण भोजनं प १८० । पित्यफलमन्वादिवर्जनम् १८६ CACASCCC ॐॐॐॐॐॐॐॐ ~385 Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) १८६ १८४-१८७ समुदानचरोऽदीनः अदा | ॥ अथ महाचारकथा ॥ नेक्रोधः २४७ आचारनिक्षेपाद्यतिदेशः १९१ १८८-१८९* वन्दमानं न याचेत, नव्यनत्योः २१०-२१४* राजादिकृतः गणिं प्रति धर्मसाम्यं १८६ प्रभः साध्वाचारयुतः दुश्वरं आचारं कथयेत् १९२ २४८-२५० अगार्यनगारधर्मौ, अनुप्रतादिकः (१२) क्षान्त्यादिकञ्च (१०) १९२ २५१-२६० अर्थनिक्षेपाः (४) द्रव्ये (६) १९० १९४* अनिगूहनं, अमोक्षोऽन्यथा, विरसानयने पूजाद्यर्थे मायाशल्यादि च १८७ १९५-२०० सुरामेरकादिदोषाः १८८ २०१-२०४ तपखिनोऽमद्यपस्य गुणाः २०५ २०८ तपोवयोरूपस्तेनदोषाः २०९* भिक्षैषणाशोधिफलं १९० व्यतिरिके धान्यानि (२४) रत्नानि (२४) स्थावरः (३) द्विपदः (२) चतुष्पदः (१०) कुप्यभेदः (६४) १९३ | ॥ इति द्वितीय उद्देशः ॥ ॥ इति पिण्डैपणा० ५ ॥ २६१-२६४ कामः सम्प्राप्तः दृष्टिसम्पातादिकः (१४) असम्प्राप्तः अभिलाषचिन्तादिकः (१०) १९४ ~386~ | २६५-२६८ धर्मार्थकामाः जिनवचनेऽविरोधिनः, स्वच्छाशयप्रयोगात्, धर्मफळमोक्षाभिप्रायात् जिनमते मोक्षः १९५ | २१५-२१६*२६९-२७० समुहकव्यक्तानां स्थानानि प्रतषट्कादीनि अष्टादश, अन्यतरसेवको न श्रवणः १९६ २१७-२३४* प्रथमे सर्वजीवाहिंसा प्रियजीवितस्थात्, अविश्वासभूमिर्नृपा, त श्रात्मपरार्थं श्रूयात् दन्तशोधनमाश्रमपि नादचं गृहीयात्, घोरमधर्ममूलं मैथुनं न सेवेत, बीडादिसन्निन कुर्यात्, वस्त्रादि संयमार्थ, दे ऽपि न ममता, एकभक्तं, रात्रौ सूक्ष्मप्राणादर्शनं उदकादिवर्जनं २०० Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्यादि 18||२३५-२५ तस तदाश्रितानां च वधात् २६९-२०२ शुपिरादिषु प्राणसत्त्वात् खान भमे हे पर्याप्ते, सम्यग्दृष्टेः सत्याः अनु. आव. पृथ्वीजलवनस्पतीना, तीक्ष्णषदिक- कल्कादिकं वा कोऽपि नाचरेत् २०६| अनुपयोगे मिथ्यादृष्टेनासत्या, परावओष, दश. प्रसाना, सर्वभूतशत्रत्वात् तेजसः, २७३-२७५७ उपरतमैथुनय विभूषावर्जन चनादौ अवध्यादौ च असत्यामृषा, पिण्ड. उत्त. तालवृन्तादिना वनादिना वातस्य२०२/२७६-२७७* कर्मक्षयानादाने आचारफलं संचारित्रस्य प्रथमा इतरस्खेतरा २११ |२५५-२५८० अकस्यपिण्डशय्यावस्नपात्र- ॥१६॥ ॥इति महाचारकथा ६॥ २८५-२९० शुद्धिनिक्षेपाः (४) द्रव्ये तद्रव्यत्यागः, नित्यक्रीतौदेशिकाहृतत्यागः ॥ अथ वाक्यशुद्ध्यध्ययनम् ॥ तव्यादेशप्रधानः, आदेशेऽन्यानन्य-18 (शिक्षकाकल्पस्थापनाकल्पौ) २०२ त्वाभ्यां वर्णादिभिः प्राधान्ये, भावे २५९-२६१७ शीतोदकारम्भात् पश्चात्पुर: २७१-२८४ वाक्यनिक्षेपाः (४) द्रव्ये भाषाकर्मसम्भवात् कांस्यादिभाजनेषु न द्रव्याणि, वचनैकार्थिकानि (१२) तद्भावादिषु प्रदेशप्रधानः, प्रधाने भोजनं २०३ प्रहणनिसर्गपराघातैर्द्रव्ये, भुतचारि- दर्शनज्ञानचारित्रतपसा शुद्धिः, संय-18 २६२-२६४* दुष्प्रतिलेख्यत्वात् आसन्या त्रैर्भावः, भाराधना सत्या, विराधने मशुद्धिकारणं वाक्यशुद्धिः २१२ चमोगः २०४ सूषा, सत्या जनपदादिभेदेन दशधा, २९१-२९४ दुर्भाषितेन विराधना, अकुश२६५-२६८ मचर्य विपत्तेः वनीपकप्रति- कोषमानादिमिरसत्या दशधा, - उस्य मौनेऽप्यगुप्तिः, कुशलस्य सदैव घातात् प्रतिक्रोधादेश्च अवृद्धादेहे- त्पन्नविगतादि मिर्मिश्रा दशधा, था- गुप्तिः, बुद्ध्या प्रेक्ष्य वाच्यं २१३ . ऽनिषदनं २६८ मनण्यादिभिर्व्यवहारे द्वादशधा, प्र-२७०-२८१७ द्वयोर्विनयः, योनिषेधः२१३ ~387 Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) २८२-२४७ नेपध्यस्त्रियं स्त्रीत्वेन भाषणे किन ? एण्यदादौ * शंक्यतां न श्रूयात् २१५ २८८-२९७ परुषादि काणादि होलादि आर्यिकादि हलादि न ब्रूयात् २१६ २९८-३०२* पुंस्त्रीति स्थूलादि दोह्यादि न ब्रूयात्, परिवृढादि युवगवित्यादि ब्रूयात् २१७ | ३०३ ३१२ प्रासादादि-पीठावि-आसनादियोग्या इति न श्रूयात् जातिमन्त इत्यादि श्रूयात्, पकफलेत्यादि न, असंस्कृता इत्यादि ब्रूयात् २१९ ३१३-३२३* पक ओषधिः इत्यादि न ब्रूयात् रूठा इत्यादि भूयात् संखज्यादौ वागूविधिः, नथादौ आहारादौ २९५-३०० आचारेऽतिदेशः, द्रव्यभावाभ्यां ३३२-३३४* अनुवीच्यभाषायां प्रशंसा, हितानुलोमतादि तत्फलं च २२४ ॥ इति वाक्यशुद्ध्यध्ययनम् ७ ॥ ॥ अथाचारप्रणिध्यध्य० ॥ उत्कृष्टमहार्षतादौ सन्देशे क्रयादौ अल्पार्थतादौ च वाग्विधिः २२१ ३२४-३३१० आख आयात इत्यादि नासंयताय लपेत्, असाधुं साधुं नालपेत्, ज्ञानादियुतं साधुमाळपेत्, युद्धे जया- ३०१-३१० क्रोधादिरोधे नोइन्द्रियप्रणिधिः, जयो वातवृष्टयादि मेघादिकं देवादि- कपायारोधे गजनानवत् इक्षुपुष्पवत् वेन सावयानुमोदकत्वेन न श्रूयात्, निष्फलं श्रमण्यं, शुद्धेः प्रशस्ताप्रशअवधारणोपघातकोधादियुतं न भूस्तत्वं तयोः फलं, अनायतनानि यात् २२३ त्यक्त्वा संयमाथै प्रणिधिः, प्रणिध्यप्रणिधिफलं २२७ ३३५-३४६* आचारप्रणिधिप्रतिज्ञा, पृथ्व्यायो जीवाः तद्बधवर्जनं तद्वधभेदनिषदनादिवर्जनं, शीतोदकं उड़काद्र दिसेवासंलेखनादिवर्जनं, अम्बा ~ 388 ~ प्रणिधिः, द्रव्ये निधानादि, भावे इन्द्रियनोइन्द्रियोः रागादित्यागः प्रशस्तः, अन्यथाऽप्रशस्तः, तुरगवत् इन्द्रियाणि २२५ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्द्यादि अनु. आव. ओष. दश. पिण्ड. उत्त. ॥ १६१ ॥ विघट्टनादिवर्जनं, व्यजनवर्जनं तृणादि । छेदादिवर्जनं त्रसहिंसावर्जनं २२९ ३४७-३५०० अष्ट सूक्ष्माणि ३५१-३६२* पात्रादिप्रतिलेखना उच्चारादिपरिष्ठापना परागारे स्थानभाषायतना, दृष्टादेरनारूपेयत्वं, गृहियोगासमाचार:, लाभालाभानिर्देशः, अप्रासुकीताद्यभोजनं, सन्निधिवर्जनं, रूक्षवृत्तित्वादि, शब्देऽरागः, स्पर्श- ३८५-३९४* नक्षत्राद्यनाख्यानं उच्चारभूमिसहनं, क्षुदादिसहनं रात्रावभोजनं युक्तशय्यादि नारीकथावर्जनादि चिच २३२ स्वस्त्रियः अभ्यानं अकर्णनाशाया अपि वर्जनं विभूषादेर्विषत्वं अंगाचनिरीक्षणं विषयेष्वप्रेम अतृष्णत्वादि २३८ ३६३-३७४* अतिन्तनादि परिभववर्जनादि 'संवरणादि जितेन्द्रियत्वादि अमोघवचनत्वादि भोगनिवृत्त्यादि, जरादि पीडाद्यभावे धर्मकृतिः क्रोधादेरवमने | ३९५-३९८* निष्क्रम गश्रद्धापालनं तपःदोषाः घातोपायाः फलं च २३४ स्वाध्यायादि स्वाध्यायभ्यानादिफलं दुःखसद्द जितेन्द्रियादेर्मोक्षः २३९ ३७५-३८४* रत्नाधिकविनयादि अल्पनि द्रत्वादि श्रमणधर्मयोगादि बहुश्रुत- ॥ इत्याचारप्रणिध्यध्ययनम् ८ ॥ पर्युपासनादि आलीनगुप्तत्वादि पक्षा- ॥ अथ विनयसमाध्यध्य० ॥ दिध्वनिषदनं पृष्ठमांसादिवर्जनं अत्री- ३११-३२४ विनयस माध्योर्निक्षेपाः (४-४) तिकवर्जनं दृष्टादिवादित्वं अनुपद्दासः २३६ द्रव्ये तिनिशसुवर्णादीनि भावे लोकोपचारे अभ्युत्थाना अस्यासनातिथिदेवपूजा (५) अर्थे कामे भये च अभ्यासवृत्ति छन्दोऽनुवर्तनावसरदान दानाभ्युत्थाना अल्यासनदानादि, मोक्षे (५), दर्शने सद्भावश्रद्धानं ज्ञाने पठनगुणनकृत्यानि चारित्रे कर्मापचयः तपसि स्वर्गमोक्षसाधनं प्रतिरूपे ~389~ दशवे कालिके. ८-९ अ. ॥ १६९ ॥ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) काये अभ्युत्याना अल्यासनदानामि | प्रइकृतिकर्मशुश्रूषानुगमसंसाधनानि (८) वाचि हितमितापरुषानुवीच्यभाषा (४) मनसि कुशलाकुशलोदीरणरोधी २४१ गुरवः शिखीव नाम इव अनर्थाय ४१८-४२४* अविनीतस्य काष्ठवत् वहनं, शिक्षायां कोपनः श्रीनिषेधकः, वि नीता विनीतयोस्तथाविधयगजवत् नरनारीवत् देवेश गुरुकवत् सुखदुःखे २४८ अयोधये च पावकाद्याक्रमणादिवत्, आशातना दुर्मोचा च पर्वतादिभेदादिवथ, मोक्षाकांक्षी गुरुप्रसादेप्सी २४५ ३२५- ३२८ परानुवृत्तिमये प्रतिरूपे तीर्थ- ४०९-४१५* उपगतज्ञानोऽप्याचार्यमुपति ४२५-४३८* आचार्यशुश्रूषया शिक्षावृद्धिः, करसिद्धकुलगुणसङ्घ क्रियाधर्मज्ञानशान्याचा रस्थविरोपाध्यायगणिनामनाशावनाभक्ति बहुमानकीर्तनैः (५२) केवलिनामप्रतिरूपः २४२ शिल्पाच गृहिणोऽपि बन्धवभादि, गुरुपूजकाच, किं पुनः श्रुतमद्दे, नीचशय्यागतिस्थानादि, अपराधक्षामणा, दुर्बुद्धिर्गलिगोवत् नोदनार्थी, कालादिकमवेक्ष्य कुर्यात्, विनयाविनयफलं शाला शिक्षेव, न चपडादिकस्य मोक्षः, निर्देशवर्त्यादीनां सिद्धिः २५१ ३२९ द्रव्य समाधौ त्रिफलादि, भावसमधौ । दर्शनशानचारित्रतपांसि ॥ इति द्वितीय उद्देशः ॥ ३९९-४०८* सम्भक्रोधमदप्रमादेभ्यो वि ष्ठेत् धर्मपदशिक्षकं सत्कारयेत्, लज्जादयादिशिक्षकं पूजयेत्, श्रुतशीलयुतः सूरिः सूर्यवत् इन्द्रवत् चद्रवच धर्मकामिनां तोध्यः, आचार्याराधकस्य सिद्धिः । २४६ ॥ इति प्रथम उद्देशः ॥ नयाशिक्षणं, मन्दबालापश्रुत इति ४१६ ४१७* मूलात् स्कन्धादिवत् धर्मात् गुरु निन्दया मिथ्यात्वं, आशातिता / कीर्तितादि, २४६ ~ 390~ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्यादि- अनु. आव. ओष, दश.8 पिण्ड. उत्त. ॥१६२॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ACEBSCCCCCCCC ४३९-४५३७ इङ्गित हावा आचार्वमारा-१७-४५५७ शुश्रूषाप्रतिपत्तिः आराधना-/ धयेत् , बाचायव विनयः, गुर्वना- नुवर्षः विनये २५६ शातनः पूज्या, रात्रिकादिषु विनीतः, १८-४५६ शानैकापचित्तवपरस्थापनानि अज्ञातोम्छादि, अल्पेच्छादि, वाक- श्रुते २५७ रकसहा, दुरुक्तानि वैरानुबंधीनि, १९-४५७* इहलोकपरलोककीत्यर्थ न, धर्माय वचनाभिघातसहनं, अवर्ण- किंतु निर्जरायै तपः वादप्रत्यनीकावधारणीवर्जका, लोलु-२०-४५८-४६०४ इहलोकपरलोककीयोथैर्ने पादिरहितः, समरागद्वेषः, अहेलकः, किन्त्वाईतै तुभिः उक्तसमाधिमान पूण्यपूजकादि, पचवतादि, गुरु- स्वपक्षक्षेमकारी सिद्धो देवो वा स्यात् । प्रतिचरणात् मोक्षः २५५ २५८ ॥ इति तृतीय उद्देश ॥ ॥ इति चतुर्थ उद्देशः॥ ॥ इति विन१६-४५४७ विनयभुततपआचारसमाध्यु- याध्ययनम् ९॥ देशः, विनयादिपण्डिता आत्मा- अथ समिक्ष्वध्य०॥ रामाः २५६ |३३०-३६० सकारनिक्षेपाः (४) द्रव्ये प्रशं सानिर्देशास्तिभावेषु, एतत्सूत्रोक्त-दादशवैकरणीयो भिक्षुः अध्ययनगुणनि-12कालिके. युक्तश्च, भिक्षुर्निक्षेपाः (१) निरुक्त्वे-141९-१० अ. कार्थिकलिनानि,नागुणस्थितो भिक्षुः, पञ्चावयवाः, भेदकभेदनभेत्तव्यानि, अविरता याचका द्रव्यभिक्षाकाः, सदारम्भकाः गृहिणोऽपि, मिध्याहष्टिहिंसकानाचारिपरिप्रहरतसचित्तपचदुद्दिष्टभोजिनः, करणयोगयो-| गात्मादित्रिकत्रिकमन्तः स्त्रीपरिप्रहवन्तः द्रव्ये मिक्षवः, भावे उपयुक्तो शाता गुणवांश्च, भेचा, ज्ञानी तपो ॥१६२ ॥ भेदनं कर्म भेत्तव्यं, क्षुधो भेदात् मिक्षुः, यतनाद् यतिः संयमचरणात् ~391 Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) २८ ना० % चरकः, भवं क्षिपन् क्षपकः, भवान्तः, भिक्षणात् भिक्षुः वरणक्षपणाद्वा, तपःसंयमाभ्यां तपस्वी, निर्मन्थैकार्थिकानि (२८) संवेगादीनि लिङ्गानि (१७) अध्ययनगुणो मिक्षुः नान्यः अगुणत्वात् सुवर्णवत् न, विषघातनादयः (८) सुवर्णगुणाः, कपच्छेदाविशुद्धं विषघातादिगुणवत् सुवर्ण, न शेषं, न नामरूपाभ्यां भिक्षुः, युक्तिसुवर्णेऽपि न सुवर्णता, अध्ययनोक्ता भिक्षुगुणाः, तद्रहितो भिक्षुको न भिक्षुः युक्तिसुवर्णवत्, उद्दिष्टकृतभोजी पट्कायमर्दनः गृहकर्त्ता जलजीवपायी कथं मिक्षुः ?, अध्ययनोतगुणो मिक्षुः २६४ ४११-४८१* समाहितचित्तः रूयवश: अवान्तापानः पृथिव्यविराधकः शीतो दकापायी अभ्यश्चलन: अनलावीजकः इरिताच्छेदी सचित्तपरिहारी त्रसानुकम्पो औद्देशिकादित्यागी अपचनपाचनः आत्मसमषटूकायः म हातस्पर्शी आश्रवनिरोधी वान्तकपायो ध्रुवयोगी रूप्यरजतादिरहितः गृहियोगवर्जी सम्यग्दृष्ट्यादिः असन्निfus: निमन्त्रित साधर्मिकः स्वाध्यायरतः अव्युद्रद्दकथः अकोपनः निसृतेन्द्रियः प्रशान्तादिः आक्रोशादिसहन: समसुखदुःखः प्रतिमाप्रतिपन्नः निर्भयः गुणतपोरतः व्युत्सृष्टयत । ~ 392~ देहः अनिदानकुतूहल: परीषदादिभाक् तपोरतः हस्तादिसंयतः अध्यास्मरतः श्रुतार्थवित् अमूर्च्छः अज्ञातोछ: ऋपविक्रयसन्निधिविरतः असङ्गः रसागृद्धः परयादिनिरीहः प रिभवोत्कर्षरहितः आर्यपदवेदी अहासः भिक्षुः मोक्षश्वास्य २६९ ॥ इति समिक्ष्वध्ययनम् ॥ ॥ अथ रतिवाक्यचूडा ॥ ३६१-३६३ चूलिकानिक्षेपाः (४) द्रव्ये सचि तादिषु कुर्कुटचूडामणिमयूरादीनां, क्षेत्रे लोकनिष्कुटमन्दरचूढाकूटादयः, काले अधिकमाससंवत्सरी २७० Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४२] मूलसूत्र-३ 'दशवैकालिक' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्यादि- 18|३६४ रतिद्रव्ये नोकर्मणि शब्दद्रव्यादि कर्माणः अनित्यं जीवितं बहुपापं, विदप्रतिशः निर्ममः न गृहिवैया-18 दशवैअनु.आव. हा भावे तस्योदयः नाभेदयित्वा मोक्षः (१८) २७४ त्यादिक: असंक्लिष्टसङ्क: २८० र | कालिका ओघ. दश. पिण्ड. उत्त. M२६५-३६७ रतिवाक्यान्वयः, भातुरस्य सी-४८२-४९९ एतदया गाथाः २१८ |३७०-३७१ संयतस्यावगृहीतादि वनच्छेदनादिवत् कर्मरोगातुरस्य ध॥ इति रतिवाक्यचूडाध्य०॥ निकेतादिस्वरूपा २८२ नुक्रमः ॥१६३॥ माधर्मयो रत्यरती ॥ अथ विविक्तचर्याचूडा॥ ५०९-५१५४ असजनेक विहारी अर्थाशया चर्या कृताकृतादिचिन्तनं खस्त्रलि-13 .६३+ अधिकागतिदेशः २७८ स्वाध्यायादौ रतिमतोऽसंयमेऽरतिम ५००-५०३७ केवलिभाषिता धर्ममतिकारिका तापेक्षी दुष्पयुक्तसंबरः प्रतिबुद्धजी-1 तश्च सिद्धिः, ततः धर्माधर्मयो रत्यर चूला, प्रतिओतो गन्तव्यं प्रतिरोत वित्वं आत्मरक्षारक्षयोः फळं २८४ तिकारकाणि स्थानान्यत्र, दुष्प्रमायां दु उत्तारः पर्यागुणनियमाः २७९ । ॥ इति विविक्तचर्या चूडा॥ पजीविता इत्वराः कामाः मायाव-५०४-५०८* अनिकेतवासः समुदानचर्या ३७२-३७३ षण्मास्याऽधीय आराधक आर्यहुला मनुष्या न चिरं दुःखं अवमज- अज्ञातो; च प्रतिरिक्तताऽल्पोप- ममकः, यशोभद्रायैः स्थापितमिदं, नपुरस्कारः वान्तादानं अधो गतिः पधिः कलहवर्जनं आकीर्णावमानव- नयाश्च २८६ ॥१६३ ॥ गृहे दुर्लभो धर्मः आतकसङ्कल्पी र्जनं दृष्टाहृतान्नः संसृष्टकल्पः अम इति दशवकालिकस्य सचूडा. वधाय, सोपलेशबन्धसावद्येतरौ गृह- द्यमांसाशी निर्मत्सरः निर्विकृतिकः द्वयस्य बृद्विषयानुक्रमः॥ वासपर्यायौ, साधारणा भोगाः पृथ- कायोत्सर्गकारी स्वाध्यायरतः शय्या CRENC444444 ~393 Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/२] मूलसूत्र-२/२ 'पिंदनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक ॥ पिण्डनियुक्तिबृहद्विषयानुक्रमः॥ यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम SGAOCOCONUSMROCOCOCC मङ्गलम् । दशवकालिकपिण्डैषणाध्य-७-७+ अक्षकाष्ठादौ सद्भावासद्भाव-| देशत्रिक, तद्दूषणानि, शीतोष्णादिना-| यननियुक्तिरेषा। स्थापने ६ ऽचित्तः, परिषेकपानहस्तवस्त्रधाव॥ अथ पिण्डनिरूपणम् ॥ ८-९ द्रव्ये सचित्तः पिण्डः (९) निश्चय- नादि प्रयोजनं ऋतुबद्धे दोषः, वर्षा | पिण्डोद्गमोत्पादैषणासंयोजनाप्रमाणा खघावने दोषः, अर्वाग् वर्षायाः व्यवहारौ । सर्वोपधेः क्षालन, जपन्यतः पात्रनिजारघूमकारणानि (८) पिण्डनियं-१०-११ सचित्तः पृथिवीकायपिण्डः छ क्याम् १ १२ योगस्य, आचार्यादीनां पुनः पुनः, क्षीरमादेरधः पथ्यादौ च मिश्रा, पात्रनिर्योगाद्या अविश्राम्याः, विश्राआढ़े एकद्वित्रिपौरुषीः ८ पिण्डैकार्थिकानि (१२) २ मणाविधिः, नीनोदकमहणं, गुर्वनश१३-१५ शीतोष्णादिनाऽचित्तः, लूतास्को३-४ पिण्डनिक्षेपाः (४-६)२ न्यादिक्रमः, पूर्व यथाकृतानि, ना टादौ स्थानादौ च प्रयोजनम् ८ । च्छोटनादि, छायाऽऽतपयोः शोPI कुलकचतुर्भागन्यायेन पटेचतुष्कम् १६-३४ अप्काये निश्चयव्यवहारसचित्तता, षणं, कल्याणकं च १६ ६, १-६+ गौणसमयोभयकवानि नामानि, अर्वाक् त्रिदण्डेभ्यः पतितमात्रे वर्षे ३५-३७ तेजसि निश्चयव्यवहारसचित्तत्ता, - भेदत्रयस्वरूपं सिद्धिश्च ४ अबहुप्रसन्ने तन्दुलोदके मिश्रा, अना- मुर्मुरादिमिश्रः, ओदनादिरचित्तः। CASNAPAN सुत्ताणि [आगम-४१/२] मूलसूत्र-२/२ 'पिंडनियुक्ति' ~394 Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४१/२] मूलसूत्र-२/२ 'पिंदनिर्युक्ति' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्द्यादि अनु. आव. ओष. दश. पिण्ड. उत्त. ॥ १६४ ॥ ३८-४२, १२-१५+ वायुकाये धनवातादौ । निश्चयेन सचिचः, प्राध्यादियारेण, आक्रान्ताष्मातपीडनदेदानुगतनिश्वोदनेष्यचित्तः, हत्यादिवातस्या- ५३-५४ चित्तादित्वे क्षेत्रकालविचारः, ग्ढामत्वेऽचित्तेन प्रयोजनम् १८ ४३-४६ वनस्पतिकाये ऽनन्तकायो निश्चयेन, शेषो व्यवहारेण, मिश्रः प्रछानो दन्वादिना विर्यवः प्रत्राजनादिना । मनुष्याः क्षपकादिकालकार्यादिना देवा उपयोगिनः २१ पिण्डनव कसंयोगाः (५०२) विधिन सौवीरकादिषु २२ ५५-५८ क्षेत्रकालपिण्डौ, अमूर्त्तखेन शङ्का, आषेयस्थितिभ्यां प्ररूपणाहेतुत्वेन च समाधानम् २४ लोष्टादिः, इन्तम्छानौ अचित्तः, ५९-७२ भावे प्रशस्ते संयमादित एकादिसंस्तारकादिना प्रयोजनम् १९ ४७-४८॥ विकलेन्द्रिये पिण्डत्वं, अक्षानुदेहि कादिमक्षिकापुरीषादिना प्रयोज नम् २० ४९-५२ अनुपयोगिनो नारकाः, चरमास्थि - स्वपिण्डस्योपकारी, तेन द्रव्यभापिण्डाभ्यामधिकारः, निर्वाणकारणज्ञानादिकारणमाहारः, पटे पश्नवत्, अनुपहतकारणात्कार्य, अविकलज्ञानादिर्मोक्ष देतुः २८ ॥ इति पिण्डनिरूपणम् ॥ ॥ अथोद्गमदोषाः ॥ ७३-७८ एषणैर्विकानि (४) एषणानिक्षेपाः (४) द्रव्ये सचितादिः (द्विपदादि ३) भावे गवेषणैषणादिः (३) क्रमसिद्धिश्व ३० दशविधान्तः, अप्रशस्तेऽसंयमादिरेकादिर्नवान्तः, बन्धहेतुरप्रशस्तः, मुक्तिहेतुः प्रशस्तः, ज्ञानदर्शनचारि- ७९-८४ गवेषणानिक्षेपाः (४) द्रव्ये कुरङ्गत्राणां पर्यायास्तत्तत्पिण्डः, अध्यव- गजदृष्टान्तो, भावे उद्मोत्पादने ३२ सायो वा पिण्डः, आहारादिः प्रश- ८५-९१ उद्गमैकार्यिकानि (३) निक्षेपाः (४) । ~ 395~ पिण्डनि युक्तिवृह द्विषया नुक्रमः. ॥ १६४ ॥ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/२] मूलसूत्र-२/२ 'पिंदनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ACCARROCAL-CACCIDS द्रव्ये छडूकज्योतिस्तृणादि, भावे | ज्ञानादि, लडकप्रियकथानकं, उद्गम शुद्धेश्चारित्रशुद्धिस्ततो मोक्षश्च ३४ |९२-९३ आधाकर्मादिका (१६) उद्गमदोषाः |९४ आधाकर्मि के नामादीनि (८) द्वा राणि ३६ ९५-१२८, १६-२२+आधाकर्मिकैकार्थिकानि (८) द्रव्याधायां धनुरादीनां प्रत्यञ्चादि, भावाधायां यमाधाय त्रिपातनं, द्रव्येऽधःकर्मणि जलादिष्ववतरणं, भावे संयमस्थानाविषु, संयमश्रेणिखरूपं, आधाकर्मप्रादी अधोऽवतीय अधोभवायुःघनीकरणादि कुरुते पति चाधोगती, द्रव्यात्मन्ने निदाऽनिदाभ्यां हिंपा, काया द्रव्यात्मनि, बधा परणात्मपातः, निश्चयेन शानदर्शन- १२९-१३६ एकाथिकचतुर्भङ्गी, भात्रयी-1 बधोऽपि, द्रव्यात्मकर्मणि ममतावि- योजना ५२ षयः, भावेऽशुभपरिणतिः, भाधा-१३७-१५९ साधर्मिकस्याधाकर्म, नामस्थापकर्मपरिणतः परकर्म आत्मकर्मीकुरुते, समशहा, कुटोपमया | (३) झान (५) चारित्रा (५-३) भिसमाधिः केषाश्चित् , अशुभभावाद् प्रह (४) भावना(१२) भिः साध-| -मिकखरूपं, प्रवचनादिषु चतुर्भरूणां, महणारप्रसङ्गः, प्रतिसेवादि अपश्च, तेषु कल्ल्याकल्प्यता च ६२ भिरात्मकर्मता, क्रमेण तेषां गुरु १६०-१७६ अशनायाधाकर्म, कृवनिष्ठचतुलघुते, न परानीते दुष्टतेति प्रतिसे भङ्गी, अशनस्याधाकर्मवे दृष्टान्तः, वना, सुलब्धोको प्रतिसेवना, तो पानखाद्यस्वाद्यानामाधाकर्मवा, प्रासुगिप्रशंसाऽनुमोदना, तेनराजपुत्र- कीकरणं निष्ठिते, उपस्कृतं कृते, न पल्लीवणिप्रशंसाकारिणः प्रतिसेवा- छायावर्जन न्याय्यम् ६७ विषु दृष्टान्ताः, बदाधाकर्मभोगि-[१७७-१७८ खपरपक्षस्वरूपं, कल्प्याकल्यता नामपि ५० SASRANAGAR सुत्ताणि 39- ~396 Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४१/२] मूलसूत्र-२/२ 'पिंदनिर्युक्ति' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्द्यादि अनु. आव. ओघ. दश. पिण्ड. उच. ॥ १६५ ॥ १७९-१८२ अतिक्रमाचाश्चत्वारः, नूपुरप- उम्बकप्रियङ्करदृष्टान्ती, उद्यानण्डितास्तिदृष्टान्तेन अतिक्रमादिषु दर्शिदृष्टान्तच, आधाकर्मभोगिनो वृत्तिः, अतिक्रमादिखरूपम् ६८ वोडत्वमेव १८३-१८८ आघाकर्मप्रद्दे आज्ञाऽनवस्थामि २१८-२४२ विभागौदेशिके उद्दिष्टकृतकर्मध्यात्वविराधनाः ७० २३+ चतुष्ककेन द्वादश भेदाः, ओघोडे१८९-२०५ आधाकर्म तत्स्पृष्टं तद्भाजनस्थितं, शिकसंभवखरूपे, रेखादिना तपरिहारच, वान्तादिवदभोज्यं, उम्र- ज्ञानं, गोवत्सदृष्टान्तेन उपयुक्तता, तेजोदृष्टान्तः, अन्यसमये पूट्रीक्षीविभागौद्देशिके संभवः, उद्देशसमु- २७१-२७६, रादिवत् अशुचिस्पृष्टवत्, अशुचिदेशादेशसमा देशभेदाः, तत्खरूपं, भाजनस्यवच्च स्पृष्टस्तद्भाजनस्थितयोः द्रव्यक्षेत्रका उभावैरिछन्नाच्छिन्ने, उद्दिष्टे परिहारः, अविधिपरिहारेऽगीतार्थ - कल्प्याकप्यविधिः संप्रदाने च दृष्टान्तः, विधिपरिहारे द्रव्यकुलदेश- तत्परिज्ञानोपायः, कमद्देशिके क- २७७-२८४, २५+ स्थापनायां स्वस्थानपरभावापेक्षणम् ७४ ल्याकल्प्यविधिः ८२ भावपूतिस्वरूपं, उनकोव्यामाधाकनिकायाः, उपकरणे द्रव्यपाने च बादरपूतिः, भक्तपूतिखरूपं, चुहयुखादिचतुर्भङ्गिका, त्रियकल्यं, अङ्गारादिर्न सूक्ष्मपूतिः, आधाकर्मपात्रस्यापत्रये सूक्ष्मपूतिता, स्वक्प्रमाणं पूतिः, आधाकर्मप्रदे श्रीन् दिवसान् पूतिः, तत्परिज्ञानोपायः ८८ २४ + वेधकविश्वत् सहस्रान्तरितमपि मिश्रमकल्पयं यावदर्शिकपाखण्डिसाघुमिवरूपं, करपत्रये कल्प्यता ८९ स्थाने, अनन्तरपरम्परे, महत्रयात्प- रतः, विकारीतराणि द्रव्याणि ९१ २०६-२१७ परिणत्या बन्धावन्धौ वेषवि- २४३-२७० द्रव्यपूतौ छगणधार्मिकदृष्टान्तः, ७७ ~397~ पिण्डनियुक्तिह द्विषयानुक्रमः. ।। १६५ ।। Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४१/२] मूलसूत्र-२/२ 'पिंदनिर्युक्ति' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) | २८५-२९१, २६-२७+ वादसूक्ष्मप्राभृति मङ्गलपुण्यार्थाय तत्फलं च उत्वष्कनावण्यण्यनाभ्यां ९३ २९२- ३०५ प्रादुष्करणसंभवे मिक्षुकत्रयरष्टान्तः, प्रकटकरणे चुहयादेर्बहिरानयनं, प्रकाशकरणे रत्नादिना छिद्राविना च, आत्मार्थीकृतं करूपते, विशुद्धिकोटित्वम् । ३०६-३१५ क्रीते आत्मपरद्रव्यभावक्रीतानि सचित्तादि परद्रव्ये, आत्मद्रव्ये निर्मात्यादि, परभावे मङ्कटष्टान्तः, आत्मभावे धर्मकथावादक्षपगादि (९) ९९ ९५ ३१६-३२२ प्रामित्ये लौकिके भगिनीर टान्तः, लोकोत्तरे बनादो मलिन- ३५७-३६५ मालापहृते जघन्योत्कृष्टे, भिक्षुदृष्टान्तः, दातृपतनादि, उत्कृष्टे कापिलः, ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्भेदाः, अपवादध ११० तादिदोषाः, अपवादच १०० ३२३-३२८ परिवर्तिते लौकिकलोकोत्तरयो स्तद्रव्यान्यद्रव्ये, लौकिके शाल्योदनदृष्टान्तः, लोकोत्तरे ऊनाधिकव- ३६६-३७६ प्रभुखामिस्तेनाऽऽच्छिन्नानि, प्रभौ खादौ दोषास्तदपवादश्च १०२ ३२९-३४६ गोपः, दोषा अपवादच ११३ अभ्याहृते आचीर्णानाचीर्णे नि- ३७७-३८७ सामान्यनिसृष्टे लोलुपभिक्षुरंशीथानिशी ये खमामपरमामे जलपथ स्थलपथौ, दोषाश्य, त्रिगृहाद् वाटका - ष्टान्तः, भोजनानिसृष्टे, छिन्ने कल्प्यं, हस्तिनिसृष्टं दृष्टमप्यकल्यम् ११५ दे परतः परमामनिशीथे घनावह दृष्टान्तः, हस्तशवादाचीर्ण, उत्कृष्टा- ३८८-३९१ यावदर्थिक स्वगृहसाधु मिश्रैरध्यव दिभेदाः १०५ पूरकविधा, मिश्राद्भेदः, कल्प्या३४७-३५६ उद्भिन्ने पिहितकपाटी प्रासुका- कल्प्यविधिः ११६ प्रासुके, पट्रायदोषाः, दानादिदोषाः ३९२-४०३, २८-३० + विशोषयविशोधिअकुचितकपाटे आचीर्णम् १०७ कोट्यो, द्रव्यक्षेत्र कालभावैर्विवेकः, ~ 398 ~ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/२] मूलसूत्र-२/२ 'पिंदनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए पिण्डनि| युक्तिबृह| द्विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम नन्यादि शुष्काईचतुर्भङ्गी, करप्याकलय- दूती, लोकोत्तरे उभयपक्षे च, धन-४८४-४९३ संस्तवखरूपं सम्बन्धिवचनयोः अनु. आव. विधिः, उद्गमकोव्या पद, शेषा वि- दत्चदृष्टान्तः १२७ . पूर्वपश्चादी च १४१ । ओघ. दश. शोधिः, नवाष्टादशादिकोट्यः, गृह्य- ४३५-४३६,३३-३४+ लाभालाभादिषधि ४९४-४९९ विद्यायां मने च भिक्षूपासका पिण्ड, उत्त. नवा उद्गमदोषाः १२० निमित्तं, भोगिनीदृष्टान्तः १२८ । पादलिप्तश्च दृष्टान्ती १४२ . ॥१६६॥ ॥ इत्युद्गमदोषाः॥ ४३७-४४२ जातिकुलगणकर्मशिल्पैः सुचा-५००-५१३, ३५-३७+ चूर्णे चाणाक्यक्षु ॥ अथोत्पादनादोषाः॥ | सूचाभ्यामाजीकः १३० । लको, पादलेपे समितसूरयः, क्षता|४०४-४०९ द्रव्योत्पादनायां सचित्तादि. ४४३-४५५ श्रमणमाहनकृपणातिविश्वभिर्व- क्षतयोन्योविवाहे च युवतीयुग्मं, भावोत्पादनायां धात्र्यायो दोषाः नीपकः, निर्मन्यादयः श्रमणभेदाः गर्भ नृपपन्यौ १४६ (१६) १२१ वनीपकरवे दोषाः १३२ ५ १४-५१५ साधुसमुत्था सत्पादनादोषाः, | ४१०-४२०, ३१-३२+ क्षीरमजनमण्डन-४५६-४६० त्रिविधाश्चिकित्सास्तदोषाश्च एषाणायां शङ्कितभावापरिणतो क्रीडनाइधात्रीत्वानि करणकारणाभ्यां, १३३ साधोः, शेषा गृहस्थात् १२२ धात्रीशब्दव्युत्पत्तिः, धात्रीदोषगुणा-४६१-४८३ घृतपूर्णसेवकिकामोवकसिंहके- ॥ इत्युत्पादनादोषाः ॥ दिनिरूपणं, दत्तदृष्टान्तोऽत्र १२६ शरदृष्टान्ताः क्रोधादिषु, क्रोधादिका- ॥ अथ एषणादोषाः॥ ८४२८-४३४ स्वग्रामपरप्रामप्रकटच्छन्नभेदा | रयानि च १३९ 1५१६-५२० एषणानिक्षेपाः (१) द्रव्ये वानर ***************** ॥१६६ ॥ सुत्ताणि ~399 Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४१/२] मूलसूत्र-२/२ 'पिंदनिर्युक्ति' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) यूथदृष्टान्तः, भावे शङ्किवादि (१०) | १४७ ५२१-५३० महणभोगयोधतुर्भङ्गी, उद्गम(१६) प्रक्षिवादि (९) षु शङ्का, उपयोगाच्छुद्धिः श्रुतोपयोगगृहीतं केवल्यपि भुडे, अन्यथा श्रुताप्रामाण्यादि, परिणामाशुद्धेः शङ्कासद्भावे पापणीयम् १४८ ५३१-५३९ क्षिते सचित्ते पृथिव्यब्वनस्प स्थानयोः कल्प्याल्यविधिः सप्त ५७२ ६०४ बालवृद्धमत्तोन्मत्तादिचत्वारिंशविधो विध्यावाद्यनिः यतना च द्विधदायकेषु केषुचिद्भजना तदोषाश्च अनत्युष्णोदकम घट्टितकर्ण माझं, १६४ पार्श्ववलिप्ता नत्युष्णा परिशाटाघट्टन- ६०५ भङ्गाः, भङ्गानयनरीतिः, अत्युष्णे दोषाः, वातद्दरितयोरनन्तरपरम्परभेदौ १५४ | ५५८-५६२ सचित्ताचित्तमिश्रेषु पिहितेषु च तुः, चरमे भजना १५५ तयः, अचित्ते गर्हितेतरे, हस्तमा- ५६३-५७१ सवित्ताचित्तमित्रसंहरणेषु च प्रयोधतुर्भङ्गी, संसक्किमदकल्प्यम् तुर्भङ्ग्यः, तल्लक्षणं, अचित्ते आवारसंहियमाणयोः शुष्काईस्तोकबचतुर्भङ्गः, तत्र कल्पयाकल्प्यविचिर्दोषा १५७ १५० ५४०-५५७ निक्षिप्ते सचित्तमिश्रयोरनन्तरपरम्परे, सचिचे पोढा, खस्थानपर ~ 400~ ६०८ सचिचाचित्तमिरुन्मिश्रे चतु भङ्गयः, संहृतोन्मियोर्विशेषः, आशुष्कस्तोकबहु चतुर्भयः कल्प्याकस्यविधि १६५ ६०९-६१२ अपरिणते द्रव्ये षट् कायाः, भावे दातृगृहीत्रोः १६६ ६११-६२६ लिप्ते दृष्या दिलेपोऽपि वज्र्ज्यः, नित्य तपसा संयमादिद्दाने भजनं, यण्मास्याचाम्ले भजनं, महाराष्ट्रादिवत् अलेपेन यापना, तकादीनां महणं, शीता आहारोपधिशय्याः, अलेपा Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४१/२] मूलसूत्र-२/२ 'पिंदनियुक्ति' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्यादि अनु. आव. ओष. दश. पिण्ड, उत्त. ॥१६७॥ पिण्डनियुक्तिबहद्विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ल्पबहुलेपद्व्यावि, संसृष्टहस्तामत्र- मत्स्यदृष्टान्तः, भावे संयोजनाचा:, याऽऽहारमानम् १७५ सावशेषद्रव्यैर्भङ्गाः १६९ । अर्थसिद्धयै चरितकल्पिताहरणे, सा-६५५-६६० साकारसधूमौ तदोषाश्च १७६ | धोरात्मानुशासनम् १७२ ६ ६१-६७१ क्षुदेवनादीनि कारणानि, बात-| ६२७-६२८ छर्दिते शीतोष्ण मित्रचतुर्भनय ६३६-६४१ द्रव्यसंयोजना बहिः, पात्रकव- कादीनि न्यूनाहारकारणानि, उपस्तदोषाश्च, शीतोष्णच्छर्दिते कायदाह वता सहवा पाषा, अप संहारः, धर्मावश्यकयोगानामहानिः षट्कायविराधनाः, मधुविन्दुदृष्टान्तः बादश्च १७३ ... | प्रयोजनं, सूत्रविधिना विराधना नि१७० ६४२-६४३ पुरुषादेराहारप्रमाणं यात्रामात्रा जराफला १७९ ॥ इत्येषणादोषाः॥ हारश्च मुनिः |६४४-६५४ अतिबहुकमतिबहुशः प्रकामनि- ॥ इति ग्रासैषणादोषाः॥ ॥ अथ प्रासपणादोषाः॥ कामाभ्यां प्रमाणं, हीनाविभोजने| ॥ इति पिण्डनियुक्तिः॥ ६२९-६३५ प्रासेषणानिक्षेपाः (४) द्रव्ये गुणाः, हितमितस्वरूपं, कालापेक्ष CCCCCASSES - ॥१६७ ~401 Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक ॥ उत्तराध्ययने बृहद्विषयानुक्रमः॥ यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम CSC+SACCHECRECCAS ३ मङ्गलम् । उपोदूपातः । फलयोगम-१२ श्रुतस्कन्धनिक्षेपातिदेशो, नामाधि |३० संयोगे निक्षेपषटु द्रव्ये विधात्वम् ।। जलादि ३ काराणां प्रतिज्ञा च ९ . (नामादिव्याख्याविधिस्थापना) २३ ६१.२ . उत्तरनिक्षेपाः (१५), जघन्यादेः १३.२६ अध्ययननामानि सर्बाध्ययना- ३१ संयुक्तकसंयोगवैविध्यम सोत्तरानुत्तरत्वे ५ :धिकारः ३२ मूलाधैर्दुमादेः सचित्तसंयुक्तकसं२७ पिण्वार्थोपसंहारः, एकैकाध्ययनप्र योगः २४ उत्तराध्ययनत्वे हेतुः ५ तिज्ञा च १० ३३ अण्वादेरचित्तसंयुक्तकसंयोगः २५ बङ्गादिप्रभवत्वम् ६ Re विनयधुतस्योपक्रमादिद्वारातिदेशः ३४ जीवकर्मणोर्मिसंयुक्तकसंयोगः . अध्ययनादीनां निक्षेपचतुष्कम्, (अनुयोगद्वारवर्णन) १५ परमाणुप्रदेशाभिप्रेतानभिप्रेताभिलानोआगमभावाभ्ययनव्याख्या, दीप-२९ विनयनिक्षेपातिदेशः श्रुतनिक्षेपच- पैरितरेतरसंयोगः बद्भावाक्षीणता, भावायः, तदे- तुष्के द्रव्यभावौ च १८ ३ ६ संस्थानस्कन्धभेदेन परमाणुसंयोगः कार्थिकानि च, वस्त्रस्य व्यक्षपणा, १ साधुविनयकथनप्रतिज्ञा (संहित्रिधा मावक्षपणा ८ वादिव्याख्या). २१. ३७ स्कन्धभावे हेतुः २७ सुत्ताणि E [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' VERSECRETARY ~402 Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्द्यादि अनु. आव. ओष. दश. पिण्ड. उच. ॥ १६८ ॥ ४२ ५६ ४३ ४५ संस्थानभेदाः ३० ૨૮ ५४ ३९-४१ संस्थानपाकजघन्यप्रदेशाः २९ ५५ प्रदेशसंयोगे ऽनादिसादिभेदौ ३० अभिप्रेतानभिप्रेतसंयोगी ४४ मनोऽभिप्रेता औषधादिसंयोगाः ३१ ५७ द्रव्याचैरभिलापसंयोगाः ३२ ४६-४७ द्रव्याचैः संबन्धनसंयोगाः ३३ ४८-४९ भावेऽनादेशसंयुक्तसंयोगाः, आदेशभावसंयुक्तसंयोगाः ३४ आत्मार्पितसम्बन्धनसंयोगाः (४) (११) सान्निपातिको ऽप्यनुदयः वाह्मार्पित संबन्धनसंयोगः, (लेश्यादिः) ३५ | ६२ (१५) स्वोदयसान्निपातिको मिश्रः ॥ ५० ५१ ५२ ५३ ५८ ५९ ५० ६१ प्रकारान्तरेणात्मादिसंयोगाः ३६ / ६३ औदविकायाः (६) संयोगाः ३७ २* २० नामक्षेत्रकालैर्वाह्मसंयोगः, तदुभवेन मिश्रः ४* आचार्य शिष्यादीनामपि बाह्यसं- ५* योगः ३८ आचार्य शिष्यस्वरूपम् (सूरिगुणाः ३६) ज्ञानादिषूभयसंयोगः ४१ निर्वृत्ति देहमात्रादेरुभयसंयोगता ४२ कषाय ममतावतः योगः ४३ सम्बन्धनसंयोगे संसारः, ततो मुक्तः १० चाण्डालिकबालापवर्जनमध्ययनध्याने च ४८ साधुः ~ 403~ सम्बन्धनसं * क्षेत्रादिसम्बन्धनसंयोगः विनीतलक्षणम् ४४ अविनीतलक्षणम् ४५ अविनीतफले शुनदृष्टान्तः अस्य शूकरदृष्टान्तेन शीलहानदुश्शीलरती ४६ ज्ञातदृष्टान्ताय हितैषिणे विनयत्रियोपदेशः ४६. शीलला मानिष्कासने विनयफले । विनयैषणाविधिः ४७ क्षान्तिसेवावास हास्य कीडावर्ज ७* ८* ९* नमू उत्तराध्य बने बृह द्विषया नुक्रमः. ।। १६८ ।। Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) १९ ११७ पाण्डालिकसंग विधिः । १२* शिक्षाया भूयोऽमिच्छा पापत्याग, गाकीर्णवत् ४८ गल्याकीर्णपर्यायाः |१८* पार्श्वपुरः पृष्ठतोऽनिषदनमयुज्योरू, २८* शय्यायामप्रतिश्रवणं (शुश्रूषाविनये) २९* १९* पर्वस्तिकापचपिण्डपादप्रसारवर्जनम्। ३०* ३१* १५* १६ १७७ ६४ ५५ १३* अनाश्रवायाश्चित्तानुगायाश्च गुर्वप्र २०#* आहूतो गुरुमुपतिष्ठेत् । सादृप्रसादकारिणः, (चण्डरुद्राचार्य- २१७ सकृत्पुनर्वा उपत्या चार्वे यतं प्रतिशृणुयात् ३३* ३२ दृष्टान्तः ) ५० २२० पृच्छाविधिश्व ५६ १४* गुरुचित्तप्रसादनविधिः (कुलपुत्र- २३* विनीते सूत्रामयार्पणम् । भूतदृष्टान्तौ ) ५२ २४* वृषावधारणीमायादिवर्जनम् । आत्मदमनफलम् (चौरदृष्टान्तः) २५७ साक्य निरर्थकममै भाग्वाग्वर्जनम् ५३ आत्मपरदमनयोर्हेतवः ( सेचनक- २६३ दृष्टान्तः) ५४ आमी रहो वा वाकर्मभ्यां प्रत्यनीक २७० (प्रतिले) शिक्षाप्रेरणयोः प्राज्ञाप्राज्ञयोर्बुद्धिः । शिक्षायां मूढानां द्वेषः अनुचायासनः । ५९ काळेन निर्गमप्रतिक्रमणसमा वारः अन्यभिक्षुकानतिक्रमणम् । ६० स्थानेषणभक्षणविधिः । ३४* पिण्डग्रहणविधिः । ३५* प्रासैषणाविधिः ६१ ३६* सुकंवसुपकाविवाग्वर्जनम् । ३७* पण्डितबालयोः शिक्षायां गुरोः स्थितिः ६२ | ३८० खडकादिभिः शासने पापदृष्टितामतिः । ३९# शिक्षार्थी साध्वसाधुमतिः । ५७ समरागारावरौ खिया सह खानाछाप वर्जनम् शीतपरुषेण शिक्षायां छाभबुद्धिः प्रतिपुर्ति ५८ ~ 404~ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए | उत्तराध्ययने विनयाध्य.परीपहाध्य. दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्धादि- Be* बाचार्यात्मनोरकोपनमुपघाततोत्र- अथ परीपहाध्ययनम् ॥ २॥७४-७८ भेदे परीपहाणां कर्मण्यवतारः ७६ अनु आव. गवेषितावर्जनं च । (अनशन्याचार्य-६५-६७ परीषहनिक्षेपाः (१) व्यतिरिक्त कर्म-७९ गुणस्थाने परीषहावतारः । ओष, दशदृष्टान्तः) ६३ नोकर्मभेदी, कर्मण्यनुयश्च, नोक-८० त्रयाणाममहणाभोजने, ऋजुसूत्राणां पिण्ड. उत्त. आचार्यकोपे शिष्यविधिः ६४ । मणि भेदत्रयं, भावे कर्मोदयः ७३ | प्रासुकेऽध्यासना ७७ ॥१६९॥ ४२* क्षान्त्याद्याचरिताचरणेऽगरे । ६८ परीषहाध्ययने कुतः कस्येत्यादीनि ८१ । आधस्य हेतुः, द्वयोर्वेदना, ऋजो४३* आचार्यमनोवाग्गतस्योपपादनम् ।। १३ द्वाराणि जीवः, शेषाणामात्मा परीषहः । ४४७ नोदनानोदनयोर्यथोपदिष्टकृत्यकारी। ६९ कर्मप्रवादसूत्रताऽध्ययनस्य । युगपत्परीषहसंख्या , ७८ परजुसूत्रान्ताः त्रिषु, संयते शब्दः ८३ वर्षामं त्रयाणां, ऋजोरतर्मुहूर्व, श-1 |४५* विनयात्प्राज्ञानां फलम् । परीषहमानी ७४ ब्दस्य समयं परीषहः । ४६, विनयप्रसन्नात्पूज्यात्फलम् । नैगमे मनाष्टकं,सङ्घहे जीवनोजीवौ, ८४ । कण्डाद्या वेदनाः सप्तवर्षशतीम् । |४७# पूज्यशास्त्रस्यैहिकं फलम् ६६ । व्यवहारे नोजीवः, (शेषाणां जीवः (सनत्कुमारदृष्टान्तः) ४८ विनीतस्यै हिकामुष्मिकं फलम् ६७ परीषहः ७५ चतुर्णी लोकसंस्तारयोः, शेषाणामा(नयज्ञानक्रियाविशेषविचारः) ७१/७२ प्रकृतिपुरुषयोः समवतारप्रतिक्षा ।। स्मनि परीपहः । ७९ ॥ इति विनयाध्ययनम् ॥१॥ ७३ परीषहाधारा मूलप्रकृतयः ८६ उद्देशपृच्छानिर्देशाः । SUCCCCTORSECCANCE ॥१६९॥ ~405 Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत - सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम CCCCCCCCCCCE 8.सू. उद्देशपृछानिर्देशैः सूत्रस्पर्शने परी-५८-५९४९३ दंशमशकपरीषहः । सुम-७०-७१७१०८-१०९ शय्यापरीषहः । सो पहाः (२२) (वक्तृता, गुरुकुलवास- नोभद्रदृष्टान्तः (५) ९२ | मदत्तसोमदेवदृष्टान्तः । (११)१११ पौरुषेयतासिद्धिः) ८३ ६०-६१९९४-९७ अचेलकपरीषहः। ७२-७३*११० आक्रोशपरीषहः । अर्जुन-| ४९परीषहकथनप्रतिज्ञा। (दिगम्बरनिराकरणं) सोमदेवदृष्टा- मालाकारदृष्टान्तः (१२) ११४ | ६५०-५१* क्षुधापरीषहः, न्तः । (६) ९८ ७ ४-७५२१११-११३ वधपरीषहः, स्कन्द-18 ८७-८८ परीषह (२३) दृष्टान्तसूचा। ८४६२-६३७९८-९९ अरतिपरीषहः, तत्सह- कतच्छिष्यदृष्टान्तः (१३) ११६ ८९ हस्तिभूतिक्षुल्लकदृष्टान्तः (१) ८६ नोपायश्च, युवराजमित्रपुरोहित- ७६-७७५११३॥ याचापरीषहः । बलदेव-18 8 ५२-५३०९० पिपासापरीषहः, धनशर्म- दृष्टान्तः (७) १०३ दृष्टान्तः (७) १०३ दृष्टान्तः (१४) ११७ दृष्टान्तः (२) ८८ ६ ४-६५*१००-१०५ स्त्रीपरीषहः । पाट-७८-७९४११४ अलाभपरीषहः । ढंढण५४-५५२९१ शीतपरीषहः । वैभारगिरि- लिपुत्रे स्थूलभद्रदृष्टान्तः (८)१०७ दृष्टान्तः (१५) ११९ समीपवभिद्रबाहुशिष्यचतुष्कदृष्टा-६६-६७*१०६ चर्यापरीपहा । सङ्गमशि-८०-८१११५ रोगपरीषहः । कालवेशिकध्यदत्तदृष्टान्तः (९) १०८ दृष्टान्तः (१६) १२१ ५६-५७९२ उष्णपरीषहः । अहंसकदृष्टा-६८-६९११०७ नैषेधिकीपरीषहः । कुरु- ८२-८३४११६ तृणस्पर्शपरीषहः । भद्रकुन्तः । (४) ९१ दत्तदृष्टान्तः । (१०) ११० । मारदृष्टान्तः (१७) १२२ AAAAAAS सुत्ताणि ~4064 Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए उत्तराध्ययने परीपहाध्य. चतुरंगीयाध्य. दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम नन्द्यादि-13८४-८५११७ मलपरीषहः । सुनन्दना- कुलालवाक्यम् । गङ्गोव्यूढपाट-१४३-१५५ अङ्गानिक्षेपाः (४) गम्घोषधमद्या-| अनु. आव. . बफदृष्टांतः (१८) १२४ जनवाक्ये । दग्धौटजतापसवा- तोद्यशरीरसुद्धामानि द्रव्ये । उदायन-1 ८६-८७१११८ सत्कारपरिषहः, पुरोहित- क्यं । गृहीतदण्डप्रश्नोत्तरवाक्यानि । मभि वासवदत्ता गन्धाङ्गम् । कपिण्ड, उत्ता __पादपीडकभावकदृष्टान्तः (१९) पल्लीस्थितसमभितवृक्षस्थाण्डे शकुनि- सिमिरादावौषधामम् । १५३ वाक्यम् । रोघे मातङ्गवाक्यम् । राशि ॥१७॥ मघातोद्यशरीराङ्गामि । यानावरणश चौरे नागरकबाक्यम् । पत्यर्पिते पुत्रे ८८-८९७११९ प्रज्ञापरीषदः । कालकाचा खदाक्षिण्यमीयाथा युद्धाङ्गम् । भावाङ्गं मातृवाक्यानि । उपयाचितच्छग- द्विधा, श्रुताओं द्वादशाङ्गी, मानुषर्यदृष्टान्तः (शकागमः) (२०)१२८ | कोपदेशः । सामरणसंयखार्याषाढ- अतिमद्धाकीर्वाणि नोभुताले १४४ ९०-९१४१२०-१२१ अज्ञानपरीपहः । - वाक्यानि १४० |१५६-१५७ शरीरसंयमयोरेकाथिकानि । धाकट पितृदृशाम्तः (२१) स्थूलभ-९४५ अध्ययनोपसंहार १४० १५८ नरत्वादिसंयमान्ताः (१२) दुर्लभाः द्रनिधिसूचनदृष्टान्तः (२१) १३१ | ॥इति परीपहाध्ययनं ॥२॥ VI९२-९३७१२२-१४० दर्शनपरीषहः । । ॥ अथ चतुरङ्गीयाध्ययनम् ॥३॥ १५९ मानुष्यदुर्लमवे चोल्लगा विदृष्टान्ताः | (आत्मसंयमाविसिद्धिः) आर्याषाढ-१४१ एककनिक्षेपाः (७) १४१ (१०) १५० दृष्धान्तः (२२) महाकान्त- १४२ चतुष्कनिक्षेपाः (७) १६०-१६१ आलस्याचाः (१३) विघ्नाः१५१ 6454545453 सुत्ताणि ~407 Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ACALCASCARS* १६२-१६३ मिथ्यात्वादश्रद्धा, गुरुनियोगा- १७५-१७७ अबद्धिकगोष्ठामाहिलाधिकारः । १०४४ श्रुतिश्रद्धवीर्वीयस्य दुर्लभता । नाभोगाभ्यां वाऽतत्वश्रद्धा १५२ (७) अवद्धताप्रतिपादनम् । अपरिमा- १०५* लम्बचतुरणास्य कर्मनाशः। १६४ निववक्तव्यताप्रतिज्ञा १५२ . १६५-१६६ निह्नवटष्टीनामायाः पुरुषाः(७) १७८-१-२+ दिगम्बराधिकारः (८) दिग.. ८१०६* तस्यैव शुद्धिधर्मों निर्वाणं च १८६ म्बरमततत्सरम्परामूले १८१ १०७# ऐहिकामुष्मिकालेन शिष्योपदेशः। १६७ जमालेरधिकारः (१) १५७९ ९५-९६* चतुरङ्गीदुर्लभता । नानाकर्मजना- १०८-१०९* मुक्त्वभावे श्रेष्ठदेवत्वम् १८७ १६८ अन्त्यप्रदेशजीववादिविष्यगुप्ताधि- । नाजातिषु भ्रमामरवदुर्लभता १८२ ११०-११२७ च्युतस्य दशाङ्गे कुले मानुष्यं, कारः (२) १६० |९७* देवनरकासुरेषु भ्रमाच दशाङ्गानि च १८८ १६९ अध्यक्तवाद्यापाढशिष्याधिकारः (३) पर(२) ९८* क्षत्रियचाण्डालादिषु भ्रमणापि ११३-११४* पुनर्मानुष्ये भोगाः बोधिः १६२ १७० सामुच्छेद्यश्वमित्राधिकारः (१) १६५९६ १९९-१००* कर्मणोऽनिर्वेदः संसारभ्रमश्च । संयमः सिद्धिश्च १८९ १७१ द्विक्रियाऽऽर्थगङ्गाधिकारः (५) १६८... १८३ ॥ इति चतुरङ्गीयाध्ययनम् ॥३॥ १७२-१७४ पडलूकत्रैराशिकाधिकार १०१२ लघुकर्मणः शुद्धस्य नरत्वम् १८४ परित्राजकवियास्तत्प्रतिपक्षविद्याश्च |१०२४ तपःमान्यहिंसादराय श्रुतेर्दुर्लभता ॥अथासंस्कृताध्ययनम् ।। १७२ |१०३७ भवणेऽपि श्रद्धा दुर्लमा १८५ १७९ प्रमादाप्रमादयोनिक्षेपचतुष्क १९० सुत्ताणि ~408 Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए गीयाध्य. दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्यादि। १८०-१८१ मद्याद्याः प्रमादाः, प्रमादाप्रमा-| स्थाभिलापेनेक्षुकरणादि, कालकरणा-११९० प्रणष्टगुहादीपवश्यायादर्शिता, वि-18 उत्तराध्यअनु. आव. दाभिधानहेतुता। १९१ । नि ओघेनैकादश, ध्रुवकरणचतुष्कम् तेनात्राणं च (पुरोहितपुत्रदृष्टान्तः) यने चतुरंओघ. दश. ४११५* जीवितेऽसंस्कृतेऽत्राणे च का प्रमादः? (तिथिकरणशानोपायः) वर्णादि- २०६-२०७ व्यभावदीपौ, आश्वासप्रकाशपिण्ड, उत्त. (अट्टनदृष्टान्तः) १९३ भेदेनाजीवभावकरणे (५), जीव- भेदो क्रमात् स्यन्दनास्यन्दनौ सन्धि- असंस्क|१८२ संस्कृतासंस्कृतयोः खरूपम् १९४ ॥१७१॥ मावकरणे श्रुतनोभुते, श्रुते च बद्धा- तासन्धितौ च (धातुवाविदृष्टान्तः) ताध्य. १८३-२०५करणनिक्षेपाः (६) द्रव्ये कटा बढे निशीथानिशीथे । नोभुते गुणे. २१३विकरणं सब्ज्ञाकरणे । नोसञ्ज्ञायां वेपःसंयमी, योगा योजनायाम। १२० बुद्धजीव्याशुप्रज्ञस्य भारणावप्रमप्रयोगविश्रसाभेदौ । अनादिसादी वि त्तवा (अगदत्तदृष्टान्तः) २१७ कार्मणायुामधिकारः। २०७.. असाकरणे । चाक्षुषं विनसाकरणम् । |१२१* पाशमानी शकमानः लाभजीवी मुप्रयोगे जीवाजीवौ, जीवे मूले शरी११६ पापधना नरकगामिनः (चौरह कयेत (मण्डिकचौरदृष्टान्तः) २२२ राङ्गोपाङ्गादि कर्णस्कन्धादीन्द्रियो धान्तः) २०७ १२२-१२३ छन्दोनिरोधेनाप्रमत्तस्य मोक्षः पघातविशुद्धिश्चोत्तरे, संघातपरिशा-११७* सन्धिमुखगृहीतचौरवत् पापिनो न' लगृहात चारवत् पापिना न (अश्वदृष्टान्तः) अनभ्यासे विवादः २२४ टोभयानि । (शरीरेषु संघातादिवि- मोक्षः (चौरदृष्टान्तः) २०९ १२४* कामांस्त्यक्त्वा लोकं समेत्य समताचारः) पटादेः सनातनागुचरकर-११८ कर्मफले बन्धूनामबन्धुता (भाभी- वियुतस्याप्रमत्तता (बामणीदृष्टान्तः, णम् । भजीवप्रयोगे वर्णादि । क्षेत्र- रीवश्चकवणिग्दृष्टान्तः) २११ । वणिग्महिलादृष्टान्तश्च) २२६ SAGAAKANGANAGAR ~409~ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) १२५-१२७ मोहगुणेषु रागद्वेषत्यागः क- २१४-२२४ नामविभागकथनप्रतिज्ञा, आवी- २३३ पायत्यागश्च । मृत्युं यावत्प्रेमद्वेषानुग मतजुगुप्सा २२८ उपसंहार औद्धय परिहारा । चेर्लक्षणं भेदपथकं च । अवध्या २३४ भक्तपरिज्ञादीनां (३) श्रेष्ठता २४१ व्यन्ति कव उन्मरणानि । अन्तःशल्य- २३५ मनुष्य सकाममरणाभ्यामधिकारः मरणं, तत्फलं च तद्भववालप- १२८ वार्येऽर्णवे प्रश्नः ण्डित मिश्रच्छद्यस्थकेवलिवैदायसगृध- १२९* सकामाकाममरणे । २४२ पृष्ठमरणानि । २३५ २०८ काम निक्षेपाः (४) मरणनिक्षेपाः (६) २२५ भक्तपरिज्ञेङ्गिनीपादपोपगमनानि अभिप्रेतकामैः प्रकृतम् २२९ ॥ इत्यसंस्कृताध्ययनम् ॥ ४ ॥ भाग २ ॥ अथाकाममरणाध्ययनम् ॥ २३७ | २०९ द्रव्यभावमरणे, भावे ओघभवत- २२६ अनुभावेषूपक्रमेतरौ, आयुः प्रदेशाश्च । विकानि वा २३० २२७-२३० एकसमयमरणसंख्या (५), भवचक्रे एकैकमरणसङ्ख्या २३९ २३१-२३२ अनादिमेषु मरणेष्वनन्तो भागः, आचमनुसमयं प्रथमचरमयोर्नान्तरम्, आयमनादि २४० २१० २११ मरणे विभत्यनुभागप्रदेशामादीनि (८) द्वाराणि २१२-२१३ आवीच्यादिका मरणभेदाः (१७) २३१ | १३०* बालानामकाममसकृत् पण्डितानां सकामं सकृत् । १३१-१४४* कामगृद्ध क्रूर कृतनास्तिकैहिककामामिलापिशङ्गितपरलोको लोकदर्शी सस्थावरहिंसको (पशुपालष्टान्तः) मायी सुरामांसभोजी गृद्धो द्विधामसंचयी आतङ्के मीतः कर्मानुपेक्षी प्रगाढनरकानुप्रेक्षी पश्चात्तापवान् भग्नशकटवत् प्रतिपन्नाधर्म ~ 410~ Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम नन्यादिशोची कलि जितपूर्व इव संत्रस्तो-१५७* दयाधर्मक्षान्तिमेधाविनां प्रसन्नता समन्यभेदाः, निर्मन्थखरूपं च। उत्तराध्यअनु. आव. ऽकाममरणवान् २५८ २५४ २६२ यने अकाघि. दश.||१४५* सकाममरणस्वरूपम् २४९ १५८-१५९७ मरणे रोमहर्षयागः, त्रया- १६०* दुःखहेत्वविद्यामन्तः संसारे छिच-18 ममरणाध्य. पिण्ड. उत्तर १४६% सर्वभिश्वगारिषु तदभावः जामन्यतमन्मरणं मुनेः २५४ न्ते । (कुम्भप्राहिगोधकदृष्टान्तः) क्षुटकनि. ॥१७२॥ १४७* भिक्वगारिणीपिमशीलता २५० ॥ इत्यकाममरणाध्ययनम ॥५॥ १६१% सत्यषी मैत्रीवान् भूवात् । १४८७ चीयजिनादीनामत्रातृत्वम् ॥अथ क्षुल्लकनिन्थीयाध्ययनम॥ १६२-१६३२ मात्रादीनामत्रातृत्वाइद्धिले१४९७ दुरशीलसुरतबोर्गती (दमकदृष्टान्तः) २३६ मइच्छब्दनिक्षेपाः (८) २५५ हयोश्छेदः २६५ १६४* मादित्यागिनः कामरूपिता। २५१ २३७-२४३ निम्रन्थनिक्षेपाः (४) नोआग-1 १५०-१५१* सामायिकपौषपकियावतो दे- १६५-१६६* स्थावरादेवुःखामोक्षः, प्रियामतः (३) भावे (१) (पुलाकावि युषो न हन्यात् बत्वम् २५२ खरूपम्) १६७* नरकहेतुर्धनादिः, दत्ताशनम् २६६ |१५२* साधोर्मोक्षदेवत्वे ।। ३-३०+ पुलाकादिस्वरूपम् । संयमश्रुत- १६८७ निष्क्रिया ज्ञानवादिनः १५३-१५४* आवासानां देवानां च स्वरूपं प्रतिसेवनादीनि द्वाराणि । उत्क- १६९* वाग्वीयर्यास्ते २६७ ॥१७२॥ १५५* संयमतपोभ्यां शान्तानां मतिः २५३/ याचा निर्मन्थाः, प्रन्थे वाह्याभ्य- १७०* भाषाविद्ये पापकर्मणो न प्राणम् । १५६* शीलपता मरणेऽत्रासः न्तरौ, (१०) (१४) अभ्यन्तरवा- १७१* शरीरादौ सक्तिर्दुःख २६८ सुत्ताणि RC450 ~411 Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) regतिः (द्रमकराजदृष्टान्तौ ) २७२ २७८ १८९* मनुष्यकामा दिवि सहस्रगुणता १०८ आदेशार्थमेकपोपणम् (ऊर- १९०० मनुष्यकामाद काकिन्याकोषमा दृष्टान्तः) २७३ २४९ आतुरदीर्घायुषो लक्षणम् । | १७९-१८०* पुष्टे आदेशाकाङ्क्षा । आदेशागमे बधः २७४ १७२* संसारानं सखा । २०१* मोक्षार्थी देहभृतिः । १७४* कर्महेतुत्यागी यथाकृतपिण्डपान भोका २६९ १७५* लेपसन्निप्योस्त्यागः १७६* निवसृदिषु पिण्डैषी २७० १७७ वैशालिफायरस्यमध्ययनस्य । ॥ इति कनिर्ग्रन्थीवाध्ययनम् ॥ ६ ॥ | १८१* आदेशाभ्रवद्धर्मी निरवैषी । ॥ अथ औरविकाध्ययनम् ॥ १८२-१८६* हिंसाचा नरकहेतवः 1 आस२४४-१४६ करभार (४) मन्ये औ, नादि धनं च रजोद्देत् तादात्विकस्य बोआपचे बिया व्यतिरिके एक- मरणे शोकः २७१ भविषद्धायुष्काभिमुखनामगोत्राः, १८७* हिंसकानां नरकगामिता २७६ भायोरभः तदुत्थितं पाण्ययनम् २७१ १८८३ काकिन्यात्राभ्यां सहस्रकार्यापणारा-1 २४७-२४८ करश्रादिदृष्टान्तपश्वक सूचा । २४८ आरम्भरसगृद्धिदुर्गतिप्रत्यपायैरुपमा ~412~ १९१-१९९* वणिकूत्रोपमा (वणिकूपुत्रत्रय ट्रान्स) २७९ १९२* मानुष्यं देवत्वं नरकविर्यले मूलं लाभो सूलच्छेदा (सत्त्वत्रयदृष्टान्तः ) १९४* नरकतिर्यक्त्वे कोलुपशठवालंस्य २८० | १९५० चिराहुभोन्मज्ञाऽस्य । | १९६-१९७* मानुष्ये मूलत्वम् । शिक्षासुत्रवानरयतिकाः । Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत S सूत्रांक यहां नन्यादि देखीए भ्रीय का ॥ १७३ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ४१९८० सविशेषशिक्षाशीला अदीना देवग- एकभविकादि (३) भावकपिलादृष्य-२१५* प्राणवधाननुज्ञाता मुक्तिगामी। अनु. आव. का उत्तराध्यतिकाः २८२ यनोत्थानम् २८६ २१६* स्थलादुदकवद्वधविरतासापनिर्गमः । यने और|१९९७ पराजयज्ञानं किं न १२८३ पिण्ड, उत्त. २५३-२५९ कपिलचरित्रम् (कपिलकथा) २१७*सस्थावरयोर्वघयाग: २९८ २००* कुशाप्रसमुद्रोदकन्नरदेवयोः कामाः। * २८९ २१८-२१९एवणारतो जातेपी अरसग्रदो पिलीय च, २०१* अल्पे आयुषि योगक्षेमं किं न वि-an न चि-२०८७ अध्रुवे संसारे दुर्गतिरोधकं किं २९० भिक्षुः, प्रान्तादि यापनार्थ सेवते ।। न्यात् २८४ २९५ २०२-२०४* कामाऽनिवृत्तो मार्गभ्रंशी । २०९# अस्नेहस्य दोषपदान्मुक्तिः कामनिवृत्तो देवगतिका, स्युतोऽपि २१०* प्राप्तज्ञानस्य चौरमोक्षार्थमुपदेशः२९१ २२०० लक्षण खनादिप्रयोक्का न साधुः। ऋद्धिपत्यादिमान २८५ २११ मन्थकलहत्यागी अलेपकः। २२१-२२२ कामात्समाधिभ्रष्टा वासरग-1 २०५-२०७४ बाळधीरयोः खरूपं तुलना २१२ श्लेष्मे मक्षिकावद्भोगगृद्धाशस्य बन्धः तिकाः संसारश्रमिणो दर्लभयो । गतिश्च २९२ धिकाः २९६ ॥ इत्यौरभ्रिकाध्ययनम् ॥७॥ २१३* वणिजामतरतरणवत्साधोः काम- २२३* कृत्स्नलोकेनाप्यसन्तोष्यो दुष्पूर ॥ अथ कापिलियाध्ययनम् ॥ | त्यागः आत्मा २९७ ॥१७३॥ १|२५०-२५२ कपिलनिक्षेपाः (१) द्रव्ये २१४% अशहिंसकासाधवो नरकगामिनः । २२४% लाभो लोभहेतुः, द्विमासलाभे को-| द्विधा, नोआगमे त्रिधा, व्यतिरिक्ते। २९३ टिलोभवत् । ACROMCAOSCALEN सुत्ताणि ~413 Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) २२५* स्त्रीषु न गृद्धयेत्, प्रलोभ्य दासवत्त्रीडन्ति ताः । २२६* स्त्रीत्यागी धर्मस्थो भिक्षुः २९८ २२७* कपिलाध्ययनक्रियाफलम् । ॥ इति कापिलियाध्ययनम् ॥ ८ ॥ ॥ अथ नमिप्रव्रज्याध्ययनम् ॥ | २२८-२२९ नमेयवनं जातिस्मृतिः पुत्र२६० २६३ नमिनिक्षेपाः (४) प्रब्रज्या- मभिषिच्य दीक्षा | निक्षेपाः (४) द्रव्येऽन्यतीर्थिकी २३०-२३१* भुक्तभोगस्य यागः, राष्ट्रवभावे आरम्भपरित्यागः २९९ लावरोधपरिजनत्यागश्च ३०७ २६४-२७९ प्रत्येकबुद्धास्त देशास्तदूबोधिछे- २३२ प्रव्रजति नगर्यो कोलाहलः । २३३-२३४* मानरूपेण शक्रागमनं, नगकोलाहलप्रासादगृहदारुणशब्दहेतुपृच्छा । ३०८ तवश्च नमिवृत्तान्तसूचा समसमयं च्यवनं सिद्धिश्च प्रत्येकबुद्धानाम् । वृषभात्कलिङ्गराजबोधः । इन्द्रकेतोः पश्चालराजस्यानित्यता- २३५-३३७* हेतुकारणचोदितनमिवाक्यं, विचारः । वलयशब्देभ्यो नमः । चू- वातहियमाणगन्धे वने खगाक्रन्दैः ताद्गान्धारस्य । त्यागिनः कः सभायः १ समाधानम् । ३०९ किं परकृत्यतृप्तिः ? किं ग १ अहित- २३८-२३९* दह्यमानमन्दिरान्तः पुरोपेक्षावारणेऽदुष्टतेति । (प्रत्येक बुद्ध (४)कथा ) ३०६ प्रश्नः । ३१० २४०-२४१*अकिश्चनस्य नगरीदाहे न दाहः २४२-२४३* अपुत्रकलत्रव्यापारस्य न प्रियाप्रिये, एकत्वानुदर्शिनो भद्रं च २४४-२४५* प्राकारगोपुरादिकरणानन्तरं जेतीन्द्रवाक्यम् ३११ | २४६-२४९* श्रद्धातपः क्षान्त्यादेर्नगर्यर्गलप्राकारादित्वं कृत्वा मुक्तिरिति नमिः । ~414~ ३१२ | २५० २५१* प्रासादादि कृत्वा प्रजेतीन्द्रः । * ৬+6 Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्या .देअनु. आव. 1ॐ पिण्ड. उत्त. ॥१७॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि २५२-२५३ शाश्वतस्थाननिगमिषा २७४-२७६* सुवर्णादिपर्वतैः पृथिव्यावि- ॥ अथ दुमपत्रकाध्ययनम् ॥ उत्तराध्य. २५४-२५५ नगरक्षेमं कृत्वा प्रजेतीन्द्र मिश्च नैकस्य सन्तोषः (ममिः) ३१७/ २८०-२८३ ट्ठमनिक्षेपा(४)ऽऽदिः, यथा सबने नमिप्र२७७-२७८* दृष्टभोगत्यागेऽन्यभोगमार्थ व्रज्याध्य. २५६-२५७* कार्यकारिषु दण्डादण्डौ। मा (इन्द्रः )। स्थित्युपक्रमाभ्यां पनेणौपम्मं ३२१ । द्रुमपत्रा२५८-२५९४ अनम्रपार्थिववशीकारः (इन्द्रः)/२७९-२८१* शल्यविषसोपमकामार्थिनां २८४-३०६ शाळमहाशालगामिलिदीक्षा, यंच. २६०-२६३७ दशलक्षजयादात्मजयः, जि- नरकः, क्रोधादेनरकगत्यादिः (नमिः) अष्टापदप्रतिमानन्नुश्चरमशरीरता, तात्मनः सुखमिन्द्रियकषायजयश्च । ३१८ वाजीषवैश्रमणस्याने पुण्डरीकाध्यनिमिः) । ३१४ २ ८२-२८४* इन्द्रखरूपप्रकाशोऽक्रोधादिना |२६४-२६५४याद्विजभोजनामन्तरं ब्रज इन्द्रः नमिस्तुतिः ३१९ यनकथनं, कौण्डिन्यादीनां दीक्षा२६६-२६७ दशणक्षमोझतातू श्रेयः संयमः २८५-२८७* अत्रामुत्रोत्तमतया सिद्धिगम- कैवल्ये, चिरसंसृष्टादिः, गौतमनि(नमिः) ३१५ । नेन च स्तुतिः प्रदक्षिणाव, वन्दित्वा अया शिष्योपदेशश्च ३३३ २६८-२६९* घोराश्रमे पौषधिको भव(इन्द्रः) स्वर्गमश्च । ७०-२७१७ कुशाप्रभोजी न धर्माशाई: २८८-२८९० गमेरनुत्कर्षः, भोगनिद्रसिट-२९०० पाण्डुरपत्रवनराणां जीवितम् ३३४८॥१७४ ।। नमिः। ३१६ टान्तभूता ३२० ३०७-३०९ पस्त्पस्थिरपक्रोलाफर (क२७२-२७३ हिरण्यादि पर्द्धय (इन्द्रः) । ॥ इति नमिप्रव्रज्याध्ययनम् ॥९॥ स्पिताः) ~415 Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम RECACANCE |२९१% कुशामपिन्दुवारजीवितं स्तोकम् । ३१७* अस्निग्धस्स शारदकुमुदजलवास- क्षायिके केवलं बहु, द्रव्ये पोण्डका मता। ३३९ दिपुस्तकादि भावे सम्यग्मिथ्या२९२७ इत्वरे बहुविन्नेचास्मिन्कर्मनाशोपदेशः ३१८* वान्तानाशी श्रुते ३४३ २९३% मानुष्यं दुर्लभं गाढाश्च विपाकाः ।। |३१९* द्वितीयमित्राद्यगवेषणम् । ३१३-३१४ शुद्धकर्मसम्यग्दृष्टेः सतं, ३२० जिनादर्शनेऽपि श्रद्धा । ३४० २९४-३०३* पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिद्वि कर्मादानकृतमिध्यादृष्टेरसत् ३२१* निष्कण्टको महालयो मोक्षगन्ता।। त्रिचतुष्पञ्चेन्द्रियदेवनारककाय३२२* विषममार्गावगाहे पश्चाचापः। |३१५-३१७* ईश्वरशिवादेव्यपूजा, जिखितिः ३३६ ३२३* वीरागतः पाराय त्वरख ३४१ नादेर्भावपूजा, चतुर्दशपूर्विणोऽपि ३०४* प्रमादबटुलस संसारभ्रमणम् । ३२४ क्षेमशिवानुत्तरां सिद्धिं गच्छ । ३४४ ३०५-३०९* आर्यत्वाहीनपञ्चेन्द्रियतोत्त-३२५* उपदेशसर्वस्वम्। ३२७* संयोगमुक्ताचारकथनप्रतिज्ञा। मधर्मश्रुतिश्रद्धास्पर्शनानां दुर्लभता । ३२६* रागद्वेषच्छेदः,सिद्धिगतिश्च गौतमस्य । ३२८* स्तब्धलुब्धानिग्रहप्रलाप्यविनीतोऽध३३८ . ॥ इति द्रुमपत्रकाध्ययनम् १०॥ हुश्रुतः। P३१०-३१५७ श्रोत्रचक्षुर्माणरसनस्पर्शनसर्व- ॥अथ बहुश्रुतपूजाध्ययनम् ॥ ३२९-३३१ अशिक्षाहेतवः स्तम्भाषा: बलानां हीनता। |३१०-३१२ बहुश्रुतपूजाशब्दाना निक्षेपाः (४)| (५) अधःशिराधास्तु शिक्षाहेतवः ३१६* अरतिगण्डादिमिः शरीरपातः। । द्रव्ये जीवपुद्गलाः भावे चतुर्दश पूर्वाणि (८) ३४५ सुत्ताणि ३० नंद्या. ~416 Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक - यहां देखीए नद्यादिअनु. आव. ओघ. दश पिण्ड, उत्त. - ॥१७५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ALSCREOSHDSUSCRCESSIST ३३२-३३९७ अभीषणं क्रोधप्रबन्धाथै (१४) ॥अथ हरिकेशीयाध्ययनम् ॥ ३६६-३६८ शरीरं प्रच्छाद्य तिन्दुकयक्षवा-1 उत्तराध्यरविनीतः, नीचैर्वृत्त्याचे (१५) वि- ३१९-३२० हरिकेशनिक्षेपा(४)ऽऽदिः ३५४ क्य, साधुगुणकथनं भिक्षायाच्या। नयने दुमपत्र नीतः ३४७ ३२१-३२७ हरिकेशपूर्वभवमदः प्रातिहार्य३४०* गुरुकुलवासियोगोपधानादिमतः शि हरिकेशीमीक्षित्वा दीक्षा हरिकेशकार्थिकानि । ३६९० द्विजार्थमेतत्तद्गच्छ (छात्रा) ३६१ यानि. माईत्वम् ३४८ जन्म परषिवान्ता सुभद्रा, बलकुट्टे बल- ३७०* स्थलनिम्नन्यायेन देहि(यक्षः) |३४१* शङ्खपयोवद्वहुश्रुते धर्मकीत्यौँ । कोट्टस्य गौरीगान्धायौँ, सविषेतरसपी, ३७१७ जातिविद्योपपता द्विजाः क्षेत्रम् । ३४२-३५६* कम्बोजाश्वाश्वारूढशूरपष्टि- तयोर्वधमुक्ती, भद्रकतोपदेशः । अत्र " (छात्राः) हायनकु जरयूयेशवृषभसिंहवासुदेव- कवादिकथाबहुमुण्डितो जनः। ३५७ चक्रवर्तीन्द्रदिवाकरचन्द्रकोष्ठागार- ३५९-३६१* श्वपाककुलो गुणी हरिकेशः, २०० ३७२-३७३* जातिविद्याविहीनाः क्रोधादिजम्बूशीवामन्दरस्वयम्भूरमणैरुपमा | पञ्चसमितस्निगुप्तो यज्ञपाटमागतः।। मन्तः पापस्य क्षेत्रं, भिक्षाचर्यावन्तः | बहुश्रुतस्य ३५३ ३६२-३६४* तपःकृशं प्रान्तोपधिमनायो पुण्यस्य (यक्षः) ३६३ ३५७* गम्भीरदुष्प्रधर्षतायिनः सिद्धिः। जातिमदहिंसेन्द्रियभ्रमरता वर्णना. ३७४ *प्रत्यनीकाय न दोऽनपानम् ।(छात्रा) - |३५८७ श्रुताधिष्ठित आत्मपरतारकः। शवस्त्रादिभिरुपहसन्ति । ३५९ ३७५* समितिसमाधिगुप्तिमतेऽदाने यश-| ॥१७५॥ । ॥ इति बहुश्रुतपूजाध्ययनम् ११॥ ३६५७ प्राप्ते निन्दित्वा गमनप्रेरणा। लाभो न (यक्षः) 4-- 06-%A5% ~417 Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम 5.३७६-३७७ दण्डफलादिभिश्छात्रादीनां व-३९६-३९७* ज्योतिरारम्भवाशुद्धी न कु-३३४-३५२ प्रादत्तपर्यादिण्डी । कम्यात धायाऽऽदेशोऽध्यापकस्य, छात्रास्ताङ- शलदृष्टे, कुशादयः पापक्रियाः। । पित्रादयः । भ्रमणस्थानानि । ३८२| यन्ति ऋषिम् । ३६४ ३ ९८-४००* प्रवृत्तियागकर्मक्षयप्रमः, वधा- ४०७* चित्रः पुरिमताले श्रेष्ठी प्रनजितश्च । |३७८-३८१ अनिन्दिताङ्गी भद्रा नतः कुमा- दिविरतसंघृतादियज्ञयाजी । ३७२ ४०८ काम्पिल्ये समागमः, मिथो वार्ता च । रान् सान्त्वयति ऋषि च स्तौति ।३६५ ४०१-४०२* ज्योतिस्तत्स्थानसुवाविप्रो | पुरोजातीनां प्रकाशः ऋद्धिदाना*३८२-३८९७ असुरकृतं ताडनम्, भद्राकृतो- तपादीनां ज्योतिरादिता दरश्च । ३८३ पालम्भः शरणगतिशिक्षा च । छात्रा-४०३-४०५* इदतीयोंदिप्रभे धमोदीना इ-४०९-४१२% अन्योऽन्यानुगानुरक्तौ आवां वस्था, सभार्याध्यापककृता क्षामणा दत्वादि। ३७४ भ्रानरौ दासा इत्यादि ब्रह्मवाक्यम् ।। प्रसादनं च ३६८ ॥ इति हरिकेशीयाध्ययनम् ॥१२॥४१३* त्वन्निदानाद्वियोगः। (मुनिः)। ३८४ | ३९०* यक्षकृतमेतदिति मुनिः। ॥ अथ चित्रसंभूतीयाध्ययनम् ॥ ४१४* सत्यशौचफलम् (ब्रह) | ३९१-३९४* शरणगतिः, अर्चनं, भक्तदा- ३२८-३३३ चित्रसंभूतयोनिक्षेपा (४)- ४१५-४१७* स्वबाह्यान्तःसमृद्धिवर्णन।३८५ नानुज्ञा, विज्ञप्तिनं विव्यपञ्चकं च। ऽऽदिः, चित्रसंभूतयोः पूर्वभवाः । ४१८-४१९* प्रासादवित्तभृत्यानिमन्त्रणम् । (कथा संस्कृतेऽतः) ३८६ ३९५* विस्मितद्विजकता तपःप्रशंसा।३७०४०६* कृतनिदाननझदत्तजन्म ३७६ ४२०-४२२० गीतनृत्याभरणकामानामशु सुत्ताणि ~418~ Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां उत्तराध्य. देखीए संभृति येषु| दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्यादि भता विरती मुखं प चित्रराजाय ४३६-४३७ क्षीणफलद्रुमपक्षिन्यायेन ४४४-४४५७ जातिस्मृत्या पुत्रयोंवैराग्यम् । अनु. आव. शास्ति । ३८७ भोगा अनित्याः, त्यागेऽशक्तोऽपि ४४६-४४७* मोक्षामिकाङ्गिणोः तयोः पितु-| आप. दश- ४२३-४२५* पूर्वभवान् विष्टा मोक्षहेवदी- ान् विष्ट्वा मोक्षहेतुदी- धर्मस्थितो भावी देवस्त्वम् । ३९२ | धर्मस्थितो भावी देवस्त्वम् । ३९२ रापृच्छा। ३९८ पिण्ड. उत्त. क्षोपदेशः। ३८८ ४३८७ प्रारम्भपरिप्रहसक्तस्त्वं गच्छाम्य- ४४८-४४९० सुतोत्पत्ती वेदाध्ययनादि कृत्वा ॥१७६॥ ४२६* अशाश्वते जीविते पुण्यभ्रष्टः शोचति । | हम् । (मुनिः ) भवतमारण्यको(पिता) ३१९ ४३०* ब्रह्मदत्तस्याप्रतिष्ठाननरके गतिः। .. ४२७-४२८* सिंहान्मृगवन्मरणे कर्मणि ३५४-३५८ ब्रह्मशेषवक्तव्यता । (गाथा -४५०-४५५* वेदादीनामत्रातृता कामा अन| चाशरणम् । ३८९ असंप्रदायाः). ३९३ र्थमूलाः, अनपेक्षितो मृत्युः। CI४२९-४३०* द्विपदक्षेत्रगृहधनादेमिन्नता । ४४*चित्रस्य मुक्तिः। (कुमारी)४०१ IN४३१० जरा वर्णहारिणी, मा कर्म काषी ॥रति चित्रमभतीयाध्ययनम१३॥ ४५६० धननाकामाखपःफलम् (पिता) (मुनिः) ३९० ॥ अथ इषुकारीयाध्ययनम् ।। ४५७* आत्महिते धनादेर्निरर्थकता(कु०)। ४३२* भोगाः सङ्गकराः। ३५९-३७२ इषुकारनिक्षेपा (४)दिः । इषुका-४५८* शरीरमात्रो जीवः । (पि०) ४०२ |४३३-४३५* अप्रतिक्रान्तनिदाना कामभो- रपूर्वभवादिः । (इषुकारकथा) ३९६ ४५९-४६१* नित्यजीवत्वबन्धयोः साधनम,| गमूळ, पदमननागवत्यागेऽस-४४१-४४३७ देवभवाद् इषुकारादीनामव- पूर्ववत्पापाकरणं सदुःखे गृहेऽरतिश्च मर्थः । ३९१ वारः ३९७ (कु०) ४०३ SSCARSUSUHAGRACC १७६ ॥ ~419~ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम २४६२७ व्याघवागुरापहरणमाः । (पि०) (४७४-४७५* पुत्रौ विरक्ती, धीराणां आम-४९४-५०९७ मौनचरणादि-रागोपरमणादि-| ४४६३-४६५* मृत्युजरारात्रयः, वाः धयध- ण्यम् । (पु०) आक्रोशवधसहनादि-प्रान्तशयनासमिणोः सफलाः अफलाश्च(कु०)। ४०४ ४७६* पतिपुत्रानुसरणाऽनुमतिः (पु० पनी) नादि-सत्कारानीहावि-मोहनिरासादि४६६* पश्चाद् यास्यामः (पि०) ४०८ स्वरभौमादिवर्जन-मन्त्रमूलादिवर्जन४६७-४६८* मृत्युसख्यपलायनाभावाद्ध, ४७७-४८०* तद्धनग्राहिणे राजे राजीशिक्षा, क्षत्रियश्लोकादिवर्जन-संस्तवत्याग मा वान्ताशी भव, न ते तुष्टिश्चलाः - त्वरा । (कु०)४०५ कामा धर्मखाणम् । ४०९। अदत्तत्याग-शुद्धमास-धूमपरिहार-नि४६९-४७०* पुत्रत्यक्तस्याशोभनता (पुरो-. ४८१-४८८ राझ्या वैराग्यम् । ४११ भैय-दृढसम्यक्त्वाशिल्पजीवनादिगुहितः)। ४८९-४९३* राजराज्योर्दीक्षा, मोक्षश्च स णोपेतो भिक्षुः। ४२० ४४७१* भुक्तभोगौ गमिष्यावः । (पु० पत्नी) र्वेषाम् । ४१२ ॥ इति सभिक्षुकाध्ययनम् १५ ॥ ॥ इतीषुकारीयाध्ययनम् १४॥ ॥ अथ ब्रह्मचर्यसमाध्यध्ययनम् ॥ |४७२* समलाभालामसुखदुःखो मौनीभवि ॥अथ सभिक्षुकाध्ययनम् ॥ |३७९ एककनिक्षेपाः (७)। ४२१ प्यामि । (पु०) |३७३-३७८ भिक्षुनिक्षेपा(४)दिः । द्रव्यमा- ३८० दशकनिक्षेपाः (६) दशप्रदेशिकः, ४७३* भिक्षाचर्या दुःखं, भुत्व भोगान् । __वभेत्तुभेदभेत्तव्यानि । रागाविक्षुढे- अवगाहनस्थित्योश्च, जीवाजीवपर्या(पु. पनी) ४०७, दकाः सिद्ध्यन्ति । ४१३ याश्व। सुत्ताणि ~420 Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्यादि अनु. आव. ओघ. दश. पिण्ड. उत्त. ॥ १७७॥ ३८१-३८२ ब्रह्मनिक्षेपाः (४) स्थापनायां १० ब्राह्मणोत्पत्तिः, द्रव्येऽज्ञस्य, भावे ११ साधोः, रक्षायै स्थानान्यस्य । १२ अतिभोजनवर्जनम् । विभूषात्यागः । ४२७ शब्दाय ननुपातिता । ३८३ चरणनिक्षेपाः (६), द्रव्ये गतिभक्षणे। ५१० ५१९* दशस्थानश्लोकाः । ४२९ ३८४ समाधिनिक्षेपाः (४) ४२२ ३८५ स्थाननिक्षेपाः (१४) २सू. समाधिस्थानोद्देशः । ४२३ ३ ४ ५. ५२७-५२९* प्रत्रम्य शय्यादिरतः सुखशीलः पापभ्रमणः । ५२०-५२२ स्त्रीसंसक्तशयनादीनां ताल- ५३० ५४५* आचार्यनिन्दका तर्पकप्राणापुटोपमत्वम् । ४२९ ५२३-५२४* व्यक्तकामादिः धर्मारामादिरतः स्यात् । ४३० ५२५-५२६* ब्रह्मचर्यमहिमा | दिमर्दकाप्रमार्जितसंस्तारायारोहक - द्रुतचारिप्रतिलेखनाप्रमत्तगुरुपरिभावक बहुमा यि विवादोदीरकास्थिरासनसरजस्कशयन विकृतिभोजनयावत्सूर्थभोजनाचार्थत्यागपरगेय्यापार कुटु स्वपिण्डाः पापश्रमणाः । ४३६ ५४६-५४७ पापश्रमणता तद्वर्जने च फलं । ४३७ ॥ इति पापश्रमणाध्ययनम् १७ ॥ पृच्छा, श्रीपशुपण्डका संसक्तशयनादिसेवनं, विपर्यये दोषाः ४२४ पूर्ववत्स्त्रीकथावर्जनम् । ॥ इति ब्रह्मचर्य समाध्यध्ययनम् १६ ॥ पूर्ववत्स्त्रीनिषद्यावर्जनम् । ॥ अथ पापश्रमणाध्ययनम् ॥ पूर्ववदिन्द्रियालोकवर्जनम् । ४२५ ३८६-३८७ पापनिक्षेपाः (६) । क्षेत्रे नरकः, कुड्यायन्तरकूजितादिश्रवणवर्जनम् । कालेऽतिदुपमा। पूर्वरक्रीडितवर्जनम् ४२६ ३८८ श्रमणनिक्षेपाः (४) । ज्ञानसंयमयुतो प्रणीताहार वर्जनम् । भावे । ४३२ | ३८९ ३९० अकरणीयसेवी पापश्रमणस्तद्वजैको मुक्तिगामी । ~ 421 ~ ४ उत्तराध्य * यने समिक्षुब्रह्मचर्य पा पश्रमणानि. ॥ १७७ ॥ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए OSC46-4- दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ॥ अथ संजयतीयाध्ययनम् ॥ ५६५-५६६४४०१-४०३ संजयदीक्षा गा-५९८-६००* दृढपराक्रमोपदेशः, संसार18|३९१-३९३ संजयनिक्षेपा(४)दिः। | थानवकानुवादः। ४४२ | तरणं सिद्धिश्च । ४५० |५४८-५५०*यादियुतः मृगयानिर्गतः |५६७.५६८* सजय प्रति त्यागरूपनामगो-४०४ संजयसिदिः । | संजयः। ४३८ त्रादिप्रअस्तदुत्तरं च । ४४३ ॥ इति संजयतीयाध्ययनम् १८॥ |३९४-३९५ मृगयानिर्गमः। ५७०-५७८* क्रियावाद्याद्याः (१), बड- ५५१-५५२* केशरोद्याने साधोः पार्थे मृग प्रादुष्कृता एते, फलं चैषाम् । तेषां ॥अथ मृगापुत्रीयाध्ययनम् ॥ गतिः। ४३९ मायाविता । तद्विषयं सज्ञानं ब्रह्मलो-४०५-४०८ मृगापुत्रनिक्षेपा(४)दिः । ४५१12 द्र ३९६ अष्फोवमण्डपे गर्दभालेवा॑नम् । ४३९ कल्यवनं, नानारुचिवर्जनं प्रश्नवर्जनं । |६०१-६०४* सुग्रीवाधिपबलभद्रमृगापुत्रव५५३-५५४७३९७-४०० साधुदर्शनं मन्द-५७९-५८०४ तज्ज्ञानं जिनशासनं क्रियाऽकि लश्रीः(मृगापुत्रः)दोगुन्दुक इव क्रीडन् पुण्यतेक्षणं झामणा साधुमौनं नृप- ययोर्महणवर्जने। ४४७ नगरालोकी। भय च । पूर्ववत् । ५८१-५९७ भरतसगरमघवत्सनकमार. ६०५-६०८*४०९-४१५ साघुदर्शनाजाति५५८-५६४* अभयदो भव, गन्ता त्यागी, शान्तिकुन्वरमहापग्रहरिषेणजयद- स्मृतिः । पूर्वोक्तानुवादः । ४५२ चञ्चलायुः प्रेत्यार्थी, स्वार्थकुटुम्बी शार्णभद्रप्रत्येकबुद्धो (४) दायनश्वेत- ६०९-६१०२४१६ विरक्तः प्रव्रज्याकामः| तपस्वी परकार्यकर्मेक्षी । ४४१ । विजयमहाबलानां त्यागमोक्षौ ।४४९ पितरावुवाच । तदेव। ४५३ 5645645625%456-545454645 6454SCCA सुत्ताणि ~422 Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए उत्तराध्ययनेसंजतीय मृगापुत्र महानिन न्थीयानि. दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्यादि-15६११-६२३* भोगा विषफलवकटुक्पिाकाः ४२१ तदेव । ७१२-७१३* अश्वहस्त्यादिभिर्नाथत्वम् । अनु. आव. शरीरमनित्यत्वाद्याघ्रातमसारे व्या- ६९६-६९८* उपसंहारः ४६५ ४७४ ओष. धिरोगाचालये नरत्वेऽरतिर्जन्मादि ॥ इति मृगापुत्रीयाध्ययनम् १९॥ ७१४-७३३ अनाथत्वस्वरूपे सपूर्ववृत्तम् । पिण्ड. उत्त. दुःख क्षेत्रादेवियोगः असुन्दरा भोगा ॥ अथ महानिर्ग्रन्थीयाध्ययनम् ॥ ॥१७८॥ शयन- ४२२-४२४ क्षुल्लकप्रतिपक्षमहन्निक्षेपादि। ७३४-७३५* आत्मनो वैतरण्यावित्वम् । वत्संसारः। ४५५ ४७७ ६२४-६४३* साधुधर्मदुष्करता । ४५७ ४२५-४२८ पञ्च निर्गन्थाः,प्रज्ञापनादि (३७) ७३६-७४८* श्रामण्येऽपि कुमार्गसंभवाद★६४४-६७४* नरकदुःखवर्णनम् । ४६१ द्वाराणि । उपसंहारः । ४७१ नाथता। ४८० ६७५* निष्प्रतिकर्मता (श्रामण्ये) ४६२ ६९९ मङ्गलं कृत्वा शिक्षाप्रतिज्ञा । ४७२/७४९-७५१% कुशीलत्यागिनो मार्गेण मोक्षः।। ६७६-६८३* अरण्यमृगचर्या । ४६३ ७००-७०६७ श्रेणिककृता संजयप्रशंसा पृ-७५२-७५८* श्रेणिकतुष्टिः क्षामणोपसंहादि६८४-६८७* मृगापुत्रदीक्षा। च्छा च ४७३ रश्च । ४८१ ४१७-४२० तदेव ४६४ ७०७* अनाथत्वं मुनित्वे हेतुः। ॥ इति महानिर्ग्रन्थीयाध्ययनम् ॥२०॥ ६८८-६९३* मृगापुत्रानगारवर्णनम् । ४६५/७०८-७०९* नाथभवनम् । ॥ अथ समुद्रपालीयाध्ययनम् ।। ६९४-६९५* मृगापुत्रसिद्धिः। ७१०-७११% अनाथः कथं नाथः । ४२९-४३०समुद्रपालयोनिक्षेपा(४)दिः।४८२ SSCLASSAGARALAMA ~423 Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम |७५९-७६८ समुद्रपालजनमविवाहवध्यदर्शन-1८१४-८३०२४४६-४५० गुहायां रथने- ८३६-८३९० श्रीगौतमस्यागमनं कोष्ठके। संवेगमातापितृपृच्छा दीक्षा च । मिना समागमः, भोगप्रार्थना, | ४९९ ४३१-४४१ तदेव सविशेषम् ४८४ राजीमत्या निश्चलता उपदेशश्च । रथ- ८४०-८४४* उभयोराचारभेदचिन्ता ।५०० ७६९-७८१ समुद्रपालानगारवर्णनम् । ४८७ नेमेर्मागप्रतिपत्तिः । (नपुरपण्डिता-८४५-८५१% गौतमस्य गमनं, पलालादिभिः ७८२* समुद्रपालसिद्धिः। ख्यानम्) द्वयोर्मोक्षः । तदेव सवि- प्रतिपत्तिः, द्वयोः शोभा, लोकसमा|४४२ तदेव । ४८८ शेषम्। ४९७ गमः। ५०२ ॥इति समुद्रपालीयाध्य० ॥२०॥ ८३१ उपसंहारः । ८५२-८५३* पृच्छाया अनुज्ञा । ॥अथ रथनेमीयाध्ययनम् ।। | ॥इति रथनेमीयाध्ययनम् २२॥ ४५५-४५७ व्रतलिङ्गादि (१२) प्रभोदेशः । |४४३-४४५ रथनेमिनिक्षेपादिः ४८८ | ७८३-७९९* महर्खा नेमेरुद्वाहमहोत्सवः,.. . ॥ अथ केशिगौतमीयाध्ययनम् ॥ ८५४-८५८७ चतुःपञ्चयामयोः केशिनः मृगरोधप्रभश्च । सारथेहत्तरम १९१४५१-४५४ गौतमनिक्षेपादिः (केशिनोऽपि) प्रभा, जुजडवक्रजडत्वादिना गौत८००-८०६* नेमेर्दीक्षा मस्योत्तरम् । ५०३ ४९२ ८०७-८०९* वासुदेवाविकता नेमिस्तुतिः ८३२* श्रीपार्थवर्णनम् । ८५९.८६४* सचेलाचेलकप्रश्ना, प्रत्यया-12 ८१०-८१२* राजीमतीदीक्षा । वासुदेवा-८३३-८३५* सुविहितकेशिनस्तिन्दुके आ- दिभिरुत्तरम् । ५०४ शीर्वादः। ४९३ गनम् । ८६५-८६९* अनुज्ञायां शत्रुतत्पराजयप्रश्न ASSACROSARALA .४९८ सुत्ताणि ~424 Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुल्तान नन्दी आदि सप्त- सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी - आदि- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) नन्द्यादिअनु. आव. ओष. दश. पिण्ड. उत्त. ॥ १७९ ॥ ५१० ५०५ उत्तरं च आत्मकषायेन्द्रियजयादिना । ९०० ९०४* संसारपारगमनप्रश्नः, संसारनावादिभिरुत्तरम् ८७०-८७४* तथा पाशकर्तनप्रभः, राग- ९०५-९०९* तमोनाशप्रश्नः, जिनभानुनोद्वेषच्छेदादिना उत्तरम् । ८७५-८७९* तोन्मूलनप्रश्नः भवतृष्णादिना उत्तरम् । ५०६ ८८०-८८४* अग्निनिर्वापणप्रश्नः, कथायामिश्रुतशीलतपोजलैरुत्तरम् । ५०७ ८८५-८८९* दुष्टाश्वनिग्रहप्रश्नः मनोनिग्र हादिनोत्तरम् । ८९०-८९४* कुपथप्रनः कुप्रवचनादिनो तरम् । ५०८ ८९५-८९९* श्रोतोवारणप्रश्नः, जरामरणवेगधर्मद्वीपादिनोत्तरम् । ५०९ , अध्ययननामान्वर्थः । ५१४ तरम् ९२१-९२३* अष्टप्रवचनमात्रुदेशः ५१५ ९२४-९२८* आलम्बनादि कारणेर्याद्रव्यादि (४) ५१६ ९१०-९१५* प्राप्यस्थानप्रश्नः निर्वाणादि ९२९-९३० अक्रोधादेरसावद्यादिर्भाषा ० । नोत्तरं । ५११ | ९३९ ९३२ शुद्धमिक्षादिरेपणा ५१७ ९१६-९२० गौतमनमस्कारः, केशिबोधः, ९३३-९३४ आदाननिक्षेपसमितिः । समागमफलनिर्देशः, लोकसन्तोष ९३५-९३८० उच्चारादेरनापातादौ विस्तीर्णादो आशी ५१२ च त्यागः। समितीनामुपसंहारः, ५१८ ९३९# गुप्तिकथनप्रतिज्ञा । ॥ इति केशिगौतमीयाध्ययनम् २३ ॥ ॥ अथ प्रवचनमात्र ध्ययनम् ॥ ४५८-४६२ प्रवचने निक्षेपाः (४) । व्य तिरिक्ते कुतीर्थिकानि भावे द्वादशाशम्। मातनिक्षेपाः (४) व्यतिरिक्ते भाजने द्रव्यम्, भावे प्रवचनमातरः ॥ ~425~ ९४० ९४१* संरम्भादिनिवृत्ता सत्यादियुता मनोगुप्तिः (४) तथैव वचोगुप्तिः । ५१८ ९४४-९४५* स्थानादौ संरंभादेः कार्यानि वर्त्तनं काय गुप्तिः । ५१९ उत्तराध्ययने समुद्रपालीय रथनमीय केशिगौतमीय प्रवचनानि, ॥ १७९ ॥ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ९४६-९४७ समितिगुप्त्योर्विशेषः, तहय- ९६०-९६२७ निरुत्तरःपप्रच्छ खरूपम् । । आचारनिक्षेपाः (४) व्यतिरिक्त फलं च। ५२० (या०) . नमनादि भावे आचारः सामाचार्याः ॥ इति प्रवचनमात्रध्ययनम् २४ ॥ ९६३-९८१ वेदादिमुखमााणादिवरूपम् । ॥ अथ यज्ञीयाध्ययनम् ॥ (मुनिः) ५२९ ४८९ अध्ययननामान्वर्थः । |४६३-४६५ यज्ञनिक्षेपाः (४) व्यतिरिक्त वि-९८२-९८५* मुनिप्रशंसा दीक्षाविज्ञप्तिश्च । ९९२ जयज्ञादि, भावे तपःसंयमयतना, वि ५३० जयघोषयझे जयघोषसाधोरण्ययनो- ९८६-९८९७ निरीहता. मृत्तिकागोलकरष्टा ९९३-९९५ सामाचार्यः (१०) आवश्यस्थानम् ५२१ न्तश्च क्याद्याः। ५३४ ४६६-४७३ जयघोषचरित्रम् । ५२२ ९९०-९९१४ विजयघोषदीक्षा, द्वयोर्मोक्षश्च । ९९६-९९८% (१०) सामाचारीविषय:५३५ |९४८-९५२% मनोरमे जयघोषस्य वासः वि- ५३१ |९९९-१००१* स्वाध्यायवैयावृत्त्यनियोगः जयघोषयझे भिक्षायाच्या। ५२३ ४७२-४८२ द्वयोश्चरित्रम् । ५३२ (ओघे) ५३६ |९५३-९५५* ऋत्विग्भ्य इदं, न तुभ्यं ॥ इति यज्ञीयाध्ययनम् २५ ॥ १००२-१००३७ पौरुषीचतुष्ककृत्यम् । देयम् । (याजकः) | ॥अथ सामाचार्यध्ययनम् ॥ |९५६-९५९* बेदयज्ञादिमुखाशः। (मुनिः)/४८३-४८८ सामनिक्षेपाः (४) व्यतिरिक्त १००४-२००७* छायया पौरुषीज्ञानं प्रति... ५२४ शर्करादौ । भावे इच्छामिथ्यादि । लेखनाकालज्ञानं च । ५३८ ASSACARE सुत्ताणि ~426 Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए नन्यादि ओष, आव. अनु. दश. पिण्ड, उत्त. ॥१८ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि SCORECACACACACANADA १००८-१०११ : रात्रिपौरुषी(४)कृत्यं ।१०४४-१०४५* गर्गस्य समाधिः शिष्यो- १०६१४ ज्ञानादिमोक्षमार्गकथनप्रतिज्ञा । उत्तराध्यतज्ज्ञानोपायश्च । ५३९ पदेशश्च । ५५० जयने यज्ञीय १०१२-१०२८॥ प्रतिलेखनाविधिराहारा-१०४६-१०५१* खलुकुशिष्ययोः साम्य-१०६१.१०६३ मार्गस्वरूपं तत्फलं च । सामाचारी नाहारकारणानि बिहारस्वाध्यायका- म्। ५५२ १०६४* ज्ञानपञ्चकम् । ५५७ खलुकीय मोक्षमागों लप्रतिक्रमणादि । ५४४ १ ०५२-१०५७ गौरवकोधभिक्षालसत्वाद्याः १०६५-१०६६* ज्ञानविषयो द्रव्यगुणपयो-17 २०२८॥-१०४२* देवसिकप्रतिक्रमण- कुशिष्यदुर्गुणाः । ५५३ यलक्षणं च । ५५८ विधि: कालमहणं रात्रिकप्रतिक्रमण-1 ......|१०६४-१०७२ धर्माधर्मादेर्योकत्वं, तेषा-1 विधिश्च । ५४७ मेकानेकते लक्षणानि च । ५६२ १०४३* उपसंहारः, सामाचारीफलम् ।। तीभावश्च । ५५४ १०७३* पर्यायलक्षणम् । ॥इति सामाचार्यध्ययनम २६॥ ॥हात खलकायाध्ययनम् २७॥ २०७४-१०९१जीवादिभद्रामयं सम्य॥ अथ खलुकीयाध्ययनम् ॥ ॥ अथ मोक्षमार्गाध्ययनम् ॥ | - क्त्वं निसर्गरुच्याद्याः (१०) सम्य४९०-४९८ खलुक्कनिक्षेपाः (४) खलुस्ख-४९९-५०५ मोक्षनिक्षेपाः (४) मार्गनिक्षेपाः क्वलिङ्गानि । सम्यक्त्वमहिमा, रूपम् । खलुङ्कसाधुखरूपम् । खलु- (४)गति निक्षेपाः (४) अध्ययन- तदाचाराश्च । ५६७। कृत्वं त्यक्त्वा ऋजुः स्यात् ५४८ । नामान्वर्थः। ५५५ ११०९२-१०९३* चारित्रपञ्चकम् ५६९ ॥१८० ~427 Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम ACEBOOK १०९४७ द्विविधं तपः। १०९५-१०९६७ मोक्षप्राप्ती ज्ञानादीनां व्या पारः संयमतपःफलं च । ॥ इति मोक्षमार्गाध्ययनम् ॥२८॥ -- ॥ अथ सम्यक्त्वपराक्रमाध्ययनम् ॥ | ५०६-५१२ सम्यक्त्वपराक्रमा१प्रमादरवी तरागश्रुत३नामानि । अप्रमादश्चतनिक्षेपाः (४) अध्ययनान्वर्धश्च । ५७१ अध्ययनोदेशः ५७२ संवेगादीनि (७३) द्वाराणि ५७३ १५-८७ संवेग १ निर्वेद २ धर्मश्रद्धा ३शु भूषा ४ऽऽलोचना ५ निन्दना ६ गईणा ७ सामायिक ८ चतुर्विशतिस्तव ९ बन्दनक १० प्रतिक्रमण ११-1 वीतरागता ४५ क्षान्ति ४६ मुक्त्याकायोत्सर्ग१२प्रत्याख्यान १३ स्तव- ४७ जैव ४८ मार्दव ४९ भाव५०स्तुतिः १४ काळमहण १५प्रायश्चित्त- करण ५१ योगसय ५२ मनो ५३१६ क्षामणा १७ स्वाध्याय १८वा- वचः ५४ कायगुप्तता ५५ मनोचना १९ प्रतिपृच्छा २० पराव- ५६ वचः ५७ कायसमाधारणा५८ ना २१ ऽनुप्रेक्षा २२ धर्मकथा- ज्ञान ५९ दर्शन ६० चारित्रसंप२३ श्रुताराधनै २४ कापमनस्कता- अता ६१ श्रोत्र ६२ चक्षु ६३-18 २५ संयम २६ सपो २७ व्यवदान- ाण ६४ जिह्वा ६५ स्पर्शनेन्द्रिय-है २८ सुखसाता २९ प्रतिबद्धता ३०- निग्रह ६६ क्रोध ६७ मान ६८-12 विविक्तशय्यादि ३१ विनिवर्तना- माया ६९ लोभविजय ७० प्रेम३२ संभोगो ३३ पथ्या ३४ हार- द्वेषमिध्यादर्शनविजय ७१ यथायु:३५ कषाय ३६ योग ३७ शरीर- पालन ७२ सर्वहाना ७३ ना फ-13 ३८ सहाय ३९ भक्त ४० सद्भाव- लानि । ५९८ प्रत्याख्यान ४१ प्रतिरूपता ४२ वै-८८ उपसंहारः। ५९८ यावृत्स्य ५३ सर्वगुणसंपूर्णवा ४४-॥ इति सम्यक्त्वपराक्रमाध्ययनम् ॥२९॥ ACCASSAGARMADARAM १४ -11 नंया सुत्ताणि ~428 Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुल्तान नन्दी आदि सप्त- सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी - आदि- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) नन्द्यादि अनु. आव. ओष. दश. पिण्ड. उच. ॥ १८९ ॥ | ११२६* बाह्यस्योपसंहारः, अभ्यन्तरप्रतिज्ञा । ५२४-५२५ स्थाननिक्षेपाः (१५) भावप्रमा११२७-११३४* सप्रभेदमभ्यन्तरं तपः त देन संख्याभावस्थानाभ्यां चाधिकारः। ६२० ५२६-५२७ आयान्तजिनयोः प्रमादोऽहोराश्रान्तर्मुहूर्त्ते । ६२१ ५२८ प्रमादिनोऽनन्त संसारः । ५२९ ज्ञानदर्शनचारित्रेष्वप्रमादः ६११ ११५६-११५८* मोक्षकथनप्रतिज्ञा मोक्षकारणानि तत्कारणानि च ( वृद्धसेबादीनि ) ६२२ ११५९* मिताहारनिपुणसहायविवेकनिकेतनसमाधिकामो मुनिः । ६२३ ११६०* कामासङ्गेनैकाकी । ११६१-११६३* मोहतृष्णयोर्मोहकर्मणोः फलं च । ६१० ॥ अथ तपोमार्गाध्ययनम् ॥ ५१३-५१६ तपोमार्गगतीनां निक्षेपादिः ५९९ १०९८* कर्मक्षयहेतुस्तपः । १०९९-११०३* अनाश्रवस्तटाकदृष्टान्तेन संवरनिर्जरे ६०० ११०४* बाह्याभ्यन्तरतपसी (६) ११०५-१११०* बाह्यं तपः (६) अनशने इत्वरे श्रेणिप्रतरघनवर्गवर्गप्रकीर्णानि, इतरस्मिन् सविचाराविचारादि । ६०३ ११११-११२१* अवमौदर्ये द्रव्यक्षेत्रकाल ॥ इति तपोमार्गाध्ययनम् ॥ ३० ॥ ॥ अथ चरणविध्यध्ययनम् ॥ ५१७-५२१ चरण विध्योर्निक्षेपाः भावचरणविधिनाऽधिकारः । ११३५-११५५* चरणविधिप्रतिज्ञा, एकादित्रयत्रिंशदन्तस्थानानि विरती रागद्वेषादीनि तत्फलं च । ६१८ भावपर्यायैः (पेटार्द्धपेटायाः ६) ६०६ ॥ इति चरणविध्यध्ययनम् ॥ ३१ ॥ ११२२* अष्टविधगोचरेपणाभिग्रहाः ६०७ ॥ अथ प्रमादस्यानाध्ययनम् ॥ ११२३-११२५* विकृत्यादित्यागः, वीरा- ५२२-५२३ प्रमादनिक्षेपाः (४) व्यतिरिक्ते मद्यायाः, भावे विषयाः । सनादि, एकान्तादिः (क्रमेण) ६०८ ~429~ सम्यक्त्वतपोमार्गचरणाप्रमादा ध्ययनानि २९-३२. ॥ १८९॥ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहविषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: नन्दी-आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम RECEBCALCCOR कर्मभवयोर्दुःखमोहयोस्तृष्णालोभयो- नेन्द्रियार्था रागाय, असंकल्पात्तृष्णा- ॥ अथ लेश्याध्ययनम् ॥ रन्योऽन्य कार्यकारणता । ६२४ । हानि:, कैवल्यं, मोक्षः, कृतार्थता, ५३७५४५ लेश्यानिक्षेपाः (४) नोकर्मणि| ११६४-११७५* रागादिधातोपायाः, रस- उपसंहारश्च । ६३९ जीवे भव्याभव्ययोः सप्तविधाः, परिहारा, विविक्तशय्या स्त्रीनिषद्या- ॥ इति प्रमादस्थानाध्ययनम् ॥३२॥ अजीवे दशविधाः (चन्द्रादीनाम् ), रूपादीक्षणत्यागः, बीदुरुत्यजता, वि- ॥ अथ कर्मप्रकृत्यध्ययनम् ॥ कर्मणि कृष्णाद्याः, भावे शुद्धाशुद्धे, षयकटुकता । ६२८ ५ ३०.५३५ कर्मनिक्षेपाः (४) द्रव्यनोकर्मणि नोकर्मणि प्रयोगविश्रसे, अध्ययननि११७६-१२५४* प्रियाप्रियविषयत्यागः, इ- लेप्यकर्मादि । प्रकृति निक्षेपाः (१) नोन्द्रियानिन्द्रियगृद्धिदोषाः। ६३४ | कर्मणि ग्रहणप्रायोग्यमुक्तानि । ६४० क्षेपाः (४) (कर्मनिस्वन्दोऽपि लेश्या) | १२५५७ विषयेभ्यो रागिणो दुःखं, नान्यस्य । १२६७* संसारहेतुकर्मप्रतिज्ञा. ६४१ ।। ६५१ |१२६८-१२९१५ अष्ट कर्माणि । ज्ञानावर-५४८ प्रशस्ताप्रशस्तयोस्त्यागादानी । १२५६, भोगान साम्य विगती, किन्तु राग- णादेरुचरभेदाः (५-९-२-२८-४-२-१२९२-१२९३* उपक्रमो लेश्यानां नामा १६-५) प्रदेशक्षेत्रकालभावकथनप्र- दिद्वाराणि च । ६५२ १२५७-१२५९ क्रोधादित्यागः, अकल्प्यादि- तिज्ञा तन्निरूपणमुपसंहार । ६४८ १२९४* लेश्यानामानि । त्यागः ६३६ ५ ३६ प्रकृत्याविज्ञानात्तस्संवरक्षपणे। |१२९५-१३००* लेश्यावणे।। ६५३ १२६०-१२६६७ बन्धहेतुररागिणो मोक्षाय, ॥इति कर्मप्रकृत्यध्ययनम् ॥३॥ १३०१-६७ लेश्यारसः । ६५४ सुत्ताणि ~430 Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) नन्यादिओष. आव. अनु. दश. पिण्ड, उत्त, ॥ १८२ ॥ | १३०७ - ११ लेश्यागन्धस्पर्शपरिणामाः । | १३५३-७३० उपोद्घातः सङ्गशुद्धसत्यप | १३८३-१८७* रूपिणो भेदाः, क्षेत्रं का उम्र । ६७५ घनघनत्यागशुद्धेषणाऽर्चनादित्यागसद्ध्याननिर्ममत्वैर्मोक्षः । ६६८ ॥ इत्यनगारमार्गाध्ययनम् ।। ३५ ।। | १३८८-१४१९० वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानेर्भावः । ६७७ १४२०# अजीवस्य विभकेरुपसंहारः, जीवस्य प्रतिज्ञा । ॥ अथ जीवाजीवविमत्यध्ययनम् ॥ ३१-४५ + उपक्रमादिनिरूपणम् । ६७० ५५२-५५९ जीवाजीवविभक्तीनां निज्ञेपाः (४) भावे (१०-१०-६) ६७१ १३७४-१३७५ उपोद्घातः, संयमः फलं ६५५ ९३१३-२३० लेश्यालक्षणानि ६५७ १३२४-४६* लेश्यायाः स्थानानि, सामान्येन गत्यपेक्षया च जघन्योत्कृष्टा स्थितिः, ६६१ १३४७ - १३४८* लेश्यातो गतिः । १३४९-५२* लेश्याप्रथमचरमसमययोनॉपपातः, किन्त्वन्तर्मुहूर्त्ते गते स्थिते च, उपसंहार । ६६२ ॥ इति लेश्माध्ययनम् ॥ ३४ ॥ ॥ अथानमारमार्गाध्ययनम् ॥ ५४९-५५१ अनगारमार्गगतीनां निक्षेपाः (४) ६६२ १४२१-१४२३# सिद्धभेदाः । (श्रीमुक्ति बादः ) ६८३ १४२४-१२७३ व्यादीनामेकसमयसिद्धानां संख्या । ६८४ १४२८-१४२९* सप्रसिद्धस्खलनादि । १४३०-१४३४* सिद्धशिलास्वरूपं लोकास्वरूपं च । ६८५ १४३५-१४३९ सिद्धानामवगाहनं स्वरूप लोकालोकलक्षणं च । १३७६* द्रव्यक्षेत्र कालभावैः प्ररूपणा । ६७२ १३७७-१३७९* रूप्यरूप्यजीव भेदाः १३८०-१३८२* अरूप्यजीवस्य क्षेत्रकालप्ररूपणा ६७३ | ~431~ कर्मप्रकृति लेश्यान गारजीवा जीवविभतिरूपाणि ३३-३६. ॥ १८२ ॥ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [आगम-४३] मूलसूत्र-४ 'उत्तराध्ययन' पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ভভ৬+৬জতন৬লতডনE A৬+ मवगाहनाऽनन्तस्थितिर्ज्ञानादियुक्त त्वं च । ६८७ १४४०* सिद्धानां क्षेत्रखरूपे । १४४१-४२ संसारिणस्रसस्थावराः पृथि व्यब्वनस्पतयस्त्रिधा स्थावराः। ६८८ १४४३-१४४९* पृथिव्यां सूक्ष्मबादरौ पर्यासापर्याप्तौ बाद लक्ष् (७) खरी ६८९ १४५०-१४५६* सूक्ष्माः सर्वलोकेऽनानात्वाः, बादरा देणे, स्थिविश्व पृथिव्याः, वर्णादिभेदाः । ६९० - १४५७-१४६४* अप्कायेऽपि भेदस्थित्यायुर्वर्णादिभेदाः। ६९१ १४६५-१४७८* वनस्पतेः प्रत्येक खाथारणप्रभेदाः सूक्ष्मखरूपं खिखायुर्व र्णादिभेदाः । खावरोपसंहारः, त्रस- १६२८-३१# कन्दर्पादिका अशुभा भावनाः कथनप्रतिज्ञा, तेजोवाबुद्धीन्द्रियाचा- फलं च तासां । ७०८ खसाः । | १६३२-१६३३० जिनवचनकरणाकरणयोः फलम् । ७०९ | १६३४* आलोचनाश्रवणे बह्नागमज्ञानादि कारणम् । ६९३ १४८१-१४८९४ तेजसो भेदाः कालस्थित्यायर्वर्णादिभेदाच । ६९४ १४९०-९८* बायोर्भेदकालस्थित्यायुर्वर्णादि । १४९९-१६१९* द्वीन्द्रियाद्या उदारत्रसाः, 'द्वित्रिचतुरिन्द्रियनारकपचेन्द्रियति. १६३५-३९# कन्दर्पादिभावनानां खरूपं तफलं च ७१२ मनुष्यचतुर्विधदेवानां भेदकाउस्थित्यायुर्वर्णादिभेदाः । ७०५ १६४०* शास्त्रोपसंहारः । १६२० १६२१* सिद्धसंसारिणो जीवाः ५६०-५६२ पारगामिनो भव्याः, अभव्या न रूप्यरूपिणोऽजीवाखान् श्रुत्वा भ तदधीयेत शास्त्रम् । ७१३ द्धाय संयमे रमेव । ७०५ १६२२-२७ अनुपालितसंयमस्य द्वादश वर्षाणि संलेखना ७०७ ॥ इति जीवाजीव विभक्तयध्ययनम् ॥ ३६ ॥ ॥ इत्युत्तराध्ययनवृद्ध विषयानुक्रमः ॥ ~432~ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ आगमसूत्र ] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः नन्दी -आदि-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) इति श्रीनन्दी-अनुयोगद्वार - आवश्यक - ओघनिर्युक्ति-दशवैकालिक - पिण्डनिर्युक्ति- उत्तराध्ययनानां - सूत्रसूत्रगाथा निर्युक्तिमूलभाष्यभाष्याणामकारादिक्रमः अंकशुद्धिः लघुवृश्च विषयानुक्रमः समाप्तः । (नन्द्यादीनां 'विषयानुक्रमः समाप्तः ) इति श्री - आगमोदयसमिति प्रन्थोद्वारे प्रन्थाङ्कः ५५. मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: नन्दी-आदि-सप्त-सूत्राणां लघु-बृहत् विषयानुक्रमः परिसमाप्तः ~433~ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: भाग-4 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च नन्यादिनां विषयानुक्रम: (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: "नन्दी-आदि-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम:' नाम्ना परिसमाप्त: आगम-संबंधी-साहित्य' श्रेणि, भाग-४ ~4340 Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग-4 भादया आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: पादकः पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आ *(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) म ता- मुनि दीपरत्नसागर सकलनकता [१] अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: [३] प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: [२] उपांग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः [४] नन्दयादि-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः [आगम-संबंधी-साहित्य] परिसमाप्ता: ~435 Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आजम भाडाम 3718ITA inche LE TOGE SITOME आगर आजम आगम आजम LETES आजम SEIMERT HOUSA आगंम 24 राजम आजम आज आजद आजम GUMEN आगम THEUS retoula? MCHES HICHE many आगम dier आन आजम आगम आगम आलस आगम वाचना शताब्दी वर्ष 8700 आजम SUOUS आजम आगम SUSTR 436~ आजम attali आजम आजम आसार कम आज आचार प्रजास आगम आगज BUCET SUSTERE MONETHENE आगम आगर Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स आगम संबंधी साहित्य मूल संशोधक अभिनव-संकलनकर्ता SATER PERese पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य ___ आगम दिवाकर मुनिश्री दीपत्नसागरजी श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजा [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] Here hindi प्रत-प्राप्ति और पेज-सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 982559885579825306275 ~4374 Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्व र्गस्थ गच्छाधिपति आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म. ही है । इस संघमें पूज्य साधू -भगवंत एवं साध्वी -महाराज के लिए उपाश्रय भी है, जहां हर-साल चातुर्मास करवा के श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है | इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग्-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म. की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है। ~438 Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आजम आजमआ मल संशोधक भानामा आजम - पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब आजमा गम् आगम आगम आगम आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: आजम आजम् अभिनव-संकलनकर्ता आजमा आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी _ [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] | आजम आगम आजम आगम आजम आगम आगम ~439