Book Title: Surishwar aur Samrat Akbar
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Vijaydharm Laxmi Mandir Agra

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Page 452
________________ परिशिष्ट (च) (वरजीवन ) आगरेका रहनेवाला, सयनवम (सेवड़ोंको माननेवाला ), जिसका कपाल चौड़ा, भ्रमर चौड़ी, मेड़ियेके जैसे नेत्र, कालारंग, मुंडीहुई डाढ़ी, मुँहके ऊपर बहुतसे चेचकके दाग, दोनों कानोंमें जगह नगह छेद, मध्यम उचाई, और जिसकी करीब ६० वर्षकी उम्र है, उसने बादशाहकी ऊँची दृष्टिको एक रत्नसे जड़ी हुई अंगूठी, १० वें वर्षके इलाही महीनेकी २० वीं तारीखके दिन भेट की । और अर्ज की कि अकबरपुर गाँवमें १० वीघा जमीन, उसको सद्गत गुरु विजयसेनरिक मंदिर, बाग, मेला और सम्मानकी यादगारके लिए दी जाय । इसलिए सूर्यकी किरणोंकी तरह चमकनेवाला और सब दुनियाके मानन योग्य हुक्म हुआ कि-चंद संघवीको गाँव अकबरपुर, परगना चौरासीमें-जो खंभातके समीप है-दश बीघे खेतीकी जमीनका टुकड़ा मदद-इ-मुआश नामकी जागीर स्वरूप दिया जाय । हुक्मके अनुसार जाच करके लिखा गया । मार्जिनमें लिखा है कि "लिखनेवाला सच्चा है।" जुमलुतुरमुक्त, मदारुलमहाम एतमादुद्दौलाका हुक्मः" दूसरीबार अर्ज की जाय" मुखलीसखानने-जो महरबानी करने योग्य हैं-बादशाहके सामने दूसरी बार अर्ज पेश की (पुनः यह पत्र पेश किया जाता है । ) ता. २१ माह यूर, इलाही स. १० जुमकुतुल्मुल्क, मदारुलमहामका हुक्मः-"ख़रीफके प्रारंमनोशकानेईल-से हुक्म लिखा जाय । " जुमलुतुरमुल्की मदारुल महामीका हुक्म: अन्तिम हुक्म सुमलतुल मारुन महामका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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