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परिस्थिति ।
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जगह ले जाया जा सकता था और जिस समय आवश्यकता होती थी, वह पुनः बँगला बन सकता था ।
यह तो एक उदाहरण है । इसी तरह अनेक बादशाहोंने भारतवर्षको लूट लूट कर खाली कर देनेकी - बरबाद कर देनेकी चेष्टाएँ की थीं; परन्तु भारतवर्षको उन लूटोंसे केवल इतना ही नुकसान हुआ जितना कानखजूरेको उसकी एक टांग टूटनेसे होता है; अथवा समुद्रको एक बूँद कम हो जाने से होता है । अतः यदि यह कहा जाय कि, भारतवर्षकी ऋद्धि–समृद्धिमें कोई कमी नहीं हुई थी तो अत्युक्ति नहीं होगी । यदि स्पष्ट शब्दों में कहें तो यह है कि, इस समयकी अपेक्षा उस समयकी ( सोलहवीं शताब्दिकी ) जाहोजलाली और ही तरहकी थी । सारे भारतवर्षकी बातको छोड़ कर सिर्फ गुजरातहीकीउसके मुख्य नगर खंभात, पाटन, पालनपुर और सूरतहीकी-उन्नतिकाउसकी असाधारण जाहोजलालीका वर्णन करनेका यदि प्रयत्न किया जाय तो वह असंभव न होने पर भी कष्ट - साध्य तो अवश्य है । जो खंभात इस समय निरुद्यमी और निरुत्साही दिखाई देता है, वह उस समयका समृद्धिशाली नगर था । उसकी गगनस्पर्शी ध्वजाओंको देख देख कर ईरान आदि देशोंसे जहाजोंमें आनेवाले लोग आश्चर्यचकित हो जाते थे। जिस पाटनके निवासी आज दूर देशों में जा कर नौकरी करके या व्यापार-धंधा करके पेट भरनेके लिए मजबूर हुए हैं, उसी पाटनके लोग उस समय अपने घरोंमें बैठे बैठे लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ोंकी उथल पायल किया करते थे । मामूलीसा गिना जानेवाला पालनपुर शहर उस समय असाधारण विशाल और समृद्धिशाली था । ऐसे ऐसे अनेक नगर थे जिनके कारण सिर्फ गुजरात ही नहीं बल्कि समस्त भारतवर्ष अपने आपको गौरवशाली समझता था । इतना सब कुछ था तो भी हमें कहना पड़ता है कि, उस समय तक
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