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सूरीश्वर और सम्राट्। न किया जाय । एवं उसे तकलीफ़ भी न दी जाय । उससे किसी तरहका खर्च भी न माँगा जाय । जैसे,-पट्टा बनानेका खर्च, नज़राना, नापने का खर्च, ज़मीन कबजेमें देनेका खर्च, रजिस्टरीका खर्च, पटवार फंड, तहसीलदार और दारोगाका खर्च, बेगार, शिकार और गाँवका खर्च, नंबरदारीका खर्च, जेलदारीकी प्रति सैंकड़ा दो रु० फीस, कानूगोकी फीस, किसी खास कार्यके लिए साधारण वार्षिक खर्च, खेती करनेके समयकी फीस, और इसी प्रकारकी समस्त दीवानी सुल्तानी तकलीफोंसे वह हमेशाके लिए मुक्त किया जाता है । इसके लिए प्रतिवर्ष नवीन हुक्म और सूचनाकी आवश्यकता नहीं है। जो कुछ हुक्म दिया गया है, वह तोड़ा न जाय । सभी इसको अपना सरकारी कार्य समझें ।
ता. १७ अस्फन्दारमुझ-इलाही महीना, १० वाँ वर्ष ।
दूसरी तरफका अनुवाद ।
ता. २१ अमरदाद, इलाही १० वाँ वर्ष,-बराबर स्नबुलमुरजब __हि. स. १०२४ की १७ वीं तारीख, गुरुवार ।
पूर्णता और उत्तमताके आधाररूप, सच्चे और ज्ञानी ऐसे सैयद अहम्मद कादरीके भेजनेसे; बुद्धिशाली और वर्तमान समयके मालीनूस (धन्वन्तरी वैद्य ) एवं आधुनिक ईसा जैसे जोगीके अनुमोदनसे, वर्तमान समयके परोपकारी राजा सुबहानके दिये हुए परिचयसे और सबसे नम्र शिष्योंमें से एक तथा नोध करनेवाले इसहाक के लिखनेसे चंदू संघवी, पिता बोरु (?), पितामह वजीवन
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