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सूरीश्वर और सम्राट् ।
बादशाह जो बात चाहता था वह न हुई । वह चाहता था कि, सूरिजी उसको कोई ऐसा मंत्र या तावीज देते जिससे उस पर शनिकी दशाका असर न होता । मगर सूरिजीने जब यह उत्तर दिया कि, यह मेरा विषय नहीं है तब बादशाहने अपनी इच्छा शब्दोंद्वारा व्यक्त की:
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महाराज ! मुझे ज्योतिषशास्त्री से कोई मतलब नहीं है । आप मुझे कोई ऐसा तावीज बना दीजिए जिससे शनिकी खराब दशा मुझ पर असर न करे । "
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सूरिजीने उत्तर दिया :- " यंत्र-मंत्र करना हमारा काम नहीं है । हाँ हम यह कह सकते हैं कि, यदि आप जीवों पर महरबानी करेंगे, उन्हें अभय बनायेंगे तो आपका भला ही होगा । कारणप्रकृतिका नियम है कि, जो दूसरोंकी भलाई करता है उसका हमेशा भला ही होता है । "
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बादशाह बहुत कुछ कहने सुनने और आग्रह करने पर भी जब सूरिजी अपने आचारके विपरीत कार्य करने को तत्पर नहीं हुए तब अकबर बहुत प्रसन्न हुआ । उसने अबुल्फज़ल के सामने आचार्य महाराकी भूरि भूरि प्रशंसा की । बादशाहने सूरिजी के संबंधकी और भी कई बातें - जैसे सूरिजी के शिष्य कितने हैं ? इनके गुरुका क्या नाम है ? आदि - साधुओं से दर्याफ्त कर लीं ।
तत्पश्चात् अकबर ने अपने ज्येष्ठ पुत्र शेखूजीके द्वारा अपने सारे ग्रंथ वहाँ मँगवाये । शेखूजीने ग्रंथ संदूक मेंसे निकाल निकाल कर खानखान के साथ बादशाहके पास भेज दिये । सूरिजी और
१ खानखानाका पूरा नाम ' खानखानान मिर्ज़ा अब्दुर्रहीम' था । उसके पिताका नाम बेहरामख़ाँ था । जब उसने गुजरातको जीता था तब
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