Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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उनका भी विनय करने की बात कही है । देखिए नंदीसूत्र में कहा है— 'संघं गुणायरं वंदे'
" गुण की खान श्रीसंघ को मैं वन्दन करता हूं ।” असल में देखा जाय तो गुणी के बिना गुण का कोई महत्त्व नहीं । दोनों का अविनाभाव-सम्बन्ध है । मिश्री में रही हुई मिठास अलग कर देने से कोई उसे मिश्री नहीं कहेगा । इसी प्रकार अग्नि में से उष्णता का गुण निकाल दिया जाय तो अग्नि का अस्तित्व ही खत्म हो जागा । इसी प्रकार गुणी में से भी गुण निकाल दिया जाय तो कोई उसे गुणी नहीं कहेगा। गुण यदि गुणी से अलग पड़ा रहेगा या उसका नाम किताब में लिखा होगा तो कोई उसका विनय नहीं करेगा; क्योंकि वह गुण केवल नाम का है, उसमें उस गुण की गुणत्व - शक्ति नहीं है । उस गुण की गुणत्व-शक्ति गुणी व्यक्ति के साथ संसर्ग होने से ही प्रगट होगी। मिश्री के साथ रहने से ही मिश्री में मधुरता प्रगट होगी, कागज पर 'मधुरता' शब्द लिखा होगा, तो वहाँ मधुरता प्रगट नहीं होगी ।
यही कारण है कि जैनधर्म ने गुण और गुणी दोनों के प्रति शुद्ध भावपूर्वक विनय करना तप बतलाया है, धर्म बतलाया है और आचार बतलाया है I
विनय के ५२ प्रकार
आइए अब जरा यह भी विचार कर लें कि जैन धर्म ने किन-किन मुख्य गुणों और गुणी-जनों या गुणियों के प्रति खासतौर से विनय करना बतलाया है I
यों तो शास्त्रों में विभिन्न प्रकार से भेद-प्रभेद करके विनय का वर्णन किया गया है। कहीं विनय के तीन भेद बताए हैं, कहीं चार, कहीं पांच, कहीं १० और कहीं १३ भेद बताए हैं । इन्हीं तेरह भेदों के साथ विनय के चार प्रकारों से गुणा करने पर १३x४ = ५२ भेद होते हैं ।
यहाँ पहले हम विनय के ५२ भेदों की चर्चा करेंगे। जैनधर्म में मुख्य गुण और मुख्य गुणी दोनों मिला कर विनय के लिए १३ पात्र बताए गए हैं। जिनका विनय किया जाना चाहिये । ये इस प्रकार हैं : – (१) तीर्थंकर, (२) सिद्ध, (३) कुल, (४) गण, (५) संघ, (६) क्रिया, (७) धर्म, (८) ज्ञान (९) ज्ञानी, (१०) आचार्य, (११) उपाध्याय, (१२) स्थविर और (१३) गणी ।
उपर्युक्त १३ विनययोग्य पात्रों में से तीर्थंकर, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, स्थविर और गणी ये ६ गुणी पुरुष हैं; कुल, गण और संघ ये तीन गुणी संस्थाएँ हैं और क्रिया, धर्म एवं ज्ञान ये तीन
विनय के प्रकार
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