Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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उद्योग-मंदिरों को देख कर कोई उस नगर की प्रशंसा करता है तो उससे नगर में रही हुई गंदे पानी की गटरों का समर्थन नहीं हो जाता। किसी भी चीज के समर्थन का आधार उसके समर्थक की भावना पर निर्भर है । अगर उसकी भावना किसी गुणी पुरुष के गुणों को देख कर उन गुणों का ही समर्थन करने की है तो उसमें निहित दोषों का समर्थन नहीं हो जायेगा । अपितु जिन गुणों की दृष्टि से समर्थन है, उन गुणों का ही समर्थन होगा। जैनधर्म का अनेकान्तवाद सापेक्ष दृष्टि से किसी भी वस्तु में रहे हुए धर्म (सत्य) को ग्रहण करने की बात कहता है । अत: अमुक गुणों की अपेक्षा से ही उस गुण का समर्थन करना सिद्धान्त-सम्मत है । जैसे अरिहन्त के गुणों की अपेक्षा से अरिहन्त का विनय उसका समर्थन है, साधु के गुणों की अपेक्षा से साधु का भी विनय गुण-सापेक्ष है। किसी साधु में कोई दोष होंगे तो भी उस साधु का विनय करने वाले की भावना उन दोषों का समर्थन करने की नहीं है तो फिर दोषों का समर्थन कैसे हो जायगा?
इसी तरह कई लोग यह भी कहा करते हैं, कि इस झमेले में न पड़ कर हमें निखालिस गुणों का ही विनय करना चाहिए; गुणी का विनय नहीं । परन्तु वे लोग यह भूल जाते हैं कि आप गुण का विनय करेंगे तो किसी न किसी व्यक्ति में रहे हुए गुणों का ही करेंगे या केवल उस गुण का केवल नाम लिख कर करने लगेंगे? गुण जब भी रहता है, तब वह किसी न किसी व्यक्ति में ही रहता है; अकेला नहीं । क्योंकि तत्त्वार्थसूत्र के “द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा:” इस सूत्र के अनुसार गुण अपने आप में स्वयं निर्गुण निराकार होते हैं, परन्तु वे किसी न किसी द्रव्य का आश्रय लिए हुए होते हैं । गुणों की अभिव्यक्ति भी किसी न किसी चेतनाशील प्राणी के द्वारा ही हुआ करती है, उसके बिना अमूर्त गुण को पहचानना भी कठिन है।
__इसीलिए गुणपूजक जैनधर्म ने गुण के साथ-साथ गुणीपुरुषों का भी विनय स्पष्टरूप से बताया है। केवल गुणों का विनय करने से या गुणों को ही अपनाने से जब कभी संकट आएगा, भय या प्रलोभन आएँगे, या और कोई विकट समस्या आएगी तब उक्त गुणों (जिनका वह विनय कर रहा है) पर टिके रहने की प्रेरणा या प्रोत्साहन कैसे मिलेगा? वह तो गुणी-पुरुषों के प्रति विनय करने से ही मिल सकता है। भले ही वे गुणी-पुरुष हमारे सामने वर्तमान समय में हाजिर न हों, परोक्ष हों, फिर भी उनके प्रति श्रद्धापूर्वक किया हुआ विनय हमें उनके गुणों का स्मरण करायेगा और विकट समय में हमें उस गुण पर दृढ़ रहने की प्रेरणा देगा। हमारे द्वारा उक्त गुणीपुरुष का विनय हमें ही नहीं; और लोगों को भी उन गुणों को अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा देगा। इतना ही नहीं, जैनधर्म ने तो गुणवृद्धि या गुणविकास करने में जो-जो महानिमित्त हैं,
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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