________________
३८४
सूरीश्वर और सम्राट् ।। 'खुशफहम' का खिताब है-के शिष्य हैं, हमारे दारमें थे। उन्होंने दरखास्त और विनति की कि,-" यदि सारे सुरक्षित राज्यमें हमारे पवित्र बारह दिन--जो भादोंके पर्युषणाके दिन हैं-तक हिंसा करनेके स्थानोंमें हिंसा बंद कराई जायगी तो इससे हम सम्मानित होंगे, और अनेक जीव आपके उच्च और पवित्र हुक्मसे बच जायेंगे । इसका उत्तम फल आपको और आपके मुबारिक राज्यको मिलेगा |
हमने शाही रहेम-नज़र, हरेक वर्ष तथा जातिके कामोंमें उत्साह दिलाने बल्के प्रत्येक प्राणीको सुखी करनेकी तरफ रक्खी है; इससे इस अर्जको स्वीकारकर दुनियाका माना हुआ और मानने लायक जहाँगीरी हुक्म हुआ कि,-उल्लिखित बारह दिनोंमें, प्रतिवर्ष हिंसा करनेके स्थानों में, समस्त सुरक्षित राज्यमें प्राणी-हिंसा न करनी चाहिए
और न करनेकी तैयारी ही करनी चाहिए। इसके संबंधौ हर साल नया हुक्म नहीं मँगना चाहिए। इस हुक्मके मुताबिक चलना चाहिए;
आचार्य पद मिला था। सं० १६७४ में, ये 'मांडवगढ' में बादशाह जहाँगीरसे मिले थे । बादशाहने प्रसन्न होकर इन्हें ' महातपा' का खिताब दिया था । उदयपुरके महाराणा जगतसिंहजीने उनके उपदेशसे 'पीछोला'
और 'उदयसागर' नामक तालाबोंमें जाल डालना बंद करवा दिया था । राज्याभिषेकके दिन, सालगिरहके दिन तथा भादों महीनमें कोई जीवहिंसा न करे इस बातकी आज्ञा प्रकाशित की थी । नयानगरके राजा लाखाको, दक्षिणके ईदलशाहको, ईडरके कल्याणमल्लको और दीवके फिरंगियोंको भी उपदेश देकर उन्होंने जीवहिंसा कम कराई थी। वि० सं० १७१३ के आषार शुक्ला ११ के दिन ' उना' में उनका देहान्त हुआ था । विशेषके लिए देखो-' विजयप्रशस्ति महाकाव्य ' तथा ' ऐतिहासिक सज्झायमाला ' भाग पहला आदि ग्रंथ ।
१ देखो इस पुस्तकका पेज १६०.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org