________________
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
Jain Education International
शुभाभिशंसन सौभाग्यमलजी श्रीश्रीमाल ( जयपुर )
परम श्रद्धास्पद महासती उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म. सा. की सेवा में उपस्थित होने और उनके अमृतोपम वचन श्रवण करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका, पर त्यागी महापुरुषों के परिवार में जन्म लेने वाली महिमामयी साक्षात् देवीरूपा सतीजी का अप्रत्यक्ष प्रभाव मुझ पर पड़ा है । उनके दोर्घकालीन संयमित जीवन की श्रद्धं शताब्दी के पूर्ण होने के अवसर पर उनके द्वारा किये गये प्रेरणादायी उपकारों, प्रवचनों एवं प्राणीमात्र के उद्धार के लिए किये गये सत्प्रयत्नों का स्मरण किया जाना हमारे जीवन को सही दिशा देने में बहुत महत्त्व रखता है। आदर्श स्वागियों का जीवन सबको सदैव प्रेरणा देता रहा है।
दर्शन, साहित्य एवं विभिन्न भाषाओं का गंभीर अध्ययन, योगाभ्यास व यम-नियम का कठोर पालन एवं इसके अतिरिक्त त्यागी - जीवन की कठिनाइयों को झेलते हुए दूर-दूर स्थानों पर पैदल यात्रा करके पहुँचना और इस प्रकार धर्म का संदेश घर पर पहुँचाने का काम इन जैसी विभूतियों के द्वारा ही संभव हो सका है।
मन की सरलता, करुणा भावना, दृढ़ और अडिग मनोबल और अप्रतिम साहस और निडरता इनकी अनोखी देन है। जिनका सदैव स्मरण कर अनुपालन करने का प्रयत्न करना चाहिए । ऐसी महान् ग्रात्मा की धनी, श्रद्धास्पद महासतीजी को मैं शत शत नमन करता हूँ और उनके अभिनन्दन के अवसर पर अपने श्रद्धा सुमन प्रेषित करने में अपने को भाग्यशाली मानता हूँ ।
उनका प्रतापी जीवन लोक-कल्याण के मार्ग पर सदैव अग्रसर होता रहे और जन-जन के जीवन को अनुप्राणित एवं क्रियाशील बनाता रहे, इस पुनीत भावना के साथ मेरा
सादर वन्दन ।
वंदन शत बार [] चंदनमल 'चांद'
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि महासती श्री उमरावकुंवरजी "अर्चना" की दीक्षा-स्वर्णजयन्ती के अवसर पर उनके व्यक्तित्व एवं साधना पर आधारित अभिनन्दन ग्रन्य प्रकाशित किया जा रहा है । महासतीजी से निकट सम्पर्क कम रहा है किन्तु जब कभी उनके दर्शन करने के अवसर मिले उनका वात्सल्य एवम् स्नेह हृदय को प्रेरणा देनेवाला सिद्ध हुआ । साधना की उपलब्धि सरलता एवम् विनम्रता में है। ज्ञान का प्रालोक तभी शोभा देता है जब उसमें अहंकार की कालिमा नहीं रहे महासतीजी जितनी विदुषी हैं उससे अधिक विनम्र और जितनी महान साधिका हैं उतनी ही सरल और विनम्र हैं।
दीक्षा - स्वर्णजयन्ती के अभिनन्दनग्रन्थ में अपनी भावपूर्ण वन्दना और अभिवन्दना अर्पित करता हूँ।
For Private & Personal Use Only
अर्चनार्चन / ४०
www.jainelibrary.org